यह बात रोज़-रोज़ बाप बच्चों को समझाते हैं कि सोने के समय अपना पोतामेल अन्दर देखो कि किसको दु:ख तो नहीं दिया और कितना समय बाप को याद किया?
मूल बात यह है।
गीत में भी कहते हैं अपने अन्दर देखो-हम कितना तमोप्रधान से सतोप्रधान बने हैं?
सारे दिन में कितना समय याद किया अपने मीठे बाप को?
कोई भी देहधारी को याद नहीं करना है।
सभी आत्माओं को कहा जाता है अपने बाप को याद करो।
अब वापिस जाना है।
कहाँ जाना है?
शान्तिधाम होकर नई दुनिया में जाना है।
यह तो पुरानी दुनिया है ना। जब बाप आये तब स्वर्ग के द्वार खुलें।
अभी तुम बच्चे जानते हो हम संगमयुग पर बैठे हैं।
यह भी वन्डर है जो संगमयुग पर आकर स्टीमर में बैठकर फिर उतर जाते हैं।
अब तुम संगमयुग पर पुरूषोत्तम बनने के लिए आकर नांव में बैठे हो, पार जाने के लिए।
फिर पुरानी कलियुगी दुनिया से दिल उठा लेनी होती है।
इस शरीर द्वारा सिर्फ पार्ट बजाना होता है।
अभी हमको वापिस जाना है बड़ी खुशी से।
मनुष्य मुक्ति के लिए कितना माथा मारते हैं परन्तु मुक्ति-जीवनमुक्ति का अर्थ नहीं समझते हैं।
शास्त्रों के अक्षर सिर्फ सुने हुए हैं परन्तु वह क्या चीज़ है, कौन देते हैं, कब देते हैं, यह कुछ भी पता नहीं है।
तुम बच्चे जानते हो बाबा आते हैं मुक्ति-जीवनमुक्ति का वर्सा देने के लिए।
वह भी कोई एक बार थोड़ेही, अनेक बार।
बेअन्त बार तुम मुक्ति से जीवनमुक्ति फिर जीवन बंध में आये हो।
तुम्हें अभी यह समझ पड़ी कि हम आत्मा हैं, बाबा हम बच्चों को शिक्षा बहुत देते हैं।
तुम भक्तिमार्ग में दु:ख में याद करते थे, परन्तु पहचानते नहीं थे।
अभी मैंने तुमको अपनी पहचान दी है कि कैसे मुझे याद करो तो तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे।
अभी तक कितने विकर्म हुए हैं, वह अपना पोतामेल रखने से पता पड़ेगा।
जो सर्विस में लगे रहते हैं उनको पता पड़ता है, बच्चों को सर्विस का शौक होता है।
आपस में मिलकर राय कर निकलते हैं सर्विस पर, मनुष्यों का जीवन हीरे जैसा बनाने।
यह कितना पुण्य का कार्य है।
इसमें खर्चे आदि की भी कोई बात नहीं।
सिर्फ हीरे जैसा बनने के लिए बाप को याद करना है।
पुखराज परी, सब्ज परी भी जो नाम हैं, वह तुम हो।
जितना याद में रहेंगे उतना हीरे जैसा बन जायेंगे।
कोई माणिक जैसा, कोई पुखराज जैसा बनेंगे।
9 रत्न होते हैं ना।
कोई ग्रहचारी होती है तो 9 रत्न की अंगूठी पहनते हैं।
भक्ति मार्ग में बहुत टोटका देते हैं।
यहाँ तो सब धर्म वालों के लिए एक ही टोटका है-मनमनाभव क्योंकि गॉड इज वन।
मनुष्य से देवता बनने वा मुक्ति-जीवनमुक्ति पाने की तदबीर एक ही है, सिर्फ बाप को याद करना है, तकलीफ की कोई बात नहीं।
सोचना चाहिए मुझे याद क्यों नहीं ठहरती।
सारे दिन में इतना थोड़ा क्यों याद किया?
