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         09-09-2022 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
 
      "मीठे बच्चे - जब तक जीना है तब तक पढ़ना है, सीखना है, तुम्हारी पढ़ाई है ही पावन दुनिया के लिए, पावन बनने के लिए''
 
      
  प्रश्नः-
  
    बाप किस गुण में बच्चों को आप समान बनाने की शिक्षा देते हैं?
 
  उत्तर:-
   बाबा कहते बच्चे जैसे मैं निरहंकारी हूँ, ऐसे तुम बच्चे भी मेरे समान निरहंकारी बनो। 
   बाप ही तुम्हें पावन बनने की शिक्षा देते हैं।  
  पावन बनने से ही बाप समान बनेंगे। 
     
  प्रश्नः-
  
   जब बुद्धि अच्छी बनती है तो कौन से राज़ बुद्धि में स्वत: बैठ जाते हैं?
  
  उत्तर:-
   
   मैं आत्मा क्या हूँ, मेरा बाप परमात्मा क्या है, उनका क्या पार्ट है।  
  आत्मा में कैसे अनादि पार्ट भरा हुआ है जो बजाती ही रहती है।  
  यह सब बातें अच्छी बुद्धि वाले ही समझ सकते हैं। 
  गीत:- धीरज धर मनुआ... 
 
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      - ओम् शान्ति।
 
     -  बेहद का माँ-बाप मिला तो धीरज मिला। किसको? 
 
     - आत्माओं को वा जीव आत्मा बच्चों को?
 
     -  आत्मा एक छोटी सी बिन्दी है।
 
     -  दुनिया में एक भी मनुष्य नहीं जिसकी बुद्धि में हो कि आत्मा एक बिन्दी मिसल स्टार है।
 
     -  तुम जानते हो कि हमारी इतनी छोटी सी आत्मा में 84 जन्मों का, 5 हजार वर्ष का पार्ट है। 
 
     - दूसरी आत्माओं में तो इतना पार्ट भरा हुआ नहीं है।
 
     -  मनुष्यों की बुद्धि कितनी कमजोर हो गई है जो समझती नहीं है। 
 
     - परमात्मा के लिए तो नहीं कहेंगे कि वह 84 जन्म वा 84 लाख जन्म लेते हैं। नहीं। 
 
     - तुम बच्चे जानते हो इतनी छोटी सी आत्मा में 84 जन्मों का अविनाशी पार्ट नूँधा हुआ है। 
 
     - उसको कुदरत कहेंगे ना।
 
     -  कितनी छोटी सी बिन्दी आत्मा है, जिसमें सब जन्मों का अविनाशी पार्ट नूँधा हुआ है, वह कभी मिटता नहीं है, मिटने वाला भी नहीं है।
 
     -  कितना भारी वन्डर है।
 
     -  तुम्हारे में भी कोई हैं जो इन बातों को जानते हैं - फिर भूल जाते हैं।
 
     -  यह धारण करना है औरों को समझाने के लिए।
 
     -  बाप परमपिता परमात्मा को करनकरावनहार कहा जाता है, वह भी करते हैं सिखलाने के लिए।
 
     -  उनको निराकार - निरहंकारी कहा जाता है।
 
     -  उनका अर्थ भी कोई समझ न सके।
 
     -  यह गुण बच्चों को ही सिखलाते हैं। 
 
     - बच्चों को भी ऐसा निरहंकारी बनना है।
 
     -  ज्ञान सागर है तो ज्ञान भी सुनाना पड़े ना। 
 
     - पतित-पावन है तो जरूर आकर पतितों को ही शिक्षा देंगे, पावन बनने की।
 
     -  जैसे संन्यासी शिक्षा देते हैं संन्यास करवाने लिए। 
 
     - यह भी 5 विकारों का संन्यास करना है।
 
     -  पतित-पावन ही आकर शिक्षा देंगे। 
 
     - नहीं तो हम पावन कैसे बने। 
 
     - गाया भी जाता है - जब तक जीना है तब तक सीखना है, पढ़ना है। 
 
     - स्कूलों में तो ऐसे नहीं कहा जाता है। 
 
     - उसमें तो इस ही जन्म में पढ़ाई की प्रालब्ध भोगनी है।
 
     -  यहाँ तो कहा जाता है जब तक जीना है तब तक पढ़ना है। 
 
     - अन्त तक कर्मातीत अवस्था को पाना है। 
 
     - आत्मा को योग से ही पवित्र बनाना है। 
 
     - जितना योग में रहेंगे तो तुम्हारी आत्मा गोल्डन एज में जायेगी फिर आइरन एज में न आत्मा को, न शरीर को रहना है। 
 
