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ओम् शान्ति।
- यह गीत किसने गाया?
- बच्चों ने क्योंकि बाप तो एक ही है, उसको ही रचयिता कहा जाता है।
- रचना, रचयिता को पुकारती है।
- बाबा ने समझाया है - भक्ति मार्ग में तो तुमको दो बाप हैं।
- एक लौकिक, दूसरा है पारलौकिक।
- सभी आत्माओं का बाप एक ही है।
- एक बाप होने से सभी आत्मायें अपने को ब्रदर्स कहते हैं।
- उस बाप को पुकारते हैं ओ गॉड फादर, ओ परमपिता रहम करो, क्षमा करो।
- भक्तों का रक्षक एक भगवान ही है।
- पहले-पहले तो यह समझाना चाहिए कि हमको दो बाप हैं।
- अब पारलौकिक बाप तो सभी का एक है।
- बाकी लौकिक बाप हर एक का अलग-अलग है।
- अब लौकिक बाप बड़ा वा पारलौकिक बाप बड़ा?
- लौकिक बाप को तो कभी भगवान वा परमपिता नहीं कहेंगे।
- आत्मा का बाप एक ही परमपिता परमात्मा है।
- आत्मा का नाम कभी बदलता नहीं है।
- शरीर का नाम बदलता है।
- आत्मा भिन्न-भिन्न शरीर ले पार्ट बजाती है अर्थात् पुनर्जन्म लेती है।
- आखिर भी कितने जन्म मिलते हैं।
- सो बाप ही आकर समझाते हैं।
- बच्चे तुम अपने जन्मों को नहीं जानते हो।
- बाप आते ही भारत में हैं, उनका नाम शिव है।
- समझते भी हैं शिव परमात्मा है।
- शिव जयन्ती वा शिवरात्रि भी मनाते हैं।
- वह निराकार है।
- जैसे आत्मा भी निराकार है, निराकार से साकार में आते हैं पार्ट बजाने।
- अब निराकार शिव तो शरीर बिगर पार्ट बजा न सके।
- मनुष्य इन बातों को कुछ भी नहीं समझते हैं, नयन हीन हैं।
- यह शरीर के दो नेत्र तो सबको हैं।
- तीसरा ज्ञान का नेत्र आत्मा को नहीं है, जिसको दिव्य-चक्षु भी कहते हैं।
- आत्मा अपने बाप को भूल गई है, इसलिए पुकारते हैं नयन हीन को राह बताओ।
- कहाँ की राह?
- शान्तिधाम और सुखधाम की।
- सर्व का सद्गति दाता, सतगुरू एक ही है।
- मनुष्य, मनुष्य का गुरू बन सद्गति दे नहीं सकता।
- न खुद सद्गति पाते हैं, न औरों को देते हैं।
- एक बाप ही सर्व को सद्गति देते हैं।
- उस अल्फ बाप को ही याद करना है।
- बाप समझाते हैं - कोई भी मनुष्य-मात्र मुक्ति-जीवनमुक्ति, शान्ति और सुख सदाकाल के लिए दे नहीं सकते।
- सुख-शान्ति का वरदान तो एक बाप ही दे सकते हैं।
- मनुष्य, मनुष्य को नहीं दे सकते।
- भारतवासी सतोप्रधान थे तो सतयुगी स्वर्गवासी थे।
- आत्मा पवित्र थी।
- भारत को स्वर्ग कहा जाता है जबकि आत्मायें पवित्र, सतोप्रधान थीं।
- तुम जानते हो, बरोबर आज से 5 हजार वर्ष पहले भारत स्वर्ग, सतोप्रधान था।
