- ओम् शान्ति।
- मीठे-मीठे बच्चे कभी सम्मुख हैं, कभी दूर चले जाते हैं।
- सम्मुख फिर वही रहते हैं जो याद करते हैं क्योंकि याद की यात्रा में ही सब कुछ समाया हुआ है।
- गाया जाता है ना - नज़र से निहाल।
- आत्मा की नज़र जाती है परमपिता में और कुछ भी उनको अच्छा नहीं लगता।
- उनको याद करने से विकर्म विनाश होते हैं।
- तो अपने पर कितनी खबरदारी रखनी चाहिए।
- याद न करने से माया समझ जाती है - इनका योग टूटा हुआ है तो अपनी तरफ खींचती है।
- कुछ न कुछ उल्टा कर्म करा देती है।
- ऐसे बाप की निन्दा कराते हैं।
- भक्ति मार्ग में गाते हैं - बाबा, मेरे तो एक आप दूसरा न कोई।
- तब बाप कहते हैं - बच्चे, मंजिल बहुत ऊंची है।
- काम करते हुए बाप को याद करना - यह है ऊंच ते ऊंच मंज़िल।
- इसमें प्रैक्टिस बहुत अच्छी चाहिए।
- नहीं तो निन्दक बन जाते हैं, उल्टा काम करने वाले।
- समझो कोई में क्रोध आया, आपस में लड़ते-झगड़ते हैं तो भी निन्दा कराई ना, इसमें बड़ी खबरदारी रखनी है।
- अपने गृहस्थ व्यवहार में रहते हुए बुद्धि बाप से लगानी है।
- ऐसे नहीं कि कोई सम्पूर्ण हो गया है। नहीं।
- कोशिश ऐसी करनी चाहिए - हम देही-अभिमानी बनें।
- देह-अभिमान में आने से कुछ न कुछ उल्टा काम करते हैं तो गोया बाप की निन्दा कराते हैं।
- बाप कहते हैं ऐसे सतगुरू की निन्दा कराने वाले लक्ष्मी-नारायण बनने की ठौर पा न सकें इसलिए पूरा पुरूषार्थ करते रहो, इससे तुम बहुत ही शीतल बन जायेंगे।
- पाँच विकारों की बातें सब निकल जायेंगी।
- बाप से बहुत ताकत मिल जायेगी।
- काम-काज भी करना है।
- बाप ऐसे नहीं कहते कि कर्म न करो।
- वहाँ तो तुम्हारे कर्म, अकर्म हो जायेंगे।
- कलियुग में जो कर्म होते हैं, वह विकर्म हो जाते हैं।
- अभी संगमयुग पर तुमको सीखना होता है।
- वहाँ सीखने की बात नहीं।
- यहाँ की शिक्षा ही वहाँ साथ चलेगी।
- बाप बच्चों को समझाते हैं - बाहरमुखता अच्छी नहीं है।
- अन्तर्मुखी भव।
- वह भी समय आयेगा जबकि तुम बच्चे अन्तर्मुख हो जायेंगे।
- सिवाए बाप के और कुछ याद नहीं आयेगा।
- तुम आये भी ऐसे थे, कोई की याद नहीं थी।
- गर्भ से जब बाहर निकले तब पता पड़ा कि यह हमारे माँ-बाप हैं, यह फलाना है।
- तो फिर अब जाना भी ऐसे है।
- हम एक बाप के हैं और कोई उनके सिवाए बुद्धि में याद न आये।
- भल टाइम पड़ा है परन्तु पुरूषार्थ तो पूरी रीति करना है।
- शरीर पर तो कोई भरोसा नहीं।
- कोशिश करते रहना चाहिए, घर में भी बहुत शान्ति हो, क्लेश नहीं।
- नहीं तो सब कहेंगे इनमें कितनी अशान्ति है।
- तुम बच्चों को तो रहना है बिल्कुल शान्त।
- तुम शान्ति का वर्सा ले रहे हो ना।
- अभी तुम रहते हो काँटों के बीच में।
- फूलों के बीच में नहीं हो।
- काँटों के बीच रह फूल बनना है।
- काँटों का काँटा नहीं बनना है।
- जितना तुम बाप को याद करेंगे उतना शान्त रहेंगे।
- कोई उल्टा-सुल्टा बोले, तुम शान्ति में रहो।
- आत्मा है ही शान्त।
- आत्मा का स्वधर्म है शान्त।
- तुम जानते हो अभी हमको उस घर में जाना है।
- बाप भी है शान्ति का सागर।
- कहते हैं तुमको भी शान्ति का सागर बनना है।
- फालतू झरमुई-झगमुई बहुत नुकसान करती है।
