02-05-21 प्रात:मुरली मधुबन

अव्यक्त-बापदादा रिवाइज: 23-12-87

मनन शक्ति और मग्न स्थिति

 

  • आज डबल ताजधारी, डबल राज्य अधिकारी बनाने वाले बाप विशेष अपने डबल विदेशी बच्चों से मिलन मनाने आये हैं।
  • बापदादा देख रहे हैं कि चारों ओर के डबल विदेशी स्नेही, सहयोगी, सदा सेवा के उमंग-उत्साह से स्नेह और सेवा, दोनों में आगे बढ़ते जा रहे हैं।
  • हर एक के मन में यह उत्साह है कि हमें बाप-दादा की प्रत्यक्षता का झण्डा लहराना है।
  • हर दिन उत्साह के कारण, संगमयुग को उत्सव प्रमाण अनुभव करते उड़ते जा रहे हैं क्योंकि जहाँ हर समय उत्साह है, चाहे बापदादा से याद द्वारा मिलन मनाने का, चाहे सेवा द्वारा प्रत्यक्षफल प्राप्त होने के अनुभव के उत्साह में - दोनों उत्साह हर घड़ी, हर दिन उत्सव का अनुभव कराते हैं।
  • दुनिया के लोग विशेष उत्सव के दिन उत्साह का अनुभव करते हैं लेकिन ब्राह्मण आत्माओं के लिए संगमयुग ही उत्साह का युग है।
  • हर दिन नया उत्साह, उमंग-उल्लास स्वत: ही अनुभव होता रहता है इसलिए संगमयुग के हर दिन खुशी की खुराक खाते, बाप द्वारा अनेक प्राप्तियों के गुण गाते डबल लाइट बन सदा उत्साह में नाचते रहते हैं।
  • उत्सव में क्या करते हैं?
  • खाते हैं, गाते हैं और नाचते हैं।
  • अभी विदेश में विशेष क्रिसमस मनाने की तैयारियाँ कर रहे हैं।
  • खाना, गाना, बजाना और नाचना यही करेंगे ना और मिलन मनायेंगे।
  • आप हर दिन क्या करते हो?
  • अमृतवेले से लेकर रात तक यही काम करते हो ना।
  • सेवा भी करते हो, सेवा अर्थात् ज्ञान डांस करते हो।
  • बापदादा के गुणों के गीत आत्माओं को सुनाते हो।
  • तो रोज उत्सव मनाते हो ना।
  • कोई दिन ऐसा नहीं जो सच्चे ब्राह्मण यह कार्य न करते हों।
  • संगमयुग का हर दिन उत्साह भरे उत्सव का दिन है।
  • वह तो एक-दो दिन मनाते हैं।
  • लेकिन बापदादा सभी ब्राह्मण बच्चों को ऐसे श्रेष्ठ बनाते हैं, ऐसी गोल्डन गिफ्ट देते हैं जो सदा के लिए सम्पन्न, सदा भरपूर बन जाते हो।
  • वो लोग क्रिसमस के दिन का इन्तजार करते हैं कि क्रिसमस फादर आकर आज गिफ्ट देंगे।
  • वह क्रिसमस फादर को याद करते और आप किसमिस जैसा मीठा बनाने वाले बाप को याद करते हो।
  • इतनी गिफ्ट मिलती है जो 21 जन्म यह गिफ्ट चलती रहती है!
  • वह विनाशी गिफ्ट थोड़ा समय चल समाप्त हो जायेगी, यह अविनाशी गिफ्ट अनेक जन्म आपके साथ रहेगी।
  • जैसे वो लोग क्रिसमस ट्री को सजाते हैं।
  • बापदादा इस बेहद के वर्ल्ड ट्री में आप चमकते हुए सितारों को, संगमयुगी श्रेष्ठ धरती के सितारों को अविनाशी लाइट-माइट स्वरूप में स्थित होने का अनुभव कराते हैं।
  • वो लोग भी स्टार को मानते हैं, स्टार सजाते हैं।
  • आप स्टार्स का यादगार स्थूल चमकती हुई लाइटस के रूप में दिखाते हैं या लाइट से सजाते या फूलों से सजाते हैं, यह किसका यादगार है?
