05-05-2021 प्रात:मुरली बापदादा मधुबन

मीठे बच्चे - श्रीमत पर चलकर सबको सुख दो, आसुरी मत पर दु:ख देते आये, अब सुख दो, सुख लो

प्रश्नः-

बुद्धिवान बच्चे किस राज़ को समझने के कारण ऊंच पद पाने का पुरूषार्थ करते हैं?

उत्तर:-

वे समझते हैं कि यह दु:ख और सुख, हार और जीत का खेल है।

अभी आधाकल्प सुख का खेल चलने वाला है।

वहाँ किसी भी प्रकार का दु:ख नहीं होगा।

अब नई राजधानी आने वाली है, उसके लिए बाप अपना परमधाम छोड़कर हम बच्चों को पढ़ाने आये हैं, अब पुरूषार्थ कर ऊंच पद लेना ही है।

गीत:- बदल जाये दुनिया न बदलेंगे हम...

 

गीत:- बदल जाये दुनिया न बदलेंगे हम...


  • ओम् शान्ति। मीठे-मीठे बच्चों ने अर्थ समझा।
  • यहाँ कोई कसम खाने की दरकार नहीं है।
  • यह तो आत्मा में समझ चाहिए।
  • आत्मा तमोप्रधान होने के कारण बिल्कुल ही बेसमझ हो गई है।
  • बच्चे जानते हैं - हम कितने बेसमझ थे।
  • अब कितने समझदार बने हैं।
  • दूसरे सतसंग आदि में यह बातें होती नहीं।
  • वह शास्त्र, रामायण आदि पढ़ते हैं।
  • एक कान से सुना, दूसरे कान से निकल जाता है।
  • कोई प्राप्ति नहीं।
  • यज्ञ, तप, दान-पुण्य आदि बहुत करते हैं, धक्के खाते रहते हैं।
  • प्राप्ति कुछ भी नहीं।
  • इस दुनिया में कोई को सुख है नहीं।
  • अब बाप सारी समझ देते हैं।
  • सबको सुख-शान्ति देने वाला एक ही बाप है।
  • मनुष्य तो बिल्कुल ही घोर अन्धियारे में हैं।
  • भक्ति मार्ग वाले भी याद करते रहते हैं - हे दु:ख हर्ता, सुख कर्ता, सद्गति दाता।
  • देखो, दुनिया में क्या लगा पड़ा है।
  • सबको दु:ख लगा ही रहता है।
  • जो भी मनुष्य मात्र हैं, किसको भी यह पता नहीं है कि बाप कौन है?
  • बाप से क्या वर्सा मिलता है?
  • बेहद के बाप को जानते ही नहीं।
  • धक्के खाते रहते हैं, शान्ति के लिए।
  • अब यह किसने कहा कि मन की शान्ति चाहिए?
  • आत्मा कहती है, यह भी मनुष्य नहीं जानते हैं।
  • देह-अभिमान है ना।
  • साधू-सन्त आदि सब दु:खी हैं, सब शान्ति चाहते हैं।
  • बीमारी आदि तो साधू-सन्तों को भी होती है।
  • एक्सीडेंट होते हैं।
  • दुनिया में दु:ख के सिवाए और कुछ तो है नहीं।
  • अभी तुम बुद्धिवान बने हो।
  • बाप ने समझाया है ड्रामा के अन्दर नई दुनिया और पुरानी दुनिया, सुख और दु:ख का खेल बना हुआ है।
  • बाप ने तुम्हारी बुद्धि का ताला खोला है और सब मनुष्य मात्र की बुद्धि को गोदरेज का ताला लगा हुआ है, बिल्कुल ही तमोप्रधान बुद्धि हैं।
  • तुम बच्चे नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार जानते हो।
  • बरोबर बेहद का बाप मिला है, वह हमको सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का राज़ सुनाते हैं कि यह खेल कैसे बना हुआ है।
  • जब सुख होता है, तब दु:ख का नाम नहीं होता।
  • तुम बच्चों की बुद्धि में है कि हम बाप से सुख-शान्ति-सम्पत्ति का वर्सा ले रहे हैं।
  • सतयुग से लेकर त्रेता अन्त तक कोई दु:ख नहीं होगा।
  • अब तुम रोशनी में हो।
  • तुम पुरुषार्थ कर रहे हो - अपनी राजधानी में एक दो से ऊंच पद पायें।
  • यह स्कूल है बेहद का।
  • बेहद का बाप पढ़ाते हैं।
  • तुम जानते हो वह हमारा मोस्ट बिलवेड बाप है, जिसकी अपरमअपार महिमा है।
  • वह ऊंच ते ऊंच बाप श्रीमत देते हैं।
