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आज बापदादा अपने सर्व बच्चों में से विशेष दो प्रकार के बच्चे देख रहे हैं। 
 
      - एक हैं सदा योगयुक्त और हर कर्म में युक्तियुक्त। 
 
      - दूसरे योगी हैं लेकिन सदा योगयुक्त नहीं हैं और सदा हर कर्म में स्वत: युक्तियुक्त नहीं।
 
      -  मन्सा वा बोल, कर्म - तीनों में से कभी किसमें, कभी किसमें युक्तियुक्त नहीं।
 
      -  वैसे ब्राह्मण-जीवन अर्थात् स्वत: योग-युक्त और सदा युक्तियुक्त। 
 
      - ब्राह्मण-जीवन की अलौकिकता वा विशेषता वा न्यारा और प्यारापन यही है - “योगयुक्त'' और “युक्ति-युक्त''। 
 
      - लेकिन कोई बच्चे इस विशेषता में सहज और नैचुरल चल रहे हैं और कोई अटेन्शन भी रखते हैं, फिर भी सदा दोनों बातों का अनुभव नहीं कर सकते।
 
      -  इसका कारण क्या?
 
      -  नॉलेज तो सभी को है और लक्ष्य भी सभी का एक ही है।
 
      -  फिर भी कोई लक्ष्य के आधार से इन दोनों लक्ष्य अर्थात् योगयुक्त और युक्तियुक्त स्थिति की अनुभूति के समीप हैं और कोई कभी फास्ट पुरुषार्थ से समीप आते लेकिन कभी समीप और कभी चलते-चलते कोई न कोई कारण वश रुक जाते हैं इसलिए सदा लक्षण के समीप अनुभूति नहीं करते। 
 
      - सर्व ब्राह्मण आत्माओं में से इस श्रेष्ठ लक्ष्य तक नंबरवन समीप कौन?
 
      -  ब्रह्मा बाप। 
 
      - क्या विधि अपनाई जो इस सिद्धि को प्राप्त किया? 
 
      - सदा योगयुक्त रहने की सरल विधि है - सदा अपने को “सारथी'' और “साक्षी'' समझ चलना।
 
      -  आप सभी श्रेष्ठ आत्माएं इस रथ के सारथी हो। 
 
      - रथ को चलाने वाली आत्मा सारथी हो। यह स्मृति स्वत: ही इस रथ अथवा देह से न्यारा बना देती है, किसी भी प्रकार के देहभान से न्यारा बना देती है। 
 
      - देहभान नहीं तो सहज योगयुक्त बन जाते और हर कर्म में योगयुक्त, युक्तियुक्त स्वत: ही हो जाते हैं। 
 
      - स्वयं को सारथी समझने से सर्व कर्मेन्द्रियाँ अपने कंट्रोल में रहती हैं अर्थात् सर्व कर्मेन्द्रियों को सदा लक्ष्य और लक्षण की मंजिल के समीप लाने की कंट्रोलिंग पावर आ जाती है।
 
      -  स्वयं “सारथी'' किसी भी कर्मेन्द्रिय के वश नहीं हो सकता क्योंकि माया जब किसी के ऊपर भी वार करती है तो माया के वार करने की विधि यही होती है कि कोई-न-कोई स्थूल कर्मेन्द्रियाँ अथवा सूक्ष्म शक्तियां - “मन-बुद्धि-संस्कार'' के परवश बना देती है।
 
      -  आप सारथी आत्माओं को जो महामंत्र, वशीकरण मंत्र बाप से मिला हुआ है उसको परिवर्तन कर वशीकरण के बजाय वशीभूत बना देती है। 
 
      - और एक बात में भी वशीभूत हुए तो सभी भूत प्रवेश हो जाते हैं क्योंकि इन भूतों की भी आपस में बहुत युनिटी है। 
 
      - एक भूत आया तो वह सभी का आह्वान करेगा।
 
      -  फिर क्या होता है? 
 
