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     27-06-2022 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन 
       
      
"मीठे बच्चे - इस शरीर रूपी रथ पर विराजमान आत्मा रथी है, रथी समझकर कर्म करो तो देह-अभिमान छूट जायेगा'' 
      
      
    
      
     
  
  प्रश्नः- 
    बाप के बात करने का ढंग मनुष्यों के ढंग से बिल्कुल ही निराला है, कैसे? 
   उत्तर:- 
    बाप इस रथ पर रथी होकर बात करते हैं और आत्माओं से ही बात करते हैं। 
    शरीरों को नहीं देखते। 
    मनुष्य न तो स्वयं को आत्मा समझते और न आत्मा से बात ही करते। 
    तुम बच्चों को अब यह अभ्यास करना है। 
    किसी भी आकारी वा साकारी चित्र को देखते भी नहीं देखो। 
    आत्मा को देखो और एक विदेही को याद करो। 
    
       
       
    
  
गीत:-तुम्हीं हो माता-पिता... 
 
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      - ओम् शान्ति।
 
      -  बच्चों को ओम् शान्ति का अर्थ तो बिल्कुल सहज समझाया जाता है।
 
      -  हर एक बात सहज है।
 
      -  सहज राजाई प्राप्त करनी है, कहाँ के लिए? 
 
      - सतयुग के लिए। 
 
      - उनको जीवनमुक्ति कहा जाता है। 
 
      - वहाँ रावण के यह भूत होते नहीं।
 
      -  कोई को क्रोध आता है तो कहा जाता है कि तुम्हारे में यह भूत है। 
 
      - योग का अर्थ है - अपने को आत्मा समझ परमात्मा को याद करना।
 
      -  मैं आत्मा हूँ, यह मेरा शरीर है।
 
      -  हर एक के शरीर रूपी रथ में आत्मा रथी बैठी हुई है।
 
      -  आत्मा की ताकत से यह रथ चलता है।
 
      -  आत्मा को यह शरीर घड़ी-घड़ी लेना और छोड़ना पड़ता है।
 
      -  यह तो बच्चे जानते हैं भारत अब दु:खधाम है।
 
      -  कुछ समय पहले सुखधाम था। 
 
      - आलमाइटी गवर्मेन्ट थी क्योंकि आलमाइटी अथॉरिटी ने भारत में देवताओं के राज्य की स्थापना की। 
 
      - वहाँ एक धर्म था।
 
      -  आज से 5 हजार वर्ष पहले बरोबर लक्ष्मी-नारायण का राज्य था। 
 
      - वह राज्य स्थापन करने वाला जरूर बाप होगा।
 
      -  बाप से उन्हों को वर्सा मिला होगा।
 
      -  इन्हों की आत्मा ने 84 जन्मों का चक्र लगाया है। 
 
      - भारतवासी ही इन वर्णों में आते हैं। 
 
      - शूद्र वर्ण के बाद सर्वोत्तम ब्राह्मण वर्ण आता है।
 
      -  ब्राह्मण वर्ण माना ब्रह्मा के मुख वंशावली। 
 
      - वह ब्राह्मण हैं कुख वंशावली। 
 
      - वह कह न सकें कि हम ब्रह्मा मुख वंशावली हैं।
 
      -  प्रजापिता ब्रह्मा के जरूर एडाप्टेड चिल्ड्रेन होंगे। 
 
      - बच्चे जानते हैं यह भारत पूज्य था, अब पुजारी है।
 
      -  बाप तो सदा पूज्य है वह आते जरूर हैं, पतितों को पावन बनाने।
 
      -  सतयुग है पावन दुनिया।
 
      -  सतयुग में पतित-पावनी गंगा, यह नाम ही नहीं होगा क्योंकि वह है ही पावन दुनिया।
 
      -  सभी पुण्य आत्मायें हैं। 
 
      - नो पाप आत्मा।
 
      -  कलियुग में फिर नो पुण्य आत्मा।
 
      -  सभी पाप आत्मा हैं।
 
      - पुण्य आत्मा पवित्र को कहा जाता है।
 
      -  भारत में ही बहुत दान-पुण्य करते हैं।
 
      -  इस समय जब बाप आते हैं तो उनके ऊपर बलि चढ़ते हैं।
 
      -  संन्यासी तो घर बार छोड़ जाते हैं।
 
      -  यहाँ तो कहते हैं बाबा यह सब कुछ आपका है। 
 
      - आपने सतयुग में अथाह धन दिया था फिर माया ने कौड़ी जैसा बना दिया।
 
      -  अभी यह आत्मा भी पतित हो गई है।
 
      -  तन-मन-धन सब पतित है।
 
      -  आत्मा पहले-पहले पवित्र रहती है फिर चक्र लगाए पिछाड़ी में तमोप्रधान झूठा जेवर बना है।
 
