यह तो बच्चे जानते हैं कि एक है बाबा, दूसरा है दादा।
दोनों इकट्ठे हैं ना।
भगवान की महिमा भी कितनी ऊंची करते हैं परन्तु अक्षर कितना सिम्पुल है - गॉड फादर।
सिर्फ फादर नहीं कहेंगे, गॉड फादर वह है ऊंच ते ऊंच।
उनकी महिमा भी बहुत ऊंच है।
उनको बुलाते भी पतित दुनिया में हैं।
खुद आकर बतलाते हैं कि मुझे पतित दुनिया में ही बुलाते हैं परन्तु पतित-पावन वह कैसे है, कब आते हैं, यह किसको भी पता नहीं।
आधाकल्प सतयुग-त्रेता में किसका राज्य था, कैसे हुआ, किसको यह पता नहीं है।
पतित-पावन बाप आते भी जरूर हैं, उनको कोई पतित-पावन कहते, कोई लिबरेटर कहते हैं।
पुकारते हैं कि स्वर्ग में ले चलो।
सबसे ऊंच ते ऊंच है ना।
उनको पतित दुनिया में बुलाते हैं कि आकर हम भारतवासियों को श्रेष्ठ बनाओ।
उनका पोजीशन कितना बड़ा है।
हाइएस्ट अथॉरिटी है।
उनको बुलाते हैं, जबकि रावण राज्य है।
नहीं तो इस रावण राज्य से कौन छुड़ावे?
यह सब बातें तुम बच्चे सुनते हो तो नशा भी चढ़ा रहना चाहिए।
परन्तु इतना नशा चढ़ता नहीं है।
शराब का नशा सभी को चढ़ जाता है, यह नहीं चढ़ता है।
इसमें है धारणा की बात, तकदीर की बात है।
तो बाप है बहुत बड़ी आसामी।
तुम्हारे में भी कोई-कोई को पूरा निश्चय रहता है।
निश्चय अगर सबको होता तो संशय में आकर भागते क्यों?
बाप को भूल जाते हैं।
बाप के बने, फिर बाप के लिए कोई संशय बुद्धि नहीं हो सकता।
परन्तु यह बाप है वन्डरफुल।
गायन भी है आश्चर्यवत् बाबा को जानन्ती, बाबा कहन्ती, ज्ञान सुनन्ती, सुनावन्ती, अहो माया फिर भी संशय-बुद्धि बनावन्ती।
बाप समझाते हैं इन भक्ति मार्ग के शास्त्रों में कोई सार नहीं है।
बाप कहते हैं मुझे कोई भी जानते नहीं।
तुम बच्चों में भी मुश्किल कोई ठहर सकते हैं।
तुम भी फील करते हो कि वह याद स्थाई ठहरती नहीं है।
हम आत्मा बिन्दी हैं, बाबा भी बिन्दी है, वह हमारा बाप है, उनको अपना शरीर तो है नहीं।
कहते हैं मैं इस तन का आधार लेता हूँ।
मेरा नाम शिव है।
मुझ आत्मा का नाम कभी बदलता नहीं है।
तुम्हारे शरीर के नाम बदलते हैं।
शरीर पर ही नाम पड़ते हैं।
शादी होती है तो नाम बदल जाता है।
फिर वह नाम पक्का कर लेते हैं।
तो अब बाप कहते हैं तुम यह पक्का कर लो कि हम आत्मा हैं।
यह बाप ने ही परिचय दिया है कि जब-जब अत्याचार और ग्लानि होती है तब मैं आता हूँ। कोई अक्षरों को भी पकड़ना नहीं है।
बाप खुद कहते हैं मुझे पत्थर भित्तर में ठोक कितनी ग्लानि करते हैं, यह भी नई बात नहीं।
कल्प-कल्प ऐसे पतित बन और ग्लानि करते हैं, तब ही मैं आता हूँ।
कल्प-कल्प का मेरा पार्ट है।
इसमें अदली-बदली हो नहीं सकती।
ड्रामा में नूँध है ना।
तुमको कई कहते हैं सिर्फ भारत में ही आता है!
क्या भारत ही सिर्फ स्वर्ग बनेगा? हाँ।
यह तो अनादि-अविनाशी पार्ट हो गया ना।
बाप कितना ऊंच ते ऊंच है।
पतितों को पावन बनाने वाला बाप कहते हैं मुझे बुलाते ही इस पतित दुनिया में हैं।
मैं तो सदा पावन हूँ।
मुझे पावन दुनिया में बुलाना चाहिए ना!
