बाप बैठ बच्चों को समझाते हैं, अक्सर करके मनुष्य शान्ति को पसन्द करते हैं।
घर में अगर बच्चों की खिट-खिट है, तो अशान्ति रहती है।
अशान्ति से दु:ख भासता है।
शान्ति से सुख भासता है।
यहाँ तुम बच्चे बैठे हो, तुमको सच्ची शान्ति है।
तुमको कहा गया है बाप को याद करो।
अपने को आत्मा समझो।
आत्मा में जो आधाकल्प से अशान्ति है, वह निकलनी है शान्ति के सागर बाप को याद करने से।
तुमको शान्ति का वर्सा मिल रहा है।
यह भी तुम जानते हो शान्ति की दुनिया और अशान्ति की दुनिया बिल्कुल अलग है।
आसुरी दुनिया, ईश्वरीय दुनिया, सतयुग, कलियुग किसको कहा जाता है, यह कोई मनुष्य मात्र नहीं जानते।
तुम कहेंगे हम भी नहीं जानते थे।
भल कितने भी पोजीशन वाले थे।
पैसे वाले को पोजीशन वाला कहा जाता है।
गरीब और साहूकार समझ तो सकते हैं ना।
वैसे तुम भी समझ सकते हो बरोबर ईश्वरीय औलाद और आसुरी औलाद
अभी तुम मीठे बच्चे समझते हो हम ईश्वरीय सन्तान हैं।
यह पक्का निश्चय है ना।
तुम ब्राह्मण समझते हो हम ईश्वरीय सम्प्रदाय स्वर्गवासी विश्व के मालिक बन रहे हैं।
हरदम वह खुशी रहनी चाहिए।
बहुत थोड़े हैं जो यथार्थ रीति से समझते हैं।
सतयुग में हैं ईश्वरीय सम्प्रदाय।
कलियुग में हैं आसुरी सम्प्रदाय।
पुरूषोत्तम संगमयुग पर आसुरी सम्प्रदाय बदली होती है।
अभी हम शिवबाबा की औलाद बने हैं।
बीच में भूल गये थे।
अभी फिर इस समय जाना है कि हम शिवबाबा की सन्तान हैं।
वहाँ सतयुग में कोई अपने को ईश्वरीय औलाद नहीं कहलाते।
वहाँ हैं दैवी औलाद।
इनके पहले हम आसुरी औलाद थे।
अभी ईश्वरीय औलाद बने हैं।
हम ब्राह्मण बी.के. हैं।
रचना है एक बाप की।
तुम सब भाई-बहन हो और ईश्वरीय औलाद हो।
तुम जानते हो बाबा से राज्य मिल रहा है।
भविष्य में जाकर हम दैवी स्वराज्य पायेंगे, सुखी होंगे।
बरोबर सतयुग है सुख का धाम, कलियुग है दु:खधाम।
यह सिर्फ तुम संगमयुगी ब्राह्मण जानते हो।
आत्मा ही ईश्वरीय औलाद है।
यह भी जानते हो बाबा स्वर्ग की स्थापना करते हैं।
वह रचता है ना।
नर्क का क्रियेटर तो नहीं है।
उनको कौन याद करेंगे।
तुम मीठे-मीठे बच्चे जानते हो-बाप स्वर्ग की स्थापना कर रहे हैं।
वह हमारा बहुत मीठा बाप है।
हमको 21 जन्मों के लिए स्वर्गवासी बनाते हैं, इससे भारी वस्तु कोई होती नहीं।
यह समझ रखनी चाहिए।
हम ईश्वरीय औलाद हैं, तो हमारे में कोई आसुरी अवगुण होना नहीं चाहिए।
अपनी उन्नति करनी है।
समय बाकी थोड़ा है, इसमें ग़फलत नहीं करनी चाहिए।
भूल न जाओ।
देखते हो बाप सम्मुख बैठा है, जिनकी हम औलाद हैं।
हम ईश्वर बाप से पढ़ रहे हैं दैवी औलाद बनने के लिए, तो कितनी खुशी होनी चाहिए।
बाबा सिर्फ कहते हैं मुझे याद करो तो विकर्म विनाश हो जाएं।
बाप आये ही हैं सबको ले जाने। जितना-जितना याद करेंगे उतना विकर्म विनाश होंगे।
अज्ञान में जैसे कन्या की सगाई होती है तो याद बिल्कुल छप जाती है।
