08-05-2021 प्रात:मुरली बापदादा मधुबन

मीठे बच्चे - अपने आपसे पूछो कि मैं कर्मेन्द्रिय-जीत बना हूँ, कोई भी कर्मेन्द्रिय मुझे धोखा तो नहीं देती हैं!

प्रश्नः-

कर्मातीत बनने के लिए तुम बच्चों को अपने आपसे कौन सा वायदा करना है?

उत्तर:-

अपने से वायदा करो कि कोई भी कर्मेन्द्रिय कभी भी चलायमान हो नहीं सकती।

मुझे अपनी कर्मेन्द्रियाँ वश में करनी हैं। बाबा ने जो भी डायरेक्शन दिये हैं, उन्हें अमल में लाना ही है।

बाबा कहे - मीठे बच्चे, कर्मातीत बनना है तो कोई भी कर्मेन्द्रिय से विकर्म मत करो।

माया बड़ी प्रबल है।

ऑखें धोखेबाज हैं इसलिए अपनी सम्भाल करो।

 

  • ओम् शान्ति।
  • बच्चे आत्म-अभिमानी होकर बैठे हो?
    • अपने आपसे पूछो, हर एक बात अपने आपसे पूछनी पड़ती है।
    • बाप युक्ति बताते हैं कि अपने से पूछो आत्म-अभिमानी हो बैठे हैं?
    • बाप को याद करते हैं?
    • क्योंकि यह है तुम्हारी रूहानी सेना।
  • उस सेना में तो हमेशा जवान ही भर्ती होते हैं।
    • इस सेना में जवान 14-15 वर्ष के भी हैं तो 90 वर्ष के बूढ़े भी हैं, तो छोटे बच्चे भी हैं।
    • यह सेना है माया पर जीत पाने के लिए।
  • हर एक को माया पर जीत पहन बाप से बेहद का वर्सा पाना है क्योंकि माया बहुत दुश्तर है।
    • बच्चे स्वयं भी जानते हैं कि माया बड़ी प्रबल है।
    • हर एक कर्मेन्द्रिय धोखा बहुत देती है।
    • सबसे पहले जास्ती धोखा देने वाली कौन सी कर्मेन्द्रिय है?
    • ऑखे ही सबसे जास्ती धोखा देती हैं।
    • अपनी स्त्री होते हुए भी दूसरी कोई खूबसूरत देखेंगे तो झट वह खीचेगी।
    • ऑखे बड़ा धोखा देती हैं।
    • दिल होती है उनको हाथ लगायें।
    • बच्चों को समझाया जाता है - सदैव बुद्धि से यह समझो कि हम ब्रह्माकुमार-कुमारियाँ भाई-बहिन हैं, इसमें माया बहुत गुप्त धोखा देती है इसलिए यह चार्ट में भी लिखना चाहिए कि आज सारे दिन में कौन-कौनसी कर्मेन्द्रिय ने हमको धोखा दिया?
  • सबसे जास्ती दुश्मन हैं यह ऑखें।
    • तो यह लिखना चाहिए - फलानी को देखा, हमारी दृष्टि गई।
    • सूरदास का भी मिसाल है ना।
    • अपनी ऑखे निकाल दी।
    • अपनी जांच करेंगे तो ऑखे धोखा जास्ती देती हैं।
    • अपनी स्त्री को भी छोड़ कोई अच्छी देखी तो उस पर फिदा हो जाते हैं।
    • कोई गायन में होशियार होगी, श्रृंगार अच्छा होगा तो ऑखे झट चलायमान हो जायेंगी इसलिए बाबा कहते हैं यह ऑखें बहुत धोखा देती हैं।
    • भल सर्विस भी करते हैं परन्तु ऑखे बहुत धोखा देती हैं।
    • इस दुश्मन की पूरी जाँच रखनी है।
    • नहीं तो समझो हम अपने पद को भ्रष्ट कर लेंगे।
    • जो समझदार बच्चे हैं उनको अपने पास डायरी में नोट करना चाहिए - फलानी को देखा तो हमारी दृष्टि गई फिर अपने को आपेही सज़ा दो।
