10-05-2021 प्रात:मुरली बापदादा मधुबन
मीठे बच्चे - सदा इसी खुशी में रहो कि स्वयं भगवान हमें टीचर बनकर पढ़ाते हैं, हम उनसे राजयोग सीख रहे हैं, प्रजा योग नहीं
प्रश्नः-
इस पढ़ाई की खूबी कौन सी है? तुम्हें कब तक पुरुषार्थ करना है?
उत्तर:-
यह पढ़ाई जो बहुत समय से करते आ रहे हैं, उनसे नये बच्चे तीखे चले जाते हैं।
यह भी खूबी है जो 3 मास के तीखी बुद्धि वाले (तीव्र पुरुषार्थी) नये बच्चे पुरानों से भी आगे जा सकते हैं।
तुम्हें पुरुषार्थ तब तक करना है जब तक पूरे पास न हो, कर्मातीत अवस्था न हो, सब हिसाब-किताब छूट न जायें।
|
-
ओम् शान्ति।
- बच्चे कहाँ बैठे हैं?
- बेहद के बाप के स्कूल में।
- बहुत ही ऊंचा नशा होना चाहिए बच्चों को।
- किसके बच्चों को?
- बेहद के बाप के बच्चों को अथवा रूहानी बच्चों को।
- बाप रूहों को ही पढ़ाते हैं।
- गुजराती वा मराठी को नहीं पढ़ाते हैं। वह तो नाम-रूप हो गया।
- बाप पढ़ाते ही हैं रूहों को।
- तुम बच्चे भी समझते हो हमारा बेहद का बाप वही है, जिसको भगवान कहते हैं।
- भगवानुवाच भी है जरूर परन्तु भगवान किसको कहा जाता है - यह समझते नहीं हैं।
- कहते भी हैं शिव परमात्मा नम:।
- परमात्मा तो एक ही है।
- वह है ऊंच ते ऊंच निराकार।
- तुमको कृष्ण भगवान नहीं पढ़ाते।
- न पढ़ाया था।
- तुम जानते हो हम आत्माओं का बाबा हमको पढ़ा रहे हैं।
- भगवान तो निराकार ही ठहरा।
- शिव के मन्दिर मे जाते हैं, उनकी पूजा भी करते हैं तो जरूर कोई चीज़ है।
- नाम-रूप से न्यारी कोई चीज़ थोड़ेही होती है।
- यह भी तुम अब समझते हो।
- सारी दुनिया में कोई भी नहीं जानते हैं।
- तुम भी अभी जानने लग पड़े हो।
- बहुत समय से जानते आये हो।
- ऐसे भी नहीं बहुत समय से आने वालों से नये तीखे नहीं जा सकते हैं।
- यह भी खूबी है।
- 3 मास के नये बच्चे भी बहुत तीखे हो सकते हैं।
- कहते हैं, बाबा इस आत्मा की बुद्धि बहुत तीखी है।
- नये जब सुनते हैं तो बड़े गद-गद होते हैं। हैं तो सब गॉडली स्टूडेन्ट।
- निराकार बाप ज्ञान का सागर पढ़ा रहे हैं।
- भगवानुवाच भी गाया हुआ है।
- परन्तु कब?
