दूर देश का रहने वाला कौन?
यह तो कोई भी जानते नहीं।
क्या उनको अपना देश नहीं है जो पराये देश में आये हैं?
वह अपने देश में नहीं आते हैं।
यह रावण राज्य पराया देश है ना।
क्या शिवबाबा अपने देश में नहीं आते हैं?
अच्छा, रावण का परदेश कौन-सा है?
और देश कौन-सा है?
शिवबाबा का अपना देश कौन-सा है, पराया देश कौन-सा है?
फिर बाप आते हैं पराये देश में, तो उनका देश कौन-सा है?
अपने देश की स्थापना करने आते हैं लेकिन क्या वह अपने देश में खुद आते हैं?
(एक-दो ने सुनाया) अच्छा, इस पर सब विचार सागर मंथन करना।
यह बहुत समझने की बात है।
रावण का पराया देश बताना बहुत सहज है।
राम राज्य में कभी रावण आता नहीं।
बाप को रावण के देश में आना पड़ता है क्योंकि रावण राज्य को चेन्ज करना होता है।
यह है संगमयुग।
वह सतयुग में भी नहीं आते, कलियुग में भी नहीं आते।
संगमयुग पर आते हैं।
तो यह राम का भी देश है, रावण का भी देश है।
इस किनारे राम का, उस किनारे रावण का है।
संगम है ना।
अभी तुम बच्चे संगम पर हो।
न इस तरफ, न उस तरफ हो।
अपने को संगम पर समझना चाहिए।
हमारा उस तरफ तैलुक नहीं है।
बुद्धि से पुरानी दुनिया से तैलुक तोड़ना पड़ता है।
रहते तो यहाँ ही हैं।
परन्तु बुद्धि से जानते हैं यह पुरानी दुनिया ही खत्म होनी है।
आत्मा कहती है अभी मैं संगम पर हूँ।
बाप आया हुआ है, उनको खिवैया भी कहते हैं।
अभी हम जा रहे हैं।
कैसे? योग से। योग के लिए भी ज्ञान है।
ज्ञान के लिए भी ज्ञान है।
योग के लिए समझाया जाता है अपने को आत्मा समझो फिर बाप को याद करो।
यह भी ज्ञान है ना।
ज्ञान अर्थात् समझानी।
बाप मत देने आये हैं।
कहते हैं अपने को आत्मा समझो।
आत्मा ही 84 जन्म लेती है।
बाप बच्चों को ही विस्तार से बैठ समझाते हैं।
अभी यह रावण राज्य खत्म होना है।
यहाँ है कर्म-बन्धन, वहाँ हैं कर्म-सम्बन्ध।
बन्धन दु:ख का नाम है।
सम्बन्ध सुख का नाम है।
अब कर्म-बन्धन को तोड़ना है।
बुद्धि में है हम इस समय ब्राह्मण सम्बन्ध में हैं फिर दैवी सम्बन्ध में जायेंगे।
ब्राह्मण सम्बन्ध का यह एक ही जन्म है।
फिर 8 और 12 जन्म दैवी सम्बन्ध में होंगे।
यह ज्ञान बुद्धि में है इसलिए कलियुगी छी-छी कर्मबन्धन से जैसे ग्लानि करते हैं।
इस दुनिया के कर्मबन्धन में अभी रहना नहीं है।
बुद्धि मिलती है - यह सब हैं आसुरी कर्मबन्धन।
हम भी गुप्त एक यात्रा पर हैं।
यह बाप ने यात्रा सिखलाई है फिर इस कर्म-बन्धन से न्यारे हो हम कर्मातीत हो जायेंगे।
यह कर्म-बन्धन अब टूटना ही है।
हम बाप को याद करते हैं कि पवित्र बन चक्र को समझ चक्रवर्ती राजा बनें।
पढ़ रहे हैं फिर उनका एम ऑब्जेक्ट, प्रालब्ध भी चाहिए ना।
तुम जानते हो हमको पढ़ाने वाला बेहद का बाप है।