  • रूहानी खुशबूदार फूलों-ब्राह्मण आत्माओं का।
  • यह सब उत्सव आप संगमयुगी ब्राह्मणों के उत्साह भरे उत्सवों के यादगार हैं।
  • संगमयुग पर कल्प वृक्ष के चमकते हुए सितारे, रूहानी गुलाब आप ब्राह्मण आत्मायें हो।
  • अपना ही यादगार स्वयं देख रहे हो।
  • अविनाशी बाप द्वारा अविनाशी रत्न बनते हो, इसलिए अन्तिम जन्म तक अपना यादगार देख रहे हो।
  • डबल रूप का यादगार देख रहे हो।
  • संगमयुग के रूप का यादगार भिन्न-भिन्न रूप से, रीति से दिखाते हैं और दूसरा भविष्य देव-पद का यादगार देख रहे हैं।
  • न सिर्फ अपने रूप का यादगार देखते हो लेकिन आप श्रेष्ठ आत्माओं के श्रेष्ठ कर्मों का भी यादगार है।
  • बाप और बच्चों के चरित्र का भी यादगार है।
  • तो अपना यादगार देख सहज याद आ जाता है ना कि हर कल्प हम ऐसी विशेष आत्मायें बनते हैं।
  • बने थे, बने हैं और आगे भी बनते रहेंगे।
  • बापदादा ऐसे सदा याद में रहने वाले, जिन्हों का यादगार अभी है, ऐसे बच्चों को देख हर्षित हो रहे हैं।
  • याद में रहने वालों का यह यादगार है।
  • याद का महत्व यादगार देख रहे हो।
  • तो डबल विदेशी बच्चों को अपना यादगार देख खुशी होती है ना।
  • बापदादा को डबल विदेशी बच्चों को देख डबल खुशी होती है, क्यों?
  • एक तो कोने-कोने में कल्प पहले वाले बिछुड़े हुए, खोये हुए बच्चे फिर से मिल गये।
  • खोई हुई चीज़ अगर मिल जाती है तो खुशी होती है ना।
  • बाप तो सभी बच्चों को देख खुश होते, चाहे भारतवासी हों, चाहे विदेशी।
  • दूसरी बात डबल विदेशी बच्चों की है जो भिन्न धर्म, भिन्न रीति-रस्म के पर्दे के अन्दर छिपे हुए होते भी इस पर्दे को सहज समाप्त कर बाप के बन गये।
  • यह पर्दा हटाने की विशेषता है।
  • पर्दे के अन्दर से भी बाप को जानने की विशेषता डबल विदेशियों की है।
  • तो डबल खुशी हो गई ना।
  • डबल विदेशी बच्चों का निश्चय और नशा अपना अलौकिक है।
  • बापदादा आज चारों ओर के डबल विदेशी बच्चों को विशेष सदा उत्साह में रहने वाले, हर दिन उत्सव मनाने वाले, हर दिन वरदाता बाप द्वारा विशेष वरदान वा विशेष आशीर्वाद लेने की डायमन्ड गिफ्ट बड़े दिल से बड़े दिन के लिए दे रहे हैं - सदा उत्सव भरी जीवन भव, सदा सहज उड़ती कला के अनुभवी श्रेष्ठ जीवन भव। अच्छा!