     - हम पढ़ते ही हैं पावन दुनिया में आने के लिए। 
 
     - यह ऐसी गुह्य बातें हैं जो कोई कब समझा न सकें। 
 
     - और तो मनुष्य क्या-क्या करते रहते हैं। 
 
     - साइंस घमण्डी कैसी-कैसी चीजें बनाते हैं। 
 
     - स्टॉर, मून पर भी जाने का पुरूषार्थ करते हैं। 
 
     - तुम समझते हो इनसे कोई जीवनमुक्ति नहीं मिलती है। 
 
     - करके अल्पकाल क्षण भंगुर सुख मिलता है।
 
     -  एरोप्लेन से सुख भी मिलता है तो दु:ख भी मिलता है। 
 
     - कल एक्सीडेंट हो जाए तो दु:ख होगा। 
 
     - स्टीम्बर डूब जाता है, ट्रेन का एक्सीडेंट हो जाता है। 
 
     - बैठे-बैठे भी मनुष्य हार्टफेल हो जाते हैं। 
 
     - सुखधाम तो है ही अलग। 
 
     - वहाँ सदैव सुख ही सुख है। 
 
     - इस दुनिया में जो भी सुख है वह है ही अल्पकाल काग विष्टा के समान।
 
     -  तुम बच्चों को अभी बहुत अच्छी बुद्धि मिली है। 
 
     - मैं आत्मा क्या हूँ, मेरा बाप परमात्मा क्या है। 
 
     - उनका पार्ट क्या है, हमारा क्या पार्ट है - सारा बुद्धि में राज़ है।
 
     -  तुम बच्चों में भी सबके 84 जन्म नहीं कहेंगे।
 
     -  सब थोड़ेही सतयुग में इकट्ठे हो जाते हैं इसलिए सबके पूरे 84 जन्म नहीं कहेंगे।
 
     -  चन्द्रवंशी में भी पिछाड़ी तक आते रहते हैं। 
 
     - वृद्धि होती जायेगी। 
 
     - जन्म थोड़े होते जायेंगे। 
 
     - यह विस्तार की बातें हैं।
 
     -  बुढ़ियों को पहले अल्फ बे पक्का कराना है।
 
     -  अल्फ माना बाबा, बे माना बादशाही। 
 
     - यह तो बिल्कुल राइट बात है ना।
 
     -  स्वर्ग की बादशाही थी, भारत सारे विश्व का मालिक था, और कोई का राज्य नहीं था। 
 
     - जो रूद्र की माला बनती है वही फिर विष्णु की माला बन जाती है।
 
     -  यह ज्ञान तुम बच्चों को मिला है।
 
     -  आत्मा क्या है, परमात्मा क्या है, उनका रूप क्या है, क्या साइज है - यह सब बातें अभी तुम्हारी ही बुद्धि में हैं। 
 
     - कितनी छोटी सी आत्मा है, परमात्मा को भी भक्तिमार्ग में बहुत मेहनत करनी पड़ती है।
 
     -  द्वापर से कलियुग अन्त तक अथवा संगम के अन्त तक कहेंगे, उनका पार्ट चलता है। यह सब तुम जानते हो।
 
     - तुम कहेंगे यह सब कल्प पहले भी हुआ था।
 
     - आज से 5 हजार वर्ष पहले भी हुआ था।
 
     -  एक अखबार में रोज़ डालते हैं - 100 वर्ष पहले क्या हुआ, 100 वर्ष की बात तो सहज है।
 
