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12-09-2019 प्रात:मुरली बापदादा मधुबन

"मीठे बच्चे - अन्दर में दिन रात बाबा-बाबा चलता रहे तो

अपार खुशी रहेगी,

बुद्धि में रहेगा बाबा हमें कुबेर का खजाना देने आये हैं''

प्रश्नः-

बाबा किन बच्चों को ऑनेस्ट (ईमानदार) फूल कहते हैं? उनकी निशानी सुनाओ?

उत्तर:-

ऑनेस्ट फूल वह है जो कभी भी माया के वश नहीं होते हैं।

माया की खिटपिट में नहीं आते हैं।

ऐसे ऑनेस्ट फूल लास्ट में आते भी फास्ट जाने का पुरुषार्थ करते हैं।

वह पुरानों से भी आगे जाने का लक्ष्य रखते हैं।

अपने अवगुणों को निकालने के पुरुषार्थ में रहते हैं।

दूसरों के अवगुणों को नहीं देखते।

ओम् शान्ति।

शिव भगवानुवाच। वह हुआ रूहानी बाप क्योंकि शिव तो सुप्रीम रूह है ना, आत्मा है ना।

बाप तो रोज़-रोज़ नई-नई बातें समझाते रहते हैं।

गीता सुनाने वाले सन्यासी आदि बहुत हैं।

वह बाप को याद कर न सकें।

'बाबा' अक्षर कभी उनके मुख से निकल न सके।

यह अक्षर है ही गृहस्थ मार्ग वालों के लिए।

वह तो हैं निवृत्ति मार्ग वाले।

वह ब्रह्म को ही याद करते हैं।

मुख से कभी शिवबाबा नहीं कहेंगे।

भल तुम जांच करो।

समझो बड़े-बड़े विद्वान सन्यासी चिन्मियानंद आदि गीता सुनाते हैं, ऐसे नहीं कि वह गीता का भगवान कृष्ण को समझ उनसे योग लगा सकते हैं।

नहीं।

वह तो फिर भी ब्रह्म के साथ योग लगाने वाले ब्रह्म ज्ञानी वा तत्व ज्ञानी हैं।

कृष्ण को कभी कोई बाबा कहे, यह हो नहीं सकता।

तो कृष्ण गीता सुनाने वाला बाबा तो नहीं ठहरा ना।

शिव को सब बाबा कहते हैं क्योंकि वह सब आत्माओं का बाप है।

सब आत्मायें उनको पुकारती हैं - परमपिता परमात्मा।

वह है सुप्रीम, परम है क्योंकि परमधाम में रहने वाला है।

तुम भी सब परमधाम में रहते हो परन्तु उनको परम आत्मा कहते हैं।

वह कभी पुनर्जन्म में नहीं आते हैं।

खुद कहते हैं मेरा जन्म दिव्य और अलौकिक है।

ऐसे कोई रथ में प्रवेश कर तुमको विश्व का मालिक बनने की युक्ति बताये, यह और कोई हो नहीं सकता।

तब बाप कहते हैं - मैं जो हूँ, जैसा हूँ, मुझे कोई भी नहीं जानते।

मैं जब अपना परिचय दूँ तब जान सकते हैं।

यह ब्रह्म को अथवा तत्वों को मानने वाले, कृष्ण को फिर अपना बाप कैसे मानेंगे।

आत्मायें तो सब बच्चे ठहरे ना।

कृष्ण को सब पिता कैसे कहेंगे।

ऐसे थोड़ेही कहेंगे कि कृष्ण सबका बाप है।

हम सब ब्रदर्स हैं।

ऐसे भी नहीं कृष्ण सर्वव्यापी है।

सब कृष्ण थोड़ेही हो सकते हैं।

अगर सब कृष्ण हों तो उनका बाप भी चाहिए।

मनुष्य बहुत भूले हुए हैं।

नहीं जानते हैं तब तो कहते हैं मुझे कोटों में कोई जानते हैं।

कृष्ण को तो कोई भी जान लेंगे।

सब विलायत वाले भी उनको जानते हैं।

लॉर्ड कृष्णा कहते हैं ना।

चित्र भी हैं, असली चित्र तो हैं नहीं।

भारतवासियों से सुनते हैं, इनकी पूजा बहुत होती है तो फिर गीता में यह लिख दिया है - कृष्ण भगवान।

