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Baba's Murlis - June, 2020
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28-06-20 प्रात:मुरली मधुबन

अव्यक्त-बापदादा रिवाइज: 18-02-86

निरन्तर सेवाधारी तथा निरन्तर योगी बनो

आज ज्ञान सागर बाप अपनी ज्ञान गंगाओं को देख रहे हैं।

ज्ञान सागर से निकली हुई ज्ञान गंगायें कैसे और कहाँ-कहाँ से पावन करते हुए इस समय सागर और गंगा का मिलन मना रहीं हैं।

यह गंगा सागर का मेला है, जिस मेले में चारों ओर की गंगायें पहुंच गई।

बापदादा भी ज्ञान गंगाओं को देख हर्षित होते हैं।

हर एक गंगा के अन्दर यह दृढ़ निश्चय और नशा है कि पतित दुनिया को, पतित आत्माओं को पावन बनाना ही है।

इसी निश्चय और नशे से हर एक सेवा के क्षेत्र में आगे बढ़ते जा रहे हैं।

मन में यही उमंग है कि जल्दी से जल्दी परिवर्तन का कार्य सम्पन्न हो।

सभी ज्ञान गंगायें ज्ञान सागर बाप समान विश्व-कल्याणी, वरदानी और महादानी रहमदिल आत्मायें हैं इसलिए आत्माओं की दु:ख, अशान्ति की आवाज अनुभव कर आत्माओं के दु:ख अशान्ति को परिवर्तन करने की सेवा तीव्रगति से करने का उमंग बढ़ता रहता है।

दु:खी आत्माओं के दिल की पुकार सुनकर रहम आता है ना।

स्नेह उठता है कि सभी सुखी बन जाएं।

सुख की किरणें, शान्ति की किरणें, शक्ति की किरणें विश्व को देने के निमित्त बने हुए हो।

आज आदि से अब तक ज्ञान गंगाओं की सेवा कहां तक परिवर्तन करने के निमित्त बनी है, यह देख रहे थे।

अभी भी थोड़े समय में अनेक आत्माओं की सेवा करनी है।

50 वर्षों के अन्दर देश-विदेश में सेवा का फाउन्डेशन तो अच्छा डाला है।

सेवास्थान चारों ओर स्थापन किये हैं।

आवाज फैलाने के साधन भिन्न-भिन्न रूप से अपनाये हैं।

यह भी ठीक ही किया है।

देश-विदेश में बिखरे हुए बच्चों का संगठन भी बना है और बनता रहेगा।

अभी और क्या करना है?

क्योंकि अभी विधि भी जान गये हो। साधन भी अनेक प्रकार के इकट्ठे करते जा रहे हो और किये भी हैं। स्व-स्थिति, स्व-उन्नति उसके प्रति भी अटेन्शन दे रहे हैं और दिला रहे हैं। अब बाकी क्या रहा है?

जैसे आदि में सभी आदि रत्नों ने उमंग-उत्साह से तन-मन-धन, समय-सम्बन्ध, दिन-रात बाप के हवाले अर्थात् बाप के आगे समर्पण किया, जिस समर्पण के उमंग-उत्साह के फलस्वरूप सेवा में शक्तिशाली स्थिति का प्रत्यक्ष रूप देखा।

जब सेवा का आरम्भ किया तो सेवा के आरम्भ में और स्थापना के आरम्भ में, दोनों समय यह विशेषता देखी।

आदि में ब्रह्मा बाप को चलते-फिरते साधारण देखते थे वा कृष्ण रूप में देखते थे?

साधारण रूप में देखते भी नहीं दिखाई देता था, यह अनुभव है ना!

दादा है यह सोचते थे?

चलते-फिरते कृष्ण ही अनुभव करते थे।

ऐसे किया ना?

आदि में ब्रह्मा बाप में यह विशेषता देखी, अनुभव की और सेवा की आदि में जब भी जहाँ भी गये, सबने देवियां ही अनुभव किया।

देवियां आई हैं, यही सबके बोल सुनते, यही सभी के मुख से निकलता कि यह अलौकिक व्यक्तियां हैं।

ऐसे ही अनुभव किया ना?

