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Baba's Murlis - June, 2020
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26-06-2020 प्रात:मुरली बापदादा मधुबन

“मीठे बच्चे - तुम अभी श्रीमत पर साइलेन्स की अति में जाते हो, तुम्हें बाप से शान्ति का वर्सा मिलता है, शान्ति में सब कुछ आ जाता है''

प्रश्नः-

नई दुनिया की स्थापना का मुख्य आधार क्या है?

उत्तर:-

पवित्रता।

बाप जब ब्रह्मा तन में आकर नई दुनिया स्थापन करते हैं तब तुम आपस में भाई-बहन हो जाते हो।

स्त्री पुरूष का भान निकल जाता है।

इस अन्तिम जन्म में पवित्र बनते हो तो पवित्र दुनिया के मालिक बन जाते हो।

तुम अपने आपसे प्रतिज्ञा करते हो हम भाई बहन हो रहेंगे।

विकार की दृष्टि नहीं रखेंगे। एक दो को सावधान कर उन्नति को पायेंगे।

गीत:- जाग सजनियां जाग...Listen

ओम् शान्ति।

मीठे-मीठे रूहानी बच्चों ने गीत सुना और बुद्धि में स्वदर्शन चक्र फिर गया।

बाप भी स्वदर्शन चक्रधारी कहलाते हैं क्योंकि सृष्टि के आदि मध्य अन्त को जानना - यह है स्वदर्शन चक्रधारी बनना।

यह बातें सिवाए बाप के और कोई समझा न सके।

तुम ब्राह्मणों का सारा मदार है साइलेन्स पर।

सभी मनुष्य कहते भी हैं शान्ति देवा, हे शान्ति देने वाला.. मालूम किसको भी नहीं है कि शान्ति कौन देते हैं वा शान्तिधाम कौन ले जायेंगे।

यह सिर्फ तुम बच्चे ही जानते हो, ब्राह्मण ही स्वदर्शन चक्रधारी बनते हैं।

देवता कोई स्वदर्शन चक्रधारी कहला न सके।

कितना रात दिन का फ़र्क है। बाप तुम बच्चों को समझाते हैं, तुम हर एक स्वदर्शन चक्रधारी हो - नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार।

बाप को याद करना है, यही मुख्य बात है।

बाप को याद करना गोया शान्ति का वर्सा लेना।

शान्ति में सब आ जाता है।

तुम्हारी आयु भी बड़ी हो जाती है, निरोगी काया भी बनती जाती है।

सिवाए बाप के और कोई स्वदर्शन चक्रधारी बना न सके।

आत्मा ही बनती है।

बाप भी है क्यों कि सृष्टि के आदि मध्य अन्त का ज्ञान है।

गीत भी सुना अब नई दुनिया स्थापन हो रही है।

गीत तो मनुष्यों ने ही बनाये हैं।

बाप बैठ सार समझाते हैं।

वह है सभी आत्माओं का बाप, तो सब बच्चे आपस में भाई-भाई हो जाते हैं।

बाप जब नई दुनिया रचते हैं तो प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा तुम भाई बहन हो, हर एक ब्रह्माकुमार कुमारी हैं, यह बुद्धि में रहने से फिर स्त्री पुरूष का भान निकल जाता है।

मनुष्य यह नहीं समझते कि हम भी वास्तव में भाई-भाई हैं।

फिर बाप रचना रचते हैं तो भाई बहन हो जाते हैं।

क्रिमिनल दृष्टि निकल जाती है।

बाप याद भी दिलाते हैं, तुम बुलाते आये हो हे पतित-पावन, अब मैं आया हूँ, तुमको कहता हूँ यह अन्तिम जन्म पवित्र रहो।

तो तुम पवित्र दुनिया के मालिक बनेंगे।

यह प्रदर्शनी तो तुम्हारे घर-घर में होनी चाहिए क्योंकि तुम बच्चे ब्राह्मण हो।

तुम्हारे घर में यह चित्र जरूर होने चाहिए।

इन पर समझाना बहुत सहज है।

84 का चक्र तो बुद्धि में है।

अच्छा - तुमको एक ब्राह्मणी (टीचर) दे देंगे।

वह आकर सर्विस करके जायेगी।

तुम प्रदर्शनी खोल दो।

भक्ति मार्ग में भी कोई कृष्ण की पूजा अथवा मंत्र जत्र आदि नहीं जानते हैं तो ब्राह्मण को बुलाते हैं।