- वह भूल गये हैं।
- अभी तुम बच्चे जानते हो - ऐसे भी कोई होते हैं, जिनका बाप टीचर होता है।
- परन्तु वह सिर्फ एक ही सब्जेक्ट पढ़ायेंगे, दूसरी सब्जेक्ट लिए दूसरा टीचर पढ़ायेंगे।
- यहाँ तो बाप सब बच्चों का टीचर है।
- यह वन्डरफुल बात है।
- ढेर बच्चे हैं, जिनको निश्चय है शिवबाबा हमको पढ़ाते हैं।
- श्रीकृष्ण को बाबा कह नहीं सकते।
- कृष्ण को ऐसे टीचर, गुरू भी नहीं समझते।
- यह तो प्रैक्टिकल पढ़ा रहे हैं।
- तुम भिन्न-भिन्न प्रकार के स्टूडेन्ट्स बैठे हो।
- बाबा टीचर पढ़ाते हैं, जब तक तुम पास हो जाओ।
- कर्मातीत अवस्था को पा लो तब तक पुरूषार्थ करना है।
- कर्मो के हिसाब-किताब से छूटना है।
- तुम्हें अन्दर में बड़ी खुशी होनी चाहिए - बाबा हमको ऐसी दुनिया में ले जाते हैं और कोई ऐसे स्कूल होते नहीं जो बच्चे बैठे हों और समझें परमधाम निवासी बाबा आकर हमें पढ़ायेंगे।
- अभी तुम यहाँ बैठते हो तो समझते हो हमारा बेहद का बाबा हमको पढ़ाने के लिए आते हैं।
- तो अन्दर में बड़ी खुशी होनी चाहिए।
- बाबा हमको राजयोग सिखा रहे हैं।
- यह प्रजा योग नहीं, यह है राजयोग।
- इस याद से ही बच्चों को खुशी का पारा चढ़ना चाहिए।
- कितना बड़ा इम्तहान है और तुम बैठे कितने साधारण हो।
- जैसे मुसलमान लोग बच्चों को दरी पर बैठ पढ़ाते हैं।
- तुम इस निश्चय से यहाँ आते हो।
- अब बाप के सम्मुख बैठे हो।
- बाबा भी कहते हैं मैं ज्ञान का सागर हूँ।
- मैं कल्प-कल्प आकर राजयोग सिखाता हूँ।
- कृष्ण के 84 जन्म कहो वा ब्रह्मा के 84 जन्म कहो, बात एक ही है।
- ब्रह्मा सो श्रीकृष्ण है।
- यह बुद्धि में अच्छी रीति धारण करना है।
- बाप के साथ बड़ा लव रहना चाहिए।
- हम आत्मायें उस बाप के बच्चे हैं, परमपिता परमात्मा आकर हमको पढ़ाते हैं।
- कृष्ण तो हो न सके।
- ऐसे थोड़ेही कृष्ण ने पढ़ाया होगा।
- ताज आदि उतार कर आया होगा।
- अब पढ़ाने वाला तो बुजुर्ग चाहिए।
- बाप कहते हैं मैंने बुजुर्ग तन लिया है, यह फिक्स है।
- शिवबाबा ब्रह्मा द्वारा ही पढ़ाते हैं।
- कहते भी हैं बरोबर परमपिता परमात्मा ब्रह्मा द्वारा स्थापना करते हैं।
- अब ब्रह्मा कहाँ से आया, यह समझते नहीं हैं।
- बाप बैठ घड़ी-घड़ी बच्चों को सुजाग करते हैं।
- माया फिर सुला देती है।
- अब तुम सम्मुख बैठे हो, समझते हो कि मैं तुम्हारा रूहानी बाप हूँ।
- मुझे जानते हो ना।
- गाते भी हैं परमपिता परमात्मा ज्ञान के सागर हैं, पतित-पावन, दु:ख हर्ता, सुख कर्ता हैं।
- कृष्ण के लिए यह कभी नहीं कहेंगे।
- सबको इकट्ठा तो पढ़ा नहीं सकते।
- मधुबन में मुरली चलती है, वह फिर सब सेन्टर्स पर जाती है।
- तुम अभी सम्मुख हो।