  • बाकी सब मनुष्य मात्र आसुरी मत पर एक दो को दु:ख ही देते हैं।
  • तुम्हें श्रीमत पर सबको सुख देना है।
  • इस ड्रामा में हम एक्टर्स हैं, यह कोई भी नहीं जानते।
  • तुम बच्चे अब समझते हो इस ड्रामा में भारतवासियों का ही आलराउन्ड पार्ट है।
  • आगे तो तुम कुछ भी नहीं जानते थे।
  • अब तो मूलवतन से लेकर सूक्ष्मवतन, स्थूलवतन सबको तुम जान गये हो। तुमको सच्चा ज्ञान है।
  • परमपिता परमात्मा हमको इन द्वारा पढ़ा रहे हैं।
  • बाबा हमको त्रिलोक का सारा ज्ञान दे रहे हैं।
  • यह है ही कांटो का जंगल।
  • बच्चे जानते हैं - अभी हम कांटों से फूल अर्थात् मनुष्य से देवता बनते हैं।
  • यहाँ तो छोटे-बड़े सब दु:ख देते हैं।
  • गर्भ में माता को बच्चे दु:ख देते हैं।
  • यह बहुत ही छी-छी पुरानी दुनिया है।
  • इस सृष्टि चक्र को कोई भी नहीं जानते हैं।
  • हम कहाँ से आये, कितने जन्म लिए, फिर कहाँ जाना है?... कुछ भी नहीं जानते, बेहद का बाप अर्थात् सब सीताओं का एक राम वह निराकार है।
  • तुम सभी सीतायें हो।
  • बाप है ब्राइडग्रूम।
  • एक साजन की सब सजनियाँ, भक्तियाँ हैं।
  • जो भी सीतायें हैं, सब रावण की जेल में फँस शोकवाटिका में आ गई हैं।
  • सारी दुनिया के सब मनुष्य मात्र एक भगवान को याद करते हैं।
  • भक्तों का रक्षक भगवान को कहते हैं।
  • तुम सब अभी ब्रह्मा मुख वंशावली ब्राह्मण हो।
  • ब्राह्मण जानते हैं - हमको शिवबाबा पढ़ा रहे हैं।
  • बाबा से वर्सा जरूर मिलता है।
  • शिवबाबा है स्वर्ग का रचयिता।
  • स्वर्ग कहो अथवा दैवी राजधानी कहो - यह स्वर्ग की राजधानी है ना।
  • लक्ष्मी-नारायण स्वर्ग के मालिक हैं।
  • यह भी अभी तुम समझते हो।
  • यहाँ जब सतयुग था तो लक्ष्मी-नारायण का राज्य था।
  • अभी है कलियुग।
  • मनुष्य तो बिचारे घोर अन्धियारे में होने के कारण कुछ नहीं जानते कि अभी कलियुग का अन्त है।
  • विनाश सामने खड़ा है।
  • तुम सब सीताओं का सद्गति दाता एक राम है।
  • सीतायें सब दुर्गति में हैं, परन्तु यह कोई समझते थोड़ेही हैं कि हम दुर्गति में हैं।
  • अपने साहूकारी का ही नशा है।
  • हमको इतने मकान हैं, इतना धन है, इतने महल हैं, किसको पता नहीं कि दु:ख की दुनिया अब बदलनी है।
  • मौत सामने खड़ा है।
  • सब मिट्टी में मिल जाना है।
  • यह जो कुछ पुरानी दुनिया में देखते हो, विनाश हो जायेगा।
  • विनाश के लिए पूरी तैयारियाँ हो रही हैं।
  • यह वही महाभारत लड़ाई है।
  • वही गीता का भगवान है।
  • परन्तु बाप की बायोग्राफी में बच्चे का नाम डाल दिया है।
  • अब शिवबाबा तुमको राजयोग सिखा रहे हैं।
  • बड़े ते बड़ी भूल ही यह है जो भगवान का नाम गुम कर दिया है।
  • तुम बच्चे जानते हो, हमको कोई मनुष्य, साधू-सन्त आदि नहीं पढ़ाते हैं, शिवबाबा हमको पढ़ाते हैं।
  • वह बाप भी है, टीचर भी है, सतगुरू भी है।
  • सब कुछ है।
  • यह तो नहीं भूलना चाहिए ना।
  • बाप कहते हैं - हमारे सब बच्चे हैं परन्तु सभी को थोड़ेही पढ़ायेंगे।
  • बाप कहते हैं - हम भारतवासियों को फिर से राजयोग सिखाने आये हैं।
  • भारतवासी स्वर्गवासी थे, हीरे मिसल थे, अब कौड़ी मिसल बन पड़े हैं।
  • घर में कितनी अशान्ति है।
  • कहते हैं - बाबा हमको क्रोध आता है, बच्चों को मारना पड़ता है।
