Todays Hindi Murli Audio/MP3 & other languages ClickiIt
April.2020
May.2020
June.2020
July.2020
Baba's Murlis - May, 2020
Sun
Mon
Tue
Wed
Thu
Fri
Sat
31
    01
03 04 05 06 07 08
10 11 12 13 14 15 16
17 18 19 20 21 22 23
24 25 26 27 28 29 30

मुरली से याद के बिन्दु

प्यारे बाबा की बच्चों से चाहना...

21-05-2020 प्रात:मुरली बापदादा मधुबन

“मीठे बच्चे - तुम बेहद के बाप से बेहद का वर्सा लेने आये हो,

यहाँ हद की कोई बात नहीं,

तुम बड़े उमंग से बाप को याद करो तो

पुरानी दुनिया भूल जायेगी”

प्रश्नः-

कौन-सी एक बात तुम्हें बार-बार अपने से घोट कर पक्की करनी चाहिए?

उत्तर:-

हम आत्मा हैं, हम परमात्मा बाप से वर्सा ले रहे हैं। आत्मायें हैं बच्चे, परमात्मा है बाप।

अभी बच्चे और बाप का मेला हुआ है।

यह बात बार-बार घोट-घोट कर पक्की करो।

जितना आत्म-अभिमानी बनते जायेंगे, देह-अभिमान मिट जायेगा।

गीत:- जो पिया के साथ है...Listen

ओम् शान्ति।

बच्चे जानते हैं कि हम बाबा के साथ बैठे हुए हैं

- यह है बड़े ते बड़ा बाबा, सबका बाबा है।

बाबा आया हुआ है।

बाप से क्या मिलता है, यह तो सवाल ही नहीं उठता।

बाप से मिलता ही है वर्सा।

यह है सबका बेहद का बाप, जिससे बेहद का सुख, बेहद की प्रापर्टी मिलती है।

वह है हद की मिलकियत।

कोई के पास हज़ार, कोई के पास 5 हज़ार होगी।

कोई के पास 10-20-50 करोड़, अरब होंगे।

अब वह तो सब हैं लौकिक बाबायें और हद के बच्चे।

यहाँ तुम बच्चे समझते हो हम बेहद के बाप पास आये हैं बेहद की प्रापर्टी लेने।

दिल में आश तो रहती है ना।

सिवाए स्कूल के और सत्संग आदि में कोई आश नहीं रहती।

कहेंगे शान्ति मिले, वह तो मिल नहीं सकती।

यहाँ तुम बच्चे समझते हो हम आये हैं विश्व नई दुनिया का मालिक बनने।

नहीं तो यहाँ क्यों आयें।

बच्चे कितनी वृद्धि को पाते रहते हैं!

कहते हैं बाबा हम तो विश्व का मालिक बनने आये हैं, हद की कोई बात ही नहीं।

बाबा आपसे हम बेहद स्वर्ग का वर्सा लेने आये हैं।

कल्प-कल्प हम बाप से वर्सा लेते हैं फिर माया बिल्ली छीन लेती है इसलिए इसको हार-जीत का खेल कहा जाता है।

बाप बैठ बच्चों को समझाते हैं।

बच्चे भी नम्बरवार समझते हैं, यह कोई साधू-सन्त नहीं है।

जैसे तुमको कपड़े पड़े हैं वैसे इनको पड़े हैं।

यह तो बाबा है ना।

कोई पूछेंगे किसके पास जाते हो?

कहेंगे हम बापदादा के पास जाते हैं।

यह तो फैमिली हो गई।

क्यों जाते, क्या लेने जाते?

यह तो और कोई समझ न सके।

कह न सके कि हम बापदादा के पास जाते हैं, वर्सा उनसे मिलता है।

दादे की प्रापर्टी के सब हकदार हैं।

शिवबाबा के अविनाशी बच्चे (आत्मायें) तो हो ही फिर प्रजापिता ब्रहमा के बनने से उनके पोत्रे-पोत्रियां हो।

अभी तुम जानते हो हम आत्मा हैं।

यह तो बहुत पक्का घोटना चाहिए।

हम आत्मायें परमात्मा बाप से वर्सा लेते हैं।

हम आत्मायें बाप से आकर मिले हैं।

आगे तो शरीर का भान था।

फलाने-फलाने नाम वाले ही प्रापर्टी लेते हैं।

अभी तो हैं आत्मायें, परमात्मा से वर्सा लेते हैं।

आत्मायें हैं बच्चे, परमात्मा है बाप।

बच्चे और बाप का बहुत समय के बाद मेला लगता है।

एक ही बारी।

भक्तिमार्ग में फिर अनेक आर्टीफिशियल मेले लगते रहते हैं।

यह है सबसे वन्डरफुल मेला।

आत्मायें, परमात्मा अलग रहे बहुकाल...... कौन?

