यह सब गीत आदि हैं भक्ति मार्ग के।
तुम्हारे लिए गीतों की दरकार नहीं है।
कोई तकलीफ की बात नहीं।
भक्ति मार्ग में तो तकलीफ बहुत है।
कितनी रसम-रिवाज चलती है - ब्राह्मण खिलाना, यह करना, तीर्थों आदि पर बहुत कुछ करना होता है।
यहाँ आकर सब तकलीफों से छुड़ा देते हैं।
इसमें कुछ भी करना नहीं है।
मुख से शिव-शिव नहीं बोलना है।
यह कायदेमुजीब नहीं, इनसे कोई फल नहीं मिलेगा।
बाप कहते हैं - यह अन्दर में समझना है मैं आत्मा हूँ।
बाप ने कहा है हमको याद करो, अन्तर्मुखी हो बाप को ही याद करना है, तो बाप प्रतिज्ञा करते हैं तुम्हारे पाप भस्म हो जायेंगे।
यह है योग अग्नि, जिससे तुम्हारे विकर्म विनाश हो जायेंगे फिर तुम वापिस चले जायेंगे।
हिस्ट्री रिपीट होती है।
यह सब अपने साथ बातें करने की युक्तियाँ हैं।
अपने साथ रूहरिहान करते रहो।
बाप कहते हैं - मैं कल्प-कल्प तुमको यह युक्ति बताता हूँ।
यह भी जानते हैं धीरे-धीरे यह झाड़ वृद्धि को पायेगा।
माया का तूफान भी इस समय है जबकि मैं आकर तुम बच्चों को माया के बन्धन से छुड़ाता हूँ।
सतयुग में कोई बन्धन होता नहीं।
यह पुरूषोत्तम युग भी अभी तुमको अर्थ सहित बुद्धि में है।
यहाँ हर बात अर्थ सहित ही है।
देह-अभिमानी जो बात करेंगे सो अनर्थ।
देही-अभिमानी जो बात करेंगे अर्थ सहित।
उनसे फल निकलेगा।
अब भक्ति मार्ग में कितनी डिफीकल्टी होती है।
समझते हैं तीर्थ यात्रा करना, यह करना - यह सब भगवान के पास पहुँचने के रास्ते हैं।
परन्तु बच्चों ने अब समझा है वापिस कोई एक भी जा नहीं सकता।
पहले नम्बर में जो विश्व के मालिक लक्ष्मी-नारायण थे, उनके ही 84 जन्म बता देते हैं।
तो फिर और कोई छूट कैसे सकता।
सब चक्र में आते हैं तो कृष्ण के लिए कैसे कहेंगे कि वह सदैव कायम है ही है।
हाँ, कृष्ण का नाम-रूप तो चला गया, बाकी आत्मा तो है ही किस न किस रूप में।
यह सब बातें बच्चों को बाप ने आकर समझाई हैं।
यह पढ़ाई है।
स्टूडेन्ट लाइफ में ध्यान देना है।
रोजाना टाइम मुकरर कर दो अपना चार्ट लिखने का।
व्यापारी लोगों को बहुत बंधन रहता है।
नौकरी करने वालों पर बंधन नहीं रहता।
वह तो अपना काम पूरा किया खलास।
व्यापारियों के पास तो कभी ग्राहक आये तो सप्लाई करना पड़े।
बुद्धियोग बाहर चला जाता है।
तो कोशिश कर समय निकालना चाहिए।
अमृतवेले का समय अच्छा है।
उस समय बाहर के विचारों को लॉकप कर देना चाहिए, कोई भी ख्याल न आये।
बाप की याद रहे।
