गीत:- तकदीर जगा कर आई हूँ...
ओम् शान्ति।
यह तो तुम बच्चे तकदीर बना रहे हो।
गीता में श्रीकृष्ण का नाम डाल दिया है और कहते हैं भगवानुवाच मैं तुमको राजयोग सिखाता हूँ।
अब कृष्ण भगवानुवाच तो है नहीं।
यह श्रीकृष्ण तो एम ऑब्जेक्ट है फिर शिव भगवानुवाच कि मैं तुमको राजाओं का राजा बनाता हूँ।
तो पहले जरूर प्रिन्स कृष्ण बनेंगे।
बाकी कृष्ण भगवानुवाच नहीं है।
कृष्ण तो तुम बच्चों की एम ऑब्जेक्ट है, यह पाठशाला है।
भगवान पढ़ाते हैं, तुम सब प्रिन्स-प्रिन्सेज बनते हो।
बाप कहते हैं बहुत जन्मों के अन्त के भी अन्त में मैं तुमको यह ज्ञान सुनाता हूँ फिर सो श्रीकृष्ण बनने लिए।
इस पाठशाला का टीचर शिवबाबा है, श्रीकृष्ण नहीं।
शिवबाबा ही दैवी धर्म की स्थापना करते हैं।
तुम बच्चे कहते हो हम आये हैं तकदीर बनाने।
आत्मा जानती है हम परमपिता परमात्मा से अब तकदीर बनाने आये हैं।
यह है प्रिन्स-प्रिन्सेज बनने की तकदीर।
राजयोग है ना।
शिवबाबा द्वारा पहले-पहले स्वर्ग के दो पत्ते राधे-कृष्ण निकलते हैं।
यह जो चित्र बनाया है, यह ठीक है, समझाने के लिए अच्छा है।
गीता के ज्ञान से ही तकदीर बनती है।
तकदीर जगी थी सो फिर फूट गई।
बहुत जन्मों के अन्त में तुम एकदम तमोप्रधान बेगर बन गये हो।
अब फिर प्रिन्स बनना है।
पहले तो जरूर राधे-कृष्ण ही बनेंगे फिर उन्हों की भी राजधानी चलती है।
सिर्फ एक तो नहीं होगा ना।
स्वयंवर बाद राधे-कृष्ण सो फिर लक्ष्मी-नारायण बनते हैं।
नर से प्रिन्स वा नारायण बनना एक ही बात है।
तुम बच्चे जानते हो यह लक्ष्मी-नारायण स्वर्ग के मालिक थे।
जरूर संगम पर ही स्थापना हुई होगी इसलिए संगमयुग को पुरूषोत्तम युग कहा जाता है।
आदि सनातन देवी-देवता धर्म की स्थापना होती है, बाकी और सब धर्म विनाश हो जायेंगे।
सतयुग में बरोबर एक ही धर्म था।
वह हिस्ट्री-जॉग्राफी जरूर फिर से रिपीट होनी है।
फिर से स्वर्ग की स्थापना होगी।
जिसमें लक्ष्मी-नारायण का राज्य था, परिस्तान था, अभी तो कब्रिस्तान है।
सब काम चिता पर बैठ भस्म हो जायेंगे।
सतयुग में तुम महल आदि बनायेंगे।
ऐसे नहीं कि नीचे से कोई सोने की द्वारिका वा लंका निकल आयेगी।
द्वारिका हो सकती है, लंका तो नहीं होगी।
गोल्डन एज़ कहा जाता है राम राज्य को।
सच्चा सोना जो था वो सब लूट गया।
तुम समझाते हो भारत कितना धनवान था।
अभी तो कंगाल है।
कंगाल अक्षर लिखना कोई बुरी बात नहीं है।
तुम समझा सकते हो सतयुग में एक ही धर्म था।
वहाँ और कोई धर्म हो नहीं सकता।
कई कहते हैं यह कैसे हो सकता, क्या सिर्फ देवतायें ही होंगे?