- बाप डायरेक्शन देते हैं - ऐसी बातें नहीं करनी चाहिए, इससे तुम बाप की निन्दा कराते हो।
- शान्ति में कोई निन्दा वा विकर्म होता नहीं।
- बाप को याद करते रहने से और ही विकर्म विनाश होंगे।
- अशान्त न खुद हो, न औरों को करो।
- किसको दु:ख देने से आत्मा नाराज़ होती है।
- बहुत हैं जो रिपोर्ट लिखते हैं - बाबा, यह घर में आते हैं तो धमचक्र मचा देते हैं।
- बाबा लिखते हैं तुम अपने शान्ति स्वधर्म में रहो।
- हातमताई की कहानी भी है ना, उनको कहा तुम मुख में मुहलरा डाल दो तो आवाज़ निकलेगा ही नहीं।
- बोल नहीं सकेंगे।
- तुम बच्चों को शान्ति में रहना है।
- मनुष्य शान्ति के लिए बहुत धक्के खाते हैं।
- तुम बच्चे जानते हो हमारा मीठा बाबा शान्ति का सागर है।
- शान्ति कराते-कराते विश्व में शान्ति स्थापन करते हैं।
- अपने भविष्य मर्तबे को भी याद करो।
- वहाँ होता ही है एक धर्म, दूसरा कोई धर्म होता नहीं।
- उनको ही विश्व में शान्ति कहा जाता है।
- फिर जब दूसरे-दूसरे धर्म आते हैं तो हंगामें होते हैं।
- अभी कितनी शान्ति रहती है।
- समझते हो हमारा घर वही है।
- हमारा स्वधर्म है शान्त।
- ऐसे तो नहीं कहेंगे शरीर का स्वधर्म शान्त है।
- शरीर विनाशी चीज़ है, आत्मा अविनाशी चीज़ है।
- जितना समय आत्मायें वहाँ रहती हैं तो कितना शान्त रहती हैं।
- यहाँ तो सारी दुनिया में अशान्ति है इसलिए शान्ति माँगते रहते हैं।
- परन्तु कोई चाहे सदा शान्त में रहें, यह तो हो न सके।
- भल 63 जन्म वहाँ रहते हैं फिर भी आना जरूर पड़ेगा।
- अपना पार्ट दु:ख-सुख का बजाकर फिर चले जायेंगे।
- ड्रामा को अच्छी रीति ध्यान में रखना होता है।
- तुम बच्चों को भी ध्यान में रहे कि बाबा हमको वरदान देते हैं - सुख और शान्ति का।
- ब्रह्मा की आत्मा भी सब सुनती है।
- सबसे नज़दीक तो इनके कान सुनते हैं।
- इनका मुख कान के नज़दीक है।
- तुम्हारा फिर इतना दूर है।
- यह झट सुन लेते हैं।
- सब बातें समझ सकते हैं।
- बाप कहते हैं मीठे-मीठे बच्चों!
- मीठे-मीठे तो सबको कहते हैं क्योंकि बच्चे तो सब हैं।
- जो भी जीव आत्मायें हैं वह सब बाप के बच्चे अविनाशी हैं।
- शरीर तो विनाशी है।
- बाप अविनाशी है।
- बच्चे आत्मायें भी अविनाशी हैं।
- बाप बच्चों से वार्तालाप करते हैं - इसको कहा जाता है रूहानी नॉलेज।
- सुप्रीम रूह बैठ रूहों को समझाते हैं।
- बाप का प्यार तो है ही।
- जो भी सब रूहें हैं, भल तमोप्रधान हैं।
- जानते हैं यह सब जब घर में थे तो सतोप्रधान थे।
- सबको कल्प-कल्प हम आकर शान्ति का रास्ता बताता हूँ।
- वर देने की बात नहीं है।
- ऐसे नहीं कहते धनवान भव, आयुष्वान भव। नहीं।
- सतयुग में तुम ऐसे थे परन्तु आशीर्वाद नहीं देते हैं।
- कृपा वा आशीर्वाद नहीं माँगनी है।
- बाप, बाप भी है, टीचर भी है - यही बात याद करनी है।
- ओहो! शिवबाबा बाप भी है, टीचर भी है, ज्ञान का सागर भी है।
- बाप ही बैठ अपना और रचना के आदि-मध्य-अन्त का ज्ञान सुनाते हैं, जिससे तुम चक्रवर्ती महाराजा बन जाते हो।
- यह सारा आलराउण्ड चक्र है ना।
- बाप समझाते हैं इस समय सारी दुनिया रावण राज्य में है।
- रावण सिर्फ लंका में नहीं है।