- इन लक्ष्मी-नारायण का राज्य था।
- अभी कलियुग का भी अन्त है, इसको नर्क कहा जाता है।
- यही भारत स्वर्ग था तो बहुत धनवान था। हीरे-जवाहरों के महल थे।
- बाप बच्चों को याद दिलाते हैं।
- सतयुग आदि में इन लक्ष्मी-नारायण की राजधानी थी।
- उसको स्वर्ग बैकुण्ठ कहा जाता है।
- अभी तो स्वर्ग है नहीं, यह बाप समझाते हैं।
- बाबा भारत में ही आते हैं।
- निराकार शिव की जयन्ती भी मनाते हैं, परन्तु वह क्या करते हैं, यह कोई नहीं जानते।
- हम आत्माओं का बाप शिव है, उनकी हम जयन्ती मनाते हैं।
- बाप की बायोग्राफी को भी नहीं जानते।
- गाया भी जाता है - दु:ख में सिमरण सब करें।
- पुकारते हैं ओ गॉड फादर रहम करो।
- हम बहुत दु:खी हैं क्योंकि यह रावण राज्य है।
- वर्ष-वर्ष रावण को जलाते हैं ना।
- परन्तु यह किसको पता नहीं कि 10 शीश वाला रावण क्या चीज़ है।
- हम उनको जलाते क्यों हैं, यह कौन सा दुश्मन है जो उनकी एफीज़ी बनाए जलाते हैं।
- भारतवासी बिल्कुल नहीं जानते क्योंकि ज्ञान का तीसरा नेत्र नहीं है तब तो रामराज्य माँगते हैं।
- 5 विकार स्त्री में, 5 विकार पुरूष में हैं इसलिए इनको रावण सम्प्रदाय कहा जाता है।
- यह रावण 5 विकार ही बड़े से बड़ा दुश्मन है, जिसका एफीजी बनाए जलाते हैं।
- भारतवासियों को यह पता नहीं पड़ता कि रावण है कौन, जिसको जलाते हैं।
- यह रावण राज्य कब से शुरू हुआ, यह भी किसको पता नहीं हैं।
- बाप समझाते हैं - रामराज्य - सतयुग, त्रेता।
- रावण राज्य - द्वापर, कलियुग।
- सतयुग में इन लक्ष्मी-नारायण का राज्य था, इन्हों को यह राज्य कहाँ से, कैसे मिला, यह कोई नहीं जानते।
- यह समझने की बातें है।
- इसमें अटेन्शन देना पड़ता है।
- मोस्ट बिलवेड बाप है तब तो उनको भक्ति मार्ग में भी पुकारते हैं।
- भारत में जब इन्हों का (लक्ष्मी-नारायण का) राज्य था तो दु:ख का नाम नहीं था।
- अभी दु:खधाम है, कितने अनेक धर्म हैं।
- सतयुग में एक धर्म था, इतनी सब आत्मायें कहाँ चली जायेंगी, किसको पता नहीं है क्योंकि नयनहीन हैं।
- शास्त्रों से ज्ञान का तीसरा नेत्र किसको नहीं मिलता है।
- ज्ञान नेत्र ज्ञान सागर परमपिता परमात्मा ही देते हैं।
- आत्मा को तीसरा नेत्र मिलता है।
- आत्मा भूल गई कि हमने कितने जन्म लिए हैं।
- सतयुग में जो देवी-देवताओं का राज्य था, वह कहाँ गया?
- गाते भी हैं मनुष्य 84 जन्म लेते हैं।
- 84 का चक्र कहते हैं।
- परन्तु कौन सी आत्मा 84 जन्म लेती है?
