26-04-2021 प्रात:मुरली बापदादा मधुबन

मीठे बच्चे - देवता बनना है तो अमृत पियो और पिलाओ, अमृत पीने वाले ही श्रेष्ठाचारी बनते हैं

प्रश्नः-

इस समय सतयुगी प्रजा किस आधार पर तैयार हो रही है?

उत्तर:-

जो इस ज्ञान से प्रभावित होते हैं, बहुत अच्छा, बहुत अच्छा कहते हैं लेकिन पढ़ाई नहीं पढ़ते, मेहनत नहीं कर सकते, वह प्रजा बन जाते हैं।

प्रभावित होना माना प्रजा बनना।

सूर्यवंशी राजा-रानी बनने के लिए तो मेहनत चाहिए।

पढ़ाई पर पूरा अटेन्शन हो।

याद करते और कराते रहें तो ऊंच पद मिल सकता है।

गीत:- तूने रात गॅवाई सो के....

 

गीत:- तूने रात गॅवाई सो के....


  • ओम् शान्ति। बच्चों ने गीत सुना कि हमारा जीवन हीरे जैसा था।
  • अब कौड़ी जैसा हो पड़ा है।
  • यह तो कॉमन बात है।
  • छोटा बच्चा भी समझ सकता है।
  • बाबा बहुत सहज रीति से समझाते हैं, जो कोई छोटा बच्चा भी समझ सके।
  • सत्य नारायण की कथा सुनाते हैं तो छोटे-छोटे बच्चे भी बैठ जाते हैं।
  • परन्तु वह सत्संगों आदि में जो सुनाते हैं वह सब हैं कथायें।
  • कथा कोई ज्ञान नहीं, बनी बनाई कहानियाँ हैं।
  • गीता की कहानी, रामायण की कहानी भिन्न-भिन्न शास्त्र हैं, जिनकी कहानियां बैठ सुनाते हैं।
  • वह सब हैं कथायें। कहानियों से कोई फायदा होता है क्या!
  • यह है सत्य नारायण की अर्थात् नर से नारायण बनने की सच्ची कहानी।
  • यह सुनने से तुम नर से नारायण बन जायेंगे।
  • यह अमरकथा भी हुई।
  • तुम निमत्रण देते हो कि आओ अमरकथा तुमको सुनायें तो तुम अमरलोक में चले जायेंगे।
  • तो भी कोई नहीं समझते हैं।
  • शास्त्रों की कहानी सुनते आते हैं।
  • मिलता कुछ भी नहीं।
  • जायेंगे लक्ष्मी-नारायण के मन्दिर में, चलो दर्शन करके आयें।
  • महात्मा का दर्शन कर आयें।
  • यह एक रसम-रिवाज चली आई है।
  • ऋषि-मुनि आदि जो होकर गये हैं उनको माथा टेकते आये हैं।
  • पूछो, रचता और रचना की कहानी का पता है?
  • तो कहेंगे नहीं।
  • अभी तुम बच्चे समझते हो कि यह रचता और रचना की कहानी तो बहुत सहज है।
  • अल्फ और बे की कहानी है।
  • भल प्रदर्शनी में जो आते हैं वे कहानी तो ठीक सुन लेते हैं परन्तु पवित्र नहीं बनते।
  • समझते हैं यह विकारों में जाने की रसम-रिवाज भी अनादि है।
  • मन्दिर में देवताओं के आगे जाकर गाते हैं आप सम्पूर्ण निर्विकारी हो... फिर बाहर आकर कहते हैं विकार में जाना तो अनादि है।
  • इस बिगर दुनिया कैसे चलेगी?
  • लक्ष्मी-नारायण आदि को भी तो बच्चे थे ना, ऐसे कह देते हैं तो ऐसों को क्या कहें!
  • मनुष्य का लकब (मर्तबा) तो दे न सकें।
  • देवतायें भी मनुष्य थे, कितने सुखी थे - लक्ष्मी-नारायण के राज्य में।
  • तुम बच्चों को बाबा बहुत सहज बात बताते हैं, बरोबर यहाँ भारत में ही स्वर्ग था।
  • लक्ष्मी-नारायण का राज्य था।
  • चित्र भी हैं, यह तो सब मानेंगे कि सतयुग में उन्हों का राज्य था।
  • वहाँ कोई दु:खी नहीं था, सम्पूर्ण निर्विकारी थे, उन्हों के मन्दिर भी बड़े-बड़े बने हुए थे।
  • उन्हों को 5 हजार वर्ष हुए।