- यह है बेहद की लंका।
- चारों तरफ पानी है।
- सारी लंका रावण की थी, अब फिर राम की बनती है।
- लंका तो सोने की थी।
- वहाँ सोना बहुत होता है।
- एक मिसाल भी बताते हैं ध्यान में गया, वहाँ एक सोने की ईट देखी।
- जैसे यहाँ मिट्टी की हैं, वहाँ सोने की होंगी।
- तो ख्याल किया सोना ले जायें।
- कैसे-कैसे नाटक बनाये हैं।
- भारत तो नामीग्रामी है, और खण्डों में इतने हीरे-जवाहर नहीं होते।
- बाप कहते हैं मैं सबको वापिस ले जाता हूँ, गाइड बन करके।
- चलो बच्चे, अब घर जाना है।
- आत्मायें पतित हैं, पावन होने बिगर घर जा नहीं सकती हैं।
- पतित को पावन बनाने वाला एक बाप ही है इसलिए सब यहाँ ही हैं।
- वापिस कोई भी जा नहीं सकते।
- लॉ नहीं कहता।
- बाप कहते हैं - बच्चे, माया तुम्हें और ही ज़ोर से देह-अभिमान में लायेगी।
- बाप को याद करने नहीं देगी।
- तुमको खबरदार रहना है।
- इस पर ही युद्ध है।
- आखें बड़ा धोखा देती हैं।
- इन ऑखों को कब्जे में (अधिकार में) रखना है।
- देखा गया भाई-बहन में भी दृष्टि ठीक नहीं रहती है तो अब समझाया जाता है भाई-भाई समझो।
- यह तो सब कहते हैं हम सब भाई-भाई हैं।
- परन्तु समझते कुछ भी नहीं।
- जैसे मेढ़क ट्रॉ-ट्रॉ करते रहते हैं, अर्थ कुछ नहीं समझते।
- अभी तुम हर एक बात का यथार्थ अर्थ समझ गये हो।
- बाप मीठे-मीठे बच्चों को बैठ समझाते हैं कि तुम भक्ति मार्ग में भी आशिक थे, माशुक को याद करते थे।
- दु:ख में झट उनको याद करते हैं - हाय राम! हे भगवान रहम करो!
- स्वर्ग में तो ऐसे कभी नहीं कहेंगे।
- वहाँ रावण राज्य ही नहीं होता है।
- तुमको रामराज्य में ले जाते हैं तो उनकी मत पर चलना चाहिए।
- अभी तुमको मिलती है ईश्वरीय मत फिर मिलेगी दैवी मत।
- इस कल्याणकारी संगमयुग को कोई भी नहीं जानते हैं क्योंकि सबको बताया हुआ है, कलियुग अजुन छोटा बच्चा है।
- लाखों वर्ष पड़े हैं।
- बाबा कहते यह है भक्ति का घोर अन्धियारा।
- ज्ञान है सोझरा।
- ड्रामा अनुसार भक्ति की भी नूँध है, यह फिर भी होगी।
- अब तुम समझते हो भगवान् मिल गया तो भटकने की दरकार नहीं रहती।
- तुम कहते हो हम जाते हैं बाबा के पास अथवा बापदादा के पास।
- इन बातों को मनुष्य तो समझ न सकें।
- तुम्हारे में भी जिनको पूरा निश्चय नहीं बैठता तो माया एकदम हप कर लेती है।
- एकदम गज को ग्राह हप कर लेता है।
- आश्चर्यवत् सुनन्ती....... पुराने तो चले गये, उनका भी गायन है, अच्छे-अच्छे महारथियों को माया हरा देती है।
- बाबा को लिखते हैं - बाबा, आप अपनी माया को नहीं भेजो।
- अरे, यह हमारी थोड़ेही है।
- रावण अपना राज्य करते हैं, हम अपना राज्य स्थापन कर रहे हैं।
- यह परमपरा से चला आता है।
- रावण ही तुम्हारा सबसे बड़ा दुश्मन है।
- जानते हैं रावण दुश्मन है, इसलिए उसको हर वर्ष जलाते हैं।
- मैसूर में तो दशहरा बहुत मनाते हैं, समझते कुछ नहीं।
- तुम्हारा नाम है शिव शक्ति सेना।
- उन्होंने फिर नाम बन्दर सेना डाल दिया है।
- तुम जानते हो बरोबर हम बन्दर मिसल थे, अब शिवबाबा से शक्ति ले रहे हो, रावण पर जीत पाने।
- बाप ही आकर राजयोग सिखलाते हैं।
- इस पर कथायें भी अनेक बना दी हैं।
- अमरकथा भी कहते हैं।