वह रोज़ आकर पूजा करते हैं।

तुम भी मंगा सकते हो।

यह है तो बहुत सहज।

बाप ने प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा सृष्टि रची होगी तो जरूर ब्रह्माकुमार कुमारियां बहन भाई बने होंगे।

प्रतिज्ञा करते हैं हम दोनों भाई बहन हो रहेंगे, विकार की दृष्टि नहीं रखेंगे।

एक दो को सावधान कर उन्नति को पायेंगे।

मुख्य है ही याद की यात्रा।

वो लोग साइन्स के बल से कितना ऊपर जाने की कोशिश करते हैं, परन्तु ऊपर कोई दुनिया थोड़ेही है।

यह है साइन्स की अति में जाना।

अभी तुम साइलेन्स की अति में जाते हो, श्रीमत पर।

उनकी है साइन्स, यहाँ तो तुम्हारी है साइलेन्स।

बच्चे जानते हैं आत्मा तो स्वयं शान्त स्वरूप है।

इस शरीर द्वारा सिर्फ पार्ट बजाना होता है।

कर्म बिगर तो कोई रह न सके।

बाप कहते हैं अपने को शरीर से अलग आत्मा समझ बाप को याद करो तो तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे।

बहुत ही सहज है, सबसे जास्ती जो मेरे भक्त अर्थात् शिव के पुजारी हैं, उनको समझाओ।

ऊंच ते ऊंच पूजा है शिव की क्योंकि वही सर्व का सद्गति दाता है।

अभी तुम बच्चे जानते हो बाप आये हैं सबको साथ में ले जायेंगे।

अपने टाइम पर हम भी ड्रामा अनुसार कर्मातीत अवस्था को पायेंगे फिर विनाश हो जायेगा।

पुरूषार्थ बहुत करना है कि हम आत्मायें सतोप्रधान बन जायें।

बाप की श्रीमत पर चलना है, श्रीमत भगवत गीता कहते हैं, कितनी बड़ी महिमा है।

देवताओं की भी महिमा गाते हैं - सर्वगुण सम्पन्न, सम्पूर्ण निर्विकारी..... बाप ही आकर सम्पूर्ण पावन बनाते हैं।

