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Baba's Murlis - February, 2020
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08-02-2020 प्रात:मुरली बापदादा मधुबन

"मीठे बच्चे - यह रूहानी हॉस्पिटल तुम्हें आधाकल्प के लिए एवरहेल्दी बनाने वाली है,

यहाँ तुम देही-अभिमानी होकर बैठो''

प्रश्नः-

धन्धा आदि करते भी कौन-सा डायरेक्शन बुद्धि में याद रहना चाहिए?

उत्तर:-

बाप का डायरेक्शन है तुम किसी साकार वा आकार को याद नहीं करो, एक बाप की याद रहे तो विकर्म विनाश हों।

इसमें कोई ये नहीं कह सकता कि फुर्सत नहीं।

सब कुछ करते भी याद में रह सकते हो।

ओम् शान्ति।

मीठे-मीठे रूहानी बच्चों प्रति बाप का गुडमॉर्निग।

गुडमॉर्निग के बाद बच्चों को कहा जाता है बाप को याद करो।

बुलाते भी हैं-हे पतित-पावन आकर पावन बनाओ तो बाप पहले-पहले ही कहते हैं-रूहानी बाप को याद करो।

रूहानी बाप तो सबका एक ही है।

फादर को कभी सर्वव्यापी नहीं माना जाता है।

तो जितना हो सके बच्चे पहले-पहले बाप को याद करो, कोई भी साकार वा आकार को याद नहीं करो, सिवाए एक बाप के।

यह तो बिल्कुल सहज है ना।

मनुष्य कहते हैं हम बिजी रहते हैं, फुर्सत नहीं।

परन्तु इसमें तो फुर्सत सदैव है।

बाप युक्ति बतलाते हैं यह भी जानते हो बाप को याद करने से ही हमारे पाप भस्म होंगे।

मुख्य बात है यह।

धन्धे आदि की कोई मना नहीं है।

वह सब करते हुए सिर्फ बाप को याद करो तो विकर्म विनाश हों।

यह तो समझते हैं हम पतित हैं, साधू-सन्त ऋषि-मुनि आदि सब साधना करते हैं।

साधना की जाती है भगवान से मिलने की।

सो जब तक उनका परिचय न हो तब तक तो मिल नहीं सकते।

तुम जानते हो बाप का परिचय दुनिया में कोई को भी नहीं है।

देह का परिचय तो सबको है।

बड़ी चीज़ का परिचय झट हो जाता है।

आत्मा का परिचय तो जब बाप आये तब समझाये।

आत्मा और शरीर दो चीज़ें हैं।

आत्मा एक स्टॉर है और बहुत सूक्ष्म है।

उनको कोई देख नहीं सकते।

तो यहाँ जब आकर बैठते हैं तो देही-अभिमानी होकर बैठना है।

यह भी एक हॉस्पिटल है ना - आधाकल्प के लिए एवरहेल्दी होने की।

आत्मा तो है अविनाशी, कभी विनाश नहीं होती।

आत्मा का ही सारा पार्ट है।

आत्मा कहती है मैं कभी विनाश को नहीं पाती हूँ।

इतनी सब आत्मायें अविनाशी हैं।

शरीर है विनाशी।

अब तुम्हारी बुद्धि में यह बैठा हुआ है कि हम आत्मा अविनाशी हैं।

हम 84 जन्म लेते हैं, यह ड्रामा है।

इसमें धर्म स्थापक कौन-कौन कब आते हैं, कितने जन्म लेते होंगे यह तो जानते हो।

84 जन्म जो गाये जाते हैं जरूर किसी एक धर्म के होंगे।

सभी के तो हो न सके।

सब धर्म इकट्ठे तो आते नहीं।

हम दूसरों का हिसाब क्यों बैठ निकालें?

जानते हैं फलाने-फलाने समय पर धर्म स्थापन करने आते हैं।

उसकी फिर वृद्धि होती है।

सब सतोप्रधान से तमोप्रधान तो होने ही हैं।

दुनिया जब तमोप्रधान होती है तब फिर बाप आकर सतोप्रधान सतयुग बनाते हैं।

अभी तुम बच्चे जानते हो हम भारतवासी ही फिर नई दुनिया में आकर राज्य करेंगे, और कोई धर्म नहीं होगा।

तुम बच्चों में भी जिनको ऊंच मर्तबा लेना है वह जास्ती याद में रहने का पुरूषार्थ करते हैं और समाचार भी लिखते हैं कि बाबा हम इतना समय याद में रहता हूँ।

कई तो पूरा समाचार लज्जा के मारे देते नहीं।

समझते हैं बाबा क्या कहेंगे।

परन्तु मालूम तो पड़ता है ना।

स्कूल में टीचर स्टूडेन्ट्स को कहेंगे ना कि तुम अगर पढ़ेंगे नहीं तो फेल हो जायेंगे।