    • भक्ति मार्ग में भी पूजा के टाइम बुद्धि और-और तरफ भागती है, तो अपने को चूटी (चुटकी) से काटते हैं।
    • तो जब ऐसी कोई स्त्री आदि सामने आती है तो किनारा कर लेना चाहिए।
    • खड़े होकर देखना नहीं चाहिए।
    • ऑखे बहुत धोखा देने वाली हैं इसलिए संन्यासी लोग ऑखे बन्द कर बैठते हैं।
    • स्त्री को पिछाड़ी में, पुरूष को आगे में बिठाते हैं।
    • कई ऐसे भी होते हैं जो स्त्री को बिल्कुल देखते नहीं हैं।
  • तुम बच्चों को तो बहुत मेहनत करनी है।
    • विश्व का राज्य भाग्य लेना कोई कम बात थोड़ेही है।
    • वो लोग तो करके 10, 12, 20 हजार, एक-दो, लाख-करोड़ इकट्ठा करेंगे और खलास हो जायेंगे।
    • तुम बच्चों को तो अविनाशी वर्सा मिलता है।
    • सब कुछ प्राप्ति हो जाती है।
    • ऐसी कोई चीज़ नहीं रहती जिसकी प्राप्ति के लिए माथा मारना पड़े।
    • कलियुग अन्त और सतयुग आदि में रात-दिन का फ़र्क है।
    • यहाँ तो कुछ भी नहीं है।
  • अभी तुम्हारा यह है पुरूषोत्तम संगमयुग।
    • पुरूषोत्तम अक्षर जरूर लिखना है।
    • मनुष्य से देवता किये...तुम अभी ब्राह्मण बने हो।
  • मनुष्य तो बिल्कुल घोर अन्धियारे में हैं।
    • बहुत हैं जो स्वर्ग को देख न सकें।
    • बाप कहते हैं - बच्चे, तुम्हारा धर्म बहुत सुख देने वाला है।
    • मनुष्यों को थोड़ेही कुछ पता है।
    • भारतवासी भी भूल गये हैं कि हेविन क्या चीज़ है।
    • क्रिश्चियन लोग भी खुद कहते हैं हेविन था।
  • इन लक्ष्मी-नारायण को गॉड-गॉडेज कहते हैं ना।
    • तो जरूर गॉड ही ऐसा बनायेंगे।
    • तो बाप समझाते हैं - मेहनत बहुत करनी है।
    • रोज़ अपना पोतामेल देखो।
    • कौन सी कर्मेन्द्रिय ने हमको धोखा दिया?
    • मुख भी बहुत धोखा देता है।
    • आगे कचहरी होती थी।
    • सब अपनी भूल बताते थे।
  • हमने फलानी चीज़ छिपाकर खा ली।
    • अच्छे-अच्छे बड़े घर की बच्चियाँ बतला देती हैं, ऐसे-ऐसे माया वार करती है।
    • छिपाकर खाना भी चोरी है।
    • सो भी शिवबाबा के यज्ञ की चोरी - यह तो बहुत खराब है।
    • कख का चोर सो लख का चोर।
    • माया एकदम नाक से पकड़ती है।
    • यह आदत बहुत बुरी है।
    • बुरी आदत होगी तो हम क्या बनेंगे!
    • स्वर्ग में जाना कोई बड़ी बात नहीं है।
    • परन्तु उसमें फिर मर्तबा भी तो है ना।
    • कहाँ राजा कहाँ प्रजा।
    • कितना फर्क है।
    • तो कर्मेन्द्रियाँ भी बहुत धोखा देने वाली हैं।
    • उनकी सम्भाल करना चाहिए।
    • ऊंच पद पाना है तो बाप के डायरेक्शन पर पूरा चलना है।
    • बाप डायरेक्शन देंगे माया फिर बीच में आकर विघ्न डालेगी।
  • बाप कहते हैं - भूलो मत, नहीं तो अन्त में बहुत पछतायेंगे।
    • नापास होने का फिर साक्षात्कार भी होगा।
    • अभी तुम कहते हो हम नर से नारायण बनेंगे।
