09-05-21 प्रात:मुरली मधुबन

"अव्यक्त-बापदादा'' रिवाइज: 27-12-87

निश्चय बुद्धि विजयी रत्नों की निशानियाँ

 

  • आज बापदादा अपने चारों ओर के निश्चयबुद्धि विजयी बच्चों को देख रहे हैं।
  • हर एक बच्चे के निश्चय की निशानियाँ देख रहे हैं।
  • निश्चय की विशेष निशानियाँ -
  • (1) जैसा निश्चय वैसा कर्म, वाणी में हर समय चेहरे पर रूहानी नशा दिखाई देगा।
  • (2) हर कर्म, संकल्प में विजय सहज प्रत्यक्षफल के रूप में अनुभव होगी। मेहनत के रूप में नहीं, लेकिन प्रत्यक्षफल वा अधिकार के रूप में विजय अनुभव होगी।
  • (3) अपने श्रेष्ठ भाग्य, श्रेष्ठ जीवन वा बाप और परिवार के सम्बन्ध-सम्पर्क द्वारा एक परसेन्ट भी संशय संकल्पमात्र भी नहीं होगा।
  • (4) क्वेश्चन मार्क समाप्त, हर बात में बिन्दु बन बिन्दु लगाने वाले होंगे।
  • (5) निश्चयबुद्धि हर समय अपने को बेफिकर बादशाह सहज स्वत: अनुभव करेंगे अर्थात् बार-बार स्मृति लाने की मेहनत नहीं करनी पड़ेगी।
  • मैं बादशाह हूँ, यह कहने की मेहनत नहीं करनी पड़ेगी लेकिन सदा स्थिति के श्रेष्ठ आसन वा सिंहासन पर स्थित हैं ही।
  • जैसे लौकिक जीवन में कोई भी परिस्थिति प्रमाण स्थिति बनती है।
  • चाहे दु:ख की, चाहे सुख की, उस स्थिति की अनुभूति में स्वत: ही रहते हैं, बार-बार मेहनत नहीं करते - मैं सुखी हूँ वा मैं दु:खी हूँ।
  • बेफिकर बादशाह की स्थिति का अनुभव स्वत: सहज होता है।
  • अज्ञानी जीवन में परिस्थितियों प्रमाण स्थिति बनती है लेकिन शक्तिशाली अलौकिक ब्राह्मण जीवन में परिस्थिति प्रमाण स्थिति नहीं बनती लेकिन बेफिकर बादशाह की स्थिति वा श्रेष्ठ स्थिति बापदादा द्वारा प्राप्त हुई नॉलेज की लाइट-माइट द्वारा, याद की शक्ति द्वारा जिसको कहेंगे ज्ञान और योग की शक्तियों का वर्सा बाप द्वारा मिलता है।
  • तो ब्राह्मण जीवन में बाप के वर्से द्वारा वा सतगुरू के वरदान द्वारा वा भाग्यविधाता द्वारा प्राप्त हुए श्रेष्ठ भाग्य द्वारा स्थिति प्राप्त होती है।
  • अगर परिस्थिति के आधार पर स्थिति है तो शक्तिशाली कौन हुआ? परिस्थिति पॉवरफुल हो जायेगी ना।
  • और परिस्थिति के आधार पर स्थिति बनाने वाला कभी भी अचल, अडोल नहीं रह सकता।
  • जैसे अज्ञानी जीवन में अभी-अभी देखो बहुत खुशी में नाच रहे हैं और अभी-अभी उल्टे सोये हुए हैं।
  • तो अलौकिक जीवन में ऐसी हलचल वाली स्थिति नहीं होती।
  • परिस्थिति के आधार पर नहीं लेकिन अपने वर्से और वरदान के आधार पर वा अपनी श्रेष्ठ स्थिति के आधार पर परिस्थिति को परिवर्तन करने वाला होगा।
  • तो निश्चय बुद्धि इस कारण सदा बेफिकर बादशाह है क्योंकि फिकर होता है कोई अप्राप्ति वा कमी होने के कारण।
  • अगर सर्व प्राप्तिस्वरूप है, मास्टर सर्वशक्तिवान है तो फिकर किस बात का रहा?
