16-05-21 प्रात:मुरली मधुबन

"अव्यक्त-बापदादा'' रिवाइज: 31-12-87

नया वर्ष - बाप समान

बनने का वर्ष

 

  • आज त्रिमूर्ति बाप तीन संगम देख रहे हैं।
  • एक है बाप और बच्चों का संगम, दूसरा है यह युग संगम, तीसरा है आज वर्ष का संगम।
  • तीनों ही संगम अपनी-अपनी विशेषता का है।
  • हर एक संगम, परिवर्तन होने की प्रेरणा देने वाला है।
  • संगमयुग विश्व-परिवर्तन की प्रेरणा देता है।
  • बाप और बच्चों का संगम सर्व श्रेष्ठ भाग्य, एवं श्रेष्ठ प्राप्तियों की अनुभूति कराने वाला है।
  • वर्ष का संगम नवीनता की प्रेरणा देने वाला है।
  • तीनों ही संगम अपने-अपने अर्थ से महत्व रखते हैं।
  • आज सभी देश-विदेश के बच्चे विशेष पुरानी दुनिया का नया वर्ष मनाने के लिए आये हैं।
  • बापदादा सभी साकार रूपधारी वा आकार रूपधारी बुद्धि के विमान से पहुँचे हुए बच्चों को देख रहे हैं और नये वर्ष मनाने की डायमण्ड तुल्य मुबारक दे रहे हैं क्योंकि सब बच्चे हीरे तुल्य जीवन बना रहे हैं।
  • डबल हीरो बने हो?
  • एक तो बाप के अमूल्य रत्न हो, हीरो डायमण्ड हो।
  • दूसरा हीरो पार्ट बजाने वाले हीरो हो इसलिए बापदादा हर सेकण्ड, हर संकल्प, हर जन्म की अविनाशी मुबारक दे रहे हैं।
  • आप श्रेष्ठ आत्माओं का सिर्फ आज का दिन मुबारक वाला नहीं।
  • लेकिन हर समय श्रेष्ठ भाग्य, श्रेष्ठ प्राप्ति के कारण बाप को भी हर समय आप मुबारक देते हो और बाप बच्चों को मुबारक देते सदा उड़ती कला में ले जा रहे हैं।
  • इस नये वर्ष में यही विशेष नवीनता जीवन में अनुभव करते रहो - जो हर सेकेण्ड और संकल्प में बाप को तो सदा मुबारक देते हो लेकिन आपस में भी हर ब्राह्मण आत्मा वा कोई भी अन्जान, अज्ञानी आत्मा भी सम्बन्ध वा सम्पर्क में आये तो बाप समान हर समय, हर आत्मा के प्रति दिल के खुशी की मुबारक वा बधाई निकलती रहे।
  • कोई कैसा भी हो लेकिन आपके खुशी की बधाई उनको भी खुशी की प्राप्ति का अनुभव कराये।
  • बधाई देना - यह खुशी की लेन-देन करना है।
  • कभी भी किसी को बधाई देते तो वह खुशी की बधाई है।
  • दु:ख के समय बधाई नहीं कहेंगे।
  • तो हर एक आत्मा को देख खुश होना वा खुशी देना - यही दिल की मुबारक वा बधाई है।
  • दूसरी आत्मा भले आपसे कैसा भी व्यवहार करे लेकिन आप बापदादा की हर समय बधाई लेने वाली श्रेष्ठ आत्मायें सदा हरेक को खुशी दो।
  • वह कांटा दे, आप बदले में रूहानी गुलाब दो।
  • वह दु:ख दे, आप सुखदाता के बच्चे सुख दो।
  • जैसे से वैसे नहीं बन जाओ, अज्ञानी से अज्ञानी नहीं बन सकते।
  • संस्कारों के वा स्वभाव के वशीभूत आत्मा से आप भी ‘वशीभूत' नहीं बन सकते।
  • आप श्रेष्ठ आत्माओं के हर संकल्प में सर्व के कल्याण की,
  • श्रेष्ठ परिवर्तन की, ‘वशीभूत' से स्वतन्त्र बनाने की दिल की दुआयें वा खुशी की मुबारक सदा नैचुरल रूप में दिखाई दे क्योंकि आप सभी दाता अर्थात् देवता हो, देने वाले हो।
  • तो इस नये वर्ष में विशेष खुशियों की मुबारकें देते रहो।
  • ऐसे नहीं कि सिर्फ आज के दिन वा कल के दिन चलते-फिरते मुबारक हो, मुबारक हो - यह कहके नया वर्ष आरम्भ नहीं करना।
  • कहना भले, दिल से कहना। लेकिन सारा वर्ष कहना, सिर्फ दो दिन नहीं कहना।
  • किसी को भी अगर दिल से मुबारक देते हो तो वह आत्मा दिल की मुबारक ले दिलखुश हो जाए।
  • तो हर समय दिल-खुश मिठाई बांटते रहना।
  • सिर्फ एक दिन नहीं मिठाई खाना वा खिलाना।
  • कल के दिन मुख की मिठाइयाँ जितनी चाहिए उतनी खाना, सभी को बहुत-बहुत मिठाई खिलाना।
  • लेकिन ऐसे ही सदा हर एक को दिल से दिलखुश मिठाई खिलाते रहो तो कितनी खुशी होगी!
