-  
        
      ओम् शान्ति। 
 
      - ब्राह्मण कुल भूषण बच्चे जानते हैं कि अभी हम ब्राह्मण सम्प्रदाय के हैं फिर दैवी सम्प्रदाय बनेंगे। 
 
      - बच्चों को बाप बैठ समझाते हैं - जबकि बेहद का बाप सम्मुख है और उससे बेहद का वर्सा मिल रहा है। 
        
      
 
      -  भक्ति मार्ग कब से चलता है, यह कोई को पता नहीं है। 
        
          - भक्ति मार्ग वाले भक्त भगवान को अथवा ब्राइड्स ब्राइडग्रुम को याद करते हैं।
            
              -  परन्तु वन्डर है कि उनको जानते नहीं।
 
              -  ऐसा कभी देखा कि सजनी साजन को न जाने। 
 
              - नहीं तो याद कर ही कैसे सकती। 
 
             
           
          - भगवान तो सबका बाप ठहरा।
 
         
       
      -  बच्चे बाप को याद करते हैं।
        
          -  परन्तु पहचान बिगर याद करना सब व्यर्थ हो जाता है इसलिए याद करने से कोई फायदा नहीं निकलता।
 
          -  याद करते कोई भी उस एम आब्जेक्ट को पाते नहीं।
 
          -  भगवान कौन है, उससे क्या मिलेगा।
            
              -  कुछ भी नहीं जानते।
 
              -  इतने सब धर्म क्राइस्ट, बौद्ध आदि प्रीसेप्टर अथवा धर्म स्थापन करने वालों को उनके फालोअर्स याद करते हैं परन्तु उनको याद करने से हमको क्या मिलना है, कुछ भी पता नहीं है।
 
             
           
          -  इससे तो जिस्मानी पढ़ाई अच्छी है।
 
          -  एम-आब्जेक्ट तो बुद्धि में रहती है ना।
 
          -  बाप से क्या मिलता है?
 
          -  टीचर से क्या मिलता है? 
 
          - और गुरू से क्या मिलता है?
 
          -  यह और कोई भी नहीं समझ सकते हैं।
 
         
       
      -  तुम यहाँ बाप के फिर टीचर के फिर सतगुरू के बनते हो।
        
          
            -  बाप और टीचर से गुरू ऊंच होता है। 
 
           
          - अब तुम बच्चों को निश्चय हुआ कि हम बाप के बने हैं। 
 
          - बाबा हमको 5 हजार वर्ष पहले मुआफिक आकर के स्वर्ग का मालिक बनाते हैं अथवा शान्तिधाम का मालिक बनाते हैं।
 
          -  बाप कहते हैं - लाडले बच्चे, तुम मुझसे अपना वर्सा लेंगे ना! 
 
          - सब कहते हैं, हाँ बाबा क्यों नहीं लेंगे।
 
          -  अच्छा - चन्द्रवंशी राम पद पाने में राज़ी होंगे?
 
          -  तुमको क्या चाहिए? 
 
          - बाप सौगात ले आये हैं।
 
         
       
      -  तुम सूर्यवंशी लक्ष्मी को वरेंगे या चन्द्रवंशी सीता को?
        
          -  तुम अपनी शक्ल तो देखो।
 
          -  श्री नारायण को वा श्री लक्ष्मी को वरने लायक हो?
 
          -  बिगर लायक बनने के वर कैसे सकते?
 
