कॉलेज अथवा युनिवर्सिटी होती है तो टीचर भी स्टूडेन्ट तरफ देखते हैं।
गुलाब का फूल कहाँ है, फ्रन्ट में कौन बैठे हुए हैं?
यह भी बगीचा है परन्तु नम्बरवार तो हैं ही।
यहाँ ही गुलाब का फूल देखता हूँ फिर बाजू में रत्न ज्योति।
कहाँ अक भी देखता हूँ।
बागवान को तो देखना पड़े ना।
उस बागवान को ही बुलाते हैं कि आकर इस कांटों के जंगल को खत्म कर फूलों का कलम लगाओ।
तुम बच्चे प्रैक्टिकल में जानते हो कैसे कांटों से फूलों का सैपलिंग लगता है।
तुम्हारे में भी बहुत थोड़े हैं जो इन बातों का चिंतन करते हैं।
यह भी तुम बच्चे जानते हो-वह बागवान भी है, खिवैया भी है, सबको ले जाते हैं।
फूलों को देख बाप भी खुश होते हैं।
हर एक समझते हैं हम कांटों से फूल बन रहे हैं।
नॉलेज देखो कितनी ऊंची है।
इस समझने में भी बहुत बड़ी बुद्धि चाहिए।
यह हैं ही कलियुगी नर्कवासी।
तुम स्वर्गवासी बन रहे हो।
सन्यासी लोग तो घरबार छोड़ भाग जाते हैं।
तुमको भागना नहीं है।
किसी-किसी घर में एक कांटा है तो एक फूल है।
बाबा से कोई पूछते हैं-बाबा, बच्चे की शादी करायें?
बाबा कहेंगे भल कराओ।
घर में रखो, सम्भाल करो।
पूछते हैं इससे ही समझा जाता है-हिम्मत नहीं है।
तो बाबा भी कह देते हैं भल करो।
कहते हैं हम तो बीमार रहते हैं फिर बहू आयेगी, उनके हाथ का खाना पड़ेगा।
बाबा कहेगा भल खाओ।
ना करेंगे क्या!
सरकमस्टांश ऐसे हैं खाना ही पड़े क्योंकि मोह भी तो है ना।
घर में बहू आई तो बात मत पूछो जैसेकि देवी आ गई।
इतने खुश होते हैं।
अब यह तो समझने की बात है।
हमको फूल बनना है तो पवित्र के हाथ का खाना है।
उसके लिए अपना प्रबन्ध करना है, इसमें पूछना थोड़ेही होता है।
बाप समझाते हैं तुम देवता बनते हो, इसमें यह परहेज चाहिए।
जितनी जास्ती परहेज रखेंगे उतना तुम्हारा कल्याण होगा।
जास्ती परहेज रखने में कुछ मेहनत भी होगी।
रास्ते में भूख लगती है, खाना साथ में ले जाओ।
कोई तकलीफ होती है, लाचारी है तो स्टेशन वालों से डबलरोटी ले खाओ।
सिर्फ बाप को याद करो।
इनको ही कहा जाता है योगबल।
इसमें हठयोग की कोई बात नहीं है, शरीर को कमजोर नहीं बनाना है।
दधीचि ऋषि मिसल हड्डी-हड्डी देनी है, इसमें हठयोग की बात नहीं है।
यह सब हैं भक्ति मार्ग की बातें।
शरीर को तो बिल्कुल तन्दुरूस्त रखना है।
योग से 21 जन्मों के लिए तन्दुरूस्त बनना है।
यह प्रैक्टिस यहाँ ही करनी है। बाबा समझाते हैं इसमें पूछने की दरकार नहीं रहती।
हाँ कोई बड़ी बात है, उसमें मूँझते हो तो पूछ सकते हो।
छोटी-छोटी बातें बाबा से पूछने में कितना टाइम जाता है।
बड़े आदमी बहुत थोड़ा बोलते हैं।
शिवबाबा को कहा जाता है - सद्गति दाता।
रावण को सद्गति दाता थोड़ेही कहेंगे।
अगर होता तो उनको जलाते क्यों?
बच्चे समझते हैं रावण तो नामीग्रामी है।
भल ताकत रावण में बहुत है, परन्तु दुश्मन तो है ना।
आधाकल्प रावण का राज्य चलता है।
परन्तु कब महिमा सुनी है?
कुछ भी नहीं।
तुम जानते हो रावण 5 विकारों को कहा जाता है।
साधू-सन्त पवित्र बनते हैं तो उन्हों की महिमा करते हैं ना।
इस समय के मनुष्य तो सब पतित हैं।
भल कोई भी आये, समझो कोई बड़े आदमी आते हैं, कहते हैं बाबा से मुलाकात करें, बाबा उनसे क्या पूछेंगे?
उनसे तो यही पूछेंगे कि राम राज्य और रावण राज्य कब सुना है?
मनुष्य और देवता कब सुना है?
इस समय मनुष्यों का राज्य है या देवताओं का?
मनुष्य कौन, देवता कौन?
देवता किस राज्य में थे?
