- ओम् शान्ति। अब तुम बच्चे जो बैठे हो उनको यह मालूम है कि बेहद का बाप फिर से सतोप्रधान बना रहे हैं, मूल युक्ति यही बता रहे हैं कि अपने को आत्मा भाई-भाई समझो।
        
          -  मुख्य शिक्षा यही देते हैं कि तुम्हारा आपस में बहुत-बहुत रूहानी प्रेम होना चाहिए।
            
              -  पहले तुम्हारा था, अब नहीं है।      
 
              -  मूलवतन में तो प्रेम की बात नहीं रहती।
 
               
           
           
       
      -  तो बेहद का बाप आकर शिक्षा देते हैं बच्चे, आजकल करते-करते समय बीतता जा रहा है।
  -  दिन, मास, वर्ष बीतते जा रहे हैं। 
 
  - बाप ने बताया है तुम यह लक्ष्मी-नारायण थे, किसने तुमको ऐसा बनाया?
  - बाप ने। 
 
  - यह भी बाप ने बताया है कि तुम नीचे कैसे उतरे हो? 
 
   
   
  - ऊपर से लेकर नीचे उतरते-उतरते समय बीतता जा रहा है। 
 
  - वह दिन गया, मास गया, वर्ष गया, समय गया।
 
   
       
      -  तुम जानते हो कि पहले-पहले हम सतोप्रधान थे। 
  - हमारा आपस में बहुत लॅव था। 
 
  - बाप ने तुम सब भाइयों को शिक्षा दी है, तुम भाई-भाई का आपस में बहुत प्यार होना चाहिए। 
 
   
       
      - मैं तुम्हारा बाप हूँ।
  -  कितना प्यार से मैं तुमको सम्भालता हूँ।
    
      -  तुमको तमोप्रधान से सतोप्रधान बना देता हूँ।
        
          -  तुम्हारी एम ऑब्जेक्ट है ही सतोप्रधान बनने की।          
 
          - समझते हो जितना-जितना हम सतोप्रधान बनते जायेंगे, उतना खुशी में भी आते जायेंगे।
 
          -  हम सतोप्रधान थे। 
 
           
         
       
   
   
       
      - हम भाई-भाई आपस में बहुत प्रेम से रहते थे।
  -  अब बाप द्वारा हमको पता पड़ा है, हम देवतायें आपस में बहुत प्रेम से चलते थे।
    
      -  इन देवताओं की और हेविन की बहुत महिमा है।
 
      -  तुम भी हेविन के रहवासी थे।
        
          -  फिर आजकल करते-करते नीचे आते गये।
 
          -  एक तारीख से लेकर आज आकर 5 हज़ार वर्ष से बाकी कुछ वर्ष रहे हैं।
 
          -  शुरू से लेकर तुम कैसे पार्ट बजाते आये हो, वह सब बुद्धि में है।
 
          -  अब देह-अभिमान होने कारण एक-दो में वह प्यार नहीं है। 
 
          - एक-दो की खामियां निकालते रहते हैं।
            
              -  फलाना ऐसा है..... जब देही-अभिमानी थे तो ऐसे किसकी खामियां नहीं निकालते थे। 
                
                  - आपस में बहुत प्यार था।
 
                  -  अब फिर वही अवस्था धारण करनी है।
 
                  -  यहाँ तो एक-दो को उस दृष्टि से देखते हैं तो आपस में लड़ते-झगड़ते हैं।
                    
                      -  फिर यह बन्द कैसे हो? 
 
                       
                     
                   
                 
               
             
           
         
       
   
   
       
      - यह भी बाप समझाते हैं कि बच्चे, तुम ही सतोप्रधान पूज्य देवी-देवता थे। 
  - फिर धीरे-धीरे नीचे गिरते तुम तमोप्रधान बने हो। 
 
  - तुम कितने मीठे थे।
  
    -  अब फिर ऐसा मीठा बनो।
 
    -  तुम सुखदाई थे, अब दु:खदाई बने हो।
 
    -  रावण राज्य में एक-दो को दु:ख देने काम कटारी चलाने लगे हो।
 
    -  जब सतोप्रधान थे तो काम कटारी नहीं चलाते थे।
 
    -  तुम्हारे यह 5 विकार कितने शत्रु हैं।
 
    -  यह है ही विकारी दुनिया। 
 
    - यह भी तुम जानते हो - राम राज्य किसको कहा जाता है और रावण राज्य किसको कहा जाता है।
 
