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10-12-2019 प्रात:मुरली बापदादा मधुबन

“मीठे बच्चे - सर्वशक्तिमान् बाप से बुद्धियोग लगाने से शक्ति मिलेगी,

याद से ही आत्मा रूपी बैटरी चार्ज होती है,

आत्मा पवित्र सतोप्रधान बन जाती है''

प्रश्नः-

संगमयुग पर तुम बच्चे कौन-सा पुरूषार्थ करते हो जिसकी प्रालब्ध में देवता पद मिलता है?

उत्तर:-

संगम पर हम शीतल बनने का पुरूषार्थ करते हैं।

शीतल अर्थात् पवित्र बनने से हम देवता बन जाते हैं।

जब तक शीतल न बनें तब तक देवता भी बन नहीं सकते।

संगम पर शीतल देवियां बन सब पर ज्ञान के ठण्डे छींटे डाल सबको शीतल करना है।

सबकी तपत बुझानी है।

खुद भी शीतल बनना है और सबको भी बनाना है।

ओम् शान्ति।

बच्चों को पहले-पहले एक ही बात समझने की है कि हम सब भाई-भाई हैं और शिवबाबा सभी का बाप है।

उन्हें सर्वशक्तिमान् कहा जाता है।

तुम्हारे में सर्वशक्तियाँ थी।

तुम सारे विश्व पर राज्य करते थे।

भारत में इन देवी-देवताओं का राज्य था, तुम ही पवित्र देवी-देवता थे।

तुम्हारे कुल वा डिनायस्टी में सभी निर्विकारी थे।

कौन निर्विकारी थे? आत्मायें।

अभी फिर से तुम निर्विकारी बन रहे हो।

सर्वशक्तिमान बाप की याद से शक्ति ले रहे हो।

बाप ने समझाया है आत्मा ही 84 का पार्ट बजाती है।

आत्मा में ही सतोप्रधानता की ताकत थी, वह फिर दिन-प्रतिदिन कम होती जाती है।

सतोप्रधान से तमोप्रधान तो बनना ही है।

जैसे बैटरी की ताकत कम होती जाती है तो मोटर खड़ी हो जाती है।

बैटरी डिस्चार्ज हो जाती है।

आत्मा की बैटरी फुल डिस्चार्ज नहीं होती, कुछ न कुछ ताकत रहती है।

जैसे कोई मरता है तो दीवा जलाते हैं, उसमें घृत डालते ही रहते हैं कि कहाँ ज्योत बुझ न जाए।

अभी तुम बच्चे समझते हो तुम्हारी आत्मा में पूरी शक्ति थी, अभी नहीं है।

अभी फिर तुम सर्वशक्तिमान बाप से अपना बुद्धियोग लगाते हो, अपने में शक्ति भरते हो क्योंकि शक्ति कम हो गई है।

शक्ति एकदम खत्म हो जाए तो शरीर ही न रहे।

आत्मा बाप को याद करते-करते एकदम प्योर हो जाती है।

सतयुग में तुम्हारी बैटरी फुल चार्ज रहती है।

फिर धीरे-धीरे कला अर्थात् बैटरी कम होती जाती है।

कलियुग अन्त तक आत्मा की ताकत एकदम थोड़ी रह जाती है।

जैसे ताकत का देवाला निकल जाता है।

बाप को याद करने से आत्मा फिर से भरपूर हो जाती है।

तो अभी बाप समझाते हैं एक को ही याद करना है।

ऊंच ते ऊंच है भगवंत।

बाकी सब है रचना।

रचना को रचना से हद का वर्सा मिलता है।

क्रियेटर तो एक ही बेहद का बाप है।

बाकी सब हैं हद के।

बेहद के बाप को याद करने से बेहद का वर्सा मिलता है।

तो बच्चों को दिल अन्दर समझना चाहिए कि बाबा हमारे लिए स्वर्ग नई दुनिया स्थापन कर रहे हैं।

ड्रामा प्लैन अनुसार स्वर्ग की स्थापना हो रही है, जिसमें तुम बच्चे ही आकर राज्य करते हो।

मैं तो एवर पवित्र हूँ।

मैं कभी गर्भ से जन्म नहीं लेता हूँ, न देवी-देवताओं की तरह जन्म लेता हूँ।

सिर्फ तुम बच्चों को स्वर्ग की बादशाही देने के लिए जब यह (बाबा) 60 वर्ष की वानप्रस्थ अवस्था में होता है तब इनके तन में मैं प्रवेश करता हूँ।

यही फिर नम्बरवन तमोप्रधान से नम्बरवन सतोप्रधान बनता है।

ऊंच ते ऊंच है भगवान।

फिर है ब्रह्मा, विष्णु, शंकर-सूक्ष्मवतन वासी।

यह ब्रह्मा, विष्णु, शंकर कहाँ से आये?