अनेक मत-मतान्तर हैं, एक न मिले दूसरे से।
कितना वन्डर है।
कितने एक्टर्स हैं।
अभी स्वर्ग की स्थापना हो रही है, हम स्वर्गवासी बनते हैं यह याद रहे तो सदा हर्षितमुख रहेंगे।
तुम बच्चों को बहुत खुशी रहनी चाहिए।
तुम्हारी एम ऑब्जेक्ट तो ऊंच है ना।
हम मनुष्य से देवता, स्वर्गवासी बनते हैं।
यह भी तुम ब्राह्मण ही जानते हो कि स्वर्ग की स्थापना हो रही है।
यह भी सदैव याद रहना चाहिए।
परन्तु माया घड़ी-घड़ी भुला देती है।
तकदीर में नहीं है तो सुधरते नहीं।
झूठ बोलने की आदत आधाकल्प से पड़ी हुई है, वह निकलती नहीं।
झूठ को भी खजाना समझ रखते हैं, छोड़ते ही नहीं तो समझा जाता है इनकी तकदीर ऐसी है।
बाप को याद नहीं करते।
याद भी तब रहे जब पूरा ममत्व निकल जाये।
सारी दुनिया से वैराग्य।
मित्र-सम्बन्धियों आदि को देखते हुए जैसेकि देखते ही नहीं।
जानते हैं यह सब नर्कवासी, कब्रिस्तानी हैं।
यह सब खत्म हो जाने हैं।
अब हमको वापिस घर जाना है इसलिए सुखधाम-शान्तिधाम को ही याद करते हैं।
हम कल स्वर्गवासी थे, राज्य करते थे, वह गंवा दिया है फिर हम राज्य लेते हैं।
बच्चे समझते हैं भक्ति मार्ग में कितना माथा टेकना, पैसे बरबाद करना होता है।
चिल्लाते ही रहते, मिलता कुछ भी नहीं।
आत्मा पुकारती है-बाबा आओ, सुखधाम ले चलो सो भी जब अन्त में बहुत दु:ख होता है तब याद करते हैं।
तुम देखते हो अभी यह पुरानी दुनिया खत्म होनी है।
अभी हमारा यह अन्तिम जन्म है, इसमें हमको सारी नॉलेज मिली है।
नॉलेज पूरी धारण करनी है।
अर्थक्वेक आदि अचानक होती है ना।
हिन्दुस्तान, पाकिस्तान के पार्टीशन में कितने मरे होंगे।
तुम बच्चों को शुरू से लेकर अन्त तक सब मालूम पड़ा है।
बाकी जो रहा हुआ होगा वह भी मालूम पड़ता जायेगा।
सिर्फ एक सोमनाथ का मन्दिर सोने का नहीं होगा, और भी बहुतों के महल, मन्दिर आदि होंगे सोने के।
फिर क्या होता है, कहाँ गुम हो जाते हैं?
क्या अर्थक्वेक में ऐसे अन्दर चले जाते हैं जो निकलते ही नहीं?
अन्दर सड़ जाते हैं... क्या होता है?
आगे चल तुमको पता पड़ जायेगा।
कहते हैं सोने की द्वारिका चली गई।
अभी तुम कहेंगे ड्रामा में वह नीचे चली गई फिर चक्र फिरेगा तो ऊपर आयेगी।
सो भी फिर से बनानी होगी।
यह चक्र बुद्धि में सिमरण करते बड़ी खुशी रहनी चाहिए।
यह चित्र तो पॉकेट में रख देना चाहिए।
यह बैज बहुत सर्विस लायक है।
परन्तु इतनी सर्विस कोई करते नहीं हैं।
तुम बच्चे ट्रेन में भी बहुत सर्विस कर सकते हो परन्तु कोई भी कभी समाचार लिखते नहीं हैं कि ट्रेन में क्या सर्विस की?
