11-05-2021 प्रात:मुरली बापदादा मधुबन

मीठे बच्चे - सुख-शान्ति का वरदान एक बाप से ही मिलता है, कोई देहधारी से नहीं, बाबा आये हैं - तुम्हें मुक्ति-जीवनमुक्ति की राह दिखाने

प्रश्नः-

बाप के साथ जाने और सतयुग आदि में आने का पुरुषार्थ क्या है?

उत्तर:-

बाप के साथ जाना है तो पूरा पवित्र बनना है।

सतयुग आदि में आने के लिए और संग बुद्धियोग तोड़ एक बाप की याद में रहना है।

आत्म-अभिमानी जरूर बनना है।

एक बाप की मत पर चलेंगे तो ऊंच पद का अधिकार मिल जायेगा।

गीत:- नयन हीन को राह दिखाओ....

 

गीत:- नयन हीन को राह दिखाओ....


  • ओम् शान्ति।
  • यह गीत किसने गाया?
    • बच्चों ने क्योंकि बाप तो एक ही है, उसको ही रचयिता कहा जाता है।
    • रचना, रचयिता को पुकारती है।
  • बाबा ने समझाया है - भक्ति मार्ग में तो तुमको दो बाप हैं।
    • एक लौकिक, दूसरा है पारलौकिक।
    • सभी आत्माओं का बाप एक ही है।
    • एक बाप होने से सभी आत्मायें अपने को ब्रदर्स कहते हैं।
    • उस बाप को पुकारते हैं ओ गॉड फादर, ओ परमपिता रहम करो, क्षमा करो।
    • भक्तों का रक्षक एक भगवान ही है।
    • पहले-पहले तो यह समझाना चाहिए कि हमको दो बाप हैं।
    • अब पारलौकिक बाप तो सभी का एक है।
    • बाकी लौकिक बाप हर एक का अलग-अलग है।
    • अब लौकिक बाप बड़ा वा पारलौकिक बाप बड़ा?
    • लौकिक बाप को तो कभी भगवान वा परमपिता नहीं कहेंगे।
  • आत्मा का बाप एक ही परमपिता परमात्मा है।

    • आत्मा का नाम कभी बदलता नहीं है।
    • शरीर का नाम बदलता है।
    • आत्मा भिन्न-भिन्न शरीर ले पार्ट बजाती है अर्थात् पुनर्जन्म लेती है।
    • आखिर भी कितने जन्म मिलते हैं।
    • सो बाप ही आकर समझाते हैं।
    • बच्चे तुम अपने जन्मों को नहीं जानते हो।
  • बाप आते ही भारत में हैं, उनका नाम शिव है।

    • समझते भी हैं शिव परमात्मा है।
    • शिव जयन्ती वा शिवरात्रि भी मनाते हैं।
    • वह निराकार है।
    • जैसे आत्मा भी निराकार है, निराकार से साकार में आते हैं पार्ट बजाने।
    • अब निराकार शिव तो शरीर बिगर पार्ट बजा न सके।
    • मनुष्य इन बातों को कुछ भी नहीं समझते हैं, नयन हीन हैं।
    • यह शरीर के दो नेत्र तो सबको हैं।
    • तीसरा ज्ञान का नेत्र आत्मा को नहीं है, जिसको दिव्य-चक्षु भी कहते हैं।
  • आत्मा अपने बाप को भूल गई है, इसलिए पुकारते हैं नयन हीन को राह बताओ।
    • कहाँ की राह?
    • शान्तिधाम और सुखधाम की।
    • सर्व का सद्गति दाता, सतगुरू एक ही है।
    • मनुष्य, मनुष्य का गुरू बन सद्गति दे नहीं सकता।
    • न खुद सद्गति पाते हैं, न औरों को देते हैं।
    • एक बाप ही सर्व को सद्गति देते हैं।
    • उस अल्फ बाप को ही याद करना है।
    • बाप समझाते हैं - कोई भी मनुष्य-मात्र मुक्ति-जीवनमुक्ति, शान्ति और सुख सदाकाल के लिए दे नहीं सकते।
    • सुख-शान्ति का वरदान तो एक बाप ही दे सकते हैं।
    • मनुष्य, मनुष्य को नहीं दे सकते।
  • भारतवासी सतोप्रधान थे तो सतयुगी स्वर्गवासी थे।
    • आत्मा पवित्र थी।
    • भारत को स्वर्ग कहा जाता है जबकि आत्मायें पवित्र, सतोप्रधान थीं।
    • तुम जानते हो, बरोबर आज से 5 हजार वर्ष पहले भारत स्वर्ग, सतोप्रधान था।
    • इन लक्ष्मी-नारायण का राज्य था।
    • अभी कलियुग का भी अन्त है, इसको नर्क कहा जाता है।
    • यही भारत स्वर्ग था तो बहुत धनवान था। हीरे-जवाहरों के महल थे।
    • बाप बच्चों को याद दिलाते हैं।
    • सतयुग आदि में इन लक्ष्मी-नारायण की राजधानी थी।
    • उसको स्वर्ग बैकुण्ठ कहा जाता है।
    • अभी तो स्वर्ग है नहीं, यह बाप समझाते हैं।
  • बाबा भारत में ही आते हैं।
    • निराकार शिव की जयन्ती भी मनाते हैं, परन्तु वह क्या करते हैं, यह कोई नहीं जानते।
    • हम आत्माओं का बाप शिव है, उनकी हम जयन्ती मनाते हैं।
    • बाप की बायोग्राफी को भी नहीं जानते।
    • गाया भी जाता है - दु:ख में सिमरण सब करें।
    • पुकारते हैं ओ गॉड फादर रहम करो।
    • हम बहुत दु:खी हैं क्योंकि यह रावण राज्य है।
  • वर्ष-वर्ष रावण को जलाते हैं ना।

