- आज सर्व बच्चों के स्नेही मात-पिता अपने स्नेही बच्चों के स्नेह के दिल की आवाज और स्नेह में अनमोल मोतियों की मालायें देख-देख बच्चों को स्नेह का रिटर्न विशेष वरदान दे रहे हैं - “सदा समीप भव, समान समर्थ भव, सदा सम्पन्न सन्तुष्ट भव।''
 
      -  सबके दिल का स्नेह आपके दिल में संकल्प उठते ही बापदादा के पास अति तीव्रगति से पहुँच जाता है। 
 
      - चारों ओर के देश-विदेश के बच्चे आज प्यार के सागर में लवलीन हैं। 
 
      - बापदादा, उसमें भी विशेष ब्रह्मा माँ बच्चों को स्नेह में लवलीन देख स्वयं भी बच्चों के लव में, स्नेह में समाये हुए हैं।
 
      -  बच्चे जानते हैं कि ब्रह्मा माँ का बच्चों में विशेष स्नेह रहा और अब भी है।
 
      -  पालना करने वाली माँ का स्वत: ही विशेष स्नेह रहता ही है।
 
      -  तो आज ब्रह्मा माँ एक-एक बच्चे को देख हर्षित हो रही है कि बच्चों के मन में, बुद्धि में, दिल में, नयनों में मात-पिता के सिवाए और कोई नहीं है।
 
      -  सब बच्चे “एक बल एक भरोसे से आगे बढ़ रहे हैं'' 
 
      - अगर कहाँ रुकते भी हैं तो मात-पिता के स्नेह का हाथ फिर से समर्थ बनाए आगे बढ़ा देता है।
 
      -  आज मात-पिता बच्चों के श्रेष्ठ भाग्य के गीत गा रहे थे क्योंकि आज का दिन विशेष सूर्य, चन्द्रमा का बैकबोन होकर सितारों को विश्व के आकाश में प्रत्यक्ष करने का दिन है। 
 
      - जैसे यज्ञ की स्थापना के आदि में ब्रह्मा बाप ने बच्चों के आगे अपना सब कुछ समर्पित किया अर्थात् विल की। 
 
      - ऐसे आज के दिवस पर ब्रह्मा बाप ने बच्चों को सर्वशक्तियों की विल की अर्थात् विल पावर्स दी।
 
      -  आज के दिवस नयनों द्वारा और संकल्प द्वारा बाप ने बच्चों को विशेष “सन शोज फादर'' की विशेष सौगात दी।
 
      -  आज के दिवस बाप ने प्रत्यक्ष साकार रूप में करावनहार का पार्ट बजाने का प्रत्यक्ष रूप दिखाया।
 
      -  ब्रह्मा बाप भी आज के दिन प्रत्यक्ष रूप में करावनहार बाप के साथी बने, करनहार निमित्त बच्चों को बनाया और करावनहार मात-पिता साथी बने। 
 
      - आज के दिन ब्रह्मा बाप ने अपनी सेवा की रीति और गति परिवर्तन की।
 
      -  आज के दिवस विशेष ब्रह्मा बाप देह से सूक्ष्म फरिश्ता स्वरूप धारण कर ऊंचे वतन, सूक्ष्मवतन निवासी बने, किसलिए?
 
      -  बच्चों को तीव्रगति से ऊंचा उठाने के लिए, बच्चों को फरिश्ता रूप से उड़ाने के लिए।
 
      -  इतना श्रेष्ठ महत्व का यह दिवस है!
 
      -  सिर्फ स्नेह का दिवस नहीं लेकिन विश्व की आत्माओं का, ब्राह्मण आत्माओं का और सेवा की गति का परिवर्तन ड्रामा में नूंधा हुआ था, जो बच्चे भी देख रहे हैं।
 
      -  विश्व की आत्माओं के प्रति बुद्धिवानों की बुद्धि बने।
 
      -  बुद्धि का परिवर्तन हुआ, सम्पर्क में आये सहयोगी बने।
 
      -  ब्राह्मण आत्माओं में श्रेष्ठ संकल्प द्वारा तीव्रगति से वृद्धि हुई। 
 
      - सेवा के प्रति “सन शोज फादर'' की गिफ्ट से विहंग-मार्ग की सेवा आरम्भ की। 
 
      - यह गिफ्ट सेवा की लिफ्ट बन गई।
 
      -  परिवर्तन हुआ ना!
 
