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      17-11-2022 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
 
  मीठे बच्चे - तुम्हें जितना बाबा कहने से सुख फील होता है, उतना भक्तों को भगवान वा ईश्वर कहने से नहीं फील हो सकता।
   
     
  
     
प्रश्नः-
  
   लोभ के वश लौकिक बच्चों की भावना क्या होती जो तुम्हारी नहीं हो सकती? 
   
    
  उत्तर:- 
  लौकिक बच्चे जो लोभी होते वह सोचते हैं कि कब बाप मरे तो प्रापर्टी के हम मालिक बनें। तुम बच्चे बेहद के बाप के प्रति ऐसा कभी सोच ही नहीं सकते क्योंकि बाप तो है ही अशरीरी। यहाँ तुमको अविनाशी बाप से अविनाशी वर्सा मिलता है।
 
    
   
    
  गीत:- मुखड़ा देख ले प्राणी..... 
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      - 
      
       - ओम् शान्ति। ओम् शान्ति।
 
       -  जब दो बारी कहें तो एक बाबा कहते हैं, एक दादा कहते हैं।
 
       -  एक को आत्मा, दूसरे को परम आत्मा कहा जाता है अर्थात् परमधाम में निवास करने वाले हैं इसलिए उनको परम आत्मा (परमात्मा) कहा जाता है।
 
       -  अब आत्मा और परमात्मा का सम्बन्ध क्या है?
 
       -  एक बाप और अनेक बच्चे हैं। 
 
       - मनुष्य जब पुकारते हैं तो अंग्रेजी में भी कहते हैं ओ गॉड फादर। 
 
       - तो पिता हुआ ना। 
 
       - सिर्फ परमात्मा वा प्रभु, ईश्वर आदि कहने से इतना मज़ा नहीं आता।
 
       -  बाप कहने से सुख मिलता है। 
 
       - पारलौकिक बाप है ही सुख देने वाला तब तो भक्ति मार्ग में इतना याद करते हैं।
 
       -  गॉड फादर अर्थात् वह हमारा पिता है। 
 
       - यह भी कहते हैं हम सब ब्रदर्स हैं। 
 
       - ब्रदरहुड कहते हैं। 
 
       - यह भारतवासी जब कहते हैं हम सब भाई-भाई हैं तो आत्मा की तरफ ध्यान नहीं जाता।
 
       -  देह-अभिमान में चले जाते हैं।
 
       -  यह समझते नहीं कि हम आत्मायें आपस में भाई-भाई हैं।
 
       -  हम सबका बाप एक है। 
 
       - अगर परमात्मा सर्वव्यापी होता तो भाई-भाई नहीं कहते। 
 
       - आत्मा ही समझकर भाई-भाई कहते हैं।
 
       -  अभी तुम बच्चे बाप के सम्मुख बैठे हो और बाप तुमको पढ़ाते हैं। 
 
       - अब आत्मा कहती है हमको बाप मिला है। 
 
       - बाप मिला गोया सब कुछ मिला।
 
       -  बाप द्वारा वर्सा मिलता है। 
 
       - बच्चा पैदा हुआ और समझते हैं वारिस आया।
 
       -  बाबा कहने से ही बच्चे का वारिसपना सिद्ध हो जाता है।
 
       -  अक्सर करके बच्चियां माँ, माँ कहती हैं। 
 
       - माँ तरफ जास्ती लव रहता है। 
 
       - बच्चा होगा तो बा,बा कहता रहेगा।
 
       -  बच्चे का बाप की तरफ लव जाता है, माँ से वर्सा नहीं मिल सकता।
 
       -  बाप से वर्सा मिलता है। 
 
       - अब यहाँ तो तुम सब आत्मायें भाई-भाई हो।
 
       -  तुम हर एक बाप से वर्सा ले रहे हो। 
 
       - बाप की श्रीमत है हर एक अपने को बाप का बच्चा समझ और सबको बाप का परिचय देते रहें और सृष्टि चक्र का राज़ भी समझायें। 
 
       - बाप से ही स्वर्ग का वर्सा मिलता है। 
 
       - बेहद का बाप कहते हैं तुम स्वर्गवासी थे फिर तुम नर्कवासी कैसे बनें, 84 जन्मों का चक्र कैसे लगाया - यह है डिटेल की बातें। 
 
       - बाकी बाप ने पहचान तो दी है और बाप से जरूर सतयुग का वर्सा मिलेगा। 
 
       - अच्छा किसको मिला हुआ है?
 
