“मीठे बच्चे - अपनी जांच करो कि कितना समय बाप की स्मृति रहती है,
क्योंकि स्मृति में है ही फायदा, विस्मृति में है घाटा''
प्रश्नः-
इस पाप आत्माओं की दुनिया में कौन-सी बात बिल्कुल असम्भव है और क्यों?
उत्तर:-
यहाँ कोई कहे हम पुण्य आत्मा हैं, यह बिल्कुल असम्भव है क्योंकि...
दुनिया ही कलियुगी तमोप्रधान है।
मनुष्य जिसको पुण्य का काम समझते हैं वह भी पाप हो जाता है क्योंकि...
हर कर्म विकारों के वश हो करते हैं।
ओम् शान्ति।
सृष्टि चक्र की पढ़ाई...
यह तो बच्चे समझते होंगे हम अभी ब्रह्मा के बच्चे ब्रह्माकुमार-कुमारियाँ हैं।
फिर बाद में होते हैं-देवी-देवता।
यह तो तुम ही समझते हो, दूसरा कोई नहीं समझते।
तुम जानते हो हम ब्रह्माकुमार-कुमारियां बेहद की पढ़ाई पढ़ रहे हैं।
84 जन्मों की पढ़ाई भी पढ़ते, सृष्टि चक्र की पढ़ाई भी पढ़ते।
फिर तुमको यह शिक्षा मिलती है कि पवित्र बनना है।
कितना समय हम बाबा की याद में रहे?
यहाँ बैठे तुम बच्चे बाप को याद तो जरूर करते हो पावन बनने के लिए।
अपने दिल से पूछो सच-सच हम बाप की याद में बैठे थे या माया रावण बुद्धि को और तरफ ले गयी।
बाप ने कहा है मामेकम् याद करो तो पाप कटें।
अब अपने से पूछना है हम बाबा की याद में रहे या बुद्धि कहाँ चली गई?
स्मृति रहनी चाहिए-कितना समय हम बाबा की याद में रहे?
कितना समय हमारी बुद्धि कहाँ-कहाँ गई?
अपनी अवस्था को देखो।
जितना टाइम बाप को याद करेंगे, उससे ही पावन बनेंगे।
जमा और ना का भी पोतामेल रखना है।
आदत होगी तो याद भी रहेगा।
लिखते रहेंगे।
डायरी तो सबके पॉकेट में रहती ही है।
जो भी व्यापार वाले होते हैं, उन्हों की है हद की डायरी।
तुम्हारी है बेहद की डायरी।
तो तुमको अपना चार्ट नोट करना है।
बाप का फरमान है-धन्धा आदि सब कुछ करो परन्तु कुछ समय निकाल मेरे को याद करो।
अपने पोतामेल को देख फायदा बढ़ाते जाओ।
घाटा न डालो। तुम्हारी युद्ध तो है ना।
सेकण्ड में फायदा, सेकण्ड में घाटा।
झट मालूम पड़ता है, हमने फायदा किया या घाटा?
तुम व्यापारी हो ना।
कोई विरला यह व्यापार करे।
स्मृति से है फायदा, विस्मृति से है घाटा।
यह अपनी जांच करनी है, जिनको ऊंच पद पाना है उनको तो ओना रहता है-देखें, हम कितना समय विस्मृति में रहे?
यह तो तुम बच्चे जानते हो हम सब आत्माओं का बाप पतित-पावन है।
पुण्य आत्माओं की दुनिया... पाप आत्माओं की दुनिया...
हम असुल आत्मायें हैं।
अपने घर से यहाँ आये हैं, यह शरीर लेकर पार्ट बजाते हैं।
शरीर विनाशी है, आत्मा अविनाशी है।
संस्कार भी आत्मा में रहते हैं।
बाबा पूछते हैं-हे आत्मा याद करो, इस जन्म के छोटेपन में कोई उल्टा काम तो नहीं किया है?
