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ओम् शान्ति। यह किसने कहा और किसको?
 
      -  बाप ने कहा बच्चों को।
 
      -  जिन बच्चों को पतित से पावन बना रहे हैं। 
 
      - बच्चे जान गये हैं हम भारतवासी जो देवी देवता थे, वह अब 84 जन्मों का चक्र लगाए सतोप्रधान से पास कर अब सतो, रजो, तमो और अब तमोप्रधान बन गये हैं।
 
      -  अब फिर पतितों को पावन बनाने वाला बाप कहते हैं, अपने दिल से पूछो कि कहाँ तक हम पुण्य आत्मा बने हैं?
 
      -  तुम सतोप्रधान पवित्र आत्मा थे, जब यहाँ पहले-पहले तुम देवी-देवता कहलाते थे, जिसको आदि सनातन देवी देवता धर्म कहा जाता था।
 
      -  अभी कोई भारतवासी अपने को देवी देवता धर्म के नहीं कहलाते।
 
      -  हिन्दू तो कोई धर्म है नहीं।
 
      -  परन्तु पतित होने के कारण अपने को देवता कहला नहीं सकते।
 
      -  सतयुग में देवतायें पवित्र थे। 
 
      - पवित्र प्रवृत्ति मार्ग था, यथा राजा-रानी तथा प्रजा पवित्र थे।
 
      -  भारतवासियों को बाप याद दिलाते हैं कि तुम पवित्र प्रवृत्ति मार्ग वाले आदि सनातन देवी देवता धर्म वाले थे, उसको स्वर्ग कहा जाता था। 
 
      - वहाँ एक ही धर्म था।
 
      -  पहला नम्बर महाराजा-महारानी, लक्ष्मी-नारायण थे। 
 
      - उनकी भी डिनायस्टी थी और भारत बहुत धनवान था, वह सतयुग था।
 
      -  फिर आये त्रेता में तब भी पूज्य देवी-देवता वा क्षत्रिय कहलाते थे।
 
      -  वह लक्ष्मी-नारायण का राज्य, वह सीता-राम का राज्य, वह भी डिनायस्टी चली।
 
      -  जैसे क्रिश्चियन में एडवर्ड दी फर्स्ट, सेकेण्ड...... ऐसे चलता है।
 
      -  वैसे भारत में भी ऐसे था।
 
      -  5 हजार वर्ष की बात है अर्थात् 5 हजार वर्ष पहले भारत पर इन लक्ष्मी-नारायण का राज्य था।
 
      -  परन्तु उन्होंने यह राज्य कब और कैसे पाया - यह कोई नहीं जानते। 
 
      - वही सूर्यवंशी राज्य फिर चन्द्रवंशी में आया क्योंकि पुनर्जन्म लेते-लेते सीढ़ी उतरनी है। 
 
      - यह भारत की हिस्ट्री-जॉग्राफी कोई नहीं जानते।
 
      -  रचता है बाप तो जरूर सतयुगी नई दुनिया का रचता ठहरा।
 
      -  बाप कहते हैं बच्चे, तुम आज से 5 हजार वर्ष पहले स्वर्ग में थे। 
 
      - यह भारत स्वर्ग था फिर नर्क में आये हैं।
 
      -  दुनिया तो इस वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी को नहीं जानती। 
 
      - वह तो अधूरी सिर्फ पिछाड़ी की हिस्ट्री जानते हैं।
 
      -  सतयुग-त्रेता की हिस्ट्री-जॉग्राफी को कोई नहीं जानते।
 
      -  ऋषि-मुनि भी कहते गये हम रचता और रचना के आदि-मध्य-अन्त को नहीं जानते हैं।
 
      -  जाने भी कोई कैसे, बाप तुमको ही बैठ समझाते हैं। 
 
      - शिवबाबा भारत में ही दिव्य जन्म लेते हैं, जिसकी शिव जयन्ती भी होती है।
 
      -  शिवजयन्ती के बाद फिर चाहिए गीता जयन्ती।
 
      -  फिर साथ-साथ होनी चाहिए कृष्ण जयन्ती।
 
      -  परन्तु इस जयन्ती का राज़ भारतवासी जानते नहीं हैं कि शिव जयन्ती कब हुई!
 