परन्तु नहीं, पावन दुनिया में बुलाने की दरकार ही नहीं।
पतित दुनिया में ही बुलाते हैं कि आकर पावन बनाओ।
मैं कितना बड़ा मेहमान हूँ।
आधाकल्प से मुझे याद करते आये हो।
यहाँ कोई बड़े आदमी को बुलायेंगे, करके एक-दो वर्ष बुलायेंगे।
फलाना इस वर्ष नहीं तो दूसरे वर्ष आयेगा।
इनको तो आधाकल्प से याद करते आये हो।
इनके आने का पार्ट तो फिक्स हुआ पड़ा है।
यह किसको भी पता नहीं है।
बहुत ऊंच ते ऊंच बाप है।
मनुष्य बाप को एक ओर तो प्रेम से बुलाते हैं, दूसरी ओर महिमा में दाग़ लगा देते हैं।
वास्तव में यह बड़े ते बड़ा गेस्ट ऑफ ऑनर (बड़ी महिमा वाला मेहमान) है, जिसकी ऑनर (महिमा) को दाग़ लगा दिया है, कह देते हैं वह पत्थर ठिक्कर सबमें हैं।
कितनी हाइएस्ट अथॉरिटी है, बुलाते भी बहुत प्रेम से हैं, परन्तु हैं बिल्कुल बुद्धू।
मैं ही आकर अपना परिचय देता हूँ कि मैं तुम्हारा फादर हूँ।
मुझे गॉड फादर कहते हैं।
जब सब रावण की कैद में हो जाते हैं तब ही बाप को आना होता है क्योंकि सब हैं भक्तियाँ अथवा ब्राइड्स-सीतायें।
बाप है ब्राइडग्रुम-राम।
एक सीता की बात नहीं है, सब सीताओं को रावण की जेल से छुड़ाते हैं।
यह है बेहद की बात।
यह है पुरानी पतित दुनिया।
इसका पुराना होना फिर नया होना एक्यूरेट है, यह शरीर आदि तो कोई जल्दी पुराने हो जाते, कोई जास्ती टाइम चलते हैं।
यह ड्रामा में एक्यूरेट नूँध है।
पूरे 5 हज़ार वर्ष बाद फिर मुझे आना पड़ता है।
मैं ही आकर अपना परिचय देता हूँ और सृष्टि चक्र का राज़ समझाता हूँ।
किसको भी न मेरी पहचान है, न ब्रह्मा, विष्णु, शंकर की, न लक्ष्मी-नारायण की, न राम-सीता की पहचान है।
ऊंच ते ऊंच एक्टर्स ड्रामा के अन्दर तो यही हैं।
है तो मनुष्य की बात।
कोई 8-10 भुजा वाले मनुष्य नहीं हैं।
विष्णु को 4 भुजा क्यों दिखाते हैं?
रावण के 10 शीश क्या हैं?
यह किसको भी पता नहीं है।
बाप ही आकर सारे वर्ल्ड के आदि-मध्य-अन्त का नॉलेज बताते हैं।
कहते हैं मैं हूँ बड़े ते बड़ा गेस्ट, परन्तु गुप्त।
यह भी सिर्फ तुम ही जानते हो।
परन्तु जानते हुए भी फिर भूल जाते हो।
उनका कितना रिगार्ड रखना चाहिए, उन्हें याद करना चाहिए।
आत्मा भी निराकार, परमात्मा भी निराकार, इसमें फ़ोटो की भी बात नहीं।
तुमको तो आत्मा निश्चय कर बाप को याद करना है, देह-अभिमान छोड़ना है।
तुम्हें सदैव अविनाशी चीज़ को देखना चाहिए।
तुम विनाशी देह को क्यों देखते हो!