     -  अखबारों से झट निकाल बतायेंगे। 
 
     - वह है टाइम्स आफ इन्डिया अखबार। 
 
     - तुम्हारी अखबार है टाइम्स आफ वर्ल्ड। 
 
     - यह अक्षर बड़ा अच्छा है। 
 
     - रोज़ लिख सकते हो। 
 
     - आज से 5 हजार वर्ष पहले क्या हुआ था।
 
     -  5 हजार वर्ष पहले जो हुआ था वही अब हुआ।
 
     -  ऐसे-ऐसे लिखने से मनुष्यों को ड्रामा का पता तो पड़ जाये।
 
     -  मैगजीन में भी लिख सकते हैं। 
 
     - तुम बच्चों की बुद्धि में तो सारा राज़ है। 
 
     - आत्मा और परमात्मा का ज्ञान तो कोई भी मनुष्य में नहीं है।
 
     -  तो वह मनुष्य क्या काम का।
 
     -  तुम जानते हो मनुष्य ही 84 जन्म लेते हैं।
 
     -  पहले-पहले ब्राह्मण वर्ण फिर देवता.... वर्णों में आते हैं।
 
     -  वर्ण तो यहाँ ही हैं। 
 
     - सूक्ष्मवतन में तो वर्णों की बात ही नहीं है।
 
     -  ब्रह्मा को प्रजापिता कहते हैं।
 
     -  विष्णु को प्रजापिता नहीं कहेंगे। 
 
     - ब्रह्मा द्वारा तो एडाप्ट किया जाता है।
 
     -  विष्णु के दो रूप लक्ष्मी-नारायण के तो बच्चे पैदा होते हैं, जो तख्त पर बैठते हैं।
 
     -  शंकर को भी प्रजापिता नहीं कहेंगे। 
 
     - यह भी जानते हो जैसी-जैसी भावना है वैसे-वैसे साक्षात्कार हो जाता है। 
 
     - बाकी वहाँ कोई सर्प आदि की बात नहीं है। 
 
     - बैल भी वहाँ हो न सके। 
 
     - सूक्ष्मवतन में तो है ही देवता।
 
     -  सूक्ष्मवतन में जाते हो - बगीचा, फल आदि देखते हो।
 
     -  क्या वहाँ बगीचा है? बाबा साक्षात्कार कराते हैं।
 
     -  बाकी है नहीं। 
 
     - बुद्धि कहती है वहाँ सूक्ष्मवतन में झाड़ आदि हो न सके।
 
     -  यह जरूर साक्षात्कार होता है। 
 
     - साक्षात्कार भी यहाँ का करायेंगे।
 
     -  यह सब हैं साक्षात्कार इसको जादूगरी का खेल कहते हैं।
 
     -  यह कोई ज्ञान नहीं है। 
 
     - मनुष्य-मनुष्य को बैरिस्टर बनाते हैं, वह कोई जादू नहीं कहेंगे। 
 
     - वह विद्या देते हैं। 
 
     - यह तुम्हारे को मनुष्य से देवता बनाते हैं नई दुनिया के लिए, इसलिए जादूगरी कहा जाता है।
 
