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25-12-2019 प्रात:मुरली बापदादा मधुबन

“मीठे बच्चे - याद की यात्रा में अलबेले मत बनो,

याद से ही आत्मा पावन बनेगी,

बाप आये हैं सभी आत्माओं की सेवा कर उन्हें शुद्ध बनाने''

प्रश्नः-

कौन-सी स्मृति बनी रहे तो खान-पान शुद्ध हो जायेगा?

उत्तर:-

यदि स्मृति रहे कि हम बाबा के पास आये हैं सचखण्ड में जाने के लिए वा मनुष्य से देवता बनने के लिए तो खान-पान शुद्ध हो जायेगा क्योंकि देवतायें कभी अशुद्ध चीज़ नहीं खाते। जब हम सत्य बाबा के पास आये हैं सचखण्ड, पावन दुनिया का मालिक बनने तो पतित (अशुद्ध) बन नहीं सकते।

ओम् शान्ति।

रूहानी बाप रूहानी बच्चों से पूछते हैं - बच्चे, तुम जब यहाँ बैठते हो तो किसको याद करते हो?

अपने बेहद के बाप को।

वह कहाँ है?

उनको पुकारा जाता है ना-हे पतित-पावन!

आजकल सन्यासी भी कहते रहते हैं पतित-पावन सीताराम अर्थात् पतितों को पावन बनाने वाले राम आओ।

यह तो बच्चे समझते हैं पावन दुनिया सतयुग को, पतित दुनिया कलियुग को कहा जाता है।

अभी तुम कहाँ बैठे हो?

कलियुग के अन्त में इसलिए पुकारते हैं बाबा आकर हमको पावन बनाओ।

हम कौन हैं?

आत्मा।

आत्मा को ही पवित्र बनना है।

आत्मा पवित्र बनती है तो शरीर भी पवित्र मिलता है।

आत्मा के पतित बनने से शरीर भी पतित मिलता है।

यह शरीर तो मिट्टी का पुतला है।

आत्मा तो अविनाशी है।

आत्मा इन आरगन्स द्वारा कहती है, पुकारती है-हम बहुत पतित बन गये हैं, हमको आकर पावन बनाओ।

बाप पावन बनाते हैं।

5 विकारों रूपी रावण पतित बनाते हैं।

बाप ने अभी स्मृति दिलाई है - हम पावन थे फिर ऐसे 84 जन्म लेते-लेते अभी अन्तिम जन्म में हैं।

यह जो मनुष्य सृष्टि रूपी झाड़ है, बाप कहते हैं मैं इनका बीजरूप हूँ, मुझे बुलाते हैं-हे परमपिता परमात्मा, ओ गाड फॉदर, लिबरेट मी।

हर एक अपने लिए कहते हैं मुझे छुड़ाओ भी और पण्डा बनकर शान्तिधाम घर में ले चलो।

सन्यासी आदि भी कहते हैं स्थाई शान्ति कैसे मिले?

अब शान्तिधाम तो है घर।

जहाँ से आत्मायें पार्ट बजाने आती हैं।

वहाँ सिर्फ आत्मायें ही हैं शरीर नहीं है।

आत्मायें नंगी अर्थात् शरीर बिगर रहती हैं।

नंगे का अर्थ यह नहीं कि कपड़े पहनने बिगर रहना।

नहीं, शरीर बिगर आत्मायें नंगी (अशरीरी) रहती हैं।

बाप कहते हैं-बच्चे, तुम आत्मायें वहाँ मूलवतन में बिगर शरीर रहती हो, उसे निराकारी दुनिया कहा जाता है।

