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   15-10-2022 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
 
   
  "मीठे बच्चे - सवेरे-सवेरे उठ याद में बैठने का अभ्यास डालो, भोजन पर भी एक दो को बाप की याद दिलाओ, याद करते-करते तुम पास विद ऑनर हो जायेंगे'' 
     
  
     
  प्रश्नः-
  
   किस एक कमी के कारण बच्चों की रिपोर्ट बाप के पास आती है?
  
    
  उत्तर:-
   
   कई बच्चे अभी तक प्रेम स्वरूप नहीं बने हैं।  
  मुख से दु:ख देने वाले बोल बोलते रहते हैं इसलिए बाप के पास रिपोर्ट आती है। 
   बच्चों को बहुत प्रेम से चलना है।  
  अगर स्वयं में ही कोई अवगुण रूपी भूत होगा तो दूसरों का कैसे निकलेगा, इसलिए देवताओं जैसा प्रेम स्वरूप बनना है, भूत निकाल देना है। 
  गीत:- आखिर वह दिन आया आज..... 
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      - ओम् शान्ति। 
 
      - बच्चे गरीब-निवाज़ बाप को जान चुके हैं और बाप की याद में बैठे रहते हैं। 
 
      - भल ऑखों से किसको भी देखें, कर्मेन्द्रियों से कर्म भी करें परन्तु गाया जाता है हाथों से कर्म करते रहो, दिल माशूक तरफ लगाते रहो।
 
      -  ब्राह्मण कुल भूषण जानते हैं और उनसे ही बाप बात करते हैं कि आधाकल्प तुमने बाप को याद किया।
 
      -  ड्रामा अनुसार अब तुमको बाप की स्मृति आई है कि सृष्टि चक्र कैसे फिरता है। 
 
      - सारी दुनिया विस्मृति में है।
 
      -  बाप की रचना को और बाप के पतित से पावन बनाने वा सर्व की सद्गति करने के कर्तव्य को कोई भी नहीं जानते।
 
      -  तुम रचयिता और रचना के आदि-मध्य-अन्त को जानते हो।
 
      -  तुमको स्मृति आई कि सृष्टि चक्र कैसे फिरता है, हम 84 का चक्र कैसे लगाते हैं, जिन्होंने सतयुग से लेकर कलियुग के अन्त तक पार्ट बजाया है, वही अभी भी बजायेंगे।
 
      -  सतयुग से लेकर कलियुग तक जन्म लेते नीचे उतरते आये हैं।
 
      -  अब कलियुग अन्त में तुम्हारी चढ़ती कला है। 
 
      - कहते हैं चढ़ती कला तेरे भाने सर्व का भला।
 
      -  तो तुमको सारी स्मृति आई है, इसको कहा जाता है स्मृतिर्लब्धा, नष्टोमोहा।
 
      -  किस द्वारा स्मृति आई है?
 
      -  बाप द्वारा।
 
      -  अपने आप स्मृति नहीं आई। 
 
      - तुम जानते हो हम आत्मा परमपिता परमात्मा की सन्तान हैं। 
 
      - यह शरीर तो लौकिक बाप ने दिया। 
 
      - अब पारलौकिक बाप कहते हैं यह पुराने शरीर का भान छोड़ो, जैसे सर्प पुरानी खाल छोड़ता है और नई लेता है।
 
      -  यह बात सतयुग से लगती है।
 
      -  तो तुम भी सतयुग से लेकर खाल छोड़ना शुरू करेंगे।
 
      -  अब तुम्हारा अन्तिम जन्म है। 
 
      - बाप कहते हैं - बाकी थोड़ा समय है।
 
      -  तुमको धीरज मिला है, तुम खुशी में हो कि हम फिर से बाप द्वारा सुख का वर्सा पा रहे हैं। 
 
      - सुख का वर्सा तो बाप द्वारा मिलेगा ना। 
 
      - यह बात कोई मनुष्यों की बुद्धि में नहीं आती।
 
      -  वह लक्ष्मी-नारायण के मन्दिर में जायेंगे तो उनकी बुद्धि में यह नहीं आयेगा कि यह कौन हैं!
 