       -  यह लक्ष्मी-नारायण के चित्र खड़े हैं।
 
       -  इन्हों को बाप का वर्सा मिला था फिर कहाँ गया? 
 
       - यह है चक्र की बात।
 
       -  तुमको अभी सतयुग का वर्सा मिलता है फिर पुनर्जन्म लेते-लेते 84 जन्म तो भोगने ही हैं।
 
       -  अब तुमको नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार 84 का चक्र बुद्धि में है और यह भी निश्चय है कि हमारा अन्तिम जन्म है। 
 
       - 84 जन्मों का चक्र लगाकर पूरा किया है। 
 
       - अब तुम जायेंगे तो तुम्हारे पीछे सब चले जायेंगे। 
 
       - तुम बच्चे तो बाप से अपना वर्सा पा चुके हो, राजयोग सीख चुके हो।
 
       -  तो तुम जानते हो हम फिर नई दुनिया में राज्य करने आयेंगे। 
   
       - फिर यह सब इतने धर्म वहाँ होंगे नहीं, सब वापिस चले जायेंगे।
 
       -  फिर पहले-पहले हमको यानी डिटीज्म को आना है।
 
       -  हम शूद्र कुल के थे, अब ब्राह्मण कुल के बने हैं।
 
       -  फिर सूर्यवंशी, चन्द्रवंशी कुल के बनेंगे।
 
       -  हम ब्राह्मण कुल, सूर्यवंशी कुल और चन्द्रवंशी कुल के तीनों वर्से एक ही बाप से ले रहे हैं।
 
       -  सतयुग त्रेता में कोई धर्म स्थापन करने आता ही नहीं है।
 
       -  भारत का एक ही धर्म रहता है। 
 
       - पीछे बाहर वाले इस्लामी, बौद्धी आदि आते हैं।
 
       -  भारत बहुत प्राचीन देश है। 
 
       - पहले देवी-देवता ही थे, अभी और धर्मों में कनवर्ट हो गये हैं।
 
       -  कितनी भिन्न-भिन्न भाषायें हैं।
 
       -  जैसे यूरोपियन हैं तो अमेरिका की भाषा अलग, फ्रान्स की अलग।
 
       -  हैं तो सब क्रिश्चियन लोग।
 
       -  वैसे चीन की देखो। 
 
       - एक ही बौद्ध धर्म के हैं, परन्तु चीन की भाषा और, जापान की भाषा और।
 
       -  हैं तो सब बौद्ध परन्तु वृद्धि हो जाने से अलग-अलग हो जाते हैं।
 
       -  आपस में दुश्मन भी बन जाते हैं, भारत का दुश्मन कोई नहीं है।
 
       -  यह तो दूसरे धर्म वाले आकर लड़ते हैं।
 
       -  आपस में फूट डाल भारत को भी लड़ा देते हैं, नहीं तो भारतवासियों की आपस में लड़ाई ऐसे कभी हुई नहीं है। 
 
       - दूसरों ने लड़ाया, लोभ के कारण। 
 
       - यह भी खेल है। 
 
       - भारतवासी यह भी भूल गये हैं कि हम ही विश्व के मालिक थे।
 
       -  हमको बाप ने राज्य दिया था।
 
       -  सतयुग में यह नॉलेज रहती नहीं कि यह राज्य हमने कैसे पाया। 
 
       - अभी तुम जानते हो हम यह राज्य कैसे पा रहे हैं।
 
       -  यह बाप बैठ समझाते हैं। 
 
       - है भी बहुत सहज।
 
       -  परन्तु मनुष्यों की बुद्धि को ऐसा ताला लगा हुआ है जो यह नहीं जानते कि इन लक्ष्मी-नारायण को राज्य किसने और कब दिया?
 
       -  इन्हों के बच्चे कितने हुए, कुछ नहीं जानते।
 
       -  सतयुग में लक्ष्मी-नारायण का राज्य था। 
 
       - सतयुग की आयु कितनी है?
 
