- ओम् शान्ति। जो बच्चे अपने को आत्मा समझ, परमपिता परमात्मा के साथ योग लगाते हैं, उनको सच्चा योगी कहा जाता है, क्योंकि बाप ट्रूथ (सच्चा) है ना!
          -  तो तुम्हारा बुद्धियोग सत्य के साथ है। 
 
          - वह जो कुछ सुनाते हैं, सत्य ही है।
 
          -  योगी और भोगी दो प्रकार के लोग हैं।
            
              -  भोगी भी अनेक प्रकार के होते हैं।
 
              -  योगी भी अनेक प्रकार के होते हैं।
 
              -  तुम्हारा योग तो एक ही प्रकार का है। 
                
                  - उन्हों का संन्यास अलग है, तुम्हारा संन्यास ही अलग है। 
 
                   
                 
              - तुम हो पुरुषोत्तम संगमयुग के योगी।
 
              -  और किसको इस योग का पता ही नहीं कि हम पावन योगी हैं या पतित भोगी हैं।
                
                  -  यह भी बच्चे जानते नहीं।
 
                   
                 
               
           
           
       -  बाबा तो सबको बच्चा-बच्चा कहते हैं, क्योंकि बाप जानते हैं कि हम बेहद आत्माओं का पिता हूँ।
  -  और तुम यह समझते हो कि हम आत्मा सब आपस में भाई-भाई हैं।
 
  -  वह हमारा बाप है।
  
    - तुम बाप के साथ योग लगाने से पवित्र बनते हो।
      
        -  वह हैं भोगी, तुम हो योगी।
 
         
       
    -  बाप अपना परिचय तुमको देते हैं।
 
     
   
   
       
      -  यह भी तुम जानते हो कि यह पुरुषोत्तम संगमयुग है। 
  - यह तुम्हारे बिगर कोई जानते नहीं।
 
  -  इसका नाम है पुरुषोत्तम संगमयुग, इसलिए पुरुषोत्तम अक्षर को कभी नहीं भूलना।
 
  -  यह पुरुषोत्तम बनने का युग है।
 
  -  पुरुषोत्तम कहा जाता है ऊंच और पवित्र मनुष्य को।
    
      -  ऊंच और पवित्र यह लक्ष्मी-नारायण थे।
 
       
   
   
       
      -  तुमको अब टाइम का भी पता पड़ा है।
  -  5 हजार वर्ष के बाद यह दुनिया पुरानी होती है।
      -  फिर इसको नया बनाने के लिए बाप आते हैं।
 
     
   
  -  अब हम है संगमयुगी ब्राह्मण कुल के।
  
    - ऊंच ते ऊंच है ब्रह्मा, परन्तु ब्रह्मा को शरीरधारी दिखाते हैं।
 
     
   
   
       
      -  शिवबाबा तो अशरीरी है। 
  - बच्चे समझ गये हैं, अशरीरी और शरीरधारी का मिलन होता है।
 
  -  उनको तुम कहते हो बाबा।
  
    -  यह वन्डरफुल पार्ट है ना। 
 
    - इनका गायन भी है, मन्दिर भी बनते हैं।
 
    -  कोई किस रीति, कोई किस रीति रथ को श्रृंगारते हैं। 
 
    - यह भी बाबा ने बताया है - बहुत जन्मों के अन्त के जन्म के भी अन्त में मैं प्रवेश करता हूँ।
      
        -  कितना क्लीयर समझाते हैं। 
 
        - पहले-पहले भगवानुवाच कहना पड़े।
 
        -  फिर मैं बहुत जन्मों के अन्त में सभी राज़ बच्चों को ही समझाता हूँ, और कोई समझ भी न सके।
          
            -  तुम बच्चे भी कभी-कभी भूल जाते हो। 
 
             
           
         
       
     
   
   
       
      - पुरुषोत्तम अक्षर लिखने से समझेंगे यह पुरुषोत्तम युग ही कल्याणकारी युग है। 
        
          - अगर युग याद है तो समझेंगे अब हम नई दुनिया के लिए बदल रहे हैं।
              - नई दुनिया में होते ही हैं देवतायें। 
 
             
           