      -  यह तो भक्ति मार्ग में हाथ जोड़कर कहते रहते हैं तुम मात-पिता..... शिवबाबा तो सबसे बड़ा ठहरा।
 
      -  शिवबाबा बागवान भी है क्योंकि नये दैवी बगीचे का कलम लगाते हैं।
 
      -  तो खुद माली भी है और हाथ पकड़ कर साथ ले जाते हैं।
 
      -  तो बाबा माली, बागवान और खिवैया कैसे है - यह सब तुम बच्चे ही जानते हो।
 
      -  यह सब अनेक नाम हैं, उनको लिबरेटर भी कहते हैं।
 
      -  याद भी उनको करना है।
 
      -  बाबा कहते हैं यहाँ आते हो तो शिवबाबा को याद करके आओ। 
 
      - हमने तो शिवबाबा को अपना बनाया है।
 
      -  ब्रह्मा ने भी उनको अपना बनाया है।
 
      -  तो हम उनको ही क्यों न याद करें। 
 
      - चित्र में भी दिखाया है - सभी शिव को मानते हैं।
 
      -  बाबा आत्माओं से बात करते हैं।
 
      -  आत्मा न कह जीवात्मा कहेंगे क्योंकि जब आत्मा अकेली है तो बोल नहीं सकती। 
 
      - शरीर बिगर आत्मा, आत्मा से बात नहीं करती। 
 
      - परमधाम में क्या परमात्मा आत्मा से बात करेंगे? 
 
      - भल कह देते क्राइस्ट को परमात्मा ने भेजा परन्तु वहाँ परमात्मा बोलता नहीं है, वहाँ इशारा भी नहीं होता। 
 
      - ड्रामा अनुसार आत्मा आपेही पार्ट बजाने नीचे आ जाती है।
 
      -  आत्मा में पार्ट भरा हुआ है।
 
      -  तो आत्मा नीचे आकर शरीर धारण कर पार्ट बजाती है। 
 
      - शरीर का नाम तो सबका अलग है।
 
      -  आत्मा का नाम तो आत्मा ही है।
 
      -  हम आत्मा एक शरीर छोड़ दूसरा ले पार्ट बजाते हैं। 
 
      - अब हमको स्मृति आई है और कोई की याद नहीं होनी चाहिए क्योंकि पुरानी दुनिया में पुराना पार्ट, पुराना शरीर छोड़ नई दुनिया में जाना है।
 
      -  वहाँ नया शरीर हमको मिलना है। 
 
      - तो इससे मतलब निकलता है कि अभी 5 विकारों को छोड़ना है, तो कितनी मुश्किलात होती है।
 
      -  देखो, बच्चे लिखते हैं - काम, क्रोध का तूफान आता है।
 
      -  तो बाबा कहते हैं बच्चे दे दान तो छूटे ग्रहण। 
 
      - इस समय आत्मा पर ग्रहण लगा हुआ है।
 
      -  पहले तुम 16 कला सम्पूर्ण थे, अब नो कला है।
 
      -  जैसे चन्द्रमा की भी पूर्णमासी के बाद धीरे-धीरे कला कम होती जाती है। 
 
      - अन्त में जरा सी लकीर रह जाती है।
 
      -  तुम्हारी भी अभी वही अवस्था है। बाबा कहते हैं दे दान तो छूटे ग्रहण।
 
      -  अगर विकारों का दान देकर फिर वापिस लिया तो ऊंच पद पा नहीं सकेंगे।
 
      -  यहाँ विकारों की ही बात है।
 
      -  पैसे की बात नहीं।
 
      -  हरिश्चन्द्र का मिसाल......धन दान में देकर वापिस नहीं लेना चाहिए।
 
      -  वास्तव में है विकारों की बात।
 
      -  विकार दान में देकर वापिस नहीं लेने चाहिए।
 
      -  दिल अन्दर देखते रहो कि हमारी दिल बाबा से लगी हुई है, जिससे हमारा जन्म-जन्मान्तर का ग्रहण छूटा है।
 