  • आज बापदादा वतन में तीन प्रकार के बच्चों को देख रहे थे।
  • तीन प्रकार कौनसे देखे? 1. वर्णन करने वाले,
  • 2. मनन करने वाले,
  • 3. अनुभव में मग्न रहने वाले।
  • यह तीन प्रकार के बच्चे देश-विदेश के सभी बच्चों में देखे।
  • वर्णन करने वाले ब्राह्मण अनेक देखे, मनन करने वाले बीच की संख्या में देखे, अनुभव में मग्न रहने वाले उससे भी कम संख्या में देखे।
  • वर्णन करना अति सहज है, क्योंकि 63 जन्मों के संस्कार हैं।
  • एक सुनना, दूसरा जो सुना वह वर्णन करना - यह करते आये हो।
  • भक्ति मार्ग है ही सुनना या कीर्तन द्वारा, प्रार्थना द्वारा वर्णन करना।
  • साथ-साथ देह-अभिमान में आने के कारण व्यर्थ बोलना - यह पक्के संस्कार रहे हैं।
  • जहाँ व्यर्थ बोल होता है वहाँ विस्तार स्वत: ही होता है।
  • स्वचिन्तन अन्तर्मुखी बनाता है, परचिन्तन वर्णन करने के विस्तार में लाता है।
  • तो वर्णन करने के संस्कार अनेक जन्मों के होने के कारण ब्राह्मण जीवन में भी अज्ञान से बदल ज्ञान में तो आ जाते हैं।
  • ज्ञान को वर्णन करने में जल्दी होशियार हो जाते।
  • वर्णन करने वाले वर्णन करने के समय तक खुशी वा शक्ति अनुभव करते हैं लेकिन सदाकाल के लिए नहीं।
  • मुख से ज्ञान-दाता का वर्णन करने के कारण शक्ति और खुशी - यह ज्ञान का प्रत्यक्षफल प्राप्त हो जाता है लेकिन शक्तिशाली-स्वरूप, सदा खुशी-स्वरूप नहीं बन सकते।
  • फिर भी ज्ञान रत्न हैं और डायरेक्ट भगवानुवाच हैं, इसलिए यथाशक्ति प्राप्ति स्वरूप बन जाते हैं।
  • मनन करने वाले सदा जो भी सुनते हैं उनको मनन कर स्वयं भी हर ज्ञान की प्वाइंट का स्वरूप बनते हैं।
  • मनन शक्ति वाले गुण-स्वरूप, शक्ति-स्वरूप, ज्ञान-स्वरूप और याद-स्वरूप स्वत: ही बन जाते हैं क्योंकि मनन करना अर्थात् बुद्धि द्वारा ज्ञान के भोजन को हज़म करना है।
  • जैसे स्थूल भोजन अगर हज़म नहीं होता है तो शक्ति नहीं बनती है, सिर्फ मुख के स्वाद तक रह जाता है।
  • ऐसे वर्णन करने वालों को भी सिर्फ ज्ञान मुख के वर्णन तक रह जाता।
  • लेकिन वह बुद्धि द्वारा मनन शक्ति द्वारा धारण कर शक्तिशाली बन जाते हैं।
  • मनन शक्ति वाले सर्व बातों के शक्तिशाली आत्मायें बनते हैं।
  • मनन करने वाले सदा स्वचिन्तन में बिजी रहने के कारण माया के अनेक विघ्नों से सहज मुक्त हो जाते हैं क्योंकि बुद्धि बिजी है।
  • तो माया भी बिजी देख किनारा कर लेती है।
  • दूसरी बात - मनन करने से शक्तिशाली बनने के कारण स्वस्थिति कोई भी परिस्थिति में हार नहीं खिला सकती।
  • तो मनन शक्ति वाला अन्तर्मुखी सदा सुखी रहता है।
  • समय प्रमाण शक्तियों को कार्य में लगाने की शक्ति होने के कारण जहाँ शक्ति है वहाँ माया से मुक्ति है।
  • तो ऐसे बच्चे विजयी आत्माओं की लिस्ट में आते हैं।
  • तीसरे बच्चे - सदा सर्व अनुभवों में मग्न रहने वाले।
  • मनन करना - यह सेकेण्ड स्टेज है लेकिन मनन करते हुए मग्न रहना - यह फर्स्ट स्टेज है।
