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16-11-2019 प्रात:मुरली बापदादा मधुबन

“मीठे बच्चे - तुम हो त्रिमूर्ति बाप के बच्चे, तुम्हें अपने तीन कर्तव्य याद रहें - स्थापना, विनाश और पालना''

प्रश्नः-

देह-अभिमान की कड़ी बीमारी लगने से कौन-कौन से नुकसान होते हैं?

उत्तर:-

1. देह-अभिमान वालों के अन्दर जैलसी होती है, जैलसी के कारण आपस में लून-पानी होते रहते, प्यार से सेवा नहीं कर सकते हैं।

अन्दर ही अन्दर जलते रहते हैं।

2. बेपरवाह रहते हैं। माया उन्हें बहुत धोखा देती रहती है। पुरूषार्थ करते-करते फाँ हो जाते हैं, जिस कारण पढ़ाई ही छूट जाती है।

3. देह-अभिमान के कारण दिल साफ नहीं, दिल साफ न होने कारण बाप की दिल पर नहीं चढ़ते।

4. मूड ऑफ कर देते। उनका चेहरा ही बदल जाता है।

ओम् शान्ति।

सिर्फ बाप को ही याद करते हो या और भी कुछ याद आता है?

बच्चों को स्थापना, विनाश और पालना-तीनों की याद होनी चाहिए क्योंकि साथ-साथ इकट्ठा चलता है ना।

जैसे कोई बैरिस्टरी पढ़ते हैं तो उनको मालूम है मैं बैरिस्टर बनूँगा, वकालत करूंगा।

बैरिस्टरी की पालना भी करेंगे ना।

जो भी पढ़ेगा उनकी एम तो आगे रहेगी।

तुम जानते हो हम अभी कन्स्ट्रक्शन कर रहे हैं।

पवित्र नई दुनिया स्थापन कर रहे हैं, इसमें योग बहुत जरूरी है।

योग से ही हमारी आत्मा जो पतित बन गई है, वह पावन बनेगी।

तो हम पवित्र बन फिर पवित्र दुनिया में जाकर राज्य करेंगे, यह बुद्धि में आना चाहिए। सब इम्तहानों में सबसे बड़ा इम्तहान वा सभी पढ़ाईयों से ऊंच पढ़ाई यह है।

पढ़ाईयाँ तो अनेक प्रकार की हैं ना।

वह तो सब मनुष्य, मनुष्य को पढ़ाते हैं और वह पढ़ाईयाँ इस दुनिया के लिए ही हैं।

पढ़कर फिर उनका फल यहाँ ही पायेंगे।

तुम बच्चे जानते हो इस बेहद की पढ़ाई का फल हमको नई दुनिया में मिलना है।

वह नई दुनिया कोई दूर नहीं।

अभी संगमयुग है।

नई दुनिया में ही हमको राज्य करना है।

यहाँ बैठे हो तो भी बुद्धि में यह याद करना है।

बाप की याद से ही आत्मा पवित्र बनेगी।

फिर यह भी याद रखना है कि हम पवित्र बनेंगे फिर इस इमप्योर दुनिया का विनाश भी जरूर होगा।

सभी तो पवित्र नहीं बनेंगे।

तुम बहुत थोड़े हो जिनमें ताकत है।

तुम्हारे में भी नम्बरवार ताकत अनुसार ही सूर्यवंशी-चन्द्रवंशी बनते हैं ना।

ताकत तो हर बात में चाहिए।

यह है ईश्वरीय माइट, इनको योगबल की माइट कहा जाता है।

बाकी सब है जिस्मानी माइट।

यह है रूहानी माइट।

बाप कल्प-कल्प कहते हैं-हे बच्चों, मामेकम् याद करो।

सर्वशक्तिमान् बाप को याद करो।

वह तो एक ही बाप है, उनको याद करने से आत्मा पवित्र बनेगी।

यह बहुत अच्छी बातें हैं - धारण करने की, जिनको यह निश्चय ही नहीं है कि हमने 84 जन्म लिए हैं, उनकी बुद्धि में यह बातें बैठेंगी नहीं।