      - यह भूत सारथी से स्वार्थी बना देते हैं। 
 
      - और आप क्या करते हो? 
 
      - जब सारथीपन की स्मृति में आते हो तो भूतों को भगाने की युद्ध करते हो।
 
      -  युद्ध की स्थिति को योगयुक्त-स्थिति नहीं कहेंगे इसलिए योगयुक्त वा युक्तियुक्त मंजिल के समीप जाने की बजाय रुक जाते हो और पहला नम्बर स्थिति से दूसरे नम्बर में आ जाते हो।
 
      -  सारथी अर्थात् वश होने वाले नहीं लेकिन वश कर चलाने वाले। 
 
      - तो आप सब कौन हो?
 
      -  सारथी हो ना!
 
      - सारथी अर्थात् आत्मा-अभिमानी क्योंकि आत्मा ही सारथी है। 
 
      - ब्रह्मा बाप ने इस विधि से नम्बरवन की सिद्धि प्राप्त की इसलिए बाप भी इस का सारथी बना।
 
      -  सारथी बनने का यादगार बाप ने करके दिखाया।
 
      -  फॉलो फॉदर करो। 
 
      - सारथी बन सदा सारथी-जीवन में अति न्यारी और प्यारी स्थिति का अनुभव कराया क्योंकि देह को अधीन कर बाप प्रवेश होते अर्थात् सारथी बनते हैं देह के अधीन नहीं बनते इसलिए न्यारा और प्यारा है। 
 
      - ऐसे ही आप सभी ब्राह्मण आत्माएं भी बाप समान सारथी की स्थिति में रहो।
 
      -  चलते-फिरते यह चेक करो कि मैं सारथी अर्थात् सर्व को चलाने वाली न्यारी और प्यारी स्थिति में स्थित हूँ?
 
      -  बीच-बीच में यह चेक करो।
 
      -  ऐसे नहीं कि सारा दिन बीत जाए फिर रात को चेक करो। 
 
      - सारा दिन बीत गया तो बीता हुआ समय सदा के लए कमाई से गया इसलिए गँवा करके होश में नहीं आना।
 
      -  यह स्वत: नैचुरल संस्कार बनाओ।
 
      -  कौनसा? 
 
      - चेकिंग का।
 
      -  जैसे किसी के कोई पुराने संस्कार इस ब्राह्मण-जीवन में अभी भी आगे बढ़ने में विघ्न रूप बन जाते हैं तो कहते हो ना कि न चाहते भी संस्कारों के वश हो जाते हैं।
 
      -  जो नहीं करना चाहते हो वह कर लेते हो। 
 
      - जब उल्टे संस्कार न चाहते कोई भी कर्म करा लेते हैं तो यह नैचुरल चेकिंग का शुद्ध संस्कार अपना नहीं सकते हो?
 
      -  बिना मेहनत के चेकिंग के शुद्ध संस्कार स्वत: ही कार्य कराते रहेंगे।
 
      -  यह नहीं कहेंगे कि भूल जाते हैं या बहुत बिजी रहते हैं। 
 
      - अशुद्ध अथवा व्यर्थ संस्कार हैं।
 
      -  कई बच्चों में अशुद्ध संस्कार नहीं तो व्यर्थ संस्कार भी हैं। 
 
      - यह अशुद्ध, व्यर्थ संस्कार भुलाते भी नहीं भूल सकते हो और यही कहते हो कि मेरा भाव नहीं था लेकिन मेरा यह पुराना स्वभाव है वा संस्कार है।
 
      -  तो अशुद्ध नहीं भूलता फिर शुद्ध संस्कार कैसे भूल जाता है? 
 