जब सम्पूर्ण पतित दुनिया बनती है तब ही बाप आकर सम्पूर्ण पावन दुनिया बनाते हैं।

सब कहते हैं हम भगवान के बच्चे हैं तो जरूर स्वर्ग का वर्सा होना चाहिए।

प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा हम अभी भाई-बहन बने हैं।

कल्प पहले भी बाप आया था, शिव जयन्ती मनाते हैं।

जरूर प्रजापिता ब्रह्मा के बच्चे बने होंगे।

बाप से प्रतिज्ञा करते हैं - बाबा हम आपस में कम्पेनियन हो पवित्र रहते हैं।

आपके डायरेक्शन पर चलते हैं।

कोई बड़ी बात नहीं है।

अभी यह अन्तिम जन्म है, यह मृत्युलोक खत्म होना है।

अभी तुम समझदार बने हो।

कोई अपने को भगवान कहे, तो कहेंगे भगवान तो सर्व का सद्गति दाता है।

यह फिर अपने को कैसे कहला सकते हैं।

परन्तु समझते हैं ड्रामा का खेल है।

बाप तुम बच्चों को स्वदर्शन चक्रधारी बना रहे हैं।

बाप कहते हैं अब सर्विस में तत्पर रहो।

घर-घर में प्रदर्शनी खोलो।

इन जैसा महान पुण्य कोई होता नहीं।

किसको बाप का रास्ता बताना, इन जैसा दान कोई नहीं।

बाप कहते हैं मामेकम् याद करो तो पाप नाश होंगे।

बाप को बुलाते भी इसलिए हो हे पतित-पावन, लिबरेटर, गाइड आओ।

तुम्हारा भी नाम पाण्डव गाया हुआ है।

बाप भी पण्डा है।

सभी आत्माओं को ले जायेंगे।

वह हैं जिस्मानी पण्डे।

यह है रूहानी।

वह जिस्मानी यात्रा, यह रूहानी यात्रा।

सतयुग में जिस्मानी यात्रा भक्ति मार्ग की होती नहीं।

वहाँ तुम पूज्य बनते हो, अभी बाप तुमको कितना समझदार बनाते हैं।

तो बाप की मत पर चलना चाहिए ना।

कोई भी संशय आदि हो तो पूछना चाहिए।

अब बाप कहते हैं मीठे मीठे बच्चों देही-अभिमानी बनो।

अपने को आत्मा समझकर बाप को याद करो।

तुम मेरे लाडले बच्चे हो ना।

आधाकल्प के तुम आशिक हो।

एक के ही ढेर नाम रख दिये हैं, कितने नाम, कितने मन्दिर बनाते हैं।

मैं हूँ तो एक ही।

मेरा नाम है शिव।

हम 5 हजार वर्ष पहले भारत में ही आये थे।

बच्चों को एडाप्ट किया था।

अब भी एडाप्ट कर रहे हैं।

ब्रह्मा के बच्चे होने के कारण तुम पोत्रे पोत्रियां हो गये।

यहाँ वर्सा ही मिलता है आत्मा को।

उसमें भाई बहन का सवाल नहीं उठता।

आत्मा ही पढ़ती है, वर्सा लेती है।

सबको हक है।

तुम बच्चे इस पुरानी दुनिया में जो कुछ देखते हो - यह सब विनाश को पाना है।

महाभारत लड़ाई भी बरोबर है।

बेहद का बाप बेहद का वर्सा दे रहे हैं।

बेहद की नॉलेज सुना रहे हैं।

तो त्याग भी बेहद का चाहिए।

तुम जानते हो कल्प पहले भी बाप ने राजयोग सिखाया था, राजस्व अश्वमेध यज्ञ रचा था फिर राजाई के लिए सतयुगी नई दुनिया जरूर चाहिए।

पुरानी दुनिया का विनाश भी हुआ था।

5 हजार वर्ष की बात है ना।

यही लड़ाई लगी थी, जिससे गेट खुले थे।

बोर्ड पर भी लिख दो - स्वर्ग के द्वार कैसे खुल रहे हैं - आकर समझो।

तुम नहीं समझा सकते हो दूसरे को बुला सकते हो।

फिर धीरे-धीरे वृद्धि होती जायेगी।

तुम कितने ढेर ब्राह्मण ब्राह्मणियां हो प्रजापिता ब्रह्मा के बच्चे।

वर्सा मिलता है शिवबाबा से।

वही सबका बाप है।

यह तो बुद्धि में अच्छी रीति याद रखना चाहिए - हम ब्राह्मण सो देवता बनते हैं।

हम ही देवता थे फिर चक्र लगाया।

हम अभी ब्राह्मण बने हैं फिर विष्णुपुरी में जायेंगे।

ज्ञान है - बहुत सहज।

परन्तु कोटों में कोई निकलते हैं।

प्रदर्शनी में कितने ढेर आते हैं, कोई मुश्किल निकलते हैं, कोई तो सिर्फ महिमा करते हैं बहुत अच्छा है, हम आयेंगे।

कोई विरले 7 रोज़ का कोर्स उठाते हैं, 7 रोज़ की भी बात अब क्या है।

गीता का पाठ भी 7 दिन रखते हैं।

सात दिन तुमको भी भट्टी में पड़ना है।

अपने को आत्मा समझ बाप को याद करने से सारा किचड़ा निकल जायेगा।

आधाकल्प की गन्दी बीमारी देह-अभिमान की है, वह निकालनी है।

देही-अभिमानी बनना है। 7 रोज़ का कोर्स कोई बड़ा थोड़ेही है। किसको सेकेण्ड में भी तीर लग सकता है।

देरी से आने वाले आगे जा सकते हैं। कहेंगे हम रेस कर बाप से वर्सा ले ही लेंगे।

कई तो पुरानों से भी तीखे चले जाते हैं क्योंकि अच्छी-अच्छी प्वाइंट्स, तैयार माल मिलता है।

