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ओम् शान्ति।
- हर एक मनुष्य पुरूषार्थ करते हैं - सुख और शान्ति की तकदीर बनाने।
- साधू-सन्त, संन्यासी(sanyasi) आदि कहते हैं, हमको शान्ति चाहिए।
- दु:ख हरो, सुख दो।
- समझते हैं - भगवान(Bhagwan) ही मनुष्य मात्र का दु:ख-हर्ता(dukhharta), सुख-कर्ता है।
- अब भगवान को मनुष्य जानते तो हैं नहीं।
- तुम तो कहते हो शिवबाबा(Shivbaba)।
- ब्रह्मा, विष्णु, शंकर को बाबा नहीं कहेंगे।
- वह तो देवता है।
- भगवान को ही बाबा कहेंगे, वह है निराकार, जिसकी पूजा करते हैं।
- जानते हैं शिवबाबा सभी का है।
- परन्तु यह ख्याल नहीं आता कि हम बाबा क्यों कहते हैं।
- बाबा तो एक लौकिक भी है - यह फिर कौन सा बाप है!
- यह आत्मा कहती है वह निराकार बाप है।
- वह भी निराकार है, हम आत्मा भी निराकार हैं।
- साकार बाबा होते हुए भी आत्मा उस बाप को भूलती नहीं है।
- गॉड फादर है, हम उनके बच्चे हैं।
- यहाँ कहते हैं परमपिता।
- अंग्रेजी में कहते हैं - गॉड फादर, सुप्रीम सोल, सबसे ऊंचा।
- लौकिक बाप तो शरीर का रचयिता है और वह है पारलौकिक बाप।
- बाप ही बैठ बच्चों को समझाते हैं।
- बाप को याद करते हैं क्योंकि बाप से वर्सा मिलता है।
- तुम बाप के पास आये ही हो वर्सा लेने।
- दु:ख-हर्ता, सुख-कर्ता बाप ही आकर सुख का रास्ता बताते हैं।
- फिर वहाँ दु:ख का नामनिशान नहीं रहता।
- यहाँ तो बहुत दु:ख है ना, सब पुकारते हैं।
- अभी तो दुनिया में बहुत दु:ख आने वाला है।
- कोई मरते हैं तो कितना दु:खी होते हैं।
- ‘हाय भगवान' कह रोते हैं।
- वही कल्याणकारी बाप है।
- गाते हो तो जरूर दु:ख हरा है, सुख दिया है ना।
- बाप आकर समझाते हैं - बच्चे तुम कल्प-कल्प जब बहुत दु:खी पतित हो जाते हो तब पुकारते हो, हे बाबा आओ।
- मैं कल्प-कल्प आता ही हूँ, संगम पर।
- पावन दुनिया के आदि और पतित दुनिया के अन्त को संगम कहा जाता है।
- यह एक ही संगमयुग गाया जाता है।
- बाप आते हैं सबकी ज्योत जगाने, दु:ख हरकर सुख देने।
- तुम जानते हो हम पारलौकिक बाप के पास आये हैं, जो बाबा इनमें प्रवेश कर आये हैं।
- खुद कहते हैं मैं इनमें प्रवेश कर इनका नाम ब्रह्मा रखता हूँ।
- तुम सब हो ब्रह्माकुमार और कुमारी।
- तुमको यह निश्चय है कि हम ब्रह्मा की सन्तान बने हैं - बाप से सुख का वर्सा लेने।
- तुम बच्चों को ही सुख था, जब कि इन लक्ष्मी-नारायण का राज्य था।
- अब है कलियुग, दु:खधाम।
- उसके बाद फिर सतयुग आयेगा।
- वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी रिपीट होती है ना।
- सतयुग में फिर इन लक्ष्मी-नारायण का ही राज्य चाहिए।
- यह चक्र फिरता ही रहता है।
- बाबा ने समझाया है तुम नर्कवासी बने हो अब फिर स्वर्गवासी बनना है।
- तुम देवी-देवताओं का बहुत छोटा झाड़ था।