       -  कह देते लाखों वर्ष फिर लाखों वर्ष में गद्दियां कितनी हुई?
 
       -  वृद्धि कितनी हुई होगी?
 
       -  कितने महाराजा महारानी होंगे।
 
       -  लाखों वर्ष में तो अनगिनत हो जाएं।
 
       -  लाखों वर्ष सतयुग के, फिर त्रेता के लाखों वर्ष, कलियुग के भी अभी 40 हजार वर्ष और कह देते हैं।
 
       -  इन बातों में किसकी बुद्धि नहीं चलती।
 
       -  इतनी लम्बी आयु दे दी है।
 
       -  क्रियेटर, डायरेक्टर, समय आदि सबका मालूम होना चाहिए। 
 
       - परन्तु किसको भी पता नहीं है। 
 
       - कहते हैं क्राइस्ट से 3 हजार वर्ष पहले भारत स्वर्ग था।
 
       -  गॉड गॉडेज का राज्य था। 
 
       - कितना वर्ष चला, कैसे चला?
 
       -  यह कुछ भी जानते नहीं।
 
       -  अगर राधे-कृष्ण सतयुग के प्रिन्स प्रिन्सेज हैं तो उन्होंने भी कोई द्वारा पद पाया होगा?
 
       -  अगर श्रीकृष्ण ने गीता सुनाई तो कब? 
 
       - यह सब बातें बाप ही समझाते हैं।
 
       -  स्कूल में पहले अल्फ बे पढ़ाया जाता है।
 
       -  फिर धीरे-धीरे बड़ा इम्तहान पास करते हैं।
 
       -  तो अल्फ बे की पढ़ाई और पिछाड़ी की पढ़ाई में कितना फ़र्क होगा।
 
       -  यहाँ भी ऐसे है।
 
       -  जितना पहले समझाते थे, उससे सहज अभी समझाते हैं, उससे जास्ती आगे समझायेंगे।
 
       -  कोई नया आता है तो पहले उनसे फार्म भराया जाता है, फिर समझाते हैं।
 
       -  परमपिता परमात्मा के साथ आपका क्या सम्बन्ध है? 
 
       - जरूर सबका बाप हुआ ना। 
 
       - इन बातों को समझने वाले ही समझते हैं। 
 
       - जब तक हड्डी निश्चय हो कि बेहद के बाप से वर्सा लेना है। 
 
       - बाप स्वर्ग रचते हैं तो जरूर स्वर्ग का वर्सा देंगे। 
 
       - यह उन्हों की बुद्धि में बैठेगा - जिन्होंने कल्प पहले निश्चय किया होगा। 
 
       - तुम देखते हो कई बच्चे सवेरे उठ नहीं सकते।
 
       -  10-15 वर्ष मेहनत करते आये हैं तो भी समय पर उठ नहीं सकते। 
 
       - कम से कम 3-4 बजे उठो।
 
       - भक्त लोग भी सवेरे उठकर ध्यान करते हैं।
 
       -  जाप करते हैं हनुमान का, शिव का।
 
       -  परन्तु उनसे कोई फायदा नहीं।
 
       -  भल करके कोई के लक्षण अच्छे होते हैं परन्तु उनसे कोई को मुक्ति-जीवनमुक्ति नहीं मिल सकती है।
 
       -  उतरती कला होती है।
 
       -  लक्ष्मी-नारायण जो सतयुग में राज्य करते थे। 
 
       - वह भी दूसरे तीसरे जन्म में नीचे आते जाते हैं, उतरती कला होती जाती है। 
 
       - आधाकल्प पूरा होगा तो वाम मार्ग में चले जायेंगे। 
 
       - फिर भक्तिमार्ग शुरू होगा, कितने ढेर मन्दिर बनते हैं।
 
       -  अभी भी कितने मन्दिर हैं।
 
       -  कोई टूट भी गये हैं। 
 
       - वाम मार्ग में जाने के चित्र भी हैं। 
 
       - ड्रेस देवताओं की पड़ी है। 
 
       - वास्तव में ड्रेस उन्हों की अलग थी। 
 
       - पीछे बदलती आई है। 
 
       - कोई की पाग कैसी, कोई की कैसी, कोई का ताज कैसा, अलग-अलग ताज पहनने का भी अलग-अलग नमूना होता है। 
 
