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ओम् शान्ति।
- सभी बच्चे याद में बैठे हैं।
- मनमनाभव।
- यह संस्कृत अक्षर वास्तव में है नहीं।
- बाप ने जब सहज राजयोग सिखाया है तब यह संस्कृत अक्षर बोले नहीं हैं।
- यह तो संस्कृत जानते ही नहीं हैं।
- बाप तो हिन्दी में ही समझाते हैं।
- भल यह रथ हिन्दी, सिन्धी तथा इंगलिश जानने वाला है परन्तु बाप समझाते हिन्दी में हैं।
- जो जिस धर्म का है उनकी अपनी भाषा है।
- यहाँ हिन्दी भाषा ही चलती है, यह भाषा समझना सहज है और यह स्कूल भी वन्डरफुल है।
- इसमें कोई भी कागज, पेन्सिल, पन्ने आदि की दरकार नहीं रहती।
- यहाँ तो सिर्फ एक अक्षर को याद करना है अर्थात् बाप को याद करो।
- गॉड को अथवा ईश्वर को अथवा परमपिता परमात्मा को कोई याद न करे - यह मुश्किल है, याद सभी करते हैं परन्तु उनकी पहचान नहीं है।
- बाप ही आकर अपनी पहचान देते हैं।
- शास्त्रों में जो कल्प की आयु इतनी लम्बी लिख दी है, वह बाप आकर समझाते हैं।
- बहुत बड़ी बात भी नहीं है।
- अहिल्यायें, बूढ़ी-बूढ़ी मातायें क्या समझेंगी।
- यह तो बहुत ही सहज है।
- कोई छोटे बच्चे भी समझ सकते हैं।
- बाबा अक्षर कोई नया नहीं है।
- शिव के मन्दिर में जाते हैं तो बुद्धि में आता है कि यह शिवबाबा है, वह निराकार है।
- सभी मनुष्य-मात्र बाबा कहते हैं।
- हम सर्व आत्माओं का बाप एक है।
- सब जीव की आत्मायें, जो शरीर में निवास करती हैं, बाप को याद करती हैं।
- सब धर्म वाले जो भी हैं, सब परमपिता परमात्मा को याद जरूर करते हैं।
- वह है परमधाम में रहने वाला बाप।
- हम भी वहाँ के रहने वाले हैं।
- तो अब सिर्फ बाप को याद करना है।
- चाहते भी हैं हम पावन बनें।
- बुलाते भी हैं - हे पतितों को पावन करने वाले आओ।
- नई दुनिया पावन थी, अब फिर पुरानी हुई है, इनको कोई नया नहीं कहेंगे।
- भारतवासी जानते हैं - नये भारत में देवी-देवता राज्य करते थे।
- जब नया भारत था तो उसके आगे क्या था?
- संगम।
- इससे भी सहज कहना चाहिए।
- नये के आगे पुराना था।
- संगम को मनुष्य इतना सहज समझ नहीं सकते।
- न्यु वर्ल्ड, ओल्ड वर्ल्ड, इसके बीच को फिर संगम कहते हैं।
- बाप के लिए ही कहते हैं - हे पतित-पावन आओ, आकर हमको पावन बनाओ।
- हम पतित बन गये हैं।
- नई दुनिया में कोई पुकारेंगे नहीं।
- अभी तुम्हारी समझ में आ गया है कि यह भारत पावन था।
- हे पतित-पावन आओ, यह तो बहुत समय से बुलाते आये हैं।
- उनको यह पता नहीं कि पतित दुनिया कब पूरी होगी।
- कहते हैं - शास्त्रों में ऐसे लिखा हुआ है कि अभी 40 हजार वर्ष और कलियुग (पतित दुनिया) चलेगी।
- बिल्कुल ही घोर अन्धियारे में हैं।
- अभी तुम रोशनी में हो।
- बाप ने तुमको अब रोशनी में लाया है।
- यह 5 हजार वर्ष में सृष्टि का चक्र पूरा होता है।
- कल की बात है।
- तुम राज्य करते थे, बरोबर इन लक्ष्मी-नारायण का राज्य था, स्वर्ग था।
- पावन दुनिया में कोई उपद्रव आदि हो नहीं सकता।
- उपद्रव होता ही है रावण राज्य में।
- यहाँ तुमको बाप समझाते हैं, तुम सम्मुख कानों से सुनते हो।
- कौन सुनते हैं?
