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   14-10-2022 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
 
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मीठे बच्चे - तुम्हें पढ़ाई का बहुत कदर रखना है। बीमार हो, मरने पर भी हो तो भी क्लास में बैठो, कहा जाता ज्ञान अमृत मुख में हो तब प्राण तन से निकले'' 
     
  
     
  प्रश्नः-
  
   कई बच्चे भी बाप से बेमुख करने के निमित्त बन जाते हैं - कब और कैसे?
  
    
  उत्तर:-
   
   जो आपस में भाई-बहनों से रूठकर पढ़ाई छोड़ देते हैं और गुरू के निंदक बन जाते हैं, उन्हें देख अनेक बाप से बेमुख हो जाते। 
   आज अच्छा पढ़ते कल पढ़ाई छोड़ देते तो दूसरों को कह न सकें कि तुम पढ़ो। ऐसे बच्चे ऊंच पद से वंचित हो जाते हैं। 
  गीत:- महफिल में जल उठी शमा.... 
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      - ओम् शान्ति।
 
      -  गीत का अर्थ बच्चों ने समझा - जिन्होंने यह गीत बनाया है, वह उनका अर्थ नहीं जानते।
 
      -  देखो कितने वेद, शास्त्र, उपनिषद बनाये हैं, परन्तु एक भी यथार्थ अर्थ को नहीं जानते।
 
      -  यथार्थ अर्थ न जानने के कारण वेस्ट आफ टाइम, वेस्ट आफ मनी करते हैं।
 
      -  बाप समझाते हैं तुमने बहुत-बहुत मन्दिर, वेद, उपनिषद आदि बनाये हैं। 
 
      - यज्ञ-जप-तप किये हैं। कितना पैसा खर्च किया है।
 
      -  यह बाप किसको समझाते हैं, जो जीते जी मरकर बाप के बनते हैं।
 
      -  तो तुम बाप के बने हो तो गोया जीते जी मरे हुए हो।
 
      -  तो अब बाप के साथ चलने की तैयारी करनी है।
 
      -  यह नहीं कि वहाँ तुम्हारी कोई बर्थ डे या बरसी आदि मनायेंगे।
 
      -  यहाँ गाँधी की कितने धूमधाम से मनाते हैं।
 
      -  ऐसे नहीं कि शिवबाबा ज्ञान देकर चला जायेगा तो फिर तुम सतयुग में उनकी जयन्ती मनायेंगे, नहीं। 
 
      - आधाकल्प जो भी शरीर छोड़ेंगे तो उनकी बरसी, क्रियाकर्म नहीं करेंगे।
 
      -  गऊदान करना, पित्रों को खिलाना, आदि नहीं होगा क्योंकि दान किया जाता है कि दूसरे जन्म में मिले। 
 
      - सतयुग में तुम इस समय की प्रालब्ध खाते हो।
 
      -  तो भक्ति की रसम-रिवाज और ज्ञान की रसम-रिवाज में अन्तर है।
 
      -  जो भी विशालबुद्धि वाले हैं वह इन बातों को समझेंगे और जो कल्प पहले विशालबुद्धि बने होंगे वही अब बनेंगे क्योंकि फिर से वही पार्ट बजाना है।
 
      -  गीत सुना चारों तरफ लगाये फेरे.. फिर भी हरदम दूर रहे.. बाप कहते हैं तुमने भक्ति मार्ग में कितना माथा मारा है फिर भी मुझसे मिल न सके क्योंकि जब मैं आऊं तब तो मुझे मिल सको।
 
      -  मैं आता ही हूँ कल्प-कल्प संगमयुग पर। 
 
      - लोग कह देते हैं कि परमात्मा युगे-युगे आता है। 
 
      - फिर कहते हैं परमात्मा के 24 अवतार हैं।
 
      -  तो यह रांग है ना। 
 
      - मुझे बुलाते हैं कि पतित-पावन आओ, आकर पतितों को पावन बनाओ। 
 
      - तो अब तुम्हारी युद्ध है माया रावण से। 
 
      - तुम्हारी कोई स्थूल युद्ध नहीं है। 
 
      - तुम रावण पर जीत पाते हो।
 
      -  उसमें भी मुख्य योद्धा कौन है? काम। 
 
      - तो इस विकार पर जीत पानी है अर्थात् पवित्र बनना है। 
 
      - जब खुद पवित्र बनते हो तो बच्चों को भी पवित्र बनाना पड़े, ताकि वह भी विश्व के मालिक बन जायें। 
 
      - अगर अभी तुम उन्हों को वर्सा देंगे तो क्या देंगे?
 