    • परन्तु अपने से पूछो, अपना पोतामेल निकालो।
    • बहुत हैं, जो मुश्किल समझकर अमल में लाते हैं।
    • परन्तु बाबा कहते हैं इससे तुम्हारी उन्नति बहुत होगी।
    • सारे दिन का पोतामेल निकालना चाहिए।
    • यह ऑखे बहुत धोखा देती हैं।
    • कोई को देखेंगे तो ख्याल आयेगा, यह तो बहुत अच्छी है फिर बात करेंगे।
    • दिल होगी - उनको कुछ सौगात दूँ, यह खिलाऊं, वही चिंतन चलता रहेगा।
    • बच्चे समझते हैं इसमें मेहनत बहुत बड़ी है।
    • कर्मेन्द्रियाँ बहुत धोखा देती हैं।
    • रावण राज्य है ना।
  • बाप कहते हैं - वहाँ चिंता की कोई बात नहीं होती है क्योंकि रावण राज्य ही नहीं।
    • चिंता की बात ही नहीं।
    • वहाँ भी चिंता हो तो फिर नर्क और स्वर्ग में फ़र्क ही क्या रहे?
    • तुम बच्चे बहुत-बहुत ऊंच पद पाने के लिए भगवान से पढ़ते हो।
  • बाप समझाते हैं - माया निंदा कराती है।
    • तुमने अपकार किया, मैं उपकार करता हूँ।
    • बच्चे, तुम अगर कुदृष्टि रखेंगे तो अपना ही नुकसान करेंगे।
    • बहुत बड़ी मंजिल है इसलिए बाबा कहते हैं - अपना पोतामेल देखो।
    • कोई विकर्म तो नहीं किया?
    • किसको धोखा तो नहीं दिया?
    • अब विकर्माजीत बनना है।
  • विकर्माजीत के संवत का किसको पता नहीं है सिवाए तुम बच्चों के।
    • बाप ने समझाया है - विकर्माजीत को 5 हजार वर्ष हुए, फिर विकर्म करते हैं तो वाम मार्ग में जाते हैं।
    • कर्म, अकर्म, विकर्म अक्षर तो हैं ना।
    • माया के राज्य में मनुष्य जो भी कर्म करते हैं, वह विकर्म ही बनता है।
    • सतयुग में विकार होते नहीं।
    • तो विकर्म भी कोई बनता नहीं।
    • यह भी तुम जानते हो - क्योंकि तुमको ज्ञान का तीसरा नेत्र मिला है।
  • तुम त्रिनेत्री बने हो।
    • तो त्रिकालदर्शी, त्रिनेत्री बनाने वाला है बाप।
    • तुम आस्तिक बने हो तब त्रिकालदर्शी बने हो।
    • सारे ड्रामा का राज़ बुद्धि में है।
  • मूलवतन, सूक्ष्मवतन, स्थूलवतन, 84 का चक्र फिर और धर्म वृद्धि को पाते हैं।
    • वह कोई सद्गति नहीं कर सकते।
    • उनको गुरू भी नहीं कह सकते हैं।
    • सर्व की सद्गति करने वाला एक ही बाप है।
    • अभी सबकी सद्गति होनी है।
    • वह धर्म स्थापक कहे जाते हैं, गुरू नहीं।
    • धर्म स्थापक धर्म स्थापन करने के निमित्त बने हैं।
    • बाकी सद्गति थोड़ेही करते हैं।
    • उनको याद करने से कोई सद्गति नहीं हो सकती।
    • विकर्म विनाश नहीं हो सकते।
    • वह सब है भक्ति।
    • तो बाप समझाते हैं माया बड़ी दुश्तर है, इस पर ही लड़ाई होती है।
  • तुम हो शिव शक्ति पाण्डव सेना।
    • तुम सब पण्डे हो।
    • शान्तिधाम, सुखधाम का रास्ता बताते हो।
    • गाइड्स तुम हो।
    • कहते हो - बाप को याद करो तो विकर्म विनाश होंगे और फिर दूसरे तरफ अगर कोई पाप कर्म करेंगे तो सौ गुणा पाप लग जायेगा।