बाप की महिमा में लिख देना चाहिए - बाबा ज्ञान का सागर, पतित-पावन है।
बाबा हमको विश्व का मालिक बनाते हैं, उनकी श्रीमत पर चलना है।
सबसे अच्छी मत मिलती है मनमनाभव।
दूसरा कोई बोल न सके।
कल्प-कल्प यह मत मिलती है - तमोप्रधान से सतोप्रधान बनने की।
बाप सिर्फ कहते हैं मामेकम् याद करो।
इसको कहा जाता है - वशीकरण मंत्र, अर्थ सहित याद करने से ही खुशी होगी।
बाप कहते हैं अव्यभिचारी याद चाहिए।
जैसे भक्ति में एक शिव की पूजा अव्यभिचारी है फिर व्यभिचारी होने से अनेकों की भक्ति करते हैं।
पहले थी अद्धैत भक्ति, एक की भक्ति करते थे।
ज्ञान भी उस एक का ही सुनना है।
तुम बच्चे जिसकी भक्ति करते थे, वह स्वयं तुम्हें समझा रहे हैं - मीठे-मीठे बच्चे अभी मैं आया हूँ, यह भक्ति कल्ट अभी पूरा हुआ।
तुमने ही पहले-पहले एक शिवबाबा का मन्दिर बनाया।
उस समय तुम अव्यभिचारी भक्त थे, इसलिए बहुत सुखी थे फिर व्यभिचारी भक्त बनने से द्वेत में आ गये तब थोड़ा दु:ख होता है।
एक बाप तो सबको सुख देने वाला है ना।
बाप कहते हैं मैं आकर तुम बच्चों को मंत्र देता हूँ।
मंत्र भी एक का ही सुनो, यहाँ देहधारी कोई भी नहीं।
यहाँ तुम आते ही हो बापदादा के पास।
शिवबाबा से ऊंच कोई है नहीं।
याद भी सब उसको करते हैं।
भारत ही स्वर्ग था, लक्ष्मी-नारायण का राज्य था।
उनको ऐसा किसने बनाया?
जिसकी तुम फिर पूजा करते हो।
किसको पता नहीं महालक्ष्मी कौन है!
महालक्ष्मी का आगे जन्म कौन-सा था?
तुम बच्चे जानते हो वह है जगत अम्बा।
तुम सब मातायें हो, वन्दे मातरम्।
सारे जगत पर ही तुम अपना दाँव जमाती हो।
भारत माता कोई एक का नाम नहीं।
तुम सब शिव से शक्ति लेते हो योग बल से।
शक्ति लेने में माया इन्टरफेयर करती है।
युद्ध में कोई अंगूरी लगाते हैं तो बहादुर हो लड़ना चाहिए।
ऐसे नहीं कोई ने अंगूरी लगाई और तुम फंस पड़ो, यह है ही माया की युद्ध।
बाकी कोई कौरव और पाण्डवों की युद्ध है नहीं, उनकी तो आपस में युद्ध है।
मनुष्य जब लड़ते हैं, तो एक-दो गज जमीन के लिए गला काट देते हैं।
बाप आकर समझाते हैं - यह सब ड्रामा बना हुआ है।
राम राज्य, रावण राज्य, अभी तुम बच्चों को यह ज्ञान है कि हम राम राज्य में जायेंगे, वहाँ अथाह सुख है।
नाम ही है सुखधाम, वहाँ दु:ख का नाम-निशान नहीं होता।
अब जबकि बाप आये हैं, ऐसी राजाई देने तो बच्चों को कितना पुरूषार्थ करना चाहिए।
घड़ी-घड़ी कहता हूँ बच्चे थको मत।
शिवबाबा को याद करते रहो।