याद करो। 3-4 वर्ष से लेकर याद तो रहती है, हमने छोटेपन में कैसे बिताया है, क्या-क्या किया है?
कोई भी बात दिल अन्दर खाती तो नहीं है? याद करो।
सतयुग में पाप कर्म होते ही नहीं तो पूछने की बात नहीं रहती।
यहाँ तो पाप होते ही हैं।
मनुष्य जिसको पुण्य का काम समझते हैं वह भी पाप ही है।
यह है ही पाप आत्माओं की दुनिया।
तुम्हारी लेन-देन भी है पाप आत्माओं से।
पुण्य आत्मा यहाँ है ही नहीं।
पुण्य आत्माओं की दुनिया में फिर एक भी पाप आत्मा नहीं।
पाप आत्माओं की दुनिया में एक भी पुण्य आत्मा नहीं हो सकती।
जिन गुरुओं के चरणों में गिरते हैं वह भी कोई पुण्य आत्मा नहीं हैं।
यह तो है ही कलियुग सो भी तमोप्रधान।
तो इसमें कोई पुण्य आत्मा होना ही असम्भव है।
पुण्य आत्मा बनने लिए ही बाप को बुलाते हैं कि आकर हमको पावन आत्मा बनाओ।
ऐसे नहीं, कोई बहुत दान-पुण्य आदि करते हैं, धर्मशाला आदि बनाते हैं तो वह कोई पुण्य आत्मा हैं।
नहीं, शादियों आदि के लिए हाल आदि बनाते हैं यह कोई पुण्य थोड़ेही है।
यह समझने की बातें हैं।
यह है रावण राज्य, पाप आत्माओं की आसुरी दुनिया।
इन बातों को सिवाए तुम्हारे और कोई नहीं जानते।
रावण भल है परन्तु उनको पहचानते थोड़ेही हैं।
मनुष्य मत और ईश्वरीय मत...
शिव का चित्र भी है परन्तु पहचानते नहीं हैं।
बड़े-बड़े शिवलिंग आदि बनाते हैं, फिर भी कह देते नाम-रूप से न्यारा है, सर्वव्यापी है इसलिए बाप ने कहा है यदा यदाहि....... भारत में ही शिवबाबा की ग्लानि होती है।
जो बाप तुमको विश्व का मालिक बनाते हैं, तुम मनुष्य मत पर चल उनकी कितनी ग्लानि करते हो।
मनुष्य मत और ईश्वरीय मत का किताब भी है ना।
यह तो तुम ही जानते हो और समझाते हो हम श्रीमत पर देवता बनते हैं।
रावण मत पर फिर आसुरी मनुष्य बन जाते हैं।
मनुष्य मत को आसुरी मत कहा जायेगा।
आसुरी कर्तव्य ही करते रहते हैं।
ईश्वर को सर्वव्यापी कह देते...
मूल बात ईश्वर को सर्वव्यापी कह देते।
कच्छ अवतार, मच्छ अवतार...... तो कितने आसुरी छी-छी बन गये हैं।
तुम्हारी आत्मा कच्छ-मच्छ अवतार नहीं लेती, मनुष्य तन में ही आती है।
अभी तुम समझते हो हम कोई कच्छ-मच्छ थोड़ेही बनते हैं, 84 लाख योनी थोड़ेही लेते हैं।
अभी तुमको बाप की श्रीमत मिलती है - बच्चे, तुम 84 जन्म लेते हो।
84 और 84 लाख का क्या परसेन्टेज कहेंगे!
झूठ तो पूरा झूठ, सच की रत्ती नहीं।
इनका भी अर्थ समझना चाहिए।
सूर्यवंशी राज्य...लक्ष्मी-नारायण दी फर्स्ट, दी सेकण्ड, दी थर्ड कहा जाता है...