थर्ड क्लास में भी सर्विस हो सकती है।
जिन्होंने कल्प पहले समझा है, जो मनुष्य से देवता बने हैं वही समझेंगे।
मनुष्य से देवता गाया जाता है।
ऐसे नहीं कहेंगे कि मनुष्य से क्रिश्चियन वा मनुष्य से सिक्ख।
नहीं, मनुष्य से देवता बने अर्थात् आदि सनातन देवी-देवता धर्म की स्थापना हुई।
बाकी सब अपने-अपने धर्म में चले गये।
झाड़ में दिखाया जाता है फलाने-फलाने धर्म फिर कब स्थापन होंगे?
देवतायें हिन्दू बन गये। हिन्दू से फिर और-और धर्म में कनवर्ट हो गये।
वह भी बहुत निकलेंगे जो अपने श्रेष्ठ धर्म-कर्म को छोड़ दूसरे धर्मों में जाकर पड़े हैं, वह निकल आयेंगे।
पीछे थोड़ा समझेंगे, प्रजा में आ जायेंगे।
देवी-देवता धर्म में सब थोड़ेही आयेंगे।
सब अपने-अपने सेक्शन में चले जायेंगे।
तुम्हारी बुद्धि में यह सब बातें हैं।
दुनिया में क्या-क्या करते रहते हैं।
अनाज के लिए कितना प्रबन्ध रखते हैं।
बड़ी-बड़ी मशीनें लगाते हैं।
होता कुछ भी नहीं है।
सृष्टि को तमोप्रधान बनना ही है।
सीढ़ी नीचे उतरनी ही है।
ड्रामा में जो नूंध है वह होता रहता है।
फिर नई दुनिया की स्थापना होनी ही है।
साइंस जो अभी सीख रहे हैं, थोड़े वर्ष में बहुत होशियार हो जायेंगे।
जिससे फिर वहाँ बहुत अच्छी-अच्छी चीजें बनेंगी।
यह साइंस वहाँ सुख देने वाली होगी।
यहाँ सुख तो थोड़ा है, दु:ख बहुत है।
इस साइंस को निकले कितने वर्ष हुए हैं?
आगे तो यह बिजली, गैस आदि कुछ नहीं था।
अभी तो देखो क्या हो गया है।
वहाँ तो फिर सीखे सिखाये चलेंगे।
जल्दी-जल्दी काम होता जायेगा।
यहाँ भी देखो मकान कैसे बनते हैं।
सब कुछ रेडी रहता है।
कितनी मंजिल बनाते हैं।
वहाँ ऐसे नहीं होगा।
वहाँ तो सबको अपनी-अपनी खेती होती है।
टैक्स आदि कुछ नहीं पड़ेगा।
वहाँ तो अथाह धन होता है।
जमीन भी ढेर होती है।
नदियाँ तो सब होंगी, बाकी नाले नहीं होंगे जो बाद में खोदे जाते हैं।
बच्चों को अन्दर में कितनी खुशी रहनी चाहिए हमको डबल इंजन मिली हुई है।
पहाड़ी पर ट्रेन को डबल इंजन मिलती है।
तुम बच्चे भी अंगुली देते हो ना।
तुम हो कितने थोड़े।
तुम्हारी महिमा भी गाई हुई है।
तुम जानते हो हम खुदाई खिदमतगार हैं।
श्रीमत पर खिदमत (सेवा) कर रहे हैं।
बाबा भी खिदमत करने आये हैं।
एक धर्म की स्थापना, अनेक धर्मों का विनाश करा देते हैं, थोड़ा आगे चलकर देखेंगे, बहुत हंगामें होंगे।
अभी भी डर रहे हैं-कहाँ लड़कर बाम्ब्स न चला दें।
चिन्गारी तो बहुत लगती रहती है।
घड़ी-घड़ी आपस में लड़ते रहते हैं।
बच्चे जानते हैं पुरानी दुनिया खत्म होनी ही है।
फिर हम अपने घर चले जायेंगे।
अभी 84 का चक्र पूरा हुआ है।
सब इकट्ठे चले जायेंगे।