- आत्मा।
- आत्मा को बड़ी खुशी होती है, हमको बाप फिर से आकर मिला है।
- बाप से वर्सा लिया था, अब बाप कहते हैं - मुझे याद करो।
- इसमें कोई लिखने-पढ़ने की बात नहीं।
- जब कोई आते हैं तो पूछा जाता है - आपका कैसे आना हुआ?
- तो कहेंगे यहाँ के महात्मा से मिलने?
- क्यों?
- तुमको क्या चाहिए?
- बताओ कोई भिक्षा चाहिए?
- संन्यासी हो तो रोटी टुकड़ा चाहिए।
- संन्यासी किसके पास जाते हैं वा रास्ते में मिलते हैं तो रिलीजस मनुष्य समझते हैं यह फिर भी पवित्र मनुष्य हैं, इनको भोजन खिलाना अच्छा है।
- अभी तो पवित्रता भी नहीं रही है।
- बिल्कुल ही तमोप्रधान दुनिया है, इसमें बड़ी गन्दगी है।
- मनुष्य कितना हैरान होते हैं।
- यहाँ तो हैरान होने की कोई बात नहीं।
- बाप कहते हैं लिखने करने की भी बात नहीं है।
- यह प्वाइंट्स आदि भी लिखते हैं - धारणा करने के लिए।
- जैसे डॉक्टर लोगों के पास भी कितनी दवाइयाँ होती हैं, इतनी सब दवाइयाँ याद रहती हैं।
- बैरिस्टर की बुद्धि में कितनी लॉ की बातें याद रहती हैं।
- तुमको याद क्या करना है एक बात, सो भी बड़ी सहज है।
- तुम कहते हो एक शिवबाबा को याद करो।
- वह कहते हैं शिवबाबा कैसे आयेंगे।
- यह भी तुम्हारे सिवाए और किसको पता नहीं है।
- ईश्वर कहाँ है?
- वह तो कहेंगे नाम-रूप से न्यारा है या फिर कह देते हैं सर्वव्यापी है।
- रात-दिन का फ़र्क हो जाता है - दोनों अक्षर में।
- नाम-रूप से न्यारी तो कोई चीज़ है नहीं।
- फिर कह देते - कुत्ते, बिल्ली सबमें परमात्मा है।
- दोनों एक-दो के अपोजिट बातें हो गई।
- तो बाप अपना परिचय दे कहते हैं - मुझ बाप को याद करो।
- गाया भी जाता है - सहज राजयोग।
- बाबा कहते हैं - योग का अक्षर निकाल दो, याद करो।
- जैसे छोटा बच्चा माँ बाप को देखने से ही झट गले लग जाता है।
- पहले सोच करेगा क्या कि हमारे माँ बाप हैं?
- नहीं, इसमें सोच करने की बात ही नहीं।
- तुम्हें भी सिर्फ शिवबाबा को याद करना है।
- भक्ति मार्ग में भी तुम शिव पर फूल चढ़ाते आये हो।
- सोमनाथ का मन्दिर कितना भारी बनाया हुआ है, जो बाद में मुहम्मद गजनवी ने आकर लूटा था।
- सोमनाथ का मन्दिर भारत में नामीग्रामी है।
- सबसे पहले तो शिव की पूजा होनी चाहिए।
- बच्चों को यह सब नॉलेज अभी बुद्धि में आई है।
- भल पूजा आदि करते आये हो परन्तु तुमको यह पता ही नहीं था कि यह जड़ चित्र हैं।
- जरूर चैतन्य में आया होगा तब तो वर्ष-वर्ष शिव जयन्ती भी मनाते हैं।
- यह भी कहते हैं - शिव परमात्मा निराकार है।
- आत्मा जानती है हम भी निराकार हैं।
- अभी तुम आत्म-अभिमानी बनते हो, बहुत सहज है।
- वह तो हमारा बाबा है।
- ज्ञान का सागर, सुख का सागर, पतित-पावन है।
- उनकी बहुत महिमा है।
- ब्रह्मा, विष्णु, शंकर की इतनी महिमा नहीं है।
- एक की ही महिमा गाते हैं।
- अब तुम बच्चे जानते हो - बाबा आकर हमको वर्सा दे रहे हैं।
- जैसे लौकिक बाप बच्चों का लालन-पालन करते हैं, पढ़ाते नहीं हैं।
- पढ़ाई के लिए स्कूल में जाते हैं फिर वानप्रस्थ में गुरू किया जाता है।
- आजकल तो छोटे-बड़े सबको गुरू करा देते हैं।
- यहाँ तो तुम बच्चों को कहा जाता है - शिवबाबा को याद करो, सबका हक है। सब मेरे बच्चे हैं।
- तुम्हारे में भी कोई हैं जो अच्छी रीति याद करते हैं।
- कई तो कहते हैं - बाबा, किसको याद करें?