      -  ठिक्कर ठोबर देंगे।
 
      -  अच्छा देखो - अमेरिका है, वह क्या है? 
 
      - ठिक्कर ठोबर है क्योंकि अब सब खत्म होना है। 
 
      - अब देखो मरेंगे कैसे?
 
      -  जैसे पहाड़ों पर जब बर्फ का तूफान आता है तो पंछी आदि सब खत्म हो जाते हैं।
 
      -  तो यह बाम्बस के तूफान भी ऐसे हैं।
 
      -  एकदम मरते रहेंगे मच्छरों सदृश्य।
 
      -  तुम जानते हो कि हम देखेंगे कि कैसे सब मर रहे हैं।
 
      -  लड़ाई में देखो कितने मरते हैं। 
 
      - यहाँ मौत सबके सिर पर है। 
 
      - सतयुग में मौत का भी डर नहीं क्योंकि वहाँ अकाले मृत्यु नहीं होता। 
 
      - तो बाप ऐसी दुनिया में ले जाते हैं। 
 
      - तो ऐसे बाप की श्रीमत पर चलना चाहिए। 
 
      - यह सुप्रीम टीचर भी है, तो बच्चों को पढ़ाई पर पूरा ध्यान देना चाहिए। 
 
      - बहुत हैं जिनको पढ़ाई का कदर नहीं है।
 
      -  समझो कोई सख्त बीमार है, मरने पर है, उसको भी क्लास में ले आना चाहिए।
 
      -  कहते हैं ज्ञान अमृत मुख में हो, गंगा का तट हो.... तब प्राण तन से निकले। 
 
      - तो पढ़ाई का इतना कदर होना चाहिए। 
 
      - अगर लाचारी हालत में क्लास में नहीं ले जा सकते हो तो उनको घर में भी शिवबाबा याद कराना चाहिए। 
 
      - परन्तु पढ़ाई पर बच्चों का पूरा ध्यान नहीं है। 
 
      - बाबा कहते हैं रजिस्टर ले आओ तो मुझे मालूम पड़ेगा कि कहाँ तक कौन पढ़ता है, और बाबा पूछते भी हैं यह खुद पढ़ता औरों को पढ़ाता है?
 
      -  क्योंकि इसी धन्धे में ही कमाई है।
 
      -  बाकी सब धन्धों में है धूल। 
 
      - उन ब्राह्मणों के कच्छ में है कुरम, तुम्हारे पास है सच।
 
      -  तुम सचखण्ड की स्थापना कर रहे हो।
 
      - तुम्हारे ऊपर बड़ी जवाबदारी है, इसलिए खबरदारी रखनी है।
 
      -  मेहनत है, पढ़ना और पढ़ाना है।
 
      -  ऐसे नहीं सिर्फ पढ़ना है। 
 
      - तुम प्रवृत्ति मार्ग वाले हो, 8 घण्टा भल घर का काम करो। 
 
      - गवर्मेन्ट भी कायदा निकालती है कि 8 घण्टा काम करो। 
 
      - आगे तो जब स्टीम्बर बाहर से रात को आते थे तो सारी-सारी रात भी दुकान खोलकर काम करते थे। 
 
      - तुमको भी घर के काम से फारिग हो फिर इस सर्विस में लग जाना है।
 
      -  सर्विस करना गवर्मेन्ट खुद सिखलाती है।
 
      -  खिलाती, पिलाती है तो उनकी सर्विस भी करते हैं।
 
      -  यहाँ भी तुमको बाप सिखलाते हैं तो तुमको आन गॉडली सर्विस करनी है। सिर्फ ओनली सर्विस नहीं। 
 