          - युगों का भी अब तुमको पता पड़ा है।
            
              -  बाप समझाते हैं - मीठे बच्चे, संगमयुग को कभी भूलो मत।
 
              -  यह भूलने से सारा ज्ञान भूल जाता है। 
 
              - तुम बच्चे जानते हो अब हम बदल रहे हैं।
 
              -  अब पुरानी दुनिया भी बदल नई होनी है। 
 
              - बाप आकर दुनिया को भी बदलते हैं, तो बच्चों को भी बदलते हैं।
 
              -  बच्चे-बच्चे तो सभी को कहते हैं।
                
                  - सारी दुनिया की जो भी आत्मायें हैं, सब बच्चे हैं। 
 
                  - सबका पार्ट इस ड्रामा में है।
 
                   
                 
               
           
           
       
      -  चक्र को भी सिद्ध करना है। 
  - हर एक अपना-अपना धर्म स्थापन करते हैं।
    
      -  यह देवी-देवता धर्म सिवाए बाप के कोई स्थापन कर न सके। 
 
      - यह धर्म कोई ब्रह्मा नहीं स्थापन करते।
 
      -  नई दुनिया में है देवी-देवता धर्म। 
        
          - पुरानी दुनिया में सब मनुष्य ही मनुष्य हैं।
 
          -  नई दुनिया में देवी-देवतायें होते हैं।
            
              -  देवतायें पवित्र हैं।
 
              -  वहाँ रावण राज्य ही नहीं। 
                
                  - बाप तुम बच्चों को रावण पर विजय प्राप्त कराते हैं। 
 
                  - रावण पर विजय प्राप्त होते ही राम राज्य शुरू हो जाता है।
 
                  -  राम राज्य नई दुनिया को और रावण राज्य पुरानी दुनिया को कहा जाता है। 
 
                   
                 
               
             
           
         
       
   
   
       
      - राम राज्य कैसे स्थापन होता है - यह तो तुम बच्चों के सिवाए कोई जानते नहीं। 
  - रचयिता बाप बैठ तुम बच्चों को रचना का राज़ समझाते हैं। 
    
      - बाप है रचयिता, बीज रूप।
 
      -  बीज को कहा जाता है वृक्षपति।
        
          -  अब वह जड़ बीज है, उनको तो ऐसे नहीं समझेंगे। 
 
          - तुम जानते हो बीज से ही सारा झाड़ निकलता है।
 
          -  सारे विश्व का कितना बड़ा झाड़ है।
 
          -  वह है जड़, यह है चैतन्य।
 
          -  सत्-चित-आनंद स्वरूप, मनुष्य सृष्टि का बीजरूप बाप है, उससे कितना बड़ा झाड़ निकलता है।
            
              -  माडल तो छोटा बनाते हैं। 
 
               
             
          - मनुष्य सृष्टि का झाड़ सबसे बड़ा है।
 
          -  ऊंच ते ऊंच बाप नॉलेजफुल है। 
 
          - उन झाड़ों की नॉलेज बहुतों को होती है, इसकी नॉलेज तो एक बाप ही देते हैं। 
 
          - अब बाप ने तुम्हें हद की बुद्धि बदल बेहद की बुद्धि दी है।
 
          -  तुम इस बेहद के झाड़ को जान गये हो।
 
          -  कितना बड़ा पोलार इस झाड़ को मिला हुआ है।
            
              - बाप बच्चों को बेहद में ले जाते हैं।
 
               
             
           
         
       
   
   
       
      -  अब सारी दुनिया ही पतित है।
        
          - सारी सृष्टि ही हिंसक है।
  
    - एक-दो की हिंसा करने वाले हैं।
      
        -  अब तुम बच्चों को ज्ञान मिला है।
 
         
       
    -  अहिंसक सिर्फ एक ही देवता धर्म होता है सतयुग में।
      
        -  सतयुग में सभी पवित्र, सुख, शान्ति में रहते हैं।
 
        -  सब मनोकामनायें 21 जन्म के लिए पूरी हो जाती हैं।
 
        -  सतयुग में कोई कामना नहीं। 
 
        - अनाज आदि सब-कुछ अथाह मिल जाता है। 
          
            - यह बाम्बे पहले नहीं थी।
 
             
           
        - देवतायें खारे (सागर के किनारे) जमीन पर नहीं रहते हैं।
 
        -  मीठी नदियां जहाँ थी, वहाँ देवतायें थे। 
 
        - मनुष्य थोड़े थे, एक-एक को बहुत जमीन होती है।
 
        -  सतयुग में है ही वाइसलेस वर्ल्ड। 
 
         
       
