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13-09-2019 प्रात:मुरली बापदादा मधुबन

"मीठे बच्चे - याद की मेहनत तुम सबको करनी है,

तुम अपने को आत्मा समझ मुझ बाप को याद करो तो...

मैं तुम्हें सब पापों से मुक्त कर दूँगा''

प्रश्नः-

सर्व की सद्गति का स्थान कौन-सा है, जिसके महत्व का सारी दुनिया को पता चलेगा?

उत्तर:-

आबू भूमि है सबकी सद्गति का स्थान

तुम ब्रह्माकुमारीज़ के सामने ब्रैकेट में लिख सकते हो यह सर्वोत्तम तीर्थ स्थान है।

सारे दुनिया की सद्गति यहाँ से होनी है।

सर्व का सद्गति दाता बाप और आदम (ब्रह्मा) यहाँ पर बैठकर सबकी सद्गति करते हैं।

आदम अर्थात् आदमी, वह देवता नहीं है।

उसे भगवान् भी नहीं कह सकते।

ओम् शान्ति।

डबल ओम् शान्ति क्योंकि एक है बाप की, दूसरी है दादा की...

दोनों की आत्मा है ना।

वह है परम आत्मा, यह है आत्मा।

वह भी लक्ष्य बतलाते हैं कि हम परमधाम के रहवासी हैं,

दोनों ऐसे कहते हैं।

बाप भी कहते हैं ओम् शान्ति, यह भी कहते हैं ओम् शान्ति।

बच्चे भी कहते हैं ओम् शन्ति अर्थात् हम आत्मा शान्तिधाम की निवासी हैं।

यहाँ अलग-अलग होकर बैठना है...

अंग से अंग नहीं मिलना चाहिए क्योंकि

हर एक की अवस्था में, योग में रात-दिन का फ़र्क है।

कोई बहुत अच्छा याद करते हैं, कोई बिल्कुल याद नहीं करते।

तो जो बिल्कुल याद नहीं करते - वह हैं पाप आत्मा, तमोप्रधान और जो याद करते हैं वह हो गये पुण्य आत्मा, सतोप्रधान।

बहुत फर्क हो गया ना।

घर में भल इकट्ठे रहते हैं परन्तु फर्क तो पड़ता है ना इसलिए ही तो भागवत में आसुरी नाम गाये हुए हैं।

इस समय की ही बात है।

बाप बैठ बच्चों को समझाते हैं - यह हैं ईश्वरीय चरित्र, जो भक्ति मार्ग में गाते हैं।

सतयुग में तो कुछ भी याद नहीं रहेगा, सब भूल जायेंगे।

बाप अभी ही शिक्षा देते हैं।

सतयुग में तो यह बिल्कुल भूल जाते हैं, फिर द्वापर में शास्त्र आदि बनाते हैं और कोशिश करते हैं राजयोग सिखलाने की...

परन्तु राजयोग तो सिखा न सकें।

वह तो बाप जब सम्मुख आते हैं तब ही आकर सिखलाते हैं।

तुम जानते हो कैसे बाप राजयोग सिखलाते हैं।

फिर 5 हज़ार वर्ष बाद आकर ऐसे ही कहेंगे - मीठे-मीठे रूहानी बच्चों, ऐसे कभी भी कोई मनुष्य, मनुष्य को कह न सकें।

न देवतायें, देवताओं को कह सकते हैं।

एक रूहानी बाप ही रूहानी बच्चों को कहते हैं - एक बार पार्ट बजाया फिर 5 हज़ार वर्ष के बाद पार्ट बजायेंगे क्योंकि फिर तुम सीढ़ी उतरते हो ना।

तुम्हारी बुद्धि में अब आदि-मध्य-अन्त का राज़ है...

जानते हो वह है शान्तिधाम अथवा परमधाम।

हम आत्मायें भिन्न-भिन्न धर्म की सब नम्बरवार वहाँ रहती हैं, निराकारी दुनिया में।

जैसे स्टार्स देखते हो ना - कैसे खड़े हैं, कुछ देखने में नहीं आता।

ऊपर में कोई चीज़ नहीं है।

ब्रह्म तत्व है।

यहाँ तुम धरती पर खड़े हो, यह है कर्म क्षेत्र...