    • परन्तु यह किसको पता नहीं कि 10 शीश वाला रावण क्या चीज़ है।
    • हम उनको जलाते क्यों हैं, यह कौन सा दुश्मन है जो उनकी एफीज़ी बनाए जलाते हैं।
    • भारतवासी बिल्कुल नहीं जानते क्योंकि ज्ञान का तीसरा नेत्र नहीं है तब तो रामराज्य माँगते हैं।
    • 5 विकार स्त्री में, 5 विकार पुरूष में हैं इसलिए इनको रावण सम्प्रदाय कहा जाता है।
    • यह रावण 5 विकार ही बड़े से बड़ा दुश्मन है, जिसका एफीजी बनाए जलाते हैं।
    • भारतवासियों को यह पता नहीं पड़ता कि रावण है कौन, जिसको जलाते हैं।
    • यह रावण राज्य कब से शुरू हुआ, यह भी किसको पता नहीं हैं।
  • बाप समझाते हैं - रामराज्य - सतयुग, त्रेता।

    • रावण राज्य - द्वापर, कलियुग।
    • सतयुग में इन लक्ष्मी-नारायण का राज्य था, इन्हों को यह राज्य कहाँ से, कैसे मिला, यह कोई नहीं जानते।
    • यह समझने की बातें है।
    • इसमें अटेन्शन देना पड़ता है।
      • मोस्ट बिलवेड बाप है तब तो उनको भक्ति मार्ग में भी पुकारते हैं।
    • भारत में जब इन्हों का (लक्ष्मी-नारायण का) राज्य था तो दु:ख का नाम नहीं था।
    • अभी दु:खधाम है, कितने अनेक धर्म हैं।
    • सतयुग में एक धर्म था, इतनी सब आत्मायें कहाँ चली जायेंगी, किसको पता नहीं है क्योंकि नयनहीन हैं।
    • शास्त्रों से ज्ञान का तीसरा नेत्र किसको नहीं मिलता है।
    • ज्ञान नेत्र ज्ञान सागर परमपिता परमात्मा ही देते हैं।
    • आत्मा को तीसरा नेत्र मिलता है।
    • आत्मा भूल गई कि हमने कितने जन्म लिए हैं।
    • सतयुग में जो देवी-देवताओं का राज्य था, वह कहाँ गया?
  • गाते भी हैं मनुष्य 84 जन्म लेते हैं।