    • जितना हो सके कोई विकर्म नहीं करना चाहिए।
    • कर्मेन्द्रियाँ धोखा बहुत देती हैं।
    • बाप हर एक की चलन से समझ जाते हैं।
  • बच्चों को माया के तूफान आते हैं।
    • स्त्री-पुरुष समझने से ही तूफान आते हैं।
    • तो इन ऑखों पर कितना कब्जा (अधिकार) रखना चाहिए।
    • हम तो शिव-बाबा के बच्चे हैं।
    • बाप से अन्जाम कर राखी भी बांधते फिर भी माया धोखा दे देती है, फिर छूट नहीं सकते हैं।
    • कर्मेन्द्रियाँ जब वश हो तब कर्मातीत अवस्था हो सके।
    • कहना तो सहज है कि हम लक्ष्मी-नारायण बनेंगे परन्तु समझ भी चाहिए ना।
    • बाप कहते हैं डायरेक्शन पर अमल करो।
    • बाबा-बाबा करते रहो।
    • बाबा से हम पूरा वर्सा लेंगे।
  • ऐसा टीचर कभी भी कहाँ भी नहीं मिलेगा।
    • इन सब बातों को देवतायें भी नहीं जानते तो पिछाड़ी के धर्म वाले फिर कैसे जान सकते हैं।
    • बाबा कहते हैं मैं कुछ कहूँ तो भी समझो - यह शिवबाबा कहते हैं।
    • ऐसे मत समझो कि यह दादा कहते हैं।
    • यह तो मेरा रथ है, यह क्या करता, तुम बच्चों को राजाई मैं देता हूँ।
    • यह रथ थोड़ेही देता है।
    • यह तो बिल्कुल बेगर है।
    • यह भी बाबा से वर्सा लेता है।
    • जैसे तुम पुरूषार्थ करते हो वैसे यह भी करता है।
    • यह भी स्टूडेन्ट लाइफ में है।
    • यह रथ लोन पर लिया हुआ है, तमोप्रधान है।
  • तुम पूज्य देवता बनने के लिए, मनुष्य से देवता बनने के लिए पढ़ते हो।
    • कोई की तकदीर में नहीं है तो कहते हैं मुझे तो संशय है, शिवबाबा कैसे आकर पढ़ाते हैं।
    • मुझे तो समझ में नहीं आता है।
    • बाप की याद बिगर विकर्म विनाश हो न सकें।
    • पूरी सजा खानी पड़ेगी।
  • यह राजाई स्थापन हो रही है।
    • राजाओं को कितनी दासियाँ होती हैं।
    • बाबा तो राजाओं के कनेक्शन में आया हुआ है।
    • दासियाँ दहेज में देते हैं।
    • यहाँ ही इतनी दासियाँ हैं तो सतयुग में कितनी होंगी।
    • यह भी राजधानी स्थापन हो रही है।
    • बाबा जानते हैं क्या-क्या कर रहे हैं।
    • हर एक के पोतामेल से बाबा बता सकते हैं।
    • इस समय मर जाएं तो क्या बनेंगे!
    • कर्मातीत अवस्था को पिछाड़ी में सब नम्बरवार पाते हैं।
  • तो यह कमाई है।
    • कमाई में मनुष्य कितना बिज़ी रहते हैं।
    • खाना खाते रहेंगे, टेलीफोन कान पर होगा।
    • ऐसे आदमी तो ज्ञान उठा न सकें।
    • यहाँ गरीब साधारण ही आते हैं।
    • साहूकार लोग तो कहेंगे, फुर्सत कहाँ।
  • अरे, सिर्फ बाप को याद करो तो विकर्म विनाश हो जाएं।
    • तो बाबा मीठे-मीठे बच्चों को बार-बार समझाते हैं।
    • हर एक को यह पैगाम देना है जो ऐसा कोई न कहे कि हमको क्या पता शिवबाबा आया हुआ है।
