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ओम् शान्ति।
- मीठे-मीठे जीव की आत्माओं को, परमपिता परमात्मा (जिसने अब शरीर का
लोन लिया है) बैठ समझाते हैं कि मैं साधारण बूढ़े तन में आता हूँ।
- आकर बहुत बच्चों
को पढ़ाता हूँ।
- ब्रह्मा मुख वंशावली ब्राह्मण बच्चों को ही समझायेंगे।
- जरूर मुख द्वारा ही
समझायेंगे और किसको समझायेंगे।
- कहते हैं - बच्चे, तुम मुझे भक्ति मार्ग में बुलाते
आये हो - हे पतित-पावन, भारत खास और दुनिया में आम सब बुलाते हैं।
- भारत ही
पावन था, बाकी सब शान्तिधाम में थे।
- बच्चों को यह स्मृति में रखना चाहिए कि
सतयुग-त्रेता किसको कहा जाता है, द्वापर-कलियुग किसको कहा जाता है।
- उनमें
कौन-कौन राज्य करते थे, तुम्हारी बुद्धि में पूरी नॉलेज है।
- जैसे बाप को रचना के
आदि-मध्य-अन्त का ज्ञान है, वैसे तुम्हारी बुद्धि में भी है।
- बाप जो ज्ञान देते हैं वह बच्चों
में भी जरूर होना चाहिए।
- बाप आकर बच्चों को आप समान बनाते हैं।
- जितनी बाप की
महिमा है उतनी बच्चों की है।
- बाप ने बच्चों को जास्ती महिमावान बनाया है।
- हमेशा
समझो कि शिवबाबा इन द्वारा सिखाते हैं।
- आत्मा ही एक-दो से बात करती है।
- परन्तु
मनुष्य देह-अभिमानी होने के कारण समझते हैं, फलाना पढ़ाता है।
- वास्तव में करती सब
कुछ आत्मा है।
- आत्मा ही पार्ट बजाती है।
- देही-अभिमानी बनना है।
- घड़ी-घड़ी अपने को
आत्मा समझना है। जब तक अपने को आत्मा नहीं समझेंगे तो बाप को भी याद नहीं कर
सकेंगे।
- भूल जाते हैं।
- तुमसे पूछा जाता है - तुम किसके बच्चे हो?
- तो कहते हो हम
शिवबाबा के बच्चे हैं।
- विजीटर बुक में भी लिखा हुआ है - तुम्हारा बाप कौन है?
- तो झट
देह के बाप का नाम बतायेंगे।
- अच्छा - अब देही के बाप का नाम बताओ।
- तो कोई कृष्ण
का, कोई हनूमान का नाम लिखेंगे या तो लिखेंगे - हम नहीं जानते।
- अरे, तुम लौकिक
बाप को जानते हो और पारलौकिक बाप जिनको तुम हमेशा दु:ख में याद करते हो, उनको
नहीं जानते हो!
- कहते भी हैं, हे भगवान रहम करो।
- हे भगवान एक बच्चा दो।
- अब बाप बिल्कुल सहज बात बताते हैं।
- तुम देह-अभिमान में बहुत रहते हो इसलिए
बाप के वर्से का नशा नहीं चढ़ता है।
- तुमको तो बहुत नशा चढ़ना चाहिए।
- भक्ति करते ही
हैं - भगवान से मिलने के लिए।
- यज्ञ, तप, दान-पुण्य आदि करना यह सब भक्ति है।
- सब
एक भगवान को याद करते हैं।
- बाप कहते हैं - मैं तुम्हारा पतियों का पति हूँ, बापों का
बाप हूँ।
- सब बाप भगवान को याद जरूर करते हैं।
- आत्मायें ही याद करती हैं।
- भल कहते
भी हैं, भ्रकुटी के बीच में चमकता है अजब सितारा... परन्तु यह बिगर समझ के ऐसे ही
कह देते हैं।
- रहस्य का कुछ भी पता नहीं।
- तुम आत्मा को ही नहीं जानते हो तो आत्मा के
बाप को कैसे जान सकेंगे।
- दीदार तो होता है भक्ति मार्ग वाला।
- भक्ति मार्ग में पूजा के
लिए बड़ा-बड़ा लिंग रख देते हैं क्योंकि अगर बिन्दी का रूप दिखायें तो कोई समझ न
सके।
- परमात्मा जिसको अखण्ड ज्योति स्वरूप कहते हैं, मनुष्य कहते
हैं उनका कोई बहुत बड़ा रूप है।
- ब्रह्म समाजी मठ वाले ज्योति को परमात्मा कहते हैं।
- दुनिया में यह किसको पता नहीं है कि परमपिता परमात्मा बिन्दी है, तो मूँझ पड़े हैं।
- बच्चे भी कहते हैं, बाबा किसको याद करें।
- हमने तो सुना था वह बड़ा लिंग है, उनको याद
किया जाता है।
- अब बिन्दी को कैसे याद करें?