लौकिक माँ-बाप भी बच्चे की पढ़ाई से समझ जाते हैं, यह तो बहुत बड़ा स्कूल है।

यहाँ तो नम्बरवार बिठाया नहीं जाता है।

बुद्धि से समझा जाता है, नम्बरवार तो होते ही हैं ना।

अब बाबा अच्छे-अच्छे बच्चों को कहाँ भेज देते हैं, वह फिर चले जाते हैं तो दूसरे लिखते हैं हमको महारथी चाहिए, तो जरूर समझते हैं वह हमसे होशियार नामीग्रामी हैं।

नम्बरवार तो होते हैं ना।

प्रदर्शनी में भी अनेक प्रकार के आते हैं तो गाइड्स भी खड़े रहने चाहिए जांच करने के लिए।

रिसीव करने वाले तो जानते हैं यह किस प्रकार का आदमी है।

तो उनको फिर इशारा करना चाहिए कि इनको तुम समझाओ।

तुम भी समझ सकते हो फर्स्ट ग्रेड, सेकेण्ड ग्रेड, थर्ड ग्रेड सब हैं।

वहाँ तो सबकी सर्विस करनी ही है।

कोई बड़ा आदमी है तो जरूर बड़े आदमी की खातिरी तो सब करते ही हैं।

यह कायदा है।

बाप अथवा टीचर बच्चों की क्लास में महिमा करते हैं, यह भी सबसे बड़ी खातिरी है।

नाम निकालने वाले बच्चों की महिमा अथवा खातिरी की जाती है।

यह फलाना धनवान है, रिलीजस माइन्डेड है, यह भी खातिरी है ना।

अब तुम यह जानते हो ऊंच ते ऊंच भगवान है।

कहते भी हैं बरोबर ऊंच ते ऊंच है, परन्तु फिर बोलो उनकी बायोग्राफी बताओ तो कह देंगे सर्वव्यापी है।

बस एकदम नीचे कर देते हैं।

अब तुम समझा सकते हो सबसे ऊंचे ते ऊंच है भगवान, वह है मूलवतन वासी।

सूक्ष्मवतन में हैं देवतायें।

यहाँ रहते हैं मनुष्य। तो ऊंच ते ऊंच भगवान वह निराकार ठहरा।

अभी तुम जानते हो हम जो हीरे मिसल थे सो फिर कौड़ी मिसल बन पड़े हैं फिर भगवान को अपने से भी जास्ती नीचे ले गये हैं। पहचानते ही नहीं हैं।

तुम भारतवासियों को ही पहचान मिलती है फिर पहचान कम हो जाती है।

अभी तुम बाप की पहचान सबको देते जाते हो

। ढेरों को बाप की पहचान मिलेगी।

तुम्हारा मुख्य चित्र है ही यह त्रिमूर्ति, गोला, झाड़। इनमें कितनी रोशनी है।

यह तो कोई भी कहेंगे यह लक्ष्मी-नारायण सतयुग के मालिक थे।

अच्छा, सतयुग के आगे क्या था?

यह भी अभी तुम जानते हो।

अभी है कलियुग का अन्त और है भी प्रजा का प्रजा पर राज्य।

अभी राजाई तो है नहीं, कितना फर्क है।

सतयुग के आदि में राजायें थे और अभी कलियुग में भी राजायें हैं।

भल कोई वह पावन नहीं हैं परन्तु कोई पैसा देकर भी टाइटल ले लेते हैं।

महाराजा तो कोई है नहीं, टाइटल खरीद कर लेते हैं।

जैसे पटियाला का महाराजा, जोधपुर, बीकानेर का महाराजा....... नाम तो लेते हैं ना।

यह नाम अविनाशी चला आता है।

पहले पवित्र महाराजायें थे, अब हैं अपवित्र महाराजायें।

अक्षर चला आता है।

इन लक्ष्मी-नारायण के लिए कहेंगे यह सतयुग के मालिक थे, किसने राज्य लिया?

