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ओम् शान्ति।
- बच्चों ने अपने बाप की महिमा सुनी।
- गाया भी जाता है ऊंच ते ऊंच भगवान।
- वह है सब बच्चों का बाप।
- बाकी जो भी हैं, आपस में सब ब्रदर्स हैं और सबका बाप भी एक है।
- वह है शिवबाबा।
- बाप ने समझाया है हे बच्चों, भक्ति मार्ग में तुमको दो बाप हैं - लौकिक बाप और पारलौकिक बाप।
- रचयिता से रचना को वर्सा मिलता है, वह है हद का वर्सा, यह है बेहद का वर्सा। बेहद का बाप तो एक ही है जिससे बेहद का वर्सा मिलता है।
- वह है निराकार, उसका नाम है परमपिता परमात्मा शिव।
- कहते भी हैं शिव परमात्माए नम:, वह है ऊंच ते ऊंच।
- तुम्हारी बुद्धि चली जाती है, निराकार बाप की तरफ।
- वह रहते हैं परमधाम में, जहाँ से तुम आत्मायें आती हो।
- बाप भी वहाँ ही रहते हैं।
- वह है ही सर्व का सद्गति करने वाला।
- उसमें भी भारत परमपिता परमात्मा का बर्थ प्लेस है, शिव जयन्ती भी यहाँ मनाते हैं।
- उस रूहानी बाप को ही ज्ञान का सागर, पतित-पावन, लिबरेटर, गाइड कहा जाता है।
- वही दु:ख-हर्ता, सुख-कर्ता है - यह भारतवासी जानते हैं।
- यह दु:खधाम है, भारत ही सुखधाम था।
- बाप बच्चों को बैठ समझाते हैं - हे भारतवासी, तुम विश्व के मालिक थे जबकि तुम्हारा आदि सनातन देवी-देवता धर्म था।
- देवी-देवता धर्म-श्रेष्ठ, कर्म-श्रेष्ठ थे, अब यह धर्म-भ्रष्ट, कर्म-भ्रष्ट बन गये हैं।
- अपने को पावन देवता कहला नहीं सकते।
- कलियुग अन्त तक भक्ति मार्ग चलता है, इसमें ज्ञान होता नहीं।
- ज्ञान से होती है सद्गति।
- सर्व का सद्गति दाता बाप जब तक न आये तब तक सद्गति हो न सके।
- बाप कहते हैं - मैं कल्प के संगमयुग पर आता हूँ।
- इस समय है ही पतित दुनिया।
- पावन एक भी होता नहीं।
- भल संन्यासी पवित्र बनते हैं परन्तु फिर उनको पुनर्जन्म तो यहाँ ही लेना है।
- विष से जन्म लेना पड़े। वापिस जाने का है नहीं।
- जब चक्र पूरा होता है तब ही बाप आकर ले जाते हैं।
- इनको कहा ही जाता है रूहानी ज्ञान। सुप्रीम रूह, रूहानी ज्ञान देते हैं।
- सुप्रीम रूह ही ज्ञान का सागर, पतित-पावन है।
- बाकी शास्त्रों का ज्ञान तो है भक्ति मार्ग।
- बाप कहते हैं यज्ञ, तप, तीर्थ आदि करते और ही नीचे गिरते आये हो।
- तुम पहले सतोप्रधान थे।
- भारत में प्योरिटी थी तो पीस, प्रासपर्टी भी थी।
- हेल्थ, वेल्थ दोनों थे।
- आज से 5 हजार वर्ष पहले की बात है, यह भारत स्वर्ग था।
- उस समय और कोई धर्म नहीं था।
- सिर्फ एक ही आदि सनातन देवी-देवता धर्म था, जो परमपिता परमात्मा ने स्थापन किया।
- स्वर्ग की स्थापना तो वही करेंगे।
- मनुष्य तो कर न सकें।
- ऐसे तो नहीं कहेंगे - कृष्ण रचयिता है।
- नहीं, रचयिता एक ही निराकार शिव है।
- बाकी है उनकी रचना।
- रचयिता से ही रचना को वर्सा मिलता है।
- बाप समझाते हैं - मैं तुम्हारा बेहद का बाप हूँ, तुमको बेहद का वर्सा देता हूँ, 21 जन्मों के लिए।
- सूर्यवंशी, चन्द्रवंशी पवित्र धर्म स्थापन करता हूँ।
- ब्राह्मण धर्म है चोटी।
- सबसे ऊंच है रूहानी बाप, रूहों को आप समान बनाते हैं।
- बाप ज्ञान का सागर, सुख का सागर है तो तुमको भी बनाते हैं।