यह सिर्फ साक्षात्कार होता है।

सूक्ष्मवतन बीच का है ना।

जहाँ स्थूल शरीर है नहीं।

सूक्ष्म शरीर सिर्फ दिव्य दृष्टि से देखा जाता है।

ब्रह्मा तो है सफेद वस्त्रधारी।

वह विष्णु है हीरे जवाहरों से सजा-सजाया।

फिर शंकर के गले में नाग आदि दिखाते हैं।

ऐसे शंकर आदि कोई हो नहीं सकता।

दिखाते हैं अमरनाथ पर शंकर ने पार्वती को अमर कथा सुनाई।

अभी फिर सूक्ष्मवतन में तो मनुष्य सृष्टि है नहीं।

तो कथा वहाँ कैसे सुनायेंगे?

बाकी सूक्ष्मवतन का सिर्फ साक्षात्कार होता है।

जो बिल्कुल पवित्र हो जाते हैं उनका साक्षात्कार होता है।

यही फिर सतयुग में जाकर स्वर्ग के मालिक बनते हैं।

तो बुद्धि में आना चाहिए कि इन्होंने फिर यह राज्य-भाग्य कैसे पाया?

लड़ाई आदि तो कुछ होती नहीं है।

देवतायें हिंसा कैसे करेंगे?

अभी तुम बाप को याद कर राजाई लेते हो, कोई माने वा न माने।

गीता में भी है देह सहित देह के सब धर्मों को भूल मामेकम् याद करो।

बाप को तो देह ही नहीं है, जिसमें ममत्व हो।

बाप कहते हैं-थोड़े समय के लिए इस शरीर का लोन लेता हूँ।

नहीं तो मैं नॉलेज कैसे दूँ?

मैं इस झाड़ का चैतन्य बीजरूप हूँ।

इस झाड़ की नॉलेज मेरे ही पास है।

इस सृष्टि की आयु कितनी है?

कैसे उत्पत्ति, पालना, विनाश होता है?

मनुष्यों को कुछ पता नहीं है।

वह पढ़ते हैं हद की पढ़ाई।

बाप तो बेहद की पढ़ाई पढ़ाकर बच्चों को विश्व का मालिक बनाते हैं।

भगवान कभी देहधारी मनुष्य को नहीं कहा जाता।

इन्हों को (ब्रह्मा-विष्णु-शंकर को) भी अपनी सूक्ष्म देह है इसलिए इन्हें भी भगवान नहीं कहेंगे।

यह शरीर तो इस दादा की आत्मा का तख्त है।

अकाल तख्त है ना।

अभी यह अकालमूर्त बाप का तख्त है।

अमृतसर में भी अकालतख्त है।

बड़े-बड़े जो होते हैं, वहाँ अकालतख्त पर जाकर बैठते हैं।

अभी बाप समझाते हैं यह सब आत्माओं का अकालतख्त है।

आत्मा में ही अच्छे वा बुरे संस्कार होते हैं, तब तो कहते हैं यह कर्मों का फल है।

सब आत्माओं का बाप एक ही है।

बाबा कोई शास्त्र आदि पढ़कर नहीं समझाते हैं।

यह बातें भी शास्त्रों आदि में नहीं हैं, तब तो लोग चिढ़ते हैं, कहते हैं यह लोग शास्त्रों को नहीं मानते।

साधू-सन्त आदि गंगा में जाकर स्नान करते हैं तो क्या पावन बन गये?

वापिस तो कोई जा नहीं सकते।

सब पिछाड़ी में जायेंगे।

जैसे मक्कड़ों का झुण्ड वा मक्खियों का झुण्ड जाता है।

मक्खियों में भी क्वीन होती है, उनके पिछाड़ी सभी जाते हैं, बाप भी जायेंगे तो उनके पिछाड़ी सब आत्मायें भी जायेंगी।

मूलवतन में भी जैसे सभी आत्माओं का झुण्ड है।

यहाँ फिर है सभी मनुष्यों का झुण्ड।

तो यह झुण्ड भी एक दिन भागना है।

बाप आकर सभी आत्माओं को ले जाते हैं।

शिव की बरात गाई हुई है।

बच्चे कहो वा बच्चियाँ कहो।

बाप आकर बच्चों को याद की यात्रा सिखलाते हैं।

पवित्र बनने बिगर आत्मा घर वापिस जा नहीं सकती।

जब पवित्र बन जायेंगी तो पहले शान्तिधाम में जायेंगी फिर वहाँ से आहिस्ते-आहिस्ते आते रहते हैं, वृद्धि होती रहती है।