  • (6) निश्चयबुद्धि अर्थात् सदा बाप पर बलिहार जाने वाले।
  • बलिहार अर्थात् सर्वन्श समर्पित। सर्व वंश सहित समर्पित।
  • चाहे देह भान में लाने वाले विकारों का वंश, चाहे देह के सम्बन्ध का वंश, चाहे देह के विनाशी पदार्थों की इच्छाओं का वंश।
  • सर्व वंश में यह सब आ जाता है।
  • सर्वन्श समर्पित वा सर्वन्श त्यागी एक ही बात है।
  • समर्पित होना इसको नहीं कहा जाता कि मधुबन में बैठ गये वा सेवाकेन्द्रों पर बैठ गये।
  • यह भी एक सीढ़ी है जो सेवा अर्थ अपने को अर्पण करते हैं लेकिन ‘सर्वन्श अर्पित' - यह सीढ़ी की मंजिल है।
  • एक सीढ़ी चढ़ गये लेकिन मंजिल पर पहुँचने वाले निश्चय बुद्धि की निशानी है - तीनों ही वंश सहित अर्पित।
  • तीनों ही बातें स्पष्ट जान गये ना।
  • वंश तब समाप्त होता है जब स्वप्न वा संकल्प में भी अंश मात्र नहीं।
  • अगर अंश है तो वंश पैदा हो ही जायेगा इसलिए सर्वन्श त्यागी की परिभाषा अति गुह्य है।
  • यह भी कभी सुनायेंगे।
  • (7) निश्चयबुद्धि सदा बेफिकर, निश्चिन्त होगा।
  • हर बात में विजय प्राप्त होने के नशे में निश्चित अनुभव करेगा।
  • तो निश्चय, निश्चिन्त और निश्चित - यह हर समय अनुभव करायेगा।
  • (8) वह सदा स्वयं भी नशे में रहेंगे और उनके नशे को देख दूसरों को भी यह रूहानी नशा अनुभव होगा।
  • औरों को भी रूहानी नशे में बाप की मदद से स्वयं की स्थिति से अनुभव करायेगा।
  • निश्चयबुद्धि की वा रूहानी नशे में रहने वाले के जीवन की विशेषतायें क्या होंगी?
  • पहली बात - जितना ही श्रेष्ठ नशा उतना ही निमित्त भाव हर जीवन के चरित्र में होगा।
  • निमित्त भाव की विशेषता के कारण निर्माण बुद्धि।
  • बुद्धि पर ध्यान देना - जितनी निर्मान बुद्धि होगी उतना निर्माण करते रहेंगे, नव निर्माण कहते हो ना।
  • तो नव निर्माण करने वाली बुद्धि होगी।
  • तो निर्मान भी होंगे, नव-निर्मान भी करेंगे।
  • जहाँ यह विशेषतायें हैं उसको ही कहा जाता है - निश्चयबुद्धि विजयी।
  • निमित्त, निर्मान और निर्माण।
  • निश्चयबुद्धि की भाषा क्या होगी?
  • निश्चयबुद्धि की भाषा में सदा मधुरता तो कॉमन बात है लेकिन उदारता होगी।
  • उदारता का अर्थ है सर्व आत्माओं के प्रति आगे बढ़ाने की उदारता होगी।
  • ‘पहले आप', ‘मैं-मैं' नहीं।
  • उदारता अर्थात् दूसरे को आगे रखना।
  • जैसे ब्रह्मा बाप ने सदैव पहले जगत अम्बा वा बच्चों को रखा - मेरे से भी तीखी जगदम्बा है, मेरे से भी तीखे यह बच्चे हैं।
  • यह उदारता की भाषा है।
  • और जहाँ उदारता है, स्वयं के प्रति आगे रहने की इच्छा नहीं है, वहाँ ड्रामा अनुसार स्वत: ही मनइच्छित फल प्राप्त हो ही जाता है।
  • जितना स्वयं इच्छा मात्रम् अविद्या की स्थिति में रहते, उतना बाप और परिवार अच्छा, योग्य समझ उसको ही पहले रखते हैं।
  • तो पहले आप मन से कहने वाले पीछे रह नहीं सकते।
  • वह मन से पहले आप कहता तो सर्व द्वारा पहले आप हो ही जाता है।
  • लेकिन इच्छा वाला नहीं।
  • तो निश्चयबुद्धि की भाषा सदा उदारता वाली भाषा, सन्तुष्टता की भाषा, सर्व के कल्याण की भाषा।
  • ऐसी भाषा वाले को कहेंगे निश्चयबुद्धि विजयी।
  • निश्चयबुद्धि तो सभी हो ना?