- भारत ही सुखधाम था, अभी तो दु:खधाम है।
- बाप कैसे आते हैं, यह किसको भी पता नहीं है।
- सतयुग आदि से कलियुग अन्त तक यह सारी हिस्ट्री-जॉग्राफी भारत की है।
- यह लक्ष्मी-नारायण कितने हेल्दी, वेल्दी थे।
- कभी बीमार नहीं पड़ते थे।
- अभी काल पर विजय पाने शिक्षा ले रहे हैं।
- जिसको कालों का काल, महाकाल कहा जाता है, वह तुमको काल पर विजय पहनाते हैं।
- नाम भी सुना शिवाए नम:।
- तुम ऐसे तो नहीं कहेंगे परमात्मा सर्वव्यापी है, कुत्ते बिल्ली में है, इसको कहा जाता है धर्म की ग्लानी।
- बाप की ग्लानी करते हैं।
- अभी यह है कल्प का संगम समय।
- इस समय ही विनाश काले विपरीत बुद्धि कहा जाता है।
- अब विनाश तो सामने खड़ा है।
- गीता में भी लिखा है - यादव, कौरव, पाण्डव क्या करत भये।
- सर्व शास्त्र मई शिरोमणी श्रीमत भगवत गीता है, उनसे ही फिर और शास्त्र निकले हैं।
- तुम जानते हो गीता है डीटी धर्म का शास्त्र।
- बाप कहते हैं मैं आता हूँ तुमको शूद्र से ब्राह्मण बनाता हूँ फिर सो देवी-देवता बनाता हूँ।
- फिर तुम क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र बनते हो।
- बाप समझाते हैं तुम 84 जन्म कैसे लेते हो।
- सबसे जास्ती जन्म जरूर वह लेते हैं जो पहले-पहले सतयुग में आते हैं।
- मैक्सीमम 84 जन्म लिये हैं तुम भारतवासियों ने, मिनीमम एक जन्म।
- यह भी बाप ही बैठ समझाते हैं।
- बाप बिगर किसको ज्ञान का सागर नहीं कहा जाता।
- पतित-पावन, ज्ञान का सागर कहने से बुद्धि ऊपर चली जाती है।
- बाप ही सबको लिबरेट कर वापिस ले जाते हैं, सर्व का सद्गति दाता एक ही बाप है।
- अच्छा फिर सर्व की दुर्गति कैसे होती है?
- कौन करता है?
- सद्गति सतयुग को, दुर्गति कलियुग को कहा जाता है।
- बाप कहते हैं मैं कल्प-कल्प तुम बच्चों को आकर सद्गति देता हूँ।
- तुम बच्चे सारे वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी जानते हो।
- स्कूलों में तो आधी हिस्ट्री-जॉग्राफी सिखाते हैं।
- सतयुग, त्रेता में कौन राज्य करते थे, किसको पता नहीं।
- चित्र तो बरोबर हैं - यह लक्ष्मी-नारायण राज्य करते थे।
- कितना समय वह राजधानी चली, तुम बता सकते हो।
- क्रिश्चियन डिनायस्टी 2 हजार वर्ष चली।
- बौद्ध डिनायस्टी इतना समय चली।
- इस्लामी.....उनके आगे फिर चन्द्रवंशी थे जो 1250 वर्ष चले।
- सतयुग-त्रेता में सूर्यवंशी-चन्द्रवंशी ही थे और कोई धर्म नहीं था।
- तुम ही सूर्यवंशी-चन्द्रवंशी बनते हो।
- अब फिर से बने हो ब्राह्मण वंशी।
- यह सारा नाटक भारत पर ही बना है।
- भारत ही हेल और हेविन बनता है और धर्म वालों के लिए नहीं कहेंगे।
- वह तो हेविन में होते ही नहीं।
- कोई मरता है तो कहते हैं स्वर्गवासी हुआ, परन्तु समझते नहीं।
- नर्कवासियों को तो नर्क में ही जन्म लेना पड़े।
- स्वर्गवासी स्वर्ग में ही पुनर्जन्म लेंगे।
- तुम बच्चे समझते हो यह लक्ष्मी-नारायण स्वर्गवासी थे।
- उन्होंने यह राजधानी कैसे पाई।
- लाखों वर्ष की बात तो याद रह न सके।
- सतयुग में यह शास्त्र आदि होते नहीं हैं।
- यह सारी भक्ति की सामग्री है।
- सीढ़ी नीचे उतरनी ही है।
- सतोप्रधान से सतो-रजो-तमो में, यह सीढ़ी उतरने में 5 हजार वर्ष लगते हैं।