भारत का हाल देखो क्या है।
भारत सचखण्ड था, जिसको हेविन ही कहा जाता था।
आधाकल्प है राम राज्य, आधाकल्प है रावण राज्य।
रावण राज्य को आसुरी सम्प्रदाय कहेंगे।
कितना कड़ा अक्षर है। आधा कल्प देवताओं का राज्य चलता है।
बाप ने समझाया है लक्ष्मी-नारायण दी फर्स्ट, दी सेकण्ड, दी थर्ड कहा जाता है।
जैसे एडवर्ड फर्स्ट सेकण्ड होता है ना।
पहली पीढ़ी, फिर दूसरी पीढ़ी ऐसे चलती है।
तुम्हारा भी पहले होता है सूर्यवंशी राज्य फिर चन्द्रवंशी।
बाप ने आकर ड्रामा का राज़ भी अच्छी रीति समझाया है।
तुम्हारे शास्त्रों में यह बातें नहीं थी।
कोई-कोई शास्त्रों में थोड़ी लकीरें लगाई हुई हैं परन्तु उस समय जिन्होंने पुस्तक बनाये हैं उन्होंने कुछ समझा नहीं है।
कोई ताकत है जिसने प्रवेश किया...
बाबा भी जब बनारस गये थे उस समय यह दुनिया अच्छी नहीं लगती थी, वहाँ सारी दीवारों पर लकीर बैठ लगाते थे।
बाप यह सब कराते थे परन्तु हम तो उस समय बच्चे थे ना।
पूरा समझ में नहीं आता था।
बस कोई है जो हमसे यह कराता है।
विनाश देखा तो अन्दर में खुशी भी थी।
रात को सोते थे तो भी जैसे उड़ते रहते थे परन्तु कुछ समझ में नहीं आता था।
ऐसे-ऐसे लकीरें खींचते रहते थे।
कोई ताकत है जिसने प्रवेश किया है।
हम वन्डर खाते थे।
पहले तो धन्धा आदि करते थे फिर क्या हुआ, कोई को देखते थे और झट ध्यान में चले जाते थे।
कहता था यह क्या होता है जिसको देखता हूँ उनकी ऑखें बन्द हो जाती हैं।
पूछते थे क्या देखा तो कहते थे वैकुण्ठ देखा, कृष्ण देखा।
यह भी सब समझने की बातें हुई ना इसलिए सब कुछ छोड़कर बनारस चले गये समझने लिए।
सारा दिन बैठा रहता था।
पेंसिल और दीवार और कोई धन्धा ही नहीं।
बेबी थे ना।
तो ऐसे-ऐसे जब देखा तो समझा अब यह कुछ करना नहीं है।
धन्धा आदि छोड़ना पड़ेगा।
खुशी थी यह गदाई छोड़नी है।
रावण राज्य है ना।
रावण पर गधे का शीश दिखाते हैं ना, तो ख्याल हुआ यह राजाई नहीं, गदाई है।
गधा घड़ी-घड़ी मिट्टी में लथेड़ कर धोबी के कपड़े सब खराब कर देता है।
वन्डरफुल स्थापना...
बाप भी कहते हैं तुम क्या थे, अब तुम्हारी क्या अवस्था हो गई है।
यह बाप ही बैठ समझाते हैं और यह दादा भी समझाते हैं।
दोनों का चलता रहता है।
ज्ञान में जो अच्छी रीति समझाते हैं वह तीखे कहेंगे।
नम्बरवार तो हैं ना।
तुम बच्चे भी समझाते हो, यह राजधानी स्थापन हो रही है।
जरूर नम्बरवार पद पायेंगे।
आत्मा ही अपना पार्ट कल्प-कल्प बजाती है।
सब एक समान ज्ञान नहीं उठायेंगे।
यह स्थापना ही वन्डरफुल है।
दूसरे कोई स्थापना का ज्ञान थोड़ेही देते हैं।
समझो सिक्ख धर्म की स्थापना हुई।
शुद्ध आत्मा ने प्रवेश किया, कुछ समय के बाद सिक्ख धर्म की स्थापना हुई।
उन्हों का हेड कौन? गुरुनानक।
उसने आकर जप साहेब बनाया।
पहले तो नई आत्मायें ही होंगी क्योंकि पवित्र आत्मा होती है।
पवित्र को महान् आत्मा कहते हैं।
सुप्रीम तो एक बाप को कहा जाता है।
वह भी धर्म स्थापना करते हैं तो महान् कहेंगे।
परन्तु नम्बरवार पीछे-पीछे आते हैं।
पहले सतोप्रधान होंगे फिर सतो, रजो, तमो में आते हैं...