देही-अभिमानी बनो, इसमें ही मेहनत है।
जितना याद में रहेंगे उतना कर्मातीत अवस्था को पाए ऊंच पद पायेंगे।
बाप बहुत ही सहज योग अर्थात् याद सिखलाते हैं।
योग तो अनेक प्रकार के हैं।
याद अक्षर ही यथार्थ है।
परमात्मा बाप को याद करने में ही मेहनत है।
कोई विरला सच बताते हैं कि हम इतना समय याद में रहा।
याद करते ही नहीं हैं तो सुनाने में लज्जा आती है।
लिखते हैं सारे दिन में एक घण्टा याद में रहे, तो लज्जा आनी चाहिए ना।
ऐसा बाप जिसको दिन-रात याद करना चाहिए और हम सिर्फ एक घण्टा याद करते हैं!
इसमें बड़ी गुप्त मेहनत है।
बाप को बुलाते हैं तो दूर से आने वाला गेस्ट हुआ ना।
बाप कहते हैं मैं नई दुनिया का गेस्ट नहीं बनता हूँ।
आता ही पुरानी दुनिया में हूँ।
नई दुनिया की स्थापना आकर करता हूँ।
यह पुरानी दुनिया है, यह भी कोई यथार्थ नहीं जानते हैं।
नई दुनिया की आयु ही नहीं जानते।
बाप कहते हैं यह नॉलेज मैं ही आकर देता हूँ फिर ड्रामा अनुसार यह नॉलेज गुम हो जाती है। फिर कल्प बाद यह पार्ट रिपीट होगा।
मुझे बुलाते हैं, वर्ष-वर्ष शिव जयन्ती मनाते हैं।
जो होकर जाते हैं तो उनकी वर्ष-वर्ष वर्षी मनाते हैं।
शिवबाबा की भी 12 मास बाद जयन्ती मनाते हैं परन्तु कब से मनाते आये हैं, यह किसको भी पता नहीं है।
सिर्फ कह देते हैं कि लाखों वर्ष हुए।
कलियुग की आयु ही लाखों वर्ष लिख दी है।
बाप कहते हैं-यह है 5 हज़ार वर्ष की बात।
बरोबर इन देवताओं का भारत में राज्य था ना।
तो बाप कहते हैं-मैं भारत का बहुत बड़ा मेहमान हूँ, मुझे आधाकल्प से बहुत निमंत्रण देते आये हो।
जब बहुत दु:खी होते हैं, तो कहते हैं हे पतित-पावन आओ।
मैं आया भी हूँ पतित दुनिया में।
रथ तो हमको चाहिए ना।
आत्मा है अकालमूर्त, उनका यह तख्त है।
बाप भी अकालमूर्त है, इस तख्त पर आकर विराजमान होते हैं।
यह बड़ी रमणीक बातें हैं।
और कोई सुनें तो चक्रित हो जाए।
अब बाप कहते हैं-बच्चे, मेरी मत पर चलो।
समझो शिवबाबा मत देते हैं, शिवबाबा मुरली चलाते हैं।
यह कहते हैं मैं भी उनकी मुरली सुनकर बजाऊंगा।
सुनाने वाला तो वह है ना।
यह नम्बरवन पूज्य सो फिर नम्बरवन पुजारी बना।
अभी यह पुरूषार्थी है।
बच्चों को हमेशा समझना चाहिए-हमको शिवबाबा की श्रीमत मिली है।
अगर कोई उल्टी बात भी हुई तो वह सुल्टी कर देंगे।
यह अटूट निश्चय है तो रेसपॉन्सिबुल शिवबाबा है।
यह ड्रामा में नूँध है। विघ्न तो पड़ने ही हैं, बहुत कड़े-कड़े विघ्न पड़ते हैं।
अपने बच्चों के भी विघ्न पड़ते हैं।
तो हमेशा समझो कि शिवबाबा समझाते हैं, तो याद रहेगी।
कई बच्चे समझते हैं यह ब्रह्मा बाबा मत देते हैं, परन्तु नहीं।
शिवबाबा ही रेसपॉन्सिबुल हैं।
परन्तु देह-अभिमान है तो घड़ी-घड़ी इनको ही देखते रहते हैं।
शिवबाबा कितना बड़ा मेहमान है तो भी रेलवे आदि वाले थोड़ेही जानते हैं, निराकार को कैसे पहचानें वा समझें।
वह तो बीमार हो न सके। तो बीमारी आदि का इनका कारण बताते हैं।
वह क्या जानें इनमें कौन है?