अब भगवान को भला लॉर्ड कहा जाता है क्या।

लॉर्ड कृष्णा कहते हैं ना।

लॉर्ड का टाइटिल वास्तव में बड़े आदमी को मिलता है।

वह तो सबको देते रहते हैं, इसको कहा जाता है अन्धेर नगरी....।

कोई भी पतित मनुष्य को लॉर्ड कह देते हैं।

कहाँ यह आज के पतित मनुष्य, कहाँ शिव वा श्रीकृष्ण!

बाप कहते हैं जो तुमको ज्ञान देता हूँ वह फिर गुम हो जाता है।

मैं ही आकर नई दुनिया स्थापन करता हूँ।

ज्ञान भी मैं अभी ही देता हूँ।

मैं जब ज्ञान दूँ तब ही बच्चे सुनें।

मेरे बिगर कोई सुना न सके।

जानते ही नहीं। क्या सन्यासी शिवबाबा को याद कर सकते हैं?

वह कह भी नहीं सकते कि निराकार गॉड को याद करो।

कब सुना है?

बहुत पढ़े-लिखे मनुष्य भी समझते नहीं हैं।

अब बाप समझाते हैं कृष्ण भगवान नहीं।

मनुष्य तो उनको ही भगवान कहते रहते हैं।

कितना फ़र्क हो गया है।

बाप तो बच्चों को बैठ पढ़ाते हैं।

वह बाप, टीचर, गुरू भी है।

शिवबाबा सबको बैठ समझाते हैं।

न समझने कारण त्रिमूर्ति में शिव रखते ही नहीं।

ब्रह्मा को रखते हैं, जिसको प्रजापिता ब्रह्मा कहते हैं। प्रजा को रचने वाला।

परन्तु उनको भगवान नहीं कहेंगे।

भगवान प्रजा नहीं रचते हैं।

भगवान के तो सब आत्मायें बच्चे हैं।

फिर कोई द्वारा प्रजा रचते हैं।

तुमको किसने एडाप्ट किया?

ब्रह्मा द्वारा बाप ने एडाप्ट किया।

ब्राह्मण जब बनेंगे तब ही तो देवता बनेंगे।

यह बात तो तुमने कभी सुनी नहीं है।

प्रजापिता का भी जरूर पार्ट है।

एक्ट चाहिए ना। इतनी प्रजा कहाँ से आयेगी।

कुख वंशावली भी तो हो न सके।

वह कुख वंशावली ब्राह्मण कहेंगे - हमारा सरनेम है ब्राह्मण।

नाम तो सबका अलग-अलग है।

प्रजापिता ब्रह्मा तो कहते ही तब हैं जब शिवबाबा इनमें प्रवेश करें।

यह नई बातें हैं।

बाप खुद कहते हैं - मुझे कोई जानते नहीं, सृष्टि चक्र को भी नहीं जानते।

तब तो ऋषि-मुनि सब नेती-नेती कह गये हैं।

न परमात्मा को, न परमात्मा की रचना को जानते हैं।

बाप कहते हैं जब मैं आकर अपना परिचय दूँ तब ही जानें।

इन देवताओं को वहाँ यह पता थोड़ेही पड़ता है - हमने यह राज्य कैसे पाया?

इनमें ज्ञान होता ही नहीं।

पद पा लिया फिर ज्ञान की दरकार नहीं।

ज्ञान चाहिए ही सद्गति के लिए।

यह तो सद्गति को पाये हुए हैं।

यह बड़ी समझने की गुह्य बातें हैं।

समझदार ही समझें।

बाकी जो बूढ़ी-बूढ़ी मातायें हैं, उनमें इतनी बुद्धि तो है नहीं, वह भी ड्रामा प्लैन अनुसार हर एक का अपना पार्ट है।

ऐसे तो नहीं कहेंगे - हे ईश्वर बुद्धि दो।

सबको एक जैसी बुद्धि हम दें तो सब नारायण बन जायेंगे।

सब एक-दो के ऊपर गद्दी पर बैठेंगे क्या!