  • आजकल की दुनिया में तो फिर भी मुख की मिठाई खाने में डर भी है लेकिन यह दिलखुश मिठाई जितनी चाहिए खा सकते हो, खिला सकते हो, इसमें बीमारी नहीं होगी क्योंकि बापदादा बच्चों को समान बनाते हैं।
  • तो विशेष इस वर्ष में बाप समान बनने की - यही विशेषता विश्व के आगे, ब्राह्मण परिवार के आगे दिखाओ।
  • जैसे हर एक आत्मा "बाबा'' कहते मधुरता वा खुशी का अनुभव करती है।
  • ‘वाह बाबा' कहने से मुख मीठा होता है क्योंकि प्राप्ति होती है।
  • ऐसे हर ब्राह्मण आत्मा कोई भी ब्राह्मण का नाम लेते ही खुश हो जाए क्योंकि बाप समान आप सभी भी एक दो को बाप द्वारा प्राप्त हुई विशेषता द्वारा आपस में लेन-देन करते हो, आपस में एक दो के सहयोगी साथी बन उन्नति को प्राप्त कराते हो।
  • जीवन साथी नहीं बनना, लेकिन कार्य के साथी भले बनो।
  • हर एक आत्मा अपनी प्राप्त विशेषताओं से आपस में खुशी की लेन-देन करते भी हो और आगे भी सदा करते रहना।
  • जैसे बाप को याद करते ही खुशी में नाचते हैं, वैसे हर एक ब्राह्मण आत्मा को हर ब्राह्मण याद करते रूहानी खुशी का अनुभव करे, हद की खुशी का नहीं।
  • हर समय बाप की सर्व प्राप्तियों का साकार निमित्त रूप अनुभव करे।
  • इसको कहते हैं हर संकल्प वा हर समय एक दो को मुबारक देना।
  • सबका लक्ष्य तो एक ही है कि बाप समान बनना ही है क्योंकि समान के बिना तो न बाप के साथ स्वीट होम में जायेंगे और न ब्रह्मा बाप के साथ राज्य में आयेंगे।
  • जो बापदादा के साथ अपने घर में जायेंगे वही ब्रह्मा बाप के साथ राज्य में उतरेंगे। ऊपर से नीचे आयेंगे ना।
  • सिर्फ साथ जायेंगे नहीं लेकिन साथ आयेंगे भी।
  • पूज्य भी ब्रह्मा के साथ बनेंगे और पुजारी भी ब्रह्मा बाप के साथ बनेंगे।
  • तो अनेक जन्मों का साथ है।
  • लेकिन उसका आधार इस समय समान बन साथ चलने का है।
  • इस वर्ष की विशेषता देखो - नम्बर भी 8, 8 हैं। आठ का कितना महत्व है!