      -  और धर्म वाले तो झट बतायेंगे - बुद्ध जयन्ती, क्राइस्ट जयन्ती कब हुई। 
 
      - भारतवासियों से पूछो शिवजयन्ती कब हुई?
 
      -  कोई नहीं बतायेंगे।
 
      -  शिव भारत में आया, आकर क्या किया?
 
      -  कोई नहीं जानते।
 
      -  शिव ठहरा सब आत्माओं का बाप। 
 
      - आत्मा है अविनाशी। 
 
      - आत्मा एक शरीर छोड़ दूसरा लेती है।
 
      -  यह 84 का चक्र है।
 
      -  शास्त्रों में तो 84 लाख जन्म का गपोड़ा लगा दिया है। 
 
      - बाप आकर राइट बात बताते हैं। 
 
      - बाप के सिवाए बाकी सब रचता और रचना के लिए झूठ ही बोलते हैं क्योंकि यह है ही माया का राज्य।
 
      -  पहले तुम पारसबुद्धि थे, भारत पारसपुरी था।
 
      -  सोने, हीरे, जवाहरों के महल थे।
 
      -  बाप बैठ रचता और रचना के आदि-मध्य-अन्त का राज़ अर्थात् दुनिया की हिस्ट्री-जॉग्राफी बताते हैं।
 
      -  भारतवासी यह नहीं जानते कि हम सो पहले-पहले देवी-देवता थे, अभी पतित, कंगाल, इरिलीजस बन गये हैं, अपने धर्म को भूल गये हैं।
 
      -  यह भी ड्रामा अनुसार होना है।
 
      -  तो यह वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी बुद्धि में आनी चाहिए ना। 
 
      - ऊंच ते ऊंच सर्व आत्माओं का बाप मूलवतन में रहते हैं, फिर है सूक्ष्मवतन। 
 
      - यह है स्थूलवतन।
 
      -  सूक्ष्मवतन में सिर्फ ब्रह्मा-विष्णु-शंकर रहते हैं।
 
      -  उनकी दूसरी कोई हिस्ट्री-जॉग्राफी नहीं है।
 
      -  यह तीन तबके हैं। 
 
      - गॉड इज वन।
 
      -  उनकी रचना भी एक है, जो चक्र फिरता रहता है।
 
      -  सतयुग से त्रेता फिर द्वापर, कलियुग में आना पड़े।
 
      -  84 जन्मों का हिसाब चाहिए ना, जो कोई भी नहीं जानते हैं।
 
      -  न कोई शास्त्र में है।
 
      -  84 जन्मों का पार्ट तुम बच्चे ही बजाते हो।
 
      -  बाप तो इस चक्र में नहीं आते हैं।
 
      -  बच्चे ही पावन से पतित बन जाते हैं इसलिए चिल्लाते हैं - बाबा आकर हमको फिर से पावन बनाओ। 
 
      - एक को ही सब पुकारते हैं। 
 
      - रावण राज्य में जो सब दु:खी हो पड़े हैं, उनको आकर लिबरेट करो फिर रामराज्य में ले जाओ।
 
      -  आधाकल्प है रामराज्य।
 
      -  आधाकल्प है रावण राज्य।
 
      -  भारतवासी जो पवित्र थे वही पतित बनते हैं। 
 
      - वाम मार्ग में जाने से पतित होना शुरू होते हैं।
 
      -  भक्ति मार्ग शुरू होता है।
 
      -  अभी तुम बच्चों को ज्ञान सुनाया जाता है, जिससे आधा-कल्प, 21 जन्म के लिए तुम सुख का वर्सा पाते हो। 
 