राजधानी बननी है ना।

सभी इकट्ठे नहीं आते हैं।

झाड़ आहिस्ते-आहिस्ते वृद्धि को पाता है ना।

पहले-पहले आदि सनातन देवी-देवता धर्म है जो बाप स्थापन करते हैं।

ब्राह्मण भी पहले-पहले वही बनते हैं जिन्हें देवता बनना है।

प्रजापिता ब्रह्मा तो है ना।

प्रजा में भी भाई-बहन हो जाते हैं।

ब्रह्माकुमार-कुमारियाँ तो यहाँ ढेर बनते हैं।

जरूर निश्चयबुद्धि होंगे तब तो इतने ढेर मार्क्स लेते हैं।

तुम्हारे में जो पक्के हैं वह वहाँ पहले आते हैं, कच्चे वाले पिछाड़ी में ही आयेंगे।

मूलवतन में सभी आत्मायें रहती हैं फिर नीचे आती हैं तो वृद्धि होती जाती है।

शरीर बिगर आत्मा कैसे पार्ट बजायेगी?

यह पार्टधारियों की दुनिया है जो चारों युगों में फिरती रहती है।

सतयुग में हम सो देवता थे फिर क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र बनते हैं।

अभी यह है पुरूषोत्तम संगमयुग।

यह युग अभी ही बनता है जबकि बाप आते हैं।

यह अभी बेहद की नॉलेज बेहद का बाप ही देते हैं।

शिवबाबा को अपने शरीर का कोई नाम नहीं है।

यह शरीर तो इस दादा का है।

बाबा ने थोड़े समय के लिए यह लोन लिया है।

बाप कहते हैं हमको तुमसे बात करने के लिए मुख तो चाहिए ना।

मुख न हो तो बाप बच्चों से बात भी न कर सके।

फिर बेहद की नॉलेज भी इस मुख से सुनाता हूँ, इसलिए इसको गऊमुख भी कहते हैं।

पहाड़ों से पानी तो कहाँ भी निकल सकता है।

फिर यहाँ गऊमुख बना दिया है, उससे पानी आता है।

उन्हें फिर गंगाजल समझ पीते हैं।

उस पानी का फिर कितना महत्व रखते हैं।

इस दुनिया में है सब झूठ।

सच तो एक बाप ही सुनाते हैं।

फिर वह झूठे मनुष्य इस बाप की नॉलेज को झूठ समझ लेते हैं।

भारत में जब सतयुग था तो इसको सचखण्ड कहा जाता था।

फिर भारत ही पुराना बनता है तो हर बात, हर चीज़ झूठी होती है।

कितना फ़र्क हो जाता है।

बाप कहते हैं तुम हमारी कितनी ग्लानी करते हो।

सर्वव्यापी कह कितना इनसल्ट किया है।

शिवबाबा को बुलाते ही हैं कि इस पुरानी दुनिया से ले चलो।

बाप कहते हैं मेरे सभी बच्चे काम चिता पर चढ़कर कंगाल बन गये हैं।

बाप बच्चों को कहते हैं तुम तो स्वर्ग के मालिक थे ना।

स्मृति आती है?

बच्चों को ही समझाते हैं, सारी दुनिया को तो नहीं समझायेंगे।

बच्चे ही बाप को समझते हैं।

दुनिया इस बात को क्या जाने!

सबसे बड़ा कांटा है काम का।

नाम ही है पतित दुनिया।

सतयुग है 100 परसेन्ट पवित्र दुनिया।

मनुष्य ही, पवित्र देवताओं के आगे जाकर नमन करते हैं।

भल बहुत भक्त हैं जो वेजीटेरियन हैं, परन्तु ऐसे नहीं कि विकार में नहीं जाते हैं।

ऐसे तो बहुत बाल ब्रह्मचारी भी रहते हैं।

छोटेपन से कभी छी-छी खाना आदि नहीं खाते हैं।

सन्यासी भी कहते हैं निर्विकारी बनो।

घरबार का सन्यास करते हैं फिर दूसरे जन्म में भी किसी गृहस्थी के पास जन्म ले फिर घरबार छोड़ जंगल में चले जाते हैं।

परन्तु क्या पतित से पावन बन सकते हैं? नहीं।

पतित-पावन बाप की श्रीमत बिगर कोई पतित से पावन बन नहीं सकते।

भक्ति है उतरती कला का मार्ग।

तो फिर पावन कैसे बनेंगे?

पावन बनें तो घर जावें, स्वर्ग में आ जाएं।

सतयुगी देवी-देवतायें कब घरबार छोड़ते हैं क्या?