      -  अब आगे चल सेवा में और परिवर्तन देखेंगे।        
 
      - अभी तक आप ब्राह्मण-आत्मायें अपने तन-मन की मेहनत से प्रोग्राम्स बनाते हो, स्टेज तैयार करते हो, निमंत्रण कार्ड छपाते हो, कोई वी.आई.पी. को बुलाते हो, रेडियो, टी.वी. वालों को सहयोगी बनाते हो, धन भी लगाते हो। 
 
      - लेकिन आगे चल आप स्वयं वी.आई.पी. हो जायेंगे।
 
      -  आपसे बड़ा कोई दिखाई नहीं देगा।
 
      -  बनी-बनाई स्टेज पर दूसरे लोग आपको निमंत्रण देंगे। 
 
      - अपने तन-मन-धन की सेवाओं की स्वयं ऑफर करेंगे।
 
      -  आपकी मिन्नते (रिक्वेस्ट) करेंगे। 
 
      - मेहनत आप नहीं करेंगे, वह रिक्वेस्ट करेंगे कि आप हमारे पास आओ, तब ही प्रत्यक्षता की आवाज बुलन्द होगी और सबका अटेन्शन आप बच्चों द्वारा बाप तरफ जायेगा।
 
      -  यह ज्यादा समय नहीं चलेगा।
 
      -  सबकी नज़र बाप तरफ जाना अर्थात् प्रत्यक्षता होना और जय-जयकार के चारों ओर घण्टे बजेंगे।
 
      -  यह ड्रामा का सूक्ष्म राज़ बना हुआ है। 
 
      - प्रत्यक्षता के बाद अनेक आत्मायें पश्चाताप करेंगी। 
 
      - और बच्चों का पश्चाताप बाप देख नहीं सकता, इसलिए परिवर्तन हो जायेगा। 
 
      - अभी आप ब्राह्मण-आत्माओं की ऊंची स्टेज सदाकाल की बन रही है।
 
      -  आपकी ऊंची स्टेज सेवा की स्टेज के निमंत्रण दिलायेगी।
 
      -  और बेहद विश्व की स्टेज पर जय-जयकार का पार्ट बजायेंगे।
 
      -  सुना, सेवा का परिवर्तन।
 
      - बाप के अव्यक्त बनने के ड्रामा में गुप्त राज़ भरे हुए थे।
 
      -  कई बच्चे सोचते हैं - कम से कम ब्रह्मा बाप छुट्टी तो लेके जाते। 
 
      - तो क्या आप छुट्टी देते?
 
      -  नहीं देते ना। 
 
      - तो बलवान कौन हुआ?
 
      -  अगर छुट्टी लेते तो कर्मातीत नहीं बन सकते क्योंकि ब्लड-कनेक्शन से पद्मगुणा ज्यादा आत्मिक कनेक्शन होता है। 
 
      - ब्रह्मा को तो कर्मातीत होना था या स्नेह के बन्धन में जाना था?
 
      -  ब्रह्मा बाप भी कहते हैं - ड्रामा ने कर्मातीत बनाने के बंधन में बांधा। और बांधा कितने टाइम में!
 
      -  समय होता तो और पार्ट हो जाता इसलिए घड़ी का खेल हो गया। 
 
      - बच्चों को भी अन्जान बना दिया, बाप को भी अन्जान बना दिया।
 
      -  इनको कहते हैं - वाह, ड्रामा वाह! ऐसा है ना।
 
      -  जब “वाह ड्रामा वाह'' है तो और कोई संकल्प उठ नहीं सकता।
 
      -  फुलस्टॉप लगा दिया ना!
 
      -  नहीं तो कम से कम बच्चे पूछ तो सकते थे कि क्या हो रहा है।
 
      -  लेकिन बाप भी चुप, बच्चे भी चुप रहे।
 
      -  इसको कहते हैं ड्रामा का फुलस्टॉप। 
 
      - उस घड़ी तो फुलस्टॉप ही लगा ना।
 
      -  पीछे भल क्वेश्चन कितने भी उठे लेकिन उस घड़ी नहीं। 
 
      - तो “वाह ड्रामा वाह'' कहेंगे ना!
 