- सतयुग में 16 कला सम्पूर्ण फिर त्रेता में 2 कला कम, आत्मा में चाँदी की खाद पड़ी।
- कॉपर एज में आये तो कॉपर की अलाए पड़ी, इस समय बिल्कुल ही तमोप्रधान हैं।
- आत्मा में ही खाद पड़ती है।
- तुम ही पूरे 84 जन्म लेते हो।
- यह रूहानी बाप शिवबाबा आकर रूहानी बच्चों को समझाते हैं।
- तुमको अब आत्म-अभिमानी बनना है।
- रावण की प्रवेशता होने से सब देह-अभिमानी बन जाते हैं।
- अब अपने को आत्मा समझना है।
- हम ही 84 जन्म ले भिन्न-भिन्न पार्ट बजाते आये हैं।
- अब 84 का चक्र पूरा हुआ।
- अब तो शरीर भी जड़जड़ीभूत हो गया है।
- द्वापर से रावण राज्य होता है।
- सतयुग में है रामराज्य।
- सतयुग में तुम आत्म-अभिमानी थे।
- द्वापर, कलियुग में तुम देह-अभिमानी बन जाते हो।
- न आत्मा को, न परमात्मा को जानते हो।
- बाप समझाते हैं - आत्मा एक स्टार है।
- भ्रकुटी के बीच में चमकता है अजब सितारा... उनको सिवाए दिव्य दृष्टि के देखा नहीं जा सकता है।
- वह बिल्कुल ही सूक्ष्म है।
- आत्मा ही एक शरीर छोड़ दूसरा लेती है।
- हम आत्मा ने 84 जन्म लिए हैं।
- परमपिता परमात्मा भी बिन्दी है, उनको ही ज्ञान का सागर, पतित-पावन नॉलेजफुल कहा जाता है।
- परमपिता परम आत्मा में सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का ज्ञान है।
- बीजरूप होने के कारण उनको सत्-चित-आनन्द स्वरूप कहा जाता है।
- बाप में जो ज्ञान है, वह जरूर सुनाना पड़े।
- यह है स्प्रीचुअल नॉलेज।
- सब रूहों का बाप आकर रूहों को पढ़ाते हैं।
- तुमको आत्म-अभिमानी बनना है।
- शिवबाबा हमको पढ़ाते हैं, वही नॉलेजफुल है।
- बाबा ही आकर स्वर्ग की रचना रचते हैं।
- तुमको स्वर्ग का लायक बनाते हैं।
- यह सृष्टि चक्र का राज़ कोई मनुष्य नहीं जानते।
- बाप को ही न जानने कारण भारत का यह हाल हुआ है।
- भारत में प्योरिटी थी तो पीस प्रासपर्टी थी।
- अभी तो है ही नर्क फिर कोई स्वर्ग में जा कैसे सकते!
- बिल्कुल ही पत्थरबुद्धि हो गये हैं।
- बाप कहते हैं - मैं बच्चों के लिए कोई तो सौगात ले आऊंगा।
- तुमको स्वर्ग का मालिक बनाता हूँ।
- जिन्होंने कल्प पहले वर्सा लिया है, वही अब लेंगे।
- मनुष्य से देवता बनेंगे।
- वास्तव में प्रजापिता ब्रह्मा के तो सब बच्चे हैं।
- अब ब्रह्मा द्वारा शिवबाबा रचना रच रहे हैं।
- ब्रह्माकुमार-कुमारी बनते जाते हैं।
- शिवबाबा से वर्सा लेने के लिए पुरूषार्थ करना है, तमोप्रधान से सतोप्रधान बनना है।
- बाप कहते हैं - बच्चों, मुझे याद करो तो तुम्हारे सब विकर्म विनाश होंगे।
- यह स्प्रीचुअल नॉलेज सिवाए बाप के और कोई दे नहीं सकता।
- रूहानी बाप ही रूहों को नॉलेज देते हैं।
- तुम रूहानी यात्रा करते हो।
- देह-अभिमान को छोड़ देही-अभिमानी बनते हो।
- आत्मा अविनाशी है।
- आत्मा में ही पार्ट भरा हुआ है।
- आत्मा कैसे 84 जन्मों का पार्ट बजाती है, अब मालूम पड़ा है।
- हम सूर्यवंशी थे फिर चन्द्रवंशी बने फिर हमको सूर्यवंशी बनना है।
- अभी बाप सतोप्रधान बनने की शिक्षा देते हैं, मामेकम् याद करो।
- भगवानुवाच - गीता का भगवान शिवबाबा है, न कि श्रीकृष्ण।
- कृष्ण की आत्मा भी अब सीख रही है।
- अच्छा।
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