      - ओनली हो गई सिर्फ अपनी बुद्धि की, खुद को पवित्र बनाना।
 
      -  परन्तु हमको तो भारत को स्वर्ग बनाना है। 
 
      - तो तुम्हारे ऊपर बहुत जिम्मेवारी है। 
 
      - जैसे उस सेना पर जिम्मेवारी रहती है।
 
      -  चीफ कमान्डर, कैप्टन आदि पर अधिक जवाबदारी रहती है।
 
      -  यहाँ भी ऐसे हैं।
 
      -  जो अच्छे-अच्छे बच्चे सेन्टर खोलते हैं वह हो गये कमान्डर। 
 
      - तो उन पर जवाबदारी है। 
 
      - तो यह हर एक को देखना है कि हम सर्विस के बजाए कहाँ डिससर्विस तो नहीं करते हैं।
 
      -  बहुत बच्चे हैं जो भाई-बहिनों से रूठकर पढ़ाई छोड़ देते हैं।
 
      -  यह नहीं समझते कि पढ़ाई छोड़ने से गुरू के निंदक ठौर नहीं पा सकेंगे अर्थात् सतयुग में ऊंच पद नहीं मिलेगा। 
 
      - यहाँ बाप बच्चों का रजिस्टर मंगाते हैं, उससे समझ जाते हैं। 
 
      - जैसे स्कूल में बाप, टीचर रजिस्टर से समझ जाते हैं कि यह बच्चा कहाँ तक पढ़ता होगा! 
 
      - कई बच्चे होते हैं जो सारा दिन खेलते रहते हैं और छुट्टी के टाइम पर घर आ जाते हैं कि हम पढ़कर आये हैं।
 
      -  किन्हों के माँ बाप तो रजिस्टर भी नहीं देखते, तो उन्हों को मालूम भी नहीं पड़ता।
 
      -  किन्हों के माँ-बाप ध्यान में रखते हैं तो बच्चा अच्छी तरह पढ़ जाये। यहाँ शिवबाबा अन्तर्यामी है।
 
      -  साकार को रजिस्टर दिखाना पड़े।
 
      -  बच्चे कहते हैं बाबा ऐसे तूफान आते हैं। 
 
      - बाबा कह देते हैं कि यह तूफान तो आयेंगे।
 
      -  यह सब तूफान पहले मेरे पास ही आते हैं क्योंकि जब तक इनको अनुभव न हो तो बच्चों को कैसे समझा सकें। 
 
      - अच्छा तुमको माया ने सारी रात हैरान किया, नींद भी नहीं करने दी, टाइम भी वेस्ट किया!
 
      -  यह भी उनका फर्ज है, टकरायेगी जरूर। 
 
      - बाकी तुम्हारा काम है बाप को इतना ही याद कर माया को भगाना। 
 
      - कई बच्चे हैं जो थोड़ी भी माया आती है तो चले जाते हैं, जैसे वैद्य लोग कह देते हैं यह दवाई लेने से बीमारी उथलेगी।
 
      -  परन्तु कई लोग ऐसे होते हैं जो जरा सी बीमारी ने उथल खाई तो उस वैद्य को छोड़ दूसरे के पास चले जाते हैं।
 
      -  यहाँ भी ऐसे हैं। 
 
      - ज्ञान को छोड़ साधू सन्तों के पास चले जाते हैं।
 
      -  फिर कहते हैं कि सब तो कहते हैं गृहस्थ व्यवहार में रहो, शादी करो। 
 
      - आप कहते हो शादी करके पवित्र रहो। 
 
      - यह फिर कौन सी मुसीबत है! 
 