  • अगर अपना पूज्य रूप देखो तो अष्ट भुजाधारी, अष्ट शक्तियाँ उसी की ही यादगार है - अष्ट रत्न, अष्ट राजधानियाँ - अष्ट का भिन्न-भिन्न रूप से गायन है इसलिए यह वर्ष विशेष बाप समान बनने का दृढ़ संकल्प का वर्ष मनाओ।
  • जो भी कर्म करो बाप समान करो।
  • संकल्प करो, बोल बोलो, सम्बन्ध-सम्पर्क में आओ, बाप समान।
  • ब्रह्मा बाप समान बनना तो सहज है ना क्योंकि साकार है।
  • 84 जन्म लेने वाली आत्मा है।
  • पूज्य अथवा पुजारी सभी की अनुभवी आत्मा है।
  • पुरानी दुनिया के, पुराने संस्कारों के, पुराने हिसाब-किताब के, संगठन में चलने और चलाने - सब बातों के अनुभवी है।
  • तो अनुभवी को फालो करना मुश्किल नहीं होता है।
  • और बाप तो कहते हैं कि ब्रह्मा बाप के हर कदम के ऊपर कदम रखो।
  • कोई नया मार्ग नहीं निकालना है, सिर्फ हर कदम पर कदम रखना है।
  • ब्रह्मा को कापी करो।
  • इतनी अक्ल तो है ना।
  • सिर्फ मिलाते जाओ क्योंकि, बापदादा - दोनों ही आपके साथ चलने के लिए रुके हुए हैं।
  • निराकार बाप परमधाम निवासी हैं लेकिन संगमयुग पर साकार द्वारा पार्ट तो बजाना पड़ता है ना इसलिए आपके इस कल्प का पार्ट समाप्त होने के साथ बाप, दादा - दोनों का भी पार्ट इस कल्प का समाप्त होगा।
  • फिर कल्प रिपीट होगा इसलिए निराकार बाप भी आप बच्चों के पार्ट के साथ बंधा हुआ है।
  • शुद्ध बन्धन है।
  • लेकिन पार्ट का बन्धन तो है ना।
  • स्नेह का बन्धन, सेवा का बन्धन... लेकिन मीठा बन्धन है।
  • कर्मभोग वाला बन्धन नहीं है।
  • तो नया वर्ष सदा मुबारक का वर्ष है।
  • नया वर्ष सदा बाप समान बनने का वर्ष है।
  • नया वर्ष ब्रह्मा बाप को फॉलो करने का वर्ष है।
  • नया वर्ष बाप के साथ स्वीट होम और स्वीट राजधानी में साथ रहने के वरदान प्राप्त करने का वर्ष है क्योंकि अभी से सदा साथ रहेंगे।
  • अभी का साथ रहना सदा साथ रहने का वरदान है।
  • नहीं तो बाराती बनेंगे और नजदीक वाले सम्बन्धी के बजाए दूर के सम्बन्धी बनेंगे।
  • कभी-कभी मिलेंगे।
  • कभी-कभी वाले तो नहीं हो ना?
  • पहले जन्म में पहले राज्य का सुख और पहले नम्बर के राज्य अधिकारी विश्व महाराजा-विश्व महारानी के रॉयल सम्बन्ध, उसकी झलक और फलक न्यारी होगी!
  • अगर दूसरे नम्बर विश्व महाराजा-महारानी की रॉयल फैमली में भी आ जाओ तो उसमें भी अन्तर है।
  • एक जन्म का फर्क भी पड़ जायेगा।
  • इसको भी साथ नहीं कहेंगे।
  • कोई भी नई चीज़ एक बार भी यूज़ कर लो तो उसको यूज़ किया हुआ कहेंगे ना।
  • नया तो नहीं कहेंगे।
  • साथ चलना है, साथ आना है, साथ में पहले जन्म का राज्य रॉयल फैमली बन करना है।
  • इसको कहते हैं समान बनना।
  • तो क्या करना है, समान बनना है वा बराती बनना है?
  • बापदादा अज्ञानी और ज्ञानियों का एक अन्तर देख रहा था।
  • एक दृश्य के रूप में देख रहा था।
  • बाप के बच्चे क्या हैं और अज्ञानी क्या हैं?
  • आज की दुनिया में विकारी आत्मायें क्या बन गई हैं?
  • जैसे आजकल कोई भी बड़ी फैक्ट्रीज वा जहाँ भी आग जलती है तो आग का धुऑ निकालने के लिये चिमनी बनाते हैं ना।
  • उससे सदैव धुऑ निकलता है और चिमनी सदैव काली दिखाई देगी।
  • तो आज का मानव विकारी होने के कारण, किसी न किसी विकार वश होने के कारण संकल्प में, बोल में ईर्ष्या, घृणा या कोई न कोई विकार का धुऑ निकलता रहता है।
  • ऑखों से भी विकारों का धुऑ निकलता रहता और ज्ञानी बच्चों के हर बोल वा संकल्प से, फरिश्तापन से दुआयें निकलती हैं।
  • उसका है विकारों की आग का धुऑ और ज्ञानी तू आत्माओं के फरिश्ते रूप से सदा दुआयें निकलती।
  • कभी भी संकल्प में भी किसी विकार के वश, विकार की अग्नि का धुऑ नहीं निकलना चाहिए, सदा दुआयें निकलें।
  • तो चेक करो - कभी दुआओं के बदले धुऑ तो नहीं निकलता?