- जो पहले भारत में आते हैं वह थे देवी-देवता।
- फिर 84 जन्म भोग अन्त में पतित बन जाते हैं।
- गाते भी हैं - हे पतित-पावन, तो सिद्ध करते हैं हम पतित हैं इसलिए पुकारते हैं, हे पतित-पावन हमें पावन बनाने आओ।
- जो खुद ही पतित हैं वह फिर औरों को पावन कैसे बनायेंगे।
- बाप समझाते हैं आधाकल्प भक्ति मार्ग में रावण राज्य, 5 विकार होने कारण भारत ने इतना दु:ख को पाया है।
- 84 जन्म तो लेते ही हैं।
- उनका भी हिसाब समझाना चाहिए।
- पहले-पहले सतयुग में हैं सतोप्रधान, फिर त्रेता में हैं सतो....आत्मा में खाद पड़ती है।
- बाप आते ही भारत में हैं।
- शिव जयन्ती है ना।
- और सभी आत्मायें तो गर्भ में जन्म लेती हैं।
- बाप कहते हैं - मैं साधारण बूढ़े तन में प्रवेश करता हूँ, जिनका यह बहुत जन्मों के अन्त का जन्म है।
- यह समझानी कोई एक को नहीं दी जाती।
- यह गीता पाठशाला है।
- मनुष्य को देवता बनाने के लिए यह राजयोग सिखाया जाता है।
- तुम यहाँ आये हो स्वर्ग की बादशाही प्राप्त करने जो बाप ही दे सकते हैं।
- गीता पढ़ने से कोई राजा बनते नहीं हैं और ही रंक बनते जाते हैं।
- बाप गीता का ज्ञान सुनाए राजा बनाते हैं, औरों द्वारा गीता सुनने से रंक बन गये हैं।
- भारत में जब इन लक्ष्मी-नारायण का राज्य था तो प्योरिटी-पीस-प्रासपर्टी थी, पवित्र गृहस्थ आश्रम था।
- वहाँ हिंसा का नाम नहीं था फिर द्वापर से लेकर हिंसा शुरू हुई है।
- काम कटारी चलाते-चलाते तुम्हारी यह हालत आकर हुई है।
- सतयुग में 100 परसेन्ट सालवेन्ट थे, सतोप्रधान थे।
- यह राज़ कोई भी मनुष्य अथवा साधू-सन्त आदि नहीं जानते।
- बाप जो ज्ञान का सागर, पतित-पावन है वही आकर सतोप्रधान बनने की युक्ति बताते हैं।
- रावण की मत पर मनुष्यों का देखो क्या हाल हो गया है।
- राजे लोग भी, वह जो पवित्र राजायें होकर गये हैं उन्हों के चरणों में जाकर पड़ते हैं और महिमा गाते हैं - आप सर्वगुण सम्पन्न, हम नींच पापी हैं।
- हमारे में कोई गुण नहीं हैं फिर कहते हैं, आपेही तरस परोई।
- हमको आकर मन्दिर लायक बनाओ।
- किसकी भी समझ में नहीं आता कि बाप कैसे आकर फिर से देवी-देवता धर्म की स्थापना कराते हैं।
- अब तुम समझते हो हम सो देवी-देवता धर्म के थे।
- हम सो क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र बनें, इतने जन्म लिए अब 84 जन्म पूरे हुए हैं।
- फिर दुनिया का चक्र फिरना चाहिए इसलिए फिर तुमको पावन यहाँ बनना है।
- पतित तो सुखधाम, शान्तिधाम में नहीं जा सकते।
- बाप समझाते हैं तुम जो सतोप्रधान थे वह तमोप्रधान बने हो।
- गोल्डन एज़ से फिर आइरन एज़ में आये हो फिर गोल्डन एज़ेड बनना है तब मुक्तिधाम, सुखधाम में जा सकेंगे।
- भारत सुखधाम था।
- अब दु:खधाम है।
- गीत में भी सुना - हम नयन हीन को राह बताओ.... हम अपने शान्तिधाम में कैसे जायें।
- वो लोग तो कह देते हैं - परमात्मा सर्वव्यापी है, फलाना अवतार है, परशुराम अवतार है।
- अब बाप परशुराम बन किसको मारते होंगे क्या?
