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     04-03-2022 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन 
     
       
       
      "मीठे बच्चे -रात को जागकर कमाई करो, अमृतवेले उठने की आदत डालो'' 
       
     
  
  प्रश्नः- 
    ज्ञान में आते ही जो नशा चढ़ता है, उस नशे को स्थाई रखने की विधि क्या है? 
   उत्तर:- 
    जब ज्ञान में नये-नये आते हैं तो बहुत नशा चढ़ता है।  
   उसी समय अपने आपसे अनेक प्रतिज्ञायें भी करते हैं। 
    बाबा कहते वह प्रतिज्ञायें डायरी में नोट कर लो फिर उसे रिवाइज करते रहो तो नशा स्थाई रहेगा।  
   नहीं तो माया के तूफानों में आने से नशा उड़ जायेगा।  
   अगर कोई भूल चलते-चलते हो जाये तो फौरन सुनाकर हल्के हो जाओ फिर दुबारा वह भूल न हो, नहीं तो वृद्धि होती रहेगी। 
    
       
       
    
  
गीत:-दु:खियों पर रहम करो माँ बाप हमारे...
 
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      - ओम् शान्ति।
 
      -  यह गीत बहुत अच्छा है क्योंकि दु:खी तो सारी दुनिया है और याद भी करते आये हैं तुम मात-पिता.. तुम्हारी कृपा से सुख घनेरे मिलते हैं। 
 
      - इस समय सारी दुनिया दु:खी है इसलिए फिर बाप को याद करते हैं, तो माँ को भी जरूर करेंगे।
 
      -  यह गीत बहुत अच्छा है। 
 
      - तुम जानते हो माँ बाप के पास जन्म लेने से हमको वर्सा मिलता है एक सेकेण्ड में।
 
      -  भारत में यह गायन है। 
 
      - बच्चे अब सम्मुख बैठे हैं।
 
      -  जगत अम्बा है - तो जरूर जगत पिता भी होगा।
 
      -  उनके ऊपर भी कोई होगा क्योंकि इस समय सुखधाम का वर्सा मिलना है।
 
      -  तो सुखधाम की स्थापना करने वाला मात-पिता भी चाहिए।
 
      -  कोई मात-पिता साहूकार होते हैं तो उनका फर्स्टक्लास घर होता है।
 
      -  कोई मात-पिता गरीब होते हैं तो घर भी ऐसा ही होगा। 
 
      - सतयुग में देखो राधे कृष्ण हैं, उन्हों को पहली-पहली बादशाही मिली है। 
 
      - राधे जरूर कोई राजा के पास जन्म लेगी तो राजकुमारी होगी और श्रीकृष्ण राजकुमार होगा फिर उन्हों को शादी करनी ही है।
 
      -  यह तो बरोबर है। 
 
      - मात-पिता अब दैवी राजधानी स्थापन कर रहे हैं।
 
      -  देवी देवतायें सूर्यवंशी महाराजा महारानी थे। 
 
      - तुम जानते हो इन्हों को यह मर्तबा कैसे मिला? 
 
      - राम सीता को चन्द्रवंशी राजाई कैसे मिली? 
 
      - कलियुग के अन्त में तो कुछ भी नहीं है।
 
      -  यह है पढ़ाई से राजाई। 
 
      - जैसे उस पढ़ाई से इन्जीनियर, बैरिस्टर आदि बनते हैं। 
 
      - यह है फिर पढ़ाई से राजाओं का राजा बनना।
 
      -  एक ही बाप है जो राजाई पद के लिए राजयोग सिखलाते हैं। 
 
      - और कोई ऐसी युनिवर्सिटी नहीं जहाँ राज्य पद प्राप्त करने के लिए पुरुषार्थ कराया जाता हो।
 
      -  इसका नाम भी है गीता पाठशाला।
 
      -  गीता से तो राजाई पद मिलता है। 
 
      - अच्छा वेद उपनिषद से कौन सा पद मिलता है? 
 