  • डर लगता है, हमने 5 विकार शिवबाबा को दान दे दिया है फिर हम यह क्यों करते हैं?
  • बाप समझाते हैं - इस समय सभी पर 5 विकारों का ग्रहण लगा हुआ है।
  • देह-अभिमान का भूत आने से फिर सब भूत लग जाते हैं।
  • अब बाप कहते हैं - देही-अभिमानी बनो।
  • अभी तुमको समझ मिली है।
  • सतयुग में भी हम आत्म-अभिमानी थे।
  • समझते हैं - आत्मा का यह शरीर अब पुराना हुआ है।
  • आयु पूरी हुई है इसलिए यह शरीर छोड़ अब नया लेना है।
  • (सर्प का मिसाल) सर्प की एक खाल पुरानी होती है तो फिर दूसरी नई ले लेते हैं।
  • यह दृष्टान्त है सतयुग के लिए।
  • वहाँ तुम ऐसे शरीर छोड़ते हो, दु:ख की कोई बात नहीं रहती।
  • यहाँ कितना दु:ख होता है।
  • रोना-पीटना आदि रहता है।
  • अब तुम बच्चे जानते हो - यह पुरानी खाल है।
  • यहाँ कोई नई खाल नहीं मिलनी है।
  • यह अन्तिम पुरानी जुत्ती है।
  • अभी तुम उनसे तंग हो गये हो।
  • वहाँ तो खुशी से एक शरीर छोड़ दूसरा लेते हैं।
  • इन बातों को भी तुम समझते हो।
  • यहाँ कितने नये आते हैं, समझते थोड़ेही हैं।
  • दो-चार रोज़ यहाँ से समझकर जाते हैं फिर भूल जाते हैं।
  • हाँ, अच्छी रीति सुना, खुशी हुई तो प्रजा में आ जायेंगे।
  • प्रजा भी तो ढेर बननी है ना।
  • यह है ईश्वर का दर अथवा घर तुम ईश्वर के घर में बैठे हो।
  • परमपिता अपना परम-धाम छोड़ यहाँ साधारण तन में आकर बैठा है।
  • वहाँ तो बाप के पास आत्मायें रहती हैं।
  • यहाँ संगम पर बाबा खुद आया है - पतितों को पावन बनाने।
  • उनको शिव निराकार ही कहते हैं।
  • निराकार बाबा को आत्मायें ओ गॉड फादर कह पुकारती हैं।
  • मनुष्य बिगर समझ के कह देते हैं ओ गॉड फादर।
  • इन लक्ष्मी-नारायण को भी यूरोपियन लोग भगवती-भगवान कहते हैं।
  • इन्हों को ऐसा किसने बनाया?
  • इन देवताओं को कहते हैं आप सर्वगुण सम्पन्न, 16 कला सम्पूर्ण हो फिर खुद को क्या कहते हैं?
  • यह नहीं जानते कि यह भी मनुष्य हैं।
  • भारत में ही राज्य करके गये हैं।
  • उनके आगे जाकर महिमा गाते हैं।
  • अपने को नींच पापी कहते रहते हैं।
  • कृष्ण के मन्दिर में भी जाकर महिमा करेंगे।
  • शिव की यह महिमा नहीं करेंगे।
  • उनकी महिमा अलग है।
  • अक्सर करके शिव के पास जाते हैं तो कहते हैं भर दो झोली।
  • फिर कह देते हैं वह भांग पीने वाला है, धतूरा खाने वाला है।
  • अरे वहाँ भांग-धतूरा कहाँ से आई?
  • कुछ भी समझ नहीं।
  • माँगते रहते हैं - पति चाहिए, यह चाहिए....दीपमाला पर भी लक्ष्मी का आह्वान करते हैं।
  • वह है कौन, यह किसको भी पता नहीं।
  • 8-10 भुजायें कभी होती हैं क्या?
  • यह चतुर्भुज रूप दिखाते हैं क्योंकि प्रवृत्ति मार्ग है।
  • उनका नाम विष्णु रख दिया है।
  • लक्ष्मी-नारायण तो सतयुग में रहते हैं।
  • मनुष्य को यह पता नहीं कि विष्णु के दो रूप लक्ष्मी-नारायण द्वारा पालना होती है।
  • चित्रों में लक्ष्मी को 4 भुजायें दे देते हैं।
  • 4 भुजा वाले को बच्चा होगा तो उनको भी 4 भुजा होनी चाहिए।
  • कुछ भी समझते नहीं हैं।
  • तुम अभी समझते हो - बाबा जब तक नहीं आये थे तो हम भी कुछ नहीं जानते थे।
  • अभी सारे विश्व के आदि-मध्य-अन्त को जान गये हैं।
  • बाप आकर पतित दुनिया को पावन बनाते हैं।
