जरा सोचिए सर्वशक्तिवान शिव बाबा जिन आत्माओं का संगम युग में तपस्या की मौज लेने के लिए आवाहन कर रहे हैं वो कौन हैं? हम ही तो हैं फिर क्यों चूकें...

 


“... ऐसे तपस्वीमूर्त वा त्यागमूर्त बनना है जो

आपके त्याग और तपस्या की शक्ति के आकर्षण दूर से प्रत्यक्ष दिखाई दें।

जैसे स्थूल अग्नि वा प्रकाश अथवा गर्मी दूर से ही दिखाई देती है वा अनुभव होती है।

वैसे आपकी तपस्या और त्याग की झलक दूर से ही आकर्षण करे।

हर कर्म में त्याग और तपस्या प्रत्यक्ष दिखाई दे। तब ही सेवा में सफलता पा सकेंगे।

सिर्फ सेवाधारी बनकर सेवा करने से जो सफ़लता चाहते हो, वह नहीं हो पाती है।

लेकिन सेवाधारी बनने के साथ-साथ त्याग और तपस्यामूर्त भी हो तब सेवा का प्रत्यक्षफल दिखाई देगा।...”

 

 

Ref:-

1971/ 19.04.1971
त्याग, तपस्या और सेवा की परिभाषा

 

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