गीत:- मुखड़ा देख ले प्राणी...
बच्चों ने गीत सुना, इसका अर्थ भी अन्दर जानना चाहिए कि कितने पाप बचे हुए हैं, कितने पुण्य जमा है अर्थात् आत्मा को सतोप्रधान बनने में कितना समय है?
अभी कितने तक पावन बने हैं-यह समझ तो सकते हैं ना?
चार्ट में कोई लिखते हैं हम दो-तीन घण्टा याद में रहे, कोई लिखते हैं एक घण्टा।
यह तो बहुत कम हुआ।
कम याद करेंगे तो कम पाप कटेंगे। अभी तो पाप बहुत हैं ना, जो कटे नहीं हैं।
आत्मा को ही प्राणी कहा जाता है।
तो अब बाप कहते हैं-हे आत्मा, अपने से पूछो इस हिसाब से कितने पाप कटे होंगे?
चार्ट से मालूम पड़ता है-हम कितना पुण्य आत्मा बने हैं?
यह तो बाप ने समझाया है, कर्मातीत अवस्था अन्त में होगी।
याद करते-करते आदत पड़ जायेगी तो फिर ज्यादा पाप कटने लगेंगे।
अपनी जांच करनी है हम कितना बाप की याद में रहते हैं?
इसमें गप्प मारने की बात नहीं।
यह तो अपनी जाँच करनी होती है।
बाबा को अपना चार्ट लिखकर देंगे तो बाबा झट बतायेंगे कि यह चार्ट ठीक है वा नहीं?
आसामी, चलन, सर्विस और खुशी को देख बाबा झट समझ जाते हैं कि इनका चार्ट कैसा है!
घड़ी-घड़ी याद किनको रहती होगी?
जो म्युज़ियम अथवा प्रदर्शनी की सर्विस में रहते हैं।
म्युज़ियम में तो सारा दिन आना-जाना रहता है।
देहली में तो बहुत आते रहेंगे।
घड़ी-घड़ी बाप का परिचय देना पड़ता है।
समझो किसको तुम कहते हो विनाश में बाकी थोड़े वर्ष हैं।
कहते हैं यह कैसे हो सकता है?
फट से कहना चाहिए, यह कोई हम थोड़ेही बताते हैं।
भगवानुवाच है ना।
भगवानुवाच तो जरूर सत्य ही होगा ना इसलिए बाप समझाते हैं घड़ी-घड़ी बोलो यह शिवबाबा की श्रीमत है।
हम नहीं कहते, श्रीमत उनकी है।
वह है ही ट्रूथ।
पहले-पहले तो बाप का परिचय जरूर देना पड़ता है इसलिए बाबा ने कहा है हर एक चित्र में लिख दो - शिव भगवानुवाच।
वह तो एक्यूरेट ही बतायेंगे, हम थोड़ेही जानते थे।
बाप ने बताया है तब हम कहते हैं।
कभी-कभी अखबार में भी डालते हैं-फलाने ने भविष्य वाणी की है कि विनाश जल्दी होगा।
अब तुम तो हो बेहद बाप के बच्चे।
प्रजापिता ब्रह्माकुमार-कुमारियाँ तो बेहद के हैं ना।
तुम बतायेंगे हम बेहद बाप के बच्चे हैं।
वही पतित-पावन ज्ञान का सागर है।
पहले यह बात समझाकर, पक्का कर फिर आगे बढ़ना चाहिए।
शिवबाबा ने यह कहा है-यादव, कौरव आदि विनाश काले विपरीत बुद्धि।
शिवबाबा का नाम लेते रहेंगे तो इसमें बच्चों का भी कल्याण है, शिवबाबा को ही याद करते रहेंगे।
बाप ने जो तुमको समझाया है, वह तुम फिर औरों को समझाते रहो।
तो सर्विस करने वालों का चार्ट अच्छा रहता होगा।
सारे दिन में 8 घण्टा सर्विस में बिजी रहते हैं।
करके एक घण्टा रेस्ट लेते होंगे।
फिर भी 7 घण्टे तो सर्विस में रहते हैं ना।
तो समझना चाहिए उनके विकर्म बहुत विनाश होते होंगे।