- जानते हो कल्प पहले भी बाबा ने ऐसे पढ़ाया था।
- यही समय था जो पास्ट हो गया।
- वह फिर अभी प्रेजेन्ट होना है।
- भक्तिमार्ग की बातें तो अब छोड़ देनी हैं।
- अभी तुम्हारी ज्ञान से प्रीत, पढ़ाने वाले से प्रीत है।
- कोई-कोई जब टीचर से पढ़ते हैं तो उनको सौगात देते हैं।
- यह बाबा तो खुद ही सौगात देते हैं।
- यहाँ आकर साकार में बच्चों को देखते हैं, यह हमारे बच्चे हैं।
- यह भी बच्चों को ज्ञान है - सब 84 जन्म नहीं लेते हैं।
- कोई का एक जन्म तो भी उसमें सुख-दु:ख पास करेंगे।
- अभी तुम इन सब बातों को समझ गये हो।
- यह मनुष्य सृष्टि का सिजरा है।
- पहले नम्बर में हैं ब्रह्मा-सरस्वती, आदि देव, आदि देवी।
- पीछे फिर अनेक धर्म होते जाते हैं।
- वह है सर्व आत्माओं का बीज।
- बाकी सब हैं पत्ते।
- प्रजापिता ब्रह्मा सबका बाप है।
- इस समय प्रजापिता हाज़िर है।
- यह बैठ शूद्र से कनवर्ट कर ब्राह्मण बनाते हैं।
- ऐसे कोई कर न सके।
- बाप ही तुमको शूद्र से ब्राह्मण बनाए फिर देवता बनाने लिए पढ़ा रहे हैं।
- यह है ही सहज राजयोग की पढ़ाई।
- राजा जनक ने भी सेकण्ड में जीवनमुक्ति को पाया अर्थात् स्वर्गवासी बन गया।
- मनुष्य गाते तो रहते हैं परन्तु फिर भी समझा नहीं सकते।
- अब बाप कहते हैं बच्चे देही-अभिमानी बनो।
- तुम अशरीरी आये थे, फिर शरीर लेकर पार्ट बजाया।
- बरोबर 84 जन्म लिए हैं।
- बाप जो ट्रूथ है, वह सत्य ही बतायेंगे।
- राजधानी हुई ना।
- राजयोग एक थोड़ेही सीखेंगे।
- तुम सब अभी कांटों से फूल बन रहे हो।
- कांटा और फूल किसको कहते हैं - यह भी अब तुम समझ रहे हो।
- यह है ही छी-छी कांटों की दुनिया।
- हम 84 जन्मों का चक्र लगाए नर्कवासी हुए हैं।
- फिर से वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी रिपीट करेंगे।
- हम फिर से जरूर स्वर्गवासी बनेंगे।
- कल्प-कल्प हम बनते हैं।
- घड़ी-घड़ी यह याद करना है और नॉलेज समझानी है।
- यह लक्ष्मी-नारायण सूर्यवंशी थे।
- क्राइस्ट आया उनके पहले बहुत थोड़े थे, राजधानी नहीं थी।
- अब बाप आकर सतयुगी राजधानी स्थापन करते हैं।
- स्थापना होती ही है संगम पर।
- अभी तुम्हारी बुद्धि में है कि यह है - सच्चा-सच्चा कुम्भ का मेला।
- आत्मायें अनेक हैं, परमात्मा एक है।
- परमात्मा बाप बच्चों के पास आते हैं पावन बनाने।
- इसको ही संगमयुग का, कुम्भ का मेला कहा जाता है।
- अभी तुमको ज्ञान का तीसरा नेत्र मिला है।
- बाप आकर स्वर्गवासी बनाते हैं फिर नर्क पुरानी दुनिया का विनाश जरूर होना चाहिए।
- कल्प-कल्प विनाश होता ही है।
- नई सो पुरानी, पुरानी सो नई होती है।
- यह तो जरूर होगा।
- नई को स्वर्ग, पुरानी को नर्क कहा जाता है।