तुम आत्मायें।

यह भी तुम समझते हो हम आत्मायें अपने स्वीट साइलेन्स होम में रहने वाली हैं।

अभी यहाँ पार्ट बजाते-बजाते थक गये हैं।

तो संन्यासी गुरू आदि के पास जाकर शान्ति माँगते हैं।

समझते हैं वह घरबार छोड़ जंगल में जाते हैं, उनसे शान्ति मिलेगी।

परन्तु ऐसे है नहीं।

अभी तो सभी शहर में आ गये हैं।

जंगल में गुफायें खाली पड़ी हैं।

गुरू बनकर बैठे हैं।

नहीं तो उन्हों को निवृत्ति मार्ग का ज्ञान दे पवित्रता सिखलानी है।

आजकल तो देखो शादियाँ कराते रहते हैं।

तुम बच्चे तो अपने योगबल से अपनी कर्मेन्द्रियों को वश में करते हो।

कर्मेन्द्रियाँ योगबल से शीतल हो जायेंगी।

कर्मेन्द्रियों में चंचलता होती है ना।

अब कर्मेन्द्रियों पर जीत पानी है, जो कोई चंचलता न चले।

सिवाए योगबल से कर्मेन्द्रियों का वश होना इम्पासिबुल है।

बाप कहते हैं कर्मेन्द्रियों की चंचलता योगबल से ही टूटेगी।

योगबल की ताकत तो है ना।

इसमें बड़ी मेहनत लगती है।

आगे चलकर कर्मेन्द्रियों की चंचलता नहीं रहेगी।

सतयुग में तो कोई गन्दी बीमारी नहीं होती।

यहाँ तुम कर्मेन्द्रियों को वश कर जाते हो तो कोई भी गंदी बात वहाँ होती नहीं।

नाम ही है स्वर्ग।

उनको भूल जाने कारण लाखों वर्ष कह देते हैं।

अभी तक भी मन्दिर बनाते रहते हैं।

अगर लाखों वर्ष हुए हो तो फिर बात ही याद न हो।

यह मन्दिर आदि क्यों बनाते?

तो वहाँ कर्मेन्द्रियाँ शीतल रहती है।

कोई चंचलता नहीं रहती।

शिवबाबा को तो कर्मेन्द्रियाँ हैं नहीं।

बाकी आत्मा में ज्ञान तो सारा है ना।

वही शान्ति का सागर, सुख का सागर है।

वो लोग कहते कर्मेन्द्रियां वश नहीं हो सकती।

बाप कहते हैं योगबल से तुम कर्मेन्द्रियों को वश करो।

बाप की याद में रहो।

कोई भी बेकायदे काम कर्मेन्द्रियों से नहीं करना है।

ऐसे लवली बाप को याद करते-करते प्रेम में आंसू आने चाहिए।

आत्मा परमात्मा में लीन तो होती नहीं।

बाप एक ही बार मिलते हैं, जब शरीर का लोन लेते हैं तो ऐसे बाप के साथ कितना प्यार से चलना चाहिए।

बाबा को उछल आई ना।

ओहो!

बाबा विश्व का मालिक बनाते हैं फिर यह धन माल क्या करेंगे, छोड़ो सब।

जैसे पागल होते हैं ना।

सब कहने लगे इनको बैठे-बैठे क्या हुआ।

धंधा आदि सब छोड़कर आ गये।

खुशी का पारा चढ़ गया।

साक्षात्कार होने लगे।

राजाई मिलनी है परन्तु कैसे मिलेगी, क्या होगा?

यह कुछ भी पता नहीं।

बस मिलना है, उस खुशी में सब छोड़ दिया।

फिर धीरे-धीरे नॉलेज मिलती रहती है।

तुम बच्चे यहाँ स्कूल में आये हो, एम ऑबजेक्ट तो है ना।

यह है राजयोग।

बेहद के बाप से राजाई लेने आये हो।

बच्चे जानते हैं हम उनसे पढ़ते हैं, जिसको याद करते थे कि बाबा आकर हमारे दु:ख हरो सुख दो।

बच्चियाँ कहती हैं हमको कृष्ण जैसा बच्चा मिले।

अरे वह तो बैकुण्ठ में मिलेगा ना।

कृष्ण बैकुण्ठ का है, उनको तुम झुलाते हो तो उन जैसा बच्चा तो बैकुण्ठ में ही मिलेगा ना।