      -  पार्ट बजाते-बजाते पतित बन जाती है। 
 
      - गोल्डन, सिल्वर... इन स्टेजेस में मनुष्य को आना है जरूर।
 
      -  गाते भी हैं तुम मात-पिता... लक्ष्मी नारायण के आगे भी जाकर यह महिमा करते हैं। 
 
      - परन्तु उनको तो अपना एक बच्चा, एक बच्ची होती है।
 
      -  जैसा सुख राजा रानी को वैसा बच्चों को रहता है। 
 
      - सबको सुख घनेरे हैं। 
 
      - अब तो 84 वें अन्तिम जन्म में हैं दु:ख घनेरे।
 
      -  बाप कहते हैं अब फिर से मैं तुमको राजयोग सिखलाता हूँ। 
 
      - बच्चों को समझाया कि इस रथ में रथी आत्मा बैठा हुआ है।
 
      -  यह रथी पहले 16 कला सम्पूर्ण था।
 
      -  अब नो कला।
 
      -  कहते भी हैं मैं निर्गुण हारे में अब कोई गुण नाहीं।
 
      -  आपेही तरस परोई अर्थात् रहम करो।
 
      -  कोई में भी गुण नहीं हैं।
 
      -  पतित हैं तब तो गंगा में पाप धोने जाते हैं।
 
      -  सतयुग में नहीं जाते। 
 
      - नदी तो वही है ना। 
 
      - बाकी हाँ, ऐसे कहेंगे कि उस समय हर चीज़ सतोप्रधान है।
 
      -  सतयुग में नदियां भी बड़ी साफ स्वच्छ होंगी।
 
      -  नदियों में किचड़ा आदि कुछ भी नहीं रहता।
 
      -  यहाँ तो देखो किचड़ा पड़ता रहता है।
 
      -  सागर में सारा गन्द जाता है। 
 
      - सतयुग में ऐसा हो नहीं सकता।
 
      -  लॉ नहीं है किसको अपवित्र बनाना। 
 
      - सब चीजें पवित्र रहती हैं।
 
      - तो बाप समझाते हैं कि अभी सबका यह अन्तिम जन्म है।
 
      -  खेल पूरा होता है।
 
      -  इस खेल की लिमिट ही है 5 हजार वर्ष।
 
      -  यह निराकार शिवबाबा समझाते हैं।
 
      -  वह है निराकार सबसे ऊंच परमधाम में रहने वाला, परमधाम से तो हम सब आते हैं। 
 
      - अब कलियुग अन्त में ड्रामा पूरा हो फिर से हिस्ट्री रिपीट होनी है। 
 
      - मनुष्य जो यह गीता शास्त्र आदि पढ़ते हैं वह सब बने हैं द्वापर से।
 
      -  यह ज्ञान प्राय: लोप हो जाता है।
 
      -  राजयोग तो कोई सिखला न सके, सिर्फ उन्हों के यादगार लिए पुस्तक बनाते रहते हैं।
 
      -  वह खुद तो धर्म स्थापन कर पुनर्जन्म में आने लगे।
 
      -  उनका यादगार पुस्तक रहने लगा।
 
      -  अब देवी-देवता धर्म की स्थापना होती है संगम पर। 
 
      - बाप आकर इस रथ में विराजमान होते हैं।
 
      -  घोड़े गाड़ी की बात नहीं। 
 
      - इस साधारण बूढ़े रथ में प्रवेश करते हैं। 
 
      - वह है रथी। 
 
      - गाया भी जाता है ब्रह्मा मुख वंशावली ब्रह्माकुमार कुमारियां हैं। 
 
      - यह ब्रह्मा भी एडाप्ट किया हुआ है।
 
      -  बाप खुद कहते हैं मैं इस रथ का आए रथी बनता हूँ, इनको ज्ञान देता हूँ।
 
      -  शुरू इनसे करता हूँ। 
 
      - कलष देता हूँ माताओं को। 
 
      - माता तो यह भी ठहरी। 
 
      - पहले-पहले यह सुनते हैं फिर तुम, इनमें तो विराजमान हैं, परन्तु सामने किसको सुनावें।
 