यहाँ आकर शरीर लेकर कर्म करते हैं।

बाप ने समझाया है तुम जब मेरे से वर्सा पाते हो तो 21 जन्म तुम्हारे कर्म अकर्म हो जाते हैं क्योंकि वहाँ रावण राज्य ही नहीं होता है।

वह है ईश्वरीय राज्य जो अब ईश्वर स्थापन कर रहे हैं।

बच्चों को समझाते रहते हैं - शिवबाबा को याद करो तो स्वर्ग के मालिक बनो।

स्वर्ग शिवबाबा ने स्थापन किया ना।

तो शिवबाबा को और सुखधाम को याद करो।

पहले-पहले शान्तिधाम को याद करो तो चक्र भी याद आयेगा।

बच्चे भूल जाते हैं, इसलिए घड़ी-घड़ी याद कराना पड़ता है।

हे मीठे-मीठे बच्चों, अपने को आत्मा समझो और बाप को याद करो तो तुम्हारे पाप भस्म हों।

प्रतिज्ञा करते हैं तुम याद करेंगे तो पापों से मुक्त करूँगा।

बाप ही पतित-पावन सर्वशक्तिमान् अथॉरिटी हैं, उनको वर्ल्ड आलमाइटी अथॉरिटी कहा जाता है।

वह सारे सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त को जानते हैं।

वेदों-शास्त्रों आदि सबको जानते हैं तब तो कहते हैं इनमें कोई सार नहीं है।

गीता में भी कोई सार नहीं है।

भल वह सर्व शास्त्रमई शिरोमणी है माई बाप, बाकी सब हैं बच्चे।

जैसे पहले-पहले प्रजापिता ब्रह्मा है, बाकी सब बच्चे हैं।

प्रजापिता ब्रह्मा को आदम कहते हैं।

आदम माना आदमी।

मनुष्य है ना, तो इनको देवता नहीं कहेंगे।

एडम को आदम कहते हैं।

भक्त लोग ब्रह्मा एडम को देवता कह देते।

बाप बैठ समझाते हैं एडम अर्थात् आदमी।

न देवता है, न भगवान् है।

लक्ष्मी-नारायण हैं देवता। डिटीज्म है पैराडाइज़ में...

नई दुनिया है ना।

वह है वन्डर ऑफ दी वर्ल्ड।

बाकी तो वह सब हैं माया के वन्डर।

द्वापर के बाद माया के वन्डर्स होते हैं।

ईश्वरीय वन्डर है - हेविन, स्वर्ग, जो बाप ही स्थापन करते हैं।

अभी स्थापन हो रहा है।

यह जो देलवाड़ा मन्दिर है, इसकी वैल्युज़ का किसको भी पता नहीं है...

मनुष्य यात्रा करने जाते हैं, तो सबसे अच्छा तीर्थ स्थान यह है।

तुम लिखते हो ना ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व-विद्यालय, आबू पर्वत।

तो ब्रैकेट में यह भी लिखना चाहिए - (सर्वोत्तम तीर्थ स्थान) क्योंकि तुम जानते हो सर्व की सद्गति यहाँ से होती है।

यह कोई जानते नहीं।

जैसे सर्व शास्त्रमई शिरोमणी गीता है वैसे सर्व तीर्थों में श्रेष्ठ तीर्थ आबू है।

तो मनुष्य पढ़ेंगे, अटेन्शन जायेगा।

सारे वर्ल्ड के तीर्थों में यह है सबसे बड़ा तीर्थ, जहाँ बाप बैठ सबकी सद्गति करते हैं।

तीर्थ तो बहुत हो गये हैं।

गांधी की समाधि को भी तीर्थ समझते हैं।

सब जाकर वहाँ फूल आदि चढ़ाते हैं, उनको कुछ पता नहीं है।

तुम बच्चे जानते हो ना - तो तुमको यहाँ बैठे दिल अन्दर बड़ी खुशी होनी चाहिए।

हम हेविन की स्थापना कर रहे हैं।

अब बाप कहते हैं - अपने को आत्मा समझ मुझे याद करो...

पढ़ाई भी बहुत सहज है।

कुछ भी खर्चा नहीं लगता है।

तुम्हारी मम्मा को एक पाई खर्चा लगा?

बिगर कौड़ी खर्चा पढ़कर कितनी होशियार नम्बरवन बन गई।

राजयोगिन बन गई ना।

मम्मा जैसी कोई भी नहीं निकली है।

देखो, आत्माओं को ही बाप बैठ पढ़ाते हैं।

आत्माओं को ही राज्य मिलता है, आत्मा ने ही राज्य गँवाया है।

इतनी छोटी-सी आत्मा कितना काम करती है...

बुरे ते बुरा काम है विकार में जाना।

आत्मा 84 जन्मों का पार्ट बजाती है।

छोटी-सी आत्मा में कितनी ताकत है!