      - राजयोग तो भगवान ही आकर सिखलाते हैं।
 
      -  कितनी सहज बात है।
 
      -  कल की बात है। 
 
      - बरोबर लक्ष्मी-नारायण का राज्य था। 
 
      - गाते भी हैं क्राइस्ट से 3000 वर्ष पहले देवताओं का राज्य था। 
 
      - उन्हों को कैसे मिला? 
 
      - जरूर भगवान ने विनाश के पहले पढ़ाया है। 
 
      - उनके बाद ही विनाश हुआ होगा फिर राजयोग से सतयुग में राज्य पद पाया।
 
      -  यह है संगम।
 
      - तुम लिख सकते हो इस समय ही सेकेण्ड में सूर्यवंशी, चन्द्रवंशी राजाई प्राप्त हो सकती है, आकर समझो।
 
      -  चित्रों पर तुम अच्छी तरह समझा सकते हो।
 
      -  समझाने वाले शुरूड बुद्धि (समझदार) चाहिए।
 
      -  ब्रह्माकुमार और कुमारियां सो शिव के पोत्रे और पोत्रियां हुए।
 
      -  परन्तु बाप कहते हैं मुझे कोटों में कोई पहचानते हैं और मुझसे वर्सा लेते हैं।
 
      -  सेकण्ड में जीवनमुक्ति पाते हैं।
 
      -  फिर जीवनमुक्ति में ऊंच पद प्राप्त करने के लिए पुरुषार्थ करना है।
 
      -  यह सब समझाने के लिए यह मेले प्रदर्शनी निकले हैं। 
 
      - ख्यालात चलते हैं। 
 
      - नई-नई प्वाइंट्स निकलती हैं।
 
      -  दिन-प्रतिदिन चित्र आदि सहज निकलते जाते हैं और निकलते सब ड्रामा अनुसार ही हैं।
 
      -  कल्प पहले जो एक्ट चली है, वही चलनी है। 
 
      - ऐसा कोई लिख न सके कि यह प्रदर्शनी 5 हजार वर्ष के बाद फिर इस समय निकाली गई है, फिर कल्प के बाद निकलेगी।
 
      -  एक ही बार कल्प के संगम पर यह प्रदर्शनी निकलती है अथवा 5 हजार वर्ष के बाद यह प्रदर्शनी परमपिता परमात्मा से सेकेण्ड में जीवनमुक्ति पद पाने अथवा समझाने के लिए हम निकालते हैं। 
 
      - यह सब देश देशान्तर में जायेगी।
 
      -  नई-नई प्वाइंट्स बाबा समझाते रहेंगे। 
 
      - एडीशन, करेक्शन होती रहेगी। 
 
      - वो लोग रामायण आदि छपायेंगे तो वही छपायेंगे इसलिए हमको कहते हैं आगे तुम क्या लिखते थे, अब क्या लिख रहे हो।
 
      -  बाबा कहते हैं मैं तुमको रोज़ नई बातें सुनाता हूँ। 
 
      - सब इकट्ठी थोड़ेही सुनाऊंगा।
 
      -  उन्होंने लिखा है युद्ध के मैदान में गीता सुनाई।
 
      -  18 अध्याय की गीता बनाई है, जो संस्कृत में होशियार होते हैं वह आधा घण्टे में श्लोक कण्ठ कर लेते हैं। 
 
      - मुख्य है ही गीता।
 
      -  बाकी भागवत में तो कहानियां हैं।
 
      -  गीता को ही संस्कृत में बनाया है।
 
      -  छोटी सी गीता संस्कृत में बनाई है। 
 
      - ज्ञान सागर बाबा तो इतना ज्ञान सुनाते हैं जो सागर को स्याही बनाओ.... जंगल को कलम बनाओ, सारी पृथ्वी को कागज बनाओ तो भी पूरा न हो।
 