  • अभी वह नहीं हैं।
  • अभी तो कलियुग का अन्त है।
  • मनुष्य आपस में लड़ते-झगड़ते रहते हैं।
  • भगवान तो ऊपर ही रहते हैं निर्वाणधाम में।
  • असुल में हम आत्मायें भी वहाँ रहती हैं, यहाँ पार्ट बजाने आती हैं।
  • पहले हम लक्ष्मी-नारायण के राज्य में थे।
  • वहाँ बहुत सुख-आनन्द था फिर हमको 84 जन्म लेने पड़े।
  • गाया भी जाता है 84 का चक्र।
  • हमने सूर्यवंशी में 1250 वर्ष राज्य किया।
  • वहाँ अथाह सुख था, सम्पूर्ण निर्विकारी थे, हीरे-जवाहरात के महल थे।
  • हमने राज्य किया फिर 84 जन्मों में आना पड़े।
  • यह वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी का चक्र फिरता रहता है।
  • आधा-कल्प सुख था।
  • रामराज्य में थे फिर मनुष्यों की वृद्धि होती गई।
  • सतयुग में 9 लाख थे।
  • सतयुग अन्त में वृद्धि होकर 9 लाख से दो करोड़ हो गये, फिर 12 जन्म त्रेता में बहुत सुख चैन में थे।
  • एक ही धर्म था।
  • फिर क्या हुआ?
  • फिर रावण राज्य शुरू हुआ।
  • रामराज्य और रावण राज्य देखो बहुत सहज रीति से समझाता हूँ।
  • छोटे-छोटे बच्चों को भी ऐसे बताना चाहिए और क्या हुआ?
  • बड़े-बड़े सोने हीरे जवाहरातों के महल अर्थक्वेक में अन्दर चले गये।
  • भारत-वासियों के विकारी बनने से ही अर्थक्वेक हुई, फिर रावण राज्य शुरू हुआ।
  • पवित्र से अपवित्र हो गये।
  • कहते भी हैं सोने की लंका अन्दर चली गई।
  • कुछ तो बचा होगा ना, जिससे फिर मन्दिर आदि बनाये होंगे।
  • भक्ति मार्ग शुरू हुआ - मनुष्य विकारी होने लगे।
  • फिर रावण राज्य चला तो आयु भी कम हो गई।
  • हम निर्विकारी योगी से विकारी भोगी बन गये, यथा राजा रानी तथा प्रजा सब विकारी बन गये।
  • यह कहानी कितनी सहज है।
  • छोटी-छोटी बच्चियाँ भी यह कहानी सुनायें तो बड़े-बड़े आदमियों का मुंह नीचा हो जाए।
  • अभी बाप बैठ सुनाते हैं, वही ज्ञान का सागर पतित-पावन है।
  • अच्छा द्वापर में भोगी पतित बन गये फिर और धर्म भी शुरू होते गये।
  • अमृत का जो नशा था वह खलास हो गया।
  • लड़ाई-झगड़े होने लगे।
  • द्वापर से लेकर हम गिरे, कलियुग में हम और ही विकारी बनें।
  • पत्थर की मूर्तियाँ बनाते रहे।
  • हनूमान, गणेश की....।
  • पत्थरबुद्धि होने लगे तो पत्थर की पूजा करने लगे।
  • समझते थे कि भगवान पत्थर-ठिक्कर में है।
  • ऐसे करते-करते भारत की यह हालत हो गई अब फिर बाप कहते हैं विष छोड़ अमृत पीकर पवित्र बनो और फिर राजाई लो।
  • विष छोड़ो तो फिर तुम मनुष्य से देवता बन जायेंगे।
  • परन्तु विष छोड़ते नहीं हैं।
  • विष के लिए कितना मारते, तंग करते हैं तब तो द्रोपदी ने पुकारा ना।
  • तुम समझते हो कि अमृत पीने बिगर हम देवता कैसे बनेंगे।
  • सतयुग में तो रावण होता ही नहीं।
  • बाप कहते हैं, जब तक श्रेष्ठाचारी नहीं बनेंगे, स्वर्ग में नहीं आ सकेंगे।
  • जो श्रेष्ठाचारी थे, वह अब भ्रष्टाचारी बने हैं।
  • फिर अब अमृत पीकर श्रेष्ठाचारी बनना है।
  • बाप कहते हैं मामेकम् याद करो।
  • क्या गीता भूल गये हो?