      -  बाबा-बाबा बुलाया भी पीछे, पहले नहीं बुलाया।
 
      -  यह ड्रामा की विचित्र नूँध होनी ही थी और होनी ही है।
 
      -  परिवर्तनशील ड्रामा पार्ट को भी परिवर्तन कर देता है।
 
      -  यह सब टीचर्स अव्यक्त रचना है मैजॉरिटी। 
 
      - साकार की पालना लेने वाली टीचर्स बहुत थोड़ी हैं।
 
      -  फास्ट गति से पैदा हुई हो क्योंकि संकल्प की गति सबसे फास्ट है।
 
      -  आदि रत्न हैं मुख-वंशावली, और आप हो संकल्प की वंशावली इसलिए ब्रह्मा की दो रचना गायी हुई है। 
 
      - एक मुख वंशावली फिर संकल्प द्वारा सृष्टि रची।
 
      -  हो तो ब्रह्मा की रचना, तब तो बी.के. कहलाते हो।
 
      -  शिवकुमारी तो नहीं कहलाते हो ना।
 
      -  डबल फारेनर्स भी सब संकल्प की रचना है।
 
      -  ऐसे तीव्रगति से सब टीचर्स आगे बढ़ रही हो?
 
      -  जब रचना ही तीव्रगति की हो तो पुरूषार्थ भी तीव्रगति से होना चाहिए।
 
      -  सदा यह चेक करो कि सदा तीव्र पुरूषार्थी हूँ वा कभी-कभी हूँ? समझा! 
 
      - अब “क्या'' “क्यों'' का गीत खत्म करो।
 
      -  “वाह-वाह'' के गीत गाओ। 
 
      - अच्छा!
        
        चारों ओर के सर्व स्नेह और शक्ति सम्पन्न श्रेष्ठ आत्माओं को, सदा बाप के साथ-साथ तीव्रगति से परिवर्तन के साथी समीप आत्माओं को, सदा अपनी उड़ती कला द्वारा अन्य आत्माओं को भी उड़ाने वाले निर्बन्धन उड़ते पंछी आत्माओं को, सदा “सन शोज फॉदर'' की गिफ्ट द्वारा स्वयं और सेवा में तीव्रगति से परिवर्तन लाने वाले, ऐसे सर्व लवलीन बच्चों को इस महत्व दिवस के महत्व के साथ मात-पिता का विशेष याद-प्यार और नमस्ते।
 
      - हुबली जोन के भाई बहिनों से अव्यक्त बापदादा की मुलाकात:- सदा अपने को हर कदम में पदमों की कमाई करने वाले पदमापदम भाग्यवान समझते हो?
 
      -  यह जो गायन है- हर कदम में पदम... किसके लिए गायन है?
 
      -  सारे दिन में कितने पदम इकट्ठे करते हो? 
 
      - संगमयुग बड़े-ते-बड़े कमाई के सीजन का युग है।
 
      -  तो सीजन के समय क्या किया जाता है? 
 
      - इतना अटेन्शन रखते हो?
 
      -  हर समय यह याद रहे कि अब नहीं तो कब नहीं।
 
      -  जो घड़ी बीत गई वह फिर से नहीं आयेगी।
 
      -  एक घड़ी व्यर्थ जाना अर्थात् कितने कदम व्यर्थ गये?
 
      -  पदम व्यर्थ गये! 
 
      - इसलिए हर घड़ी यह स्लोगन याद रहे-“जो समय के महत्व को जानते हैं वह स्वत: ही महान बनते हैं।''
 
      -  स्वयं को भी जानना है और समय को भी जानना है। 
 
      - दोनों ही विशेष हैं। 
 
      - इस स्मृति दिवस पर विशेष सदा समर्थ बनने का श्रेष्ठ संकल्प किया? 
 
      - व्यर्थ संकल्प, बोल, सब रूप से व्यर्थ को समाप्त करने का दिन है। 
 
      - जब नॉलेज मिल गई कि व्यर्थ क्या है, समर्थ क्या है- तो नॉलेजफुल आत्मा कभी भी समर्थ को छोड़ व्यर्थ तरफ नहीं जा सकती।
 
      -  और जितना स्वयं समर्थ बनेंगे उतना औरों को समर्थ बना सकेंगे।
 
      -  63 जन्म गंवाया और समर्थ बनने का यह एक जन्म है। 
 
      - तो इस समय को व्यर्थ तो नहीं करना चाहिए ना! 
 