- अभी तो कितनी मनुष्यों की वृद्धि होती जाती है।
- अनाज नहीं मिलता है तो समझते हैं हम बहुत अनाज पैदा करेंगे, परन्तु बच्चे कितने पैदा होते रहते हैं।
- अनाज कहाँ से लायेंगे।
- अभी तुम बच्चों को यह खातिरी है कि ये सारी पुरानी दुनिया खत्म होनी है।
- मनुष्यों को यह ज्ञान अच्छा भी लगता है परन्तु बुद्धि में कुछ भी बैठता नहीं है।
- तुम्हारी बुद्धि में है नर्क के बाद स्वर्ग आयेगा।
- सतयुग के देवी-देवता होकर गये हैं।
- यह लक्ष्मी-नारायण भारत के मालिक थे, चित्र हैं।
- सतयुग में है आदि सनातन देवी-देवता धर्म।
- अभी अपने को देवता धर्म के कहलाते नहीं हैं, उसके बदले हिन्दू कह देते हैं।
- बच्चे अच्छी तरह जानते हैं कि हम यह (देवी-देवता) बन रहे हैं।
- बाबा हमको पढ़ा रहे हैं, इन आरगन्स द्वारा।
- बाबा कहते हैं - नहीं तो मैं तुमको पढ़ाऊं कैसे।
- आत्माओं को ही पढ़ाते हैं क्योंकि आत्मा में ही खाद पड़ती है।
- अभी तुमको सच्चा सोना बनना है, गोल्डन एज़ से सिलवर एज में आये अर्थात् चाँदी की खाद पड़ने से तुम चन्द्रवंशी बन जाते हो।
- सतयुग में गोल्डन एज में थे, वही फिर नीचे उतरते हैं फिर वृद्धि भी हो जाती है।
- अभी तुम्हारी बुद्धि में है - हम गोल्डन, सिलवर, कॉपर, आइरन में 84 का चक्र लगाकर आये हैं।
- अनेक बार यह पार्ट बजाया है, इस पार्ट से कोई भी छूट नहीं सकता है।
- वो कहते हैं, हमको मोक्ष चाहिए लेकिन वास्तव में तंग तो तुमको होना चाहिए।
- 84 का चक्र तो तुमने लगाया है।
- मनुष्य तो समझते हैं आना और जाना होता ही रहता है, इनसे क्यों न हम छूटें।
- परन्तु यह तो हो न सके।
- गुरू लोग भी कह देते हैं - तुम मोक्ष को पायेंगे।
- ब्रह्म को याद करो तो ब्रह्म में लीन हो जायेंगे।
- अनेक मत-मतान्तर भारत में ही हैं और कोई खण्ड में इतने नहीं हैं।
- ढेर की ढेर मत हैं, एक न मिले दूसरे से।
- रिद्धि-सिद्धि भी बहुत सीखते हैं।
- कोई केसर निकालते, कोई क्या... इसमें मनुष्य बहुत खुश होते हैं।
- यह तो है स्प्रीचुअल नॉलेज।
- तुम जानते हो - स्प्रीचुअल फादर है, हम आत्माओं का बाप।
- रूहानी बाबा रूहों से बात करते हैं।
- सत्य नारायण की कथा आकर सुनाते हैं वा अमरकथा सुनाते हैं, जिससे अमरलोक का मालिक बनाते हैं, नर से नारायण बनाते हैं।
- फिर कौड़ी मिसल बन पड़ते हैं।
- अभी तुमको हीरे जैसा अनमोल जन्म मिला है फिर कौड़ियों पिछाड़ी क्यों गँवाते हो।
- यह दुनिया ही बाकी कितने वर्ष होगी!
- कितने लड़ाई-झगड़े होते रहते हैं, सब खत्म हो जायेंगे।
- मौत सामने खड़ा है फिर इतने लाख, करोड़ कौन बैठ खायेंगे।
- क्यों नहीं इनको सफल करना चाहिए!