हाँ, एम ऑब्जेक्ट है यह बनने की।

सब पुरुषार्थ कर रहे हैं नर से नारायण बनने का।

बनेंगे तो पुरुषार्थ अनुसार ना।

अगर सब हाथ उठायें - हम नारायण बनेंगे तो बाप को अन्दर में हंसी आयेगी ना।

सब एक जैसे बन कैसे सकते!

नम्बरवार तो होते हैं ना।

नारायण दी फर्स्ट, सेकण्ड, थर्ड।

जैसे एडवर्ड दी फर्स्ट, सेकण्ड, थर्ड..... होते हैं ना।

भल एम ऑब्जेक्ट यह है, परन्तु खुद समझ सकते हैं ना - चलन ऐसी है तो क्या पद पायेंगे?

 

पुरुषार्थ तो जरूर करना है।

बाबा नम्बरवार फूल ले आते हैं, नम्बरवार फूल दे भी सकते हैं परन्तु ऐसे करते नहीं।

फंक हो जायेंगे।

बाबा जानते हैं, देखेंगे कौन जास्ती सर्विस कर रहे हैं, यह अच्छा फूल है।

पीछे नम्बरवार तो होते ही हैं।

बहुत पुराने भी बैठे हैं परन्तु उनमें नये-नये, बड़े-बड़े अच्छे फूल हैं।

कहेंगे यह नम्बरवन ऑनेस्ट फूल है, कोई खिटपिट, ईर्ष्या आदि इनमें नहीं हैं।

बहुतों में कुछ न कुछ खामियां जरूर हैं।

सम्पूर्ण तो कोई को कह नहीं सकते।

सोलह कला सम्पूर्ण बनने के लिए बहुत मेहनत चाहिए।

अभी कोई सम्पूर्ण बन न सके।

अभी तो अच्छे-अच्छे बच्चों में भी ईर्ष्या बहुत है।

खामियां तो हैं ना।

बाप जानते हैं सब किस-किस प्रकार का पुरुषार्थ कर रहे हैं।

दुनिया वाले क्या जानें।

वह तो कुछ समझते नहीं।

बहुत थोड़े समझते हैं।

गरीब झट समझ जाते हैं।

बेहद का बाप आया हुआ है पढ़ाने।

उस बाप को याद करने से हमारे पाप कट जायेंगे।

हम बाप के पास आये हैं, बाबा से नई दुनिया का वर्सा जरूर मिलेगा।

नम्बरवार तो होते ही हैं - 100 से लेकर एक नम्बर तक परन्तु बाप को जान लिया, थोड़ा भी सुना तो स्वर्ग में जरूर आयेंगे।

21 जन्मों के लिए स्वर्ग में आना कोई कम है क्या!

ऐसे तो नहीं, कोई मरता है तो कहेंगे 21 जन्म के लिए स्वर्ग में गया।

स्वर्ग है ही कहाँ।

कितनी मिसअन्डरस्टैंडिंग कर दी है।

बड़े-बड़े अच्छे लोग भी कहते हैं फलाना स्वर्ग पधारा।

स्वर्ग कहते किसको हैं?

अर्थ कुछ भी नहीं समझते।

यह सिर्फ तुम ही जानते हो।

हो तुम भी मनुष्य, परन्तु तुम ब्राह्मण बने हो।

अपने को ब्राह्मण ही कहलाते हो।

तुम ब्राह्मणों का एक बापदादा है।

तो सन्यासियों से भी तुम पूछ सकते हो कि यह जो महावाक्य वा भगवानुवाच है कि देह सहित देह के सब धर्म छोड़ मामेकम् याद करो - क्या यह कृष्ण कहते हैं मामेकम् याद करो?