     
           
           
       
      - तुम योगबल से विश्व की राजाई लेते हो। 
        
          - उसको ही राम राज्य कहा जाता है। 
 
           
       
      - पहले-पहले नया झाड़ बहुत छोटा होता है।
        
          -  पहले थुर में एक धर्म था।
 
          -  फिर फाउन्डेशन से तीन ट्यूब निकलती हैं।
 
          -  एक जैसे फाउन्डेशन है देवी-देवता धर्म का। 
 
          - थुर से टाल-टालियां छोटी-छोटी निकलती हैं। 
 
          - अब तो इस झाड़ का थुर ही नहीं है और कोई ऐसा झाड़ होता ही नहीं है। 
 
          - इनका मिसाल भी बड़ के झाड़ से एक्यूरेट है। 
 
          - बड़ का झाड़ सारा खड़ा है लेकिन थुर है ही नहीं। 
 
          - सूखता भी नहीं। 
 
          - सारा झाड़ हरा-भरा खड़ा है।
 
          -  बाकी देवी-देवता धर्म का फाउन्डेशन है नहीं।
 
          -  थुर तो यही है ना।
 
          -  राम राज्य अथवा देवी-देवता धर्म भी थुर में ही आ जाता है।
 
          -  बाप कहते हैं हम 3 धर्म स्थापन करते हैं।
            
              -  यह सब बातें तुम संगमयुगी ब्राह्मण ही समझते हो।
 
               
           
           
       
      -  तुम ब्राह्मणों का है छोटा सा कुल।
        
          -  छोटे-छोटे मठ-पंथ निकलते हैं ना।
  
    - अरविन्द आश्रम है, कितना जल्दी-जल्दी वृद्धि को पाते हैं क्योंकि उनमें विकार के लिए कोई मना नहीं।
 
    -  यहाँ बाप कहते हैं काम महाशत्रु है।
 
    -  उन पर विजय पानी है।
 
    -  ऐसे कोई और कह न सके। 
 
    - नहीं तो उन्हों के पास भी हंगामा हो जाए। 
 
    - यहाँ तो हैं ही पतित मनुष्य तो पावन बनने की बात नहीं सुनते।
 
    -  कहते हैं विकार बिगर बच्चे कैसे पैदा होंगे।
      
        -  उन बिचारों का भी दोष नहीं है।
 
        -  गीतापाठी कहते भी हैं भगवानुवाच - काम महाशत्रु है। 
 
        - उनको जीतने से जगतजीत बनते हैं, परन्तु समझते नहीं हैं।
          
            -  वह जब यह अक्षर सुनाते हैं तो उन्हों को समझाना चाहिए। 
 
             
           
         
       
     
           
           
       
      - इस पर बाबा कहते हैं - जैसे हनूमान दरवाजे पर जुत्तियों में बैठता था, बाबा भी कहते हैं जाकर किनारे बैठ सुनकर आओ।
  -  फिर जब यह अक्षर कहें तो पूछो - इसका रहस्य क्या है? 
 
  - जगतजीत तो यह देवतायें थे।
  
    - देवता बनने लिए तो इन विकारों को छोड़ना पड़े।
      
        -  यह भी तुम कह सकते हो। 
 
        - तुम ही जानते हो कि अब राम राज्य की स्थापना हो रही है। 
 
         
       
     
   
   
       
      - महावीर भी तुम हो। 
        
          - इसमें डरने की कोई बात नहीं है।
 
          -  बहुत प्यार से पूछना चाहिए - स्वामी जी, आपने बताया कि इन विकारों पर विजय पाने से विश्व के मालिक बनेंगे, लेकिन आपने यह तो बताया नहीं कि पवित्र कैसे बनें?
 
