ओम् शान्ति।
       बच्चों ने गीत सुना। 
      हम बच्चों को सवेरे-सवेरे जगाने कौन आया है - जो हमारा तीसरा ज्ञान का नेत्र एकदम खुल गया?
      
        -  ज्ञान सागर, परमपिता परमात्मा द्वारा हमारा तीसरा नेत्र ज्ञान का खुला है।
 
        -  कहते भी हैं बाप ज्योति जगाने वाला है।
 
        -  परन्तु वह बाप है - यह कोई नहीं जानते हैं।
 
       
       ब्रह्म-समाजी कहते हैं वह शमा है, ज्योति है।
      
        - मन्दिर में हमेशा वह ज्योति ही जगाते हैं क्योंकि वह परमात्मा को ज्योति स्वरूप मानते हैं, इसलिए वहाँ मन्दिर में दीवा जगाते ही रहते हैं। 
 
        - अब यह बाप कोई माचिस से दीवा नहीं जगाते हैं।
 
        -  यह तो बात ही न्यारी है। 
 
        - गाया भी जाता है - ईश्वर की गति मत न्यारी है।
 
       
       तुम बच्चे अब समझते हो बाप सद्गति के लिए आकर ज्ञान-योग सिखलाते हैं।
      
        -  सिखलाने वाला तो जरूर चाहिए ना।
 
        -  शरीर तो नहीं सिखलायेगा।
 
        -  आत्मा ही सब कुछ करती है।
 
        -  आत्मा में ही अच्छे बुरे संस्कार रहते हैं।
 
       
       इस समय रावण की प्रवेशता के कारण मनुष्यों के संस्कार भी बुरे हैं अर्थात् 5 विकारों की प्रवेशता है।
      
        -  देवताओं में यह 5 विकार होते नहीं।
 
        -  भारत में जब दैवी स्वराज्य था तो यह बुरे संस्कार नहीं थे।
 
        -  सर्वगुण सम्पन्न थे, कितने अच्छे संस्कार थे देवी-देवताओं के, जो अभी तुम धारण कर रहे हो।
 
        -  बाप ही आकर सेकेण्ड में सर्व को सद्गति देते हैं।
 
       
       बाकी गुरू गोसाई आदि यह तो भक्ति मार्ग में चलते आये हैं, जो एक की भी गति सद्गति नहीं कर सकते।
      
        -  बाप के आने से ही सर्व की सद्गति होती है।
 
       
       परमपिता परमात्मा को बुलाते ही इसलिए हैं कि आकर पतित दुनिया का विनाश कर पावन दुनिया का उद्घाटन करो वा दरवाज़ा खोलो।
      
        -  बाप आकर गेट खुलवाते हैं - शिव शक्ति माताओं द्वारा।
 
        -  वन्दे मातरम् गाई हुई हैं।
 
        -  इस समय की कोई भी माता की वन्दना नहीं की जाती क्योंकि कोई भी श्रेष्ठाचारी माता नहीं है।
 
       
       श्रेष्ठाचारी उनको कहा जाता है जो योगबल से पैदा हो। 
      
        - लक्ष्मी-नारायण को श्रेष्ठाचारी कहा जाता है।
 
        -  भारत में देवी-देवता जब थे तो भारत श्रेष्ठाचारी था।
 
        -  इन बातों को मनुष्य तो जानते ही नहीं।
 
        -  वह अपने ही प्लैन बना रहे हैं।
 
       
       गांधी भी रामराज्य चाहते थे, इससे सिद्ध है कि रावण राज्य है।
      
        -  भारत पतित है।
 
        -  परन्तु रामराज्य स्थापन करने के लिए तो बेहद का बापू जी चाहिए, जो रामराज्य की स्थापना और रावण राज्य का विनाश करे। 
 