    -  आजकल करते सतयुग, त्रेता, द्वापर पूरे हुए। 
      
        - अब कलियुग भी पूरा होने वाला है। 
 
        - तुम ही सतोप्रधान से तमोप्रधान बन पड़े हो।
 
        -  तुम्हारी रूहानी खुशी गायब हो गई। 
 
        - आयु भी तुम्हारी छोटी हो गई।
 
        -  अब मैं आया हूँ, जरूर तुमको सतोप्रधान बनाऊंगा।
 
        -  तुमने ही बुलाया कि पतित-पावन आओ।
 
        -  बाप समझाते हैं 5 हजार वर्ष के बाद जब संगमयुग आता है तब मैं आता हूँ। 
 
         
       
     
   
   
       
      - अब तुम अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो। 
  - जितना याद करेंगे उतनी खामियां निकलती जायेंगी। 
 
  - तुम जब सतोप्रधान थे तो तुम्हारे में कोई भी खामी नहीं थी। 
 
  - तुम अपने को देवी-देवता कहलाते थे। 
 
  - अब वह खामियां कैसे निकलें?
  
    -  आत्मा को ही अशान्ति होती है।
      
        -  अब अपनी जांच करनी है कि हम अशान्त क्यों बने?
 
        -  जब हम भाई-भाई थे तो हमारा बहुत प्रेम था। 
 
        - अब फिर वही बाप आया है। 
 
        - कहते हैं अपने को आत्मा भाई-भाई समझो।
 
        -  एक-दो से प्रेम रखो। 
 
         
       
    - देह-अभिमान में आने से एक-दो की खामियां निकालते हो।
 
     
   
   
       
      -  बाप कहते हैं तुम अपना पुरूषार्थ करो ऊंच पद पाने का।
  -  तुम जानते हो हमको बाप ने ऐसा वर्सा दिया था जो हमको भरपूर कर दिया।
 
  -  अब फिर बाप आया हुआ है तो क्यों न हम उनकी मत पर चलकर फिर से पूरा वर्सा लेवें।
 
  -  हम ही देवता थे फिर 84 जन्म लिए।    
 
  - तुम मीठे-मीठे बच्चे कितने अडोल थे।
    
      -  कोई मतभेद नहीं था।
 
      -  किसकी निंदा आदि नहीं करते थे। 
 
      - अभी कुछ न कुछ कमियां है, वह सब निकाल देनी हैं।
 
       
   
   
       
      -  हम सब भाई-भाई हैं।
  -  एक बाप को ही याद करना है।
 
  -  यही ओना लगा हुआ है कि हम सतोप्रधान बन जायें। 
 
  - फलाना ऐसा है, इसने ऐसा किया - इन सब बातों को भूल जाना है।
 
  -  बाप कहते हैं यह सब छोड़ो, अपने को आत्मा समझो।
 
  -  अब सतोप्रधान बनने के लिए पुरूषार्थ करो।
  
    -  देह-अभिमान में आने से ही अवगुण देखा जाता है।
 
    -  अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो। 
 
    - भाई-भाई देखो तो गुण ही गुण दिखाई पड़ेगा।
 
    -  सबको गुणवान बनाने की कोशिश करो। 
 
    - कोई उल्टा-सुल्टा कुछ भी करे।
 
    -  समझा जाता है यह तमो व रजोप्रधान है, तो जरूर उनकी चाल ऐसी होगी। 
 
    - सबसे जास्ती गुण हैं बाप में।
      
        -  तो बाप से ही गुण ग्रहण करो, और सब बातों को छोड़ दो।
 
        -  अवगुण छोड़, गुण धारण करो।
 
        -  बाप कितना गुणवान बनाते हैं।
 
        -  कहते हैं तुम बच्चों को भी मेरे समान गुणवान बनना है।
 
        -  बाप सुखदाई है।
 
        -  हमको भी सुखदाई बनना है।
 
        -  बस, यही फुरना रहे कि हमको सतोप्रधान बनना है। 
 
        - और कोई बात न सुनो, न ग्लानी करो।
 
        -  सबमें कोई न कोई खामी है।
          
            -  खामी भी ऐसी है जो कोई समझ न सके।
 
            -  दूसरे समझते हैं इनमें खामी है। 
 
            - वह अपने को बहुत अच्छा समझते हैं। 
 
            - परन्तु कहाँ न कहाँ उल्टा बोल निकल पड़ता है।
 
            -  सतोप्रधान अवस्था में यह बातें नहीं होती।
 
            -  यहाँ खामियां हैं, परन्तु न समझने कारण अपने को मिया मिट्ठू समझ बैठे हैं।
              
                -  बाप कहते हैं मिया मिट्ठू एक मैं ही हूँ, जो तुम सबको मिट्ठू (मीठा) बनाने आया हूँ। 
 
                 
               