      -  उन्होंने तो 18 अध्याय में पूरा कर दिया।
 
      - परन्तु ऐसे तो है नहीं। 
 
      - ना कोई संस्कृत की बात है।
 
      -  हिन्दी भाषा चलती है। 
 
      - भाषायें तो ढेर हैं। 
 
      - सब भाषायें एक तो नहीं सीख सकते। 
 
      - कोशिश करके 5-6 भाषायें कोई सीख जाता है तो उनका भी बहुत मान होता है। 
 
      - अब भगवान सभी भाषाओं में थोड़ेही समझायेगा।
 
      -  वह तो हिन्दी में ही समझाते हैं। 
 
      - जैसे हिन्दी टूटी फूटी सब जानते हैं, ऐसे अंग्रेजी भी टूटी फूटी जानते हैं। 
 
      - तुम बच्चों को बाबा हिन्दी में समझाते हैं। 
 
      - भक्तों को भगवान आकर भक्ति का फल देते हैं।
 
      -  भगत तो अनेक हैं।
 
      -  भगवान एक है। 
 
      - कहते भी हैं पतित-पावन आओ। 
 
      - ऐसे तो नहीं कहते - भगवान आओ।
 
      -  सबका बाप एक ही है। 
 
      - सबका गॉड फादर एक है। 
 
      - वह क्रियेटर है।
 
      -  क्रियेट करेंगे सुख के लिए।
 
      -  बाप बच्चों को सुख के लिए ही चाहते हैं।
 
      -  गॉड फादर स्वर्ग रचते हैं और जिन्हों को स्वर्ग का मालिक बनाते हैं उन्हों को गॉड गॉडेज कहा जाता है।
 
      - परन्तु सबको नहीं कहेंगे, यह बहुत गुप्त बातें हैं।
 
      -  गॉड फादर एडम ईव द्वारा कैसे सृष्टि रचते हैं।
 
      -  गॉड अलग है।
 
      -  यह धीरे-धीरे समझते जायेंगे।
 
      -  झाड़ वृद्धि को पाता रहेगा। 
 
      - भारत को ही मुक्ति-जीवनमुक्ति मिलती है। 
 
      - सुखधाम भारत बनता है। 
 
      - पहले भारत ही प्राचीन खण्ड था, जहाँ देवी देवतायें राज्य करते थे, उसके बाद इस्लामी, बौद्धी खण्ड स्थापन हुए।
 
      -  बिल्कुल सहज है।
 
      -  जिस समय जिसका सैपलिंग लगना है, उन्हों का ही लगता है।        
 
      - देखो, कैसे-कैसे पत्र लिखते हैं - बाबा हम 4 दिन के बच्चे हैं।
 
      -  हमने आपको पहचान लिया है।
 
      -  कोई तो कितने वर्षों तक भल आते रहते हैं परन्तु कभी पत्र भी नहीं लिखते। 
 
      - कोई तो फट से पत्र लिखते हैं।
 
      -  आगे चलकर माया के तूफान बहुत आयेंगे। 
 
      - तूफान से पुराने पत्ते भी गिर जाते हैं।
 
      -  नयों को पहले-पहले खुशी का पारा बहुत चढ़ता है।
 
      -  बाबा हम आपके होकर रहेंगे, परन्तु माया कम नहीं है।
 
      -  जब प्रतिज्ञा करते हो तो डायरी पर नोट रखो तो हमने क्या-क्या प्रतिज्ञा की है। 
 
      - कई तो प्रतिज्ञा कर फिर कभी डायरी को देखते भी नहीं हैं, इससे क्या फायदा। 
 
      - ऐसे नहीं हमारे पिछाड़ी वाले पढ़ेंगे।
 
      -  यहाँ तो कोई पोत्रे-पात्रियां आदि रहने नहीं हैं।
 
      -  जिसने जो उठाया सो उठाया, न पढ़ा तो कच्चा ही रह जायेगा।
 
      -  थोड़ी भूल कर फिर बताया नहीं तो भूल वृद्धि को पाती रहेगी। 
 
      - एक कहानी भी है कि माँ का कान पकड़ा कि तुमने मुझे पहले क्यों नहीं सुनाया। 
 
      - पहले सुनाती तो मुझे जेल नहीं मिलता, यह सब दृष्टान्त हैं।
 
      -  कभी चोरी नहीं करनी चाहिए।
 
      -  नहीं तो आदत पड़ जायेगी और धर्मराज के बहुत डन्डे खाने पड़ेंगे। 
 
      - अब बाप से जितना वर्सा लेना हो सो ले लो। 
 
      - विश्व की बादशाही बाप दे रहे हैं और क्या दें?
 