          -  अब बाप बैठ समझाते हैं - हूबहू जैसे कल्प पहले समझाया था फिर से समझा रहे हैं । 
 
          - तुम फिर से आकर वर्सा ले रहे हो।
 
          -  तुम्हारी एम आब्जेक्ट ही है बेहद के बाप से बेहद का वर्सा लेने की।
 
          -  वह है सूर्यवंशी राज्य पद, सेकेण्ड ग्रेड है चन्द्रवंशी।
 
          -  जैसे एयरकन्डीशन, फर्स्टक्लास, सेकेण्ड क्लास होते हैं ना।
 
          -  तो सतयुग की पूरी राजधानी, एयरकन्डीशन समझो।
 
          -  एयरकन्डीशन से ऊंच तो कुछ होता नहीं।
 
          -  फिर है फर्स्टक्लास। 
 
          - तो अब बाप कहते हैं - तुम एयरकन्डीशन का सूर्यवंशी राज्य लेंगे वा चन्द्रवंशी फर्स्टक्लास का? 
 
          - उससे भी कम तो फिर सेकेण्ड क्लास में नम्बरवार वारिस बनो फिर तुम पीछे-पीछे आकर राज्य पायेंगे।
 
          -  नहीं तो थर्डक्लास प्रजा फिर उनमें भी टिकेट रिजर्व होती है।
 
          -  फर्स्ट-क्लास रिजर्व, सेकेण्ड क्लास रिजर्व, नम्बरवार दर्जे होते हैं ना।
 
          -  बाकी सुख तो वहाँ है ही।
 
          -  अलग-अलग कम्पार्टमेंट तो हैं ना।
 
          -  साहूकार आदमी टिकेट लेंगे एयरकन्डीशन की।
 
          -  तुम्हारे में साहूकार कौन बनते हैं?
 
          -  जो सब कुछ बाप को दे देते हैं।
 
          -  बाबा यह सब कुछ आपका है।
 
          -  भारत में ही महिमा गाई हुई है - सौदागर, रतनागर, जादूगर यह महिमा है बाप की, न कि कृष्ण की।
 
         
       
      -  कृष्ण ने तो वर्सा लिया, सतयुग में प्रालब्ध पाई।
        
          -  वह भी बाबा का बना। 
 
          - प्रालब्ध कहाँ से तो पाई होगी ना।
 
          -  लक्ष्मी-नारायण सतयुग में प्रालब्ध भोगते हैं।
 
          -  अब तुम बच्चे अच्छी रीति जानते हो, जरूर इन्होंने पास्ट में प्रालब्ध बनाई होगी ना। 
            
              - नेहरू की प्रालब्ध कितनी अच्छी थी।
 
              -  जरूर अच्छे कर्म किये थे।
 
              -  बिगर ताज भारत का बादशाह था।
 
             
           
         
       
      -  भारत की महिमा तो बहुत है।
        
          -  भारत जैसा ऊंच देश कोई हो नहीं सकता।
 
          -  भारत परमपिता परमात्मा का बर्थप्लेस है। 
 
          - यह राज़ कोई की बुद्धि में नहीं बैठता।
 
          -  परमात्मा ही सबको सुख-शान्ति देते हैं, आधाकल्प के लिए।
 
          -  भारत ही नम्बरवन तीर्थ स्थान है।
 
          -  परन्तु ड्रामा अनुसार एक बाप को भूलने से सृष्टि की हालत कैसी हो गई है इसलिए शिवबाबा फिर से आते हैं।
 
          -  निमित्त तो कोई बनते हैं ना।        
 
         
       
      - अब बाप कहते हैं - अशरीरी भव, अपने को आत्मा निश्चय करो।
        
          -  मैं आत्मा किसकी सन्तान हूँ, यह कोई जानते नहीं। 
 
          - वन्डर है ना।
 
          -  कहते भी हैं, ओ गॉड फादर रहम करो।
 
         
       
      -  शिव जयन्ती भी मनाते हैं, परन्तु वह कब आये थे, कोई को पता नहीं।
        
          -  और यह है 5 हजार वर्ष की बात।
 
          -  बाप ही आकर नई दुनिया सतयुग स्थापन करते हैं।
 
          -  सतयुग की आयु लाखों वर्ष तो है नहीं। तो घोर अन्धियारा है ना।
 
         
       