वह भी बिन्दी है, हम आत्मा भी बिन्दी हैं, यहाँ पार्ट बजाने आये हैं, अब पार्ट पूरा हुआ है।
अब बाप कहते हैं मुझे याद करो तो विकर्म विनाश होंगे।
विकर्म आत्मा पर ही चढ़ते हैं ना।
शरीर तो यहाँ खत्म हो जायेंगे।
कई मनुष्य कोई पाप कर्म करते हैं तो अपने शरीर को ही खत्म कर देते हैं।
परन्तु इससे कोई पाप उतरता नहीं है।
पाप आत्मा कहा जाता है।
साधू-सन्त आदि तो कह देते आत्मा निर्लेप है, आत्मा सो परमात्मा, अनेक मते हैं।
अभी तुमको एक श्रीमत मिलती है।
बाप ने तुम्हें ज्ञान का तीसरा नेत्र दिया है।
आत्मा ही सब कुछ जानती है।
आगे ईश्वर के बारे में कुछ नहीं जानते थे।
सृष्टि चक्र कैसे फिरता है, आत्मा कितनी छोटी है, पहले-पहले आत्मा का रियलाइजेशन कराते हैं।
आत्मा बहुत सूक्ष्म है, उनका साक्षात्कार होता है, वह सब हैं भक्ति मार्ग की बातें।
ज्ञान की बातें बाप ही समझाते हैं।
वह भी भृकुटी के बीच में आकर बैठते हैं बाजू में।
यह भी झट समझ लेते हैं।
यह सब हैं नई बातें जो बाप ही बैठकर समझाते हैं।
विकर्म विनाश होने पर ही आधार है तुम्हारे भविष्य का।
तुम बच्चों के साथ-साथ भारत खण्ड भी सबसे सौभाग्यशाली है, इन जैसा सौभाग्यशाली दूसरा कोई खण्ड नहीं है।
यहाँ बाप आते हैं।
भारत ही हेविन था, जिसको गार्डन ऑफ अल्लाह कहते हैं।
तुम जानते हो बाप फिर से भारत को फूलों का बगीचा बना रहे हैं, हम पढ़ते ही हैं वहाँ जाने के लिए।
साक्षात्कार भी करते हैं, यह भी जानते हैं कि यह वही महाभारत लड़ाई है, फिर ऐसी लड़ाई कभी लगती नहीं है।
तुम बच्चों के लिए नई दुनिया भी जरूर चाहिए।
नई दुनिया थी ना, भारत स्वर्ग था।
5 हज़ार वर्ष हुए, लाखों वर्ष की तो बात ही नहीं।
लाखों वर्ष होते तो मनुष्य अनगिनत हो जाएं।
यह भी कोई की बुद्धि में नहीं बैठता कि इतना हो कैसे सकता जबकि इतनी आदमशुमारी नहीं है।
अभी तुम समझते हो - आज से 5 हज़ार वर्ष पहले हम विश्व पर राज्य करते थे, और खण्ड नहीं थे, वह होते हैं बाद में।
तुम बच्चों की बुद्धि में यह सब बातें हैं, और किसकी बुद्धि में बिल्कुल नहीं हैं।
थोड़ा भी इशारा दो तो समझ जाएं।
बात तो बरोबर है, हमारे पहले जरूर कोई धर्म था।
अभी तुम समझा सकते हो कि एक आदि सनातन देवी-देवता धर्म था, वह प्राय: लोप हो गया है।
कोई अपने को देवता धर्म के कह नहीं सकते।
समझते ही नहीं कि हम आदि सनातन देवी-देवता धर्म के थे फिर वह धर्म कहाँ गया?
हिन्दु धर्म कहाँ से आया?