  • क्योंकि निश्चय ही फाउन्डेशन है।
  • लेकिन जब परिस्थितियों का, माया का, संस्कारों का, भिन्न-भिन्न स्वभावों का तूफान आता है तब मालूम पड़ता है निश्चय का फाउन्डेशन कितना मजबूत है।
  • जैसे इस पुरानी दुनिया में भिन्न-भिन्न प्रकार के तूफान आते हैं ना।
  • कभी वायु का, कभी समुद्र का... ऐसे यहाँ भी भिन्न-भिन्न प्रकार के तूफान आते हैं।
  • तूफान क्या करता है?
  • पहले उड़ाता है फिर फेंकता है।
  • तो यह तूफान भी पहले तो अपनी तरफ मौज में उड़ाते हैं।
  • अल्पकाल के नशे में ऊंचे ले जाते हैं क्योंकि माया भी जान गई है कि बिना प्राप्ति यह मेरी तरफ होने वाले नहीं है।
  • तो पहले आर्टीफीशल प्राप्ति में ऊपर उड़ाती है।
  • फिर नीचे गिरती कला में ले आती है।
  • चतुर है।
  • तो निश्चयबुद्धि की नज़र त्रिनेत्री होती है, तीसरे नेत्र से तीनों कालों को देख लेते हें, इसलिए कभी धोखा नहीं खा सकते।
  • तो निश्चय की परख तूफान के समय होती है।
  • जैसे तूफान बड़े-बड़े पुराने वृक्ष के फाउन्डेशन को उखाड़ लेते हैं।
  • तो यह माया के तूफान भी निश्चय के फाउन्डेशन को उखेड़ने की कोशिश करते हैं।
  • लेकिन रिजल्ट में उखड़ते कम हैं, हिलते ज्यादा हैं।
  • हिलने से भी फाउन्डेशन कच्चा हो जाता है।
  • तो ऐसे समय पर अपने निश्चय के फाउन्डेशन को चेक करो।
  • वैसे कोई से भी पूछेंगे - निश्चय पक्का है?
  • तो क्या कहेंगे?
  • बहुत अच्छा भाषण करेंगे।
  • अच्छा भी है निश्चय में रहना।
  • लेकिन समय पर अगर निश्चय हिलता भी है तो निश्चय का हिलना अर्थात् जन्म-जन्म की प्रालब्ध से हिलना इसलिए तूफानों के समय चेक करो - कोई हद का मान-शान न दे वा व्यर्थ संकल्पों के रूप में माया का तूफान आये, जो चाहना रखते हो वह चाहना अर्थात् इच्छा पूर्ण न हो, ऐसे टाइम पर जो निश्चय है कि मैं समर्थ बाप की समर्थ आत्मा हूँ - वह याद रहता है वा व्यर्थ समर्थ के ऊपर विजयी हो जाता है?
  • अगर व्यर्थ विजय प्राप्त कर लेता है तो निश्चय का फाउन्डेशन हिलेगा ना।
  • समर्थ के बजाए अपने को कमजोर आत्मा अनुभव करेगा।
  • दिलशिकस्त हो जायेंगे इसलिए कहते हैं कि तूफान के समय चेक करो।
  • हद का मान-शान, मैं-पन रूहानी शान से नीचे ले आता है।
  • हद की कोई भी इच्छा, इच्छा मात्रम् अविद्या के निश्चय से नीचे ले आती है।
  • तो निश्चय का अर्थ यह नहीं है कि मैं शरीर नहीं, मैं आत्मा हूँ।
  • लेकिन कौनसी आत्मा हूँ!