      -  समय तो लगता है, एकदम तो नहीं छूटता।
 
      -  जो कर्मभोग रहा हुआ है उसकी निशानी है बीमारी।
 
      -  तूफान आते हैं, इसका कारण पूरा योग नहीं है। 
 
      - बाप कहते हैं और संग तोड़ मुझ एक संग जोड़ो।
 
      -  और सतसंगों में माशुक को जानते नहीं। 
 
      - यह भी नहीं जानते कि आत्मा में 84 जन्मों का अविनाशी पार्ट नूंधा हुआ है। 
 
      - पहले हमारी बुद्धि में भी नहीं था तो औरों की बुद्धि में कैसे होगा!
 
      -  जो हम देवता घराने के थे, वह भी नहीं जानते थे।
 
      -  अब तुमको स्मृति आई है कि हम ब्राह्मण हैं फिर सतयुग में प्रालब्ध शुरू हो जायेगी फिर जो कर्म हर एक ने सतयुग में किये थे वही रिपीट करेंगे। 
 
      - संस्कार इमर्ज होते जायेंगे। 
 
      - यह जब बाबा की महिमा करते हैं - ज्ञान का सागर, प्रेम का सागर.... तो हम भी प्रेम सीख रहे हैं। 
 
      - हमारे मुख से ऐसे शब्द नहीं निकलने चाहिए जो किसको दु:ख मिले। 
 
      - अगर किसी को दु:ख दिया तो समझना चाहिए - हमारे अन्दर भूत है फिर लक्ष्मी को वर नहीं सकेंगे।
 
      -  बाप के बने हैं तो लक्ष्मी को वरने लायक बनना चाहिए।
 
      -  अगर कोई भूत रह गया तो त्रेता में चले जायेंगे। 
 
      - बच्चों में क्रोध नहीं होना चाहिए।
 
      -  बड़े प्रेम से चलना चाहिए। 
 
      - देखो, बाबा के कितने बच्चे हैं तो भी बाबा क्रोध थोड़ेही करते हैं।
 
      -  तो तुमको भी बड़ा प्रेम स्वरूप बनना है। 
 
      - अभी कई बच्चे प्रेम स्वरूप नहीं बने हैं।
 
      -  कभी-कभी रिपोर्ट आती है तो वह भी समझ जाते हैं कि इनमें भूत है, जिसमें खुद भूत है वह औरों का क्या निकालेंगे।
 
      -  बड़ा प्रेम स्वरूप बनना है और यहाँ ही बनना है। 
 
      - देवता प्रेम स्वरूप हैं ना। 
 
      - देखो, लक्ष्मी-नारायण का चित्र कितना खींचता है तो हमको भी ऐसा बनना है।
 
      -  तुमको पति क्रोध करता है तो भी प्रेम से बात करनी है, यह नहीं उनमें भूत हैं तो मुझ में भी आ जाए।
 
      -  नहीं, मेरे में जो अवगुण हैं कैसे भी करके अवगुणों को निकालना है। 
 
      - बहुत-बहुत मीठा बनना है।
 
      -  किसी ने कहा लौकिक बाप गुस्सा करता है, तो मैंने कहा कि जब वह क्रोध करता है तो तुम अच्छे-अच्छे फूल चढ़ाओ।
 
      -  तो वह वन्डर खाये, फिर वह ठण्डा हो जायेगा।
 
      -  बड़ा युक्ति से समझाना है क्योंकि रावणराज्य है ना।
 
      -  हम हैं राम की सम्प्रदाय। 
 
      - खुद न बनें तो दूसरों को क्या बनायेंगे इसलिए स्थापना में देरी पड़ती है।
 
      -  एक तो प्रेम से चलना है, दूसरा स्मृति में रहना है, स्वदर्शन चक्रधारी बनना है।
 
      -  धन्धा तो करना ही है इसलिए सुबह का समय बहुत अच्छा है।
 
      -  कहते हैं ना सवेरे सोना... सवेरे उठना... इसलिए सवेरे-सवेरे उठ यहाँ आकर बैठो तो 5 मिनट भी याद ठहरेगी। 
 
      - फिर धीरे-धीरे आदत पड़ने से याद पक्की हो जायेगी। 
 
      - अच्छा खाना खाते हो तो देखो कि कितना समय बाबा की याद में खाया!
 
