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Baba's Murlis - March, 2020
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04-03-2020 प्रात:मुरली बापदादा मधुबन

“ मीठे बच्चे - इस समय तुम्हारी यह जीवन बहुत - बहुत अमूल्य है क्योंकि

तुम हद से निकल बेहद में आये हो ,

तुम जानते हो हम इस जगत का कल्याण करने वाले हैं ''

प्रश्नः-

बाप के वर्से का अधिकार किस पुरूषार्थ से प्राप्त होता है?

उत्तर:-

सदा भाई-भाई की दृष्टि रहे।

स्त्री-पुरुष का जो भान है वह निकल जाए, तब बाप के वर्से का पूरा अधिकार प्राप्त हो।

परन्तु स्त्री-पुरूष का भान वा यह दृष्टि निकलना बड़ा मुश्किल है।

इसके लिए देही-अभिमानी बनने का अभ्यास चाहिए।

जब बाप के बच्चे बनेंगे तब वर्सा मिलेगा।

एक बाप की याद से सतोप्रधान बनने वाले ही मुक्ति-जीवनमुक्ति का वर्सा पाते हैं।

गीत:- आखिर वह दिन आया आज ...

ओम् शान्ति।

बच्चे यह जानते हैं ओम् माना अहम् आत्मा मम शरीर।

अभी तुम इस ड्रामा को, सृष्टि चक्र को और इस सृष्टि चक्र के जानने वाले बाप को जान गये हो क्योंकि चक्र को जानने वाले को रचता ही कहेंगे।

रचता और रचना को और कोई भी नहीं जानते हैं।

भल पढ़े-लिखे बड़े-बड़े विद्वान-पण्डित आदि हैं।

उन्हें अपना घमण्ड तो रहता है ना।

परन्तु उनको यह पता नहीं है, कहते भी हैं ज्ञान, भक्ति और वैराग्य।

अब यह 3 चीजें हो जाती हैं, इनका भी अर्थ नहीं समझते।

सन्यासियों को वैराग्य आता है घर से।

उन्हों को भी ऊंच और नींच की ईर्ष्या रहती है।

यह ऊंच कुल का है, यह मध्यम कुल का है-इस पर उन्हों का बहुत चलता है।

कुम्भ के मेले में भी उन्हों का बहुत झगड़ा हो पड़ता है कि पहले किसकी सवारी चले।

इस पर बहुत लड़ते हैं फिर पुलिस आकर छुड़ाती है।

तो यह भी देह-अभिमान हुआ ना।

दुनिया में जो भी मनुष्य मात्र हैं, सब हैं देह-अभिमानी।

तुमको तो अब देही-अभिमानी बनना है।

बाप कहते हैं देह-अभिमान छोड़ो, अपने को आत्मा समझो।

आत्मा ही पतित बनी है, उसमें खाद पड़ी है।

आत्मा ही सतोप्रधान, तमोप्रधान बनती है।

जैसी आत्मा वैसा शरीर मिलता है।

कृष्ण की आत्मा सुन्दर है तो शरीर भी बहुत सुन्दर होता है, उनके शरीर में बहुत कशिश होती है।

पवित्र आत्मा ही कशिश करती है।

लक्ष्मी-नारायण की इतनी महिमा नहीं है, जैसे कृष्ण की है क्योंकि कृष्ण तो पवित्र छोटा बच्चा है।

