ओम् शान्ति।
रूहानी बच्चों ने गीत सुना, अर्थ समझा।
दुनिया में कोई भी अर्थ नहीं समझते।
बच्चे समझते हैं हमारी आत्मा का लव परमपिता परमात्मा के साथ है।
आत्मा अपने बाप परमपिता परम आत्मा को पुकारती है।
प्यार आत्मा में है या शरीर में?
अब बाप सिखलाते हैं प्यार आत्मा में होना चाहिए।
शरीर तो खत्म हो जाना है।
प्यार आत्मा में है।
अब बाप समझाते हैं तुम्हारा प्यार परमात्मा बाप से होना चाहिए, शरीरों से नहीं।
आत्मा ही अपने बाप को पुकारती है कि पुण्य आत्माओं की दुनिया में ले चलो।
तुम समझते हो - हम पाप आत्मा थे, अब फिर पुण्य आत्मा बन रहे हैं।
बाबा तुमको युक्ति से पुण्य आत्मा बना रहे हैं।
बाप बतावे तब तो बच्चों को अनुभव हो और समझें कि हम बाप द्वारा बाप की याद से पवित्र पुण्य आत्मा बन रहे हैं।
योगबल से हमारे पाप भस्म हो रहे हैं।
बाकी गंगा आदि में कोई पाप धोये नहीं जाते।
मनुष्य गंगा स्नान करते हैं, शरीर को मिट्टी मलते हैं परन्तु उससे कोई पाप धुलते नहीं हैं।
आत्मा के पाप योगबल से ही निकलते हैं।
खाद निकलती है, यह तो बच्चों को ही मालूम है और निश्चय है हम बाबा को याद करेंगे तो हमारे पाप भस्म होंगे।
निश्चय है तो फिर पुरूषार्थ करना चाहिए ना।
इस पुरूषार्थ में ही माया विघ्न डालती है।
रूसतम से माया भी अच्छी रीति रूसतम होकर लड़ती है।
कच्चे से क्या लड़ेगी!
बच्चों को हमेशा यह ख्याल रखना है, हमको मायाजीत जगतजीत बनना है।
माया जीते जगत जीत का अर्थ भी कोई समझते नहीं।
अभी तुम बच्चों को समझाया जाता है - तुम कैसे माया पर जीत पा सकते हो।
माया भी समर्थ है ना।
तुम बच्चों को उस्ताद मिला हुआ है।
उस उस्ताद को भी नम्बरवार कोई विरला जानता है।
जो जानता है उनको खुशी भी रहती है।
पुरूषार्थ भी खुद करते हैं। सर्विस भी खूब करते हैं।
अमरनाथ पर बहुत लोग जाते हैं।
अब सभी मनुष्य कहते हैं विश्व में शान्ति कैसे हो?
अभी तुम सबको सिद्ध कर बतलाते हो कि सतयुग में कैसे सुख-शान्ति थी।
सारे विश्व पर शान्ति थी।
इन लक्ष्मी-नारायण का राज्य था, कोई और धर्म नहीं था।
आज से 5 हज़ार वर्ष हुए जबकि सतयुग था फिर सृष्टि को चक्र तो जरूर लगाना है।
चित्रों से तुम बिल्कुल क्लीयर बताते हो, कल्प पहले भी ऐसे चित्र बनाये थे।
दिन-प्रतिदिन इप्रूवमेंट होती जाती है। कहाँ बच्चे चित्रों में तिथि-तारीख लिखना भूल जाते हैं।
लक्ष्मी-नारायण के चित्र में तिथि-तारीख जरूर होनी चाहिए।
तुम बच्चों की बुद्धि में बैठा हुआ है ना कि हम स्वर्गवासी थे, अब फिर बनना है।
जितना जो पुरूषार्थ करते हैं उतना पद पाते हैं।
अभी बाप द्वारा तुम ज्ञान की अथॉरिटी बने हो।
भक्ति अब खलास हो जानी है।
सतयुग-त्रेता में भक्ति थोड़ेही होगी।
बाद में आधाकल्प भक्ति चलती है।
यह भी अभी तुम बच्चों को समझ में आता है।
आधाकल्प के बाद रावण राज्य शुरू होता है।
सारा खेल तुम भारतवासियों पर ही है।
84 का चक्र भारत पर ही है।
भारत ही अविनाशी खण्ड है, यह भी आगे थोड़ेही पता था।
लक्ष्मी-नारायण को गॉड-गॉडेज कहते हैं ना।
कितना ऊंच पद है और पढ़ाई कितनी सहज है।
यह 84 का चक्र पूरा कर फिर हम वापिस जाते हैं।
84 का चक्र कहने से बुद्धि ऊपर चली जाती है।
अभी तुमको मूलवतन, सूक्ष्मवतन, स्थूलवतन सब याद है।
आगे थोड़ेही जानते थे - सूक्ष्मवतन क्या होता है।
अभी तुम समझते हो वहाँ कैसे मूवी में बातचीत करते हैं।
मूवी बाइसकोप भी निकला था। तुमको समझाने में सहज होता है।
साइलेन्स, मूवी, टॉकी।
तुम सब जानते हो लक्ष्मी-नारायण के राज्य से लेकर अब तक सारा चक्र बुद्धि में है।
तुम्हें गृहस्थ व्यवहार में रहते यही ओना लगा रहे कि हमको पावन बनना है।
बाप समझाते हैं गृहस्थ व्यवहार में रहते भी इस पुरानी दुनिया से ममत्व मिटा दो।
बच्चों आदि को भल सम्भालो।
परन्तु बुद्धि बाप के तरफ हो।
कहते हैं ना - हाथों से काम करते बुद्धि बाप तरफ रहे।
बच्चों को खिलाओ, पिलाओ, स्नान कराओ, बुद्धि में बाप की याद हो क्योंकि जानते हो शरीर पर पापों का बोझ बहुत है इसलिए बुद्धि बाप की तरफ लगी रहे।
उस माशूक को बहुत-बहुत याद करना है।
माशूक बाप तुम सब आत्माओं को कहते हैं मुझे याद करो, यह पार्ट भी अब चल रहा है फिर 5 हज़ार वर्ष बाद चलेगा।
बाप कितनी सहज युक्ति बताते हैं। कोई तकलीफ नहीं।
कोई कहे हम तो यह कर नहीं सकते, हमको बहुत तकलीफ भासती है, याद की यात्रा बहुत मुश्किल है।
अरे, तुम बाबा को याद नहीं कर सकते हो!