- बिन्दी को कैसे याद करें?
- बड़ी चीज़ को याद किया जाता है।
- अच्छा परमात्मा, जिसको तुम याद करते हो, वह चीज़ क्या है?
- तो कह देते अखण्ड ज्योति स्वरूप है। परन्तु ऐसे नहीं है।
- अखण्ड ज्योति को याद करना रांग हो जाता है।
- याद तो एक्यूरेट चाहिए।
- पहले एक्यूरेट जानना चाहिए।
- बाप ही आकर अपना परिचय देते हैं, और फिर बच्चों को सारे सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का समाचार भी सुनाते हैं।
- डिटेल में भी तो नटशेल में भी।
- अब बाप कहते हैं बच्चे तुमको पावन बनना है तो उसके लिए एक ही उपाए है - मुझे याद करो, मुझे कहते ही हो पतित-पावन।
- आत्मा को पावन बनाना है।
- आत्मा ही कहती है हम पतित बन गये हैं।
- हम पावन थे, अब पतित हैं।
- सब तमोप्रधान हैं।
- हर एक चीज़ पहले सतोप्रधान फिर तमोप्रधान होती है।
- आत्मा खुद कहती है मैं पतित बनी हूँ, मुझे पावन बनाओ।
- शान्तिधाम में पतित होते नहीं।
- यहाँ पतित हैं तो दु:खी हैं।
- जब पावन थे तो सुखी थे।
- तो आत्मा ही कहती है - हमको पावन बनाओ तो हम दु:ख से छूट जायें।
- तुम समझते हो आत्मा ही सब कुछ करती है।
- आत्मा ही जज, बैरिस्टर आदि बनती है।
- आत्मा ही कहती है - मैं राजा हूँ, मैं फलाना हूँ।
- अभी यह शरीर छोड़ दूसरा लेना है।
- इसको कहा जाता है आत्म-अभिमानी।
- देह होते आत्म-अभिमानी। रावण के राज्य में देह-अभिमानी होते हैं।
- आत्म-अभिमानी अभी ही बाप बनाते हैं।
- इस समय आत्मा पतित दु:खी है तो पुकारती है हे बाबा आओ।
- यह भी तुम जानते हो ड्रामा प्लैन अनुसार पतित से पावन, पावन से पतित बनते आये हैं। चक्र फिरता ही रहता है।
- अभी तुम्हारी बुद्धि में बैठा है, हमारे 84 जन्म कैसे हुए हैं।
- अभी यह बात भूलो मत।
- स्वदर्शन चक्रधारी हो रहो।
- उठते-बैठते, चलते-फिरते बुद्धि में हमको सारी नॉलेज है।
- तुम समझते हो बेहद के बाप से हम बेहद का वर्सा ले रहे हैं।
- बाप बच्चों को समझाते हैं कि तुमको एक बाप को ही याद करना है।
- बाप को याद करना, रोटी टुकड़ खाना है।
- बस।
- मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों को बाप घड़ी-घड़ी कहते हैं - बच्चे पेट के लिए सिर्फ रोटी टुकड़ खाना है।
- पेट कोई जास्ती खाता नहीं है।
- एक पाव आटे का खाता है।
- दाल रोटी बस, 10 रूपये में भी मनुष्य पेट भरता है तो 10 हजार में भी पेट पालते हैं।
- गरीब लोग खाते भी क्या हैं।
- फिर भी हट्टे कट्टे रहते हैं।
- भिन्न-भिन्न चीज़ें मनुष्य खाते हैं तो और ही बीमार पड़ जाते हैं।
- डॉक्टर लोग भी कहते हैं - एक प्रकार का खाना खाओ तो बीमार नहीं होंगे।
- तो बाप भी समझाते हैं - रोटी टुकड़ खाओ।
- जो मिले उसमें खुश रहो।
- दाल-रोटी जैसी और कोई चीज़ होती नहीं।
- जास्ती लालच भी नहीं रहनी चाहिए।
- संन्यासी लोग क्या करते हैं?