जो सतोप्रधान दुनिया में आये थे, वही अब तमोप्रधान में आये हैं।

वही आकर जल्दी निश्चयबुद्धि बनेंगे।

अगर कुछ भी नहीं समझते हैं तो पूछना चाहिए।

पूरी रीति समझें तो बाप को भी याद करें।

समझेंगे नहीं तो याद भी नहीं कर सकेंगे।

यह तो सीधी बात है।

हम आत्मायें जो सतोप्रधान थी वही फिर तमोप्रधान बनी हैं, जिनको यह संशय होगा कि कैसे समझें हम 84 जन्म लेते हैं वा बाप से कल्प पहले भी वर्सा लिया है, वह तो पढ़ाई में पूरा ध्यान ही नहीं देंगे।

समझा जाता है इनकी तकदीर में नहीं है।

कल्प पहले भी नहीं समझा था इसलिए याद कर नहीं सकेंगे।

यह है ही भविष्य के लिए पढ़ाई।

नहीं पढ़ते हैं तो समझा जाता है कल्प-कल्प नहीं पढ़ते थे अथवा थोड़ी मार्क्स से पास हुए थे।

स्कूल में बहुत फेल भी होते हैं।

पास भी नम्बरवार ही होते हैं।

यह भी पढ़ाई है, इसमें नम्बरवार पास होंगे।

जो होशियार हैं वह तो पढ़कर फिर पढ़ाते रहेंगे।

बाप कहते हैं मैं तुम बच्चों का सर्वेन्ट हूँ।

बच्चे भी कहते हैं कि हम भी सर्वेन्ट हैं।

हर एक भाई-बहन का कल्याण करना है।

बाप हमारा कल्याण करता है, हमको फिर औरों का कल्याण करना है।

सबको यह भी समझाना है, बाप को याद करो तो पाप कट जाएं।

जितना-जितना जो बहुतों को पैगाम पहुँचाते हैं, उन्हें बड़ा पैगम्बर कहेंगे।

उनको ही महारथी अथवा घोड़ेसवार कहा जाता है।

प्यादे फिर प्रजा में चले जाते हैं।

इसमें भी बच्चे समझते हैं कौन-कौन साहूकार बन सकेंगे।

यह ज्ञान बुद्धि में रहना चाहिए।

तुम बच्चे जो सर्विस के लिए निमित्त बने हुए हो, सर्विस के लिए ही जीवन दी हुई है तो पद भी ऐसे पायेंगे।

उनको किसी की परवाह नहीं रहती।

मनुष्य अपने हाथ-पांव वाला है ना।

बांधा तो नहीं जा सकता।

अपने को स्वतंत्र रख सकते हैं।

ऐसे क्यों बंधन में फसूँ?

क्यों न बाप से अमृत लेकर अमृत का ही दान करूँ।

मैं कोई रिढ़-बकरी थोड़ेही हूँ जो कोई हमको बांधे।

शुरू में तुम बच्चों ने कैसे अपने को छुड़ाया, रड़िया मारी, हाय-हाय कर बैठ गये।

तुम कहेंगे हमको क्या परवाह है, हमको तो स्वर्ग की स्थापना करनी है या यह काम बैठ करने हैं। वह मस्ती चढ़ जाती है, जिसको मौलाई मस्ती कहा जाता है।

हम मौला के मस्ताने हैं।

तुम जानते हो मौला से हमको क्या प्राप्त हो रहा है।

मौला हमको पढ़ा रहे हैं ना।

नाम तो उनके बहुत हैं परन्तु कोई-कोई नाम बहुत मीठे हैं।

अभी हम मौलाई मस्त बने हैं।

बाप डायरेक्शन तो बहुत सिम्पल देते हैं।

बुद्धि भी समझती है-बरोबर हम बाप को याद करते-करते सतोप्रधान बन जायेंगे और विश्व के मालिक भी बनेंगे।