जब इस याद से हम एवर हेल्दी, निरोगी बनेंगे तो क्यों न अपना चार्ट रख उन्नति को पायें।
बहुत हैं जो 2-4 रोज़ चार्ट रख फिर भूल जाते हैं।
कोई को भी समझाना बहुत सहज होता है।
नई दुनिया को सतयुग और पुरानी को कलियुग कहा जाता है।
कलियुग बदल सतयुग होगा।
बदली होता है तब हम समझा रहे हैं।
कई बच्चों को यह भी पक्का निश्चय नहीं है कि यह वही निराकार बाप हमें ब्रह्मा तन में आकर पढ़ा रहे हैं।
अरे ब्राह्मण हैं ना।
ब्रह्माकुमार-कुमारियाँ कहलाते हैं, उसका अर्थ ही क्या है, वर्सा कहाँ से मिलेगा!
एडाप्शन तब होती है जब कुछ प्राप्ति होती है।
तुम ब्रह्मा के बच्चे ब्रह्माकुमार-कुमारी क्यों बने हो?
सचमुच बने हो या इसमें भी कोई को संशय हो पड़ता है।
जो महान् सौभाग्यशाली बच्चे हैं वह स्त्री-पुरूष साथ में रहते भाई-भाई होकर रहेंगे।
स्त्री-पुरूष का भान नहीं होगा।
पक्के निश्चयबुद्धि नहीं हैं तो स्त्री-पुरूष की दृष्टि बदलने में भी टाइम लगता है।
महान सौभाग्यशाली बच्चे झट समझ जाते हैं-हम भी स्टूडेन्ट, यह भी स्टूडेन्ट भाई-बहिन हो गये।
यह बहादुरी चल तब सकती है जब अपने को आत्मा समझें।
आत्मायें तो सब भाई-भाई हैं, फिर ब्रह्माकुमार-कुमारियाँ बनने से भाई-बहन हो जाते हैं।
कोई तो बन्धनमुक्त भी हैं, तो भी कुछ न कुछ बुद्धि जाती है।
कर्मातीत अवस्था होने में टाइम लगता है।
तुम बच्चों के अन्दर बहुत खुशी रहनी चाहिए।
कोई भी झंझट नहीं।
हम आत्मायें अब बाबा के पास जाती हैं पुराने शरीर आदि सब छोड़कर।
हमने कितना पार्ट बजाया है। अब चक्र पूरा होता है।
ऐसे-ऐसे अपने साथ बातें करनी होती है।
जितना बात करते रहेंगे, उतना हर्षित भी रहेंगे और अपनी चलन को भी देखते रहेंगे-कहाँ तक हम लक्ष्मी-नारायण को वरने लायक बने हैं?
बुद्धि से समझा जाता है-अभी थोड़े से समय में पुराना शरीर छोड़ना है।
तुम एक्टर्स भी हो ना।
अपने को एक्टर्स समझते हो।
आगे नहीं समझते थे, अभी यह नॉलेज मिली है तो अन्दर में खुशी बहुत रहनी चाहिए।
पुरानी दुनिया से वैराग्य, ऩफरत आनी चाहिए।
तुम बेहद के संन्यासी, राजयोगी हो।
इस पुराने शरीर का भी बुद्धि से संन्यास करना है।
आत्मा समझती है-इनसे बुद्धि नहीं लगानी है।
बुद्धि से इस पुरानी दुनिया, पुराने शरीर का संन्यास किया है।
अभी हम आत्मायें जाती हैं, जाकर बाप से मिलेंगी।
सो भी तब होगा जब एक बाप को याद करेंगे।
और किसको याद किया तो स्मृति जरूर आयेगी।
फिर सज़ा भी खानी पड़ेगी और पद भी भ्रष्ट हो जायेगा।
जो अच्छे-अच्छे स्टूडेन्ट होते हैं वह अपने साथ प्रतिज्ञा कर लेते हैं कि हम स्कॉलरशिप लेकर ही छोड़ेंगे।
तो यहाँ भी हर एक को यह ख्याल में रखना है कि हम बाप से पूरा राज्य-भाग्य लेकर ही छोड़ेंगे।
उनकी फिर चलन भी ऐसे ही रहेगी।
आगे चल पुरूषार्थ करते-करते गैलप करना है।
वह तब होगा जब रोज़ शाम को अपनी अवस्था को देखेंगे।
बाबा के पास समाचार तो हर एक का आता है ना।
बाबा हर एक को समझ सकते हैं, किसको तो कह देते कि तुम्हारे में वह नहीं दिखाई पड़ता है।
यह लक्ष्मी-नारायण बनने जैसी शक्ल दिखाई नहीं पड़ती।
चलन, खान-पान आदि तो देखो।
सर्विस कहाँ करते हो!
