बच्चों को अपना घर और अपनी राजधानी याद है?
यहाँ जब बैठते हो तो बाहर के घरघाट, धन्धे-धोरी आदि के ख्यालात नहीं आने चाहिए।
बस अपना घर ही याद आना है।
अब इस पुरानी दुनिया से नई दुनिया में रिटर्न है, यह पुरानी दुनिया तो खत्म हो जानी है।
सब स्वाहा हो जायेगा आग में।
जो कुछ इन ऑखों से देखते हो, मित्र-सम्बन्धी आदि यह सब खत्म हो जाना है।
यह ज्ञान बाप ही रूहों को समझाते हैं। बच्चों, अब वापिस अपने घर चलना है। नाटक पूरा होता है।
यह है ही 5 हज़ार वर्ष का चक्र।
दुनिया तो है ही, परन्तु उनको चक्र लगाने में 5 हज़ार वर्ष लगते हैं।
जो भी आत्मायें हैं सब वापस चली जायेंगी।
यह पुरानी दुनिया ही खत्म हो जायेगी।
बाबा बहुत अच्छी तरह हर एक बात समझाते हैं।
कोई-कोई मनहूस होते हैं तो मुफ्त अपनी जायदाद गँवा बैठते हैं।
भक्ति मार्ग में दान-पुण्य तो करते हैं ना।
कोई ने धर्मशाला बनाई, कोई ने हॉस्पिटल बनाई, बुद्धि में समझते हैं इनका फल दूसरे जन्म में मिलेगा।
बिगर कोई आश, अनासक्त हो कोई करे - ऐसा होता नहीं है।
बहुत कहते हैं फल की चाहना हम नहीं रखते हैं।
परन्तु नहीं, फल अवश्य मिलता है।
समझो कोई के पास पैसा है, उनसे धर्माऊ दे दिया तो बुद्धि में यह रहेगा हमको दूसरे जन्म में मिलेगा।
अगर ममत्व गया, मेरी यह चीज़ है ऐसा समझा तो फिर वहाँ नहीं मिलेगा।
दान होता ही है दूसरे जन्म के लिए।
जबकि दूसरे जन्म में मिलता है तो फिर इस जन्म में ममत्व क्यों रखते, इसलिए ट्रस्टी बनाते हैं तो अपना ममत्व निकल जाए।
कोई अच्छे साहूकार के घर में जन्म लेते हैं तो कहेंगे उसने अच्छे कर्म किये हैं।
कोई राजा-रानी के पास जन्म लेते हैं, क्योंकि दान-पुण्य किया है परन्तु वह है अल्पकाल एक जन्म की बात।
अभी तो तुम यह पढ़ाई पढ़ते हो।
जानते हो इस पढ़ाई से हमको यह बनना है, तो दैवीगुण धारण करना है।
यहाँ दान जो करते हो उनसे यह रूहानी युनिवर्सिटी, हॉस्पिटल खोलते हैं।
दान किया तो फिर उनसे ममत्व मिटा देना चाहिए क्योंकि तुम जानते हो हम भविष्य 21 जन्म के लिए बाप से लेते हैं।
यह बाप मकान आदि बनाते हैं।
यह तो टैप्रेरी है।
नहीं तो इतने सब बच्चे कहाँ रहेंगे।
देते हैं सब शिवबाबा को।
धनी वह है। वह इनके द्वारा यह कराते हैं।
शिवबाबा तो राज्य नहीं करता।
खुद है ही दाता। उनका ममत्व किसमें होगा!