यही तात लगी हुई है।

बाप को हरदम याद करना चाहिए।

सामने बैठे हो ना।

यहाँ से बाहर निकले और भूल जायेंगे।

यहाँ जितना नशा चढ़ता है उतना बाहर में नहीं रहता, भूल जाते हैं।

तुमको भूलना नहीं चाहिए।

परन्तु तकदीर में नहीं है तो यहाँ बैठे भी भूल जाते हैं।

बच्चों के लिए म्युजियम में और गाँव-गाँव में सर्विस करने के लिए प्रबन्ध हो रहे हैं।

जितना भी समय मिला है, बाप तो कहते हैं जल्दी-जल्दी करो।

परन्तु ड्रामा में जल्दी हो नहीं सकती।

बाप तो कहते ऐसी मशीनरी हो जो हाथ डालें और चीज़ तैयार हो जाए।

यह भी बाप समझाते रहते हैं-अच्छे-अच्छे बच्चों को माया नाक और कान से अच्छी रीति पकड़ती है।

जो अपने को महावीर समझते हैं उन्हों को ही माया के बहुत त़ूफान आते हैं फिर वह किसकी भी परवाह नहीं करते।

छिपा लेते हैं।

आन्तरिक दिल सच्ची नहीं है।

सच्ची दिल वाले ही स्कॉलरशिप पाते हैं।

शैतानी दिल चल न सके।

शैतानी दिल से अपना ही बेडा गर्क करते हैं।

सबका शिवबाबा से काम है।

यह तो तुम साक्षात्कार करते हो।

ब्रह्मा को भी बनाने वाला शिवबाबा है।

शिवबाबा को याद करें तब ऐसा बनें।

बाबा समझते हैं माया बड़ी जबरदस्त है।

जैसे चूहा काटता है तो मालूम भी नहीं पड़ता है, माया भी ऐसी मस्त चूही है।

महारथियों को ही खबरदार रहना है।

वह खुद समझते नहीं हैं कि हमको माया ने गिरा दिया है।

लूनपानी बना दिया है।

समझना चाहिए लूनपानी होने से हम बाप की सर्विस कर नहीं सकेंगे।

अन्दर ही जलते रहेंगे।

देह-अभिमान है तब जलते हैं।

वह अवस्था तो है नहीं।

याद का जौहर भरता नहीं है, इसलिए बहुत खबरदार रहना चाहिए।

माया बड़ी तीखी है, जबकि तुम युद्ध के मैदान पर हो तो माया भी छोड़ती नहीं।

आधा-पौना तो खत्म कर देती है, किसको पता भी नहीं पड़ता है।

कैसे अच्छे-अच्छे, नये-नये भी पढ़ाई बन्दकर घर में बैठ जाते हैं।

अच्छे-अच्छे नामीग्रामी पर भी माया का वार होता है।

समझते हुए भी बेपरवाह हो जाते हैं।

थोड़ी बात में झट लून-पानी हो पड़ते हैं।

बाप समझाते हैं देह-अभिमान के कारण ही लून-पानी होते हैं।

स्वयं को धोखा देते हैं।

बाप कहेंगे यह भी ड्रामा।

जो कुछ देखते हैं कल्प पहले मिसल ड्रामा चलता रहता है।

नीचे-ऊपर अवस्था होती रहती है।

कभी ग्रहचारी बैठती है, कभी बहुत अच्छी सर्विस कर खुशखबरी लिखते हैं।

नीचे-ऊपर होता रहता है।

कभी हार, कभी जीत।

पाण्डवों की माया से कभी हार, कभी जीत होती है।

अच्छे-अच्छे महारथी भी हिल जाते हैं, कई मर भी जाते हैं इसलिए जहाँ भी रहो बाप को याद करते रहो और सर्विस करते रहो।