      -  गीता का उपदेश कितने आकर सुनते हैं।
        
          - परन्तु न पढ़ाने वाले, न पढ़ने वाले कुछ समझते हैं। 
 
         
       
      - बाप कितना सहज कर समझाते हैं, सिर्फ बाप को याद करो। 
        
          - गृहस्थ व्यवहार में रहते कमल फूल समान बनो। 
 
          - विष्णु को ही सब अलंकार दिये हैं।
 
          -  शंख भी दिया है, फूल भी दिया है।
 
          -  वास्तव में देवताओं को थोड़ेही दिया जाता है। 
 
          - यह कितनी गुह्य गम्भीर बातें हैं। 
 
          - हैं ब्राह्मणों के अलंकार। 
 
          - परन्तु ब्राह्मणों को कैसे देवें, आज ब्राह्मण हैं, कल शूद्र बन पड़ते हैं।
 
          -  ब्रह्माकुमार ही शूद्र कुमार बन पड़ते।
            
          
 
          - अगर कोई गफलत की, बाप की श्रीमत पर न चला, बुद्धि खराब हुई, माया अच्छी तरह चमाट मार मुँह फेर देती है।
 
          -  मनुष्य गुस्से में कहते हैं ना - थप्पड़ मार मुँह फेर दूँगा। 
 
          - तो माया भी ऐसी है।
 
          -  बाप को भूले और माया एक सेकेण्ड में थप्पड़ मार मुँह फेर देती है।
 
          -  एक सेकेण्ड में जीवनमुक्ति पाते हैं। 
 
          - माया सेकेण्ड में जीवनमुक्ति खत्म कर देती है।
 
          -  कितने अच्छे-अच्छे बच्चों को माया पकड़ लेती है। 
 
          - देखती है कहाँ गफलत में है तो झट थप्पड़ लगा देती है। 
 
         
       
      - बाप तो आकर पुरानी दुनिया से मुँह फिराते हैं। 
        
          - लौकिक बाप कोई गरीब होता है, पुरानी झोपड़ी में रहते हैं फिर नया बनाते हैं, तो बच्चों की बुद्धि में बैठ जाता है बस अब नया मकान तैयार होगा, हम जाकर बैठेंगे। 
 
          - यह पुराना तोड़ देंगे। 
 
          - अब बाप ने तुम्हारे लिए हथेली पर बहिश्त अथवा बैकुण्ठ लाया है।
 
          - कहते हैं लाडले बच्चे, आत्माओं से बात करते हैं। 
 
          - इन आंखों द्वारा तुम बच्चों को देख रहे हैं। 
 
          - बाप समझाते हैं - मैं भी ड्रामा के वश हूँ।
 
          -  ऐसे नहीं ड्रामा के बिगर कुछ कर सकता हूँ। 
 
          - नहीं, बच्चे बीमार पड़ते हैं, ऐसे नहीं मैं ठीक कर दूँगा। 
 
          - आपरेशन करने से छुड़ा दूँगा।
 
          -  नहीं, कर्मभोग तो सबको भोगना ही है।
 
          -  तुम्हारे ऊपर तो बोझा बहुत है क्योंकि तुम सबसे पुराने हो।
 
          -  सतोप्रधान से एकदम तमोप्रधान बने हो।
 
         
       
      -  अब तुम बच्चों को बाप मिला है तो बाप से वर्सा लेना चाहिए।
        
          -  तुम जानते हो कल्प-कल्प ड्रामा अनुसार हम बाप से वर्सा लेते हैं। 
 
          - जो सूर्यवंशी, चन्द्रवंशी घराने के होंगे वह अवश्य आयेंगे। 
 
          - जो देवता थे फिर शूद्र बन गये हैं फिर वही ब्राह्मण बन दैवी सम्प्रदाय बनेंगे।
 
          -  यह बातें बाप बिगर कोई समझा न सके।
 
          -  बाप को तुम बच्चे कितने मीठे लगते हो।
 
          -  कहते हैं, तुम वही कल्प पहले वाले मेरे बच्चे हो।
 
          -  मैं कल्प-कल्प तुमको आकर पढ़ाता हूँ।
 
          -  कितनी वन्डरफुल बातें हैं।
 
         
       