बाप को थोड़ेही भूलना चाहिए।
बाप को तो अच्छी रीति याद करना है तब विकर्म विनाश होंगे और तुम एवर हेल्दी बनेंगे।
नहीं तो बनेंगे नहीं।
तुमको राय बहुत अच्छी एक टिक मिलती है।
एक टिक दवाई होती है ना।
हम गैरन्टी करते हैं इस योगबल से तुम 21 जन्मों के लिए कभी रोगी नहीं बनेंगे।
सिर्फ बाप को याद करो - कितनी सहज युक्ति है।
भक्तिमार्ग में याद करते थे अनजाने से।
अब बाप बैठ समझाते हैं, तुम समझते हो हम कल्प पहले भी बाबा आपके पास आये थे, पुरूषार्थ करते थे।
पक्का निश्चय हो गया है।
हम ही राज्य करते थे फिर हमने गँवाया अब फिर बाबा आया हुआ है, उनसे राज्य-भाग्य लेना है।
बाप कहते हैं मुझे याद करो और राजाई को याद करो।
मन्मनाभव।
अन्त मती सो गति हो जायेगी।
अभी नाटक पूरा होता है, वापिस जायेंगे।
बाबा आये हैं सबको ले जाने लिए।
जैसे वर, वधू को लेने लिए आते हैं।
ब्राइड्स को बहुत खुशी होती है, हम अपने ससुराल जाते हैं।
तुम सब सीतायें हो एक राम की।
राम ही तुमको रावण की जेल से छुड़ाकर ले जाते हैं।
लिबरेटर एक ही है, रावणराज्य से लिबरेट करते हैं।
कहते भी हैं - यह रावणराज्य है, परन्तु यथार्थ रीति समझते नहीं हैं।
अभी बच्चों को समझाया जाता है, औरों को समझाने के लिए बहुत अच्छी-अच्छी प्वाइंट्स दी जाती हैं।
बाबा ने समझाया - यह लिख दो कि विश्व में शान्ति कल्प पहले मुआफिक बाप स्थापन कर रहे हैं।
ब्रह्मा द्वारा स्थापना हो रही है।
विष्णु का राज्य था तो विश्व में शान्ति थी ना।
विष्णु सो लक्ष्मी-नारायण थे, यह भी कोई समझते थोड़ेही हैं।
विष्णु और लक्ष्मी-नारायण और राधे-कृष्ण को अलग-अलग समझते हैं।
अभी तुमने समझा है, स्वदर्शन चक्रधारी भी तुम हो।
शिवबाबा आकर सृष्टि चक्र का ज्ञान देते हैं।
उन द्वारा अभी हम भी मास्टर ज्ञान सागर बने हैं।
तुम ज्ञान नदियां हो ना।
यह तो बच्चों के ही नाम हैं।
भक्ति मार्ग में मनुष्य कितने स्नान करते हैं, कितना भटकते हैं।
बहुत दान-पुण्य आदि करते हैं, साहूकार लोग तो बहुत दान करते हैं।
सोना भी दान करते हैं।
तुम भी अभी समझते हो - हम कितना भटकते थे।
अब हम कोई हठयोगी तो हैं नहीं।
हम तो हैं राजयोगी।
पवित्र गृहस्थ आश्रम के थे, फिर रावणराज्य में अपवित्र बने हैं।
ड्रामा अनुसार बाप फिर गृहस्थ धर्म बना रहे हैं और कोई बना न सके।
मनुष्य तुमको कहते हैं कि तुम सब पवित्र बनोंगे तो दुनिया कैसे चलेगी?
बोलो, इतने सब संन्यासी पवित्र रहते हैं फिर दुनिया कोई बंद हो गई है क्या?