500 वर्ष पहले एक आत्मा आई, आकर सिक्ख धर्म स्थापन किया, उस समय ग्रंथ कहाँ से आयेगा।
जरूर सुखमनी जप साहेब आदि बाद में बनाये होंगे ना!
क्या शिक्षा देते हैं।
उमंग आता है तो बाप की बैठ महिमा करते हैं।
बाकी यह पुस्तक आदि तो बाद में बनते हैं।
जब बहुत हों। पढ़ने वाले भी चाहिए ना।
सबके शास्त्र पीछे बने होंगे।
जब भक्ति मार्ग शुरू हो तब शास्त्र पढ़े।
ज्ञान चाहिए ना।
पहले सतोप्रधान होंगे फिर सतो, रजो, तमो में आते हैं।
जब बहुत वृद्धि हो तब महिमा हो और शास्त्र आदि बनें।
नहीं तो वृद्धि कौन करे।
फालोअर्स बनें ना।
सिक्ख धर्म की आत्मायें आवें जो आकर फालो करें।
उसमें बहुत टाइम चाहिए।
नई आत्मा जो आती है उनको दु:ख तो हो नहीं सकता।
लॉ नहीं कहता। आत्मा सतोप्रधान से सतो, रजो, तमो में आवे तब दु:ख हो।
लॉ भी है ना!
यहाँ है मिक्सअप, रावण सम्प्रदाय भी है तो राम सम्प्रदाय भी है।
अभी तो सम्पूर्ण बने नहीं हैं।
सम्पूर्ण बनेंगे तो फिर शरीर छोड़ देंगे।
कर्मातीत अवस्था वाले को कोई दु:ख हो न सके।
वह इस छी-छी दुनिया में रह नहीं सकते।
वह चले जायेंगे बाकी जो रहेंगे वह कर्मातीत नहीं बने होंगे।
सब तो एक साथ कर्मातीत हो नहीं सकते।
कोई धर्म की ऐसे वृद्धि नहीं होती...
भल विनाश होता है तो भी कुछ बचेंगे। प्रलय नहीं होती।
गाते भी हैं राम गयो रावण गयो... रावण का बहुत परिवार था।
हमारा परिवार तो थोड़ा है। वह कितने ढेर धर्म हैं।
वास्तव में सबसे बड़ा हमारा परिवार होना चाहिए क्योंकि देवी-देवता धर्म सबसे पहला है।
अभी तो सब मिक्सअप हुए हैं तो क्रिश्चियन बहुत बन गये हैं।
जहाँ मनुष्य सुख देखते हैं, पोजीशन देखते हैं तो उस धर्म के बन जाते हैं।
जब-जब पोप आता है तो बहुत क्रिश्चियन बनते हैं।
फिर वृद्धि भी बहुत होती है।
सतयुग में तो है ही एक बच्चा, एक बच्ची।
और कोई धर्म की ऐसे वृद्धि नहीं होती।
अभी देखो सबसे क्रिश्चियन तीखे हैं।
जो बहुत बच्चे पैदा करते हैं उनको इनाम मिलता है क्योंकि उन्हों को तो मनुष्य चाहिए ना।
जो मिलेट्री लश्कर काम में आयेगा।
हैं तो सब क्रिश्चियन। रशिया, अमेरिका सब क्रिश्चियन हैं, एक कहानी है दो बन्दर लड़े माखन बिल्ला खा गया।
यह भी ड्रामा बना हुआ है।
नई दुनिया में हमारा राज्य होगा...