      - तो सारथीपन की स्थिति स्वत: ही स्वउन्नति के शुद्ध संस्कार इमर्ज करती है और नैचुरल समय प्रमाण सहज चेकिंग होती रहेगी। 
 
      - अशुद्ध आदत से मजबूर हो जाते हो और इस आदत से मजबूत हो जायेंगे।
 
      -  तो सुना सदा योगयुक्त-युक्तियुक्त रहने की विधि क्या हुई?
 
      -  सारथी बन चलना। 
 
      - सारथी स्वत: ही साक्षी हो कुछ भी करेंगे, देखेंगे, सुनेंगे। 
 
      - साक्षी बन देखने, सोचने, करने सब में सब-कुछ करते भी निर्लेप रहेंगे अर्थात् माया के लेप से न्यारे रहेंगे।
 
      - तो पाठ पक्का किया ना।
 
      -  ब्रह्मा बाप को फॉलो करने वाले हो ना। 
 
      - ब्रह्मा बाप से बहुत प्यार है ना।
 
      -  प्यार की निशानी है “समान बनना'' अर्थात् फॉलो करना।
 
      - सभी टीचर्स का बाप से कितना प्यार है!
 
      -  बाप सदा टीचर्स को अपने सेवा के समीप साथी समझते हैं। 
 
      - तो पहले फॉलो टीचर्स करेंगी ना!
 
      -  इसमें सदा यही लक्ष्य रखो कि “पहले मैं''। 
 
      - ईर्ष्या में पहले मैं नहीं, वह नुकसान करती है। 
 
      - शब्द वही है “पहले मैं'' लेकिन एक है ईर्ष्यावश पहले मैं।
 
      -  तो इससे पहले के बजाय कहाँ लास्ट पहुंच जाता, फर्स्ट से लास्ट आ जाता और फॉलो फॉदर में “पहले मैं'' कहा और किया तो फर्स्ट के साथ में आप भी फर्स्ट हो जायेंगे।
 
      -  ब्रह्मा फर्स्ट हैं ना!
 
      -  तो सदा यह लक्ष्य रखो कि टीचर्स अर्थात् फॉलो फॉदर और नम्बरवन फॉलो फॉदर। 
 
      - जैसे ब्रह्मा नम्बरवन बना तो फॉलो करने वाले भी नम्बरवन का लक्ष्य रखो। 
 
      - टीचर्स सभी ऐसे पक्की हैं ना, हिम्मत है फॉलो करने की?
 
      -  क्योंकि टीचर्स अर्थात् निमित्त बनने वाली, अनेक आत्माओं के निमित्त हो। 
 
      - तो निमित्त बनने वालों के ऊपर कितनी जिम्मेवारी है!
 
      -  जैसे ब्रह्मा बाप निमित्त रहे ना।
 
      -  तो ब्रह्मा बाप को देखकर के कितने ब्राह्मण तैयार हुये!
 
      - ऐसे ही टीचर्स कोई भी कार्य करती हो - चाहे खाना बना रही हो, चाहे सफाई कर रही हो लेकिन हर कर्म करते यह स्मृति रहे कि मैं निमित्त हूँ - अनेक आत्माओं के प्रति, “जो'' और “जैसा'' मैं करूंगी - मुझ निमित्त आत्मा को देख और भी करेंगे इसलिए बापदादा सदैव कहते हैं एक तरफ है भाषण करना और दूसरे तरफ है बर्तन मांजना।
 
      -  दोनों ही काम में योगयुक्त, युक्तियुक्त।
 
      -  काम कैसा भी हो लेकिन स्थिति सदा ही योगयुक्त और युक्तियुक्त हो। 
 
      - ऐसे नहीं भाषण कर रहे हैं तब तो योगयुक्त रहें और बर्तन मांजना अर्थात् साधारण काम कर रहे हैं तो स्थिति भी साधारण हो जाए। 
 
      - हर समय फॉलो फॉदर। सुना!
 
      -  आगे बैठती हो ना तो बैठने में आगे कितना अच्छा लगता है।
 
      -  और सदा आगे बढ़ने में कितना अच्छा लगेगा! 
 
