आज सर्व बच्चों के तीनों काल को जानने वाले त्रिकालदर्शी बापदादा सभी बच्चों के जमा का खाता देख रहे हैं।
यह तो सभी जानते ही हो कि सारे कल्प में श्रेष्ठ खाता जमा करने का समय सिर्फ यही संगमयुग है।
छोटा-सा युग, छोटी-सी जीवन है।
लेकिन इस युग, इस जीवन की विशेषता है जो अब ही जितना जमा करने चाहें वह कर सकते हैं।
इस समय के श्रेष्ठ खाते के प्रमाण पूज्य पद भी पाते हो और फिर पूज्य सो पुजारी भी बनते हो।
इस समय के श्रेष्ठ कर्मों का, श्रेष्ठ नॉलेज का, श्रेष्ठ सम्बन्ध का, श्रेष्ठ शक्तियों का, श्रेष्ठ गुणों का सब श्रेष्ठ खाते अभी जमा करते हो।
द्वापर से भक्ति का खाता अल्पकाल का अभी-अभी किया, अभी-अभी फल पाया और खत्म हुआ।
भक्ति का खाता अल्पकाल का इसलिए है- क्योंकि अभी कमाया और अभी खाया।
जमा करने का अविनाशी खाता जो जन्म-जन्म चलता रहे वह अविनाशी खाते जमा करने का अभी समय है इसलिए इस श्रेष्ठ समय को पुरुषोत्तम युग या धर्माऊ युग कहा जाता है।
परमात्म अवतरण युग कहा जाता है।
डायरेक्ट बाप द्वारा प्राप्त शक्तियों का युग यही गाया हुआ है।
इसी युग में ही बाप विधाता और वरदाता का पार्ट बजाते हैं इसलिए इस युग को वरदानी युग भी कहा जाता है।
इस युग में स्नेह के कारण बाप भोले भण्डारी बन जाते हैं।
जो एक का पदमगुणा फल देता है।
एक का पदमगुणा जमा होने का विशेष भाग्य अभी ही प्राप्त होता है।
और युगों में जितना और उतना का हिसाब है।
अन्तर हुआ ना क्योंकि अभी डायरेक्ट बाप वर्से और वरदान दोनों रूप में प्राप्ति कराने के निमित्त हैं।
भक्ति में भावना का फल है, अभी वर्से और वरदान का फल है इसलिए इस समय के महत्व को जान, प्राप्तियों को जान, जमा के हिसाब को जान, त्रिकालदर्शी बन हर कदम उठाते रहते हो?
इस समय का एक सेकण्ड कितने साधारण समय से बड़ा है - वह जानते हो?
सेकण्ड में कितना कमा सकते हो और सेकण्ड में कितना गंवाते हो?
यह अच्छी तरह से हिसाब जानते हो?
वा साधारण रीति से कुछ कमाया कुछ गंवाया।
ऐसा अमूल्य समय समाप्त तो नहीं कर रहे हो?
ब्रह्माकुमार ब्रह्माकुमारी तो बने लेकिन अविनाशी वर्से और विशेष वरदानों के अधिकारी बने?
क्योंकि इस समय के अधिकारी जन्म-जन्म के अधिकारी बनते हैं।
इस समय के किसी न किसी स्वभाव वा संस्कार वा किसी सम्बन्ध के अधीन रहने वाली आत्मा जन्म-जन्म अधिकारी बनने के बजाए प्रजा पद के अधिकारी बनते हैं।
राज्य अधिकारी नहीं।
प्रजा पद अधिकारी बनते हैं।
बनने आये हैं राजयोगी, राज्य अधिकारी लेकिन अधीनता के संस्कार कारण विधाता के बच्चे होते हुए भी राज्य अधिकारी नहीं बन सकते इसलिए सदा यह चेक करो स्व अधिकारी कहाँ तक बने हैं?
जो स्व अधिकार नहीं पा सकते वो विश्व का राज्य कैसे प्राप्त करेंगे?