तुम निमित्त बने हुए हो सर्विस के लिए।

तुम लड़ाई के मैदान में हो ना।

जो बाहर वाले घर गृहस्थ व्यवहार में रहते हैं, यहाँ वालों से भी बहुत तीखे जा सकते हैं।

माया के साथ पूरी युद्ध चलती रहती है।

सेकेण्ड बाई सेकेण्ड तुम्हारा कल्प पहले मिसल पार्ट चलता आया है।

तुम कहेंगे इतना समय पास हो गया, क्या-क्या हुआ है, वह भी बुद्धि में है।

सारा ज्ञान बुद्धि में है।

जैसे बाप में ज्ञान है, इस दादा में भी आना चाहिए।

बाबा बोलते हैं तो जरूर दादा भी बोलते होंगे।

तुम भी जानते हो कौन-कौन अच्छे दिल साफ हैं।

दिल साफ वाले ही दिल पर चढ़ते हैं।

उनमें लूनपानी का स्वभाव नहीं रहता है, सदैव हर्षित रहते हैं।

उनका मूड कभी फिरेगा नहीं। यहाँ तो बहुतों की मूड फिर जाती है।

बात मत पूछो। इस समय सभी कहते भी हैं हम पतित हैं।

अभी पतित-पावन बाप को बुलाया है कि आकर पावन बनाओ।

बाप कहते हैं-बच्चों, मुझे याद करते रहो तो तुम्हारे कपड़े साफ हों।

मेरी श्रीमत पर चलो।

श्रीमत पर न चलने वाले का कपड़ा साफ नहीं होता।

आत्मा शुद्ध होती ही नहीं।

बाप तो दिन-रात इस पर ही जोर देते हैं-अपने को आत्मा समझो।

देह-अभिमान में आने से ही तुम घुटका खाते हो।

जितना-जितना ऊपर चढ़ते जाते हो, खुशनुम: होते जाते हो और हर्षितमुख रहता है।

बाबा जानते हैं अच्छे-अच्छे फर्स्टक्लास बच्चे हैं परन्तु अन्दरूनी हालत देखो तो गल रहे हैं।

देह-अभिमान की आग जैसे गला रही है।

समझते नहीं हैं, यह बीमारी फिर कहाँ से आई।

बाप कहते हैं देह-अभिमान से यह बीमारी आती है।

देही-अभिमानी को कभी बीमारी नहीं लगेगी।

बहुत अन्दर में जलते रहते हैं।

बाप तो कहते हैं-बच्चे, देही-अभिमानी भव।

पूछते हैं यह रोग क्यों लगा है?

बाप कहते हैं यह देह-अभिमान की बीमारी ऐसी है, बात मत पूछो।

कोई को यह बीमारी लगती है तो एकदम चिचड़ होकर लगती है (चिपक जाती है), छोड़ती ही नहीं है।

श्रीमत पर न चल अपने देह-अभिमान में चलते हैं तो चोट बड़े ज़ोर से लगती है।

बाबा के पास तो सब समाचार आते हैं।

माया कैसे एकदम नाक से पकड़ गिरा देती है।

बुद्धि बिल्कुल मार डालती है।

संशय बुद्धि बन पड़ते हैं।

भगवान को बुलाते हैं कि आकर हमको पत्थरबुद्धि से पारसबुद्धि बनाओ और फिर उनके भी विरुद्ध हो जाते, तो क्या गति होगी!

एकदम गिरकर पत्थरबुद्धि बन जाते हैं।

बच्चों को यहाँ बैठे यह खुशी रहनी चाहिए, स्टूडेन्ट लाइफ इज दी बेस्ट यह है।

बाप कहते हैं इनसे और कोई पढ़ाई ऊंच है क्या?