यहाँ भी कहते हैं छोटा बच्चा और महात्मा एक समान है।

महात्मायें तो फिर भी जीवन का अनुभव कर फिर विकारों को छोड़ते हैं।

घृणा आती है, बच्चा तो है ही पवित्र।

उनको ऊंच महात्मा समझते हैं।

तो बाप ने समझाया है यह निवृत्ति मार्ग वाले सन्यासी भी कुछ थमाते ह

ैं। जैसे मकान आधा पुराना होता है तो फिर मरम्मत की जाती है। सन्यासी भी मरम्मत करते हैं, पवित्र होने से भारत थमा रहता है। भारत जैसा पवित्र और धनवान खण्ड और कोई हो नहीं सकता। अब बाप तुमको रचता और रचना के आदि-मध्य-अन्त की स्मृति दिलाते हैं क्योंकि यह बाप भी है, टीचर भी है, गुरू भी है। गीता में कृष्ण भगवानुवाच लिख दिया है, उनको कभी बाबा कहेंगे क्या! अथवा पतित-पावन कहेंगे क्या! जब मनुष्य पतित-पावन कहते हैं तो कृष्ण को याद नहीं करते वह तो भगवान को याद करते हैं, फिर कह देते पतित-पावन सीताराम, रघुपति राघव राजा राम। कितना मुँझारा है। बाप कहते हैं मैं तुम बच्चों को आकर यथार्थ रीति सभी वेदों-शास्त्रों आदि का सार बताता हूँ।

पहली-पहली मुख्य बात समझाते हैं कि तुम अपने को आत्मा समझो और बाप को याद करो तो तुम पावन बनेंगे।

तुम हो भाई-भाई, फिर ब्रह्मा की सन्तान कुमार-कुमारियाँ तो भाई-बहन हो गये।

यह बुद्धि में याद रहे।

असुल में आत्मायें भाई-भाई हैं, फिर यहाँ शरीर में आने से भाई-बहन हो जाते हैं।

इतनी भी बुद्धि नहीं है समझने की।

वह हम आत्माओं का फादर है तो हम ब्रदर्स ठहरे ना।

फिर सर्वव्यापी कैसे कहते हैं।

वर्सा तो बच्चे को ही मिलेगा, फादर को तो नहीं मिलता।

बाप से बच्चे को वर्सा मिलता है।

ब्रह्मा भी शिवबाबा का बच्चा है ना, इनको भी वर्सा उनसे मिलता है।

तुम हो जाते पोत्रे-पोत्रियाँ।

तुमको भी हक है।

तो आत्मा के रूप में सब बच्चे हो फिर शरीर में आते हो तो भाई-बहन कहते हो।

और कोई नाता नहीं।

सदा भाई-भाई की दृष्टि रहे, स्त्री-पुरूष का भान भी निकल जाए।

जब मेल-फीमेल दोनों ही कहते हो ओ गॉड फादर तो भाई-बहन हुए ना।

भाई-बहन तब होते हैं जब बाप संगम पर आकर रचना रचते हैं।

परन्तु स्त्री-पुरूष की दृष्टि बड़ा मुश्किल निकलती है।

बाप कहते हैं तुमको देही-अभिमानी बनना है।

बाप के बच्चे बनेंगे तब ही वर्सा मिलेगा।

मामेकम् याद करो तो सतोप्रधान बनेंगे।

सतोप्रधान बनने बिगर तुम वापिस मुक्ति-जीवनमुक्ति में जा नहीं सकेंगे।

यह युक्ति सन्यासी आदि कभी नहीं बतायेंगे।

वह ऐसे कभी कहेंगे नहीं कि अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो।