      - आधाकल्प ज्ञान की प्रालब्ध चलती है, फिर रावण राज्य होता है। 
 
      - गिरने लग पड़ते हैं।
 
      -  तुम दैवी राज्य में थे फिर आसुरी राज्य में आ गये हो, इसको हेल भी कहते हैं। 
 
      - तुम हेविन में थे फिर 84 जन्म पास कर हेल में आकर पड़े हो।
 
      -  वह था सुखधाम।
 
      -  यह है दु:खधाम, 100 परसेन्ट इनसालवेन्ट
 
      - । 84 जन्मों का चक्र लगाते, वही भारतवासी पूज्य से पुजारी बन गये हैं।
 
      -  इसको ही वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी कहा जाता है।
 
      -  यह है सारा तुम भारतवासियों का चक्र, और धर्म वाले तो 84 जन्म नहीं लेते हैं। 
 
      - वह सतयुग में होते ही नहीं।
 
      -  सतयुग त्रेता में सिर्फ भारत ही था। 
 
      - सूर्यवंशी, चन्द्रवंशी फिर वैश्य वंशी, शूद्रवंशी....अभी फिर तुम आकर ब्राह्मण वंशी बने हो, देवता वंशी बनने के लिए। 
 
      - यह है भारत के वर्ण।
 
      -  अभी तुम ब्राह्मण बनने से शिवबाबा से वर्सा ले रहे हो।
 
      -  बाप तुमको पढ़ा रहे हैं, 5 हजार वर्ष पहले मुआफिक।
 
      -  कल्प-कल्प तुम पावन बन फिर पतित बनते हो। 
 
      - सुखधाम में जाकर फिर दु:खधाम में आते हो।
 
      - फिर शान्तिधाम में जाना है, जिसको निराकारी दुनिया कहा जाता है।
 
      - आत्मा क्या है, परमात्मा क्या है, यह कोई भी मनुष्य नहीं जानते हैं।
 
      -  आत्मा भी एक स्टार बिन्दी है।
 
      -  कहते हैं - भ्रकुटी के बीच में सितारा चमकता है, छोटी सी बिन्दी है, जिसको दिव्य दृष्टि से देखा जा सकता है।
 
      -  वास्तव में स्टार भी नहीं कहा जायेगा। 
 
      - स्टार तो बहुत बड़ा है - सिर्फ दूर होने के कारण छोटा दिखाई पड़ता है।
 
      -  यह सिर्फ एक मिसाल दिया जाता है। 
 
      - आत्मा इतनी छोटी है जैसे ऊपर में स्टार छोटा दिखाई पड़ता है।
 
      -  बाप की आत्मा भी एक बिन्दी मिसल है।
 
      -  उनको सुप्रीम आत्मा कहा जाता है।
 
      -  उनकी महिमा अलग है।
 
      -  मनुष्य सृष्टि का चैतन्य बीज रूप होने के कारण उनमें सारा ज्ञान है। 
 
      - तुम्हारी आत्मा को भी अभी नॉलेज मिल रही है।
 
      -  आत्मा ही नॉलेज ग्रहण कर रही है, इतनी छोटी बिन्दी में 84 जन्मों का पार्ट नूँधा हुआ है।
 
      -  सो भी अविनाशी, 84 जन्मों का चक्र लगाते आये हो।
 
      -  इसकी इन्ड हो नहीं सकती।
 
      -  देवता थे, दैत्य बने फिर सो देवता बनना है।
 
      -  यह चक्र चलता आया है।
 
      -  बाकी तो सब हैं बाईप्लाट।
 
      -  इस्लामी, बौद्धी आदि कोई 84 जन्म नहीं लेते हैं।
 
      -  यही सतयुग भारत में राइटियस सालवेन्ट था फिर 84 जन्म ले विशश बने हैं।
 
      -  यह विशश वर्ल्ड है। 
 
      - 5 हजार वर्ष पहले प्योरिटी थी, पीस भी थी, प्रासपर्टी भी थी।
 
      -  बाप बच्चों को याद दिलाते हैं।
 
      -  मुख्य है - प्योरिटी इसलिए कहते हैं विशश को वाइसलेस बनाने वाले आओ।
 
      -  वही सद्गति देने वाला है, इसलिए वही सतगुरू है। 
 
      - अभी तुम बाप द्वारा बेगर टू प्रिन्स बन रहे हो अथवा नर से नारायण, नारी से लक्ष्मी बनते हो।
 