बहुतों को घड़ी-घड़ी बाप का परिचय देते हैं तो जरूर ऐसे सर्विसएबुल बच्चे बाप को भी प्रिय लगेंगे।
बाप देखते हैं यह तो बहुतों का कल्याण करते हैं, रात-दिन इनको यही चिंतन है-हमको बहुतों का कल्याण करना है।
बहुतों का कल्याण करना गोया अपना करते हैं, स्कॉलरशिप भी उनको मिलेगी जो बहुतों का कल्याण करते हैं।
बच्चों को तो यही धंधा है।
टीचर बन बहुतों को रास्ता बताना है।
पहले तो यह नॉलेज पूरी धारण करनी पड़े।
कोई का कल्याण नहीं करते तो समझा जाता है इनकी तकदीर में नहीं है।
बच्चे कहते हैं-बाबा, हमको नौकरी से छुड़ाओ, हम इस सर्विस में लग जायें।
बाबा भी देखेंगे बरोबर यह सर्विस के लायक हैं, बन्धनमुक्त भी हैं, तब कहेंगे भल 500-1000 कमाने से तो इस सर्विस में लग बहुतों का कल्याण करो।
अगर बन्धनमुक्त हैं तो।
सो भी बाबा सर्विसएबुल देखेंगे तो राय देंगे।
सर्विसएबुल बच्चों को तो जहाँ-तहाँ बुलाते रहते हैं।
स्कूल में स्टूडेन्ट पढ़ते हैं ना, यह भी पढ़ाई है।
यह कोई कॉमन मत नहीं है।
सत माना ही सच बोलने वाला।
हम श्रीमत पर आपको यह समझाते हैं।
ईश्वर की मत अभी ही तुमको मिलती है।
बाप कहते हैं तुमको वापिस जाना है।
अब बेहद सुख का वर्सा लो।
कल्प-कल्प तुमको वर्सा मिलता आया है क्योंकि स्वर्ग की स्थापना तो कल्प-कल्प होती है ना।
यह किसको पता नहीं है कि 5 हज़ार वर्ष का यह सृष्टि चक्र है।
मनुष्य तो बिल्कुल ही घोर अन्धियारे में हैं।
तुम अभी घोर रोशनी में हो।
स्वर्ग की स्थापना तो बाप ही करेंगे।
यह तो गायन है भंभोर को आग लग गई तो भी अज्ञान नींद में सोये रहे।
तुम बच्चे जानते हो बेहद का बाप ज्ञान का सागर है।
ऊंच ते ऊंच बाप का कर्तव्य भी ऊंच है।
ऐसे नहीं, ईश्वर तो समर्थ है, जो चाहे सो करे।
नहीं, यह भी ड्रामा अनादि बना हुआ है।
सब कुछ ड्रामा अनुसार ही चलता है।
लड़ाई आदि में कितने मरते हैं।
यह भी ड्रामा में नूंध है।
इसमें भगवान क्या कर सकते हैं।
अर्थक्वेक आदि होती हैं तो कितनी रड़ियाँ मारते हैं-हे भगवान, परन्तु भगवान क्या कर सकते हैं। भगवान को तो तुमने बुलाया है-आकर विनाश करो।
पतित दुनिया में बुलाया है।
स्थापना करके सबका विनाश करो।
मैं करता नहीं हूँ, यह तो ड्रामा में नूंध है।
खूने नाहेक खेल हो जाता है।
इसमें बचाने आदि की तो बात ही नहीं है।
तुमने कहा है-पावन दुनिया बनाओ तो जरूर पतित आत्मायें जायेंगी ना।
कोई तो बिल्कुल समझते नहीं हैं।
श्रीमत का अर्थ भी नहीं समझते हैं, भगवान क्या है, कुछ नहीं समझते।
कोई बच्चा ठीक पढ़ता नहीं है तो माँ-बाप कहते तुम तो पत्थरबुद्धि हो।
सतयुग में तो ऐसे नहीं कहते।
कलियुग में हैं ही पत्थरबुद्धि।
पारसबुद्धि यहाँ कोई हो न सके।
आजकल तो देखो मनुष्य क्या-क्या करते रहते हैं, एक हार्ट निकाल दूसरी डाल देते हैं।
अच्छा, इतनी मेहनत कर यह किया परन्तु इससे फायदा क्या?