विश्व के राज्य अधिकारी बनने का चैतन्य माडल, अभी स्व राज्य अधिकारी बनने से तैयार करते हो।
कोई भी चीज़ का पहले माडल तैयार करते हो ना।
तो पहले इस माडल को देखो।
स्व अधिकारी अर्थात् सर्व कर्मेन्द्रियों रूपी प्रजा के राजा बनना।
प्रजा का राज्य है या राजा का राज्य है?
यह तो जान सकते हो ना!
प्रजा का राज्य है तो राजा नहीं कहलायेंगे।
प्रजा के राज्य में राजवंश समाप्त हो जाता है।
कोई भी एक कर्मेन्द्रिय धोखा देती है तो स्व राज्य अधिकारी नहीं कहेंगे।
ऐसे भी कभी नहीं सोचना कि एक दो कमजोरी तो होती ही हैं।
सम्पूर्ण तो लास्ट में बनना है।
लेकिन बहुत काल की एक कमजोरी भी समय पर धोखा दे देती है।
बहुत काल के अधीन बनने के संस्कार अधिकारी बनने नहीं देंगे इसलिए अधिकारी अर्थात् स्व अधिकारी।
अन्त में सम्पूर्ण हो जायेंगे, इस धोखे में नहीं रह जाना।
बहुत काल का स्व अधिकार का संस्कार बहुत काल के विश्व अधिकारी बनायेगा।
थोड़े समय के स्व राज्य अधिकारी थोड़े समय के लिए ही विश्व राज्य अधिकारी बनेंगे।
जो अभी बाप की समानता की आज्ञा प्रमाण बाप के दिलतख्तनशीन बनते हैं वो ही राज्य तख्तनशीन बनते हैं।
बाप समान बनना अर्थात् बाप के दिल तख्तनशीन बनना।
जैसे ब्रह्मा बाप सम्पन्न और समान बने ऐसे सम्पूर्ण और समान बनो।
राज्य तख्त के अधिकारी बनो।
किसी भी प्रकार के अलबेलेपन में अपना अधिकार का वर्सा वा वरदान कम नहीं प्राप्त करना।
तो जमा का खाता चेक करो।
नया वर्ष शुरू हुआ है ना।
पिछला खाता चेक करो और नया खाता समय और बाप के वरदान से ज्यादा से ज्यादा जमा करो।
सिर्फ कमाया और खाया, ऐसा खाता नहीं बनाओ!
अमृतवेले योग लगाया जमा किया।
क्लास में स्टडी कर जमा किया और फिर सारे दिन में परिस्थितियों के वश वा माया के वार के वश वा अपने संस्कारों के वश जो जमा किया वह युद्ध करते विजयी बनने में खर्च किया।
तो रिजल्ट क्या निकली?
कमाया और खाया, जमा क्या हुआ?
इसलिए जमा का खाता सदा चेक करो और बढ़ाते चलो।
ऐसे ही चार्ट में सिर्फ राइट नहीं करो।
क्लास किया? हां।
योग किया?
लेकिन जैसे शक्तिशाली योग समय के प्रमाण होना चाहिए वैसे रहा?
समय अच्छा पास किया, बहुत आनन्द आया, वर्तमान तो बना लेकिन वर्तमान के साथ जमा भी किया?
इतना शक्तिशाली अनुभव किया?
चल रहे हैं, सिर्फ यह चेक नहीं करो।
किसी से भी पूछो कैसे चल रहे हो?
तो कह देते बहुत अच्छे चल रहे हैं।
लेकिन किस स्पीड में चल रहे हैं, यह चेक करो।
चींटी की चाल चल रहे हैं वा राकेट की चाल चल रहे हैं?
इस वर्ष सभी बातों में शक्तिशाली बनने की स्पीड को और परसेन्टेज को चेक करो।
कितनी परसेन्टेज में जमा कर रहे हो?
5 रूपया भी कहेंगे जमा हुआ।
500 रूपया भी कहेंगे जमा हुआ!
जमा तो किया लेकिन कितना किया? समझा क्या करना है।
गोल्डन जुबली की ओर जा रहे हो- यह सारा वर्ष गोल्डन जुबली का है ना!
तो चेक करो हर बात में गोल्डन एजड अर्थात् सतोप्रधान स्टेज है?