बच्चों को सीढ़ी पर समझाया गया है-कैसे हम सीढ़ी नीचे उतरते आये हैं।

पूरे 84 जन्म लगे हैं मैक्सीमम।

फिर कोई एक जन्म भी लेते हैं।

आत्मायें ऊपर से आती ही रहती हैं।

अभी बाप कहते हैं मैं आया हूँ पावन बनाने।

शिवबाबा, ब्रह्मा द्वारा तुम्हें पढ़ाते हैं।

शिवबाबा है आत्माओं का बाप और ब्रह्मा को आदि देव कहते हैं।

इस दादा में बाप कैसे आते हैं, यह तुम बच्चे ही जानते हो।

मुझे बुलाते भी हैं-हे पतित-पावन आओ।

आत्माओं ने इस शरीर द्वारा बुलाया है।

मुख्य आत्मा है ना।

यह है ही दु:खधाम।

यहाँ कलियुग में देखो बैठे-बैठे अचानक मृत्यु हो जाती है, वहाँ ऐसे कोई बीमार ही नहीं होते।

नाम ही है स्वर्ग।

कितना अच्छा नाम है।

कहने से दिल खुश हो जाता है।

क्रिश्चियन भी कहते हैं क्राइस्ट से 3 हज़ार वर्ष पहले पैराडाइज़ था।

यहाँ भारतवासियों को तो कुछ भी पता नहीं है क्योंकि उन्होंने सुख बहुत देखा है तो दु:ख भी बहुत देख रहे हैं।

तमोप्रधान बने हैं।

84 जन्म भी इन्हों के हैं।

आधाकल्प बाद फिर और धर्म वाले आते हैं।

अभी तुम समझते हो आधाकल्प देवी-देवतायें थे तो और कोई धर्म नहीं था।

फिर त्रेता में जब राम हुआ तो भी इस्लामी-बौद्धी नहीं थे।

मनुष्य तो बिल्कुल घोर अन्धियारे में हैं।

कह देते दुनिया की आयु लाखों वर्ष है, इसलिए मनुष्य मूँझते हैं कि कलियुग अजुन छोटा बच्चा है।

तुम अभी समझते हो कलियुग पूरा हो अभी सतयुग आयेगा इसलिए तुम आये हो बाप से स्वर्ग का वर्सा लेने।

तुम सब स्वर्गवासी थे।

बाप आते ही हैं स्वर्ग स्थापन करने।

तुम ही स्वर्ग में आते हो, बाकी सब शान्तिधाम घर चले जाते हैं।

वह है स्वीट होम, आत्मायें वहाँ निवास करती हैं।

फिर यहाँ आकर पार्टधारी बनते हैं।

शरीर बिगर तो आत्मा बोल भी न सके।

वहाँ शरीर न होने कारण आत्मायें शान्ति में रहती हैं।

फिर आधाकल्प हैं देवी-देवतायें, सूर्यवंशी-चन्द्रवंशी।

फिर द्वापर-कलियुग में होते हैं मनुष्य।

देवताओं का राज्य था फिर अब वह कहाँ गये?

किसको पता नहीं।

यह नॉलेज अभी तुमको बाप से मिलती है।

और कोई मनुष्य में यह नॉलेज होती नहीं।

बाप ही आकर मनुष्यों को यह नॉलेज देते हैं, जिससे ही मनुष्य से देवता बनते हैं।

तुम यहाँ आये ही हो मनुष्य से देवता बनने के लिए।

देवताओं का खान-पान अशुद्ध नहीं होता, वे कभी बीड़ी आदि पीते नहीं।

यहाँ के पतित मनुष्यों की बात मत पूछो-क्या-क्या खाते हैं!

अब बाप समझाते हैं यह भारत पहले सचखण्ड था।

जरूर सच्चे बाप ने स्थापन किया होगा।

बाप को ही ट्रूथ कहा जाता है।

बाप ही कहते हैं मैं ही इस भारत को सचखण्ड बनाता हूँ।

तुम सच्चे देवतायें कैसे बन सकते हो, वह भी तुमको सिखलाता हूँ।

कितने बच्चे यहाँ आते हैं इसलिए यह मकान आदि बनवाने पड़ते हैं।

अन्त तक भी बनते रहेंगे, बहुत बनेंगे।

मकान खरीद भी करते हैं।

शिवबाबा ब्रह्मा द्वारा कार्य करते हैं।

ब्रह्मा हो गया सांवरा क्योंकि यह बहुत जन्मों के अन्त का जन्म है ना।

यह फिर गोरा बनेगा।

कृष्ण का भी चित्र गोरा और सांवरा है ना।

म्युज़ियम में बड़े-बड़े अच्छे चित्र हैं, जिस पर तुम किसको अच्छी रीति समझा सकते हो।