      - अरे तुम कहते हो हमको गृहस्थ व्यवहार में रह राजा जनक के मुआफिक जीवनमुक्ति चाहिए, तो फिर प्रवृत्ति में पवित्र रहना पड़े। कई फिर कह देते बात तो ठीक है।
 
      -  बाकी मंजिल ऊंची है।
 
      -  ऐसा कह डर जाते हैं।
 
      -  ऊंच तो जाना ही है ना।
 
      -  देलवाड़ा मन्दिर में भी है कि नीचे तपस्या कर रहे हैं, ऊपर में उनकी प्रालब्ध स्वर्ग है। 
 
      - तो ऊंच मंजिल तो है ही। 
 
      - कहते हैं ना कि चढ़े तो चाखे प्रेम रस... यानी बैकुण्ठ रस, गिरे तो चकनाचूर, इसलिए बड़ी सावधानी से चलना पड़ता है।
 
      -  डरना नहीं है।       
 
      - कहते हैं यह गीता की अथॉरिटी है।
 
      -  गीतायें तो आजकल बहुत हैं।
 
      -  टैगोर गीता, गाँधी गीता आदि... आजकल जो घर से रूठते वह गीता का अर्थ कर देते और अपना नाम डाल देते हैं। 
 
      - एक गीता में लिखा है कि बैगन खाने से यह होगा, भिण्डी खाने से यह होगा..... यह बाबा भी रोज़ गीता का पाठ करते थे। 
 
      - जहाँ भी जाते थे, राजाओं के पास भी जाते थे तो गीता का पाठ जरूर करते थे। 
 
      - मनुष्य समझते हैं भगत ठगत नहीं होते।
 
      -  परन्तु जितना भगत ठगते हैं, उतना कोई नहीं। 
 
      - तो बाबा कहते हैं - बच्चे पढ़ाई को नहीं छोड़ना। 
 
      - नहीं तो माया अजगर खा जायेगी फिर पछताना पड़ेगा।
 
      -  जब धर्मराजपुरी में एक-एक जन्म का साक्षात्कार करते सजायें खाते हैं तो बात मत पूछो। 
 
      - मुक्ति और जीवनमुक्ति को तो कोई मनुष्य जानते ही नहीं क्योंकि वह समझते हैं कि सुख काग विष्टा समान है।
 
      -  तो समझते हैं कि स्वर्ग के सुख भी ऐसे होंगे क्योंकि सुना है कि त्रेतायुग में भी सीता चुराई गई तो वह भी दु:ख है। 
 
      - अब तुम जानते हो कि स्वर्ग में ऐसी बातें होती नहीं। 
 
      - यह भारत की ही कहानी है। 
 
      - बाकी और धर्म वाले इस ड्रामा के अन्दर बाईप्लाट हैं। 
 
      - भारतवासियों के ही 84 जन्म हैं और धर्म वाले तो 84 जन्म नहीं लेते।
 
      -  कहते हैं आत्मा परमात्मा अलग रहे बहुकाल.. अब इस अर्थ को नहीं जानते हैं।
 
      -  गाते ही रहते हैं, जानते तो कुछ भी नहीं।
 
      -  यह ब्रह्मा भी बेगर था ना, इसने भी बहुत गुरू किये हुए थे।
 
      -  परन्तु है सब ठगी।
 
      -  तब तो बाप कहते हैं ना सर्व धर्मानि परितज्य... वह इसका अर्थ थोड़ेही जानते हैं।
 
      -  भल गीता पढ़ते हैं परन्तु जैसे जंगली तोते।
 
      -  तुम कण्ठी वाले बन विजय माला में पिरो जायेंगे। 
 
      - दुनिया वाले इन बातों को क्या जानें।
 
      -  उन्हों को अगर तुम लिटरेचर दो तो फेंक देते हैं।
 
      -  वे लोग क्या जाने ज्ञान रत्नों को। 
 
      - तुम बच्चे जो कल्प पहले देवता धर्म के थे, अब वही ब्राह्मण बने हो। 
 
      - जो अब देवता बनेंगे वही कल्प-कल्प नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार देवता बनेंगे और तो देवता बन न सकें। 
 
      - यह सैपलिंग लग रहा है ना।
 
      -  वह गवर्मेन्ट तो कांटों का सैपलिंग लगाती है। 
 
      - यहाँ पाण्डव गवमेन्ट देवता धर्म की सैपलिंग लगाते हैं।
 
      -  कितना फ़र्क है। 
 
      - जब देवता धर्म का सैपलिंग पूरा होगा तब ही इस पुरानी दुनिया का विनाश होगा।
 
      -  तो विनाश के आसार तुम देख ही रहे हो कि कैसे यवनों और कौरवों की लड़ाई लगनी है, ड्रामानुसार, नथिंगन्यु।
 