      -  निराकार भगवानुवाच।
        
          - शरीर से वाच करेंगे ना। 
 
          - शरीर अलग हो जाता तो आत्मा वाच नहीं कर सकती। 
 
          - आत्मा डिटैच हो जाती है। 
 
         
       
      - अब बाप कहते हैं - अशरीरी भव।
        
          -  ऐसे नहीं कि प्राणायाम आदि चढ़ाना है।
 
          -  नहीं, समझना है मैं आत्मा अविनाशी हूँ।
 
          -  मेरी आत्मा में 84 जन्मों का पार्ट भरा हुआ है।
 
          -  बाप खुद कहते हैं - मेरी आत्मा भी जो एक्ट करती है, वह सब पार्ट भरा हुआ है।
 
          -  भक्ति मार्ग में वहाँ पार्ट चलता है फिर ज्ञान मार्ग में यहाँ आकर ज्ञान देता हूँ।
 
          -  भक्ति मार्ग वालों को ज्ञान का पता ही नहीं है। 
            
              - कोई ने शराब पिया नहीं तो टेस्ट का कैसे पता हो। 
 
              - ज्ञान भी जब लेवे तब पता पड़े।
 
             
           
         
       
      -  ज्ञान से सद्गति होती है तो जरूर ज्ञान सागर ही सद्गति कर सकते हैं। 
        
          - बाप कहते हैं मैं सर्व का सद्गति दाता हूँ।
 
          -  सर्वोदया लीडर है ना।
 
          -  कितने किसम-किसम के हैं।
 
          -  वास्तव में तो सर्व पर दया करने वाला बाप है। 
 
          - बाप से कहते हैं - हे भगवान रहम करो।
 
          -  तो सब पर रहम वो करते हैं, बाकी सब हैं हद के रहम करने वाले।
 
          -  बाप तो सारी दुनिया को सतोप्रधान बनाते हैं। 
 
          - उसमें तत्व भी सतोप्रधान बन जाते हैं।
 
          -  यह काम है ही परमात्मा का।
 
          -  तो सर्वोदया का अर्थ कितना बड़ा है।
 
          -  एकदम सब पर दया कर लेते हैं।
 
         
       
      - स्वर्ग की स्थापना में कोई भी दु:खी नहीं होता है। 
        
          - वहाँ नम्बरवन फर्नीचर, वैभव आदि मिलते हैं।
 
          -  दु:ख देने वाले जानवर, मक्खी आदि कोई नहीं होते।
 
          -  वहाँ भी बड़े आदमी के घर में कितनी सफाई रहती है।
 
          -  कभी तुम मक्खी नहीं देखेंगे।
 
          -  कोई मच्छर आदि घुस न सके।
 
          -  स्वर्ग में कोई की ताकत नहीं जो आ सके।
 
          -  गंद करने वाली कोई चीज़ होती नहीं।
 
          -  नेचुरल फूलों आदि की खुशबू रहती है।
 
          -  तुमको सूक्ष्मवतन में बाबा शूबीरस पिलाते हैं। 
 
          - अब सूक्ष्मवतन में तो कुछ भी है नहीं।
 
          -  यह सब साक्षात्कार हैं।
 
          -  बैकुण्ठ में कितने अच्छे-अच्छे फूल, बगीचे आदि होते हैं।
            
              -  सूक्ष्मवतन में थोड़ेही बगीचा रखा है।
 
              -  यह सब हैं साक्षात्कार।
 
              -  यहाँ बैठे हुए तुम साक्षात्कार करते हो।
 
             
           
         
       
      -  गीत भी बड़ा फर्स्टक्लास है।
        
          -  तुम जानते हो - हमको बाप मिला है और क्या चाहिए?
 