- अरे तुम आत्मा भी बिन्दी हो, बाप भी
बिन्दी है।
- आत्मा को बुलाते हैं, वह जरूर यहाँ ही आकर बैठेंगे।
- भक्ति मार्ग में जो
साक्षात्कार आदि होता है, यह है सब भक्ति।
- भक्ति भी एक की नहीं करते, बहुतों को
भगवान बना दिया है।
- भगत जो भक्ति करते रहते हैं, उनको भगवान कैसे कहेंगे।
- अगर
परमात्मा सर्वव्यापी कहते हैं तो फिर भक्ति किसकी करते हैं।
- सो भी भिन्न प्रकार की
भक्ति करते हैं।
- बाप समझाते हैं - बच्चे, ऐसे मत समझो कि हमको अनेक वर्ष जीना है।
- अभी समय
बहुत नजदीक होता जाता है।
- निश्चय रखना है, बाबा को ब्रह्मा द्वारा स्थापना करानी है।
- बाप खुद कहते हैं - मैं इस द्वारा तुमको सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का राज़ बताता हूँ।
- गाते भी हैं - ब्रह्मा द्वारा स्थापना।
- यह नहीं जानते कि नई दुनिया को विष्णुपुरी कहा
जाता है अर्थात् विष्णु के दो रूप राज्य करते थे।
- किसको पता नहीं है कि विष्णु कौन है।
- तुम जानते हो कि यह ब्रह्मा-सरस्वती ही फिर विष्णु के दो रूप लक्ष्मी-नारायण बन
पालना करते हैं।
- ब्रह्मा द्वारा स्थापना, विष्णुपुरी अर्थात् स्वर्ग की फिर पालना करेंगे।
- तुम्हारी बुद्धि में आना चाहिए - बाप ज्ञान का सागर है।
- मनुष्य सृष्टि का बीजरूप है।
- वह
इस ड्रामा के आदि-मध्य-अन्त को जानते हैं।
- वही पतित-पावन है, जो बाप का धन्धा है,
वही तुम्हारा है।
- तुम भी पतित से पावन बनाते हो।
- दुनिया में एक बाप के 3-4 बच्चे
होंगे, कोई बच्चा बहुत ऊंचा चढ़ा हुआ होगा, कोई बिल्कुल नीचे होगा।
- यहाँ तुमको बाप
एक ही धन्धा सिखाते हैं कि तुम पतितों को पावन बनाओ।
- सबको यह लक्ष्य दो कि
शिवबाबा कहते हैं - मुझे याद करो।
- गीता में कृष्ण भगवानुवाच उल्टा लिख दिया है।
- तुमको समझाना है - भगवान तो निराकार, पुनर्जन्म रहित है।
- बस यही भूल है।
- अभी
तुम बच्चे कृष्णपुरी के मालिक बन रहे हो।
- कोई राजधानी में आते हैं, कोई प्रजा में।
- कृष्णपुरी कहा जाता है क्योंकि कृष्ण सभी को बहुत ही प्यारा है।
- बच्चे प्यारे लगते हैं ना।
- बच्चों का भी माँ-बाप से प्यार हो जाता है।
- प्यार सारा बिखर जाता है।
- अब बाप समझाते
हैं - तुम अपने को शरीर मत समझो।
- घड़ी-घड़ी अपने को आत्मा निश्चय करो।
- आत्म-अभिमानी बनो।
- बाप भी निराकार है।
- यहाँ भी शरीर लेना पड़ता है - समझाने के
लिए।
- बिगर शरीर तो समझा नहीं सकेंगे।
- तुमको तो अपना शरीर है, बाबा फिर लोन लेते
हैं।
- बाकी इसमें प्रेरणा आदि की बात ही नहीं।
- बाप खुद कहते हैं - मैं यह शरीर धारण कर
बच्चों को पढ़ाता हूँ क्योंकि तुम्हारी आत्मा जो अभी तमोप्रधान बन गई है, उनको
सतोप्रधान बनाना है।
- गाते भी हैं, पतित-पावन आओ, परन्तु अर्थ नहीं समझते।
- अभी तुम
समझते हो - बाप कैसे आकर पावन बनाते हैं।
- सतयुग में सिर्फ
हमारा ही छोटा झाड़ होगा, तुम स्वर्ग में जायेंगे।
- बाकी जो इतने खण्ड हैं उनका
नाम-निशान नहीं होगा।
- भारत खण्ड ही स्वर्ग होगा।
- परमपिता परमात्मा ही आकर हेविन