उन्हों का है हद का सन्यास, तुम्हारा है बेहद का सन्यास।

सारी दुनिया, मित्र-सम्बन्धी आदि सबका सन्यास।

तुम्हारे लिए अभी स्वर्ग की स्थापना हो रही है।

तुम्हारी बुद्धि स्वर्ग तरफ है।

मनुष्य तो नर्क में ही लटके पड़े हैं।

तुम बच्चे फिर बाप की याद में लटके पड़े हो।

तुमको शीतल देवियाँ बनाने के लिए ज्ञान चिता पर बिठाया जाता है।

शीतल अक्षर के अगेन्स्ट है तपत।

तुम्हारा नाम ही है शीतलादेवी।

एक तो नहीं होगी ना। जरूर बहुत होंगी, जिन्होंने भारत को शीतल बनाया है।

इस समय सभी काम-चिता पर जल रहे हैं।

तुम्हारा नाम यहाँ शीतला देवियाँ हैं

तुम शीतल करने वाली, ठण्डा छींटा डालने वाली देवियाँ हो।

छींटा डालने जाते हैं ना।

यह है ज्ञान के छींटे, जो आत्मा के ऊपर डाले जाते हैं।

आत्मा पवित्र बनने से शीतल बन जाती है।

इस समय सारी दुनिया काम चिता पर चढ़ काली हो पड़ी है।

अब कलष मिलता है तुम बच्चों को।

कलष से तुम खुद भी शीतल बनते हो और दूसरों को भी बनाते हो।

यह भी शीतल बने हैं ना।

दोनों इकट्ठे हैं।

घरबार छोड़ने की तो बात ही नहीं, लेकिन गऊशाला बनी होगी तो जरूर कोई ने घरबार छोड़ा होगा। किसलिए?

ज्ञानचिता पर बैठ शीतल बनने के लिए।

जब तुम यहाँ शीतल बनेंगे तब ही तुम देवता बन सकते हो।

अभी तुम बच्चों का बुद्धियोग पुराने घर की तरफ नहीं जाना चाहिए।

बाप के साथ बुद्धि लटकी रहे क्योंकि तुम सबको बाप के पास घर जाना है।

बाप कहते हैं-मीठे बच्चे, मैं पण्डा बनकर आया हूँ तुमको ले चलने।

यह शिव शक्ति पाण्डव सेना है।

तुम हो शिव से शक्ति लेने वाली, वह है सर्वशक्तिमान्।

मनुष्य तो समझते हैं-परमात्मा मरे हुए को जिन्दा कर सकते हैं।

परन्तु बाप कहते हैं-लाडले बच्चे, इस ड्रामा में हर एक को अनादि पार्ट मिला हुआ है।

मैं भी क्रियेटर, डायरेक्टर, प्रिन्सीपल एक्टर हूँ।

ड्रामा के पार्ट को हम कुछ भी चेंज नहीं कर सकते।

मनुष्य समझते हैं पत्ता-पत्ता भी परमात्मा के हुक्म से हिलता है लेकिन परमात्मा तो खुद कहते हैं मैं भी ड्रामा के अधीन हूँ, इसके बंधन में बांधा हुआ हूँ।

ऐसे नहीं कि मेरे हुक्म से पत्ते हिलेंगे।

सर्वव्यापी के ज्ञान ने भारतवासियों को बिल्कुल कंगाल बना दिया है।

बाप के ज्ञान से भारत फिर सिरताज बनता है।

अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1) सूर्यवंशी में पहले-पहले आने के लिए निश्चयबुद्धि बन फुल मार्क्स लेनी हैं।

पक्का ब्राह्मण बनना है।

बेहद की नॉलेज स्मृति में रखनी है।

2) ज्ञान चिता पर बैठ शीतल अर्थात् पवित्र बनना है।

ज्ञान और योग से काम की तपत समाप्त करनी है।

बुद्धियोग सदा एक बाप की तरफ लटका रहे।

वरदान:-

चमत्कार दिखाने के बजाए

अविनाशी भाग्य का चमकता हुआ सितारा बनाने वाले

सिद्धि स्वरूप भव

आजकल जो अल्पकाल की सिद्धि वाले हैं वह लास्ट में ऊपर से आने के कारण सतोप्रधान स्टेज के प्रमाण पवित्रता के फलस्वरूप अल्पकाल के चमत्कार दिखाते हैं लेकिन वह सिद्धि सदाकाल नहीं रहती क्योंकि थोड़े समय में ही सतो रजो तमो तीनों स्टेजेस से पास करते हैं।

आप पवित्र आत्मायें सदा सिद्धि स्वरूप हैं, चमत्कार दिखाने के बजाए चमकती हुई ज्योतिस्वरूप बनाने वाले हैं।

अविनाशी भाग्य का चमकता हुआ सितारा बनाने वाले हैं, इसलिए सब आपके पास ही अंचली लेने आयेंगे।

स्लोगन:-

बेहद की वैराग्य वृत्ति का वायुमण्डल हो तो सहयोगी सहज योगी बन जायेंगे।