दी बेस्ट तो यह है, 21 जन्मों का फल देती है, तो ऐसी पढ़ाई में कितना अटेन्शन देना चाहिए।

कोई तो बिल्कुल अटेन्शन नहीं देते हैं।

माया नाक-कान एकदम काट लेती है।

बाप खुद कहते हैं आधाकल्प इनका राज्य चलता है तो ऐसा पकड़ लेती है जो बात मत पूछो, इसलिए बहुत खबरदार रहो।

एक-दो को सावधान करते रहो।

शिवबाबा को याद करो नहीं तो माया कान नाक काट लेगी।

फिर कोई काम के नहीं रहेंगे।

बहुत समझते भी हैं कि हम लक्ष्मी-नारायण का पद पायें, इम्पासिबुल है।

थक कर फाँ हो जाते हैं।

माया से हार खाकर एकदम किचड़े में जाकर पड़ते हैं।

देखो, हमारी बुद्धि बिगड़ती है तो समझना चाहिए माया ने नाक से पकड़ा है।

याद की यात्रा में बहुत बल है।

बहुत खुशी भरी हुई है।

कहते भी हैं खुशी जैसी खुराक नहीं।

दुकान में ग्राहक आते रहते हैं, कमाई होती रहती है तो कभी उनको थकावट नहीं होगी।

भूख नहीं मरेंगे। बड़ी खुशी में रहते हैं।

तुमको तो अथाह (बेशुमार) धन मिलता है।

तुम्हें तो बहुत खुशी रहनी चाहिए।

देखना चाहिए-हमारी चलन दैवी है या आसुरी है?

समय बहुत थोड़ा है।

अकाले मृत्यु की भी जैसे रेस है।

एक्सीडेंट आदि देखो कितने होते रहते हैं।

तमोप्रधान बुद्धि होते जाते हैं।

बरसात जोर से पड़ेगी, उनको भी कुदरती एक्सीडेंट कहेंगे।

मौत सामने आया कि आया।

समझते भी हैं एटॉमिक बाम्ब्स की लड़ाई छिड़ जायेगी।

ऐसे-ऐसे ख़ौफनाक काम करते हैं, तंग कर देंगे तो फिर लड़ाई भी छिड़ जायेगी।

अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1) मौलाई मस्ती में रहकर स्वयं को स्वतंत्र बनाना है।

किसी भी बन्धन में नहीं बंधना है।

माया चूही से बहुत-बहुत सम्भाल करनी है, खबरदार रहना है।

दिल में कभी भी शैतानी ख्याल न आयें।

2) बाप द्वारा जो बेशुमार धन (ज्ञान का) मिलता है, उसकी खुशी में रहना है।

इस कमाई में कभी भी संशयबुद्धि बन थकना नहीं है।

स्टूडेन्ट लाइफ दी बेस्ट लाइफ है इसलिए पढ़ाई पर पूरा-पूरा ध्यान देना है।

वरदान:-

सर्व प्राप्तियों के खजानों को

स्मृति स्वरूप बन कार्य में लगाने वाले

सदा सन्तुष्ट आत्मा भव

संगमयुग का विशेष वरदान सन्तुष्टता है और सन्तुष्टता का बीज सर्व प्राप्तियां हैं।

असन्तुष्टता का बीज स्थूल वा सूक्ष्म अप्राप्ति है।

ब्राह्मणों का गायन है अप्राप्त नहीं कोई वस्तु ब्राह्मणों के खजाने में।

सभी बच्चों को एक द्वारा एक जैसा अखुट खजाना मिलता है।

सिर्फ उन प्राप्त हुए खजानों को हर समय कार्य में लगाओ अर्थात् स्मृति स्वरूप बनो।

बेहद की प्राप्तियों को हद में परिवर्तन नहीं करो तो सदा सन्तुष्ट रहेंगे।

स्लोगन:-

जहाँ निश्चय है वहाँ विजय के तकदीर की लकीर मस्तक पर है ही।