- तुम जानते हो बाबा हमको अमरकथा सुनाते हैं।
- बाकी कोई पहाड़ आदि पर नहीं सुनाते।
- कहते हैं शंकर ने पार्वती को अमरकथा सुनाई।
- शिव शंकर का चित्र भी रखते हैं।
- दोनों को मिला दिया है।
- यह सब है भक्ति मार्ग।
- दिन-प्रतिदिन सब तमोप्रधान होते गये हैं।
- सतोप्रधान से सतो होते हैं तो दो कला कम होती हैं।
- त्रेता को भी वास्तव में स्वर्ग नहीं कहा जाता है।
- बाप आते हैं तुम बच्चों को स्वर्गवासी बनाने।
- बाप जानते हैं ब्राह्मणकुल और सूर्यवंशी-चन्द्रवंशी कुल दोनों स्थापन हो रहे हैं।
- रामचन्द्र को क्षत्रिय की निशानी दी है।
- तुम सब क्षत्रिय हो ना, जो माया पर जीत पाते हो।
- कम मार्क्स से पास होने वाले को चन्द्रवंशी कहा जाता है, इसलिए राम को बाण आदि दे दिया है।
- हिंसा तो त्रेता में भी होती नहीं।
- गायन भी है राम राजा, राम प्रजा..... परन्तु यह क्षत्रियपन की निशानी दे दी है तो मनुष्य मूँझते हैं।
- यह हथियार आदि होते नहीं हैं।
- शक्तियों के लिए भी कटारी आदि दिखाते हैं।
- समझते कुछ भी नहीं हैं।
- तुम बच्चे अभी समझ गये हो कि बाप ज्ञान का सागर है इसलिए बाप ही आदि-मध्य-अन्त का राज़ समझाते हैं।
- बेहद के बाप का जो बच्चों पर लव है, वह हद के बाप का हो न सके।
- 21 जन्मों के लिए बच्चों को सुखदाई बना देते हैं।
- तो लवली बाप ठहरा ना!
- कितना लवली है बाप, जो तुम्हारे सब दु:ख दूर कर देते हैं।
- सुख का वर्सा मिल जाता है।
- वहाँ दु:ख का नाम निशान नहीं होता।
- अभी यह बुद्धि में रहना चाहिए ना।
- यह भूलना नहीं चाहिए।
- कितना सहज है, सिर्फ मुरली पढ़कर सुनानी है, फिर भी कहते हैं ब्राह्मणी चाहिए।
- ब्राह्मणी बिगर धारणा नहीं होती।
- अरे, सत्य नारायण की कथा तो छोटे बच्चे भी याद कर सुनाते हैं।
- मैं तुमको रोज़-रोज़ समझाता हूँ सिर्फ अल्फ़ को याद करो।
- यह ज्ञान तो 7 रोज़ में बुद्धि में बैठ जाना चाहिए।
- परन्तु बच्चे भूल जाते हैं, बाबा तो वण्डर खाते हैं। अच्छा!
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धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) बाप से आशीर्वाद वा कृपा नहीं माँगनी है। बाप, टीचर, गुरू को याद कर अपने ऊपर आपेही कृपा करनी है। माया से खबरदार रहना है, आखें धोखा देती हैं, इन्हें अपने अधिकार में रखना है।
2) फालतू झरमुई-झगमुई की बातें बहुत नुकसान करती हैं इसलिए जितना हो सके शान्त रहना है, मुख में मुहलरा डाल देना है। कभी भी उल्टा-सुल्टा नहीं बोलना है। न खुद अशान्त होना है, न किसी को अशान्त करना है।

( All Blessings of 2021-22)
बाप की मदद से सूली को कांटा बनाने वाले सदा निश्चिंत और ट्रस्टी भव
पिछला हिसाब सूली है लेकिन बाप की मदद से वह कांटा बन जाता है। परिस्थितियां आनी जरूर हैं क्योंकि सब कुछ यहाँ ही चुक्तू करना है लेकिन बाप की मदद उन्हें कांटा बना देती है, बड़ी बात को छोटा बना देती है क्योंकि बड़ा बाप साथ है। इसी निश्चय के आधार से सदा निश्चिंत रहो और ट्रस्टी बन मेरे को तेरे में बदली कर हल्के हो जाओ तो सब बोझ एक सेकण्ड में समाप्त हो जायेंगे।

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