            - सब अवगुण आदि छोड़ दो। 
 
            - अपनी नब्ज भी देखो, हम कितना मीठे-मीठे रूहानी बाप को प्यार से याद करते हैं।
 
            - कितना खुद समझता हूँ, और औरों को समझाता हूँ।
 
            -  देह-अभिमान में आ गये तो कोई फायदा नहीं।
 
            -  मूल बात ही यह समझानी है कि दुनिया तमोप्रधान है। 
 
             
           
         
       
     
   
   
       
      - जब सतोप्रधान थे तो देवताओं का राज्य था। 
  - अब 84 जन्म भोग तमोप्रधान बने हैं, अब फिर सतोप्रधान बनना है। 
    
      - तमोप्रधान भी भारतवासी ही बने हैं और सतोप्रधान भी वही बनेंगे। 
 
      - और कोई को सतोप्रधान कह नहीं सकते। 
 
     
   
  - सतयुग में कोई धर्म होता नहीं।
 
   
       
      -  बाप कहते हैं तुम अनेक बार तमोप्रधान से सतोप्रधान बने हो, अब फिर बनो।
  -  श्रीमत पर चलकर मुझे याद करो।
 
  -  यही ओना चाहिए।
 
  -  पाप सिर पर बहुत हैं, बाप ने अभी सुजाग किया है।
 
  -  देवताओं के आगे जाकर कहते हैं - हम विकारी हैं क्योंकि देवताओं में पवित्रता की कशिश है इसलिए उनके आगे जाकर कहते हैं और घर जाकर भूल जाते हैं।
 
  -  देवताओं के आगे जाते हैं तो अपने से घृणा आती है। 
 
  - घर में जाते तो कुछ घृणा नहीं। 
 
  - ख्याल भी नहीं करते कि इन्हों को ऐसा बनाने वाला कौन?
 
  -  अब बाप कहते हैं - देवता बनना है तो यह पढ़ाई जरूर पढ़ो।
 
  -  श्रीमत पर चलना पड़े।
 
  -  पहले-पहले बाप कहते हैं अपने को सतोप्रधान बनाना है इसलिए मामेकम् याद करो और कोई झरमुई-झगमुई नहीं करो। 
 
  - अपना ही ओना रखो कि हमको यह बनना है।
 
   
       
      -  बाप कहते हैं तुम ही आदि सनातन देवी-देवता धर्म वाले थे फिर कहाँ गये! 
  - इनके ही 84 जन्मों की कहानी लिखी हुई है।
 
  -  अब हमको ऐसा बनना है। 
 
  - दैवीगुण धारण करने हैं। 
 
  - भाई-भाई समझकर बाप को याद करना है।
 
  -  बाप से वर्सा लेना है। 
 
  - बुद्धि में आना चाहिए निंदा-स्तुति तो करते आते हैं।
    
      -  वास्तव में स्तुति तो है ही नहीं, निंदा है।
 
      -  जिनकी एक तरफ स्तुति करते, उनकी दूसरे तरफ निंदा भी करते हैं क्योंकि जानते ही नहीं, एक तरफ बाप की महिमा करते, दूसरे तरफ सर्वव्यापी कह देते हैं।
        
          -  ठिक्कर-भित्तर में परमात्मा कहने से बेमुख हो पड़े हैं।
 
          -  विनाश काले विपरीत बेमुख बुद्धि विनशन्ती, विनाश काले प्रीत सम्मुख बुद्धि विजयन्ती।
 
           
         
       
   
   
       
      -  जितना हो सके कोशिश करनी है बाप को याद करने की। 
  - आगे भी याद करते थे परन्तु वह व्यभिचारी याद थी।
 
  -  बहुतों को याद करते थे।
 
  -  अब बाप कहते हैं अव्यभिचारी याद में रहो।
 
  -  सिर्फ मामेकम् याद करो। 
 
  - भक्ति मार्ग के ढेर चित्र हैं, जिनको भी तुम याद करते आये हो।
 
  -  अब फिर सतोप्रधान बनना है। 
    
      - वहाँ भक्ति मार्ग है ही नहीं जो याद करना पड़े। 
 
      - बाप कहते हैं फुरना यही रखो कि हम सतोप्रधान कैसे बनें? 
 
      - ज्ञान मिल गया कि यह सृष्टि चक्र कैसे फिरता है, वह तो सहज है। 
 
      - अच्छा, कोई मुख से नहीं भी समझा सकते परन्तु बुद्धि में जरूर आता है कि हम सतोप्रधान से तमोप्रधान कैसे बने हैं, अब फिर सतोप्रधान बनना है जरूर।
 
      -  अगर कोई बोल नहीं सकता है तो कहेंगे अपनी तकदीर। 
 
      - भावी भी है। 
 
      - बाप ने बहुत सहज उपाय बताया है - बैज पर समझाना सहज है, यह है बेहद का बाप।
 
      -  इनसे ही वर्सा मिलता है। 
 
      - बाप जरूर स्वर्ग की स्थापना करते हैं। 
 
      - सो तो जरूर यहाँ ही करेंगे। 
 
      - शिव जयन्ती माना स्वर्ग की जयन्ती। 
 
      - स्वर्ग में हैं देवी-देवतायें, वह फिर कैसे बनें? 
 