  • वह नशा, वह स्वमान समय पर अनुभव हो, इसको कहते हैं निश्चयबुद्धि विजयी।
  • कोई पेपर है ही नहीं और कहे - मैं तो पास विद् ऑनर हो गया, तो कोई उसको मानेगा? सर्टीफिकेट चाहिए ना।
  • कितना भी कोई पास हो जाए, डिग्री ले लेवे लेकिन जब तक सर्टीफिकेट नहीं मिलता है तो वैल्यू नहीं होती।
  • पेपर के समय पेपर दे पास हो सर्टीफिकेट ले - बाप से, परिवार से, तब उसको कहेंगे निश्चयबुद्धि विजयी।
  • समझा? तो फाउन्डेशन को भी चेक करते रहो।
  • निश्चयबुद्धि की विशेषता सुनी ना।
  • जैसा समय वैसे रूहानी नशा जीवन में दिखाई दे।
  • सिर्फ अपना मन खुश न हो लेकिन लोग भी खुश हों।
  • सभी अनुभव करें कि हाँ यह नशे में रहने वाली आत्मा है।
  • सिर्फ मनपसन्द नहीं लेकिन लोकपसन्द, बाप पसन्द।
  • इसको कहते हैं विजयी।
  • अच्छा! सर्व निश्चयबुद्धि विजयी रत्नों को, सर्व निश्चिन्त, बेफिकर बच्चों को, सर्व निश्चित विजय के नशे में रहने वाले रूहानी आत्माओं को, सर्व तूफानों को पार कर तोफा अनुभव करने वाले विशेष आत्माओं को, सदा अचल, अडोल, एकरस स्थिति में स्थित रहने वाले निश्चयबुद्धि बच्चों को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।
  • विदेशी भाई बहिनों से बापदादा की मुलाकात :-
  • अपने को समीप रत्न अनुभव करते हो?
  • समीप रत्न की निशानी क्या है?
  • वह सदा, सहज और स्वत: ज्ञानी तू आत्मा, योगी तू आत्मा, गुणमूर्त सेवाधारी अनुभव करेंगे।
  • समीप रत्न के हर कदम में यह चार ही विशेषतायें सहज अनुभव होंगी, एक भी कम नहीं होगी।
  • ज्ञान में कम हो, योग में तेज हो या दिव्यगुणों की धारणा में कमजोर हो, वह सबमें सदा ही सहज अनुभव करेगा।
  • समीप रत्न किसी भी बात में मेहनत नहीं अनुभव करेंगे लेकिन सहज सफलता अनुभव करेंगे क्योंकि बापदादा बच्चों को संगमयुग पर मेहनत से ही छुड़ाते हैं।
  • 63 जन्म मेहनत की है ना।
  • चाहे शरीर की मेहनत की, चाहे मन की मेहनत की।
  • बाप को प्राप्त करने के लिए भिन्न-भिन्न साधन अपनाते रहे।
  • तो यह मन की मेहनत की।
  • और धन की भी देखो, जो सर्विस करते हो,
  • जिसको बापदादा नौकरी कहते, उसमें भी देखो कितनी मेहनत करते हो! उसमें भी तो मेहनत लगती है ना।
  • और अभी आधाकल्प के लिए यह नौकरी नहीं करेंगे, इससे भी छूट जायेंगे।
  • न लौकिक नौकरी करेंगे, न भक्ति करेंगे - दोनों से मुक्ति मिल जायेगी।
  • अभी भी देखो, चाहे लौकिक कार्य करते भी हो लेकिन ब्राह्मण जीवन में आने से लौकिक कार्य करते हुए भी अन्तर लगता है ना।
  • अभी यह लौकिक कार्य करते भी डबल लाइट रहते हो, क्यों?
  • क्योंकि लौकिक कार्य करते भी यह खुशी रहती है कि यह कार्य अलौकिक सेवा के निमित्त कर रहे हैं।
  • अपने मन की तो इच्छायें नहीं हैं ना।
  • तो जहाँ इच्छा होती है वहाँ मेहनत लगती है।
  • अभी निमित्त मात्र करते हो क्योंकि मालूम है कि तन, मन, धन - तीनों लगाने से एक का पद्मगुणा अविनाशी बैंक में जमा हो रहा है।
  • फिर जमा किया हुआ खाते रहना।
  • पुरूषार्थ से - योग लगाने का, ज्ञान सुनने-सुनाने का, इस मेहनत से भी छूट जायेंगे।
  • कभी-कभी क्लासेज सुनकर थक जाते हैं ना।
  • वहाँ तो लौकिक राजनीतिक पढ़ाई भी जो होगी ना, वह भी खेल-खेल में होगी, इतने किताब नहीं याद करने पड़ेंगे।
  • सब मेहनत से छूट जायेंगे।
  • कइयों को पढ़ाई का भी बोझ होता है।
  • संगमयुग पर मेहनत से छूटने के संस्कार भरते हो।
  • चाहे माया के तूफान आते भी हैं, लेकिन यह माया से विजय प्राप्त करना भी एक खेल समझते हो, मेहनत नहीं।
  • खेल में भी क्या होता है?