        - बच्चे जानते हैं - रावण राज्य को अब आग लगनी है।
 
       
       सभी आत्मायें अज्ञान अन्धेरे में सोये हुए हैं।
      
        -  तुम जानते हो हम भी सोये हुए थे, बाप ने आकर जगाया है।
 
        -  भक्ति की रात पूरी हुई, दिन शुरू होता है।
 
        -  रात पूरी हो अब दिन हो रहा है।
 
        -  बाप संगम पर आया हुआ है। 
 
        - बच्चों को दिव्य दृष्टि और ज्ञान का तीसरा नेत्र देते हैं, जिससे तुम सारे विश्व को जान चुके हो।
 
        -  तुम्हारी बुद्धि में बैठा हुआ है कि यह बना बनाया अविनाशी ड्रामा है, जो फिरता ही रहता है। 
 
        - अभी तुम कितना जाग गये हो, सारी दुनिया सोई हुई है। 
 
        - अभी तुम बच्चों को सारे विश्व के आदि-मध्य-अन्त, मूलवतन, सूक्ष्मवतन, स्थूलवतन का पता है।
 
        -  बाकी सारी दुनिया कुम्भकरण की अज्ञान नींद में सोई हुई है। 
 
       
      यह किसको पता नहीं कि पतित-पावन कौन है।
      
        -  पुकारते हैं हे पतित-पावन आओ।
 
        -  यह नहीं कहते कि आकर सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का राज़ समझाओ।
 
        -  बाप कहते हैं - तुम इस सृष्टि चक्र को समझने से ही चक्रवर्ती राजा बनते हो। 
 
        - याद से ही पावन बनते हो। 
 
       
      यह भी जानते हो विनाश सामने खड़ा है, लड़ाई भी होनी है। 
      
        - बाकी कौरवों, पाण्डवों की लड़ाई नहीं हुई। 
 
        - पाण्डव कौन थे!
 
        -  यह भी किसको पता नहीं।
 
        -  सेना आदि की कोई बात ही नहीं। तुम्हारी तरफ है साक्षात् पारलौकिक परमपिता।
 
        -  उस बाप से ही वर्सा मिलता है। 
 
        - तुम जान गये हो कृष्ण की आत्मा 84 जन्म भोग अब फिर बाप से वर्सा ले रही है।
 
        -  वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी रिपीट होती है। 
 
        - अब तुम बच्चों को विनाश के पहले सतोप्रधान जरूर बनना है।
 
       
       गृहस्थ व्यवहार में रहते कमल फूल समान पवित्र रहना है।
      
        -  गाया भी हुआ है भगवानुवाच, गृहस्थ व्यवहार में रहते यह एक जन्म पवित्र बनो।
 
        -  पास्ट इज़ पास्ट। 
 
        - यह तो ड्रामा में नूँध है।
 
       
       सृष्टि को सतोप्रधान बनना ही है, यह ड्रामा की भावी है।
      
        -  ईश्वर की भावी नहीं, ड्रामा की भावी ऐसी बनी हुई है।
 
        -  सो बाप बैठ समझाते हैं। 
 
       
      आधाकल्प जब पूरा होता है तब बाप आते हैं। 
      
        - बाप कहते हैं - जब रात पूरी हो दिन शुरू होता है तब ही मैं आता हूँ।
 
        -  शिवरात्रि भी कहते हैं ना।
 
        -  शिव के पुजारी शिवरात्रि को मानते हैं।
 
       
       गवर्मेन्ट ने तो हॉलीडे भी बन्द कर दिया है।
      
        -  नहीं तो कम से कम एक मास हॉलीडे चलनी चाहिए।
 
        -  कोई को भी पता नहीं - शिवबाबा सर्व की सद्गति करने वाला है। 
 
        - वही सर्व का दु:ख हर्ता सुख कर्ता है। 
 
        - उनकी जयन्ती तो बड़े धूमधाम से एक मास सब धर्म वालों को मनानी चाहिए।
 
        -  खास भारत को बाप डायरेक्ट आकर सद्गति देते हैं।
 
        -  जब भारत स्वर्ग था तो देवी-देवताओं का राज्य था, उस समय और कोई धर्म ही नहीं थे, देवतायें विश्व के मालिक थे।
 