      -  कोई नई बात नहीं है।
 
      -  नहीं तो क्यों कहा कि रक्त की नदियां बहेंगी।
 
      -  कोई हिन्दू थोड़ेही आपस में लड़ेंगे।
 
      -  यह वार ही है यवनों और कौरवों की और हम भी इस युद्ध पर हैं। 
 
      - वी आर एट वार।
 
      -  जैसे वहाँ भी कमान्डर देखते रहते हैं ना कि लड़ाई ठीक तरह चल रही है वा नहीं।
 
      -  कोई ट्रेटर तो नहीं है!
 
      -  ट्रेटर के लिए बड़ी भारी सजा होती है। तो यहाँ भी ऐसे हैं। 
 
      - अगर कोई बाप का बनकर ट्रेटर बन जाते हैं तो धर्मराज-पुरी में बहुत भारी सजा मिलती है। 
 
      - बच्चों ने साक्षात्कार भी किया है। 
 
      - जब काशी कलवट खाते हैं, बलि चढ़ते हैं तो उस समय अनेक जन्म के पापों की सजा भोगते हैं।
 
      -  फिर दूसरे जन्म में नयेसिर से कर्म शुरू करते हैं।
 
      -  मुक्ति में तो कोई जाते नहीं।
 
      -  कहते हैं फलाना पार निर्वाण गया।
 
      -  परन्तु जाता तो कोई भी नहीं। 
 
      - बाप को बुलाते हैं - पतित-पावन आओ। 
 
      - सर्व का सद्गति दाता एक ही है। 
 
      - यह तो समझ की बात है ना।
 
      -  बाप आते हैं तो कईयों को गति सद्गति दे जाते हैं। 
 
      - परमात्मा ने अब आर्डीनेन्स निकाला है कि पवित्र बनो। 
 
      - कहते हैं कि दुनिया कैसे चलेगी। 
 
      - अरे तुम कहते हो खाने के लिए नहीं है, प्रजा कम होनी चाहिए फिर कहते हो दुनिया कैसे चलेगी!
 
      -  तुम बच्चों को अच्छी रीति समझाना चाहिए।
 
        
      
      
     अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
      
       
  
     
  
   
      
  1) घर का काम करते भी समय निकाल रूहानी सेवा जरूर करनी है। 
  अपने को सर्विस बढ़ाने का जिम्मेवार समझना है। 
  डिससर्विस नहीं करनी है। 
 2) पढ़ाने वाला स्वयं सुप्रीम टीचर है इसलिए पढ़ाई का बहुत-बहुत कदर रखना है। 
  किसी भी हालत में पढाई मिस नहीं करनी है। 
   
       
  
       ( All Blessings of 2021-22)
       
       एकाग्रता के अभ्यास द्वारा मन-बुद्धि को अनुभवों की सीट पर सेट करने वाले निर्विघ्न भव 
       एकाग्रता की शक्ति सहज ही निर्विघ्न बना देती है। 
        इसके लिए मन और बुद्धि को किसी भी अनुभव की सीट पर सेट कर दो।  
       एकागता की शक्ति स्वत: ही “एक बाप दूसरा न कोई'' - यह अनुभूति कराती है।  
       इससे सहज ही एकरस स्थिति बन जाती है। 
        सर्व के प्रति कल्याण की वृत्ति रहती है, एकाग्रता के अभ्यास से भाई-भाई की दृष्टि रहती है।  
       उसे कभी भी कोई कमजोर संस्कार, कोई आत्मा वा प्रकृति, किसी भी प्रकार की रॉयल माया अपसेट नहीं कर सकती। 
       
        
      
       
       
  
      
      (All Slogans of 2021-22)
     
        
         - सेकण्ड में विस्तार को सार में समाने का अभ्यास ही अन्तिम सर्टीफिकेट दिलायेगा।
 
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