     -  दिव्य दृष्टि की चाबी बाबा के पास होने कारण उनको जादूगर भी कहा जाता है।
 
     -  वह कहते हैं गुरू की कृपा है, मूर्ति से साक्षात्कार हुआ। 
 
     - उससे तो फायदा कुछ भी नहीं। 
 
     - यहाँ तो मेहनत कर स्वयं वह लक्ष्मी-नारायण, सीता-राम बन रहे हो। 
 
     - यहाँ तुम आये हो सूर्यवंशी, चन्द्रवंशी डिनायस्टी के रजवाड़े बनने। 
 
     - पहली मुख्य बात है कोई नया आता है उसको बाप का परिचय दो।
 
     -  ब्रह्म तत्व, महतत्व है।
 
     -  शिवबाबा निराकार को कोई ब्रह्म तत्व नहीं कहेंगे। 
 
     - एक-एक अक्षर का अर्थ है।
 
     -  तुम ईश्वरीय बच्चे हो।
 
     -  ऐसे नहीं कि सब ईश्वर के रूप हैं। 
 
     - यह बाप बैठ समझाते हैं। 
 
     - बाकी साक्षात्कार आदि की तो चिटचैट है, इनकी आश नहीं रहनी चाहिए।
 
     -  समझते हैं अब खुद बाबा आया है, तो साक्षात्कार करा देवे, परन्तु यह सब है फालतू।
 
     -  फिर साक्षात्कार न होने से नाउम्मीद हो पढ़ाई छोड़ देते हैं। 
 
     - साक्षात्कार में प्रिन्स को देखते हैं तो समझते हैं हमको यह बनना है। 
 
     - खुशी हो जाती है। 
 
     - बहुत करके प्रिन्स का ही साक्षात्कार होता है।
 
     -  अगर विचार किया जाए तो मुकुटधारी तो सब बनते हैं। 
 
     - मेल-फीमेल में फर्क नहीं रहता है।
 
     -  सिर्फ फीमेल को लम्बे बाल हैं, थोड़ा शक्ल में फर्क है। 
 
     - आत्मायें कितनी हैं, एक का नाम रूप न मिले दूसरे से। 
 
     - आत्मा में अविनाशी पार्ट है जो कभी बदल नहीं सकता।
 
     -  कैसे वन्डरफुल खेल बना हुआ है। 
 
     - आत्मा को अनादि पार्ट मिला हुआ है। 
 
     - बाबा कितना सहज कर समझाते हैं। 
 
     - सिर्फ त्रिमूर्ति चित्र के सामने जाकर बैठो तो बुद्धि में सारा चक्र आ जायेगा। 
 
     - यह शिवबाबा है, यह ब्रह्मा है, जिससे ब्राह्मण रचते हैं। 
 
     - अभी कलियुग है फिर सतयुग आना है।
 
     -  चित्र के सामने खड़ा होने से जैसे कि सारे विश्व का खेल बुद्धि में आ जाता है। 
 
     - कैसे चक्र फिरता है, खेल में कौन-कौन हैं, सब मालूम पड़ जाता है। 
 
     - रोज़ चित्रों को देखते रहो। 
 
     - विचार सागर मंथन करते रहो।
 
     -  यह नर्क है, यह स्वर्ग है, यह संगम है।
 
     -  कितना सहज है। 
 
     - रोज़ प्रैक्टिस करने से बुद्धि में रोशनी आ जायेगी। 
 
     - लक्ष्मी-नारायण, राधे-कृष्ण के लिए भी लिखो। 
 
     - ब्रह्मा द्वारा सतयुग का वर्सा मिलता है। 
 
     - लक्ष्मी-नारायण को यह प्रालब्ध कैसे मिली? 
 