अरे सृष्टि इतनी बढ़ गई है, खाने के लिए अनाज भी नहीं और सृष्टि फिर क्या बढ़ायेंगे।
अभी तुम बच्चे समझते हो, बाबा हमारे सम्मुख हाज़िर-नाज़िर है, परन्तु उनको इन आंखों से देख नहीं सकते।
बुद्धि से जानते हैं, बाबा हम आत्माओं को पढ़ाते हैं, हाज़िर-नाज़िर हैं।
जो विश्व शान्ति की बातें करते हैं, उन्हें तुम बताओ कि विश्व में शान्ति तो बाप करा रहा है।
उसके लिए ही पुरानी दुनिया का विनाश सामने खड़ा है, 5 हज़ार वर्ष पहले भी विनाश हुआ था।
अभी भी यह विनाश सामने खड़ा है फिर विश्व पर शान्ति हो जायेगी।
अभी तुम बच्चों की बुद्धि में हैं ही यह बातें।
दुनिया में कोई नहीं जानते। कोई नहीं जिनकी बुद्धि में यह बातें हो।
तुम जानते हो सतयुग में सारे विश्व पर शान्ति थी।
एक भारत खण्ड के सिवाए दूसरा कोई खण्ड नहीं था।
पीछे और खण्ड हुए हैं।
अभी कितने खण्ड हैं।
अभी इस खेल का भी अन्त है।
कहते भी हैं भगवान जरूर होगा, परन्तु भगवान कौन और किस रूप में आते हैं।
यह नहीं जानते।
कृष्ण तो हो न सके।
न कोई प्रेरणा से वा शक्ति से काम करा सकते हैं।
बाप तो मोस्ट बिलवेड है, उनसे वर्सा मिलता है।
बाप ही स्वर्ग स्थापन करते हैं तो फिर जरूर पुरानी दुनिया का विनाश भी वह करायेंगे।
तुम जानते हो सतयुग में यह लक्ष्मी-नारायण थे।
अब फिर खुद पुरूषार्थ से यह बन रहे हैं।
नशा रहना चाहिए ना।
भारत में राज्य करते थे।
शिवबाबा राज्य देकर गया था, ऐसे नहीं कहेंगे शिवबाबा राज्य करके गया था। नहीं।
भारत को राज्य देकर गया था।
लक्ष्मी-नारायण राज्य करते थे ना।
फिर बाबा राज्य देने आये हैं।
कहते हैं - मीठे-मीठे बच्चे, तुम मुझे याद करो और चक्र को याद करो।
तुमने ही 84 जन्म लिए हैं।
कम पुरूषार्थ करते हैं तो समझो इसने कम भक्ति की है।
जास्ती भक्ति करने वाले पुरूषार्थ भी जास्ती करेंगे।
कितना क्लीयर कर समझाते हैं परन्तु जब बुद्धि में बैठे।
तुम्हारा काम है पुरूषार्थ कराना।
कम भक्ति की होगी तो योग लगेगा नहीं।
शिवबाबा की याद बुद्धि में ठहरेगी नहीं।
कभी भी पुरूषार्थ में ठण्डा नहीं होना चाहिए।
माया को पहलवान देख हार्ट फेल नहीं होना चाहिए।
माया के तूफान तो बहुत आयेंगे।
यह भी बच्चों को समझाया है, आत्मा ही सब कुछ करती है। शरीर तो खत्म हो जायेगा।
आत्मा निकल गई, शरीर मिट्टी हो गया।
वह फिर मिलने का तो है नहीं।
फिर उनको याद कर रोने आदि से फायदा ही क्या।
वही चीज़ फिर मिलेगी क्या।
आत्मा ने तो जाकर दूसरा शरीर लिया।
अभी तुम कितनी ऊंच कमाई करते हो।
तुम्हारा ही जमा होता है, बाकी सबका ना हो जायेगा।
बाबा भोला व्यापारी है तब तो तुमको मुट्ठी चावल के बदले 21 जन्मों के लिए महल दे देता है, कितना ब्याज देता है।
तुमको जितना चाहिए भविष्य के लिए जमा करो।
परन्तु ऐसे नहीं, अन्त में आकर कहेंगे जमा करो, तो उस समय लेकर क्या करेंगे।
अनाड़ी व्यापारी थोड़ेही है।
काम में आवे नहीं और ब्याज भरकर देना पड़े।
ऐसे का लेंगे थोड़ेही।
तुमको मुट्ठी चावल के बदले 21 जन्मों के लिए महल मिल जाते हैं।
कितना ब्याज मिलता है।
बाबा कहते हैं नम्बरवन भोला तो मैं हूँ।
देखो तुमको विश्व की बादशाही देता हूँ, सिर्फ तुम हमारे बनकर सर्विस करो।
भोलानाथ है तब तो उनको सब याद करते हैं।
अब तुम हो ज्ञान मार्ग में।
अब बाप की श्रीमत पर चलो और बादशाही लो।
कहते भी हैं बाबा हम आये हैं राजाई लेने।
सो भी सूर्यवंशी में। अच्छा, तुम्हारा मुख मीठा हो।
अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।