की स्थापना करते हैं।
- अभी हेल है।
- प्राचीन भारत खण्ड ही है जहाँ देवताओं का राज्य था,
अब नहीं है।
- उन्हों के यहाँ मन्दिर हैं, चित्र हैं।
- तो भारत की ही बात हुई।
- यह कोई भी
भारतवासी की बुद्धि में नहीं आता कि भारत स्वर्ग था, यह लक्ष्मी-नारायण मालिक थे और
कोई खण्ड नहीं था।
- अब तो अनेक धर्म आ गये हैं।
- भारतवासी धर्म-भ्रष्ट, कर्म-भ्रष्ट बन
गये हैं।
- कृष्ण को श्याम-सुन्दर कह देते हैं परन्तु अर्थ नहीं समझते।
- बरोबर यह सांवरा था
ना।
- कहते हैं कृष्ण को सर्प ने डसा तो सांवरा हो गया।
- अब वह तो सतयुग का प्रिन्स था,
कैसे काला हो गया।
- अभी तुम यह बातें समझते हो।
- कृष्ण के माँ-बाप भी अभी पढ़ रहे
हैं।
- माँ-बाप से उत्तम श्रीकृष्ण गाया हुआ है।
- माँ-बाप का कोई नाम नहीं है।
- नहीं तो जिस
माँ-बाप से ऐसा बच्चा पैदा हुआ वह माँ-बाप भी प्यारे होने चाहिए।
- परन्तु नहीं, महिमा
सारी राधे-कृष्ण की है।
- माँ-बाप की कुछ है नहीं।
- तुम्हारी बुद्धि में ज्ञान है।
- कोई को
भी समझाओ तुम आधाकल्प के आशिक हो, एक माशूक के।
- भक्ति मार्ग में सभी उनको
याद करते हैं तो आशिक ठहरे ना।
- परन्तु माशूक को पूरा जानते नहीं हैं।
- याद बहुत प्यार
से करते हैं, हे माशूक तुम जब आयेंगे तो हम सिर्फ आपको ही याद करेंगे और सबसे
बुद्धियोग तोड़ आपके साथ जोड़ेंगे।
- ऐसे तो गाते थे ना, परन्तु बाप से हमको क्या वर्सा
मिलता है, यह किसको भी पता नहीं है।
- अब बाप समझाते हैं - तुम देही-अभिमानी बनो।
- बाप को याद करना तुम बच्चों का पहला फ़र्ज है।
- बच्चा हमेशा बाप को, बच्ची माँ को
याद करती है।
- बच्चा समझता है हम बाप का वारिस बनेंगे।
- बच्ची
थोड़ेही कहेगी, वह तो समझती है हमको पियरघर से ससुरघर जाना है।
- अब तुम्हारा
निराकार और साकार पियरघर है।
- बुलाते भी हैं, हे परमपिता परमात्मा रहम करो।
- दु:ख
हरो सुख दो, हमें लिबरेट करो, हमारा गाइड बनो।
- परन्तु उसका अर्थ बड़े-बड़े विद्वान
आचार्य भी नहीं जानते हैं।
- बाप तो सर्व का लिबरेटर है, वही सबका कल्याणकारी है।
- बाकी
वह अपना ही कल्याण नहीं कर सकते तो औरों का क्या करेंगे।
- यहाँ बाप कहते हैं - मैं
गुप्त आता हूँ, खुदा-दोस्त की कहानी सुनी है ना।
- अब यह पुल है कलियुग और सतयुग
के बीच का, उस पार जाना है।
- अब खुदा तो बाप है, दोस्त भी है।
- माता, पिता, शिक्षक का
पार्ट भी बजाते हैं।
- यहाँ तुमको साक्षात्कार होता है तो जादू-जादू कह देते हैं।
- साक्षात्कार तो
नौधा भक्ति वालों को भी होते हैं, बहुत तीखे भक्त होते हैं।
- दर्शन दो नहीं तो हम गला
काटते हैं, तब साक्षात्कार होता है, उनको नौधा भक्ति कहा जाता है।
- यहाँ नौंधा भक्ति की
बात नहीं।
- घर में बैठे-बैठे भी बहुतों को साक्षात्कार होते रहते हैं।
- दिव्य दृष्टि की चाबी मेरे
पास है।
- अर्जुन को भी मैंने दिव्य दृष्टि दी ना।
- यह विनाश देखो, अपना राज्य देखो।
- अब
मामेकम् याद करो तो यह बनेंगे।
- अभी तुम समझते हो - विष्णु कौन है?