अभी बाप श्रीमत देते हैं कि मौत सामने खड़ा है।
आगे तुम किसको देते थे तो मौत की बात नहीं थी।
अब बाबा आया है तो पुरानी दुनिया ही खत्म होनी है।
बाप कहते हैं मैं आया ही हूँ इस पतित दुनिया को खत्म करने। इस रुद्र यज्ञ में सारी पुरानी दुनिया स्वाहा होनी है।
जो कुछ अपना भविष्य बनायेंगे तो नई दुनिया में मिलेगा।
नहीं तो यहाँ ही सब कुछ खत्म हो जायेगा। कोई न कोई खा जायेगा।
आजकल मनुष्य उधार पर भी देते हैं।
विनाश होगा तो सब खत्म हो जायेंगे। कोई किसको कुछ देगा नहीं।
सब रह जायेगा।
आज अच्छा है, कल देवाला निकाल देते।
कोई को भी कुछ पैसा मिलने का नहीं है।
कोई को दिया, वह मर गया फिर कौन बैठ रिटर्न करते हैं।
तो क्या करना चाहिए?
भारत के 21 जन्मों के कल्याण लिए और फिर अपने 21 जन्मों के कल्याण के लिए उसमें लगा देना चाहिए।
तुम अपने लिए ही करते हो।
जानते हो श्रीमत पर हम ऊंच पद पाते हैं, जिससे 21 जन्म सुख-शान्ति मिलेगी।
इनको कहा जाता है अविनाशी बाबा की रूहानी हॉस्पिटल और युनिवर्सिटी, जिससे हेल्थ, वेल्थ और हैप्पीनेस मिलती है।
कोई को हेल्थ है, वेल्थ नहीं तो हैप्पीनेस रह नहीं सकती।
दोनों हैं तो हैप्पी भी रहते हैं।
बाप तुमको 21 जन्मों के लिए दोनों देते हैं।
वो 21 जन्मों के लिए जमा करना है।
बच्चों का काम है युक्ति रचना।
बाप के आने से गरीब बच्चों की तकदीर खुल जाती है।
बाप है ही गरीब निवाज़।
साहूकारों की तकदीर में ही यह बातें नहीं हैं।
इस समय भारत सबसे गरीब है।
जो साहूकार था वही गरीब बना है।
इस समय सब पाप आत्मायें हैं।
जहाँ पुण्य आत्मा हैं वहाँ पाप आत्मा एक भी नहीं।
वह है सतयुग सतोप्रधान, यह है कलियुग तमोप्रधान।
तुम अभी पुरुषार्थ कर रहे हो सतोप्रधान बनने का।
बाप तुम बच्चों को स्मृति दिलाते हैं तो तुम समझते हो बरोबर हम ही स्वर्गवासी थे।
फिर हमने 84 जन्म लिए हैं।
बाकी 84 लाख योनियाँ तो गपोड़ा है।
क्या इतना जन्म जानवर योनि में रहे!
यह पिछाड़ी का मनुष्य का मर्तबा है?
क्या अब वापिस जाना है?
अब बाप समझाते हैं - मौत सामने खड़ा है।
40-50 हज़ार वर्ष हैं नहीं।
मनुष्य तो बिल्कुल घोर अन्धियारे में हैं इसलिए कहा जाता है पत्थरबुद्धि।
अभी तुम पत्थरबुद्वि से पारसबुद्धि बनते हो।
यह बातें कोई संन्यासी आदि थोड़ेही बता सकते हैं।
अब तुमको बाप स्मृति दिलाते हैं कि वापिस जाना है।
जितना हो सके अपना बैग बैगेज ट्रांसफर कर दो।
बाबा, यह सब लो, हम सतयुग में 21 जन्म लिए पा लेंगे।
यह बाबा भी तो दान-पुण्य करते थे।
बहुत शौक था।
व्यापारी लोग दो पैसा धर्माऊ निकालते हैं।
बाबा एक आना निकालते थे।
कोई भी आये तो दरवाजे से खाली न जाये।
अभी भगवान सम्मुख आये हैं, यह किसको पता नहीं है।
मनुष्य दान-पुण्य करते-करते मर जायेंगे फिर कहाँ मिलेगा?