      -  अगर सारा समय याद किया तो वह भी बड़ी बहादुरी है। 
 
      - भोजन पर एक दो को इशारा देना है कि बाप को याद करो।
 
      - एक-एक गिट्टी पर याद दिलाओ।
 
      -  हमारा है ही सहजयोग। 
 
      - अभी बुद्धि में ज्ञान आया है परमपिता परमात्मा को सर्व शक्तिमान् कहते हैं तो उनमें भला क्या शक्ति है।
 
      -  यह नहीं कि बाम्ब्स बनाने की शक्ति है।
 
      -  नहीं, उनको याद करने से विकर्म विनाश हो जाते हैं। 
 
      - यह शक्ति है ना।
 
      -  देखो है कितना भोला और शक्ति कितनी है।
 
      -  यथार्थ रीति याद करने में मेहनत है ना। 
 
      - तो मेहनत करनी चाहिए।
 
      -  सुबह का समय अच्छा होता है। 
 
      - भक्ति में भी सवेरे-सवेरे उठते हैं, ज्ञान में भी सवेरे का समय बहुत अच्छा है।
 
      -  बाप कहते हैं मैं कल्प में एक ही बार आता हूँ, तुमको साथ ले जाने के लिए तो बिल्कुल खुशी खुशी से जाना है।
 
      -  दु:खधाम से निकलना है।
 
      -  ऐसी स्मृति होगी तो डरेंगे नहीं। 
 
      - कितनी भी परीक्षायें आये तो भी स्मृति पक्की रहनी चाहिए।
 
      -  ऐसी अवस्था जमानी है।
 
      -  अब तुम बच्चों को हम सो, सो हम का अर्थ भी समझाया है।
 
      -  हम सो परमात्मा नहीं, लेकिन परमात्मा का बच्चा हूँ।
 
      -  यह हो गया हम सो के चक्र का दर्शन।
 
      -  इस याद से ही खाद निकलेगी।
 
      -  खाद निकालने का समय ही है अमृतवेला। 
 
      - तो पास विद आनर बनने के लिए कृष्णपुरी का मालिक बनाने वाले बाप को याद करना है। 
 
        
      
      
     अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
      
       
  
     
  
   
      
  1) धन्धा आदि करते भी स्वदर्शन चक्रधारी बनकर रहना है।  
 एक दो को बाप की याद दिलानी है। 
  कितनी भी परीक्षायें आ जायें तो भी स्मृति में जरूर रहना है। 
 2) विकारों का दान देकर फिर कभी वापस नहीं लेना। 
  किसी को भी दु:ख नहीं देना है। 
  क्रोध नहीं करना है। 
  अन्दर जो भूत हैं उन्हें निकाल देना है। 
   
       
  
       ( All Blessings of 2021-22)
       
       मालिकपन की स्मृति द्वारा परवश स्थिति को समाप्त करने वाले सदा समर्थ भव 
       जो सदा मालिकपन की स्मृति में स्थित रहते हैं - उनके संकल्प आर्डर प्रमाण चलते हैं। मन, मालिक को परवश नहीं बना सकता। 
        ब्राह्मण आत्मा कभी अपने कमजोर स्वभाव-संस्कार के वश नहीं हो सकती। 
        जब स्वभाव शब्द सामने आये तो स्वभाव अर्थात् स्व प्रति व सर्व के प्रति आत्मिक भाव, इस श्रेष्ठ अर्थ में टिक जाओ और जब संस्कार शब्द आये तो अपने अनादि और आदि संस्कारों को स्मृति में लाओ तो समर्थ बन जायेंगे। 
        परवश स्थिति समाप्त हो जायेगी। 
       