      - वह इस पुरूषोत्तम संगमयुग पर पढ़ाई से बनें।
 
      -  तुम बच्चों को भी समझ मिली है, फिर औरों को भी यह समझ देनी है।
 
      -  तुम्हारा है सहज ज्ञान और सहज योग, सहज वर्सा।
 
      -  परन्तु यहाँ कोई पाई पैसे का वर्सा लेने वाला भी है, तो पद्मों का वर्सा लेने वाला भी है। 
  - सारा मदार पढ़ाई पर है।
 
  -  याद की यात्रा से और सब बातें भूल जाओ। 
 
  - फलाना ऐसा है...... इसमें टाइम वेस्ट न करो।
 
  -  मंज़िल बहुत भारी है। 
 
  - सतोप्रधान बनने में ही माया विघ्न डालती है। 
 
  - पढ़ाई में विघ्न नहीं पड़ते हैं।
 
  -  बाबा कहते हैं अपने को देखो हमारा कितना लव है? 
 
  - लव ऐसा हो जो बाप से चटका रहे।
 
  - सिखलाने वाला बाप है।
 
  -  इनकी आत्मा नहीं सिखाती है, यह भी सीखती है।
 
  -  बाबा आप हमको कितना समझदार बनाते हैं। 
 
  - ऊंचे ते ऊंच तो आप हो फिर मनुष्य सृष्टि में भी आप हमको कितना ऊंच बनाते हो। 
 
  - ऐसे अन्दर में बाबा की महिमा करनी चाहिए।
    
      -  बाबा आप कितनी कमाल करते हो। 
 
      - बाप कहते हैं - बच्चे, तुम फिर से अपना राज्य लो, मामेकम् याद करो, खुशी से।
 
      -  अपने से पूछना है - हम बाबा को कितना याद करते हैं?
 
      -  कहते हैं खुशी जैसी खुराक नहीं। 
 
      - तो बाप के मिलने की भी खुशी है परन्तु इतनी खुशी बच्चों को अन्दर नहीं रहती है।
 
      -  नहीं तो विवेक कहता है कि बहुत खुशी रहनी चाहिए।
 
      -  इस पढ़ाई से हम यह राजा बनने वाले हैं।
 
      -  बेहद के बाप के हम बच्चे हैं। 
 
      - सुप्रीम बाबा हमको पढ़ाते हैं।
 
      -  बाबा कितना रहमदिल है, कैसे बैठ तुम बच्चों को नई-नई बातें सुनाते हैं।
 
        -  अभी तुम्हारी बुद्धि में बहुत नई-नई बातें हैं जो और कोई की बुद्धि में नहीं हैं।
  
       अच्छा!
        
        मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते। 
     
   
   
       
       
   
   
      
      
            
                 
             
            
             
            
          
  
  
  
    1) देही-अभिमानी अवस्था धारण कर सुखदाई बनना है। किसी की भी खामियां (कमियां) नहीं निकालनी हैं। आपस में बहुत-बहुत प्यार से रहना है, मतभेद में नहीं आना है।
    
    2)   और सब बातों को छोड़ एक बाप से गुण ग्रहण करना है। सतोप्रधान बनने का फुरना (फा) रखना है। किसी की बात न सुननी है, न ग्लानी करनी है। मिया मिट्ठू नहीं बनना है।
  
      
       
   
समय प्रमाण स्वयं को चेक कर चेन्ज करने वाले सदा विजयी श्रेष्ठ आत्मा भव 
   जो सच्चे राजयोगी हैं वह कभी किसी भी परिस्थिति में विचलित नहीं हो सकते। तो अपने को समय प्रमाण इसी रीति से चेक करो और चेक करने के बाद चेंज कर लो। सिर्फ चेक करेंगे तो दिलशिकस्त हो जायेंगे। सोचेंगे कि हमारे में यह भी कमी है, पता नहीं ठीक होगा या नहीं। इसलिए चेक करो और चेंज करो क्योंकि समय प्रमाण कर्तव्य करने वालों की सदा विजय होती है इसलिए सदा विजयी श्रेष्ठ आत्मा बन तीव्र पुरुषार्थ द्वारा नम्बरवन में आ जाओ। 
          
  
  
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