- हो नहीं सकता।
- बाप समझाते हैं तुमने इस चक्र में कैसे 84 जन्म लिए हैं।
- अब मुझ अल्फ़ को याद करो।
- हे आत्मायें देही-अभिमानी बनो।
- देह-अभिमानी बन तुम बिल्कुल ही दु:खी कंगाल, नर्कवासी बन पड़े हो।
- अगर स्वर्गवासी बनना है तो आत्म-अभिमानी जरूर बनना है।
- आत्मा ही एक शरीर छोड़ दूसरा लेती है।
- अब 84 जन्म पूरे हुए हैं फिर सतयुग आदि में जाना है।
- अब मुझे याद करो और संग बुद्धियोग तोड़ो।
- रहो भल गृहस्थ व्यवहार में, अपने को आत्मा निश्चय करो।
- आत्मा एक शरीर छोड़ दूसरा लेती है।
- अब देही-अभिमानी बनना है, मुझे याद करो तो खाद सब जल जायेगी।
- तुम पवित्र बन जायेंगे फिर मैं सब बच्चों को ले जाऊंगा।
- अगर मेरी मत पर नहीं चलेंगे तो इतना ऊंच पद नहीं पायेंगे।
- इन लक्ष्मी-नारायण का ऊंच पद है।
- जब इन्हों का राज्य था तो और कोई धर्म नहीं था।
- द्वापर से फिर और धर्म आते हैं।
- सतयुग में मनुष्य भी थोड़े होते हैं।
- अब तो बहुत धर्म होने के कारण कितने दु:खी हो गये हैं।
- वही देवता धर्म वाले अब फिर पतित होने से अपने को देवता कहते नहीं हैं।
- हिन्दू नाम रख दिया है।
- हिन्दू तो कोई धर्म नहीं है।
- बाप समझाते हैं रावण ने तुमको ऐसा बना दिया है।
- तुम जब लायक देवी-देवता थे तब सारे विश्व पर राज्य था, सब सुखी थे।
- अब दु:खी बन पड़े हैं।
- भारत हेविन था वो अब हेल बन गया है फिर हेल को हेविन बाप बिगर कोई बना न सके।
- देवताओं को सम्पूर्ण निर्विकारी कहा जाता है।
- यहाँ के मनुष्य तो सम्पूर्ण विकारी हैं, इनको कहा जाता है पतित।
- भारत शिवालय था, शिवबाबा की स्थापना की हुई थी।
- बाप स्वर्ग बनाते हैं फिर रावण नर्क बनाते हैं।
- रावण श्राप देते हैं, बाप 21 जन्म के लिए वर्सा देते हैं।
- अब तुम हर एक बाप को ही याद करो, कोई भी देहधारी को नहीं।
- देहधारी को भगवान नहीं कहा जाता।
- भगवान तो एक ही है।
- बाप तो बेहद का वर्सा देते हैं फिर रावण श्रापित बना देते हैं।
- इस समय भारत श्रापित है, बहुत दु:खी है।
- अब इस रावण पर जीत पानी है।
- गाया भी जाता है दे दान तो छूटे ग्रहण।
- वो ग्रहण जो लगता है वह तो पृथ्वी का परछाया है।
- अब बाप कहते हैं तुम्हारे ऊपर 5 विकारों रूपी रावण का ग्रहण है।
- यह 5 विकार दान में दे देने हैं।
- पहला तो दान दो कि हम कभी विकार में नहीं जायेंगे।
- यह काम-कटारी ही मनुष्य को पतित बनाती है।
- अच्छा।
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
- धारणा के लिए मुख्य सार:-
- 1) बाप जो नॉलेज देते हैं उसे पूरा अटेन्शन देकर पढ़ना है।
- ज्ञान के तीसरे नेत्र से अपने 84 जन्मों को जान अब अन्तिम जन्म में पावन बनना है।
- 2) रावण के श्राप से बचने के लिए एक बाप की याद में रहना है।
- 5 विकारों का दान दे देना है।
- एक बाप की मत पर चलना है।
- वरदान:-
- ( All Blessings of 2021)
- अपनी स्मृति, वृत्ति और दृष्टि को अलौकिक बनाने वाले सर्व आकर्षणों से मुक्त भव
- कहा जाता है -"जैसे संकल्प वैसी सृष्टि'' जो नई सृष्टि रचने के निमित्त विशेष आत्मायें हैं उनका एक-एक संकल्प श्रेष्ठ अर्थात् अलौकिक होना चाहिए।
- जब स्मृति-वृत्ति और दृष्टि सब अलौकिक हो जाती है तो इस लोक का कोई भी व्यक्ति वा कोई भी वस्तु अपनी ओर आकर्षित नहीं कर सकती।
- अगर आकर्षित करती है तो जरूर अलौकिकता में कमी है।
- अलौकिक आत्मायें सर्व आकर्षणों से मुक्त होंगी।
- स्लोगन:-
- (All Slogans of 2021)
- दिल में परमात्म प्यार वा शक्तियां समाई हुई हों तो मन में उलझन आ नहीं सकती।
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