          -  बेहद के बाप से बेहद का वर्सा लेते हैं तो बाप को याद करना चाहिए। 
 
         
       
      - बाप की मत मशहूर है। 
        
          - श्रीमत से हम श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ बनेंगे।
 
          -  बाकी है सबकी आसुरी मत, इसलिए वह जानते नहीं कि सतयुग में सदैव सुख था।
 
          -  लक्ष्मी-नारायण का राज्य था।
 
          -  छोटेपन में वही राधे-कृष्ण हैं, उनके चरित्र आदि कुछ हैं नहीं। 
 
          - स्वर्ग में तो सब बच्चे बड़े फर्स्ट-क्लास होते हैं।
 
          -  चंचलता की कोई बात ही नहीं होती है।
 
         
       
      -  अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
 
      -  धारणा के लिए मुख्य सार:-        
 
      - 1) जब इस पुरानी दुनिया से मुँह फेर लिया तो फिर ऐसी कोई गफलत नहीं करनी है जो माया अपनी तरफ मुँह कर ले। 
        
          - श्रीमत की अवज्ञा नहीं करनी है।
 
          -  बाप से पूरा वर्सा लेना है। 
 
         
       
      - 2) बाप पर अपना सब कुछ स्वाहा कर पक्का वारिस बन सतयुगी एयरकन्डीशन की टिकेट लेनी है।
        
          -  एम आब्जेक्ट को बुद्धि में रख पुरूषार्थ करना है। 
 
         
       
      - वरदान:-        
 
      - ( All Blessings of 2021)
 
      - सेकण्ड में सर्व कमजोरियों से मुक्ति प्राप्त कर मर्यादा पुरूषोत्तम बनने वाले सदा स्नेही भव
 
      - जैसे स्नेही स्नेह में आकर अपना सब कुछ न्यौछावर वा अर्पण कर देते हैं।
 
      -  स्नेही को कुछ भी समर्पण करने के लिए सोचना नहीं पड़ता।
 
      -  तो जो भी मर्यादायें वा नियम सुनते हो उन्हें प्रैक्टिकल में लाने अथवा सर्व कमजोरियों से मुक्ति प्राप्त करने की सहज युक्ति है - सदा एक बाप के स्नेही बनो।
 
      -  जिसके स्नेही हो, निरन्तर उसके संग में रहो तो रूहानियत का रंग लग जायेगा और एक सेकण्ड में मर्यादा पुरूषोत्तम बन जायेंगे क्योंकि स्नेही को बाप का सहयोग स्वत: मिल जाता है। 
 
      - स्लोगन:-
 
      - (All Slogans of 2021)
 
      -  निश्चय का फाउण्डेशन मजबूत है तो सम्पूर्णता तक पहुंचना निश्चित है।
 
      -  मातेश्वरी जी के अनमोल महावाक्य -
 
      -  "मनुष्य-लोक, देव-लोक, भूत-प्रेतों की दुनिया का विस्तार''        
 
      - बहुत मनुष्य प्रश्न करते हैं - यह जो अशुद्ध जीवात्मायें जिनको घोस्ट कहा जाता है, यह सच है या कल्पना है?
 
      -  अथवा वहम् है?
 
      -  उस पर आज स्पष्ट समझाया जाता है कि मनुष्य आत्मा जब विकर्म करती है तो उनको अनेक प्रकार से सज़ायें भोगनी अवश्य पड़ती हैं और भोगनी भी मनुष्य जन्म में हैं, न कि जानवर पंछी और पशु योनि में।
 
      -  मनुष्य, मनुष्य ही बनता है।
 
      -  मनुष्य आत्मा अलग है और जानवरों की आत्मा अलग है, मनुष्य कभी जानवर नहीं बनता और न जानवर कभी मनुष्य बन सकता है। 
 