अभी तुम बैकुण्ठ की बादशाही लेने आये हो।

वहाँ जरूर प्रिन्स-प्रिन्सेज ही मिलेंगे।

पवित्र बच्चा मिले, यह आश भी पूरी होती है।

यूँ तो प्रिन्स-प्रिन्सेज यहाँ भी बहुत हैं परन्तु नर्कवासी हैं।

तुम चाहते हो स्वर्गवासी को।

पढ़ाई तो बहुत सहज है।

बाप कहते हैं तुमने बहुत भक्ति की है, धक्के खाये हैं।

तुम कितना खुशी से तीर्थों आदि पर जाते हो।

अमरनाथ पर जाते हैं, समझते हैं शंकर ने पार्वती को अमरकथा सुनाई।

अमरनाथ की सच्ची कथा तुम अभी सुनते हो।

यह तो बाप बैठ तुमको सुनाते हैं।

तुम आये हो - बाप के पास।

जानते हो यह भाग्यशाली रथ है, इसने यह लोन पर लिया है।

हम शिवबाबा के पास जाते हैं, उनकी ही श्रीमत पर चलेंगे।

कुछ भी पूछना हो तो बाबा से पूछ सकते हो।

कहते हैं - बाबा हम बोल नहीं सकते।

यह तो तुम पुरूषार्थ करो, इसमें बाबा क्या कर सकते हैं।

बाप तुम बच्चों को श्रेष्ठ बनने का सहज रास्ता बताते हैं - एक तो कर्मेन्द्रियों को वश करो, दूसरा दैवीगुण धारण करो।

कोई गुस्सा आदि करे तो सुनो नहीं।

एक कान से सुन दूसरे से निकाल दो।

जो इविल बात पसन्द न आये, उसे सुनो ही नहीं।

देखो पति क्रोध करता है, मारता है तो क्या करना चाहिए?

जब देखो पति गुस्सा करता है तो उन पर फूल बरसाओ।

हँसते रहो।

युक्तियां तो बहुत हैं।

कामेशु, क्रोधेशु होते हैं ना।

अबलायें पुकारती हैं।

एक द्रोपदी नहीं, सब हैं।

अब बाप आये हैं नंगन होने से बचाने।

बाप कहते हैं इस मृत्युलोक में यह तुम्हारा अन्तिम जन्म है।

हम तुम बच्चों को शान्तिधाम ले जाने आया हूँ।

वहाँ पतित आत्मा तो जा न सके, इसलिए मैं आकर सबको पावन बनाता हूँ।

जिसको जो पार्ट मिला हुआ है वह पूरा कर अब सबको वापिस जाना है।

सारे झाड़ का राज़ बुद्धि में है।

बाकी झाड़ के पत्ते थोड़ेही कोई गिनती कर सकते हैं।

तो बाप भी मूल बात समझाते हैं - बीज और झाड़।

बाकी मनुष्य तो ढेर हैं।

एक-एक के अन्दर को थोड़े ही बैठ जानेंगे।

मनुष्य समझते हैं भगवान तो अन्तर्यामी है, हरेक के अन्दर की बात को जानते हैं।

यह सब है अन्धश्रद्धा।

बाप कहते हैं तुम हमको बुलाते हो कि आकर हमको पतित से पावन बनाओ, राजयोग सिखाओ।

अभी तुम राजयोग सीख रहे हो।

बाप कहते हैं मुझे याद करो।

बाप यह मत देते हैं ना।

बाप की श्रीमत और गत सबसे न्यारी है।

मत यानी राय, जिससे हमारी सद्गति होती है। वही एक बाप हमारी सद्गति करने वाला है, दूसरा न कोई।

इस समय ही बुलाते हैं।

सतयुग में तो बुलाते नहीं हैं।

अभी ही कहते हैं सर्व का सद्गति दाता एक राम।

जब माला फेरते हैं तो फेरते-फेरते जब फूल आता है तो उनको राम कह ऑखों पर लगाते हैं।

जपना है एक फूल को। बाकी है उनकी पवित्र रचना।

माला को तुम अच्छी रीति जान गये हो।

जो बाप के साथ सर्विस करते हैं उनकी यह माला है।

शिवबाबा को रचता नहीं कहेंगे।

रचता कहेंगे तो प्रश्न उठेगा कि कब रचना की?