बाप को कहा जाता है परमपिता परम आत्मा, सुप्रीम।

आत्मा तो सबको कहा जाता है परन्तु उनको परम आत्मा कहा जाता है।

वह बाप कहते हैं-बच्चों, मैं आया हूँ तुम बच्चों के पास।

हमको बोलने के लिए मुख तो चाहिए ना।

आजकल देखो जहाँ-तहाँ गऊ-मुख जरूर रखते हैं

। फिर कहते हैं गऊ-मुख से अमृत निकलता है।

वास्तव में अमृत तो कहा जाता है ज्ञान को।

ज्ञान अमृत मुख से ही निकलता है।

पानी की तो इसमें बात नहीं।

यह गऊ माता भी है।

बाबा इनमें प्रवेश हुआ है।

बाप ने इन द्वारा तुमको अपना बनाया है।

इनसे ज्ञान निकलता है।

उन्होंने तो पत्थर का बनाकर उसमें मुख बना दिया है, जहाँ से पानी निकलता है।

वह तो भक्ति की रस्म हो गई ना।

यथार्थ बातें तुम जानते हो।

भीष्म पितामह आदि को तुम कुमारियों ने बाण लगाये हैं।

तुम तो ब्रह्माकुमार-कुमारियाँ हो।

तो कुमारी किसकी होगी ना।

अधरकुमारी और कुमारी दोनों के मन्दिर हैं।

प्रैक्टिकल में तुम्हारा यादगार मन्दिर है ना।

अब बाप बैठ समझाते हैं तुम जबकि ब्रह्माकुमार-कुमारियाँ हो तो क्रिमिनल एसाल्ट हो न सके।

नहीं तो बहुत कड़ी सज़ा हो जाए।

देह-अभिमान में आने से यह भूल जाता है कि हम भाई-बहन हैं।

यह भी बी.के. हैं, हम भी बी.के.हैं तो विकार की दृष्टि जा न सके।

परन्तु आसुरी सम्प्रदाय के मनुष्य विकार के बिगर रह नहीं सकते तो विघ्न डालते हैं।

अभी तुम ब्रह्माकुमार-कुमारियों को बाप से वर्सा मिलता है।

बाप की श्रीमत पर चलना है, पवित्र बनना है।

यह है इस विकारी मृत्युलोक का अन्तिम जन्म।

यह भी कोई जानते नहीं।

अमरलोक में विकार कोई होते नहीं।

उन्हों को कहा ही जाता है सतोप्रधान सम्पूर्ण निर्विकारी।

यहाँ हैं तमोप्रधान सम्पूर्ण विकारी।

गाते भी हैं वह सम्पूर्ण निर्विकारी, हम विकारी, पापी हैं।

सम्पूर्ण निर्विकारियों की पूजा करते हैं।

बाप ने समझाया है तुम भारतवासी ही पूज्य सो फिर पुजारी बनते हो।

इस समय भक्ति का प्रभाव बहुत है।

भक्त भगवान को याद करते हैं कि आकर भक्ति का फल दो।

भक्ति में क्या हाल हो गया है।

बाप ने समझाया है मुख्य धर्म शास्त्र 4 हैं।

एक तो है डिटीज्म, इसमें ब्राह्मण देवता क्षत्रिय तीनों ही आ जाते हैं।

बाप ब्राह्मण धर्म स्थापन करते हैं।

ब्राह्मणों की चोटी है संगमयुग की।

तुम ब्राह्मण अभी पुरूषोत्तम बन रहे हो।

ब्राह्मण बने फिर देवता बनते हो। वह ब्राह्मण भी हैं विकारी।

वह भी इन ब्राह्मणों के आगे नमस्ते करते हैं।

ब्राह्मण देवी-देवता नम: कहते हैं क्योंकि समझते हैं वह ब्रह्मा की सन्तान थे, हम तो ब्रह्मा की सन्तान नहीं हैं।

अभी तुम ब्रह्मा की सन्तान हो।

तुमको सब नम: करेंगे।

तुम फिर देवी-देवता बनते हो।

अभी तुम ब्रह्माकुमार-कुमारियाँ बने हो फिर बनेंगे दैवी कुमार-कुमारियाँ।

इस समय तुम्हारी यह जीवन बहुत-बहुत अमूल्य है क्योंकि तुम जगत की मातायें गाई हुई हो। तुम हद से निकल बेहद में आये हो।