  • फरिश्ता है ही दुआओं का स्वरूप।
  • जब कोई भी ऐसा संकल्प आये या बोल निकले तो यह दृश्य सामने लाना - मैं क्या बन गया, फरिश्ते से बदल तो नहीं गया?
  • व्यर्थ संकल्पों का भी धुऑ है।
  • वह जलती हुई आग का धुऑ है, वह आधी आग का धुऑ है।
  • पूरी आग नहीं जलती है तो भी धुऑ निकलता है ना।
  • तो ऐसे फरिश्ता रूप हो जो सदा दुआयें निकलती रहे।
  • इसको कहते हैं मास्टर दयालू, कृपालू, मर्सीफुल।
  • तो अभी यह पार्ट बजाओ।
  • अपने ऊपर भी कृपा करो तो दूसरे पर भी कृपा करो।
  • जो देखा, जो सुना - वर्णन नहीं करो, सोचो नहीं।
  • व्यर्थ को न सोचना, न देखना - यह है अपने ऊपर कृपा करना और जिसने किया वा कहा उसके प्रति भी सदा रहम करो, कृपा करो अर्थात् जो व्यर्थ सुना, देखा उस आत्मा के प्रति भी शुभ भावना शुभ कामना की कृपा करो।
  • और कोई कृपा नहीं वा कोई हाथ से वरदान नहीं देंगे लेकिन मन पर नहीं रखना - यह है उस आत्मा के प्रति कृपा करना।
  • अगर कोई भी व्यर्थ बात देखी हुई वा सुनी हुई वर्णन करते हो अर्थात् व्यर्थ बीज का वृक्ष बढ़ाते हो, वायुमण्डल में फैलाते हो - यह वृक्ष बन जाता है क्योंकि एक जो भी बुरा देखता वा सुनता है तो अपने एक मन में नहीं रख सकता, दूसरे को जरूर सुनायेगा, वर्णन जरूर करेगा।
  • और एक का एक होता है तो क्या हो जायेगा?
  • एक से अनेकता में आ जाते हैं।
  • और जब एक से एक, एक से एक माला बन जाती है तो जो करने वाला होता है वह और ही व्यर्थ को स्पष्ट करने के लिए जिद्द में आ जाता है।
  • तो वायुमण्डल में क्या फैला? व्यर्थ।
  • यह धुऑ फैला ना।
  • यह दुआ हुई या धुऑ?
  • इसलिए व्यर्थ देखते हुए, सुनते हुए स्नेह से, शुभ भावना से समा लो।
  • विस्तार नहीं करो।
  • इसको कहते हैं दूसरे के ऊपर कृपा करना अर्थात् दुआ करना।
  • तो तैयारी करो समान बन साथ चलने और साथ रहने की।
  • ऐसे तो नहीं समझते हो कि अभी यहाँ ही रहना ठीक है, साथ चलने की तैयारी अभी नहीं करें, थोड़ा और रूकें?
  • रुकने चाहते हो?
  • रुकना भी हो तो बाप समान बन करके रुको।
  • ऐसे ही नहीं रुको, लेकिन समान बनके रुको।
  • फिर भले रुको, छुट्टी है।
  • आप तो एवररेडी हो ना?
  • सेवा रुकाती है वा ड्रामा रूकाता है, वह और बात है लेकिन अपने कारण से रुकने वाले नहीं बनो।
  • कर्मबन्धन वश रुकने वाले नहीं।
  • कर्मों के हिसाब-किताब का चौपड़ा साफ और स्पष्ट होना चाहिए। समझा।
  • अच्छा! चारों ओर के सर्व बच्चों को नये वर्ष की महानता से महान बनने की मुबारक सदा साथ रहे। सर्व हिम्मत वाले, फॉलो फादर करने वाले, सदा एक दो में दिलखुश मिठाई खिलाने वाले, सदा फरिश्ता बन दुआयें देने वाले, ऐसे बाप समान दयालू, कृपालू बच्चों को समान बनने की मुबारक साथ-साथ बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।
  • डबल विदेशी भाई-बहिनों से अव्यक्त बापदादा की मुलाकात
  • सदा अपने को संगमयुगी श्रेष्ठ आत्मायें अनुभव करते हो?