पवित्र बनते नहीं, बाप से प्रीत रखते नहीं।
बाप ने समझाया है यादव और कौरवों की है विनाश काले विप्रीत बुद्धि।
पाण्डवों की है विनाश काले प्रीत बुद्धि।
यूरोपवासी सब यादव हैं जो मूसल आदि निकालते रहते हैं।
शास्त्रों में तो क्या-क्या बातें लिख दी हैं। ढेर शास्त्र बने हुए हैं, ड्रामा प्लैन अनुसार।
इसमें प्रेरणा आदि की बात नहीं।
प्रेरणा माना विचार।
बाकी ऐसे थोड़ेही बाप प्रेरणा से पढ़ाते हैं।
बाप समझाते हैं यह भी एक व्यापारी था।
अच्छा नाम था।
सभी इज्ज़त देते थे।
बाप ने प्रवेश किया और इसने गाली खाना शुरू कर दी।
शिवबाबा को जानते नहीं।
न उनको गाली दे सकते हैं।
गाली यह खाते हैं।
कृष्ण ने कहा ना - मैं नहीं माखन खायो।
यह भी कहते हैं काम तो सब कुछ बाबा का है, मैं कुछ नहीं करता हूँ।
जादूगर वह है, मैं थोड़ेही हूँ।
मुफ्त में इनको गाली दे देते हैं।
हमने कोई को भगाया क्या?
किसको भी नहीं कहा कि तुम भागकर आओ।
हम तो वहाँ थे, यह आपेही भाग आये।
मुफ्त में दोष डाल दिया है।
कितनी गाली खाई। क्या-क्या बातें शास्त्रों में लिख दी हैं।
बाप समझाते हैं यह फिर भी होगा।
यह है सारी ज्ञान की बात।
कोई मनुष्य यह थोड़ेही कर सकता है।
सो भी ब्रिटिश गवर्नमेन्ट के राज्य में कोई के पास इतनी कन्यायें-मातायें बैठ जाएं।
कोई कुछ कर न सके।
कोई के सम्बन्धी आते थे तो एकदम भगा देते थे।
बाबा तो कहते थे भल इनको समझाकर ले जाओ।
मैं कोई मना थोड़ेही करता हूँ परन्तु किसकी हिम्मत नहीं होती थी।
बाप की ताकत थी ना।
नथिंग न्यू।
यह फिर भी सब होगा।
गाली भी खानी पड़े।
द्रौपदी की भी बात है।
यह सब द्रौपदियां और दुशासन हैं, एक की बात नहीं थी।
शास्त्रों में यह गपोड़े किसने लिखे?
बाप कहते हैं यह भी ड्रामा में पार्ट है।
आत्मा का ज्ञान ही कोई में नहीं है, बिल्कुल ही देह-अभिमानी बन पड़े हैं।
देही-अभिमानी बनने में मेहनत है।
रावण ने बिल्कुल ही उल्टा बना दिया है।
अब बाप सुल्टा बनाते हैं।
देही-अभिमानी बनने से स्वत: स्मृति रहती है कि हम आत्मा हैं, यह देह बाजा है, बजाने लिए।
यह स्मृति भी रहती तो दैवीगुण भी आते जाते हैं।
तुम किसको दु:ख भी नहीं दे सकते।
भारत में ही इन लक्ष्मी-नारायण का राज्य था। 5 हज़ार वर्ष की बात है।
अगर कोई लाखों वर्ष कहते हैं तो घोर अन्धियारे में हैं।
ड्रामा अनुसार जब समय पूरा हुआ है तब बाप फिर से आया है।
अब बाप कहते हैं हमारी श्रीमत पर चलो।
मौत सामने खड़ा है।
फिर अन्दर की जो कुछ आश है, वह रह जायेगी।
मरना तो है जरूर।
यह वही महाभारत लड़ाई है।
जितना अपना कल्याण कर सको उतना अच्छा है।
नहीं तो तुम हाथ खाली जायेंगे।
सारी दुनिया हाथ खाली जानी है।