  • मग्न रहने वाले स्वत: ही निर्विघ्न तो रहते ही हैं लेकिन उससे भी ऊंची विघ्न-विनाशक स्थिति रहती है अर्थात् स्वयं निर्विघ्न बन औरों के भी विघ्न-विनाशक बन सहयोगी बनते हैं।
  • अनुभव सबसे बड़े ते बड़ी अथॉरिटी है।
  • अनुभव की अथॉरिटी से बाप समान मास्टर आलमाइटी अथॉरिटी की स्थिति का अनुभव करते हैं।
  • मग्न अवस्था वाले अपने अनुभव के आधार से औरों को निर्विघ्न बनाने के एग्जैम्पल बनते हैं क्योंकि कमजोर आत्मायें उन्हों के अनुभव को देख स्वयं भी हिम्मत रखती हैं, उत्साह में आती हैं - हम भी ऐसे बन सकते हैं।
  • मग्न रहने वाली आत्मायें बाप समान होने के कारण स्वत: ही बेहद के वैराग्य वृत्ति वाली, बेहद के सेवाधारी और बेहद के प्राप्ति के नशे में रहने वाले सहज बन जाते हैं।
  • मग्न रहने वाली आत्मायें सदा कर्मातीत अर्थात् कर्मबन्धन से न्यारी और सदा बाप की प्यारी हैं।
  • मगन आत्मा सदा तृप्त आत्मा, सन्तुष्ट आत्मा, सम्पन्न आत्मा, सम्पूर्णता के अति समीप आत्मा है।
  • सदा अनुभव की अथॉरिटी के कारण सहज योगी, स्वत: योगी, ऐसी श्रेष्ठ जीवन, न्यारी और प्यारी जीवन का अनुभव करते हैं।
  • उनके मुख से अनुभवी बोल होने के कारण दिल में समा जाते हैं और वर्णन करने वाले के बोल दिमाग तक बैठते हैं।
  • तो समझा, फर्स्ट स्टेज क्या है?
  • मनन करने वाले भी विजयी हैं लेकिन सहज और सदा में अन्तर है।
  • मगन रहने वाले सदा बाप की याद में समाये हुए होते हैं।
  • तो अनुभव को बढ़ाओ लेकिन पहले वर्णन से मनन में आओ।
  • मनन-शक्ति, मग्न-स्थिति को सहज प्राप्त करा लेती है।
  • मनन करते-करते अनुभव स्वत: ही बढ़ता जायेगा।
  • मनन करने का अभ्यास अति आवश्यक है।
  • इसलिए मनन-शक्ति को बढ़ाओ।
  • सुनना और सुनाना तो अति सहज है।
  • मनन-शक्ति वाले, मग्न रहने वाले सदा पूज्य; वर्णन करने वाले सिर्फ गायन योग्य होते हैं।
  • तो सदा अपने को गायन-पूजन योग्य बनाओ।
  • समझा?
  • सेवाधारी तो तीनों हैं लेकिन सेवा का प्रभाव नम्बरवार है।
  • नम्बरवार में नहीं आना, नम्बरवन बनना।
  • अच्छा! सदा अपने को डबल राज्य अधिकारी, डबल ताजधारी श्रेष्ठ आत्मा अनुभव करने वाले, सदा मनन-शक्ति द्वारा मगन-स्थिति का अनुभव करने वाले, सदा बाप समान अनुभवी, मास्टर आलमाइटी अथॉरिटी स्थिति के अनुभवी-मूर्त बनने वाले, सदा अपने शक्तिशाली पूज्य स्थिति को प्राप्त करने वाले - ऐसे नम्बर-वन, सदा विजयी बच्चों को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।
  • विदेशी भाई बहिनों के ग्रुप से
  • विदेश में रहते स्वदेश, स्वस्वरूप की सदा स्मृति में रहने वाले हो?
  • जैसे बाप परमधाम से इस पुराने पराये देश में प्रवेश हो आते हैं, ऐसे आप सभी भी परमधाम निवासी श्रेष्ठ आत्मायें, सहजयोगी आत्मायें ऐसे अनुभव करती हो कि हम भी परमधाम निवासी आत्मायें इस साकार शरीर में प्रवेश कर विश्व के कार्य अर्थ निमित्त है?
  • आप भी अवतरित हुई ब्राह्मण आत्मायें हो।
  • शूद्र जीवन समाप्त हुई, अब शुद्ध ब्राह्मण आत्मायें हो।
  • ब्राह्मण कभी अपवित्र नहीं होते।
  • ब्राह्मण अर्थात् पवित्र।
  • तो ब्राह्मण हो या मिक्स हो?