      -  फिर आत्माओं से बैठ बात करते हैं और कोई भी विद्वान आदि नहीं होगा जो ऐसे आत्माओं से बैठ बात करे।
 
      -  मैं तुम्हारा बाप हूँ।
 
      -  तुम आत्मायें निराकार हो, मैं भी निराकार हूँ।
 
      -  मैं ज्ञान सागर स्वर्ग का रचयिता हूँ। 
 
      - मैं नर्क नहीं रचता हूँ। 
 
      - यह तो माया नर्क बनाती है। 
 
      - बाप कहते हैं मैं तो हूँ ही रचता, तो स्वर्ग ही बनाऊंगा।
 
      -  तुम भारतवासी स्वर्गवासी थे।
 
      -  अब नर्कवासी बने हो। 
 
      - नर्कवासी बनाया रावण ने क्योंकि आत्मा रावण की मत पर चलती है।
 
      -  इस समय तुम आत्मायें राम शिवबाबा श्री श्री की मत पर चलते हो।
 
      -  बाप समझाते हैं अब सबका पार्ट पूरा हुआ।
 
      -  जब सभी आत्मायें इकट्ठी होंगी, ऊपर से सब आ जायेंगी, तब जाना शुरू होगा।
 
      -  फिर विनाश शुरू हो जायेगा। 
 
      - भारत में अब अनेक धर्म हैं। 
 
      - सिर्फ एक आदि सनातन देवी-देवता धर्म है नहीं। 
 
      - कोई भी अपने को देवता नहीं कहलाते।
 
      -  देवताओं की महिमा गाते हैं सर्वगुण सम्पन्न... फिर अपने को कहेंगे हम पापी नींच...द्वापर से रावण का राज्य शुरू होता है।
 
      -  रामराज्य है ब्रह्मा का दिन, रावण राज्य है ब्रह्मा की रात।
 
      -  अब बाप कब आवे?
 
      -  जब ब्रह्मा की रात पूरी हो तब तो आयेगा ना।
 
      -  और इस ब्रह्मा के तन में आवे तब ब्रह्मा मुख से ब्राह्मण पैदा हों। 
 
      - उन ब्राह्मणों को ही राजयोग सिखलाते हैं।
 
      -  बाप कहते हैं जो भी आकारी, साकारी वा निराकारी चित्र हैं - उन्हें तुम्हें याद नहीं करना है। 
 