  • बुलाते भी हैं - हे पतित-पावन आओ।
  • अब परमात्मा कैसे आये?
  • कैसे आकर पतितों को पावन बनाये?
  • बाप कहते हैं 5 हजार वर्ष पहले हमने दैवी स्वराज्य बनाया था फिर तुमने 84 जन्म कैसे लिए?
  • यह समझ आगे तुम्हारी बुद्धि में बिल्कुल नहीं थी।
  • इस ब्रह्मा को भी पता नहीं था।
  • राधे-कृष्ण, लक्ष्मी-नारायण की पूजा करते रहते।
  • परन्तु यह भी पता नहीं कि राधे-कृष्ण ही स्वयंवर के बाद लक्ष्मी-नारायण बने हैं इसलिए प्रिन्सेज़ राधे, प्रिन्स कृष्ण कहा जाता है।
  • स्वयंवर के बाद महाराजा-महारानी बनते हैं।
  • यह जो खुद बन रहे हैं, उनको भी पता नहीं था।
  • भल कोई को दीदार भी होता है परन्तु कुछ भी समझते नहीं।
  • फिर भी भक्तों की भावना अल्पकाल के लिए पूरी करने मैं साक्षात्कार कराता हूँ।
  • यहाँ तो ध्यान-दीदार की बात ही नहीं।
  • बाप तो समझाते हैं - साक्षात्कार में माया प्रवेश कर लेगी तो तुम पद भ्रष्ट हो पड़ेंगे।
  • बहुत आकर कहते हैं - हमको शिवबाबा का साक्षात्कार हो।
  • अरे तुमको समझाया जाता है - फायरफ्लाई कितना छोटा होता है, आंखों से देखा जाता है।
  • आत्मा तो उससे भी छोटी बिन्दी है।
  • जैसे आत्मा है वैसे ही परमात्मा का रूप है।
  • साक्षात्कार भी होगा तो उसी छोटी बिन्दी का होगा।
  • यह तो छोटी सी बिन्दी है जो भ्रकुटी के बीच में रहती है।
  • आत्मा का साक्षात्कार हो तो भी समझेंगे कुछ नहीं।
  • तुम बच्चे जानते हो - अभी हम शिवबाबा की सन्तान हैं।
  • सब ब्रह्माकुमार-कुमारियाँ शिवबाबा से वर्सा ले रहे हैं।
  • हमारी एम आब्जेक्ट ही यह है।
  • स्टूडेन्ट हैं ना।
  • तुम कहते हो - बाप से सहज राजयोग सीखने आये हैं।
  • यह एम-आब्जेक्ट है।
  • यह बच्चों को भूलना नहीं चाहिए।
  • भक्ति मार्ग में भक्त लोग देवताओं के चित्र साथ में रखते हैं।
  • फिर तुमको यह त्रिमूर्ति का चित्र पॉकेट में रखना चाहिए।
  • इस शिवबाबा द्वारा हम यह लक्ष्मी-नारायण बन रहे हैं।
  • अच्छा। मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
  • धारणा के लिए मुख्य सार:-
  • 1) शिवबाबा को विकारों का दान देकर फिर कभी वापस नहीं लेना है।
    • देह-अभिमान के भूत से बचना है।
    • इस भूत से सब भूत आ जाते हैं इसलिए आत्म-अभिमानी बनने का अभ्यास करना है।
  • 2) ध्यान दीदार की आश नहीं रखनी है।
    • एम-आब्जेक्ट को सामने रख पुरूषार्थ करना है।
    • श्रीमत पर सबको सुख देना है।
  • वरदान:-
  • ( All Blessings of 2021)
  • स्वयं की स्मृति में रह अपने हर कर्म को संयम (नियम) बनाने वाले अथॉरिटी स्वरूप भव
  • जैसे साकार में स्वयं की स्मृति में रहने से जो कर्म किया वही ब्राह्मण परिवार का संयम बन गया।
  • स्वयं के नशे में रहने के कारण अथॉरिटी से कह सकते थे कि अगर साकार द्वारा कोई उल्टा कर्म भी हो गया तो सुल्टा कर देंगे।
  • स्वयं के स्वरूप की स्मृति में रहने से यह नशा रहता है कि कोई कर्म उल्टा हो ही नहीं सकता।
  • आप बच्चे भी जब स्वयं की स्थिति में स्थित रहो तो जो संकल्प चलेगा, जो बोल बोलेंगे वा कर्म करेंगे, वही संयम (नियम) बन जायेगा।
  • स्लोगन:-
  • (All Slogans of 2021)
  • पवित्रता का पिल्लर मजबूत करो तो यह पिल्लर लाइट हाउस का काम करता रहेगा।