बच्चा पैदा हुआ और याद छप जाती है।
यह याद तो स्वर्ग में भी छप जाती, नर्क में भी छप जाती।
बच्चा कहेगा यह हमारा बाप है, अब यह तो है बेहद का बाप।
जिससे स्वर्ग का वर्सा मिलता है तो उनकी याद छप जानी चाहिए।
बाप से हम भविष्य 21 जन्मों का फिर से वर्सा ले रहे हैं।
बुद्धि में वर्सा ही याद है।
यह भी जानते हो मरना तो सबको है।
एक भी रहने का नहीं है जो भी डियरेस्ट से डियरेस्ट (प्यारा से प्यारा) है, सब चले जायेंगे।
यह सिर्फ तुम ब्राह्मण ही जानते हो कि यह पुरानी दुनिया अब गई कि गई।
उसके जाने के पहले पूरा पुरूषार्थ करना है।
जबकि ईश्वरीय औलाद हैं तो अथाह खुशी होनी चाहिए।
बाप कहते रहते हैं-बच्चे, अपना जीवन हीरे जैसा बनाओ।
वह है डीटी वर्ल्ड, यह है डेविल वर्ल्ड।
सतयुग में कितना अथाह सुख रहता है।
वह बाप ही देते हैं।
यहाँ तुम बाप के पास आये हो।
यहाँ बैठ तो नहीं जायेंगे।
ऐसे तो नहीं सब इकट्ठे रहेंगे क्योंकि बेहद बच्चे हैं।
यहाँ तुम बहुत उमंग से आते हो।
हम जाते हैं बेहद के बाप पास।
हम ईश्वरीय औलाद हैं।
गॉड फादर के बच्चे हैं, तो हम क्यों न स्वर्ग में होने चाहिए।
गॉड फादर तो स्वर्ग रचते हैं ना।
अब तुम्हारी बुद्धि में सारे वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी है।
जानते हो हेविनली गॉड फादर हमको हेविन के लायक बना रहे हैं।
कल्प-कल्प बाद बनाते हैं।
एक भी मनुष्य नहीं जिसको यह पता हो कि हम एक्टर हैं।
गॉड फादर के बच्चे फिर हम दु:खी क्यों हैं!
आपस में लड़ते क्यों हैं!
हम आत्मायें सब ब्रदर्स हैं ना।
ब्रदर्स आपस में कैसे लड़ते रहते हैं।
लड़कर खत्म हो जायेंगे।
यहाँ हम बाप से वर्सा ले रहे हैं।
ब्रदर्स को आपस में कभी लून-पानी नहीं होना चाहिए।
यहाँ तो बाप से भी लून-पानी होते हैं।
अच्छे-अच्छे बच्चे लून-पानी हो जाते हैं।
माया कितनी जबरदस्त है।
जो अच्छे-अच्छे बच्चे हैं वह बाप को याद तो पड़ते हैं।
बाप का कितना लव है बच्चों पर।
बाप को तो सिवाए बच्चों के और कोई है नहीं जिसको याद करें।
तुम्हारे लिए तो बहुत हैं।
तुम्हारी बुद्धि इधर-उधर जाती है।
धन्धे आदि में भी बुद्धि जाती है।
हमारे लिए तो कोई धन्धा आदि भी नहीं है।
तुम अनेक बच्चों के अनेक धन्धे हैं।
हमारा तो एक ही धन्धा है।
हम आये ही हैं बच्चों को स्वर्ग का वारिस बनाने।
बेहद के बाप की प्रापर्टी सिर्फ तुम बच्चे हो।
गॉड फादर है ना।
सभी आत्मायें उनकी प्रापर्टी हैं।
माया ने छी-छी बना दिया है।
अब गुल-गुल बनाते हैं बाप।
बाप कहते हैं मेरे तो तुम ही हो।
तुम्हारे ऊपर हमारा मोह भी है।
चिट्ठी नहीं लिखते हो तो ओना हो जाता है।
अच्छे-अच्छे बच्चों की चिट्ठी नहीं आती है।
अच्छे-अच्छे बच्चों को एकदम माया खत्म कर देती है। जरूर देह-अभिमान है।
बाप कहते रहते हैं अपनी खुशखैराफत लिखो।
बाबा बच्चों से पूछते हैं बच्चे तुमको माया हैरान तो नहीं करती है?