करके थोड़े दिन और जीता रहेगा।
बहुत रिद्धि सिद्धि सीखकर आते हैं, फायदा तो कुछ भी नहीं।
भगवान को याद ही इसलिए करते हैं हमको आकर पावन दुनिया का मालिक बनाओ।
हम पतित दुनिया में रह बहुत दु:खी हुए हैं।
सतयुग में तो कोई बीमारी आदि दु:ख की बात होती नहीं।
अभी बाप द्वारा तुम कितना ऊंच पद पाते हो।
यहाँ भी मनुष्य पढ़ाई से ही ऊंच डिग्री पाते हैं।
बड़े खुश रहते हैं। तुम बच्चे समझते हो यह तो बाकी थोड़े रोज़ जियेंगे।
पापों का बोझा तो सिर पर बहुत है।
बहुत सजायें खायेंगे।
अपने को पतित तो कहते हैं ना।
विकार में जाना पाप नहीं समझते।
पाप आत्मा तो बनते हैं ना।
कहते हैं गृहस्थ आश्रम तो अनादि चला आता है।
समझाया जाता है सतयुग-त्रेता में पवित्र गृहस्थ आश्रम था।
पाप आत्मायें नहीं थे।
यहाँ पाप आत्मायें हैं इसलिए दु:खी हैं।
यहाँ तो अल्पकाल का सुख है, बीमार हुआ यह मरा।
मौत तो मुख खोलकर खड़ा है।
अचानक हार्टफेल हो जाते हैं।
यहाँ है ही काग विष्टा समान सुख।
वहाँ तो तुमको अथाह सुख हैं।
तुम सारे विश्व के मालिक बनते हो।
किसी भी प्रकार का दु:ख नहीं होगा।
न गर्मी, न ठण्डी होगी, सदैव बहारी मौसम होगा।
तत्व भी ऑर्डर में रहते हैं।
स्वर्ग तो स्वर्ग ही है, रात-दिन का फ़र्क है।
तुम स्वर्ग की स्थापना करने के लिए ही बाप को बुलाते हो, आकर पावन दुनिया स्थापन करो।
हमको पावन बनाओ।
तो हर एक चित्र पर शिव भगवानुवाच लिखा हुआ हो।
इससे घड़ी-घड़ी शिवबाबा याद आयेगा।
ज्ञान भी देते रहेंगे।
म्युज़ियम अथवा प्रदर्शनी की सर्विस में ज्ञान और योग दोनों इकट्ठे चलते हैं।
याद में रहने से नशा चढ़ेगा।
तुम पावन बन सारे विश्व को पावन बनाते हो।
जब तुम पावन बनते हो तो जरूर सृष्टि भी पावन चाहिए।
पिछाड़ी में कयामत का समय होने के कारण सबका हिसाब-किताब चुक्तू हो जाता है।
तुम्हारे लिए हमको नई सृष्टि का उद्घाटन करना पड़ता है।
फिर ब्रान्चेज खोलते रहते हैं।
पवित्र बनाने के लिए नई दुनिया सतयुग का फाउन्डेशन तो बाप बिगर कोई डाल न सके।
तो ऐसे बाप को याद भी करना चाहिए।
तुम म्युज़ियम आदि का उद्घाटन बड़े आदमियों से कराते हो तो आवाज़ होगा।
मनुष्य समझेंगे यहाँ यह भी आते हैं।
कोई कहते हैं तुम लिखकर दो, हम बोलेंगे।
वह भी राँग हो गया।
अच्छी रीति समझकर बोलें ओरली, तो बहुत अच्छा है।
कोई तो लिखत पढ़कर सुनाते हैं, जिससे एक्यूरेट हो।
तुम बच्चों को तो आरेली समझाना है।
तुम्हारी आत्मा में सारी नॉलेज है ना।
फिर तुम औरों को देते हो।
प्रजा वृद्धि को पाती रहती है।
आदमशुमारी भी बढ़ती जाती है ना।
सब चीज़ बढ़ती रहती है।
झाड़ सारा जड़जड़ीभूत हो गया है।
जो अपने धर्म वाले होंगे वह निकल आयेंगे।
नम्बरवार तो हैं ना।
सब एकरस नहीं पढ़ सकते हैं।
कोई 100 से एक मार्क भी उठाने वाले हैं, थोड़ा भी सुन लिया, एक मार्क मिली तो स्वर्ग में आ जायेंगे।
यह है बेहद की पढ़ाई, जो बेहद का बाप ही पढ़ाते हैं।
जो इस धर्म के होंगे वह निकल आयेंगे।
पहले तो सबको मुक्तिधाम अपने घर जाना है फिर नम्बरवार आते रहेंगे।
कोई तो त्रेता के अन्त तक भी आयेंगे।