- अब तुमको स्मृति आई है, हमने ही 84 जन्म लिए हैं।
- हम सारे विश्व के मालिक थे, फिर पुनर्जन्म लेते आये हैं।
- अब तुम्हारे 84 जन्मों के अन्त का भी अन्त है।
- दुनिया नई से पुरानी जरूर होगी।
- नई दुनिया पावन थी, अब पुरानी पतित दुनिया है।
- कितने दु:खी कंगाल हैं। भारत बहुत साहूकार था।
- पवित्र गृहस्थ आश्रम था।
- पवित्र प्रवृत्ति मार्ग था, सम्पूर्ण निर्विकारी थे, सर्वगुण सम्पन्न, 16 कला सम्पूर्ण थे।
- यह बातें शास्त्रों में हैं नहीं।
- शास्त्र हैं भक्ति मार्ग के लिए।
- भक्ति की ही रसम-रिवाज उनमें है।
- बाप से मिलने का रास्ता शास्त्रों से नहीं मिल सकता।
- समझते भी हैं - भगवान को यहाँ आना है फिर वहाँ पहुँचने की तो बात ही नहीं।
- यज्ञ, तप आदि करना - वह कोई रास्ता नहीं है।
- भगवान को पुकारते ही हैं आओ, आकर रास्ता बताओ।
- हमारी आत्मा तमोप्रधान बन गई है, जिस कारण उड़ नहीं सकती अर्थात् बाप के पास जा नहीं सकती।
- यूँ तो आत्मा एक शरीर छोड़ दूसरा लेती है।
- कहाँ की कहाँ चली जाती है।
- अमेरिका भी जा सकती है।
- कोई का किसके साथ सम्बन्ध होगा तो आत्मा झट वहाँ उड़ेगी, एक सेकेण्ड में।
- बाकी उड़कर अपने घर वापिस जाये, ये नहीं हो सकता।
- पतित वहाँ जा नही सकते, इसलिए पुकारते हैं, हे पतित-पावन आओ।
- बाप जब आते हैं तो आकर समझाते हैं - मैं आता ही तब हूँ, जब सारी दुनिया पतित है।
- पतित दुनिया में एक भी पावन नहीं है।
- समझते हैं गंगा पतित-पावनी है इसलिए जाते हैं स्नान करने।
- परन्तु पानी से तो कोई पावन हो नहीं सकता।
- पुरानी दुनिया है ही पतित, नई दुनिया है पावन।
- अभी तुम बेहद के बाप से वर्सा लेने आये हो।
- तुमको पुण्य आत्मा बनना है।
- तुम्हारी आत्मा सतोप्रधान थी सो अब तमोप्रधान है।
- फिर सतोप्रधान कोई गंगा स्नान से नहीं बनेगी।
- पतितों को पावन बनाना - यह तो बाप का ही काम है।
- बाकी वह पानी की नदी तो सब जगह है।
- बादलों से पानी बरसता है, सबको मिलता है।
- अगर पानी की नदी पावन बनाये, फिर तो सबको पावन कर दे।
- पावन बनने की युक्ति बाप ही आकर बताते हैं इन द्वारा।
- इनकी अपनी आत्मा है।
- बाप कहते हैं - मुझे अपना शरीर नहीं है।
- कल्प-कल्प इसमें ही आता हूँ तुमको समझाने।
- तुम अपने जन्मों को नहीं जानते हो।
- कल्प की आयु लाखों वर्ष कह देते हैं।
- बाप कहते हैं - यह 84 जन्मों का चक्र है।
- 5 हजार वर्ष में 84 लाख जन्म कोई ले न सके।
- तो बाप समझाते हैं - स्वर्ग में तुम 16 कला सम्पूर्ण थे फिर 2 कला कम हुई फिर धीरे-धीरे कला कम होती जाती है।
- नई दुनिया सो फिर पुरानी होती है।
- द्वापर कलियुग को पतित दुनिया कहा जाता है।
- यह बातें कोई शास्त्रों में नहीं हैं।
- मुझे ही ज्ञान का सागर कहते हैं।
- मैं कोई शास्त्र पढ़ता हूँ क्या?