      - जब भी कोई ऐसा कड़ा संस्कार पीछे करने की कोशिश करे तो यह सीन याद करना। 
 
      - जब आगे बैठना अच्छा लगता तो आगे बढ़ने में क्यों पीछे रहे?
 
      -  तो जब कोई बात आये तो मधुबन में पहुँच जाना और अपने को हिम्मत, उमंग में ले लाना क्योंकि पीछे रहने वाले तो बहुत आयेंगे पीछे, आप लोग भी पीछे रह जायेंगे तो फिर पीछे वालों को आगे करना पड़ेगा इसलिए सदा यही स्मृति रखो कि हम आगे रहने वाले हैं। 
 
      - पीछे रहना अर्थात् प्रजा बनना।
 
      -  प्रजा तो नहीं बनना है ना! 
 
      - प्रजा योगी तो नहीं, राजयोगी हो ना!
 
      -  तो फॉलो फॉदर। 
 
      - अच्छा!
        
        फॉरेनर्स क्या करेंगे?
 
      -  फॉलो फॉदर करेंगे ना! 
 
      - कहाँ तक पहुंचेंगे?
 
      -  सभी फ्रंट में आयेंगे।
 
      - जो भी आये हैं, फॉलो फॉदर कर फास्ट और फर्स्ट आना।
 
      -  यह नहीं सोचो कि फर्स्ट तो एक ही आयेगा लेकिन फर्स्ट-ग्रेड तो बहुत होंगे ना।
 
      -  फर्स्ट नम्बर तो ब्रह्मा आयेगा लेकिन फर्स्ट-ग्रेड में तो साथी रहेंगे, इसलिए फर्स्ट में आना।
 
      - एक फर्स्ट नहीं होगा, फर्स्ट-ग्रेड वाले बहुत होंगे, इसलिए यह नहीं सोचो - पहला नम्बर तो फाइनल हो गया, इसलिए सेकण्ड ही आयेंगे, सेकण्ड-ग्रेड में नहीं जाना।
 
      -  जो ओटे सो अव्वल अर्जुन। 
 
      - अव्वल नम्बर माना अर्जुन। 
 
      - सबको फर्स्ट में आने का चांस है, सब आ सकते हैं। 
 
      - फर्स्ट-ग्रेड बेहद है, कम नहीं है। 
 
      - तो सभी फर्स्ट में आयेंगे ना, पक्का है? 
 
      - अच्छा!
        
        सदा ब्रह्मा बाप को फॉलो करने वाले, सदा स्वत: योगयुक्त-युक्तियुक्त रहने वाले, सदा सारथी बन कर्मेन्द्रियों को श्रेष्ठ मार्ग पर चलाने वाले, सदा मंजिल के समीप रहने वाले, ऐसे सर्वश्रेष्ठ आत्माओं को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।
 
      - अव्यक्त बापदादा के ज़ोन वाइज़ उच्चारे हुए मधुर महावाक्य - इन्दौर ज़ोन        
 
      - बापदादा की श्रेष्ठ मत ने श्रेष्ठ गति को प्राप्त करा लिया - ऐसा अनुभव करते हो ना!
 
      -  जैसी मति वैसी गति होती है।
 
      -  तो बाप की श्रेष्ठ मत है तो गति भी श्रेष्ठ होगी ना!
 
      -  कहते हैं कि जैसी अन्त मते वैसी गते... यह क्यों गाया हुआ है? 
 
      - क्योंकि बाप चक्र के अन्त में ही आकर श्रेष्ठ मत देता है।
 
      -  तो अन्त समय पर श्रेष्ठ मत लेते हो और अनेक जन्म सद्गति को प्राप्त करते हो। 
 
      - इस समय बेहद की “अन्त मते सो गते'' श्रेष्ठ हो जाती है।
 
      -  तो इस समय का ही यादगार भक्ति में चला आता है। 
 
      - एक जन्म की श्रेष्ठ मत से कितने जन्म तक श्रेष्ठ गति प्राप्त करते हो!
 