यहाँ बाबा म्युजियम नहीं बनवाते हैं इनको कहा जाता है टॉवर आफ साइलेन्स।

तुम जानते हो हम शान्तिधाम अपने घर जाते हैं।

हम वहाँ के रहने वाले हैं फिर यहाँ आकर शरीर ले पार्ट बजाते हैं।

बच्चों को पहले-पहले यह निश्चय होना चाहिए कि यह कोई साधू-सन्त नहीं पढ़ाते हैं।

यह (दादा) तो सिंध का रहने वाला था परन्तु इसमें जो प्रवेश कर बोलते हैं-वह है ज्ञान का सागर।

उनको कोई जानते ही नहीं।

कहते भी हैं गॉड फादर।

परन्तु कह देते उनका नाम-रूप है ही नहीं।

वह निराकार है, उनका कोई आकार नहीं है।

फिर कह देते वह सर्वव्यापी है।

अरे, परमात्मा कहाँ है?

कहेंगे वह सर्वव्यापी है, सबके अन्दर है।

अरे, हर एक के अन्दर आत्मा बैठी है, सब भाई-भाई हैं ना, फिर घट-घट में परमात्मा कहाँ से आया?

ऐसे नहीं कहेंगे परमात्मा भी है और आत्मा भी है।

परमात्मा बाप को बुलाते हैं, बाबा आकर हम पतितों को पावन बनाओ।

मुझे तुम बुलाते हो यह धंधा, यह सेवा करने लिए।

हम सभी को आकर शुद्ध बनाओ।

पतित दुनिया में हमको निमंत्रण देते हो, कहते हो बाबा हम पतित हैं।

बाप तो पावन दुनिया देखते ही नहीं।

पतित दुनिया में ही तुम्हारी सेवा करने के लिए आये हैं।

अब यह रावण राज्य विनाश हो जायेगा।

बाकी तुम जो राजयोग सीखते हो वह जाकर राजाओं का राजा बनते हो।

तुमको अनगिनत बार पढ़ाया है फिर 5 हज़ार वर्ष बाद तुमको ही पढ़ायेंगे।

सतयुग-त्रेता की राजधानी अब स्थापन हो रही है।

पहले है ब्राह्मण कुल।

प्रजापिता ब्रह्मा गाया जाता है ना, जिसको एडम आदि देव कहते हैं।

यह कोई को पता नहीं है।

बहुत हैं जो यहाँ आकर सुनकर फिर माया के वश हो जाते हैं।

पुण्य आत्मा बनते-बनते पाप आत्मा बन पड़ते हैं।

माया बड़ी जबरदस्त है।

सबको पाप आत्मा बना देती है।

यहाँ कोई भी पवित्र आत्मा, पुण्य आत्मा है नहीं।

पवित्र आत्मायें देवी-देवता ही थे, जब सभी पतित बन जाते हैं तब बाप को बुलाते हैं।

अभी यह है रावण राज्य पतित दुनिया, इनको कहा जाता है कांटों का जंगल।

सतयुग को कहा जाता है गार्डन ऑफ फ्लावर्स।

मुगल गार्डन में कितने फर्स्टक्लास अच्छे-अच्छे फूल होते हैं।

अक के भी फूल मिलेंगे परन्तु इसका अर्थ कोई भी समझते नहीं हैं, शिव के ऊपर अक क्यों चढ़ाते हैं?