      - अमृत-वेले से लेकर रात तक अपनी दिनचर्या को चेक करो।
 
      -  ऐसे नहीं कि सिर्फ रात्रि को चार्ट चेक करो लेकिन बीच-बीच में चेक करो, बार-बार चेक करने से चेंज कर सकेंगे।
 
      -  अगर रात को चेक करेंगे तो जो व्यर्थ गया, वह व्यर्थ के खाते में ही हो जायेगा इसलिए बापदादा ने बीच-बीच में ट्रैफिक कंट्रोल का टाइम फिक्स किया है।
 
      -  ट्रैफिक कंट्रोल करते हो या दिन में बिजी रहते हो? 
 
      - अपना नियम बना रहना चाहिए। 
 
      - चाहे टाइम कुछ बदली हो जाय लेकिन अगर अटेन्शन रहेगा तो कमाई जमा होगी।
 
      -  उस समय अगर कोई काम है तो आधे घंटे के बाद करो लेकिन कर तो सकते हो।
 
      -  घड़ी के आधार पर भी क्यों चलो। 
 
      - अपनी बुद्धि ही घड़ी है, दिव्य बुद्धि की घड़ी को याद करो।
 
      -  जिस बात की आदत पड़ जाती है तो आदत ऐसी चीज है जो न चाहते भी अपनी तरफ खींचेगी।
 
      -  जब बुरी आदत रहने नहीं देती, अपनी तरफ आकर्षित करती है तो अच्छे संस्कार क्यों नहीं अपना बना सकते।
 
      -  तो सदा चेक करो और चेंज करो तो सदा के लिए कमाई जमा होती रहेगी। अच्छा!
        
        2) सदा अपने को रूप बसंत अनुभव करते हो?
 
      -  रूप अर्थात् ज्ञानी तू आत्मा भी हैं और योगी तू आत्मा भी हैं।
 
      -  जिस समय चाहें रूप बन जायें और जिस समय चाहें बसंत बन जाएं इसलिए आप सबका स्लोगन है - “योगी बनो और पवित्र बनो माना ज्ञानी बनो''।
 
      -  औरों को यह स्लोगन याद दिलाते हैं ना।
 
      -  तो दोनों स्थिति सेकेण्ड में बन सकती हैं।
 
      -  ऐसे न हो कि बनने चाहे रूप और याद आती रहें ज्ञान की बातें। सेकेण्ड से भी कम टाइम में फुलस्टाप लग जाये।
 
      -  ऐसे नहीं, फुलस्टाप लगाओ अभी और लगे पांच मिनट के बाद। इसे पावरफुल ब्रेक नहीं कहेंगे।
 
      -  पावरफुल ब्रेक का काम है जहाँ लगाओ वहाँ लगे। 
 
      - सेकेण्ड भी देर से लगी तो एक्सीडेंट हो जायेगा। फुलस्टाप अर्थात् ब्रेक पावरफुल हो। 
 
      - जहाँ मन-बुद्धि को लगाना चाहे वहाँ लगा लें। 
 
      - यह मन-बुद्धि-संस्कार आप आत्माओं की शक्तियाँ है इसलिए सदा यह प्रैक्टिस करते रहो कि जिस समय, जिस विधि से मन-बुद्धि को लगाना चाहते हैं वैसा लगता है या टाइम लग जाता है?
 
      -  चेक करते हो या सारा दिन बीत जाता है फिर रात को चेक करते हो?
 
      -  बीच-बीच में चेक करो।
 
      -  जिस समय बहुत बुद्धि बिजी हो, उस समय ट्रायल करके देखो कि अभी-अभी अगर बुद्धि को इस तरफ से हटाकर बाप की तरफ लगाना चाहें तो सेकण्ड में लगती है?
 
      -  ऐसे तो सेकण्ड भी बहुत है। 
 
      - इसको कहते हैं कंट्रोलिंग पावर।
 
      -  जिसमें कंट्रोलिंग पावर नहीं वह रूलिंग पावर के अधिकारी बन नहीं सकते। 
 
      - स्वराज्य के हिसाब से अभी भी रूलर (शासक) हो।
 
      -  स्वराज्य मिला है ना!
 