कोई का भी इन बातों में चिंतन नहीं चलता है।
तुम बच्चे समझा सकते हो - बाप तो है ज्ञान का सागर, ज्ञान की अथॉरिटी।
तो जरूर आकर ज्ञान सुनाया होगा।
ज्ञान से ही सद्गति होती है, इसमें प्रेरणा की बात नहीं।
बाप कहते हैं जैसे अब आये हैं, वैसे कल्प-कल्प आता हूँ।
कल्प बाद भी आकर फिर सब बच्चों से मिलेंगे।
तुम भी ऐसे चक्र लगाते हो।
राज्य लेते हो फिर गंवाते हो।
यह बेहद का नाटक है, तुम सभी एक्टर्स हो।
आत्मा एक्टर होकर क्रियेटर, डायरेक्टर, मुख्य एक्टर को न जाने तो वह क्या काम की।
तुम बच्चे जानते हो कैसे आत्मा शरीर धारण करती है और पार्ट बजाती है।
अब फिर वापस जाना है।
अब इस पुरानी दुनिया का अन्त है।
कितनी सहज बात है।
तुम बच्चे ही जानते हो - बाप कैसे गुप्त बैठे हैं।
गोदरी में करतार देखा।
अब देखा कहें या जाना कहें - बात एक ही है।
आत्मा को देख सकते हैं, परन्तु उससे कोई फायदा नहीं है।
कोई को समझ में आ न सके।
नौधा भक्ति में बहुत साक्षात्कार करते हैं, आगे तुम बच्चे भी कितने साक्षात्कार करते थे, बहुत प्रोग्राम आते थे फिर पिछाड़ी में यह खेलपाल तुम देखेंगे।
अब तो बाप कहते हैं पढ़कर होशियार हो जाओ।
अगर नहीं पढ़ेंगे तो फिर जब रिजल्ट निकलेगी तो मुंह नीचे हो जायेगा, फिर समझेंगे हमने कितना समय वेस्ट किया।
जितना-जितना बाप की याद में रहेंगे, याद के बल से पाप मिट जायेंगे।
जितना बाप की याद में रहेंगे उतना खुशी का पारा चढ़ेगा।
मनुष्यों को यह पता नहीं है कि भगवान को क्यों याद किया जाता है!
कहते भी हैं तुम मात-पिता. . . . अर्थ नहीं जानते।
अभी तुम जानते हो, शिव के चित्र पर समझा सकते हो - यह ज्ञान का सागर, पतित-पावन है, उनको याद करना है।
बच्चे जानते हैं वही बाप आया है सुख घनेरे का रास्ता बताने।
यह पढ़ाई है।
इसमें जो जितना पुरूषार्थ करेगा उतना ऊंच पद पायेगा।
यह कोई साधू-सन्त आदि नहीं, जिसकी गद्दी चली आई हो।
यह तो शिवबाबा की गद्दी है।
ऐसे नहीं यह जायेगा तो दूसरा कोई गद्दी पर बैठेगा।
बाप तो सबको साथ ले जायेंगे।
कई बच्चे व्यर्थ ख्यालातों में अपना समय वेस्ट करते हैं।
सोचते हैं खूब धन इकट्ठा करें, पुत्र पोत्रे खायेंगे, बाद में काम आयेगा, बैंक लॉकर में जमा करें, बाल बच्चे खाते रहेंगे।
परन्तु किसको भी गवर्मेन्ट छोड़ेगी नहीं इसलिए उसका जास्ती ख्याल न कर अपनी भविष्य कमाई में लग जाना चाहिए।
अब बच्चों को पुरूषार्थ करना है।
ऐसे नहीं कि ड्रामा में होगा तो करेंगे।
पुरूषार्थ बिगर खाना भी नहीं मिलता परन्तु किसकी तकदीर में नहीं है तो फिर ऐसे-ऐसे ख्यालात आ जाते हैं।
तकदीर में ही नहीं है तो फिर ईश्वरीय तदबीर भी क्या करेंगे।
जिनकी तकदीर में है, वह अच्छी रीति धारण करते और कराते हैं।
बाप तुम्हारा टीचर भी है, गुरू भी है तो उनको याद करना चाहिए।
सबसे प्रिय बाप, टीचर और गुरू ही होते हैं।
उनको तो याद करना चाहिए।
बाबा युक्तियाँ तो बहुत बतलाते हैं।
तुम साधू-सन्त आदि को भी निमंत्रण दे सकते हो।
अच्छा।
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।