देवतायें तो होते हैं सतयुग में।
यथा राजा रानी तथा प्रजा...... तुम पूछ सकते हो कि यह नई सृष्टि है या पुरानी?
सतयुग में किसका राज्य था?
अभी किसका राज्य है?
चित्र तो सामने हैं।
भक्ति क्या है, ज्ञान क्या है?
यह बाप ही बैठ समझाते हैं।
जो बच्चे कहते बाबा धारणा नहीं होती उन्हें बाबा कहते अरे अल्फ और बे तो सहज है ना।
अल्फ बाप ही कहते हैं मुझ बाप को याद करो तो वर्सा मिल जायेगा।
भारत में शिवजयन्ती भी मनाते हैं परन्तु कब भारत में आकर स्वर्ग बनाया?
भारत स्वर्ग था-यह नहीं जानते हैं, भूल गये हैं।
तुम कहेंगे हम भी कुछ नहीं जानते थे कि हम स्वर्ग के मालिक थे।
अब बाप द्वारा हम फिर से देवता बन रहे हैं। समझाने वाला मैं ही हूँ।
सेकण्ड में जीवनमुक्ति गाया हुआ है।
परन्तु इनका भी अर्थ थोड़ेही समझते हैं।
सेकण्ड में तुम स्वर्ग की परियां बनते हो ना!
इनको इन्द्र सभा भी कहते हैं, वह फिर इन्द्र समझते हैं बरसात बरसाने वाले को।
अब बरसात बरसाने वालों की कोई सभा लगती है क्या?
इन्द्रलठ, इन्द्र सभा क्या-क्या सुनाते हैं।
आज फिर से यह पुरूषार्थ कर रहे हैं, पढ़ाई है ना।
बैरिस्टरी पढ़ते हैं तो समझते हैं कल हम बैरिस्टर बनेंगे।
तुम आज पढ़ते हो, कल शरीर छोड़ राजाई में जाकर जन्म लेंगे।
तुम भविष्य के लिए प्रालब्ध पाते हो।
यहाँ से पढ़कर जायेंगे फिर हमारा जन्म सतयुग में होगा।
एम ऑब्जेक्ट ही है-प्रिन्स-प्रिन्सेज बनने की। राजयोग है ना।
कोई कहे बाबा हमारी बुद्धि नहीं खुलती, यह तो तुम्हारी तकदीर ऐसे है।
ड्रामा में पार्ट ऐसा है।
उसको बाबा चेंज कैसे कर सकते हैं।
स्वर्ग का मालिक बनने के लिए तो सब हकदार हैं।
परन्तु नम्बरवार तो होंगे ना।
ऐसे तो नहीं सब बादशाह बन जाएं।
कोई कहते ईश्वरीय ताकत है तो सबको बादशाह बना दें।
फिर प्रजा कहाँ से आयेगी।
यह समझ की बात है ना।
इन लक्ष्मी-नारायण का राज्य था।
अभी तो सिर्फ नाम मात्र महाराजा-महारानी हैं।
टाइटिल भी दे देते हैं।
लाख दो देने से राजा-रानी का लकब मिल जाता है।
फिर चाल भी ऐसी रखनी पड़े।
अभी तुम बच्चे जानते हो हम श्रीमत पर अपना राज्य स्थापन कर रहे हैं।
वहाँ तो सब सुन्दर गोरे होंगे।
इन लक्ष्मी-नारायण का राज्य था ना।
शास्त्रों में कल्प की आयु लम्बी लिख देने से मनुष्य भूल गये हैं।
अभी तुम पुरूषार्थ कर रहे हो-सांवरे से सुन्दर बनने का।
अब देवतायें काले होते हैं क्या?
कृष्ण को सांवरा, राधे को गोरा दिखाते हैं।
अब सुन्दर तो दोनों सुन्दर होंगे ना।
फिर काम चिता पर चढ़ दोनों काले बन जाते हैं।
वहाँ हैं सुनहरी दुनिया के मालिक, यह है काली दुनिया।
तुम बच्चों को एक तो अन्दर में खुशी रहनी चाहिए और दैवीगुण भी धारण करने चाहिए।
कोई कहते हैं बाबा बीड़ी नहीं छूटती है।
बाबा कहेंगे अच्छा बहुत पियो।
पूछते हो तो क्या कहेंगे!
परहेज में नहीं चलने से गिरोगे।
खुद अपनी समझ होनी चाहिए ना।
हम देवता बनते हैं तो हमारी चाल-चलन, खान-पान कैसा होना चाहिए।
सब कहते हैं हम लक्ष्मी को, नारायण को वरेंगे।
अच्छा, अपने में देखो ऐसे गुण हैं?
हम बीड़ी पीते हैं, फिर नारायण बन सकेंगे?
नारद की भी कथा है ना।
नारद कोई एक तो नहीं है ना।
सब मनुष्य भक्त (नारद) हैं।
बाप कहते हैं - देवता बनने वाले बच्चे अन्तर्मुखी बन अपने आपसे बातें करो कि जब हम देवता बनते हैं तो हमारी चलन कैसी होनी चाहिए?