       - सूर्यवंशी राजायें जो हैं उनकी पहरवाइस अपनी-अपनी होती है।
 
       -  यह फलाने की पगड़ी है। 
 
       - बाबा ने साक्षात्कार भी किया है। 
 
       - द्वारिकाधीश की टेढ़ी पगड़ी थी। 
 
       - यह सब ड्रामा आदि से अन्त तक जो कुछ हो रहा है, वह फिर भी ऐसे ही होगा।
 
       -  फिर वाम मार्ग में जायेंगे, सबका मतभेद हो जायेगा।
 
       -  रसम-रिवाज अलग हो जायेगा। 
 
       - सूर्यवंशी अलग, चन्द्रवंशियों का अलग.... यह बना बनाया खेल है जो फिर रिपीट होना है।        
 
       - तुम जानते हो हम भी बेहद के बाप से फिर से गति सद्गति को पाते हैं।
 
       -  पुरानी दुनिया का विनाश होना है।
 
       -  बेहद का बाप राजयोग सिखला रहे हैं।
 
       -  यह दुनिया नहीं जानती कि राजयोग सिखाते हैं।
 
       -  तुम बच्चे अच्छी रीति जानते हो और तुम्हारा बाप से लव है।
 
       -  सबका एक जैसा तो हो नहीं सकता।
 
       -  अज्ञान में भी सबका एक जैसा लव नहीं होता।
 
       -  कोई लोभ वश कहते हैं बाप मरे तो प्रापर्टी मिले..यहाँ शिवबाबा का शरीर तो है नहीं। 
 
       - बाबा तो अविनाशी है।
 
       -  यह शरीर लोन पर लिया है।
 
       -  तुम जानते हो हमने पूरे 84 जन्म लिए हैं।
 
       -  बाबा तो पुनर्जन्म नहीं लेते, इस शरीर में प्रवेश कर आते हैं। 
 
       - नहीं तो क्या लक्ष्मी-नारायण के तन में आये? 
 
       - वह तो हैं ही पावन दुनिया के मालिक।
 
       -  यह तो है ही पतित दुनिया, पतित शरीर क्योंकि विष से पैदा होते हैं। 
 
       - बाबा कल्प पहले मुआफिक कहते हैं मैं साधारण तन में प्रवेश करता हूँ।
 
       -  मुझे जरूर अनुभवी रथ चाहिए। 
 
       - कोई अच्छे एक्टर होते हैं तो उनको अच्छा इनाम मिलता है। 
 
       - यह भी बाबा का रथ गाया हुआ है। 
 
       - ब्रह्मा द्वारा स्थापना, ब्रह्मा को बूढ़ा भी दिखाते हैं। 
 
       - प्रजापिता ब्रह्मा, विष्णु और शंकर का रूप ही अलग है। 
 
       - ब्रह्मा का रूप बिल्कुल ठीक है। 
 
       - बाप ने ही इनका नाम रखा है प्रजापिता ब्रह्मा, इसने पूरे 84 जन्म लिए हैं। 
 
       - तुम भी कहेंगे हम सबने पूरे 84 जन्म लिए हैं तब पहले-पहले बाप से मिले हैं । 
 
       - हमारी राजाई फिर से स्थापन हो रही है। 
 
       - समझाना भी पड़ता है हे परमपिता परमात्मा, हे भगवान। 
 
       - तो भगवान जरूर बाप को समझना चाहिए।
 
       -  परन्तु मनुष्यों की समझ में नहीं आता है कि सभी आत्माओं का बाप निराकार है।
 
       -  पिता है तब तो भक्ति मार्ग में सब याद करते हैं। 
 
       - आत्माओं को सुख मिला था तब दु:ख में याद करते हैं। 
 
       - तुम भी आधाकल्प बाप को याद करते आये हो।
 
       -  शुरू-शुरू में ही सोमनाथ का मन्दिर बनता है। 
 
       - तो जरूर बाप को ही याद करेंगे।
 
       -  जानते हैं यह बाप का मन्दिर है।
 
       -  बाप ने ही वर्सा दिया है। 
 
       - तो पहले-पहले मन्दिर भी बाप का बना है।
 
       -  तुम अभी बाप के वारिस बने हो। 
 
       - बाप विश्व का रचयिता है। 
 
       - उनसे ही वर्सा मिलता है।
 
       -  बाकी जो भी हैं उन्होंने क्या किया?
 