यह भी बाप बैठ समझाते हैं।

मैं जब पढ़ाता हूँ तो उनमें कोई फर्स्टक्लास मोतिये, कोई रतन ज्योत, कोई फिर अक के भी हैं।

नम्बरवार तो हैं ना।

तो इसको कहा ही जाता है दु:खधाम, मृत्युलोक।

सतयुग है अमरलोक।

यह बातें कोई शास्त्रों में नहीं हैं।

शास्त्र तो इस दादा ने पढ़े हैं, बाप तो शास्त्र नहीं पढ़ायेंगे।

बाप तो खुद सद्गति दाता है।

करके गीता को रेफर करते हैं।

सर्वशास्त्रमई शिरोमणी गीता भगवान ने गाई है परन्तु भगवान किसको कहा जाता है, यह भारतवासियों को पता नहीं।

बाप कहते हैं मैं निष्काम सेवा करता हूँ, तुमको विश्व का मालिक बनाता हूँ, मैं नहीं बनता हूँ।

स्वर्ग में तुम मुझे याद नहीं करते हो।

दु:ख में सिमरण सब करें, सुख में करे न कोय।

इनको दु:ख और सुख का खेल कहा जाता है।

स्वर्ग में और कोई दूसरा धर्म होता ही नहीं।

वह सभी आते ही हैं बाद में।

तुम जानते हो अभी इस पुरानी दुनिया का विनाश हो जायेगा, नैचुरल कैलेमिटीज़ तूफान आयेंगे जोर से।

सब खत्म हो जायेंगे।

तो बाप अभी आकर बेसमझदार से समझदार बनाते हैं।

बाप ने कितना धन माल दिया था, सब कहाँ गया?

अभी कितने इनसालवेन्ट बन गये हैं।

भारत जो सोने की चिड़िया था वह अब क्या बन पड़ा है?

अब फिर पतित-पावन बाप आये हुए हैं राजयोग सिखला रहे हैं।

वह है हठयोग, यह है राजयोग।

यह राजयोग दोनों के लिए है, वह हठयोग सिर्फ पुरूष ही सीखते हैं।

अब बाप कहते हैं पुरूषार्थ करो, विश्व का मालिक बनकर दिखाओ।

अब इस पुरानी दुनिया का विनाश तो होना ही है बाकी थोड़ा समय है, यह लड़ाई अन्तिम लड़ाई है।

यह लड़ाई शुरू होगी तो रूक नहीं सकती।

यह लड़ाई शुरू ही तब होगी जब तुम कर्मातीत अवस्था को पायेंगे और स्वर्ग में जाने के लायक बन जायेंगे।

बाप फिर भी कहते हैं याद की यात्रा में अलबेले नहीं बनो, इसमें ही माया विघ्न डालती है।

अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1) बाप द्वारा अच्छी रीति पढ़कर फर्स्टक्लास फूल बनना है,

कांटों के इस जंगल को फूलों का बगीचा बनाने में बाप को पूरी मदद करनी है।

2) कर्मातीत अवस्था को प्राप्त करने वा स्वर्ग में ऊंच पद का अधिकार प्राप्त करने के लिए याद की यात्रा में तत्पर रहना है,

अलबेला नहीं बनना है।

वरदान:-

एक स्थान पर रहते

अनेक आत्माओं की सेवा करने वाले

लाइट-माइट सम्पन्न भव

जैसे लाइट हाउस एक स्थान पर स्थित होते दूर-दूर की सेवा करता है।

ऐसे आप सभी एक स्थान पर होते अनेकों की सेवा अर्थ निमित्त बन सकते हो इसमें सिर्फ लाइट-माइट से सम्पन्न बनने की आवश्यकता है।

मन-बुद्धि सदा व्यर्थ सोचने से मुक्त हो, मन्मनाभव के मंत्र का सहज स्वरूप हो - मन्सा शुभ भावना, श्रेष्ठ कामना, श्रेष्ठ वृत्ति और श्रेष्ठ वायब्रेशन से सम्पन्न हो तो यह सेवा सहज कर सकते हो।

यही मन्सा सेवा है।

स्लोगन:-

अब आप ब्राह्मण आत्मायें माइट बनो और दूसरी आत्माओं को माइक बनाओ।