तुम जानते हो हम इस जगत का कल्याण करने वाले हैं।

तो हर एक जगत अम्बा जगतपिता ठहरे।

इस नर्क में मनुष्य बड़े दु:खी हैं, हम उनकी रूहानी सेवा करने आये हैं।

हम उन्हों को स्वर्गवासी बनाकर ही छोड़ेंगे। तुम हो सेना।

इनको युद्ध-स्थल भी कहा जाता है।

यादव, कौरव और पाण्डव इकट्ठे रहते हैं।

भाई-भाई हैं ना।

अब तुम्हारी युद्ध भाई-बहनों से नहीं, तुम्हारी युद्ध है रावण से।

भाई-बहिनों को तुम समझाते हो, मनुष्य से देवता बनाने लिए।

तो बाप समझाते हैं देह सहित देह के सब सम्बन्ध छोड़ने हैं।

यह है पुरानी दुनिया।

कितने बड़े-बड़े डेम, केनाल्स आदि बनाते हैं, क्योंकि पानी नहीं है।

प्रजा बहुत बढ़ गई है। वहाँ तो तुम रहते ही बहुत थोड़े हो।

नदियों में पानी भी ढेर रहता है, अनाज भी बहुत होता है। यहाँ तो इस धरती पर करोड़ों मनुष्य हैं।

वहाँ सारी धरनी पर शुरू में 9-10 लाख होते हैं, और कोई खण्ड होता ही नहीं।

तुम थोड़े से ही वहाँ रहते हो।

तुमको कहाँ जाने की भी दरकार नहीं रहती।

वहाँ है ही बहारी मौसम।

5 तत्व भी कोई तकलीफ नहीं देते हैं, ऑर्डर में रहते हैं।

दु:ख का नाम नहीं। वह है ही बहिश्त।

अभी है दोज़क।

यह शुरू होता है बीच से। देवतायें वाम मार्ग में गिरते हैं तो फिर रावण का राज्य शुरू हो जाता है।

तुम समझ गये हो-हम डबल सिरताज पूज्य बनते हैं फिर सिंगल ताज वाले बनते हैं।

सतयुग में पवित्रता की भी निशानी है।

देवतायें तो सब हैं पवित्र।

यहाँ पवित्र कोई है नहीं।

जन्म तो फिर भी विकार से लेते हैं ना इसलिए इसे भ्रष्टाचारी दुनिया कहा जाता है।

सतयुग है श्रेष्ठाचारी।

विकार को ही भ्रष्टाचार कहा जाता है।

बच्चे जानते हैं सतयुग में पवित्र प्रवृत्ति मार्ग था, अब अपवित्र हो गये हैं।

अब फिर पवित्र श्रेष्ठाचारी दुनिया बनती है।

सृष्टि का चक्र फिरता है ना।

परमपिता परमात्मा को ही पतित-पावन कहा जाता है।

मनुष्य कह देते हैं भगवान प्रेरणा करता है, अब प्रेरणा माना विचार, इसमें प्रेरणा की तो बात ही नहीं।

वह खुद कहते हैं हमको शरीर का आधार लेना पड़ता है।

मैं बिगर मुख के शिक्षा कैसे दूँ।

प्रेरणा से कोई शिक्षा दी जाती है क्या!