- यह रूहानी कॉलेज खोलने से मनुष्य एवरहेल्दी, वेल्दी, हैपी बन जाते हैं।
- सो भी यह कम्बाइन्ड है - हॉस्पिटल और युनिवर्सिटी।
- हेल्थ, वेल्थ, हैपीनेस तो है ही।
- बरोबर योग से आयु भी बड़ी मिलती है।
- कितने तुम हेल्दी बनते हो, फिर कारून का खजाना भी मिलता है।
- अल्लाह अवलदीन का नाटक दिखाते हैं ना।
- तुम जानते हो अल्लाह जो आदि सनातन देवी-देवता धर्म स्थापन करते हैं, उसमें बहुत सुख है।
- नाम ही है स्वर्ग।
- तुम शान्तिधाम के रहवासी थे फिर तुम पहले-पहले सुखधाम में आये फिर 84 जन्म लेते नीचे गिरते आये हो।
- कल्प-कल्प हम तुम बच्चों को ऐसे बैठ समझाते हैं।
- तुम अपने जन्मों को नहीं जानते हो, मैं तुमको बताता हूँ।
- तुमने 84 जन्म लिए हैं, यह चोला पतित है।
- आत्मा भी तमोप्रधान हो गई है।
- बाबा राइट कहते हैं।
- बाबा कभी रांग कहेंगे नहीं।
- वह है ही ट्रूथ।
- सतयुग है ही वाइसलेस वर्ल्ड, राइटियस दुनिया।
- फिर रावण अनराइटियस बनाते हैं।
- यह है ही झूठ खण्ड।
- गाते भी हैं झूठी माया, झूठी काया... कौन सा संसार?
- यह सारा पुराना संसार झूठा है।
- सतयुग में सच्चा संसार था।
- दुनिया एक ही है, दो दुनिया नहीं हैं।
- नई दुनिया से फिर पुरानी होती है।
- नये मकान, पुराने मकान में फ़र्क तो होता है।
- नया बनकर तैयार होता है तो समझते हैं नये में बैठेंगे।
- यहाँ भी बच्चों के लिए नया मकान बनाते हैं, बहुत बच्चे होते जायेंगे।
- तुम बच्चों को तो बहुत खुशी होनी चाहिए।
- बाप कहते हैं मुझ ज्ञान सागर के बच्चे सब काम-चिता पर बैठ बिचारे एकदम जल गये हैं।
- अब फिर उनको ज्ञान चिता पर बिठाते हैं।
- ज्ञान-चिता पर बिठाए स्वर्ग का मालिक बनाते हैं।
- काम-चिता पर बैठने से बिल्कुल ही काले बन गये हैं।
- कृष्ण को श्याम-सुन्दर नाम दिया है।
- परन्तु अर्थ कोई समझ नहीं सकते।
- अब तुम क्या से क्या बनते हो!
- बाप कौड़ी से हीरे मिसल बनाते हैं तो फिर इतना अटेन्शन देना चाहिए।
- बाप को याद करना चाहिए।
- याद से ही तुम स्वर्ग के मालिक बनेंगे।
- अच्छा।
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
- धारणा के लिए मुख्य सार:-
- 1) इस हीरे तुल्य अनमोल जीवन को कौड़ियों के पीछे नहीं गँवाना है।
- मौत सामने खड़ा है इसलिए अपना सब कुछ रूहानी सेवा में सफल करना है।
- 2) पढ़ाई और पढ़ाने वाले से सच्ची प्रीत रखनी है।
- भगवान हमको पढ़ाने आते हैं, इस खुशी में रहना है।
- वरदान:-
- ( All Blessings of 2021)
- अधिकारीपन की स्मृति द्वारा सर्व शक्तियों का अनुभव करने वाले प्राप्ति स्वरूप भव
- यदि बुद्धि का संबंध सदा एक बाप से लगा हुआ रहे तो सर्व शक्तियों का वर्सा अधिकार के रूप में प्राप्त होता है।
- जो अधिकारी समझकर हर कर्म करते हैं उन्हें कहने वा संकल्प में भी मांगने की आवश्यकता नहीं रहती।
- यह अधिकारी पन की स्मृति ही सर्व शक्तियों के प्राप्ति का अनुभव कराती है।
- तो नशा रहे कि सर्व शक्तियां हमारा जन्म-सिद्ध अधिकार हैं।
- अधिकारी बन करके चलो तो अधीनता समाप्त हो जायेगी।
- स्लोगन:-
- (All Slogans of 2021)
- स्वयं के साथ-साथ प्रकृति को भी पावन बनाना है तो सम्पूर्ण लगाव मुक्त बनो।
|