यह देवियों की भावना सभी को आकर्षित कर सेवा की वृद्धि के निमित्त बनी।

तो आदि में भी न्यारे-पन की विशेषता रही।

सेवा की आदि में भी न्यारेपन की, देवी पन की विशेषता रही।

अभी अन्त में वही झलक और फलक प्रत्यक्ष रूप में अनुभव करेंगे, तब प्रत्यक्षता के नगाड़े बजेंगे।

अभी रहा हुआ थोड़ा-सा समय निरन्तर योगी, निरन्तर सेवाधारी, निरन्तर साक्षात्कार स्वरूप, निरन्तर योगी, निरन्तर साक्षात् बाप - इस विधि से सिद्धि प्राप्त करेंगे।

गोल्डन जुबली मनाई अर्थात् गोल्डन दुनिया के साक्षात्कार स्वरूप तक पहुंचे।

जैसे गोल्डन जुबली मनाने के दृश्य में साक्षात देवियां अनुभव किया, बैठने वालों ने भी, देखने वालों ने भी।

चलते-फिरते अब यही अनुभव सेवा में कराते रहना।

यह है गोल्डन जुबली मनाना।

सभी ने गोल्डन जुबली मनाई या देखी?

क्या कहेंगे?

आप सबकी भी गोल्डन जुबली हुई ना।

या कोई की सिल्वर हुई, कोई की तांबे की हुई?

सभी की गोल्डन जुबली हुई।

गोल्डन जुबली मनाना अर्थात् निरन्तर गोल्डन स्थिति वाला बनना।

अभी चलते फिरते इसी अनुभव में चलो कि मैं फरिश्ता सो देवता हूँ।

दूसरों को भी आपके इस समर्थ स्मृति से आपका फरिश्ता रूप वा देवी-देवता रूप ही दिखाई देगा।

गोल्डन जुबली मनाई अर्थात् अभी समय को, संकल्प को, सेवा में अर्पण करो।

अभी यह समर्पण समारोह मनाओ।

स्व की छोटी-छोटी बातों के पीछे, तन के पीछे, मन के पीछे, साधनों के पीछे, सम्बन्ध निभाने के पीछे समय और संकल्प नहीं लगाओ।

सेवा में लगाना अर्थात् स्व उन्नति की गिफ्ट स्वत: ही प्राप्त होना।

अभी अपने प्रति समय लगाने का समय परिवर्तन करो।

श्वांस जैसे भक्त लोग श्वांस-श्वांस में नाम जपने का प्रयत्न करते हैं।

ऐसे श्वांस-श्वांस सेवा की लगन हो। सेवा में मगन हो।

विधाता बनो वरदाता बनो। निरन्तर महादानी बनो।

4 घण्टे के 6 घण्टे के सेवाधारी नहीं अभी विश्व कल्याणकारी स्टेज पर हो।

हर घड़ी विश्व कल्याण प्रति समर्पित करो।

विश्व कल्याण में स्व कल्याण स्वत: ही समाया हुआ है।

जब संकल्प और सेकेण्ड सेवा मे बिजी रहेंगे, फुर्सत नहीं होगी, माया को भी आपके पास आने की फुर्सत नहीं होगी।

समस्यायें समाधान के रूप में परिवर्तन हो जायेंगी।

समाधान स्वरूप श्रेष्ठ आत्माओं के पास समस्या आने की हिम्मत नहीं रख सकती।

जैसे शुरू में सेवा में देखा देवी रूप, शक्ति रूप के कारण आये हुए पतित दृष्टि वाले भी परिवर्तित हो पावन बनने के जिज्ञासु बन जाते।

जैसे पतित परिवर्तन हो आपके सामने आये, ऐसे समस्या आपके सामने आते समाधान के रूप मे परिवर्तित हो जाए।