        -  कोई पार्टीशन आदि नहीं थे इसलिए कहा जाता है अटल, अखण्ड, सुख-शान्ति, सम्पत्ति का दैवी राज्य फिर से हम प्राप्त कर रहे हैं।
 
        -  बेहद के बाप से बेहद का वर्सा 5 हजार वर्ष पहले भी मिला था।
 
       
       सूर्यवंशी चन्द्रवंशी राज्य में कोई दु:ख का नाम नहीं था।
      
        -  गाया भी जाता है - राम राजा, राम प्रजा, राम... वहाँ अधर्म की कोई बात नहीं।
 
        -  बाबा ने तुम्हें ब्रह्मा और विष्णु के बारे में भी समझाया है कि इन दोनों का आपस में क्या सम्बन्ध है।
 
        -  ब्रह्मा की नाभी से विष्णु निकला.. यह कैसा वन्डरफुल चित्र बनाया है।
 
        -  बाप समझाते हैं - यह लक्ष्मी-नारायण ही अन्त में आकर ब्रह्मा सरस्वती, जगत-अम्बा, जगत-पिता बनते हैं, जो दोनों फिर विष्णु अर्थात् लक्ष्मी-नारायण बनते हैं। 
 
       
      बाप बैठ समझाते हैं जो भी चित्र देखते हो - इनमें कोई भी यथार्थ नहीं है।
      
        -  शिव का बड़ा चित्र बनाते हैं, वह भी अयथार्थ है।
 
        -  भक्ति के कारण बड़ा बनाया है।
 
        -  नहीं तो बिन्दी की पूजा कैसे हो सकती।
 
        -  अच्छा फिर ब्रह्मा, विष्णु, शंकर के लिए भी समझ नहीं सकते।
 
        -  त्रिमूर्ति ब्रह्मा कह देते हैं।
 
       
       
       ब्रह्मा द्वारा स्थापना, विष्णु द्वारा पालना.. यह भी कहते हैं परन्तु ब्रह्मा तो स्थापना करते नहीं हैं।
      
        -  स्वर्ग की स्थापना ब्रह्मा करेंगे?
 
        -  नहीं। 
 
        - स्वर्ग की स्थापना तो परमपिता परमात्मा ही करते हैं।
 
        -  यह आत्मा तो पतित है, इनको व्यक्त ब्रह्मा कहा जाता है।
 
        -  यही आत्मा पावन बन जायेगी और चली जायेगी।
 
        -  फिर सतयुग में जाकर नारायण बनते हैं।
 
        -  तो प्रजापिता ब्रह्मा जरूर यहाँ चाहिए ना।
 
        -  चित्र फिर वहाँ दे दिये हैं।
 
        -  जैसे यह ज्ञान के अलंकार वास्तव में हैं तुम्हारे परन्तु विष्णु को दे दिये हैं।
 
       
       नौधा भक्ति में भी साक्षात्कार होता है।
      
        -  मीरा का भी नाम गाया हुआ है ना।
 
        -  पुरूषों में नम्बरवन भक्त है नारद।
 
        -  माताओं में मीरा गाई हुई है।
 
       
       तुम अभी नारायण अथवा लक्ष्मी को वरने के लिए यह ज्ञान सुन रहे हो।
      
        -  तुम्हारा ही स्वयंवर होता है। 
 
        - नारद के लिए भी दिखाते हैं - सभा में आकर कहा हम लक्ष्मी को वर सकते हैं!
 