      -  सब यादगार इस संगमयुग के ही हैं। यादगार क्यों बने? 
 
      - क्योंकि इस समय याद में रहकर कर्म करते हो।
 
      -  हर कर्म का यादगार बन गया। आप अमृतवेले विधिपूर्वक उठते हो। 
 
      - तो देखो, आपके यादगार चित्रों में भी विधिपूर्वक उठाते हैं, कितना प्यार से उठाते हैं।
 
      -  हैं जड़ चित्र लेकिन कितने दिल से, स्नेह से उठाते हैं!
 
      -  उठाते भी हैं तो खिलाते , सुलाते भी हैं क्योंकि आप इस समय सब याद के विधिपूर्वक करते हो। 
 
      - खाना भी विधिपूर्वक खाते हो। 
 
      - भोग लगाकर खाते हो ना या जैसे हैं वैसे ही खा लेते हो? 
 
      - ऐसे तो नहीं - किसी को खाना देना है, इसलिए जल्दी-जल्दी में भोग नहीं लगाया। 
 
      - अगर किसको देना भी है, कोई मजबूरी है - तो भी पहले अलग हिस्सा जरूर निकालो। 
 
      - ऐसे नहीं - किसी को खिलाकर पीछे भोग लगाओ। 
 
      - विधिपूर्वक खाने से सिद्धि प्राप्त होती है, खुशी होती है, निरन्तर याद सहज रहती है।
 
      -  तो अमृतवेले से लेकर रात तक जो भी कर्म करो, याद के विधिपूर्वक करो तब हर कर्म की सिद्धि मिलेगी।
 
      -  सिद्धि अर्थात् प्रत्यक्षफल प्राप्त होता रहेगा। 
 
      - सबसे बड़े-ते-बड़ी सिद्धि है - प्रत्यक्षफल के रूप में अतीन्द्रिय सुख की अनुभूति होना।
 
      -  सदा सुख की लहरों में, खुशी की लहरों में लहराते रहेंगे।
 
      -  पहले प्रत्यक्षफल मिलता है, फिर भविष्य फल मिलता है। 
 
      - इस समय का प्रत्यक्षफल अनेक भविष्य जन्मों के फल से श्रेष्ठ है।
 
      -  अगर अभी प्रत्यक्षफल नहीं खाया तो सारे कल्प में कभी भी प्रत्यक्षफल नहीं मिलेगा।
 
      -  अभी-अभी किया, अभी-अभी मिला - इसको कहते हैं प्रत्यक्षफल। 
 
      - सतयुग में भी जो फल मिलेगा वह इस जन्म का मिलेगा, दूसरे जन्म का नहीं। 
 
      - लेकिन यहाँ जो मिलता है वह प्रत्यक्षफल अर्थात् अभी-अभी का फल है।
 
      -  तो प्रत्यक्षफल से वंचित नहीं रहना, सदा फल खाते रहना।
 
      -  यह प्रत्यक्षफल अच्छा लगता है ना! 
 
      - ऐसा भाग्य कभी सोचा था? 
 
      - भगवान द्वारा फल मिलेगा - यह तो स्वप्न में भी नहीं था!
 
      -  तो जो बात ख्याल-ख्वाब में नहीं हो और वो हो जाए तो कितनी खुशी होती है! 
 
      - आजकल की अल्पकाल की लॉटरी आती है, तो भी कितनी खुशी होती है!
 
      -  और यह प्रत्यक्षफल सो भविष्य फल हो जाता है। 
 
      - तो नशा रहता है ना, कभी कम कभी ज्यादा तो नहीं? 
 
      - सदा एकरस स्थिति में उड़ते चलो।
 
      -  सेकण्ड में उड़ना सीख गये हो ना या ज्यादा समय लगता है? 
 