तुम कृष्ण को याद करते हो क्या?

कभी नहीं हाँ कहेंगे।

वहाँ ही प्रसिद्ध हो जाए।

परन्तु बिचारी अबलायें जाती हैं, वह क्या जानें।

वह अपने फालोआर्स के आगे क्रोधित हो जाते हैं।

दुर्वाषा का नाम भी है ना।

उनमें अहंकार बहुत रहता है।

फालोआर्स हैं ढेर।

भक्ति का राज्य है ना।

उनसे पूछने की कोई में ताकत नहीं रहती है।

नहीं तो उनको कह सकते हैं तुम तो शिवबाबा की पूजा करते हो।

अब भगवान किसको कहेंगे?

क्या ठिक्कर भित्तर में भगवान है?

आगे चल इन सब बातों को समझेंगे।

अभी नशा कितना है।

हैं सभी पुजारी।

पूज्य नहीं कहेंगे।

बाप कहते हैं मेरे को विरला कोई जानते हैं।

मैं जो हूँ, जैसा हूँ - तुम बच्चों में भी विरले कोई एक्यूरेट जानते हैं।

उनको अन्दर में बहुत खुशी रहती है।

यह तो समझते हैं ना - बाबा ही हमको स्वर्ग की बादशाही देते हैं।

कुबेर के खजाने मिलते हैं।

अल्लाह अवलदीन का भी खेल दिखाते हैं ना।

ठका करने से खजाना निकल आया।

बहुत खेल दिखाते हैं - खुदा दोस्त बादशाह क्या करते थे, उस पर भी कहानी है।

पुल पर जो आता था उनको एक दिन की राजाई दे रवाना कर देता था।

यह सब हैं कहानियां।

अभी बाप समझाते हैं खुदा तुम बच्चों का दोस्त है, इनमें प्रवेश कर तुम्हारे साथ खाते पीते हैं, खेलते भी हैं।

शिवबाबा का और ब्रह्मा बाबा का रथ एक ही है, तो जरूर शिवबाबा भी खेल तो सकते होंगे ना।

बाप को याद कर खेलते हैं तो दोनों इसमें हैं।

हैं तो दो ना - बाप और दादा।

परन्तु कोई भी समझते नहीं हैं, कहते हैं रथ पर आये, तो वह फिर घोड़े-गाड़ी का रथ बना दिया है।

ऐसे भी नहीं कहेंगे कृष्ण में शिवबाबा बैठ ज्ञान देते हैं।

वह फिर कह देते हैं कृष्ण भगवानुवाच।

ऐसे तो नहीं कहते ब्रह्मा भगवानुवाच।

नहीं।

यह है रथ।

शिव भगवानुवाच।

बाप बैठ तुम बच्चों को अपना और रचना के आदि-मध्य-अन्त का परिचय, ड्युरेशन बताते हैं।

जो बात कोई भी नहीं जानते।

सेन्सीबुल जो होंगे वह बुद्धि से काम लेंगे।

सन्यासियों को तो सन्यास करना है।

तुम भी शरीर सहित सब कुछ सन्यास करते हो, जानते हो यह पुरानी खल है, हमको तो अब नई दुनिया में जाना है।

हम आत्मा यहाँ की रहने वाली नहीं हैं।

यहाँ पार्ट बजाने आये हैं।

हम रहवासी परमधाम के हैं।

यह भी तुम बच्चे जानते हो वहाँ निराकारी झाड़ कैसा है।

सभी आत्मायें वहाँ रहती हैं, यह अनादि ड्रामा बना हुआ है।

कितनी करोड़ों जीव आत्मायें हैं।

इतने सब कहाँ रहते हैं?