        -  अभी लक्ष्मी को वरने लायक तुम बन रहे हो।
 
        -  बाकी वह तो सब हैं भक्ति मार्ग की कथायें।
 
        -  बाप रीयल बात बैठ समझाते हैं।
 
        -  लक्ष्मी सतयुग में, नारद भगत द्वापर में।
 
        -  सतयुग में फिर नारद कहाँ से आया।
 
       
       राधे-कृष्ण का ही स्वयंवर के बाद नाम लक्ष्मी-नारायण पड़ता है।
      
        -  यह भी भारतवासी नहीं जानते हैं।
 
        -  कितना अज्ञान अन्धियारा है।
 
       
       बाप है कल्याणकारी।
      
        -  तुमको भी कल्याणकारी बनाते हैं।
 
        -  अब विचार सागर मंथन करना चाहिए औरों को भी कैसे समझायें।
 
       
       तो बाप समझाते हैं कि चित्र आदि कैसे बैठ बनाये हैं।
      
        -  गांधी की नाभी से नेहरू निकला, अब कहाँ वह विष्णु देवता, कहाँ यह मनुष्य... इन सब बातों को तुम बच्चे अब समझते हो।
 
       
       नम्बरवार तुमको खुशी रहती है।
      
        -  बेहद का बाप हमको पढ़ा रहे हैं।
 
        -  यह तो कभी सुना नहीं था क्योंकि गीता में तो कृष्ण भगवानुवाच लिख दिया है।
 
       
       भगवान कब आया, कब आकर गीता सुनाई!
      
        -  तिथि तारीख कुछ है नहीं। 
 
        - कल्प की आयु ही लाखों वर्ष कह देते हैं।
 
        -  कोई की भी बुद्धि में आता नहीं है।
 
        -  अब बाप बैठ बच्चों को समझाते हैं। 
 
       
      ब्राह्मणों का झाड़ वृद्धि को पाता रहता है।
      
        -  पाते-पाते अनगिनत हो जायेंगे।
 
       
       तुम बच्चे जानते हो वर्ण कैसे चक्र लगाते हैं।
      
        -  हम ब्राह्मणों का वर्ण सबसे ऊंच है।
 
       
       हम हैं भारत के गुप्त सच्चे रूहानी सोशल वर्कर।
      
        -  परमपिता परमात्मा हम से सेवा करा रहे हैं।
 
        -  हम रूहानी सेवा करते हैं, वह जिस्मानी सेवा करते हैं।
 
        - तुमको कहते हैं तुम भारत की क्या सेवा करते हो?
 
        -  बोलो हम हैं रूहानी सेवाधारी। 
 
        - स्वर्ग का उद्घाटन करा रहे हैं, स्थापना करा रहे हैं।
 
       
       शिवबाबा है करनकरावनहार, जो करा रहे हैं।
      
        -  वह करता भी है।
 
        - मुरली कौन चलाता है?
 
        -  तो कर्म करता है!
 