हम देवता बनते हैं तो शराब नहीं पी सकते, बीड़ी नहीं पी सकते, विकार में नहीं जा सकते, पतित के हाथ का नहीं खा सकते।
नहीं तो अवस्था पर असर हो जायेगा।
यह बातें बाप बैठ समझाते हैं।
ड्रामा के राज़ को भी कोई नहीं जानते हैं।
यह नाटक है, सब पार्टधारी हैं।
हम आत्मायें ऊपर से आती हैं, पार्ट तो सारी दुनिया के एक्टर्स को बजाना हैं।
सबका अपना-अपना पार्ट है।
कितने पार्टधारी हैं, कैसे पार्ट बजाते हैं, यह वैराइटी धर्मों का झाड़ है।
एक आम के झाड़ को वैराइटी झाड़ नहीं कहेंगे।
उसमें तो आम ही होगा।
यह मनुष्य सृष्टि का झाड़ तो है परन्तु इनका नाम है-वैराइटी धर्मों का झाड़।
बीज एक ही है, मनुष्यों की वैराइटी देखो कितनी है।
कोई कैसे, कोई कैसे।
यह बाप बैठ समझाते हैं, मनुष्य तो कुछ नहीं जानते।
मनुष्यों को बाप ही पारसबुद्धि बनाते हैं।
तुम बच्चे जानते हो इस पुरानी दुनिया में बाकी थोड़े रोज़ हैं।
कल्प पहले मुआफिफक सैपलिंग लगती रहती है।
अच्छी प्रजा, साधारण प्रजा का भी सैपलिंग लगता है।
यहाँ ही राजधानी स्थापन हो रही है।
बच्चों को हरेक बात में बुद्धि चलानी होती है।
ऐसे नहीं, मुरली सुनी न सुनी।
यहाँ बैठे भी बुद्धि बाहर भागती रहती है।
ऐसे भी हैं-कोई तो सम्मुख मुरली सुनकर बहुत गद्गद् होते हैं।
मुरली के लिए भागते हैं।
भगवान पढ़ाते हैं, तो ऐसी पढ़ाई छोड़नी थोड़ेही चाहिए।
टेप में एक्यूरेट भरता है, सुनना चाहिए।
साहूकार लोग खरीद करेंगे तो गरीब सुनेंगे।
कितनों का कल्याण हो जायेगा।
गरीब बच्चे भी अपना भाग्य बहुत ऊंचा बना सकते हैं।
बाबा बच्चों के लिए मकान बनवाते हैं, गरीब दो रूपया भी मनीआर्डर कर देते हैं, बाबा इसकी एक ईट मकान में लगा देना।
एक रूपया यज्ञ में डाल देना।
फिर कोई तो हुण्डी भरने वाला भी होगा ना।
मनुष्य हॉस्पिटल आदि बनाते हैं, कितना खर्चा लगता है, साहूकार लोग सरकार को बहुत मदद करते हैं, उनको क्या मिलता है!
अल्पकाल का सुख। यहाँ तो तुम जो करते हो 21 जन्मों के लिए।
देखते हो बाबा ने सब कुछ दिया, विश्व का मालिक पहला नम्बर बना।
21 जन्मों के लिए ऐसा सौदा कौन नहीं करेगा।
भोलानाथ तब तो कहते हैं ना।
अभी की ही बात है।
कितना भोला है, कहते हैं जो कुछ करना है कर दो।
कितनी गरीब बच्चियां हैं, सिलाई कर पेट पालती हैं।
बाबा जानते हैं यह तो बहुत ऊंच पद पाने वाली हैं।
सुदामा का भी मिसाल है ना।
चावल मुट्ठी के बदले 21 जन्मों के लिए महल मिले।
तुम यह बातें नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार जानते हो।
बाप कहते हैं मैं भोलानाथ भी हूँ ना।
यह दादा तो भोलानाथ नहीं है।
यह भी कहते हैं भोलानाथ शिवबाबा है इसलिए उनको सौदागर, रत्नागर, जादूगर कहा जाता है।
तुम विश्व का मालिक बनते हो।
यहाँ भारत कंगाल है, प्रजा साहूकार है, गवर्मेन्ट गरीब है।
अभी तुम समझते हो भारत कितना ऊंच था!
स्वर्ग था।
उसकी निशानियाँ भी हैं।
सोमनाथ का मन्दिर कितना हीरे-जवाहरों से सजा हुआ था।
जो ऊंट भरकर हीरे-जवाहर ले गये।
तुम बच्चे जानते हो अभी यह दुनिया बदलनी जरूर है।
उसके लिए तुम तैयारी कर रहे हो।
जो करेगा सो पायेगा।
माया का आपोजीशन बहुत होता है।
तुम हो ईश्वर के मुरीद।
बाकी सब हैं रावण के मुरीद।
तुम हो शिवबाबा के। शिवबाबा तुमको वर्सा देते हैं।
सिवाए बाप के और कोई बात बुद्धि में नहीं आनी चाहिए।
अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।