अभी अपने संस्कार परिवर्तन में समय नहीं लगाओ।

विश्व कल्याण की श्रेष्ठ भावना से श्रेष्ठ कामना के संस्कार इमर्ज करो।

इस श्रेष्ठ संस्कार परिवर्तन में समय नहीं गंवाओ।

इस श्रेष्ठ संस्कार के आगे हद के संस्कार स्वत: ही समाप्त हो जायेंगे।

अब युद्ध में समय नहीं गँवाओ।

विजयीपन के संस्कार इमर्ज करो।

दुश्मन विजयी संस्कारों के आगे स्वत: ही भस्म हो जायेगा, इसीलिए कहा तन-मन-धन निरन्तर सेवा में समर्पित करो।

चाहे मन्सा करो, चाहे वाचा करो, चाहे कर्मणा करो लेकिन सेवा के सिवाए और कोई समस्याओं में नहीं चलो।

दान दो वरदान दो तो स्व का ग्रहण स्वत: ही समाप्त हो जायेगा।

अविनाशी लंगर लगाओ क्योंकि समय कम है और सेवा आत्माओं की, वायुमण्डल की, प्रकृति की, भूत प्रेत आत्माओं की, सबकी करनी है।

उन भटकती हुई आत्माओं को भी ठिकाना देना है।

मुक्तिधाम में तो भेजेंगे ना!

उन्हों को घर तो देंगे ना!

तो अभी कितनी सेवा करनी है। कितनी संख्या है आत्माओं की! हर आत्मा को मुक्ति वा जीवनमुक्ति देनी ही है।

सब कुछ सेवा में लगाओ तो श्रेष्ठ मेवा खूब खाओ।

मेहनत का मेवा नहीं खाओ।

सेवा का मेवा, मेहनत से छुड़ाने वाला है।

बापदादा ने रिजल्ट में देखा बहुत करके जो पुरूषार्थ में अपने प्रति संस्कार परिवर्तन के प्रति समय देते हैं।

चाहे 50 वर्ष हो गये हैं, चाहे एक मास हुआ है लेकिन आदि से अब तक परिवर्तन करने का संस्कार मूल रूप में वही होता है, एक ही होता है।

और वही मूल संस्कार भिन्न-भिन्न रूप में समस्या बनकर आता है।

मानो दृष्टान्त के रूप में किसका बुद्धि के अभिमान का संस्कार है, किसी का घृणा भाव का संस्कार है, वा किसी का दिलशिकस्त होने का संस्कार है।

संस्कार वही आदि से अब तक भिन्न-भिन्न समय पर इमर्ज होता रहता है।

चाहे 50 वर्ष लगा है, चाहे एक वर्ष लगा है।

इस कारण उस मूल संस्कार को जो समय प्रति समय भिन्न-भिन्न रूप में समस्या बन करके आता है, उसमें समय भी बहुत लगाया है, शक्ति भी बहुत लगाई है।

अब शक्तिशाली संस्कार दाता, विधाता, वरदाता का इमर्ज करो।

तो यह महासंस्कार कमजोर संस्कार को स्वत: समाप्त कर देगा।

अभी संस्कार को मारने में समय नहीं लगाओ।

लेकिन सेवा के फल से, फल की शक्ति से स्वत: ही मर जायेगा।

जैसे अनुभव भी है कि अच्छी स्थिति से जब सेवा में बिजी रहते हो तो सेवा की खुशी से उस समय तक समस्यायें स्वत: ही दब जाती हैं क्योंकि समस्याओं को सोचने की फुर्सत ही नहीं।

हर सेकेण्ड, हर संकल्प सेवा में बिजी रहेंगे तो समस्याओं का लंगर उठ जायेगा, किनारा हो जायेगा।

आप औरों को रास्ता दिखाने के, बाप का खजाना देने के निमित्त सहारा बनो तो कमजोरियों का किनारा स्वत: ही हो जायेगा।