          -  अब तुम बच्चे पवित्रता में रहने वाले महावीर हो।
 
          -  महावीर ही विजय माला में पिरोये जाते हैं।
 
           
       
      -  मनुष्यों के कान तो रांग बातें सुनने पर हिरे हुए हैं।
        
          - तुमको अब रांग बातें सुनना पसन्द नहीं आती।
 
          -  राइट बातें तुम्हारे कानों को अच्छी लगेंगी।
 
          -  हियर नो ईविल.... मनुष्यों को सुजाग तो जरूर करना है।
 
           
       
      - भगवान् कहते हैं पवित्र बनो।
  -  सतयुग में सब पवित्र देवतायें थे।
 
  - अब सब अपवित्र हैं।    
    
      - ऐसे-ऐसे समझाना चाहिए।
 
      - बोलो, हमारे पास यह सतसंग होता है, उसमें यह समझाया जाता है कि काम महाशत्रु है।
 
      - अब पवित्र बनना चाहते हो तो एक युक्ति से बनो, अपने को आत्मा समझ, भाई-भाई की दृष्टि पक्की करो।
 
       
   
   
       
      - तुम बच्चे जानते हो - पहले-पहले यह भारत बहुत भरपूर खण्ड था, अब खाली होने कारण हिन्दुस्तान नाम रख दिया है।
  -  पहले भारत धन-दौलत, पवित्रता, सुख, शान्ति सबसे भरपूर था।
 
  - अब है दु:खों से भरपूर। 
    
      - तब पुकारते हैं - हे दु:ख हर्ता, सुख कर्ता....।
 
       
   
   
       
      -  तुम कितना खुशी से बाप से पढ़ते हो।
  
    - ऐसा कौन होगा जो बेहद के बाप से बेहद सुख का वर्सा नहीं लेगा! 
 
    - पहले-पहले अल्फ समझना है।
 
    - अल्फ को न जाना तो कुछ भी रहस्य बुद्धि में आयेगा ही नहीं।
      
        - तो बेहद का बाप जो बेहद का वर्सा देते हैं, जब यह निश्चय बैठे तब आगे बढ़ें। 
          
            - बच्चों को बाप से कुछ भी प्रश्न पूछने की दरकार नहीं है।
 
             
           
         
       
   
       
      -  बाप पतित-पावन है, उनको ही तुम याद करते हो।
        
          - तुम उनकी याद से ही पावन बनेंगे।
 
          - मुझे बुलाया ही इसलिए है।
            
              - जीवनमुक्ति है भी सेकण्ड की।
 
              -  फिर भी याद की यात्रा समय ले लेती है।
 
              -  मुख्य याद की यात्रा में ही विघ्न पड़ते हैं।
 
               
           
           
       
      -  आधा कल्प देह-अभिमानी रहे हैं। 
  - अब एक जन्म देही-अभिमानी बनने में ही मेहनत है।
    
      - इनके लिए (ब्रह्मा बाबा के लिए) भी बहुत सहज है।
 
      -  तुम बुलाते भी हो बाप-दादा।
 
      -  यह भी समझते हैं बाप की सवारी हमारे सिर पर है।
 
      - बहुत उनकी महिमा करता हूँ, बहुत प्यार करता हूँ - बाबा, आप कितने मीठे हो, हमको कल्प-कल्प कितना सिखलाते हो।
 
      - फिर आधाकल्प आपको याद भी नहीं करेंगे। 
 
      - अब तो बहुत याद करता हूँ।
        
          - कल हमारे में कुछ भी ज्ञान नहीं था। 
 
          - जिसकी पूजा करते थे, हमको यह थोड़ेही मालूम था कि हम यह बन जायेंगे।
 
          - अब तो वन्डर लगता है। 
 
          - योगी बनने से फिर यह देवी-देवता बन जायेंगे।
 
          - मेरे भी सब बच्चे हैं। 
 
          - यह बाबा बहुत प्यार से बच्चों को सम्भालते हैं, इनकी पालना करते हैं। 
 
          - यह भी हमारे समान नर से नारायण बन जायेंगे।
            
              -  यहाँ तुम आये ही हो इसलिए।
 
              -  कितना समझाता हूँ - बच्चे, बाप को याद करो, दैवीगुण धारण करो, खानपान की सम्भाल करो।
 
              -  नहीं करते हैं तो समझता हूँ शायद अभी समय पड़ा है।
 
              - कुछ न कुछ भूलें तो होती रहती हैं।
 
              - छोटे-बड़े बच्चों को प्यार से समझाता हूँ - बच्चे, भूलें मत करो, किसको दु:ख न दो।                
 
              - भूल करते हो गोया दु:ख देते हो।
 
              -  बाप कभी भी दु:ख नहीं देते हैं।                
 
              - वह तो डायरेक्शन ही देते हैं - मामेकम् याद करो तो विकर्म विनाश हो जायेंगे। 
 
              - बहुत मीठा बन जायेंगे।
 
              - ऐसा मीठा बनना है, दैवीगुण धारण करने हैं।
 
              -  पवित्र बनो।
 
               
             