निराकारी दुनिया में।

बाकी यह सितारे तो आत्मा नहीं हैं।

मनुष्यों ने तो इन सितारों को भी देवता कह दिया है।

परन्तु वह कोई देवता है नहीं।

ज्ञान सूर्य तो हम शिवबाबा को कहेंगे।

तो उनको फिर देवता थोड़ेही कहेंगे।

शास्त्रों में तो क्या-क्या बातें लिख दी हैं।

यह है सब भक्ति मार्ग की सामग्री।

जिससे तुम नीचे ही गिरते आये हो।

84 जन्म लेंगे तो जरूर नीचे उतरेंगे ना।

अभी यह है आइरन एजड दुनिया।

सतयुग को कहा जाता है गोल्डन एजड दुनिया।

वहाँ कौन रहते थे?

देवतायें।

वह कहाँ गये - यह किसको भी पता नहीं है।

समझते भी हैं पुनर्जन्म लेते हैं।

बाप ने समझाया है पुनर्जन्म लेते-लेते देवता से बदल हिन्दू बन गये हैं।

पतित बने हैं ना।

और किसका भी धर्म बदली नहीं होता।

इन्हों का धर्म क्यों बदली होता है - किसको पता नहीं।

बाप कहते हैं धर्म भ्रष्ट, कर्म भ्रष्ट हो गये हैं।

देवी-देवता थे तो पवित्र जोड़े थे।

फिर रावण राज्य में तुम अपवित्र बन गये हो।

तो देवी-देवता कहला न सके इसलिए नाम पड़ गया है हिन्दू।

देवी-देवता धर्म कृष्ण भगवान ने नहीं स्थापन किया।

जरूर शिवबाबा ने ही आकर किया होगा।

शिव जयन्ती शिवरात्रि भी मनाई जाती है परन्तु उसने क्या आकर किया, यह किसको भी पता नहीं है।

एक शिव पुराण भी है।

वास्तव में शिव की एक गीता ही है, जो शिवबाबा ने सुनाई है, और कोई शास्त्र है नहीं।

तुम कोई भी हिंसा नहीं करते हो।

तुम्हारा कोई शास्त्र तो बनता नहीं।

तुम नई दुनिया में चले जाते हो।

सतयुग में कोई भी शास्त्र गीता आदि होता नहीं।

वहाँ कौन पढ़ेंगे।

वह तो कह देते यह वेद-शास्त्र आदि परम्परा से चले आते हैं।

उन्हों को कुछ भी पता नहीं है।

स्वर्ग में कोई शास्त्र आदि होता नहीं।

बाप ने तो देवता बना दिया, सबकी सद्गति हो गई फिर शास्त्र पढ़ने की क्या दरकार है।

वहाँ शास्त्र होते नहीं।

अभी बाप ने तुम्हें ज्ञान की चाबी दी है, जिससे बुद्धि का ताला खुल गया है।

पहले ताला एकदम बन्द था, कुछ भी समझते नहीं थे।

अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1) किसी से भी ईर्ष्या आदि नहीं करनी है।

खामियां निकाल सम्पूर्ण बनने का पुरुषार्थ करना है।

पढ़ाई से ऊंच पद पाना है।

2) शरीर सहित सब कुछ सन्यास करना है।

किसी भी प्रकार की हिंसा नहीं करनी है।

अहंकार नहीं रखना है।

वरदान:-

मेरे को तेरे में परिवर्तन कर

बेफिक्र बादशाह बनने वाले

खुशी के खजाने से भरपूर भव

जिन बच्चों ने सब कुछ तेरा किया वही बेफिकर रहते हैं।

मेरा कुछ नहीं, सब तेरा है...जब ऐसा परिवर्तन करते हो तब बेफिकर बन जाते हो।

जीवन में हर एक बेफिकर रहना चाहता है, जहाँ फिकर नहीं वहाँ सदा खुशी होगी।

तो तेरा कहने से, बेफिकर बनने से खुशी के खजाने से भरपूर हो जाते हो।

आप बेफिकर बादशाहों के पास अनगिनत, अखुट, अविनाशी खजाने हैं जो सतयुग में भी नहीं होंगे।

स्लोगन:-

खजानों को सेवा में लगाना अर्थात्

जमा का खाता बढ़ाना।