      - उन्हों की दुनिया अपनी है, यह मनुष्य आत्माओं की दुनिया अपनी है।
 
      -  दु:ख-सुख भोगने की महसूसता मनुष्य में जास्ती है, न कि जानवरों में।
 
      -  जब हम शुद्ध कर्म करने से सुख भी मनुष्य तन में पाते हैं तो दु:ख भी जरुर मनुष्य तन में ही आकर भोगना है।
 
      -  और यह ज्ञान सुनने की बुद्धि भी मनुष्य तन में ही रहती है, न कि जानवरों में, तो इस सृष्टि खेल में मुख्य पार्ट मनुष्य का है।
 
      -  यह जानवर पंछी आदि तो जैसे सृष्टि ड्रामा की शोभा है, सारे कल्प के अन्दर सतयुग आदि से कलियुग के अन्त तक मनुष्य आत्माओं के 84 जन्म हैं, बाकी यह 84 लाख तो जानवर पंछी आदि की वैरायटी हो सकती है। 
 
      - अब यह सब राज़ परमात्मा बिगर कोई नहीं समझा सकता।
 
      -  आत्माओं का निवास स्थान है ब्रह्म तत्व अर्थात् निराकारी दुनिया, बाकी इन जानवरों की आत्मायें ब्रह्म तत्व में नहीं जा सकती, वह इस आकाश तत्व के अन्दर ही पार्ट बजाती है, उन्हों का भी मर्ज इमर्ज का और सतो, रजो, तमो में आने का पार्ट होता है इसलिए हमें प्रकृति के बहुत विस्तार में न जाकर पहले अपनी आत्मा का कल्याण करें अर्थात् मनमनाभव। 
 
      - अब आते हैं मनुष्य आत्मा पर, तो जो आत्मायें अशुद्ध कर्म करने से विकर्म बनाती हैं वो अपने अशुद्ध संस्कार अनुसार जन्म-मरण के चक्कर में आए आदि-मध्य-अन्त अर्थात् मरने के समय अपने किये हुए विकर्मों का साक्षात्कार पाए सूक्ष्म में सज़ा भोगती हैं।
 
      -  इस थोड़े समय में अनेक जन्मों का दु:ख महसूस होता है फिर शरीर छोड़ जाकर गर्भ जेल में दु:ख भोगती हैं और फिर संस्कार अनुसार ऐसे माता-पिता के पास जन्म ले वहाँ भी अपने जीवन में सुख दु:ख भोगती हैं, इसको कहा जाता है आदि-मध्य-अन्त। 
 
      - परन्तु कोई आत्मा शरीर न धारण कर आकारी रूप में इस आकाश तत्व के अन्दर घोस्ट बन भटकती रहती है, यह भी एक सज़ा है अर्थात् भोगना है।
 
      -  उस अशुद्ध जीवात्मा के साथ किसी का हिसाब-किताब होता है तो वो उनमें प्रवेश कर उनको दु:ख देती है अर्थात् हिसाब-किताब चुक्तू कर फिर जाकर अपना शरीर धारण करती है। 
 
      - कोई जीवात्मा तो जिसमें प्रवेश करती है उनको बहुत मारती भी है, बहुत कष्ट देती है परन्तु यह सब हिसाब-किताब के अन्दर भोगना का प्रकार है, जो सभी मनुष्य तन में ही सुख दु:ख महसूस होता है।
 
      -  यह तो आपको समझाया गया है कि जो आत्मा मुक्तिधाम से इस साकारी खेल में आती है वो बीच में वापस मुक्तिधाम में जा नहीं सकती, परन्तु अपने किये हुए अशुद्ध, शुद्ध कर्मों अनुसार संस्कार ले दु:ख सुख के चक्कर में आती है।
 
      -  सभी आत्माओं का पुनर्जन्म होता है सिर्फ एक परमात्मा का नहीं होता है। 
 
      - अच्छा। ओम् शान्ति।
 
         
     
   
    
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