बेहद के बाप ने हमको 5 हज़ार वर्ष पहले पढ़ाया था।
यह ड्रामा है ना।
जिनको कल्प पहले पढ़ाया था उनको ही पढ़ायेंगे।
आते रहेंगे, वृद्धि को पाते रहेंगे।
सब तो सतयुग में नहीं आयेंगे।
बाकी सब जायेंगे वापिस घर।
इस पार है नर्क, उस पार है स्वर्ग।
उस पढ़ाई में तो समझते हैं हम यहाँ पढ़ते हैं, फिर प्रालब्ध भी यहाँ पायेंगे।
यहाँ हम पढ़ते हैं संगमयुग पर, इनकी प्रालब्ध हमको नई दुनिया में मिलेगी।
यह है नई बात।
दुनिया में ऐसे कोई नहीं कहेंगे कि तुमको इसकी प्रालब्ध दूसरे जन्म में मिलेगी।
इस जन्म में अगले जन्मों की प्रालब्ध पाना - यह सिर्फ इस संगमयुग पर ही होता है।
बाप भी आते ही संगमयुग पर हैं।
तुम पढ़ते हो पुरूषोत्तम बनने के लिए।
एक ही बार भगवान ज्ञान सागर आकर पढ़ाते हैं नई दुनिया अमरपुरी के लिए।
यह तो है कलियुग, मृत्युलोक।
हम पढ़ते हैं सतयुग के लिए।
नर्कवासी से स्वर्गवासी होने के लिए।
यह है पराया देश, वह है अपना देश।
उस अपने देश में बाप को आने की दरकार नहीं है।
वह देश बच्चों के लिए ही है, वहाँ सतयुग में रावण का आना नहीं होता है, रावण गुम हो जाता है।
फिर आयेगा द्वापर में।
तो बाप भी गुम हो जाता है।
सतयुग में कोई भी उनको जानते नहीं।
तो याद भी क्यों करेंगे।
सुख की प्रालब्ध पूरी होती है तो फिर रावण राज्य शुरू होता है, इनको पराया देश कहा जाता है।
अभी तुम समझते हो हम संगमयुग पर हैं, हमको रास्ता दिखलाने वाला बाप मिला है।
बाकी सब धक्के खाते रहते हैं।
जो बहुत थके हुए होंगे, जिन्होंने कल्प पहले रास्ता लिया होगा, वह आते रहेंगे।
तुम पण्डे सबको रास्ता बताते हो, यह है रूहानी यात्रा का रास्ता।
सीधा चले जायेंगे सुखधाम। तुम पण्डे पाण्डव सम्प्रदाय हो।
पाण्डव राज्य नहीं कहेंगे।
राज्य न पाण्डवों को, न कौरवों को है।
दोनों को ताज नहीं है।
भक्ति मार्ग में दोनों को ताज दे दिया है।
अगर दें भी तो कौरवों को लाइट का ताज नहीं देंगे।
पाण्डवों को भी लाइट नहीं दे सकते क्योंकि पुरूषार्थी हैं।
चलते-चलते गिर पड़ते हैं तब किसको देवें इसलिए यह सब निशानी विष्णु को दी हैं क्योंकि वह पवित्र हैं।
सतयुग में सब पवित्र सम्पूर्ण निर्विकारी होते हैं।
पवित्रता की लाइट का ताज है।
इस समय तो कोई पवित्र नहीं हैं।
संन्यासी लोग कहलाते हैं कि हम पवित्र हैं।
परन्तु दुनिया तो पवित्र नहीं है ना।
जन्म फिर भी विकारी दुनिया में ही लेते हैं।
यह है रावण की पतित पुरी।
पावन राज्य सतयुग नई दुनिया को कहा जाता है।
अब तुम बच्चों को बाप बागवान कांटों से फूल बनाते हैं।
वह पतित-पावन भी है, खिवैया भी है, बागवान भी है। बागवान आये हैं कांटों के जंगल में, तुम्हारा कमान्डर तो एक ही है।
यादवों का कमान्डर चीफ शंकर को कहें?