- मन्दिर बनाने
वाले खुद नहीं जानते।
- विष्णु द्वारा पालना, 4 भुजा का अर्थ ही है - 2 भुजा मेल की, 2
फीमेल की।
- विष्णु के दो रूप लक्ष्मी-नारायण हैं।
- परन्तु कुछ भी समझते नहीं हैं।
- किसका
भी ज्ञान नहीं है।
- न शिवबाबा का, न विष्णु का।
- पहले-पहले बाबा का आकर्षण था, बहुत
आते थे।
- शुरूआत में सारा आंगन भर जाता था।
- जज, मजिस्ट्रेट सब आते थे।
- फिर विकार
का झगड़ा शुरू हुआ, कहने लगे बच्चे नहीं पैदा होंगे तो सृष्टि कैसे चलेगी।
- यह तो सृष्टि
बढ़ने का कायदा है।
- गीता की बात ही भूल गये कि भगवानुवाच - काम महा-शत्रु है, उस
पर जीत पानी है।
- कहने लगे स्त्री-पुरूष दोनों इकट्ठे आयें तो उनको ज्ञान दो।
- अकेले को
नहीं दो।
- अब दोनों भी आयें तो देवें ना।
- देखो दोनों को इकट्ठा भी देते हैं तो भी कोई ज्ञान
लेते हैं, कोई नहीं लेते हैं।
- तकदीर में नहीं होगा तो क्या कर सकते हैं।
- एक हँस, एक
बगुला बन पड़ते हैं।
- यहाँ तुम ब्राह्मण, देवताओं से भी उत्तम हो।
- जानते हो - हम
ईश्वरीय सन्तान हैं, शिवबाबा के बच्चे हैं।
- वहाँ स्वर्ग में तुमको यह ज्ञान नहीं रहेगा, न
जब निराकारी दुनिया मुक्तिधाम में होंगे तब यह ज्ञान होगा।
- यह ज्ञान शरीर के साथ ही
खत्म हो जाता है।
- अभी तुमको ज्ञान है, एक बाबा पढ़ा रहे हैं।
- अब यह खेल पूरा होता है,
सब एक्टर्स हाजिर हैं।
- बाबा भी आया है।
- रही हुई आत्मायें भी आती रहती हैं।
- जब सब
आ जायेंगे तब विनाश होगा फिर सबको बाप साथ ले जायेगा।
- सबको जाना है, इस पतित
दुनिया का विनाश होना है।
- अच्छा।
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी
बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
- धारणा के लिए मुख्य सार:-
- 1) पतित से पावन बनाने का धन्धा जो बाप का है, वही धन्धा करना है।
- सबको लक्ष्य
देना है कि बाप को याद करो और पावन बनो।
- 2) यह ब्राह्मण जीवन देवताओं से भी उत्तम जीवन है, इस नशे में रहना है।
- बुद्धि का
योग और सबसे तोड़ एक माशूक को याद करना है।
- वरदान:-
- ( All Blessings of 2021)
- आसक्ति को अनासक्ति में परिवर्तन करने वाले शक्ति स्वरूप भव
- शक्ति स्वरूप बनने के लिए आसक्ति को अनासक्ति में बदली करो।
- अपनी देह में,
सम्बन्धों में, कोई भी पदार्थ में यदि कहाँ भी आसक्ति है तो माया भी आ सकती है और
शक्ति रूप नहीं बन सकते इसलिए पहले अनासक्त बनो तब माया के विघ्नों का सामना
कर सकेंगे।
- विघ्नों के आने पर चिल्लाने वा घबराने के बजाए शक्ति रूप धारण कर लो
तो विघ्न-विनाशक बन जायेंगे
- स्लोगन:-
- (All Slogans of 2021)
- रहम नि:स्वार्थ और लगावमुक्त हो - स्वार्थ वाला नहीं।
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