तुम बच्चे भी नम्बरवार जानते हो।
वह सभी आत्माओं का बाप और यह फिर प्रजापिता मनुष्यों का बाप।
तो यह दोनों (बापदादा) कितने बड़े गेस्ट हो गये।
बाप कहते हैं जो कुछ होता है ड्रामा में नूँध है, मैं भी ड्रामा के बंधन में बांधा हुआ हूँ।
नूँध बिगर कुछ कर नहीं सकता हूँ।
माया भी बड़ी दुश्तर है।
राम और रावण दोनों का पार्ट है।
ड्रामा में रावण चैतन्य होता तो कहता-मैं भी ड्रामा अनुसार आता हूँ।
यह दु:ख और सुख का खेल है।
सुख है नई दुनिया में, दु:ख है पुरानी दुनिया में।
नई दुनिया में थोड़े मनुष्य, पुरानी दुनिया में कितने ढेर मनुष्य हैं।
पतित-पावन बाप को ही बुलाते हैं कि आकर पावन दुनिया बनाओ क्योंकि पावन दुनिया में बहुत सुख था इसलिए ही कल्प-कल्प पुकारते हैं।
बाप सबको सुख देकर जाते हैं।
अभी फिर पार्ट रिपीट होता है।
दुनिया कभी खलास नहीं होती। खलास होना इम्पॉसिबुल है।
समुद्र भी दुनिया में है ना।
यह थर्ड फ्लोर तो है ना।
कहते हैं जलमई, पानी-पानी हो जाता है फिर भी पृथ्वी फ्लोर तो है ना।
पानी भी तो है ना।
पृथ्वी फ्लोर कोई विनाश नहीं हो सकता।
जल भी इस फ्लोर में होता है।
सेकण्ड और फर्स्ट फ्लोर, सूक्ष्मवतन और मूलवतन में तो जल होता नहीं।
यह बेहद सृष्टि के 3 फ्लोर हैं, जिसको तुम बच्चों के सिवाए कोई भी नहीं जानते।
यह खुशी की बात सबको खुशी से सुनानी है।
जो पूरे पास होते हैं, उनका ही अतीन्द्रिय सुख गाया हुआ है।
जो रात-दिन सर्विस पर तत्पर हैं, सर्विस ही करते रहते हैं उन्हें बहुत खुशी रहती है।
कोई-कोई ऐसे दिन भी आते हैं जो मनुष्य रात को भी जागते हैं परन्तु आत्मा थक जाती है तो सोना होता है।
आत्मा के सोने से शरीर भी सो जाता है। आत्मा न सोये तो शरीर भी न सोये। थकती आत्मा है।
आज मैं थका पड़ा हूँ-किसने कहा?
आत्मा ने।
तुम बच्चों को आत्म-अभिमानी हो रहना है, इसमें ही मेहनत है।
बाप को याद नहीं करते, देही-अभिमानी नहीं रहते, तो देह के सम्बन्धी आदि याद आ जाते हैं।
बाप कहते हैं तुम नंगे आये थे फिर नंगे जाना है।
यह देह के सम्बन्ध आदि भूल जाओ।
इस शरीर में रहते मुझे याद करो तो सतोप्रधान बनेंगे।
बाप कितनी बड़ी अथॉरिटी है।
बच्चों के सिवाए कोई जानते ही नहीं।
बाप कहते हैं मैं हूँ गरीब निवाज़, सभी साधारण हैं।
पतित-पावन बाप आया है, यह जान लें तो पता नहीं कितनी भीड़ हो जाए।
बड़े-बड़े आदमी आते हैं तो कितनी भीड़ हो जाती है।
तो ड्रामा में इनका पार्ट ही गुप्त रहने का है।
आगे चल आहिस्ते-आहिस्ते प्रभाव निकलेगा और विनाश हो जायेगा।
सब थोड़ेही मिल सकते हैं।
याद करते हैं ना तो उनको बाप का परिचय मिल जायेगा।
बाकी पहुँच नहीं पायेंगे।
जैसे बांधेली बच्चियां मिल नहीं पाती हैं, कितने अत्याचार सहन करती हैं।
विकार को छोड़ नहीं सकते हैं।
कहते हैं सृष्टि कैसे चलेगी?
अरे, सृष्टि का बोझ बाप पर है कि तुम पर?
बाप को जान लेवें तो फिर ऐसे प्रश्न न पूछें।
बोलो, पहले बाप को तो जानो फिर तुम सब कुछ जान जायेंगे।
समझाने की भी युक्ति चाहिए।
अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।