अभी तुम जानते हो राजाई की स्थापना कैसे होती है।

बाप कहते हैं मैं तुमको अभी पढ़ाता हूँ - 21 जन्मों के लिए।

वह तो पढ़कर इसी जन्म में ही बैरिस्टर आदि बनते हैं।

तुम अभी पढ़कर भविष्य महाराजा-महारानी बनते हो।

ड्रामा प्लैन अनुसार नई दुनिया की स्थापना हो रही है।

अभी है पुरानी दुनिया।

भल कितने भी अच्छे-अच्छे बड़े महल हैं परन्तु हीरे-जवाहरातों के महल तो बनाने की कोई में ताकत नहीं है।

सतयुग में यह सब हीरे-जवाहरातों के महल बनाते हैं ना।

बनाने में कोई देरी थोड़ेही लगती है।

यहाँ भी अर्थक्वेक आदि होती है तो बहुत कारीगर लगा देते हैं, एक-दो वर्ष में सारा शहर खड़ा कर देते हैं।

नई देहली बनाने में करके 8-10 वर्ष लगे परन्तु यहाँ के लेबर और वहाँ के लेबर्स में तो फ़र्क रहता है ना।

आजकल तो नई-नई इन्वेन्शन भी निकालते रहते हैं।

मकान बनाने की साइन्स का भी ज़ोर है, सब कुछ तैयार मिलता है, झट फ्लैट तैयार।

बहुत जल्दी-जल्दी बनते हैं तो यह सब वहाँ काम में तो आते हैं ना।

यह सब साथ चलने हैं।

संस्कार तो रहते हैं ना।

यह साइंस के संस्कार भी चलेंगे।

तो अब बाप बच्चों को समझाते रहते हैं, पावन बनना है तो बाप को याद करो।

बाप भी गुडॅमार्निग कर फिर शिक्षा देते हैं।

बच्चे बाप की याद में बैठे हो?

चलते फिरते बाप को याद करो क्योंकि जन्म-जन्मान्तर का सिर पर बोझा है।

सीढ़ी उतरते-उतरते 84 जन्म लेते हैं।

अभी फिर एक जन्म में चढ़ती कला होती है।

जितना बाप को याद करते रहेंगे उतना खुशी भी होगी, ताकत मिलेगी।

बहुत बच्चे हैं जिनको आगे नम्बर में रखा जाता है परन्तु याद में बिल्कुल रहते नहीं हैं।

भल ज्ञान में तीखे हैं परन्तु याद की यात्रा है नहीं।

बाप तो बच्चों की महिमा करते हैं।

यह भी नम्बरवन में है तो जरूर मेहनत भी करते होंगे ना।

तुम हमेशा समझो कि शिवबाबा समझाते हैं तो बुद्धियोग वहाँ लगा रहेगा।

यह भी सीखता तो होगा ना।

फिर भी कहते हैं बाबा को याद करो।

किसको भी समझाने के लिए चित्र हैं।

भगवान कहा ही जाता है निराकार को।

वह आकर शरीर धारण करते हैं।

एक भगवान के बच्चे सब आत्मायें भाई-भाई हैं।

अभी इस शरीर में विराजमान हैं।

सभी अकालमूर्त हैं।

यह अकालमूर्त (आत्मा) का तख्त है।

अकालतख्त और कोई खास चीज़ नहीं है।

यह तख्त है अकालमूर्त का।

भृकुटी के बीच में आत्मा विराजमान होती है, इसको कहा जाता है अकालतख्त।

अकालतख्त, अकालमूर्त का।

आत्मायें सब अकाल हैं, कितनी अति सूक्ष्म हैं।

बाप तो है निराकार।

वह अपना तख्त कहाँ से लाये।

बाप कहते हैं मेरा भी यह तख्त है।

मैं आकर इस तख्त का लोन लेता हूँ।

ब्रह्मा के साधारण बूढ़े तन में अकाल तख्त पर आकर बैठता हूँ।

अभी तुम जान गये हो सब आत्माओं का यह तख्त है।

मनुष्यों की ही बात की जाती है, जानवरों की तो बात नहीं।

पहले जो मनुष्य जानवर से भी बदतर हो गये हैं, वह तो सुधरें।

कोई जानवर की बात पूछे, बोलो पहले अपना तो सुधार करो।

सतयुग में तो जानवर भी बड़े अच्छे फर्स्ट-क्लास होंगे।

किचड़ा आदि कुछ भी नहीं होगा।

किंग के महल में कबूतर आदि का किचड़ा हो तो दण्ड डाल दे।

ज़रा भी किचड़ा नहीं। वहाँ बड़ी खबरदारी रहती है।

पहरे पर रहते हैं, कभी कोई जानवर आदि अन्दर घुस न सके।

बड़ी सफाई रहती है।

लक्ष्मी-नारायण के मन्दिर में भी कितनी सफाई रहती है।

शंकर-पार्वती के मन्दिर में कबूतर भी दिखाते हैं।

तो जरूर मन्दिर को भी खराब करते होंगे।

शास्त्रों में तो बहुत दन्त कथायें लिख दी हैं।

अभी बाप बच्चों को समझाते हैं, उनमें भी थोड़े हैं जो धारणा कर सकते हैं।

बाकी तो कुछ नहीं समझते।

बाप बच्चों को कितना प्यार से समझाते हैं-बच्चे, बहुत-बहुत मीठे बनो।

मुख से सदैव रत्न निकलते रहें।

तुम हो रूप-बसन्त।

तुम्हारे मुख से पत्थर नहीं निकलने चाहिए।

आत्मा की ही महिमा होती है।

आत्मा कहती है-मैं प्रेजीडेण्ट हूँ, फलाना हूँ.......।

मेरे शरीर का नाम यह है।

अच्छा, आत्मायें किसके बच्चे हैं?