      -  तुम्हारा यह राजयोग है।
 
      -  भारत को ही अब बाप द्वारा राजाई मिलती है। 
 
      - आत्मा ही 84 जन्म लेती है।
 
      -  आत्मा ही पढ़ती है, शरीर द्वारा।
 
      -  शरीर नहीं पढ़ता। 
 
      - आत्मा संस्कार ले जाती है। 
 
      - मैं आत्मा इस शरीर द्वारा पढ़ती हूँ - इसको देही-अभिमानी कहा जाता है। 
 
      - आत्मा अलग हो जाती है तो शरीर कोई काम का नहीं रहता है।
 
      -  आत्मा कहती है, अब मैं पुण्य आत्मा बन रही हूँ।
 
      -  मनुष्य देह-अभिमान में आकर कह देते हैं यह करता हूँ....तुम अभी समझते हो हम आत्मा हैं, यह हमारा शरीर बड़ा है।
 
      -  परमात्मा बाप द्वारा मैं आत्मा पढ़ रही हूँ।
 
      -  बाप कहते हैं, मामेकम् याद करो। 
 
      - तुम गोल्डन एज में सतोप्रधान थे फिर तुम्हारे में अलाए पड़ी है।
 
      -  खाद पड़ते-पड़ते तुम पावन से पतित बन पड़े हो।
 
      -  अब फिर पावन बनना है इसलिए कहते हैं - हे पतित-पावन आओ, आकर हमको पावन बनाओ, तो बाप राय देते हैं हे पतित आत्मा मुझ बाप को याद करो तो तुम्हारे से खाद निकलेगी और तुम पावन बन जायेंगे।
 
      -  उनको प्राचीन योग कहा जाता है।
 
      -  इस याद अर्थात् योग अग्नि से खाद भस्म होगी। 
 
      - मूल बात है - पतित से पावन बनना।
 
      -  साधू-सन्त आदि सब पतित हैं। 
 
      - पावन बनने का उपाय बाप ही बताते हैं - मामेकम् याद करो। 
 
      - यह अन्तिम जन्म पवित्र बनो।
 
      -  खाते-पीते, चलते-फिरते मामेकम् याद करो क्योंकि तुम सब आत्माओं का (आशिकों का) माशूक, मैं हूँ।
 
      -  तुमको हमने पावन बनाया था फिर पतित बने हो। 
 
      - सभी भक्तियां आशिक हैं।
 
      -  माशूक कहते हैं कर्म भी भल करो।
 
      -  बुद्धि से मुझे याद करते रहो तो विकर्म विनाश होंगे।
 
      -  यह मेहनत है।
 
      -  तो बाप को याद करना चाहिए ना, वर्सा पाने के लिए।
 
      -  जो जास्ती याद करेंगे उनको वर्सा भी जास्ती मिलेगा।
 
      -  यह है याद की यात्रा।
 
      -  जो जास्ती याद करेंगे वही पावन बन आकर मेरे गले का हार बनेंगे।
 
      -  सभी आत्माओं का निराकारी दुनिया में एक सिजरा बना हुआ है।
 
      -  उनको इनकारपोरियल ट्री कहा जाता है।
 
      -  यह है कारपोरियल ट्री, निराकारी दुनिया से सबको नम्बरवार आना है, आते ही रहना है।
 
      -  झाड़ कितना बड़ा है। 
 
      - आत्मा यहाँ आती है पार्ट बजाने।
 
      -  जो भी सब आत्मायें हैं, सभी इस ड्रामा के एक्टर्स हैं।
 
      -  आत्मा अविनाशी है, उसमें पार्ट भी अविनाशी है।
 
      -  ड्रामा कब बना, यह कह नहीं सकते। 
 
      - यह चलता ही रहता है।
 
      -  भारतवासी पहले-पहले सुख में थे फिर दु:ख में आये, फिर शान्तिधाम में जाना है।
 
      -  फिर बाप सुखधाम में भेज देंगे।
 
      -  उसमें जो जितना पुरूषार्थ कर ऊंच पद पाये, बाप किंगडम स्थापन करते हैं। 
 
      - उसमें पुरूषार्थ अनुसार राजाई में पद पायेंगे।
 
      -  सतयुग में तो जरूर थोड़े मनुष्य होंगे। 
 
      - आदि सनातन देवी देवता धर्म का झाड़ छोटा है, बाकी सब विनाश हो जायेंगे।
 
      -  यह आदि सनातन देवी देवता धर्म स्थापन हो रहा है अर्थात् स्वर्ग के गेट खुल रहे हैं।
 