      -  ऐसे नहीं आंख को कहो यह देखो और वह देखे कुछ और, कान को कहो कि यह नहीं सुनो और सुनते ही रहें।
 
      -  इसको कंट्रोलिंग पावर नहीं कहते। 
 
      - कभी कोई कर्मेन्द्रिय धोखा न दे - इसको कहते हैं स्वराज्य।
 
      -  तो राज्य चलाने आता है ना?
 
      -  अगर राजा को प्रजा माने नहीं तो उसे नाम का राजा कहेंगे या काम का?
 
      -  आत्मा का अनादि स्वरूप ही राजा का है, मालिक का है।
 
      -  यह तो पीछे परतंत्र बन गई है लेकिन आदि और अनादि स्वरूप स्वतंत्र है। 
 
      - तो आदि और अनादि स्वरूप स्वतंत्र है।
 
      -  तो आदि और अनादि स्वरूप सहज याद आना चाहिए ना।
 
      -  स्वतंत्र हो या थोड़ा-थोड़ा परतंत्र हो?
 
      -  मन का भी बंधन नहीं।
 
      -  अगर मन का बंधन होगा तो यह बंधन और बंधन को ले आयेगा। 
 
      - कितने जन्म बंधन में रहकर देख लिया! 
 
      - अभी भी बंधन अच्छा लगता है क्या?
 
      -  बंधनमुक्त अर्थात् राजा, स्वराज्य अधिकारी क्योंकि बंधन प्राप्तियों का अनुभव करने नहीं देता इसलिए सदा ब्रेक पावरफुल रखो, तब अन्त में पास विद ऑनर होंगे अर्थात् फर्स्ट डिवीजन में आयेंगे।
 
      -  फर्स्ट माना फास्ट, ढीले-ढीले नहीं। ब्रेक फास्ट लगे।
 
      -  कभी भी ऊंचाई के रास्ते पर जाते हैं तो पहले ब्रेक चेक करते हैं।
 
      -  आप कितना ऊंचे जाते हो! 
 
      - तो ब्रेक पावरफुल चाहिए ना!
 
      -  बार-बार चेक करो। 
 
      - ऐसा ना हो कि आप समझो ब्रेक बहुत अच्छी है लेकिन टाइम पर लगे नहीं, तो धोखा हो जायेगा इसलिए अभ्यास करो - स्टॉप कहा और स्टॉप हो जाये।
 
      -  रिद्धि-सिद्धि वाले क्या करते हैं? 
 
      - सिद्धि दिखाते हैं - चलती हुई ट्रेन को स्टॉप कर दिया...।
 
      -  लेकिन उससे क्या फायदा।
 
      -  आप संकल्पों की ट्रेफिक को स्टॉप करते हो। 
 
      - इससे बहुत फायदे हैं। 
 
      - आपकी है “विधि से सिद्धि और उनकी है रिद्धि-सिद्धि।''
 
      -  वह अल्पकाल की है, यह सदाकाल की है।
 
      -  तो सभी नॉलेजफुल बन गये। 
 
      - रचता और रचना की सारी नॉलेज आ गई।
 
      -  दुनिया वाले समझते हैं - मातायें क्या करेंगी! 
 
      - और मातायें असंभव को भी संभव बना देती है। 
 
      - ऐसी शक्तियाँ हो ना? अच्छा!
 
    
      - वरदान:-
 
      - ( All Blessings of 2021-22)
      
 
      - 
        
           
          - दूसरों के लिए रिमार्क देने के बजाए स्व को परिवर्तन करने वाले स्वचिंतक भव
 
          - कई बच्चे चलते-चलते यह बहुत बड़ी गलती करते हैं - जो दूसरों के जज बन जाते हैं और अपने वकील बन जाते हैं।
 
          -  कहेंगे इसको यह नहीं करना चाहिए, इनको बदलना चाहिए और अपने लिए कहेंगे - यह बात बिल्कुल सही है, मैं जो कहता हूँ वही राइट है..।
 
          -  अब दूसरों के लिए ऐसी रिमार्क देने के बजाए स्वयं के जज बनो।
 
          -  स्वचिंतक बन स्वयं को देखो और स्वयं को परिवर्तन करो तब विश्व परिवर्तन होगा।
 
          
          
          
         
       
       
      
      स्लोगन:-        
      (All Slogans of 2021-22)
      
        
          - सदा हर्षित रहना है तो हर दृश्य को साक्षी होकर देखो।
 
         
      
      
      
      
      
           
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