        
      
       
       
  
      
      (All Slogans of 2021-22)
     
        
         - वरदानों की शक्ति जमा कर लो तो परिस्थिति रूपी आग भी पानी बन जायेगी।
 
         
         - मातेश्वरी जी के अनमोल महावाक्य
 
         - 1) बदनसीबी और खुशनसीबी, अब यह दो शब्दों का मदार किस पर चलता है? यह तो हम जानते हैं कि खुशनसीब बनाने वाला परमात्मा और बदनसीब बनाने वाला खुद ही मनुष्य है। जब मनुष्य सर्वदा सुखी है तो उन्हों की अच्छी किस्मत कहते हैं और जब मनुष्य अपने को दु:खी समझते हैं तो वो अपने को बदनसीब समझते हैं। हम ऐसे नहीं कहेंगे कि बदनसीबी वा खुशनसीबी कोई परमात्मा द्वारा मिलती है, नहीं। यह समझना बड़ी मूर्खता है। परमात्मा तो हमें खुशनसीब बनाता है परन्तु तकदीर को बिगाड़ना वा बनाना यह सब कर्मों के ऊपर ही मदार है। यह सब मनुष्यों के संस्कारों के ऊपर ही है। फिर जैसे पाप और पुण्य का संस्कार भरता है वैसे तकदीर बनती है परन्तु मनुष्य इस राज़ न जानने के कारण परमात्मा के ऊपर दोष रखते हैं। अब देखो मनुष्य अपने को सुखी रखने के लिये कितनी माया के तरीके निकालते हैं फिर उस ही माया से कोई अपने को सुखी समझते हैं और कोई फिर उस ही माया का सन्यास कर माया को छोड़ने से अपने को सुखी समझते हैं, मतलब तो कई प्रकार के प्रयत्न करते हैं परन्तु इतने तरीके करते भी रिजल्ट दु:ख के तरफ जा रही है। जब सृष्टि पर भारी दु:ख होता है तब उसी समय स्वयं परमात्मा आए गुप्त रूप में अपने ईश्वरीय योग पॉवर से दैवी सृष्टि की स्थापना कराए सभी मनुष्य आत्माओं को खुशकिस्मत बनाते हैं।
 
         - 2) जिस समय ओम् शान्ति कहते हैं तो उसका यथार्थ अर्थ है मैं आत्मा सालिग्राम उस ज्योति स्वरूप परमात्मा की संतान हूँ, हम भी वही पिता ज्योतिर्बिन्दू परमात्मा के मुआफिक आकार वाली हैं। बाकी हम सालिग्राम बच्चे हैं तो इन्हों को अपने ज्योति स्वरूप परमात्मा के साथ योग रखना और लाइट माइट का वर्सा लेना है। उस निराकार परमात्मा को श्वांसों श्वांस याद करना इसको ही अजपाजाप कहा जाता है। अजपाजाप माना कोई भी मंत्र जपने के सिवाए नेचुरल उस परमात्मा की याद में रहना, इसको ही पूर्ण योग कहते हैं, योग का मतलब है एक ही योगेश्वर परमात्मा की याद में रहना। तो जो आत्मायें उस परमात्मा की याद में रहती हैं, उन्हों को योगी अथवा योगिनियां कहा जाता है। जब उस योग अर्थात् याद में निरंतर रहें तब ही विकर्मों और पापों का बोझ नष्ट होता है और आत्मायें पवित्र बन भविष्य जन्म में देवताई प्रालब्ध पाती हैं। अब यह चाहिए नॉलेज तब ही योग पूरा लग सकता है तो अपने को आत्मा समझ परमात्मा की याद में रहना, यह है सच्चा ज्ञान। अच्छा। ओम् शान्ति।
 
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