यूँ तो वह कोई विनाश कराते नहीं हैं।
जब समय होता है तो लड़ाई लगती है।
कहते हैं शंकर की प्रेरणा से मूसल आदि बनते हैं।
यह सब कहानियाँ बैठ बनाई हैं।
पुरानी दुनिया खत्म तो जरूर होनी है।
मकान पुराना होता है तो गिर पड़ता है।
मनुष्य मर जाते हैं।
यह भी पुरानी दुनिया खत्म होनी है।
यह सब दबकर मर जायेंगे, कोई डूब मरेंगे।
कोई शॉक में मरेंगे।
बॉम्ब्स आदि की जहरीली वायु भी मार डालेगी।
बच्चों की बुद्धि में है कि अभी विनाश होना ही है।
हम उस पार जा रहे हैं।
कलियुग पूरा हो सतयुग की स्थापना जरूर होनी है।
फिर आधाकल्प लड़ाई होती ही नहीं।
अभी बाप आये हैं पुरूषार्थ कराने, यह लास्ट चांस है।
देरी की तो फिर अचानक ही मर जायेंगे।
मौत सामने खड़ा है।
अचानक बैठे-बैठे मनुष्य मर जाते हैं।
मरने के पहले तो याद की यात्रा करो।
अभी तुम बच्चों को घर जाना है इसलिए बाप कहते हैं - बच्चे, घर को याद करो, इससे अन्त मती सो गति हो जायेगी, घर चले जायेंगे।
परन्तु सिर्फ घर को याद करेंगे तो पाप विनाश नहीं होंगे।
बाप को याद करेंगे तो पाप विनाश हो और तुम अपने घर चले जायेंगे इसलिए बाप को याद करते रहो।
अपना चार्ट रखो तो मालूम पड़ेगा, सारे दिन में हमने क्या किया?
5-6 वर्ष की आयु से लेकर अपनी लाइफ में क्या-क्या किया..... वह भी याद रहता है।
ऐसे भी नहीं, सारा टाइम लिखना पड़ता है।
ध्यान में रहता है - बगीचे में बैठ बाबा को याद किया, दुकान पर कोई ग्राहक नहीं है हम याद में बैठे रहे।
अन्दर में नोट रहेगा।
अगर लिखने चाहते हो तो फिर डायरी रखनी पड़े।
मूल बात है ही यह।
हम तमोप्रधान से सतोप्रधान कैसे बनें!
पवित्र दुनिया के मालिक कैसे बनें!
पतित से पावन कैसे बनें!
बाप आकर यह नॉलेज देते हैं।
ज्ञान का सागर बाप ही है।
तुम अभी कहते हो बाबा हम आपके हैं।
सदैव आपके ही हैं, सिर्फ भूलकर देह-अभिमानी हो गये हैं।
अभी आपने बताया है तो हम फिर देही-अभिमानी बनते हैं।
सतयुग में हम देही-अभिमानी थे।
खुशी से एक शरीर छोड़ दूसरा लेते थे तो तुम बच्चों को यह सब धारणा कर फिर समझाने लायक बनना है, तो बहुतों का कल्याण होगा।
बाबा जानते हैं ड्रामा अनुसार नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार सर्विसएबुल बन रहे हैं।
अच्छा, किसको झाड़ आदि नहीं समझा सकते हो, भला यह तो सहज है ना - किसको भी बोलो तुम अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो।
यह तो बिल्कुल सहज है।
यह बाप ही कहते हैं मुझे याद करो तो विकर्म विनाश होंगे और कोई मनुष्य कह न सके सिवाए तुम ब्राह्मणों के।
और कोई न आत्मा को, न परमात्मा बाप को जानते हैं।
ऐसे ही सिर्फ कह देंगे तो किसको तीर लगेगा नहीं।
भगवान का रूप जानना पड़े।
यह सब नाटक के एक्टर्स हैं।
हर एक आत्मा शरीर के साथ एक्ट करती है।
एक शरीर छोड़ दूसरा ले फिर पार्ट बजाती है।