फिर क्या बनेंगे! फिर दिल में समझते हैं-हम कुछ करके दिखायें।
इसमें हर एक को इन्डीपिन्डेंट अपनी तकदीर ऊंच बनाने के लिए पढ़ना है।
अगर श्रीमत पर नहीं चलते तो फिर इतना ऊंच पद भी नहीं पा सकेंगे।
अभी पास नहीं हुए तो कल्प कल्पान्तर नहीं होंगे।
तुमको सब साक्षात्कार होंगे-हम किस पद पाने के लायक हैं?
अपने पद का भी साक्षात्कार करते रहेंगे।
शुरू में भी साक्षात्कार करते थे फिर बाबा सुनाने के लिए मना कर देते थे।
पिछाड़ी में सब पता पड़ेगा कि हम क्या बनेंगे फिर कुछ नहीं कर सकेंगे।
कल्प-कल्पान्तर की यह हालत हो जायेगी।
डबल सिरताज, डबल राज्य-भाग्य पा नहीं सकेंगे।
अभी पुरूषार्थ करने की मार्जिन बहुत है, त्रेता के अन्त तक 16108 की बड़ी माला बननी है।
यहाँ तुम आये ही हो नर से नारायण बनने का पुरूषार्थ करने।
जब कम पद का साक्षात्कार होगा तो उस समय जैसे ऩफरत आने लगेगी।
मुँह नीचे हो जायेगा।
हमने तो कुछ भी पुरूषार्थ नहीं किया।
बाबा ने कितना समझाया कि चार्ट रखो यह करो इसलिए बाबा कहते थे जो भी बच्चे आते हैं सबके फ़ोटोज़ हों।
भल ग्रुप का ही इकट्ठा फोटो हो।
पार्टियाँ ले आते हो ना।
फिर उसमें डेट फिल्म आदि सब लगी हो।
फिर बाबा बतलाते रहेंगे कौन गिरे?