      -  बाकी रहा ही क्या? 
 
      - अपनी बेगरी जीवन है। इसमें देही-अभिमानी बनना है।
 
      -  देह सहित सारी दुनिया को हम भूलते हैं। 
 
      - लोभ नहीं रखना चाहिए।
 
      -  जो मिले सो अच्छा, कहा जाता है - मांगने से मरना भला। 
 
      - शिवबाबा के भण्डारे से तो सब कुछ मिलता ही है।
 
      -  अमृतवेले आपेही उठने की आदत डालनी है।
 
      -  रात को जागकर कमाई करो। 
 
      - बाबा ने यह तन बहुत अनुभवी लिया है। 
 
      - वह भी रत्न, यह भी ज्ञान रत्न।
 
      -  आजकल झूठे हीरे भी ऐसे निकले हैं जो बात मत पूछो।
 
      -  चित्रों पर समझाना बहुत सहज है।
 
      -  सेकेण्ड में बाप से आकर वर्सा ले लो। 
 
      - ऊपर में बाबा, यह हैं ब्रह्माकुमार कुमारियां।
 
      -  जबसे हम बाबा के बने तो जीवनमुक्ति का वर्सा तो है ही।
 
      -  बाकी हम पुरुषार्थ करते हैं ऊंच पद पाने का।
 
      -  परमपिता परमात्मा ब्रह्मा द्वारा मनुष्य सृष्टि रचते हैं।
 
      -  बांधेलियां कहती हैं बाबा बस हम आपको ही याद करते हैं।
 
      -  भल हम नहीं मिलेंगी परन्तु वर्सा तो जरूर लेंगी।
 
      -  कितना वन्डर है। 
 
      - ढेर बच्चे हैं।
 
      -  जैसे प्रभाव निकलता जायेगा तो बांधेलियां भी छूटती जायेंगी।
 
      - बहुत हैं जो पति की भी गुरू बन जाती हैं। 
 
      - वह लिस्ट निकालेंगे - कितनी स्त्रियां पति का गुरू बनी हैं फिर पति भी लिखें कि मुझे इसने ज्ञान दिया इसलिए यह मेरी गुरू है।
 
      -  पुरुष कहेंगे बरोबर स्त्री मेरा गुरू है। 
 
      - ऐसे थोड़ही कोई मानेंगे।
 
      -  माता गुरू बिगर कोई का उद्धार हो न सके।
 
      - कलष जगत माता को मिलता है तो जगत माता ही गुरू हुई ना।
 
      -  आजकल स्त्रियों को बहुत मान देते हैं।
 
      -  बाप भी कहते हैं माता गुरू बिगर मुक्ति जीवनमुक्ति मिल नहीं सकती। तो जब माता द्वारा एडाप्ट हो तब जीवनमुक्ति मिले। 
 
      - माता को गुरू समझना चाहिए। 
 
      - बच्चों को अपना अहंकार नहीं रखना है, माताओं को मर्तबा देना है। 
 
      - फालो करना है, देह-अभिमान नहीं होना चाहिए। 
 
      - अपने को निरहंकारी समझना है। 
 
      - बाप भी अपने को निराकार समझते हैं।
 
      -  तुम कहेंगे, आई एम इनकारपोरियल कम कारपोरियल।
 
      -  जैसे लिखते हैं हॉस्पिटल कम युनिवर्सिटी।
 
      -  यह सब बातें समझाने के लिए दी जाती हैं।
 
      -  सबमें एकरस धारणा नहीं होती। 
 
      - पुरुषार्थ कर धारण करना और कराना है।
 
      -  सुना और सुनाया, तुरन्त दान महापुण्य।
 
      -  धन दान नहीं करेंगे तो साहूकार कैसे बनेंगे।
 
      -  तुम हो सबसे जास्ती लोभी, सारे विश्व का मालिक बनने की कितनी भारी कामना है। 
 
      - हर एक को सदा सुखी, सदा शान्तमय बनाना है।
 
      -  मनुष्य मात्र को कलियुगी भ्रष्टाचारी से सतयुगी श्रेष्ठाचारी बनाना है।
 
      -  भारत में देवतायें थे, अभी नहीं हैं फिर जरूर देवतायें होंगे, उनको स्वर्ग कहा जाता है।
 