भल ब्राह्मण बनते हैं लेकिन सभी ब्राह्मण कोई सतयुग में नहीं आते, त्रेता अन्त तक आयेंगे।
यह समझने की बातें हैं।
बाबा जानते हैं राजधानी स्थापन हो रही है, सब एकरस हो नहीं सकते।
राजाई में तो सब वैराइटी चाहिए।
प्रजा को बाहर वाला कहा जाता है।
बाबा ने समझाया था वहाँ वजीर आदि की दरकार नहीं रहती।
उन्हों को श्रीमत मिली, जिससे यह बनें।
फिर यह थोड़ेही कोई से राय लेंगे।
वजीर आदि कुछ नहीं होते।
फिर जब पतित होते हैं तो एक वजीर, एक राजा-रानी होते हैं।
अभी तो कितने वजीर हैं।
यहाँ तो पंचायती राज्य है ना।
एक की मत न मिले दूसरे से।
एक से दोस्ती रखो, समझाओ, काम कर देंगे।
दूसरा फिर आया, उनको ख्याल में न आया तो और ही काम को बिगाड़ देंगे।
एक की बुद्धि न मिले दूसरे से।
वहाँ तो तुम्हारी सब कामनायें पूरी हो जाती हैं।
तुमने कितना दु:ख उठाया है, इसका नाम ही है दु:खधाम।
भक्ति मार्ग में कितने धक्के खाये हैं।
यह भी ड्रामा।
जब दु:खी हो जाते हैं तब बाप आकर सुख का वर्सा देते हैं।
बाप ने तुम्हारी बुद्धि कितनी खोल दी है।
मनुष्य तो कह देते साहूकारों के लिए स्वर्ग है, गरीब नर्क में हैं।
तुम यथार्थ रीति जानते हो-स्वर्ग किसको कहा जाता है।
सतयुग में थोड़ेही कोई रहमदिल कह बुलायेंगे।
यहाँ बुलाते हैं-रहम करो, लिबरेट करो।
बाप ही सबको शान्तिधाम, सुखधाम ले जाते हैं।
अज्ञान काल में तुम भी कुछ नहीं जानते थे।
जो नम्बरवन तमोप्रधान, वही फिर नम्बरवन सतोप्रधान बनते हैं।
यह अपनी बड़ाई नहीं करते हैं।
बड़ाई तो एक की ही है।
लक्ष्मी-नारायण को भी ऐसा बनाने वाला तो वह है ना।
ऊंच ते ऊंच भगवान।
वह बनाते भी ऊंच हैं।
बाबा जानते हैं, सब तो ऊंच नहीं बनेंगे।
फिर भी पुरूषार्थ करना पड़े।
यहाँ तुम आते ही हो नर से नारायण बनने।
कहते हैं-बाबा, हम तो स्वर्ग की बादशाही लेंगे।
हम सत्य नारायण की सच्ची कथा सुनने आये हैं।
बाबा कहते हैं-अच्छा, तेरे मुख में गुलाब, मेहनत करो।
सब तो लक्ष्मी-नारायण नहीं बनेंगे।
यह राजधानी स्थापन हो रही है।
राजाई घराने में, प्रजा घराने में चाहिए तो बहुत ना।
आश्चर्यवत् सुनन्ती, कथन्ती, फारकती देवन्ती.... फिर वापिस भी आ जाते हैं।
जो बच्चे अपनी कुछ न कुछ उन्नति करते हैं तो चढ़ पड़ते हैं।
सरेन्डर होते ही हैं गरीब।
देह सहित और कोई भी याद न रहे, बड़ी मंजिल है।
अगर सम्बन्ध जुटा हुआ होगा तो वह याद जरूर पड़ेंगे।
बाप को क्या याद पड़ेगा?
सारा दिन बेहद में ही बुद्धि रहती है।
कितनी मेहनत करनी पड़ती है।
बाप कहते हैं मेरे बच्चों में भी उत्तम, मध्यम, कनिष्ट हैं।
दूसरे कोई आते हैं तो भी समझते हैं यह पतित दुनिया के हैं।
फिर भी यज्ञ की सर्विस करते हैं तो रिगार्ड देना पड़ता है।
बाप युक्तिबाज़ तो है ना।
नहीं तो यह टॉवर ऑफ साइलेन्स, होलीएस्ट ऑफ होली टॉवर है, जहाँ होलीएस्ट ऑफ होली बाप सारे विश्व को बैठ होली बनाते हैं।
यहाँ कोई पतित आ न सके।
परन्तु बाप कहते हैं मैं आया ही हूँ सभी पतितों को पावन बनाने, इस खेल में मेरा भी पार्ट है।
अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।