           
         
       
   
   
       
      - यहाँ अपवित्र के आने का हुक्म नहीं है।
        
          - कभी-कभी आने देते हैं।
 
          - वह भी अभी।
 
          - जब बहुत वृद्धि हो जायेगी तो कह देंगे यह है टॉवर ऑफ प्योरिटी, टॉवर ऑफ साइलेन्स।
 
          - ऊंच ते ऊंच है ना। 
 
         
       
      - अपने को आत्मा समझ बाप की याद में रहना - यह है हाइएस्ट पावर।
  -  वहाँ बहुत साइलेन्स रहती है।
 
  - आधाकल्प कोई झगड़ा आदि नहीं होता है। 
 
  - यहाँ कितना झगड़ा आदि होता है, शान्ति हो न सके।
 
   
       
      - शान्ति का धाम है मूलवतन।
  
    - फिर शरीर धारण कर विश्व में पार्ट बजाने आते हैं तो वहाँ भी शान्ति रहती है। 
      
        - आत्मा का स्वधर्म ही शान्ति है। 
 
        - अशान्ति कराता है रावण। 
 
        - तुम शान्ति की शिक्षा पाते रहते हो।
 
        -  कोई गुस्से में होता है तो सबको अशान्त कर देता है।
 
        -  इस योगबल से तुम्हारे से सारा किचड़ा निकल जाता है। 
 
        - पढ़ाई से किचड़ा नहीं निकलता है। 
 
        - याद से सब किचड़ा भस्म हो जाता है। 
 
        - कट निकल जाती है।
 
         
       
   
       
      -  बाप कहते हैं कल तुमको शिक्षा दी थी, क्या तुम भूल गये हो?
        
          -  5 हजार वर्ष की बात है। 
            
              - वह लाखों वर्ष कह देते हैं।            
 
              - अब तुमको झूठ और सच के फ़र्क का पता पड़ा है। 
 
              - तुमको बाप ही आकर बताते हैं झूठ क्या है, सच क्या है?
 
              -  ज्ञान क्या है, भक्ति क्या है?
 
              -  भ्रष्टाचार और श्रेष्ठाचार किसको कहा जाता हैं? 
                
                  - भ्रष्टाचारी विकार से पैदा होते हैं।
 
                  -  वहाँ विकार होता नहीं। 
 
                  - तुम खुद कहते हो - देवतायें सम्पूर्ण निर्विकारी हैं। 
 
                  - रावण राज्य ही नहीं है।
 
                  -  यह तो सहज समझने की बात है। 
 
                  - फिर क्या करना चाहिए? 
 
                  - एक तो बाप को याद करना चाहिए, दूसरा पवित्र जरूर बनना चाहिए। 
 
                   
               
             
            
            अच्छा!
              
              मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
              
             
            
         
         
      
  
  
      
      
  
  
      
      
            
                 
             
            
             
            
          
  
  
  
    1) पवित्र बनने में महावीर बनना है, याद की यात्रा से अन्दर का किचड़ा निकालना है। अपने शान्त स्वधर्म में स्थित रहना है, अशान्ति नहीं फैलानी है।
    
    2)   बाप जो राइट बात सुनाते हैं, वही सुननी है। हियर नो ईविल.... रांग बातें मत सुनो। सभी को सुजाग करो। पुरूषोत्तम युग में पुरूषोत्तम बनो और बनाओ।
  
      
       
   
आत्मिक शक्ति के आधार पर तन की शक्ति का अनुभव करने वाले सदा स्वस्थ भव 
   इस अलौकिक जीवन में आत्मा और प्रकृति दोनों की तन्दरूस्ती आवश्यक है। जब आत्मा स्वस्थ है तो तन का हिसाब-किताब वा तन का रोग सूली से कांटा बनने के कारण, स्व-स्थिति के कारण स्वस्थ अनुभव करते हैं। उनके मुख पर चेहरे पर बीमारी के कष्ट के चिन्ह नहीं रहते। कर्मभोग के वर्णन के बदले कर्मयोग की स्थिति का वर्णन करते हैं। वे परिवर्तन की शक्ति से कष्ट को सन्तुष्टता में परिवर्तन कर सन्तुष्ट रहते और सन्तुष्टता की लहर फैलाते हैं। 
          
  
  
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