  • दोनों नांव में पांव रखने वाले नहीं।
  • एक ही नांव में दोनों पांव रखने वाले।
  • तो ब्राह्मण आत्मायें अवतरित आत्मायें हैं।
  • वैसे भी जो भी आत्मायें अवतार बन कर आई हैं, अवतार रूप से प्रसिद्ध हैं, वह किसलिए आती हैं?
  • श्रेष्ठ परिवर्तन करने के लिए।
  • तो आप अवतारों का काम क्या है?
  • विश्व परिवर्तन करना, रात को दिन बनाना, नर्क को स्वर्ग बनाना।
  • इतना बड़ा कार्य करने के लिए अवतरित हुए हो अर्थात् ब्राह्मण बने हो!
  • यह काम याद रहता है ना?
  • लौकिक सर्विस भी किसलिए करते हो?
  • इन्कम भी कहाँ लगाने के लिए?
  • सेन्टर खोलने के लिए करते हो वा लौकिक परिवार के लिए करते हो?
  • अगर यह लक्ष्य रहता है कि कमाई भी ईश्वरीय कार्य में लगाने के लिये करते हैं, लौकिक कार्य करते भी सेवा ही याद रहती है ना?
  • और किसके डायरेक्शन से करते हो?
  • जब बाप की श्रीमत प्रमाण करते हो तो जिसकी श्रीमत है वही याद आयेगा ना?
  • इसलिए बापदादा कहते हैं लौकिक कार्य करते भी सदा अपने को ट्रस्टी समझो।
  • ट्रस्टी भी हो और वारिस भी हो।
  • चाहे कहाँ भी रहते हो लेकिन मन से समर्पित हो तो वारिस हो।
  • वारिस का अर्थ यह नहीं कि मधुबन में आकर रहो, लेकिन सेवा क्षेत्र पर रहते भी अगर मन से मेरापन नहीं है अर्थात् समर्पित हैं तो वारिस हैं।
  • तो सरेन्डर हो या अभी कर्मबन्धन के अन्डर हो?
  • जब मन से समर्पित हो गये तो समर्पित आत्मा को बन्धन नहीं लगेगा क्योंकि सरेन्डर हो गये माना सभी बन्धनों को भी सरेन्डर कर दिया।
  • अगर मन को कोई भी बन्धन खींचता है तो समझो बंधन है।
  • बाकी आता है और चला जाता है तो बंधन नहीं।
  • तो हम अवतार हैं, ऊपर से आये हैं - यह सदा स्मृति में रखो।
  • अवतार आत्मायें कभी शरीर के हिसाब-किताब के बन्धन में नहीं आयेंगी, विदेही बन करके कार्य करेंगी।
  • शरीर का आधार लेते हैं, लेकिन शरीर के बन्धन में नहीं बंधते।
  • तो ऐसे बने हो?
  • तो सदा अपने को शरीर के बन्धन से न्यारा बनाने के लिए अवतार समझो।
  • इस विधि से चलते रहो तो सदा बन्धनमुक्त न्यारे और सदा बाप के प्यारे बन जायेंगे।
  • वरदान:-
  • ( All Blessings of 2021)
  • अपनी विजय वा सफलता को निश्चित समझकर सदा निश्चिंत रहने वाले निश्चयबुद्धि भव
  • जो बच्चे सदा बाप में, स्वयं के पार्ट में और ड्रामा की हर सेकण्ड की एक्ट में 100 प्रतिशत निश्चयबुद्धि हैं उनकी विजय वा सफलता निश्चित है।
  • निश्चित विजय होने के कारण वे सदा निश्चिंत रहते हैं।
  • उनके चेहरे से चिंता की कोई भी रेखा दिखाई नहीं देगी।
  • उन्हें सदा निश्चय रहता है कि यह कार्य वा यह संकल्प सिद्ध हुआ ही पड़ा है।
  • उन्हें कभी किसी बात में क्वेश्चन नहीं उठ सकता।
  • स्लोगन:-
  • (All Slogans of 2021)
  • सुनने-सुनाने में भावना और भाव को बदल देना ही वायुमण्डल खराब करना है।