  • श्रेष्ठ आत्माओं का हर संकल्प वा बोल वा हर कर्म स्वत: ही श्रेष्ठ होता है।
  • तो हर कर्म श्रेष्ठ बन गया है ना?
  • जो जैसा होता है वैसा ही उसका कार्य होता है।
  • तो श्रेष्ठ आत्माओं का कर्म भी श्रेष्ठ ही होगा ना।
  • जैसी स्मृति होती है वैसी स्थिति स्वत: होती है।
  • तो श्रेष्ठ स्थिति नेचुरल स्थिति है क्योंकि हो ही विशेष आत्मायें।
  • ऊंचे ते ऊंचे बाप के बन गये तो जैसा बाप वैसे बच्चे हुए ना।
  • बच्चों के लिए सदा कहा जाता है सन शोज़ फादर।
  • तो ऐसे हो?
  • आप सबके दिल में कौन समाया है?
  • जो दिल में होगा वही बुद्धि में होगा, बोल में होगा, संकल्प में भी वही होगा।
  • आप लोग कार्ड भी हार्ट का ले आते हो ना।
  • गिफ्ट भी हार्ट की भेजते हो।
  • तो यह अपनी स्थिति का चित्र भेजते हो ना।
  • तो जो बाप की दिल पर सदा रहता है वह सदा ही जो बोलेगा, जो करेगा वह स्वत: ही बाप समान होगा।
  • बाप समान बनना मुश्किल नहीं है ना?
  • सिर्फ डॉट (बिन्दी) याद रखो तो मुश्किल नॉट हो जायेगी।
  • डॉट को भूलते हो तो नॉट नहीं होता।
  • कितना सहज है डॉट बनाना वा डॉट लगाना।
  • सारा ज्ञान इसी एक डॉट शब्द में समाया हुआ है।
  • आप भी बिन्दी, बाप भी बिन्दी और जो बीत गया उसे भी बिन्दी लगा दो, बस।
  • छोटा बच्चा भी लिखने जब शुरू करता है तो पहले जब पेन्सिल कागज पर रखता है तो क्या बन जाता?
  • डॉट बनेगा ना?
  • तो यह भी बच्चों का खेल है।
  • यह पूरा ही ज्ञान की पढ़ाई खेल-खेल में है।
  • मुश्किल काम नहीं दिया है इसलिए काम भी सहज है और हो भी सहज-योगी।
  • बोर्ड में भी लिखते हो "सहज राज-योग''।
  • तो ऐसा सहज अनुभव करना, इसे ही ज्ञान कहा जाता है।
  • जो नॉलेजफुल हैं वह स्वत: ही पॉवरफुल भी होंगे क्योंकि नॉलेज को लाइट और माइट कहा जाता है।
  • तो नॉलेजफुल आत्मायें सहज ही पॉवरफुल होने के कारण हर बात में सहज आगे बढ़ती हैं।
  • तो यह सारा ग्रुप सहजयोगियों का ग्रुप है ना।
  • ऐसे ही सहजयोगी रहना। अच्छा।
  • वरदान:-
  • ( All Blessings of 2021)
  • संशय के संकल्पों को समाप्त कर मायाजीत बनने वाले विजयी रत्न भव
  • कभी भी पहले से यह संशय का संकल्प उत्पन्न न हो कि ना मालूम हम फेल हो जायें, संशयबुद्धि होने से ही हार होती है इसलिए सदा यही संकल्प हो कि हम विजय प्राप्त करके ही दिखायेंगे।
  • विजय तो हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है, ऐसे अधिकारी बनकर कर्म करने से विजय अर्थात् सफलता का अधिकार अवश्य प्राप्त होता है,
  • इसी से विजयी रत्न बन जायेंगे इसलिए मास्टर नॉलेजफुल के मुख से नामालूम शब्द कभी नहीं निकलना चाहिए।
  • स्लोगन:-
  • (All Slogans of 2021)
  • रहम की भावना सहज ही निमित्त भाव इमर्ज कर देती है।