      -  5 हजार वर्ष पहले भी इस लड़ाई के बाद स्वर्ग की स्थापना हुई थी। 
 
      - अनेक धर्म विनाश हो गये थे।
 
      -  इस लड़ाई को कहा जाता है, कल्याणकारी लड़ाई।
 
      -  अब नर्क के गेट खुले हैं, फिर स्वर्ग के गेट खुलेंगे।
 
      -  स्वर्ग के द्वार बाप खोलते हैं, नर्क के द्वार रावण खोलते हैं। 
 
      - बाप वर्सा देते हैं, रावण श्राप देते हैं। 
 
      - यह बातें दुनिया नहीं जानती, तुम बच्चों को समझाता हूँ।
 
      -  एज्यूकेशन मिनिस्टर भी बेहद की नॉलेज चाहते हैं।
 
      -  सो तो तुम ही दे सकते हो। 
 
      - परन्तु तुम हो गुप्त।
 
      -  तुमको पहचानते ही नहीं है।
 
      -  तुम योगबल से अपनी राजाई ले रहे हो। लक्ष्मी-नारायण ने यह राज्य कैसे पाया सो तुम जानते हो।
 
      -  इसको कहा जाता है आस्पीशियस कल्याणकारी युग।
 
      -  जबकि बाप आकर पावन बनाते हैं।
 
      -  कृष्ण को तो सभी बाप नहीं कहेंगे।
 
      -  बाप निराकार को कहा जाता है, उस बाप को याद करना है, पावन भी बनना है।
 
      -  विकारों को जरूर छोड़ना पड़े।
 
      -  भारत वाइसलेस सुखधाम था अब विशश, दु:खधाम है। 
 
      - वर्थ नॉट ए पेनी है।
 
      -  यह ड्रामा का खेल है, जिसको बुद्धि में धारण करके औरों को भी कराना है। 
 
      - अच्छा।
        
        मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
 
      - धारणा के लिए मुख्य सार:-
 
      -  1) याद से पावन बन बाप के गले का हार बनना है।
        
          -  कर्म करते भी बाप की याद में रह विकर्माजीत बनना है। 
 
         
       
      - 2) पुण्य आत्मा बनने का पूरा-पूरा पुरूषार्थ करना है।
        
          -  देह-अभिमान छोड़ देही-अभिमानी बनना है।
 
           
       
      - वरदान:-
 
      - ( All Blessings of 2021)
 
      -  पास विद आनर बनने के लिए सर्व द्वारा सन्तुष्टता का पासपोर्ट प्राप्त करने वाले सन्तुष्टमणि भव
 
      -  जो बच्चे अपने आपसे, अपने पुरुषार्थ वा सर्विस से, ब्राह्मण परिवार के सम्पर्क से सदा सन्तुष्ट रहते हैं उन्हें ही सन्तुष्टमणि कहा जाता है।
 
      -  सर्व आत्माओं के सम्पर्क में अपने को सन्तुष्ट रखना वा सर्व को सन्तुष्ट करना - इसमें जो विजयी बनते हैं वही विजयमाला में आते हैं। 
 
      - पास विद आनर बनने के लिए सर्व द्वारा सन्तुष्टता का पासपोर्ट मिलना चाहिए। 
 
      - यह पासपोर्ट लेने के लिए सिर्फ सहन करने वा समाने की शक्ति धारण करो।
 
      - स्लोगन:-        
 
      - (All Slogans of 2021)
 
      - रहमदिल बन सेवा द्वारा निराश और थकी हुई आत्माओं को सहारा दो।
 
      
         
     
   
    
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