सारे विश्व पर राज्य करती है।

इन देवताओं की आत्मा में कितनी ताकत है।

हर एक धर्म में अपनी-अपनी ताकत होती है ना।

क्रिश्चियन धर्म में कितनी ताकत है।

आत्मा में ताकत है जो शरीर द्वारा कर्म करती है।

आत्मा ही यहाँ आकर इस कर्मक्षेत्र पर कर्म करती है।

वहाँ बुरा कर्तव्य होता नहीं।

आत्मा विकारी मार्ग में जाती ही तब है जब रावणराज्य होता है।

मनुष्य तो कह देते विकार सदैव हैं ही...

तुम समझा सकते हो वहाँ रावणराज्य ही नहीं तो विकार हो कैसे सकते।

वहाँ है ही योगबल।

भारत का राजयोग मशहूर है...

बहुत सीखना चाहते हैं परन्तु जब तुम सिखलाओ।

और तो कोई सिखला न सके।

जैसे महर्षि था, कितनी मेहनत करता था योग सिखलाने के लिए।

परन्तु दुनिया थोड़ेही जानती कि यह हठयोगी राजयोग कैसे सिखलायेंगे।

चिन्मियानंद के पास कितने जाते हैं, एक बार वह कह दें कि सचमुच भारत का प्राचीन राजयोग सिवाए बी.के. के कोई समझा नहीं सकते हैं तो बस।

परन्तु ऐसा कायदा नहीं है, जो अभी यह आवाज़ हो।

सब थोड़ेही समझेंगे।

बड़ी मेहनत है, महिमा भी होगी पिछाड़ी में, कहते हैं ना - अहो प्रभू, अहो शिवबाबा आपकी लीला।

अभी तुम समझते हो तुम्हारे सिवाए बाप को सुप्रीम बाप, सुप्रीम टीचर, सुप्रीम सतगुरू और कोई समझते नहीं।

यहाँ भी बहुत हैं, जिनको चलते-चलते माया हैरान कर देती है तो बिल्कुल बेसमझ बन पड़ते हैं...

बड़ी मंजिल है।

युद्ध का मैदान है, इसमें माया विघ्न बहुत डालती है।

वो लोग विनाश के लिए तैयारी कर रहे हैं।

तुम यहाँ 5 विकारों को जीतने के लिए पुरूषार्थ कर रहे हो।

तुम विजय के लिए, वह विनाश के लिए पुरूषार्थ कर रहे हैं।

दोनों काम इकट्ठा होगा ना।

अभी टाइम पड़ा है।

हमारा राज्य थोड़ेही स्थापन हुआ है।

राजायें, प्रजा अभी सब बनने हैं।

तुम आधाकल्प के लिए बाप से वर्सा लेते हो।

बाकी मोक्ष तो कोई को मिलता नहीं...

वह लोग भल कहते हैं फलाने ने मोक्ष को पाया, मरने के बाद उनको थोड़ेही मालूम है कि कहाँ गया।

ऐसे ही गपोड़े मारते रहते हैं।

तुम जानते हो जो शरीर छोड़ते हैं वह फिर दूसरा शरीर जरूर लेंगे।

मोक्ष पा नहीं सकते।

ऐसे नहीं कि बुदबुदा पानी में लीन हो जाता है।

बाप कहते हैं - यह शास्त्र आदि सब भक्ति मार्ग की सामग्री है।

तुम बच्चे सम्मुख सुनते हो...

गर्म-गर्म हलुआ खाते हो।

सबसे जास्ती गर्म हलुआ कौन खाते हैं?

यह (ब्रह्मा)

यह तो बिल्कुल उनके बाजू में बैठे हैं।

झट सुनते हैं और धारण करते हैं फिर यही ऊंच पद पाते हैं।

सूक्ष्मवतन में, वैकुण्ठ में इनका ही साक्षात्कार करते हैं।

यहाँ भी उनको ही देखते हैं इन आंखों से।

बाप पढ़ाते तो सबको हैं...