  • गीता रची मैंने, नाम डाल दिया कृष्ण का। इन लक्ष्मी-नारायण को यह राजाई किसने दी?
  • जरूर भगवान ने दी होगी।
  • अगले जन्म में भगवान ने राजयोग सिखाया, नाम फिर डाला है कृष्ण का।
  • तो समझाने की प्रैक्टिस करनी चाहिए।
  • बहुत सहज कहानी है।
  • बाबा को कितना समय लगा?
  • आधा घण्टे में इतनी सहज बात भी समझ नहीं सकते इसलिए बाप कहते हैं सिर्फ एक छोटी कहानी बैठ किसको समझाओ।
  • हाथ में चित्र लो।
  • सतयुग में लक्ष्मी-नारायण का राज्य, फिर त्रेता में राम-सीता का राज्य ....फिर द्वापर में रावण का राज्य हुआ।
  • कितनी सहज कहानी है।
  • बरोबर हम देवता थे फिर क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र बने।
  • अभी अपने को देवता न समझने कारण हिन्दू कह देते हैं।
  • धर्म श्रेष्ठ, कर्म श्रेष्ठ से धर्म भ्रष्ट, कर्म भ्रष्ट बन पड़े हैं।
  • ऐसी छोटी-छोटी बच्चियां बैठ भाषण करें तो सारी सभा में हियर-हियर हो जाए।
  • बाबा सभी सेन्टर्स वालों को सुना रहे हैं।
  • अब यह बड़े-बड़े नहीं सीखते हैं तो छोटी-छोटी कुमारियों को सिखाओ।
  • कुमारियों का नाम भी है।
  • देहली, बाम्बे में बहुत अच्छी-अच्छी कुमारियाँ हैं।
  • पढ़ी लिखी हैं।
  • उनको तो खड़ा हो जाना चाहिए।
  • कितना काम कर सकती हो।
  • अगर कुमारियाँ खड़ी हो जाएं तो नाम बाला हो जाए।
  • साहूकार घर की जो हैं वह मुश्किल हिम्मत रखती हैं।
  • साहूकारी का नशा रहता है।
  • दहेज आदि मिलता है तो बस।
  • कुमारियां शादी कर काला मुंह कर देती और सबके आगे झुकना पड़ता है।
  • तो बाप कितना सहज समझाते हैं।
  • परन्तु पारस-बुद्धि बनने का ख्याल ही नहीं आता।
  • देखो जो नहीं पढ़ते हैं वह भी आजकल एम. पी., एम. एल. ए. आदि बन गये हैं।
  • पढ़ाई से तो क्या-क्या बन जाते हैं। यह पढ़ाई तो बहुत सहज है।
  • औरों को भी जाकर सिखाना चाहिए।
  • परन्तु श्रीमत पर नहीं चलते तो पढ़ते भी नहीं हैं।
  • बहुत अच्छी-अच्छी कुमारियां हैं परन्तु अपना ही नशा चढ़ा हुआ है।
  • थोड़ा काम किया तो समझती हैं हमने बहुत काम किया है।
  • अभी तो बहुत काम करना है।
  • आजकल फैशन में ही कुमारियाँ रहती हैं।
  • वहाँ तो नेचुरल श्रृंगार रहता है।
  • यहाँ तो कितना आर्टीफिशियल श्रृंगार करते हैं।
  • सिर्फ बाल बनाने में ही कितने पैसे देते हैं।
  • यह है माया का पाम्प।
  • फाल ऑफ माया रावण राज्य, फिर राइज़ ऑफ रामराज्य।
  • अब रामराज्य स्थापन होता है।
  • परन्तु तुम मेहनत तो करो ना।
  • तुम क्या बनेंगे!
  • अगर पढ़ेंगे नहीं तो वहाँ जाकर पाई-पैसे की प्रजा बनेंगे।
  • आजकल के बड़े-बड़े आदमी वहाँ की सब प्रजा में आ जायेंगे।
  • साहूकार लोग सिर्फ अच्छा-अच्छा कह अपने धन्धे में लग जाते हैं।
  • बहुत अच्छा प्रभावित होते हैं फिर क्या!
  • आखरीन क्या होगा?
  • वहाँ जाकर प्रजा बनेंगे।
  • प्रभावित माना प्रजा।
  • जो मेहनत करते हैं वह रामराज्य में आ जायेंगे।
  • समझानी तो बहुत सहज है।
  • इस कहानी के नशे में कोई रहे तो बेड़ा पार हो जाए।