एक परमात्मा के। तो जरूर उनसे वर्सा मिलता होगा।

वह फिर सर्वव्यापी कैसे हो सकता है!

तुम समझते हो हम भी पहले कुछ नहीं जानते थे।

अभी कितनी बुद्धि खुली है।

तुम कोई भी मन्दिर में जायेंगे, समझेंगे यह तो सब झूठे चित्र हैं।

10 भुजाओं वाला, हाथी की सूँढ़ वाला कोई चित्र होता है क्या!

यह सब है भक्ति मार्ग की सामग्री।

वास्तव में भक्ति होनी चाहिए एक शिवबाबा की, जो सबका सद्गति दाता है।

तुम्हारी बुद्धि में हैं-यह लक्ष्मी-नारायण भी 84 जन्म लेते हैं।

फिर ऊंच ते ऊंच बाप ही आकर सबको सद्गति देते हैं।

उनसे बड़ा कोई है नहीं।

यह ज्ञान की बातें तुम्हारे में भी नम्बरवार धारण कर सकते हैं।

धारणा नहीं कर सकते तो बाकी क्या काम के रहे।

कई तो अन्धों की लाठी बनने के बदले अन्धे बन जाते हैं।

गऊ जो दूध नहीं देती तो उसे पिंजरपुर में रखते हैं।

यह भी ज्ञान का दूध नहीं दे सकते हैं। बहुत हैं, जो कुछ पुरूषार्थ नहीं करते।

समझते नहीं कि हम कुछ तो किसका कल्याण करें।

अपनी तकदीर का ख्याल ही नहीं रहता है।

बस जो कुछ मिला सो अच्छा।

तो बाप कहेंगे इनकी तकदीर में नहीं है।

अपनी सद्गति करने का पुरूषार्थ तो करना चाहिए।

देही-अभिमानी बनना है।

बाप कितना ऊंच ते ऊंच है और आते देखो कैसे पतित दुनिया, पतित शरीर में हैं।

उनको बुलाते ही पतित दुनिया में हैं।

जब रावण दु:ख देते हैं तो बिल्कुल ही भ्रष्ट कर देते हैं, तब बाप आकर श्रेष्ठ बनाते हैं।

जो अच्छा पुरूषार्थ करते हैं वह राजा-रानी बन जाते हैं, जो पुरूषार्थ नहीं करते वह गरीब बन जाते हैं।

तकदीर में नहीं है तो तदबीर कर नहीं सकते।

कोई तो बहुत अच्छी तकदीर बना लेते हैं।

हर एक अपने को देख सकते हैं कि हम क्या सर्विस करते हैं।

अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1) रूप-बसन्त बन मुख से सदैव रत्न निकालने हैं, बहुत-बहुत मीठा बनना है।

कभी भी पत्थर (कटु वचन) नहीं निकालना है।

2) ज्ञान और योग में तीखा बन अपना और दूसरों का कल्याण करना है।

अपनी ऊंच तकदीर बनाने का पुरूषार्थ करना है।

अन्धों की लाठी बनना है।

वरदान:-

प्रवृत्ति के विस्तार में रहते

फरिश्ते पन का साक्षात्कार कराने वाले

साक्षात्कार मूर्त भव

प्रवृत्ति का विस्तार होते हुए भी विस्तार को समेटने और उपराम रहने का अभ्यास करो।

अभी-अभी स्थूल कार्य कर रहे हैं, अभी-अभी अशरीरी हो गये-यह अभ्यास फरिश्ते पन का साक्षात्कार करायेगा।

ऊंची स्थिति में रहने से छोटी-छोटी बातें व्यक्त भाव की अनुभव होंगी।

ऊंचा जाने से नीचापन आपेही छूट जायेगा।

मेहनत से बच जायेंगे।

समय भी बचेगा, सेवा भी फास्ट होगी।

बुद्धि इतनी विशाल हो जायेगी जो एक समय पर कई कार्य कर सकती है।

स्लोगन:-

खुशी को कायम रखने के लिए आत्मा रूपी दीपक में ज्ञान का घृत रोज़ डालते रहो।