- मैं इस सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त को जानता हूँ।
- भक्ति मार्ग वालों को यह ज्ञान हो नहीं सकता।
- वह सब है भक्ति का ज्ञान।
- गाते भी हैं, हम पापी, नींच हैं।
- हमारे में कोई गुण नाहीं।
- आपेही तरस परोई... इनके ऊपर तरस किया गया है तब मनुष्य से देवता बने हैं, इनको कहा जाता है ऊंच ते ऊंच तकदीर। स्कूल में तकदीर बनाने जाते हैं।
- कोई जज़, कोई इन्जीनियर बनते हैं।
- वह है विकारी तकदीर, यह तुम्हारी बनती है ईश्वर द्वारा तकदीर, इसलिए बुलाते हैं दु:ख-हर्ता सुख-कर्ता, देवता बनाने के लिए सिवाए बाप के कोई पढ़ा न सके।
- बाप आत्माओं से बैठ बात कर रहे हैं।
- आत्मा कहती है - यह मेरा शरीर है।
- शरीर तो नहीं कहेगा, मेरी आत्मा।
- शरीर के अन्दर आत्मा है, वह कहती है - यह मेरा शरीर है।
- मनुष्य कहते हैं मेरी आत्मा को न दु:खाओ।
- आत्मा शरीर में न हो तो बोले भी नहीं।
- आत्मा कहती है, मैं एक शरीर छोड़ दूसरा लेता हूँ।
- हमने जरूर 84 जन्म भोगे हैं, नर्कवासी बनें।
- अब फिर तुम स्वर्गवासी बनने का पुरूषार्थ कर रहे हो।
- स्वर्गवासी तो बाप ही बनायेंगे।
- स्वर्ग कहा ही जाता है सतयुग को।
- यह जो कहते हैं फलाना स्वर्गवासी हुआ, यह झूठ बोलते हैं।
- यह तो नर्क है।
- कोई मरा तो कहते स्वर्ग में गया फिर नर्क में क्यों बुलाते हैं कि आकर खाना खाओ।
- स्वर्ग में तो उनको बहुत वैभव मिलते हैं फिर तुम नर्क में क्यों बुलाते हो?
- मनुष्यों में इतनी भी समझ नहीं है।
- बाप बैठ समझाते हैं - अभी यह कलियुग खत्म होना है, इनको आग लगेगी।
- यह सब खत्म हो जायेंगे।
- तुम बच्चे जो बाप से वर्सा लेते हो, वह सतयुग में आकर राज्य करेंगे।
- इन लक्ष्मी-नारायण को यह वर्सा किसने दिया?
- बाप ने।
- तुम अभी बाप द्वारा लायक बन रहे हो।
- तुम कहेंगे हम नर्कवासी से स्वर्गवासी बन रहे हैं।
- बाप कहते हैं - मैं स्वर्गवासी नहीं बनता हूँ।
- मैं तो परमधाम में रहता हूँ।
- नर्कवासी-स्वर्गवासी तुम बनते हो।
- आत्मा का निवास स्थान शान्तिधाम है फिर तुम सुखधाम में आते हो।
- यह है ही दु:खधाम, इनका अब विनाश होना है।
- यह किसको भी पता नहीं है कि भगवान ब्रह्मा तन में आकर राजयोग सिखाते हैं।
- वह समझते हैं कि कृष्ण आया, कृष्ण के तन में भी नहीं कहते।
- कृष्ण को भगवान कह न सकें।
- वह तो विश्व का मालिक है।
- लिब्रेटर सबका एक है, वह है सुप्रीम आत्मा, परम-आत्मा।
- दुनिया में कोई भी सतसंग नहीं होता, जहाँ ऐसा समझें कि हम बाप से स्वर्ग का वर्सा लेते हैं।
- पतित से पावन बनाने वाला तो एक ही बाप है।
- बाप कहते हैं - मैं तुम्हारा सच्चा गुरू हूँ, तुमको पावन बनाता हूँ।
- बाकी गंगा का पानी पावन बना नहीं सकता।
- यह है ही पापात्माओं की दुनिया।
- कुछ भी करें सीढ़ी नीचे उतरनी ही है।
- सतोप्रधान से तमोप्रधान बनना ही है।
- तुम भक्ति नहीं करते हो।
- हाय-राम भी नहीं कहेंगे।
- वह तो तुम्हारा बाप है, तुमको पढ़ा रहे हैं।