वह एक्टर्स कपड़े बदली कर भिन्न-भिन्न पार्ट बजाते हैं।
तुम फिर शरीर बदलते हो।
वो कोई मेल वा फीमेल की ड्रेस पहनेंगे अल्पकाल के लिए।
यहाँ मेल का चोला लिया तो सारी आयु मेल ही रहेंगे।
वह हद के ड्रामा, यह है बेहद का।
पहली-पहली मुख्य बात है बाप कहते हैं मुझे याद करो।
योग अक्षर भी काम में नहीं लाओ क्योंकि योग तो अनेक प्रकार के सीखते हैं।
वह सब हैं भक्ति मार्ग के।
अब बाप कहते हैं मुझे याद करो और घर को याद करो तो तुम घर में चले जायेंगे।
शिवबाबा इनमें आकर शिक्षा देते हैं।
बाप को याद करते-करते तुम पावन बन जायेंगे फिर पवित्र आत्मा उड़ेगी।
जितना-जितना याद किया होगा, सर्विस की होगी उतना वह ऊंच पद पायेंगे।
याद में ही बहुत विघ्न पड़ते हैं।
पावन नहीं बनेंगे तो फिर धर्मराज पुरी में सजायें भी खानी पड़ेगी।
इज्जत भी जायेगी, पद भी भ्रष्ट होगा।
पिछाड़ी में सब साक्षात्कार होंगे।
परन्तु कुछ कर नहीं सकेंगे।
साक्षात्कार करायेंगे तुमको इतना समझाया फिर भी याद नहीं किया, पाप रह गये।
अब खाओ सज़ा।
उस समय पढ़ाई का टाइम नहीं रहता।
अफसोस करेंगे हमने क्या किया!
नाहेक टाइम गँवाया।
परन्तु सज़ा तो खानी पड़े।
कुछ हो थोड़ेही सकेगा।
नापास हुए तो हुए।
फिर पढ़ने की बात नहीं।
उस पढ़ाई में तो नापास हो फिर पढ़ते हैं, यह तो पढ़ाई ही पूरी हो जायेगी।
अन्त समय में पश्चाताप् न करना पड़े उसके लिए बाप राय देते हैं - बच्चे, अच्छी रीति पढ़ लो।
झरमुई-झगमुई में अपना टाइम वेस्ट मत करो।
नहीं तो बहुत पछताना पड़ेगा।
माया बहुत उल्टे काम करा देती है।
चोरी कभी नहीं की होगी, वह भी करायेगी।
पीछे स्मृति आयेगी हमको तो माया ने धोखा दे दिया।
पहले दिल में ख्याल आता है, फलानी चीज़ उठाऊं।
बुद्धि तो मिली है, यह राइट है वा रांग है।
यह चीज़ उठाऊं तो रांग होगा, नहीं उठायेंगे तो राइट होगा।
अब क्या करना है?
पवित्र रहना तो अच्छा है ना।
संग में आकर लूज़ नहीं होना चाहिए।
हम भाई-बहन हैं फिर नाम-रूप में क्यों फँसें।
देह-अभिमान में नहीं आना है।
परन्तु माया बड़ी जबरदस्त है।
माया रांग काम कराने के संकल्प लाती है।
बाप कहते हैं तुमको रांग काम करना नहीं है।
लड़ाई चलती है फिर गिर पड़ते हैं, फिर राइट बुद्धि आती ही नहीं।
हमको राइट काम करना है।
अन्धों की लाठी बनना है।
अच्छे ते अच्छा काम है यह।
शरीर निर्वाह के लिए समय तो है।
रात को नींद भी करनी है।
आत्मा थक जाती है तो फिर सो जाती है।
शरीर भी सो जाता है।
तो शरीर निर्वाह के लिए, आराम करने के लिए टाइम तो है।
बाकी समय मेरी सर्विस में लग जाओ।
याद का चार्ट रखो।
लिखते भी हैं फिर चलते-चलते फेल हो जाते हैं।
बाप को याद नहीं करते, सर्विस नहीं करते तो रांग काम होता रहता है।
अच्छा।
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।