    • 84 का चक्र कहते हैं।
    • परन्तु कौन सी आत्मा 84 जन्म लेती है?
    • जो पहले भारत में आते हैं वह थे देवी-देवता।
    • फिर 84 जन्म भोग अन्त में पतित बन जाते हैं।
    • गाते भी हैं - हे पतित-पावन, तो सिद्ध करते हैं हम पतित हैं इसलिए पुकारते हैं, हे पतित-पावन हमें पावन बनाने आओ।
    • जो खुद ही पतित हैं वह फिर औरों को पावन कैसे बनायेंगे।
    • बाप समझाते हैं आधाकल्प भक्ति मार्ग में रावण राज्य, 5 विकार होने कारण भारत ने इतना दु:ख को पाया है।
    • 84 जन्म तो लेते ही हैं।
    • उनका भी हिसाब समझाना चाहिए।
    • पहले-पहले सतयुग में हैं सतोप्रधान, फिर त्रेता में हैं सतो....आत्मा में खाद पड़ती है।
  • बाप आते ही भारत में हैं।
    • शिव जयन्ती है ना।
    • और सभी आत्मायें तो गर्भ में जन्म लेती हैं।
    • बाप कहते हैं - मैं साधारण बूढ़े तन में प्रवेश करता हूँ, जिनका यह बहुत जन्मों के अन्त का जन्म है।
      • यह समझानी कोई एक को नहीं दी जाती।
  • यह गीता पाठशाला है।
    • मनुष्य को देवता बनाने के लिए यह राजयोग सिखाया जाता है।
    • तुम यहाँ आये हो स्वर्ग की बादशाही प्राप्त करने जो बाप ही दे सकते हैं।
    • गीता पढ़ने से कोई राजा बनते नहीं हैं और ही रंक बनते जाते हैं।
    • बाप गीता का ज्ञान सुनाए राजा बनाते हैं, औरों द्वारा गीता सुनने से रंक बन गये हैं।
  • भारत में जब इन लक्ष्मी-नारायण का राज्य था तो प्योरिटी-पीस-प्रासपर्टी थी, पवित्र गृहस्थ आश्रम था।

    • वहाँ हिंसा का नाम नहीं था फिर द्वापर से लेकर हिंसा शुरू हुई है।
    • काम कटारी चलाते-चलाते तुम्हारी यह हालत आकर हुई है।
    • सतयुग में 100 परसेन्ट सालवेन्ट थे, सतोप्रधान थे।
    • यह राज़ कोई भी मनुष्य अथवा साधू-सन्त आदि नहीं जानते।
    • बाप जो ज्ञान का सागर, पतित-पावन है वही आकर सतोप्रधान बनने की युक्ति बताते हैं।
    • रावण की मत पर मनुष्यों का देखो क्या हाल हो गया है।
    • राजे लोग भी, वह जो पवित्र राजायें होकर गये हैं उन्हों के चरणों में जाकर पड़ते हैं और महिमा गाते हैं - आप सर्वगुण सम्पन्न, हम नींच पापी हैं।
    • हमारे में कोई गुण नहीं हैं फिर कहते हैं, आपेही तरस परोई।
    • हमको आकर मन्दिर लायक बनाओ।
  • किसकी भी समझ में नहीं आता कि बाप कैसे आकर फिर से देवी-देवता धर्म की स्थापना कराते हैं।
    • अब तुम समझते हो हम सो देवी-देवता धर्म के थे।
    • हम सो क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र बनें, इतने जन्म लिए अब 84 जन्म पूरे हुए हैं।
    • फिर दुनिया का चक्र फिरना चाहिए इसलिए फिर तुमको पावन यहाँ बनना है।
    • पतित तो सुखधाम, शान्तिधाम में नहीं जा सकते।
    • बाप समझाते हैं तुम जो सतोप्रधान थे वह तमोप्रधान बने हो।
    • गोल्डन एज़ से फिर आइरन एज़ में आये हो फिर गोल्डन एज़ेड बनना है तब मुक्तिधाम, सुखधाम में जा सकेंगे।
  • भारत सुखधाम था।
    • अब दु:खधाम है।
    • गीत में भी सुना - हम नयन हीन को राह बताओ.... हम अपने शान्तिधाम में कैसे जायें।
    • वो लोग तो कह देते हैं - परमात्मा सर्वव्यापी है, फलाना अवतार है, परशुराम अवतार है।
    • अब बाप परशुराम बन किसको मारते होंगे क्या?
    • हो नहीं सकता।
    • बाप समझाते हैं तुमने इस चक्र में कैसे 84 जन्म लिए हैं।
    • अब मुझ अल्फ़ को याद करो।
    • हे आत्मायें देही-अभिमानी बनो।
    • देह-अभिमानी बन तुम बिल्कुल ही दु:खी कंगाल, नर्कवासी बन पड़े हो।
    • अगर स्वर्गवासी बनना है तो आत्म-अभिमानी जरूर बनना है।
    • आत्मा ही एक शरीर छोड़ दूसरा लेती है।
    • अब 84 जन्म पूरे हुए हैं फिर सतयुग आदि में जाना है।
  • अब मुझे याद करो और संग बुद्धियोग तोड़ो।