बहादुर बन माया पर जीत पहन रहे हो ना!
तुम युद्ध के मैदान में हो ना।
कर्मेन्द्रियां ऐसे वश करनी चाहिए जो कुछ भी चंचलता न हो।
सतयुग में सब कर्मेन्द्रियां वश में रहती हैं।
कर्मेन्द्रियों की कोई चंचलता नहीं होती है।
न मुख की, न हाथ की, न कान की..... कोई भी चंचलता की बात नहीं होती।
वहाँ कोई भी गन्द की चीज़ होती नहीं।
यहाँ योगबल से कर्मेन्द्रियों पर जीत पाते हो।
बाप कहते हैं कोई भी गन्दी बात नहीं।
कर्मेन्द्रियों को वश करना है।
अच्छी रीति पुरूषार्थ करना है।
टाइम बहुत थोड़ा है।
गायन भी है बहुत गई थोड़ी रही।
अभी थोड़ी रहती जाती है।
नया मकान बनता रहता है तो बुद्धि में रहता है ना-बाकी थोड़ा समय है।
अभी यह तैयार हो जायेगा, बाकी यह थोड़ा काम है।
वह है हद की बात, यह है बेहद की बात।
यह भी बच्चों को समझाया गया है उन्हों का है साइंस बल, तुम्हारा है साइलेन्स बल।
है उनका भी बुद्धि बल, तुम्हारा भी बुद्धि बल।
साइंस की कितनी इन्वेन्शन निकालते रहते हैं।
अभी तो ऐसे बाम्ब्स बनाते रहते हैं जो कहते हैं वहाँ बैठे-बैठे छोड़ेंगे तो सारा शहर खत्म हो जायेगा।
फिर यह सेनायें, एरोप्लेन आदि भी काम में नहीं आयेंगे।
तो वह है साइंस बुद्धि।
तुम्हारी है साइलेन्स बुद्धि।
वह विनाश के लिए निमित्त बने हुए हैं।
तुम अविनाशी पद पाने के लिए निमित्त बने हो।
यह भी समझने की बुद्धि चाहिए ना।
तुम बच्चे समझ सकते हो - बाप कितना सहज रास्ता बताते हैं।
भल कितनी भी अहिल्यायें, कुब्जायें हो, सिर्फ दो अक्षर याद करने हैं - बाप और वर्सा।
फिर जितना जो याद करे।
और संग तोड़ एक बाप को याद करना है।
बाप कहते हैं मैं जब अपने घर परमधाम में था तो भक्ति मार्ग में तुम पुकारते थे-बाबा आप आयेंगे तो हम सब कुछ कुर्बान करेंगे।
यह हुए जैसे करनीघोर, करनीघोर को पुराना सामान दिया जाता है।
तुम बाप को क्या देंगे?