- हे भगवान आओ, हे राम भी नहीं कहना चाहिए।
- परन्तु बहुतों में यह आदत पड़ी हुई है तो अक्षर निकल पड़ते हैं।
- तुमको बाप कहते हैं - मुझे याद करो तो विकर्म विनाश होंगे और तुम मेरे पास आ जायेंगे।
- याद एक को ही करना है।
- बाप कहते हैं - यह तुम्हारा अन्तिम जन्म है।
- अभी वर्सा लिया सो लिया, फिर कभी नहीं पा सकेंगे।
- बाप ने समझाया है, यह जो अपने को हिन्दू कहलाते हैं, वह असुल देवी-देवता धर्म वाले हैं।
- क्रिश्चियन धर्म वाले कभी नाम नहीं बदलते हैं।
- भल तमोप्रधान हैं तो भी क्रिश्चियन धर्म में ही हैं।
- तुम देवी-देवताये हो परन्तु पतित होने के कारण अपने को हिन्दू कह देते हो, अपने को देवता नहीं कह सकते।
- यह भूल गये हैं कि हम असुल देवी-देवता थे।
- अपने को देवता धर्म वाला कोई नहीं कहलाते हैं क्योंकि विकारी हैं।
- यह है देह-अभिमान।
- बच्चों को बहुत अच्छी तरह समझाया जाता है।
- यहाँ कोई साधू-सन्त आदि नहीं हैं।
- हम व्यापारी हैं, फलाना हैं - यह सब है देह-अभिमान।
- अभी तुमको देही-अभिमानी बनना है।
- देही-अभिमानी बनने में ही मेहनत है।
- तुमको बाबा से वर्सा लेना है तो बाप को याद करना है।
- कम कार डे, दिल यार डे...।
- तुम आशिक हो, एक माशूक के।
- सबका सद्गति दाता एक माशूक है।
- वह आते ही तब हैं, जब सबको सद्गति मिलती है, स्वर्ग की स्थापना होती है, दु:ख का नाम निशान गुम हो जाता है।
- अभी तुम बच्चे यहाँ आये हो - बेहद के बाप से स्वर्ग का, 21 जन्मों के लिए सदा सुख का वर्सा पाने।
- और कोई भी मनुष्य-मात्र किसी को स्वर्ग का मालिक बना नहीं सकते।
- शिवबाबा भारत में ही आकर भारत को स्वर्ग बनाते हैं।
- शिव जयन्ती भी मनाते हैं परन्तु भूल गये हैं कि बाबा से हमको स्वर्ग का वर्सा मिलता है।
- अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
- धारणा के लिए मुख्य सार:-
- 1) पढ़ाई के आधार पर अपनी तकदीर ऊंच बनानी है, मनुष्य से देवता बनना है।
- पावन बनकर वापिस घर जाना है फिर नई दुनिया में आना है।
- 2) हाथों से काम करते - एक बाप की याद में रहना है।
- कोई भी उल्टी बात न सुननी है, न सुनानी है।
- वरदान:-
- ( All Blessings of 2021)
- बुद्धि की प्रीत एक प्रीतम से लगाकर सदा सम्मुख की अनुभूति करने वाले विजयी रत्न भव
- प्रीत बुद्धि अर्थात् बुद्धि की लगन एक प्रीतम के साथ लगी हुई हो।
- जिसकी एक के साथ प्रीत है उनकी अन्य किसी भी व्यक्ति वा वैभव के साथ प्रीत जुट नहीं सकती।
- वे सदा बापदादा को अपने सम्मुख अनुभव करेंगे।
- उन्हें मन्सा में भी श्रीमत के विपरीत व्यर्थ संकल्प वा विकल्प नहीं आ सकते।
- उनके मुख से वा दिल से यही बोल निकलते - तुम्हीं से खाऊं, तुम्हीं से बैठूँ....तुम्हीं से सर्व संबंध निभाऊं..ऐसे सदा प्रीत बुद्धि रहने वाले ही विजयी रत्न बनते हैं।
- स्लोगन:-
- (All Slogans of 2021)
- चाहिए-चाहिए का संकल्प आना भी रॉयल रूप का मांगना है।
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