        -  तुमको भी सिखलाते हैं कि ऐसे चलाओ। 
 
        - महामन्त्र देते हैं मनमनाभव।
 
        -  कर्म सिखलाया ना।
 
        -  फिर तुमको कहते हैं औरों को सिखलाओ, इसलिए करनकरावनहार कहा जाता है।
 
       
       तुम बच्चे भी यही शिक्षा देते हो।
      
        -  बाप को याद करो और वर्से को याद करो।
 
        -  यही तुम बच्चों को पैगाम पहुँचाना है।
 
       
       ऐसे नहीं दूसरे को पैगाम दे और खुद याद में न रहे फिर क्या होगा। 
      
        - दूसरे पुरुषार्थ कर ऊंच चढ़ जायेंगे, मैसेज देने वाले रह जायेंगे।
 
        -  याद का पुरुषार्थ न करने से इतना ऊंच पद नहीं पाते हैं। 
 
        - दूसरे याद की यात्रा से पावन बन जाते हैं।
 
        -  जैसे बाबा बांधेलियों का मिसाल देते हैं। 
 
        - वह याद में जास्ती रहती हैं, बिगर देखे भी पत्र लिखती हैं। 
 
        - बाबा हम आपके हो चुके हैं, हम पवित्र जरूर रहेंगे।
 
        -  तुम बच्चों की है बाप से प्रीत बुद्धि। 
 
       
      तुम्हारी ही माला बनी हुई है। 
      
        - विष्णु की माला और रुद्राक्ष की माला में ऊपर है मेरू।
 
        -  माला उठाते ही पहले फूल और दो दाने हाथ में आते हैं, उनको नमस्कार करते हैं।
 
        -  फिर है माला।
 
        -  तुम भारत को स्वर्ग बना रहे हो तो यह माला तुम्हारा ही यादगार है।
 
       
       बाप ने यह गीता ज्ञान यज्ञ रचा है, इनमें सारी पुरानी दुनिया स्वाहा होगी।
      
        -  बाप है मोस्ट बिलवेड फादर।
 
        -  तुमको भविष्य के लिए सदा सुख का वर्सा देते हैं - 21 जन्म के लिए।
 
        -  जिन्होंने कल्प पहले वर्सा लिया है वह जरूर आयेंगे, ड्रामा प्लैन अनुसार।
 
       
       बाप कहते हैं बच्चे सुखधाम चलना है तो पवित्र बनना है।
      
        -  मेरे को याद करो, मांगना कुछ भी नहीं है कि कृपा करो वा मदद करो।
 
        -  नहीं।
 
        -  हम तो सबको मदद करते हैं।
 
        -  पुरूषार्थ तो तुमको करना है। आशीर्वाद की बात नहीं।
 
       
       बाप कहते हैं मामेकम् याद करो। 
      
        - याद करना तुम्हारा काम है। 
 
        - डायरेक्शन देना - यही कृपा है।
 
       
       बाकी तो भल खाओ, पियो, घूमो, फिरो... तुम्हें पवित्र भोजन ही खाना है।
      
        -  हम देवी-देवता बनते हैं, वहाँ प्याज आदि थोड़ेही होगा।
 
        -  यह सब यहाँ छोड़ना है।
 
        -  यह चीजें वहाँ होती नहीं।
 
        -  बीज ही नहीं है। 
 
        - जैसे सतयुग में बीमारी आदि होती नहीं।
 
        -  अभी देखो कितनी बीमारियां निकली हैं।
 
        -  वहाँ तमोगुणी कोई चीज़ होती नहीं।
 
        -  हर चीज़ सतोप्रधान।
 
        -  यहाँ देखो मनुष्य क्या-क्या खाते हैं।
 
        -  अब बाप बच्चों को कहते हैं - मुझे याद करो और संग तोड़ मुझ संग जोड़ो तो तुम पावन बन जायेंगे। 
 
       
      अच्छा!
        
        मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते। 
      धारणा के लिए मुख्य सार:- 
      1) पास्ट इज़ पास्ट, जो बीता उसे भूलकर, गृहस्थ व्यवहार में रहते सतोप्रधान बनने का पुरुषार्थ करना है।
       विनाश के पहले पावन जरूर बनना है। 
      2) भारत को स्वर्ग बनाने की सच्ची-सच्ची सेवा में तत्पर रहना है।
      
        -  खान-पान बहुत शुद्ध रखना है।
 
        -  पवित्र भोजन ही खाना है। 
 
       
      वरदान:-
      ( All Blessings of 2021) 
      रूहे गुलाब बन दूर-दूर तक रूहानी खुशबू फैलाने वाले रूहानी सेवाधारी भव
       रूहानी रूहे गुलाब अपनी रूहानी वृत्ति द्वारा रूहानियत की खुशबू दूर-दूर तक फैलाते हैं।
       उनकी दृष्टि में सदा सुप्रीम रूह समाया हुआ रहता है।
       वे सदा रूह को देखते, रूह से बोलते।
       मैं रूह हूँ, सदा सुप्रीम रूह की छत्रछाया में चल रहा हूँ, मुझ रूह का करावनहार सुप्रीम रूह है, ऐसे हर सेकेण्ड हजूर को हाजिर अनुभव करने वाले सदा रूहानी खुशबू में अविनाशी और एकरस रहते हैं।
       यही है रूहानी सेवाधारी की नम्बरवन विशेषता। 
      स्लोगन:-
    (All Slogans of 2021)
     निर्विघ्न बन सेवा में आगे नम्बर लेना अर्थात् नम्बरवन भाग्यशाली बनना। |