  • हम शान्तिधाम में जायेंगे फिर सुखधाम में आयेंगे बस याद करते-कराते रहना है, तब ही ऊंच पद पायेंगे।
  • अटेन्शन पढ़ाई पर देना है।
  • चित्र हाथ में हो।
  • जैसे बाबा जब लक्ष्मी-नारायण की पूजा करते थे तो चित्र जेब में पड़ा रहता था।
  • चित्र छोटे भी हैं, लॉकेट में भी हैं।
  • उन पर समझाना है।
  • यह है बाबा, उन द्वारा वर्सा मिल रहा है।
  • अब पवित्र बनो, बाप को याद करो।
  • कितनी नॉलेज है इन मेडल्स (बैज) में।
  • इनमें सारा ज्ञान है।
  • इन पर समझाना बहुत सहज है।
  • सेकेण्ड में बाप से स्वर्ग के जीवनमुक्ति का वर्सा।
  • कोई भी समझाये तो जीवनमुक्ति पद का अधिकारी बन जाये।
  • बाकी पढ़ाई अनुसार ऊंच पद पायेंगे।
  • स्वर्ग में तो आयेंगे ना।
  • पिछाड़ी में आयेंगे तो सही ना।
  • वृद्धि तो होनी है।
  • देवी-देवता धर्म ऊंच है, वह भी तो बनेंगे ना।
  • प्रजा तो लाखों बनेंगी।
  • सूर्यवंशी बनने में मेहनत है।
  • सर्विस करने वाले ही अच्छा पद पायेंगे।
  • उनका नाम भी बाला है - कुमारका है, जनक है अच्छा सेन्टर सम्भाल रही हैं।
  • कोई खिटपिट नहीं है।
  • बाप कहते हैं सी नो ईविल, टॉक नो ईविल फिर भी ऐसी-ऐसी बातें करते रहते हैं।
  • ऐसे-ऐसे क्या जाकर बनेंगे।
  • इतनी सहज सर्विस भी नहीं करते हैं।
  • छोटी-छोटी बच्चियाँ भी यह समझा सकती हैं।
  • सुना सकती हैं।
  • बन्दर सेना भी मशहूर है।
  • सीतायें जो रावण की जेल में फँसी हुई हैं उन्हों को छुड़ाना है।
  • कथायें तो क्या-क्या बना दी हैं।
  • ऐसे-ऐसे कोई भाषण करें।
  • बाकी सिर्फ कहते हैं फलाना बहुत प्रभावित हुआ।
  • पूछो, तुम क्या बनना चाहते हो?
  • सिर्फ दूसरों को कहेंगे इनका ज्ञान बहुत अच्छा है।
  • खुद समझते कुछ भी नहीं, इससे क्या फायदा।
  • अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
  • धारणा के लिए मुख्य सार:-
  • 1) पारसबुद्धि बनने के लिए पढ़ाई पर पूरा-पूरा ध्यान देना है।
    • श्रीमत पर पढ़ना और पढ़ाना है।
    • हद की साहूकारी का नशा, फैशन आदि छोड़ इस बेहद सेवा में लग जाना है।
  • 2) हियर नो ईविल, सी नो ईविल....कोई भी व्यर्थ बातें नहीं करनी हैं।
    • किसी पर प्रभावित नहीं होना है।
    • सबको सत्य नारायण की छोटी सी कहानी सुनानी है।
  • वरदान:-
  • ( All Blessings of 2021)
  • नॉलेज की लाइट-माइट द्वारा अपने लक को जगाने वाले सदा सफलतामूर्त भव
  • जो बच्चे नॉलेज की लाइट और माइट से आदि-मध्य-अन्त को जानकर पुरूषार्थ करते हैं, उन्हें सफलता अवश्य प्राप्त होती है। सफलता प्राप्त होना भी लक की निशानी है।
  • नॉलेजफुल बनना ही लक को जगाने का साधन है।
  • नॉलेज सिर्फ रचयिता और रचना की नहीं लेकिन नॉलेजफुल अर्थात् हर संकल्प, हर शब्द और हर कर्म में ज्ञान स्वरूप हो तब सफलतामूर्त बनेंगे।
  • अगर पुरूषार्थ सही होते भी सफलता नहीं दिखाई देती है तो यही समझना चाहिए कि यह असफलता नहीं, परिपक्वता का साधन है।
  • स्लोगन:-
  • (All Slogans of 2021)
  • न्यारे बनकर कर्मेन्द्रियों से कर्म कराओ तो कर्मातीत स्थिति का अनुभव सहज कर सकेंगे।