       -  हम उनकी पूजा क्यों करते हैं?
 
       -  84 जन्म वह लेते हैं। 
 
       - परन्तु भक्ति भी व्यभिचारी होनी ही है।
 
       -  आधाकल्प के लिए सामग्री चाहिए। 
 
       - सतयुग त्रेता में सामग्री की दरकार नहीं होती। 
 
       - यह सब बुद्धि में धारण करना है। 
 
       - वास्तव में कुछ भी लिखने की दरकार नहीं है। 
 
       - अगर सालवेंट बुद्धि हैं तो झट धारणा हो जाती है। 
 
       - बाकी किसको सुनाने लिए नोट्स लेते हैं।
 
       -  किताबें आदि रखने की जरूरत नहीं। 
 
       - हमारे किताब पिछाड़ी में कौन पढ़ेगा? 
 
       - औरों के शास्त्र तो पिछाड़ी में चले आते हैं।
 
       -  पढ़ने वाले हैं। 
 
       - तुमको तो पढ़ना ही नहीं है, प्रालब्ध मिल गई। 
 
       - आधाकल्प तो शास्त्र आदि की कोई बात नहीं। 
 
       - यह ज्ञान प्राय:लोप हो जाता है। 
 
       - शास्त्र सब खत्म हो जाते हैं। 
 
       - पहले सबको यह समझाओ कि तुमको दो बाप हैं।
 
       -  जिस्मानी बाप तो है, वह भी उस बाप को याद करते हैं।
 
       -  गाया जाता है - दु:ख में सिमरण सब करें... यह भारत की बात है। 
 
       - बाप भी भारत में आते हैं।
 
       -  शिव जयन्ती आती है। 
 
       - तुम कहेंगे हम अपने बाप का फलाना जन्म मना रहे हैं।
 
       -  भल पूछें ब्रह्माकुमार कुमारियां हैं तो जरूर बाप आया होगा।
 
       -  यह है शिव का ज्ञान यज्ञ।
 
       - तो ब्राह्मण जरूर चाहिए। 
 
       - ब्रह्मा कहाँ से आया?
 
       -  ब्रह्मा को एडाप्ट किया फिर बच्चे पैदा होते हैं तो भी इनके मुख कमल से रचते हैं।
 
       -  पहले सबको बाप का परिचय देना है।
 
       
       
      
      
       
     
     अच्छा!
     मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।       
   
  
   - धारणा के लिए मुख्य सार:-
 
      
   1)   सवेरे-सवेरे उठकर बाप को प्यार से याद करने की आदत पक्की डालनी है। कम से कम 3-4 बजे जरूर उठना है।
 
   
   2) बेहद बाप से सच्चा लव रखना है। श्रीमत पर चल पूरा वर्सा लेना है। 
   
   
       
  
       - ( All Blessings of 2021-22)
 
       
       कम्पैनियन के साथ द्वारा सदा मनोरंजन का अनुभव करने वाले कम्बाइन्ड रूपधारी भव 
       जब भी अकेलेपन का अनुभव हो तो उस समय बिन्दू रूप को याद नहीं करो। वह मुश्किल होगा, उससे बोर हो जायेंगे। उस समय अपने रमणीक अनुभवों की कहानी को स्मृति में लाओ, अपने स्वमान की, प्राप्तियों की लिस्ट सामने लाओ। सिर्फ दिमाग से याद नहीं करो लेकिन दिल से कम्पैनियन के साथ कम्बाइन्ड बन सर्व सम्बन्धों के स्नेह का रस अनुभव करो - यही मनमनाभव है और यह मनमनाभव होना ही मनोरंजन है। 
       
        
      
       
       
  
      
   - (All Slogans of 2021-22)
 
     
        
         - बाप की श्रीमत प्रमाण जी-हाज़िर करते रहो तो सर्वशक्तियों का अधिकार मिल जायेगा।
 
         
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