    • रहो भल गृहस्थ व्यवहार में, अपने को आत्मा निश्चय करो।
    • आत्मा एक शरीर छोड़ दूसरा लेती है।
    • अब देही-अभिमानी बनना है, मुझे याद करो तो खाद सब जल जायेगी।
    • तुम पवित्र बन जायेंगे फिर मैं सब बच्चों को ले जाऊंगा।
    • अगर मेरी मत पर नहीं चलेंगे तो इतना ऊंच पद नहीं पायेंगे।
  • इन लक्ष्मी-नारायण का ऊंच पद है।
    • जब इन्हों का राज्य था तो और कोई धर्म नहीं था।
    • द्वापर से फिर और धर्म आते हैं।
    • सतयुग में मनुष्य भी थोड़े होते हैं।
  • अब तो बहुत धर्म होने के कारण कितने दु:खी हो गये हैं।
    • वही देवता धर्म वाले अब फिर पतित होने से अपने को देवता कहते नहीं हैं।
    • हिन्दू नाम रख दिया है।
    • हिन्दू तो कोई धर्म नहीं है।
    • बाप समझाते हैं रावण ने तुमको ऐसा बना दिया है।
    • तुम जब लायक देवी-देवता थे तब सारे विश्व पर राज्य था, सब सुखी थे।
    • अब दु:खी बन पड़े हैं।
    • भारत हेविन था वो अब हेल बन गया है फिर हेल को हेविन बाप बिगर कोई बना न सके।
    • देवताओं को सम्पूर्ण निर्विकारी कहा जाता है।
    • यहाँ के मनुष्य तो सम्पूर्ण विकारी हैं, इनको कहा जाता है पतित।
    • भारत शिवालय था, शिवबाबा की स्थापना की हुई थी।
    • बाप स्वर्ग बनाते हैं फिर रावण नर्क बनाते हैं।
    • रावण श्राप देते हैं, बाप 21 जन्म के लिए वर्सा देते हैं।
  • अब तुम हर एक बाप को ही याद करो, कोई भी देहधारी को नहीं।
    • देहधारी को भगवान नहीं कहा जाता।
    • भगवान तो एक ही है।
    • बाप तो बेहद का वर्सा देते हैं फिर रावण श्रापित बना देते हैं।
    • इस समय भारत श्रापित है, बहुत दु:खी है।
    • अब इस रावण पर जीत पानी है।
  • गाया भी जाता है दे दान तो छूटे ग्रहण।
    • वो ग्रहण जो लगता है वह तो पृथ्वी का परछाया है।
    • अब बाप कहते हैं तुम्हारे ऊपर 5 विकारों रूपी रावण का ग्रहण है।
    • यह 5 विकार दान में दे देने हैं।
    • पहला तो दान दो कि हम कभी विकार में नहीं जायेंगे।
    • यह काम-कटारी ही मनुष्य को पतित बनाती है।
  • अच्छा। मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
  • धारणा के लिए मुख्य सार:-
  • 1) बाप जो नॉलेज देते हैं उसे पूरा अटेन्शन देकर पढ़ना है।
  • ज्ञान के तीसरे नेत्र से अपने 84 जन्मों को जान अब अन्तिम जन्म में पावन बनना है।
  • 2) रावण के श्राप से बचने के लिए एक बाप की याद में रहना है।
  • 5 विकारों का दान दे देना है।
  • एक बाप की मत पर चलना है।
  • वरदान:-
  • ( All Blessings of 2021)
  • अपनी स्मृति, वृत्ति और दृष्टि को अलौकिक बनाने वाले सर्व आकर्षणों से मुक्त भव
  • कहा जाता है -"जैसे संकल्प वैसी सृष्टि'' जो नई सृष्टि रचने के निमित्त विशेष आत्मायें हैं उनका एक-एक संकल्प श्रेष्ठ अर्थात् अलौकिक होना चाहिए।
  • जब स्मृति-वृत्ति और दृष्टि सब अलौकिक हो जाती है तो इस लोक का कोई भी व्यक्ति वा कोई भी वस्तु अपनी ओर आकर्षित नहीं कर सकती।
  • अगर आकर्षित करती है तो जरूर अलौकिकता में कमी है।
  • अलौकिक आत्मायें सर्व आकर्षणों से मुक्त होंगी।
  • स्लोगन:-
  • (All Slogans of 2021)
  • दिल में परमात्म प्यार वा शक्तियां समाई हुई हों तो मन में उलझन आ नहीं सकती।