    • बस सारा दिन बाबा-बाबा ही कहते रहो।
    • कई बच्चियाँ बहुत याद करती हैं।
    • शिवबाबा कहने से ही कई बच्चों को प्रेम के ऑसू आ जाते हैं।
    • कब जाकर मिलेंगे!
    • देखा नहीं है तो भी तड़फती रहती हैं और देखे हुए फिर मानते नहीं।
    • वह दूर बैठे ऑसू बहाती रहती हैं।
    • वन्डर है ना।
  • ब्रह्मा का भी बहुतों को साक्षात्कार होता है।
    • आगे चल बहुतों को साक्षात्कार होगा।
  • मनुष्य को मरने समय सब आकर कहते हैं भगवान को याद करो।
    • तुम भी शिवबाबा को याद करो।
    • बाप कहते हैं - बच्चे, पुरूषार्थ में मेकप करते रहो।
    • मौका मिलता है तो मेकप करो।
    • कमाई कितनी भारी है।
    • कोई-कोई तो ऐसे हैं जो कितना भी समझाओ, तो भी बुद्धि में नहीं बैठता।
    • बाप कहते हैं ऐसे नहीं बनना है।
    • अपना कल्याण करो।
    • बाप की श्रीमत पर चलो।
  • तुमको बाप पुरूषों में उत्तम बनाते हैं।
    • यह है एम आब्जेक्ट।
  • बाबा सर्विस के लिए कितनी युक्तियाँ बताते रहते हैं।
    • सन्देश तो सबको देना है।
    • जो समझें यह तो बरोबर सच कहते हैं।
    • इस लड़ाई से ही खास भारत में, आम सारे विश्व में सुख-शान्ति होती है।
    • ऐसे-ऐसे पर्चे सभी भाषाओं में छपाने पड़े।
    • भारत कितना बड़ा है।
    • हर एक को पता होना चाहिए - जो ऐसे कोई न कहे कि हमको पता ही नहीं पड़ा।
    • तुम कहेंगे अरे, एरोप्लेन से पर्चे गिराये, अखबार में डाला, तुम जागे नहीं।
    • यह भी दिखाया हुआ है।
  • अच्छा। मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
  • धारणा के लिए मुख्य सार:-
  • 1) स्वयं में जो भी बुरी आदतें हैं - उनकी जांच कर उन्हें निकालने के लिए मेहनत करनी है।
    • अपना सच्चा-सच्चा पोतामेल रखना है।
    • बाप के डायरेक्शन पर चलना है।
  • 2) ऐसा कोई कर्म नहीं करना है, जिससे बाप का नाम बदनाम हो।
    • अपनी उन्नति का ख्याल रखना है।
    • जरा भी कुदृष्टि नहीं रखनी है। वरदान:-
  • ( All Blessings of 2021)
  • देह-अभिमान के त्याग द्वारा श्रेष्ठ भाग्य बनाने वाले सर्व सिद्धि स्वरूप भव
  • देह-अभिमान का त्याग करने अर्थात् देही-अभिमानी बनने से बाप के सर्व संबंध का, सर्व शक्तियों का अनुभव होता है, यह अनुभव ही संगमयुग का सर्वश्रेष्ठ भाग्य है।
  • विधाता द्वारा मिली हुई इस विधि को अपनाने से वृद्धि भी होगी और सर्व सिद्धियां भी प्राप्त होंगी।
  • देहधारी के संबंध वा स्नेह में तो अपना ताज, तख्त और अपना असली स्वरूप सब छोड़ दिया तो क्या बाप के स्नेह में देह-अभिमान का त्याग नहीं कर सकते!
  • इसी एक त्याग से सर्व भाग्य प्राप्त हो जायेंगे।
  • स्लोगन:-
  • (All Slogans of 2021)
  • क्रोध मुक्त बनना है तो स्वार्थ के बजाए निस्वार्थ बनो, इच्छाओं के रूप का परिवर्तन करो।