  • जीत प्राप्त करना होता है ना।
  • तो माया से भी विजय प्राप्त करने का खेल करते हो।
  • खेल लगता है या बड़ी बात लगती है?
  • जब मास्टर सर्वशक्तिवान स्टेज पर स्थित होते हो तो खेल लगेगा।
  • और ही चैलेन्ज करते हो कि आधाकल्प के लिए विदाई लेकर जाओ।
  • तो विदाई समारोह मनाने आती है, लड़ने नहीं आती है।
  • विजयी रत्न हर समय, हर कार्य में विजयी हैं।
  • विजयी हो ना? (हाँ जी) तो वहाँ जाकर भी ‘हाँ जी करना'।
  • फिर भी अच्छे बहादुर हो गये हैं।
  • पहले थोड़े जल्दी घबरा जाते थे, अभी बहादुर हो गये हैं। अभी अनुभवी हो गये हैं।
  • तो अनुभव की अथॉरिटी वाले हो गये, परखने की भी शक्ति आ गई है, इसलिए घबराते नहीं हैं।
  • अनेक बार के विजयी थे, हैं और रहेंगे - यही स्मृति सदा रखना। अच्छा!
  • विदाई के समय दादियों से (दादी जानकी बम्बई से 3-4 दिन का चक्र लगाकर आई है)
  • अभी से ही चक्रवर्ती बन गई।
  • अच्छा है, यहाँ भी सेवा है, वहाँ भी सेवा की।
  • यहाँ रहते भी सेवा करते और जहाँ जाते वहाँ भी सेवा हो जाती।
  • सेवा का ठेका बहुत बड़ा लिया है। बड़े ठेकेदार हो ना।
  • छोटे-छोटे ठेकेदार तो बहुत हैं लेकिन बड़े ठेकेदार को बड़ा काम करना पड़ता है। (बाबा आज मुरली सुनते बहुत मजा आया) है ही मजा।
  • अच्छा है, आप लोग कैच करके औरों को क्लीयर कर सकते हो।
  • सभी तो एक जैसे कैच कर नहीं सकते।
  • जैसे जगदम्बा मुरली सुनकर क्लीयर करके, सहज करके सभी को धारण कराती रही, ऐसे अभी आप निमित्त हो।
  • कई नये-नये तो समझ भी नहीं सकते हैं।
  • लेकिन बापदादा सिर्फ सामने वालों को नहीं देखते।
  • जो बैठे हैं सभा में, उन्हें ही नहीं देखते, सभी को सामने रखते हैं।
  • फिर भी सामने अनन्य होते हैं तो उन्हों के प्रति निकलता है।
  • आप लोग तो पढ़कर भी कैच कर सकते हो। अच्छा!
  • वरदान:-
  • ( All Blessings of 2021)
  • व्यर्थ की लीकेज को समाप्त कर समर्थ बनने वाले कम खर्च बालानशीन भव
  • संगमयुग पर बापदादा द्वारा जो भी खजाने मिले हैं उन सर्व खजानों को व्यर्थ जाने से बचाओ तो कम खर्च बालानशीन बन जायेंगे।
  • व्यर्थ से बचाव करना अर्थात् समर्थ बनना।
  • जहाँ समर्थी है वहाँ व्यर्थ जाये - यह हो नहीं सकता।
  • अगर व्यर्थ की लीकेज है तो कितना भी पुरुषार्थ करो, मेहनत करो लेकिन शक्तिशाली बन नहीं सकते इसलिए लीकेज़ को चेक कर समाप्त करो तो व्यर्थ से समर्थ हो जायेंगे।
  • स्लोगन:-
  • (All Slogans of 2021)
  • प्रवृत्ति में रहते सम्पूर्ण पवित्र रहना - यही योगी व ज्ञानी तू आत्मा की चैलेन्ज है।