तुम्हारे में भी थोड़े हैं जिनको घड़ी-घड़ी याद रहती है।
ड्रामा अनुसार चुस्त और सुस्त दोनों ही प्रकार के स्टूडेन्ट हैं।
चुस्त स्टूडेन्ट्स अच्छी मार्क्स से पास हो जाते हैं।
सुस्त जो होगा उनका तो सारा दिन लड़ना-झगड़ना ही होता रहता है।
बाप को याद नहीं करते।
सारा दिन मित्र-सम्बन्धी ही बहुत याद आते रहते हैं।
यहाँ तो सब कुछ भूल जाना होता है।
हम आत्मा हैं, यह शरीर रूपी दुम लटका हुआ है।
हम कर्मातीत अवस्था को पा लेंगे फिर यह दुम छूट जायेगा।
यही फिक्र है, कर्मातीत अवस्था हो जाये तो यह शरीर खत्म हो जाये।
हम श्याम से सुन्दर बन जायें।
मेहनत तो करनी है ना।
प्रदर्शनी में भी देखो कितनी मेहनत करते हैं।
महेन्द्र (भोपाल) ने कितनी हिम्मत दिखाई है।
अकेला कितनी मेहनत से प्रदर्शनी आदि करते हैं।
मेहनत का फल भी तो मिलेगा ना।
एक ने कितनी कमाल की है।
कितनों का कल्याण किया है।
मित्र-सम्बन्धियों आदि की मदद से ही कितना काम किया है।
कमाल है!
मित्र-सम्बन्धियों को समझाते हैं यह पैसे आदि सब इस कार्य में लगाओ, रखकर क्या करेंगे?
सेन्टर भी खोला है हिम्मत से।
कितनों का भाग्य बनाया है।
ऐसे 5-7 निकलें तो कितनी सर्विस हो जाये।
कोई-कोई तो बहुत मनहूस होते हैं।
फिर समझा जाता तकदीर में नहीं है।
समझते नहीं विनाश सामने खड़ा है, कुछ तो कर लें।
अभी मनुष्य जो दान करेंगे ईश्वर अर्थ, कुछ भी मिलेगा नहीं।
ईश्वर तो अभी आया है स्वर्ग की राजाई देने।
दान-पुण्य करने वालों को कुछ भी मिलेगा नहीं।
संगम पर जिन्होंने अपना तन-मन-धन सब सफल किया है वा कर रहे हैं, वह हैं तकदीरवान।
परन्तु तकदीर में नहीं है तो समझते ही नहीं।
तुम जानते हो वह भी ब्राह्मण हैं, हम भी ब्राह्मण हैं।
हम हैं प्रजापिता ब्रह्माकुमार-कुमारियाँ।
इतने ढेर ब्राह्मण, वह हैं कुख वंशावली।
तुम हो मुख वंशावली। शिव-जयन्ती संगम पर होती है।
अब स्वर्ग बनाने लिए बाप मंत्र देते हैं मन्मनाभव।
मुझे याद करो तो तुम पवित्र बन पवित्र दुनिया का मालिक बन जायेंगे।
ऐसे युक्ति से पर्चे छपाने चाहिए।
दुनिया में मरते तो बहुत हैं ना।
जहाँ भी कोई मरे तो वहाँ पर्चे बांटने चाहिए।
बाप जब आते हैं तब ही पुरानी दुनिया का विनाश होता है और उसके बाद स्वर्ग के द्वार खुलते हैं।
अगर कोई सुखधाम चलना चाहे तो यह मंत्र है मन्मनाभव।
ऐसा रसीला छपा हुआ पर्चा सबके पास हो।
शमशान में भी बांट सकते हैं।
बच्चों को सर्विस का शौक चाहिए।
सर्विस की युक्तियाँ तो बहुत बतलाते हैं।
यह तो अच्छी रीति लिख देना चाहिए।
एम ऑब्जेक्ट तो लिखा हुआ है।
समझाने की बड़ी अच्छी युक्ति चाहिए।
अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।