      - तुमको तो लक्ष्य दिया जाता है। 
 
      - मनुष्य तो चित्र देख याद करते हैं।
 
      -  बाबा तो कहते हैं चित्रों को देखना अब बंद करो। 
 
      - यह है भक्ति मार्ग। 
 
      - अभी तो तुम आत्माओं को वापिस मेरे पास आना है।
 
      -  पापों का बोझा सिर पर है, पाप आत्मा बनना ही है।
 
      -  ऐसे नहीं गर्भ जेल में हर जन्म के पाप खत्म हो जाते हैं। 
 
      - कुछ खत्म हो जाते हैं, कुछ रहते हैं। 
 
      - अब मैं पण्डा बनकर आया हूँ।
 
      -  इस समय सब आत्मायें माया की मत पर चलती हैं। 
 
      - बाप कहते मैं तो हूँ ही पतित-पावन, स्वर्ग का रचयिता। 
 
      - मेरा धन्धा ही है नर्क को स्वर्ग बनाना।
 
      -  स्वर्ग में तो है ही एक धर्म, एक राज्य।
 
      -  वहाँ कोई पार्टीशन नहीं था।
 
      -  बाप कहते हैं मै विश्व का मालिक नहीं बनता हूँ। 
 
      - तुमको बनाता हूँ।
 
      -  फिर रावण आकर तुमसे राज्य छीनते हैं। 
 
      - अभी हैं सब तमोप्रधान, पत्थरबुद्धि। 
 
      - संगमयुग में तुम पारसबुद्धि बनते हो।
 
      -  बाप कहते हैं मामेकम् याद करो, बुद्धियोग ऊपर में लटकाओ। 
 
      - जहाँ जाना है उनको ही याद करना है। 
 
      - एक बाप, दूसरा न कोई।
 
      -  वही सच्चा पातशाह है, सच सुनाने वाला।
 
      -  तो कोई भी चित्र का सिमरण नहीं करना है। 
 
      - यह जो शिव का चित्र है उनका भी ध्यान नहीं करना है, क्योंकि शिव तो ऐसा है नहीं।
 
      -  जैसे हम आत्मा भृकुटी के बीच में रहती है वैसे बाबा भी कहते हैं मैं थोड़ी जगह लेकर इस आत्मा के बाजू में बैठ जाता हूँ। 
 
      - रथी बन इनको बैठ ज्ञान देता हूँ।
 
      -  इनकी आत्मा में भी ज्ञान नहीं था।
 
      -  जैसे इनकी आत्मा रथी बोलती है शरीर द्वारा, वैसे मैं भी इन आरगन्स से बोलता हूँ।
 
      -  नहीं तो कैसे समझाऊं। 
 
      - ब्राह्मण रचने के लिए ब्रह्मा जरूर चाहिए।
 
      -  जो ब्रह्मा ही फिर नारायण बनेगा।
 
      -  अभी तुम ब्रह्मा की औलाद हो फिर सूर्यवंशी श्री नारायण के घराने में आयेंगे। 
 
      - अभी तो बिल्कुल कंगाल बन पड़े हैं।
 
      -  लड़ते, झगड़ते रहते हैं।
 
      -  बन्दर से भी बदतर हैं।
 
      -  बन्दर में 5 विकार बड़े कड़े होते हैं। 
 
      - काम, क्रोध... सब विकार बन्दर में ऐसे होते हैं जो बात मत पूछो, बच्चा मरेगा तो उनकी हड्डियों को भी छोड़ेगा नहीं।
 
      -  मनुष्य भी आजकल ऐसे-ऐसे हैं। 
 
      - बच्चा मरा तो 6-8 मास रोते रहेंगे।
 
      -  सतयुग में तो अकाले मृत्यु होती नहीं। 
 
      - न कोई रोते पीटते।
 
      -  वहाँ कोई शैतान होता नहीं।
 
      -  बाप इस समय तुम बच्चों से बात कर रहे हैं। 
 
      - घरबार भी भल सम्भालो।
 
      -  उनमें रहते हुए ऐसी कमाल कर दिखाओ जो संन्यासी कर न सकें। 
 
      - यह सतोप्रधान संन्यास परमात्मा ही सिखलाते हैं। 
 
      - कहते हैं यह पुरानी दुनिया अब खत्म होनी है इसलिए इससे ममत्व मिटाओ। 
 
      - सभी को वापिस जाना है।
 
      -  देह सहित जो भी पुरानी चीज़ें हैं, उनको भूल जाओ। 
 
      - 5 विकार मुझे दे दो। 
 
      - अगर अपवित्र बनेंगे तो पवित्र दुनिया में आ नहीं सकेंगे।
 
      -  बाप से प्रतिज्ञा करो इस अन्तिम जन्म के लिए।
 
      -  फिर तो पवित्रता कायम हो ही जायेगी। 
 
      - 63 जन्म तो विष में गोते खाये, एकदम गन्दे बन पड़े हो।
 
      -  अपने धर्म कर्म को भूल गये हो।
 
      -  हिन्दू धर्म कहते रहते हो।
 
      -  बाप कहते हैं क्यों नहीं समझते हो भारत स्वर्ग था, हम ही देवता थे।
 
      -  मैंने तुमको राजयोग सिखलाया।
 
      -  तुम फिर कहते हो कृष्ण ने सिखलाया।
 
      -  क्या कृष्ण सभी का बाप स्वर्ग का रचयिता है?
 