प्रजापिता ब्रह्मा अभी संगम पर ही ब्राह्मणों को रचते हैं ना।

शिवबाबा की रचना तो अनादि है ही।

सिर्फ पतित से पावन बनाने लिए बाप आते हैं।

अभी तो है पुरानी सृष्टि।

नई में रहते हैं देवतायें।

अब शूद्रों को देवता कौन बनाये।

अभी तुम फिर से बनते हो।

जानते हो बाबा हमको शूद्र से ब्राह्मण, ब्राह्मण से देवता बनाते हैं।

अभी तुम ब्राह्मण बने हो, देवता बनने के लिए।

मनुष्य सृष्टि रचने वाला हो गया ब्रह्मा, जो मनुष्य सृष्टि का हेड है।

बाकी आत्माओं का अविनाशी बाप शिव तो है ही।

यह सब नई बातें तुम सुनते हो।

जो बुद्धिवान हैं वह अच्छी रीति धारण करते हैं।

आहिस्ते-आहिस्ते तुम्हारी भी वृद्धि होती जायेगी।

अभी तुम बच्चों को स्मृति आई है, हम असुल देवता थे फिर 84 जन्म कैसे लेते हैं।

सब राज़ तुम जानते हो।

जास्ती बातों में जाने की दरकार ही नहीं है।

बाप से पूरा वर्सा लेने के लिए मुख्य बात बाप कहते हैं -

एक तो मुझे याद करो, दूसरा पवित्र बनो।

स्वदर्शन चक्रधारी बनो और आप समान बनाओ।

कितना सहज है।

सिर्फ याद ठहरती नहीं है।

नॉलेज तो बड़ी सहज है।

अभी पुरानी दुनिया खत्म होनी है।

फिर सतयुग में नई दुनिया में देवी-देवतायें राज्य करेंगे।

इस दुनिया में पुराने ते पुराने यह देवताओं के चित्र हैं वा इन्हों के महल आदि हैं।

तुम कहेंगे पुराने ते पुराने हम विश्व के महाराजा-महारानी थे।

शरीर तो खत्म हो जाते हैं।

बाकी चित्र बनाते रहते हैं।

अभी यह थोड़ेही किसको पता है, यह लक्ष्मी-नारायण जो राज्य करते थे वह कहाँ गये?

राजाई कैसे ली?

बिड़ला इतने मन्दिर बनाते हैं, परन्तु जानते नहीं।

पैसे मिलते जाते हैं और बनाते रहते हैं।

समझते हैं यह देवताओं की कृपा है।

एक शिव की पूजा है अव्यभिचारी भक्ति।

ज्ञान देने वाला तो ज्ञान सागर एक ही है, बाकी है भक्ति मार्ग।

ज्ञान से आधाकल्प सद्गति होती है फिर भक्ति की दरकार नहीं रहती।

ज्ञान, भक्ति, वैराग्य।

अब भक्ति से, पुरानी दुनिया से वैराग्य।

पुरानी अब खत्म होनी है, इसमें आसक्ति क्या रखें।

अब तो नाटक पूरा होता है, हम जाते हैं घर।

वह खुशी रहती है।

कई समझते हैं मोक्ष पाना तो अच्छा है फिर आयेंगे नहीं।

आत्मा बुदबुदा है जो सागर में मिल जाता है।

यह सब गपोड़े हैं।

एक्टर तो एक्ट करेगा जरूर।

जो घर बैठ जाए वह कोई एक्टर थोड़ेही हुआ।

मोक्ष होता नहीं।

यह ड्रामा अनादि बना हुआ है।

यहाँ तुमको कितनी नॉलेज मिलती है।

मनुष्यों की बुद्धि में तो कुछ भी नहीं है।

तुम्हारा पार्ट ही है - बाप से ज्ञान लेने का, वर्सा पाने का।

तुम ड्रामा में बंधायमान हो।

पुरूषार्थ जरूर करेंगे।

ऐसे नहीं, ड्रामा में होगा तो मिलेगा।

फिर तो बैठ जाओ।

लेकिन कर्म बिगर कोई रह नहीं सकता है।

कर्म संन्यास हो ही नहीं सकता।

अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1) योगबल की ताकत से अपनी कर्मेन्द्रियों को शीतल बनाना है।

वश में रखना है।

इविल बातें न तो सुननी है, न सुनानी है।

जो बात पसन्द नहीं आती, उसे एक कान से सुन दूसरे से निकाल देना है।

2) बाप से पूरा वर्सा लेने के लिए स्वदर्शन चक्रधारी बनना है,

पवित्र बन आप समान बनाने की सेवा करनी है।

वरदान:-

शक्तिशाली सेवा द्वारा

निर्बल में बल भरने वाले

सच्चे सेवाधारी भव

सच्चे सेवाधारी की वास्तविक विशेषता है - निर्बल में बल भरने के निमित्त बनना।

सेवा तो सभी करते हैं लेकिन सफलता में जो अन्तर दिखाई देता है उसका कारण है सेवा के साधनों में शक्ति की कमी।

जैसे तलवार में अगर जौहर नहीं तो वह तलवार का काम नहीं करती,

ऐसे सेवा के साधनों में यदि याद की शक्ति का जौहर नहीं तो सफलता नहीं इसलिए

शक्तिशाली सेवाधारी बनो, निर्बल में बल भरकर क्वालिटी वाली आत्मायें निकालो

तब कहेंगे सच्चे सेवाधारी।

स्लोगन:-

हर परिस्थिति को उड़ती कला का साधन समझकर सदा उड़ते रहो।