- धारणा के लिए मुख्य सार:-
- 1) रूहानी यात्रा करनी और करानी है।
- स्वयं को सतोप्रधान बनाने के लिए एक बाप को याद करना है।
- आत्म-अभिमानी बनने का पूरा-पूरा पुरूषार्थ करना है।
- 2) काल पर विजय पाने के लिए बाप की शिक्षा को ध्यान पर रखना है।
- अपने को रूह समझ रूहों को ज्ञान देना है।
- वरदान:-
- ( All Blessings of 2021)
- आवाज से परे की स्थिति में स्थित हो सर्व गुणों का अनुभव करने वाले मा. बीजरूप भव
- जैसे बीज में सारा वृक्ष समाया हुआ होता है वैसे ही आवाज से परे की स्थिति में संगमयुग के सर्व विशेष गुण अनुभव में आते हैं।
- मास्टर बीजरूप बनना अर्थात् सिर्फ शान्ति नहीं लेकिन शान्ति के साथ ज्ञान, अतीन्द्रिय सुख, प्रेम, आनंद, शक्ति आदि-आदि सर्व गुख्य गुणों का अनुभव करना।
- यह अनुभव सिर्फ स्वयं को नहीं होता लेकिन अन्य आत्मायें भी उनके चेहरे से सर्वगुणों का अनुभव करती हैं।
- एक गुण में सर्वगुण समाये हुए रहते हैं।
- स्लोगन:-
- (All Slogans of 2021)
- अच्छाई धारण करो लेकिन अच्छाई में प्रभावित नहीं हो जाओ।
- मातेश्वरी जी के अनमोल महावाक्य
- "जिसका साथी भगवान है उनको क्या रोकेगा
आंधी और तूफान''
- जिसका साथी है भगवान उसको क्या रोकगा आंधी और तूफान... देखो यह गीत सिद्ध करता है कि आत्मा और परमात्मा दो चीज़ है न ईश्वर सर्वव्यापी है क्योंकि जिसका साथी है ईश्वर वो हाज़िर होते हुए फिर भी सृष्टि में इतना दु:ख क्यों?
- मनुष्य इतने कंगाल मोहताज क्यों?
- परमात्मा तो सुख स्वरूप है तो सर्वव्यापी परमात्मा कहना गोया परमात्मा की इनसल्ट करना है।
- भगवान के हाज़िर होते दुनिया सुख स्वरूप होनी चाहिए वा दु:ख रूप?
- फिर परमात्मा को पुकारने की दरकार क्यों?
- तो इस समय माया सर्वव्यापी है न कि परमात्मा हाज़िर है।
- परमात्मा सिर्फ एक बार संगम पर आता है तब उनको हाज़िर नाज़िर कह सकते हैं, बाकी उनकी याद सबके दिलों में जरुर व्यापक है।
- शरीर को चलाने वाली शक्ति तो हरेक में भिन्न-भिन्न संस्कार वाली आत्मा है न कि परमात्मा है।
- अब विचार करना है कि परमात्मा का साथ क्यों लिया है?
- इस माया के आंधी और तूफान से पार होने के लिये, तो जरूर कोई माया का तूफान है जिससे पार होने के लिये उस परमात्मा का साथ हम आत्मायें मांगती हैं, अगर वो हाज़िर होता तो न माया की उलझन होती, न उनका साथ लेने के लिये याद करना पड़ता।
- तो हम आत्माओं और परमात्मा दोनों का इस खेल में पार्ट है।
- तो जब परमात्मा आता है तो उनका पूरा साथ ले उनका हो जाना है तब ही माया के तूफान से छूट पायेंगे।
- भल वो सबका सुखदाता है परन्तु जो प्रैक्टिकल में उनका सहारा लेते हैं उन्हों को ही साथ मिलता है।
- तो उन बच्चों को एकस्ट्रा प्राप्ति होती है, भल वो दुनिया के अन्दर आए उपस्थित हुआ है परन्तु ओहो! आश्चर्यवत्! दुनिया इनको न जानने के कारण इनका साथ नहीं लेती है, अगर इनका पूरा साथ पकड़ ले तो मदद देने में मशहूर है।
- कहते हैं एक कदम तुम आगे बढ़ो तो दस कदम आगे आयेंगे, तो वो सम्पूर्ण वर्सा देते हैं जिसमें कोई अपूर्णता नहीं होती। अच्छा।
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