      -  बाप तो है निराकार सभी आत्माओं का बाप।
 
      -  फिर उनके लिए कहते हो सर्वव्यापी।
 
      -  शिव-शंकर को भी मिला देते हो।
 
      -  शिव तो है परमात्मा।
 
      -  परमात्मा कहते हैं मैं आता ही हूँ देवी-देवता धर्म स्थापन करने।
 
      -  जो अभी स्थापन करते हैं फिर विष्णु के दो रूप लक्ष्मी-नारायण राज्य करेंगे।
 
      -  विष्णु से ही वैष्णव अक्षर निकलता है।
 
      -  आजकल तो सब पाप आत्मायें हैं।
 
      -  वहाँ यह काम कटारी चलाकर एक दो का घात नहीं करते हैं। 
 
      - सचखण्ड स्थापन करने वाला एक ही सतगुरू है।
 
      -  बाकी सब हैं डुबोने वाले, संगम और स्वर्ग एक दो के नजदीक होने के कारण नर्क की बात स्वर्ग में ले गये हैं। 
 
      - वास्तव में कंस, रावण आदि सब अभी हैं। 
 
      - वहाँ यह हो नहीं सकते।
 
      -  तो रथ में जो रथी दिखाते हैं - वास्तव में रथ यह है, जिसको नंदीगण, भागीरथ भी कहा जाता है। 
 
      - तुम सब अर्जुन हो, तुम्हें कहते हैं इस रथ में आया हूँ, युद्ध के मैदान में तुमको माया पर जीत प्राप्त कराने।
 
      -  सतयुग में न रावण होता, न जलाते।
 
      -  अब तो रावण को जलाते ही रहेंगे, जब तक विनाश नहीं होगा।
 
      -  कितनी भी आपदायें आयेंगी, दशहरे पर रावण को जरूर जलायेंगे।
 
      -  फिर आखरीन यह रावण सम्प्रदाय खलास हो जायेगी।
 
      -  सद्गति दाता है ही एक। 
 
      - मनुष्य, मनुष्य को सद्गति दे न सकें।
 
      -  जब इन देवताओं का राज्य था तो सारे विश्व पर इन्हों का ही राज्य था और धर्म थे ही नहीं।
 
      -  अभी और सब धर्म हैं, देवताओं का धर्म है नहीं।
 
      -  जिसकी अब स्थापना हो रही है।
 
      -  देवता धर्म वाले ही आकर शूद्र से ब्राह्मण बनेंगे।
 
       
       
     
          
        
      
        
        
        
        
        
        
        
        
        
        
        
        
        
        
        
        
        
        
        
        
        
        
        
        
        
        
        
        
       
        अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
        
     धारणा के लिए मुख्य सार:-
      1)    सतोप्रधान संन्यास करना है। 
      इस पुरानी दुनिया में रहते इससे ममत्व मिटा देना है।
       देह सहित जो भी पुरानी चीज़ें हैं उनको भूल जाना है। 
      
          
        
      
      
      
      
      
      
      
      
      
      
      
      
      
      
      
      
      
      
      
        
      
       2) अपना बुद्धियोग ऊपर लटकाना है। 
      किसी भी चित्र वा देहधारी को याद नहीं करना है। 
      एक बाप का ही सिमरण करना है।
      
      
      
      
      
      
      
      
      
      
      
      
      
      
      
      
      
      
      वरदान:-
      ( All Blessings of 2021-22)
      
      
        
          - परमात्म श्रीमत के आधार पर हर कदम उठाने वाले अविनाशी वर्से के अधिकारी भव
 
          -  संगमयुग पर आप श्रेष्ठ भाग्यवान आत्माओं को जो परमात्म श्रीमत मिल रही है - यह श्रीमत ही श्रेष्ठ पालना है।
 
          -  बिना श्रीमत अर्थात् परमात्म पालना के एक कदम भी उठा नहीं सकते।
 
          -  ऐसी पालना सतयुग में भी नहीं मिलेगी।
 
          -  अभी प्रत्यक्ष अनुभव से कहते हो कि हमारा पालनहार स्वयं भगवान है। 
 
          - यह नशा सदा इमर्ज रहे तो बेहद के खजानों से भरपूर स्वयं को अविनाशी वर्से के अधिकारी अनुभव करेंगे।
 
          
         
      
      स्लोगन:-        
      (All Slogans of 2021-22)
      
        
          - सपूत बच्चा वह है जो सम्पूर्ण पवित्र और योगी बन स्नेह का रिटर्न देता है।
 
          
          
          
         
      
      
      
      
      
           
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