बाबा के पास समाचार तो सब आते हैं, बतलाते रहेंगे।
कितनों को माया खींच ले गई।
खत्म हो गये।
बच्चियां भी बहुत गिरती हैं।
एकदम दुर्गति को पा लेती हैं, बात मत पूछो इसलिए बाबा कहते हैं-बच्चे, खबरदार रहो।
माया कोई न कोई रूप धरकर पकड़ लेती है।
कोई के नाम-रूप के तरफ देखो भी नहीं।
भल इन आंखों से देखते हो परन्तु बुद्धि में एक बाप की याद है।
तीसरा नेत्र मिला है, इसलिए कि बाप को ही देखो और याद करो।
देह अभिमान को छोड़ते जाओ।
ऐसे भी नहीं आंखे नीचे करके कोई से बात करनी है।
ऐसा कमज़ोर नहीं बनना है।
देखते हुए बुद्धि का योग अपने बिलवेड माशुक की तरफ हो।
इस दुनिया को देखते हुए अन्दर में समझते हैं यह तो कब्रिस्तान होना है।
इनसे क्या कनेक्शन रखेंगे।
तुमको ज्ञान मिलता है-उसको धारण कर उस पर चलना है।
तुम बच्चे जब प्रदर्शनी आदि समझाते हो तो हज़ार बार मुख से बाबा-बाबा निकलना चाहिए।
बाबा को याद करने से तुम्हारा कितना फायदा होगा।
शिवबाबा कहते हैं मामेकम् याद करो तो विकर्म विनाश होंगे।
शिवबाबा को याद करो तो तमोप्रधान से सतोप्रधान बन जायेंगे।
बाबा कहते हैं मुझे याद करो।
यह भूलो मत। बाप का डायरेक्शन मिला है मनमनाभव।
बाप ने कहा है यह ‘बाबा' शब्द खूब अच्छी तरह से घोटते रहो।
सारा दिन बाबा-बाबा करते रहना चाहिए।
दूसरी कोई बात नहीं।
नम्बरवन मुख्य बात ही यह है।
पहले बाप को जानें, इसमें ही कल्याण है।
यह 84 का चक्र समझना तो बहुत इज़ी है।
बच्चों को प्रदर्शनी में समझाने का बहुत शौक होना चाहिए।
अगर कहाँ देखें हम नहीं समझा सकते हैं तो कह सकते हैं हम अपनी बड़ी बहन को बुलाते हैं क्योंकि यह भी पाठशाला है ना।
इसमें कोई कम, कोई जास्ती पढ़ते हैं।
इस कहने में देह अभिमान नहीं आना चाहिए।
जहाँ बड़ा सेन्टर हो वहाँ प्रदर्शनी भी लगा देनी चाहिए।
चित्र लगा हुआ हो-गेट वे टू हेविन। अब स्वर्ग के द्वार खुल रहे हैं।
इस होवनहार लड़ाई से पहले ही अपना वर्सा ले लो।
जैसे मन्दिर में रोज़ जाना होता है, वैसे तुम्हारे पीछे पाठशाला है।
चित्र लगे हुए होंगे तो समझाने में सहज होगा।
कोशिश करो हम अपनी पाठशाला को चित्रशाला कैसे बनायें?
भभका भी होगा तो मनुष्य आयेंगे।
बैकुण्ठ जाने का रास्ता, एक सेकण्ड में समझने का रास्ता।
बाप कहते हैं तमोप्रधान तो कोई बैकुण्ठ में जा न सके।
नई दुनिया में जाने लिये सतोप्रधान बनना है, इसमें कुछ भी खर्चा नहीं।
न कोई मन्दिर वा चर्च आदि में जाने की दरकार है।
याद करते-करते पवित्र बन सीधा चले जायेंगे स्वीट होम।
हम गैरन्टी करते हैं तुम इमप्योर से प्योर ऐसे बन जायेंगे।
गोले में गेट बड़ा रहना चाहिए।
स्वर्ग का गेट कैसे खुलता है।
कितना क्लीयर है।
नर्क का गेट बन्द होना है।
स्वर्ग में नर्क का नाम नहीं होता है।
कृष्ण को कितना याद करते हैं।
परन्तु यह किसको मालूम नहीं पड़ता कि वह कब आते हैं, कुछ भी नहीं जानते।
बाप को ही नहीं जानते हैं।
भगवान हमको फिर से राजयोग सिखलाते हैं-यह याद रहे तो भी कितनी खुशी होगी।
यह भी खुशी रहे हम गॉड फादरली स्टूडेन्ट हैं।
यह भूलना क्यों चाहिए।
अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) सारा दिन मुख से बाबा-बाबा निकलता रहे, कम से कम प्रदर्शनी आदि समझाते समय मुख से हज़ार बार बाबा-बाबा निकले।
2) इन आंखों से सब कुछ देखते हुए, एक बाप की याद हो, आपस में बात करते हुए तीसरे नेत्र द्वारा आत्मा को और आत्मा के बाप को देखने का अभ्यास करना है।