     - जरूर संगमयुग ही होगा, जब ऐसे कर्म किये हैं। 
 
     - अन्तिम जन्म में पुरूषार्थ से उन्होंने यह प्रालब्ध पाई है।
 
     -  ऐसे-ऐसे ख्याल बुद्धि में आना चाहिए।
 
     -  फिर चित्रों की भी दरकार नहीं रहेगी।
 
     -  बुद्धि में सारा राज़ आ जायेगा। 
 
     - इन चित्रों से फिर दिल रूपी कागज पर उतारना है। 
 
     - बाबा सेन्टर्स के बच्चों का मुख खोलने की युक्ति बता रहे हैं।
 
     -  चित्रों को देखते रहो। 
 
     - अन्दर में बोलते रहो।
 
     -  रचना के आदि-मध्य-अन्त का राज़ जानना है।
 
     -  झाड़ में क्लीयर है।
 
     -  तपस्या यहाँ कर रहे हैं राजयोग की।
 
     -  यह मनुष्य से देवता बनते हैं। 
 
     - फिर भक्ति मार्ग कैसे शुरू होता है।
 
     -  जो-जो, जिस-जिस धर्म के हैं, उसमें ही फिर आयेंगे।
 
     -  कितना सहज है। 
 
     - उन पर ही समझाना है।
 
     -  आत्मा क्या है, परमात्मा क्या है, उनमें अनादि पार्ट नूँधा हुआ है। 
 
     - सतयुग में हम सुख का पार्ट बजायेंगे, इतने जन्म लेंगे।
 
     -  शमशान में भी जाकर किसको समझा सकते हो। 
 
     - जब तक मुर्दा जल जाये तब तक बैठ सतसंग करते हैं। 
 
     - तुमको कोई रोकेगा नहीं।
 
     -  बोलो आओ तुमको हम समझाये। 
 
     - सुनकर बहुत खुश होंगे। 
 
     - बात करने वाले बहुत समझदार, सयाने चाहिए कहाँ भी जाकर तुम समझा सकते हो। 
 
     - समझाते तो बाबा बहुत अच्छी तरह हैं।
 
     -  तुम्हारे कच्छ (बगल) में सच है।
 
     -  मनुष्यों के कच्छ में झूठी गीता है।
 
     -  तुम्हारे बगल में सारे विश्व की हिस्ट्री-जॉग्राफी है।
 
     -  श्रीकृष्ण के चित्र पर भी तुम अच्छी तरह समझा सकते हो।
 
     -  इनको श्याम-सुन्दर क्यों कहते हैं, आओ तो हम आपको कहानी सुनायें।
 
     -  सुनकर बड़े खुश हो जायेंगे।
 
     -  भारत गोल्डन एज था। 
 
     - अब पत्थर एज है।
 
     -  सांवरा हो गया है। 
 
     - काम चिता पर बैठने से काला मुँह हो जाता है।
 
     -  तो ऐसे-ऐसे समझाने से तुम बहुत कमाल कर दिखा सकते हो।
 
     -  तीनों चित्र भल साथ में हो। 
 
     - एक चित्र पर समझाकर फिर दूसरे चित्र पर समझाना चाहिए।
 
     -  बहुत सहज है।
 
     -  सिर्फ पुरूषार्थ की बात है। 
 
     - टाइम तो बहुत है। 
 
     - सवेरे मन्दिरों में चले जाओ। 
 
     - आओ तो हम तुमको लक्ष्मी-नारायण की जीवन कहानी सुनायें। 
 
     - भक्ति मार्ग में यज्ञ, तप, तीर्थ आदि करते-करते तुम एकदम कौड़ी मिसल बन पड़े हो, फिर शास्त्रों ने क्या सहायता की? 
 
     - हम आपको सच बतलाते हैं, सच ही सहायता करते हैं। 
 
     
       
    - ...अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुड़मार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
 
      
       
  
     
  
    - धारणा के लिए मुख्य सार:-
 
      
   1) पढ़ाई पर पूरा-पूरा ध्यान देना है।  
  बाकी साक्षात्कार आदि की आश नहीं रखनी है। 
   नाउम्मीद बन पढ़ाई नहीं छोड़नी है। 
   2)  चित्रों को देखते विचार सागर मंथन कर हर बात को दिल में उतारना है। 
   राजयोग की तपस्या करनी है।  
   
       
  
       - ( All Blessings of 2021-22)
 
       अपने मस्तक पर सदा बाप की दुआओं का हाथ अनुभव करने वाले विघ्न-विनाशक भव 
        विघ्न-विनाशक वही बन सकते जिनमें सर्वशक्तियां हों। 
        तो सदा ये नशा रखो कि मैं मास्टर सर्वशक्तिमान् हूँ। 
        सर्व शक्तियों को समय पर कार्य में लगाओ। 
        कितने भी रूप से माया आये लेकिन आप नॉलेजफुल बनो। 
        बाप के हाथ और साथ का अनुभव करते हुए कम्बाइन्ड रूप में रहो। 
        रोज़ अमृतवेले विजय का तिलक स्मृति में लाओ।  
       अनुभव करो कि बापदादा की दुआओं का हाथ मेरे मस्तक पर है तो विघ्न-विनाशक बन सदा निश्चिंत रहेंगे। 
       
        
      
       
       
  
      
      - (All Slogans of 2021-22)
 
     
        
         - सेवा द्वारा अविनाशी खुशी की अनुभूति करने और कराने वाले ही सच्चे सेवाधारी हैं।
 
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