आगे तो हिन्दू, मुसलमान इकट्ठे रहते थे।
जब अलग हुए तब पाकिस्तान की नई राजाई खड़ी हो गई।
यह भी ड्रामा बना हुआ है।
दो लड़ेंगे तो बारूद लेंगे, धन्धा होगा।
ऊंच ते ऊंच उन्हों का यह धन्धा है। परन्तु ड्रामा में विजय की भावी तुम्हारी है।
100 परसेन्ट सरटेन है, तुम्हें कोई भी जीत नहीं सकते।
बाकी सब खत्म हो जायेंगे।
तुम जानते हो नई दुनिया में हमारा राज्य होगा, जिसके लिए ही तुम पढ़ते हो।
लायक बनते हो।
तुम लायक थे अब न लायक बन पड़े हो फिर लायक बनना है।
गाते भी हैं पतित-पावन आओ।
परन्तु अर्थ थोड़ेही समझते हैं।
यह है ही सारा जंगल।
अब बाप आये हैं, आकर कांटों के जंगल को गॉर्डन ऑफ फ्लावर बनाते हैं।
वह है डीटी वर्ल्ड।
यह है डेविल वर्ल्ड।
सारी मनुष्य सृष्टि का राज़ समझाया है।
बाप तो आकर हथेली पर बहिश्त देते हैं...
तुम अभी समझते हो हम अपने धर्म को भूल धर्म भ्रष्ट हो गये हैं।
तो सब कर्म विकर्म ही होते हैं।
कर्म, विकर्म, अकर्म की गति बाबा तुमको समझाकर गये थे।
तुम समझते हो बरोबर कल हम ऐसे थे फिर आज हम यह बनते हैं।
नज़दीक है ना।
बाबा कहते हैं कल तुमको देवता बनाया था।
राज्य-भाग्य दिया था फिर सब कहाँ किया?
तुमको स्मृति आई है-भक्तिमार्ग में हमने कितना धन गँवाया है।
कल की बात है ना।
बाप तो आकर हथेली पर बहिश्त देते हैं।
यह ज्ञान बुद्धि में रहना चाहिए।
बाबा ने यह भी समझाया है यह आंखें कितना धोखा देती हैं, क्रिमिनल आई को ज्ञान से सिविल बनाना है।
अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) अपनी बेहद की डायरी में चार्ट नोट करना है कि हमने याद में रहकर कितना फायदा बढ़ाया?
घाटा तो नहीं पड़ा?
याद के समय बुद्धि कहाँ-कहाँ गई?
2) इस जन्म में छोटेपन से हमसे कौन-कौन से उल्टे कर्म अथवा पाप हुए हैं,
वह नोट करना है।
जिस बात में दिल खाती है उसे बाप को सुनाकर हल्का हो जाना है।
अब कोई भी पाप का काम नहीं करना है।
वरदान:-
अच्छाई पर प्रभावित होने के बजाए
उसे स्वयं में धारण करने वाले
परमात्म स्नेही भव
अगर परमात्म स्नेही बनना है तो बॉडीकानसेस की रूकावटों को चेक करो।
कई बच्चे कहते हैं यह बहुत अच्छा या अच्छी है इसलिए थोड़ा रहम आता है...कोई का किसी के शरीर से लगाव होता तो कोई का किसी के गुणों वा विशेषताओं से।
लेकिन वह विशेषता वा गुण देने वाला कौन?
कोई अच्छा है तो अच्छाई को धारण भले करो लेकिन अच्छाई में प्रभावित नहीं हो जाओ।
न्यारे और बाप के प्यारे बनो।
ऐसे प्यारे अर्थात् परमात्म स्नेही बच्चे सदा सेफ रहते हैं।
स्लोगन:-
साइलेन्स की शक्ति इमर्ज करो तो सेवा की गति फास्ट हो जायेगी।