बाकी है याद की मेहनत।

याद में रहना जैसे तुमको डिफीकल्ट लगता है, वैसे इनको भी।

इसमें कोई कृपा की बात नहीं।

बाप कहते हैं हमने लोन लिया है, उनका हिसाब-किताब दे देंगे।

बाकी याद का पुरूषार्थ तो इनको भी करना है।

समझता भी हूँ - बाजू में बैठा है।

बाप को हम याद करते फिर भी भूल जाता हूँ।

सबसे जास्ती मेहनत इनको करनी पड़ती है।

युद्ध के मैदान में जो महारथी पहलवान होते हैं, जैसे हनूमान का मिसाल है, तो उनकी ही माया ने परीक्षा ली क्योंकि वह महावीर था।

जितना जास्ती पहलवान उतना जास्ती माया परीक्षा लेती है।

तूफान जास्ती आते हैं।

बच्चे लिखते हैं - बाबा हमको यह-यह होता है।

बाबा कहते हैं यह तो सब कुछ होगा।

बाबा रोज़ समझाते हैं - खबरदार रहना।

लिखते हैं - बाबा, माया बहुत तूफान लाती है।

कोई-कोई देह-अभिमानी होते हैं तो बाबा को बतलाते नहीं है।

तुम अभी बहुत अक्लमंद बनते हो...

आत्मा पवित्र होने से फिर शरीर भी पवित्र मिलता है।

आत्मा कितना चमत्कारी हो जाती है।

पहले तो गरीब ही उठाते हैं।

बाप भी गरीब निवाज़ गाया हुआ है।

बाकी तो वो लोग देरी से आयेंगे।

तुम समझते हो जब तक भाई-बहन नहीं बने हैं तो भाई-भाई कैसे बनेंगे...

प्रजापिता ब्रह्मा की सन्तान तो भाई-बहन ठहरे ना।

फिर बाप समझाते हैं भाई-भाई समझो।

यह है पिछाड़ी का सम्बन्ध फिर ऊपर भी भाइयों से जाकर मिलेंगे।

फिर सतयुग में नया सम्बन्ध शुरू होगा...

वहाँ पर साला, चाचा, मामा आदि बहुत सम्बन्ध नहीं होते।

सम्बन्ध बहुत हल्का होता है।

फिर बढ़ता जाता है।

अब तो बाप कहते हैं भाई-बहन भी नहीं, भाई-भाई समझना है।

नाम-रूप से भी निकल जाना है।

बाप भाइयों (आत्माओं) को ही पढ़ाते हैं।

प्रजापिता ब्रह्मा है, तब भाई-बहन हैं ना।

कृष्ण तो खुद ही बच्चा है।

वह कैसे भाई-भाई बनायेंगे।

गीता में भी यह बातें नहीं हैं।

यह है बिल्कुल न्यारा ज्ञान।

ड्रामा में सब नूँध है।

एक सेकण्ड का पार्ट न मिले दूसरे सेकण्ड से।

कितने मास, कितने घण्टे, कितने दिन पास होने हैं, फिर 5 हज़ार वर्ष के बाद ऐसे ही पास होंगे।

कम बुद्धि वाले तो इतनी धारणा कर न सकें इसलिए...

बाप कहते हैं यह तो बहुत सहज है - अपने को आत्मा समझो,

बेहद के बाप को याद करो।

पुरानी दुनिया का विनाश भी होना है।

बाप कहते हैं मैं आता ही तब हूँ जबकि संगम है।

तुम ही देवी-देवता थे।

यह जानते हो जब इनका राज्य था तब और कोई धर्म नहीं था।

अभी तो इन्हों का राज्य है नहीं।

अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1) अब पिछाड़ी का समय है, वापस घर चलना है इसलिए अपनी बुद्धि नाम-रूप से निकाल देनी है।

हम आत्मा भाई-भाई हैं - यह अभ्यास करना है।

देह-अभिमान में नहीं आना है।

2) हर एक की अवस्था और योग में रात-दिन का फर्क है इसलिए अलग-अलग होकर बैठना है।

अंग, अंग से न लगे।

पुण्य आत्मा बनने के लिए याद की मेहनत करनी है।

वरदान:-

याद और सेवा के बैलेन्स द्वारा

बाप की मदद का अनुभव करने वाले

ब्लैसिंग की पात्र आत्मा भव

जहाँ याद और सेवा का बैलेन्स अर्थात् समानता है वहाँ बाप की विशेष मदद अनुभव होती है।

यह मदद ही आशीर्वाद है क्योंकि बापदादा अन्य आत्माओं के मुआफिक आशीर्वाद नहीं देते।

बाप तो है ही अशरीरी, तो बापदादा की आशीर्वाद है सहज, स्वत: मदद मिलना जिससे जो असम्भव बात है वह सम्भव हो जाए।

यही मदद अर्थात् आशीर्वाद है।

ऐसी आशीर्वाद की पात्र आत्मायें हो जो एक कदम में पदमों की कमाई जमा हो जाती है।

स्लोगन:-

सकाश देने के लिए

अविनाशी सुख, शान्ति वा सच्चे प्यार का स्टाक जमा करो।