वा सतो अर्थात् सिलवर एजड स्टेज है?
पुरुषार्थ भी सतोप्रधान गोल्डन एजड हो।
सेवा भी गोल्डन एजड हो।
जरा भी पुराने संस्कार का अलाए (खाद) नहीं हो।
ऐसे नहीं जैसे आजकल चांदी के ऊपर भी सोने का पानी चढ़ा देते हैं।
बाहर से तो सोना लगता है लेकिन अन्दर क्या होता है?
मिक्स कहेंगे ना!
तो सेवा में भी अभिमान और अपमान का अलाए मिक्स न हो।
इसको कहा जाता है गोल्डन एजड सेवा।
स्वभाव में भी ईर्ष्या, सिद्ध और ज़िद का भाव न हो। यह है अलाए।
इस अलाए को समाप्त कर गोल्डन एजड स्वभाव वाले बनो।
संस्कार में सदा हाँ जी।
जैसा समय, जैसी सेवा वैसे स्वयं को मोल्ड करना है अर्थात् रीयल गोल्ड बनना है।
मुझे मोल्ड होना है।
दूसरा करे तो मैं करूँ यह जिद्द हो जाती है।
यह रीयल गोल्ड नहीं!
यह अलाए समाप्त कर गोल्डन एजड बनो।
सम्बन्ध में सदा हर आत्मा के प्रति शुभ भावना, कल्याण की भावना हो।
स्नेह की भावना हो, सहयोग की भावना हो।
कैसे भी भाव स्वभाव वाला हो लेकिन आपका सदा श्रेष्ठ भाव हो।
इन सब बातों में स्व-परिवर्तन ही गोल्डन जुबली मनाना है।
अलाए को जलाना अर्थात् गोल्डन जुबली मनाना।
समझा - वर्ष का आरम्भ गोल्डन एजड स्थिति से करो।
सहज है ना। सुनने के समय तो सब समझते हैं कि करना ही है लेकिन जब समस्या सामने आती तब सोचते यह तो बड़ी मुश्किल बात है।
समस्या के समय स्व राज्य अधिकारीपन का अधिकार दिखाने का ही समय होता है।
वार के समय ही विजयी बनना होता है।
परीक्षा के समय ही नम्बरवन लेने का समय होता है।
समस्या स्वरूप नहीं बनो लेकिन समाधान स्वरूप बनो।
समझा - इस वर्ष क्या करना है?
तब गोल्डन जुबली की समाप्ति सम्पन्न बनने की गोल्डन जुबली कही जायेगी।
और क्या नवीनता करेंगे?
बाप दादा के पास सभी बच्चों के संकल्प तो पहुंचते ही हैं।
प्रोग्राम में भी नवीनता क्या करेंगे?
गोल्डन थाट्स सुनाने की टापिक रखी है ना।
सुनहरे संकल्प, सुनहरे विचार, जो सोना बना दें और सोने का युग लावें।
यह टापिक रखी है ना।
अच्छा- आज वतन में इस विषय पर रूह-रूहान हुई वो फिर सुनायेंगे।
अच्छा -
सर्व वर्से और वरदान के डबल अधिकारी भाग्यवान आत्माओं को, सदा स्वराज्य अधिकारी श्रेष्ठ आत्माओं को, सदा स्वयं को गोल्डन एजड स्थिति में स्थित करने वाले रीयल गोल्ड बच्चों को, सदा स्व परिवर्तन की लगन से विश्व परिवर्तन में आगे बढ़ने वाले विशेष आत्माओं को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।
मीटिंग में आये हुए डाक्टर्स से - अव्यक्त बापदादा की मुलाकात
अपने श्रेष्ठ उमंग उत्साह द्वारा अनेक आत्माओं को सदा खुश बनाने की सेवा में लगे हुए हो ना।
डाक्टर्स का विशेष कार्य ही है हर आत्मा को खुशी देना।
पहली दवाई खुशी है।
खुशी आधी बीमारी खत्म कर देती है।
तो रूहानी डाक्टर्स अर्थात् खुशी की दवाई देने वाले।
तो ऐसे डाक्टर हो ना।
एक बार भी खुशी की झलक आत्मा को अनुभव हो जाए तो वह आत्मा सदा खुशी की झलक से आगे उड़ती रहेगी।
तो सभी को डबल लाइट बनाए उड़ाने वाले डाक्टर्स हो ना।
वह बेड से उठा देते हैं।
बेड में सोने वाले पेशेन्ट को उठा देते हैं, चला देते हैं।
आप पुरानी दुनिया से उठाए नई दुनिया में बिठा दो।
ऐसे प्लैन बनाये हैं ना।
रूहानी इनस्ट्रुमेन्टस यूज़ करने का प्लैन बनाया है?