भगवान प्रेरणा से कुछ भी नहीं करते हैं।

बाप तो बच्चों को पढ़ाते हैं।

प्रेरणा से पढ़ाई थोड़ेही हो सकती।

सिवाए बाप के सृष्टि के आदि, मध्य, अन्त का राज़ कोई भी बता न सके।

बाप को ही नहीं जानते हैं।

कोई कहते लिंग है, कोई कहते अखण्ड ज्योति है।

कोई कहते ब्रह्म ही ईश्वर है। तत्व ज्ञानी ब्रह्म ज्ञानी भी हैं ना।

शास्त्रों में दिखा दिया है 84 लाख योनियाँ।

अब अगर 84 लाख जन्म होते तो कल्प बहुत बड़ा चाहिए।

कोई हिसाब ही निकाल न सके।

वह तो सतयुग को ही लाखों वर्ष कह देते हैं।

बाप कहते हैं सारा सृष्टि चक्र ही 5 हज़ार वर्ष का है।

84 लाख जन्मों के लिए तो टाइम भी इतना चाहिए ना।

यह शास्त्र सब हैं भक्ति मार्ग के।

बाप कहते हैं मैं आकर तुमको इन सब शास्त्रों का सार समझाता हूँ।

यह सब भक्ति मार्ग की सामग्री है, इनसे कोई भी मेरे को प्राप्त नहीं करते।

मैं जब आता हूँ तब ही सबको ले जाता हूँ।

मुझे बुलाते ही हैं-हे पतित-पावन आओ।

पावन बनाकर हमको पावन दुनिया में ले चलो।

फिर ढूँढने के लिए धक्के क्यों खाते हो?

कितना दूर-दूर पहाड़ों आदि पर जाते हैं।

आजकल तो कितने मन्दिर खाली पड़े हैं, कोई जाता नहीं है।

अभी तुम बच्चे ऊंच ते ऊंच बाप की बायोग्रॉफी को भी जान गये हो।

बाप बच्चों को सब कुछ देकर फिर 60 वर्ष बाद वानप्रस्थ में बैठ जाते हैं।

यह रस्म भी अब की है, त्योहार भी सब इस समय के हैं।

तुम जानते हो अभी हम संगम पर खड़े हैं।

रात के बाद फिर दिन होगा। अब तो घोर अन्धियारा है।

गाते भी है ज्ञान सूर्य प्रगटा....... तुम बाप को और रचना के आदि-मध्य-अन्त को अब जानते हो।

जैसे बाप नॉलेजफुल है, तुम भी मास्टर नॉलेजफुल हो गये।

तुम बच्चों को बाप से वर्सा मिलता है बेहद के सुख का।

लौकिक बाप से तो हद का वर्सा मिलता है, जिससे अल्पकाल का सुख मिलता है।

जिनको सन्यासी काग विष्टा समान सुख कह देते हैं।

वह फिर यहाँ आकर सुख के लिए पुरूषार्थ कर न सके।

वह हैं ही हठयोगी, तुम हो राजयोगी।

तुम्हारा योग है बाप के साथ, उन्हों का है तत्व के साथ।

यह भी ड्रामा बना हुआ है।

अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1) पावन बनने के लिए हम आत्मा भाई-भाई हैं, फिर ब्रह्मा बाप की सन्तान भाई-बहन हैं, यह दृष्टि पक्की करनी है।

आत्मा और शरीर दोनों को ही पावन सतोप्रधान बनाना है।

देह-अभिमान छोड़ देना है।

2) मास्टर नॉलेजफुल बन सभी को रचता और रचना का ज्ञान सुनाकर घोर अन्धियारे से निकालना है।

नर्कवासी मनुष्यों की रूहानी सेवा कर स्वर्गवासी बनाना है।

वरदान:-

एक बाप दूसरा न कोई -

इस दृढ़ संकल्प द्वारा

अविनाशी , अमर भव

जो बच्चे यह दृढ़ संकल्प करते हैं कि एक बाप दूसरा न कोई.....उनकी स्थिति स्वत: और सहज एकरस हो जाती है।

इसी दृढ़ संकल्प से सर्व सम्बन्धों की अविनाशी तार जुड़ जाती है और उन्हें सदा अविनाशी भव, अमर भव का वरदान मिल जाता है।

दृढ़ संकल्प करने से पुरूषार्थ में भी विशेष रूप से लिफ्ट मिलती है।

जिनके एक बाप से सर्व सम्बन्ध हैं उन्हें सर्व प्राप्तियां स्वत: हो जाती हैं।

स्लोगन:-

सोचना-बोलना और करना तीनों को एक समान बनाओ-तब कहेंगे सर्वोत्तम पुरूषार्थी।