      -  पैराडाइज अक्षर बहुत अच्छा है। 
 
      - हम पुरुषार्थ कर रहे हैं - स्वर्ग का मालिक बनने के लिए। 
 
      - एक बाप के सिवाए बाकी सब भूल जाना है। 
 
      - सबसे मोह नष्ट हो जाना चाहिए। 
 
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      अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।  
      धारणा के लिए मुख्य सार:-
      1) इस बेगरी जीवन में पूरा-पूरा देही-अभिमानी बनना है।
       किसी भी चीज़ का जास्ती लोभ नहीं रखना है, जो मिले सो अच्छा। 
      मांगने से मरना भला।
      
          
        
      
      
      
      
      
      
      
      
      
      
      
      
      
      
      
      
      
      
      
        
      
       2) अपना अहंकार न रख माताओं को मर्तबा देना है।
       बाप समान निराकारी-निरहंकारी बनना है।
       ज्ञान धन का दान करना है।
      
      
      
      
      
      
      
      
      
      
      
      
      
      
      
      
      
      
      वरदान:-
      ( All Blessings of 2021-22)
      
      
        
           
          - चारों ही सबजेक्ट को अपने स्वरूप में लाने वाले विश्व कल्याणकारी भव
 
          - पढ़ाई की जो चार सबजेक्ट हैं, उन सबका एक दो के साथ सम्बन्ध है। 
 
          - जो ज्ञानी तू आत्मा है, वह योगी तू आत्मा भी अवश्य होगा और जिसने ज्ञान-योग को अपनी नेचर बना लिया उसके कर्म नेचुरल युक्तियुक्त वा श्रेष्ठ होंगे। 
 
          - स्वभाव - संस्कार धारणा स्वरूप होंगे।
 
          -  जिनके पास इन तीनों सबजेक्ट की अनुभूतियों का खजाना है वह मास्टर दाता अर्थात् सेवाधारी स्वत: बन जाते हैं। 
 
          - जो इन चारों सबजेक्ट में नम्बरवन लेते हैं उन्हें ही कहा जाता है विश्व कल्याणकारी।
 
          
          
          
          
          
          
         
      
      
      
      स्लोगन:-        
      (All Slogans of 2021-22)
      
        
          - माया के विकराल रूप के खेल को साक्षी होकर देखो तो निर्भय रहेंगे।
 
          -  अनमोल ज्ञान रत्न: (दादियों की पुरानी डायरी से)
 
          -  ज्ञान की महसूसता का सुख है ही शान्ति अर्थात् निर्विकल्प हो जाना। अन्दर जाने से शान्त रूप हो जाते हैं। इस अविनाशी ज्ञान से सम्पूर्ण शान्ति के स्थान पर जाए पहुंचते हैं। शान्त अर्थात् योग नेष्ठी अवस्था को धारण करने से योग की बहुत तेज (लाइट) निकलती है। जो दिन रात ऐसी मीठी योग की अवस्था में रहते हैं उन्हें अपरमअपार खुशी होती है। उनके सब हद के बंधन टूट बेहद की स्थाई खुशी प्रगट हो जाती है। ऐसी अवस्था में दिल बहुत हल्की रहती है और खुशी की लहरों में फूले नहीं समाते हैं। यही नेष्ठा (योग) की चाबी है जो हम दैवी वत्सों ने पिता ईश्वर द्वारा प्राप्त की है। अच्छा - ओम् शान्ति।
 
         
      
      
      
      
      
           
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