प्रदर्शनी आदि समझाने में कितना सहज होता है।

खुद नहीं समझा सकते हैं तो बहन को बुलायें।

रोज़ आकर कथा करके जाओ।

5 हजार वर्ष पहले इन लक्ष्मी-नारायण का राज्य था, जो 1250 वर्ष चला।

कितनी छोटी कहानी है।

हम सो देवता थे फिर हम सो क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र बनें।

हम आत्मा ब्राह्मण बनी, हम सो का अर्थ कितना युक्तियुक्त समझाते हैं।

विराट रूप भी है, परन्तु उसमें ब्राह्मणों को और शिवबाबा को उड़ा दिया है।

अर्थ कुछ भी नहीं समझते हैं।

अभी तुम बच्चों को मेहनत करनी है, याद की।

और कोई संशय में नहीं आना चाहिए।

विकर्माजीत बन ऊंच पद पाना है तो यह चिंतन खत्म करना है कि यह क्यों होता है, यह ऐसे क्यों करता है।

इन सब बातों को छोड़ एक ही चिंतन रहे कि हमें तमोप्रधान से सतोप्रधान बनना है।

जितना बाप को याद करेंगे उतना विकर्माजीत बन ऊंच पद पायेंगे।

बाकी फालतू बातें सुन अपना माथा खराब नहीं करना है।

सब बातों से एक बात मुख्य है - उनको नहीं भूलो।

कोई साथ टाइम वेस्ट न करो।

तुम्हारा टाइम बहुत वैल्युबुल है।

तूफानों से डरना नहीं है।

बहुत तकलीफ आयेगी, घाटा पड़ेगा।

परन्तु बाप की याद कभी नहीं भूलनी है।

याद से ही पावन बनना है, पुरूषार्थ कर ऊंच पद पाना है।

यह बाबा बूढ़ा इतना ऊंच पद पाते हैं, हम क्यों नहीं बनेंगे।

यह भी पढ़ाई है ना।

तुमको इसमें कुछ भी किताब आदि उठाने की दरकार नहीं है।

बुद्धि में सारी कहानी है।

कितनी छोटी कहानी है।

सेकेण्ड की बात है, जीवनमुक्ति सेकेण्ड में मिलती है।

मूल बात है बाप को याद करो।

बाप जो तुमको विश्व का मालिक बनाते हैं उनको तुम भूल जाते हो!

कहते हैं सब थोड़ेही राजा बनेंगे।

अरे तुम सबका चिंतन क्यों करते हो!

स्कूल में यह ओना (फिकर) रखते हैं क्या कि सब थोड़ेही स्कॉलरशिप पायेंगे?

पढ़ने लग पड़ेंगे ना।

हर एक के पुरूषार्थ से समझा जाता है कि यह क्या पद पाने वाले हैं।

अच्छा। मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1) यह समय बहुत वैल्युबुल है, इसे फालतू की बातों में गंवाना नहीं है।

कितने भी तूफान आयें, घाटा पड़े लेकिन बाप की याद में रहना है।

2) तमोप्रधान से सतोप्रधान बनने का ही चिंतन करना है, और कोई चिंतन न चले।

हम सो, सो हम की छोटी सी कहानी बहुत युक्ति से समझनी और समझानी है।

वरदान:-

दातापन की भावना द्वारा

इच्छा मात्रम् अविद्या की स्थिति का अनुभव करने वाले

तृप्त आत्मा भव

सदा एक लक्ष्य हो कि हमें दाता का बच्चा बन सर्व आत्माओं को देना है, दातापन की भावना रखने से सम्पन्न आत्मा हो जायेंगे और जो सम्पन्न होंगे वह सदा तृप्त होंगे।

मैं देने वाले दाता का बच्चा हूँ-देना ही लेना है, यही भावना सदा निर्विघ्न, इच्छा मात्रम् अविद्या की स्थिति का अनुभव कराती है।

सदा एक लक्ष्य की तरफ ही नज़र रहे, वह लक्ष्य है बिन्दू और कोई भी बातों के विस्तार को देखते हुए नहीं देखो, सुनते हुए भी नहीं सुनो।

स्लोगन:-

बुद्धि वा स्थिति यदि कमजोर है तो उसका कारण है व्यर्थ संकल्प।