सिर्फ तुम बच्चे भरतू हाथ अर्थात् धनवान हो जाते हो।
इसमें समझने की बड़ी विशालबुद्धि चाहिए।
कितने धर्म के मनुष्य हैं।
हर एक की अपनी एक्ट चलती है।
एक की एक्ट न मिले दूसरे से।
सबके फीचर्स अपने-अपने हैं, कितने सारे फीचर्स हैं, यह सब ड्रामा में नूँध है।
वन्डरफुल बातें हैं ना।
अब बाप कहते हैं अपने को आत्मा समझो।
हम आत्मा 84 का चक्र लगाती हैं, हम आत्मा इस ड्रामा में एक्टर हैं, इनसे हम निकल नहीं सकते, मोक्ष पा नहीं सकते।
फिर ट्राई करना भी फालतू है।
बाप कहते हैं ड्रामा से कोई निकल जाए, दूसरा कोई एड हो जाए - यह हो नहीं सकता।
इतना सारा ज्ञान सबकी बुद्धि में रह नहीं सकता।
सारा दिन ऐसे ज्ञान में रमण करना है।
एक घड़ी आधी घड़ी..... यह याद करो फिर उनको बढ़ाते जाओ।
8 घण्टा भल स्थूल सर्विस करो, आराम भी करो, इस रूहानी गवर्नमेन्ट की सर्विस में भी टाइम दो।
तुम अपनी ही सर्विस करते हो, यह है मुख्य बात।
याद की यात्रा में रहो, बाकी ज्ञान से ऊंच पद पाना है।
याद का अपना पूरा चार्ट रखो।
ज्ञान तो सहज है।
जैसे बाप की बुद्धि में है कि मैं मनुष्य सृष्टि का बीजरूप हूँ, इनके आदि-मध्य-अन्त को जानता हूँ।
हम भी बाबा के बच्चे हैं।
बाबा ने यह समझाया है, कैसे यह चक्र फिरता है।
उस कमाई के लिए भी तुम 8-10 घण्टा देते हो ना।
अच्छा ग्राहक मिल जाता है तो रात को कभी उबासी नहीं आती है।
उबासी दी तो समझा जाता है कि यह थका हुआ है।
बुद्धि कहाँ बाहर भटकती होगी।
सेन्टर्स पर भी बड़ा खबरदार रहना है।
जो बच्चे दूसरों का चिन्तन नहीं करते हैं, अपनी पढ़ाई में ही मस्त रहते हैं उनकी उन्नति सदा होती रहती है।
तुम्हें दूसरों का चिन्तन कर अपना पद भ्रष्ट नहीं करना है।
हियर नो इविल, सी नो इविल..... कोई अच्छा नहीं बोलता है तो एक कान से सुन दूसरे से निकाल दो।
हमेशा अपने को देखना चाहिए, न कि दूसरों को।
अपनी पढ़ाई नहीं छोड़नी चाहिए।
बहुत ऐसे रूठ पड़ते हैं।
आना बन्द कर देते हैं, फिर आ जाते हैं।
नहीं आयेंगे तो जायेंगे कहाँ?
स्कूल तो एक ही है।
अपने पैर पर कुल्हाड़ा नहीं लगाना है।
तुम अपनी पढ़ाई में मस्त रहो।
बहुत खुशी में रहो।
भगवान पढ़ाते हैं बाकी क्या चाहिए।
भगवान हमारा बाप, टीचर, सतगुरू है, उनसे ही बुद्धि का योग लगाया जाता है।
वह है सारी दुनिया का नम्बरवन माशूक जो तुमको नम्बरवन विश्व का मालिक बनाते हैं।
बाप कहते हैं तुम्हारी आत्मा बहुत पतित है, उड़ नहीं सकती।
पंख कटे हुए हैं।
रावण ने सभी आत्माओं के पंख काट दिये हैं।
शिवबाबा कहते हैं मेरे बिगर कोई पावन बना नहीं सकता।
सब एक्टर्स यहाँ हैं, वृद्धि को पाते रहते हैं, वापिस कोई जाते नहीं।
अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।