इनको (ब्रह्मा को) तो नहीं देते हो ना।
इसने भी सब कुछ दे दिया।
यह थोड़ेही यहाँ बैठ महल बनायेंगे।
यह सब कुछ शिवबाबा के लिए है।
उनके डायरेक्शन से कर रहे हैं।
वह करन-करावनहार है, डायरेक्शन देते रहते हैं।
बच्चे कहते हैं बाबा आप हमारे लिए एक ही हो।
आपके लिए तो बहुत बच्चे हैं।
बाबा फिर कहते हमारे लिए सिर्फ तुम बच्चे हो।
तुम्हारे लिए तो बहुत हैं।
कितने देह के सम्बन्धियों की याद रहती है।
मीठे-मीठे बच्चों को बाप कहते हैं जितना हो सके बाप को याद करो और सबको भुलाते जाओ।
स्वर्ग की राजाई का मक्खन तुमको मिलता है।
ज़रा ख्याल तो करो, कैसे यह खेल की रचना है।
तुम सिर्फ बाप को याद करते हो और स्वदर्शन चक्रधारी बनने से चक्रवर्ती राजा बनते हो।
अभी तुम बच्चे प्रैक्टिकल में अनुभवी हो।
मनुष्य तो समझते हैं भक्ति परम्परा से चली आई है।
विकार भी परम्परा से चले आये हैं।
इन लक्ष्मी-नारायण, राधे-कृष्ण को भी तो बच्चे थे ना।
अरे हाँ, बच्चे क्यों नहीं थे परन्तु उन्हों को कहा जाता है सम्पूर्ण निर्विकारी।
यहाँ हैं सम्पूर्ण विकारी।
एक-दो को गालियाँ देते रहते हैं।
अब तुम बच्चों को बाप श्री श्री की श्रीमत मिलती है।
तुमको श्रेष्ठ बनाते हैं।
अगर बाप का कहना नहीं मानेंगे तो फिर थोड़ेही बनेंगे।
अब मानो न मानो।
सपूत बच्चे तो फौरन मानेंगे।
पूरी मदद नहीं देते हैं तो अपने को घाटा डालते हैं।
बाप कहते हैं मैं कल्प-कल्प आता हूँ।
कितना पुरूषार्थ कराता हूँ।
कितना खुशी में ले आते हैं।
बाप से पूरा वर्सा लेने में ही माया ग़फलत कराती है।
परन्तु तुम्हें उस फन्दे में नहीं फँसना है।
माया से ही लड़ाई होती है।
बहुत बड़े-बड़े तूफान आयेंगे।
उसमें भी वारिसों पर जास्ती माया वार करेगी।
रूसतम से रूसतम हो लड़ेगी।
जैसे वैद्य दवाई देते हैं तो बीमारी सारी बाहर निकल आती है।
यहाँ भी मेरे बनेंगे तो फिर सबकी याद आने लग पड़ेगी।
तूफान आयेंगे, इसमें लाइन क्लीयर चाहिए।
हम पहले पवित्र थे फिर आधाकल्प अपवित्र बनें।
अब फिर वापिस जाना है।
बाप कहते हैं मुझे याद करो तो इस योग अग्नि से तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे।
जितना याद करेंगे उतना ऊंच पद पायेंगे।
याद करते-करते तुम घर चले जायेंगे, इसमें बिल्कुल अन्तर्मुखता चाहिए।
नॉलेज भी आत्मा में धारण होती है ना।
आत्मा ही पढ़ती है।
आत्मा का ज्ञान भी परमात्मा बाप ही आकर देते हैं।
इतना भारी ज्ञान तुम लेते हो विश्व का मालिक बनने के लिए।
मुझे तुम कहते ही हो-पतित-पावन, ज्ञान का सागर, शान्ति का सागर।
जो मेरे पास है वह तुमको सब देता हूँ।
बाकी सिर्फ दिव्य दृष्टि की चाबी नहीं देता हूँ।
उसके बदले फिर तुमको विश्व का मालिक बनाता हूँ।
साक्षात्कार में कुछ है नहीं।
मुख्य है पढ़ाई।
पढ़ाई से तुमको 21 जन्म का सुख मिलता है।
मीरा की भेंट में तुम अपने सुख की भेंट करो।
वह तो कलियुग में थी, दीदार किया फिर क्या।
भक्ति की माला ही अलग है।
ज्ञान मार्ग की माला अलग है।
रावण की राजाई अलग, तुम्हारी राजाई अलग।
उनको दिन, उनको रात कहा जाता है।
अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।