- घरबार छोड़ जंगल में चले जाते हैं।
- तत्व को परमात्मा समझ याद करते हैं, समझते हैं ब्रह्म में लीन हो जायेंगे।
- परन्तु ऐसे तो है नहीं।
- आत्मा तो अमर है।
- लीन होने की बात नहीं है।
- बाकी आत्मा पवित्र, अपवित्र बनती है।
- तुमको कितना अच्छा ज्ञान मिला है।
- तुम ही प्रालब्ध भोगते हो फिर यह ज्ञान भूल जाता है।
- फिर सीढ़ी उतरनी होती है।
- अब तुम्हारी बुद्धि में सारा ज्ञान बैठा हुआ है।
- हम 84 जन्म कैसे भोगते हैं।
- यह पार्ट कभी भी कोई का बन्द नहीं होता है।
- यह बना बनाया ड्रामा है जो फिरता ही रहता है।
- यह कह नहीं सकते कि भगवान ने कब, कैसे, कहाँ बैठ बनाया?
- नहीं।
- यह तो चला ही आता है।
- वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी रिपीट होती ही रहती है।
- इन बातों को कोई समझते ही नहीं हैं।
- तुम जानते हो - हम ड्रामा प्लैन अनुसार आये हैं।
- अब फिर से ड्रामा अनुसार राज्य ले रहे हैं।
- यह बातें और कोई समझ नहीं सकते।
- पूछा जाता है - ड्रामा सर्वशक्तिमान् है वा ईश्वर?
- तो कहते हैं ईश्वर सर्वशक्तिमान् हैं।
- समझते हैं वह सब कुछ कर सकते हैं।
- बाप कहते हैं - मैं भी ड्रामा के बन्धन में बाँधा हुआ हूँ।
- पतितों को पावन बनाने मुझे आना पड़ता है।
- तुम सतयुग में सुखी बन जाते हो।
- मैं भी जाकर विश्रामी होता हूँ - परमधाम में।
- तुम सिर-कुल्हे चढ़ जाते हो।
- तुम्हारी शेर पर सवारी है।
- तुम जानते हो सेकेण्ड बाई सेकेण्ड जो भी चलता है वह ड्रामा की नूँध है।
- तुम बच्चों को कितनी अच्छी नॉलेज है।
- अब सिर्फ बाप और वर्से को याद करो।
- बस।
- कागज, पेन्सिल आदि की कोई दरकार नहीं है।
- ब्रह्मा बाबा भी पढ़ते हैं, यह तो कुछ रखते ही नहीं हैं।
- सिर्फ बाप को याद करना है तो वर्सा मिलेगा।
- कितना सहज है।
- याद से तुम एवरहेल्दी बनेंगे।
- यह है धारणा की बात।
- लिखने से क्या फायदा होगा, यह तो सब विनाश हो जायेगा।
- परन्तु कोई याद रखने के लिए लिखते हैं।
- जैसे कोई बात याद करनी होती है तो गाँठ बाँध देते हैं।
- तुम भी गाँठ बाँध लो, शिवबाबा और वर्से को याद करना है।
- यह तो बहुत सहज है - योग अर्थात् याद।
- कहते हैं - बाबा याद नहीं ठहरती।
- योग में कैसे बैठें? अरे लौकिक बाप की याद उठते-बैठते, चलते-फिरते रहती है, तुम भी सिर्फ याद करो।
- बस, बेड़ा पार है।
- अच्छा।
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
- धारणा के लिए मुख्य सार:-
- 1) स्वदर्शन चक्रधारी बन 84 का चक्र बुद्धि में फिराते रहना है।
- बेहद बाप को याद कर बेहद का वर्सा लेना है, पावन बनना है।
- 2) किसी भी चीज़ की लालच नहीं करनी है,
- जो मिले उसमें खुश रहना है।
- रोटी-टुकड़ खाना है, बाप की याद में रहना है।
- वरदान:-
- ( All Blessings of 2021)
- बुद्धि रूपी पांव मर्यादा की लकीर के अन्दर रखने वाले सर्व प्राप्ति सम्पन्न शक्तिशाली भव
- जो बच्चे बुद्धि रूपी पांव जरा भी मर्यादा की लकीर से बाहर नहीं निकालते वे लक्की और लवली बन जाते हैं।
- उन्हें कभी कोई भी विघ्न अथवा तूफान, परेशानी, उदासी आ नहीं सकती।
- यदि आती है तो समझना चाहिए कि जरूर बुद्धि रूपी पांव मर्यादा की लकीर से बाहर निकाला है।
- लकीर से बाहर निकलना अर्थात् फकीर बनना इसलिए कभी फकीर अर्थात् मांगने वाले नहीं, सर्व प्राप्ति सम्पन्न शक्तिशाली बनो।
- स्लोगन:-
- (All Slogans of 2021)
- जो सदा न्यारे और बाप के प्यारे हैं वह सेफ रहते हैं।
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