इन्जेक्शन क्या है, गोलियां क्या हैं, ब्लड देना क्या है।
यह सब रूहानी साधन बनाये हैं!
किसको ब्लड देने की आवश्यकता है तो रूहानी ब्लड कौन-सा देना है?
हार्ट पेशेन्ट को कौन-सी दवाई देनी है?
हार्ट पेशेन्ट अर्थात् दिलशिकस्त पेशेन्ट।
तो रूहानी सामग्री चाहिए।
जैसे वह नई-नई इन्वेन्शन करते हैं, वो साइन्स के साधन से इन्वेन्शन करते हैं।
आप साइलेन्स के साधनों से सदाकाल के लिए निरोगी बना दो।
जैसे उन्हों के पास सारी लिस्ट है - यह इन्स्ट्रुमेन्ट हैं, यह इन्स्ट्रुमेन्ट है।
ऐसे ही आपकी भी लिस्ट हो लम्बी।
ऐसे डाक्टर्स हो।
एवरहेल्दी बनाने के इतने बढ़िया साधन हों।
ऐसे आक्युपेशन अपना बनाया है?
सभी डाक्टर्स ने अपने-अपने स्थान पर ऐसा बोर्ड लगाया है एवरहेल्दी एवरवेल्दी बनने का?
जैसे अपने वह आक्युपेशन लिखते हो ऐसे ही यह लिखत हो जिसे देखकर समझें कि यह क्या है - अन्दर जाकर देखे।
आकर्षण करने वाला बोर्ड हो। लिखत ऐसी हो जो परिचय लेने के बिना कोई रह न सके।
वैसे बुलाने की आवश्यकता न हो लेकिन स्वयं ही आपके आगे न चाहते भी पहुंच जाएं, ऐसा बोर्ड हो।
वह तो लिखते हैं एम. बी. बी. एस., फलाने-फलाने आप फिर अपना ऐसा बोर्ड पर रूहानी आक्युपेशन लिखो जिससे वह समझें कि यह स्थान जरूरी है।
ऐसी अपनी रूहानी डिग्री बनाई है या वो ही डिग्रियां लिखते हो?
(सेवा का श्रेष्ठ साधन क्या होना चाहिए) सेवा का सबसे तीखा साधन है - समर्थ संकल्प से सेवा।
समर्थ संकल्प भी हों, बोल भी हों और कर्म भी हों। तीनों साथ-साथ कार्य करें।
यही शक्तिशाली साधन है।
वाणी में आते हो तो शक्तिशाली संकल्प की परसेन्टेज कम हो जाती है या वह परसेन्टेज होती है तो वाणी की शक्ति में फर्क पड़ जाता है।
लेकिन नहीं।
तीनों ही साथ-साथ हों।
जैसे कोई भी पेशेन्ट को एक ही साथ कोई नब्ज देखता है, कोई आपरेशन करता है... इकट्ठा-इकट्ठा करते हैं।
नब्ज देखने वाला पीछे देखे और आपरेशन वाला पहले कर ले तो क्या होगा?
इकट्ठा-इकट्ठा कितना कार्य चलता है।
ऐसे ही रूहानियत के भी सेवा के साधन इकट्ठा-इकट्ठा साथ-साथ चलें।
बाकी सेवा के प्लैन बनाये हैं, बहुत अच्छा।
लेकिन ऐसा कोई साधन बनाओ जो सभी समझे कि हाँ यह रूहानी डाक्टर सदा के लिए हेल्दी बनाने वाले हैं। अच्छा।