      - संकल्प किया और पहुंचे - इतनी फास्ट गति है?
 
      -  अच्छा!
        
        इंदौर ज़ोन वाले सभी संतुष्ट हो ना, मातायें सदा संतुष्ट हो? 
 
      - कभी परिवार में भी लौकिक द्वारा असंतुष्ट तो नहीं होती?
 
      -  कभी तंग होती हो?
 
      -  कभी चंचल बच्चों से तंग होती हो?
 
      -  तंग कभी नहीं होना, जितना आप तंग होंगे उतना वह ज्यादा तंग करेंगे, इसलिए ट्रस्टी बनकर, सेवाधारी बनकर सेवा करो।
 
      -  मेरापन आता है तो तंग होते हो। 
 
      - मेरा बच्चा और ऐसे करता है!
 
      -  तो जहां मेरापन होता है वहां तंग होते और जहां तेरा-तेरा आया तो तैरने लगते। 
 
      - तो तैरने वाले हो!
 
      -  सदा तेरा माना स्वमान में रहना। 
 
      - मेरा-मेरा कहना माना अभिमान आना, तेरा-तेरा मानना माना स्वमान में रहना।
 
      -  तो सदा स्वमान में रहने वाले अर्थात् तेरा मानने वाले - यही याद रखना। 
 
      
      - अव्यक्त बापदादा के ़ उच्चारे हुए मधुर महावाक्य - डबल फॉरेनर्स 
 
      - अच्छा!
        
        डबल फॉरेनर्स भी सिकीलधे हैं।
 
      -  थोड़े हैं।
 
      -  कितनी खुशी रहती है, उसका वर्णन कर सकते हो? 
 
      - बेहद का बाप है तो प्राप्ति भी बेहद की है, इसलिए हद की गिनती कर नहीं सकते।
 
      -  बापदादा तो डबल विदेशी बच्चों को तीव्र पुरुषार्थी की रफ्तार से देख खुश होते हैं। 
 
      - भारतवासी तो भारत की बातों को जानते हैं। 
 
      - लेकिन यह लोग न जानते भी इतने समीप तीव्र पुरुषार्थी बने, तो कमाल की ना! 
 
      - तो डबल लक्की हो गये। 
 
      - और भारतवासियों को क्या नशा है कि हम ही हर कल्प में अविनाशी भारत-वासी बनेंगे।
 
      -  यह नशा है ना - अविनाशी खण्ड भारत है।
 
      -  हरेक का अपना-अपना नशा है।
 
      -  सभी को भारत में ही आना पड़ेगा ना और आप बैठे ही भारत में हो।
 
      -  अच्छा! ओम् शान्ति।
 
      -  वरदान:-        
 
      - ( All Blessings of 2021) 
 
      - अपने मस्तक द्वारा तीसरे नेत्र का साक्षात्कार कराने वाले सच्चे योगी भव
 
      -  यादगार में योगी के मस्तक पर तीसरा नेत्र दिखाते हैं।
 
      -  आप सच्चे योगी बच्चे भी अपने मस्तक द्वारा तीसरे नेत्र का साक्षात्कार कराने के लिए सदा बुद्धि द्वारा एक बाप के संग में रहो।
 
      -  एक बाप दूसरे हम, तीसरा न कोई, जब ऐसी स्थिति होगी तब तीसरे नेत्र का साक्षात्कार होगा। 
 
      - अगर बुद्धि में कोई तीसरा आ गया तो फिर तीसरा नेत्र बन्द हो जायेगा, इसलिए सदैव तीसरा नेत्र खुला रहे - इसके लिए याद रखना कि तीसरा न कोई।
 
      - स्लोगन:-
 
       - (All Slogans of 2021)
 
      - प्रश्नचित बनना अर्थात् परेशान होना और परेशान करना।
 
     
        
           
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