समझा - अभी क्या करना है? अभी बेहद का सोचो, बेहद के कार्य को सोचो।

चाहे दृष्टि से दो, चाहे वृत्ति से दो, चाहे वाणी से दो, चाहे संग से दो, चाहे वायब्रेशन से दो, लेकिन देना ही है।

वैसे भी भक्ति में यह नियम होता है, कोई भी वस्तु की कमी होती है तो कहते हैं दान करो।

दान करने से देना, लेना हो जाता है।

समझा गोल्डन जुबली क्या है।

सिर्फ मना लिया यह नहीं सोंचो।

सेवा के 50 वर्ष पूरे हुए अभी नया मोड़ लो।

छोटा-बड़ा एक दिन का वा 50 वर्ष का सब समाधान स्वरूप बनो।

समझा क्या करना है। वैसे भी 50 वर्ष के बाद जीवन परिवर्तन होता है।

गोल्डन जुबली अर्थात् परिवर्तन जुबली, सम्पन्न बनने की जुबली।

अच्छा सदा विश्व कल्याणकारी समर्थ रहने वाले, सदा वरदानी, महादानी स्थिति में स्थित रहने वाले, सदा स्व की समस्याओं को औरों प्रति समाधान स्वरूप बन सहज समाप्त करने वाले, हर समय हर संकल्प को सेवा में समर्पण करने वाले-ऐसे रीयल गोल्ड विशेष आत्माओं को, बाप समान श्रेष्ठ आत्माओं को बापदादा का याद प्यार और नमस्ते।

गोल्डन जुबली के आदि रत्नों से बापदादा की मुलाकात यह विशेष खुशी सदा रहती है कि आदि से हम आत्माओं का साथ रहने का और साथी बनने का दोनों ही विशेष पार्ट है।

साथ भी रहे और फिर जहाँ तक जीना है वहाँ तक स्थिति में भी बाप समान साथी बन रहना है।

तो साथ रहना और साथी बनना, यह विशेष वरदान आदि से अन्त तक मिला हुआ है।

स्नेह से जन्म हुआ, ज्ञान तो पहले नहीं था ना।

स्नेह से ही पैदा हुए, जिस स्नेह से जन्म हुआ, वही स्नेह सभी को देने के लिए विशेष निमित्त हो।

जो भी सामने आये विशेष आप सबसे बाप के स्नेह का अनुभव करे।

आप में बाप का चित्र और आपकी चलन से बाप का चरित्र दिखाई दे।

अगर कोई पूछे कि बाप के चरित्र क्या हैं तो आपकी चलन चरित्र दिखाये क्योंकि स्वयं बाप के चरित्र देखने और साथ-साथ चरित्र में चलने वाली आत्मायें हो।

चरित्र जो भी हुए वह अकेले बाप के चरित्र नहीं हैं।

गोपी वल्लभ और गोपिकाओं के ही चरित्र हैं।

बाप ने बच्चों के साथ ही हर कर्म किया, अकेला नहीं किया।

सदा आगे बच्चों को रखा।

तो आगे रखना यह चरित्र हुआ।

ऐसे चरित्र आप विशेष आत्माओं द्वारा दिखाई दें।

कभी भी “मैं आगे रहूँ'' यह संकल्प बाप ने नहीं किया।

इसमें भी सदा त्यागी रहे और इसी त्याग के फल में सभी को आगे रखा, इसलिए आगे का फल मिला।

नम्बरवन हर बात में ब्रह्मा बाप ही बना।

क्यों बना?

आगे रखना आगे होना, इस त्याग भाव से।

सम्बन्ध का त्याग, वैभवों का त्याग कोई बड़ी बात नहीं।

लेकिन हर कार्य में, संकल्प में भी औरों को आगे रखने की भावना।

यह त्याग श्रेष्ठ त्याग रहा।

इसको कहा जाता है स्वयं के भान को मिटा देना।

मै पन को मिटा देना।

तो डायरेक्ट पालना लेने वालों मे विशेष शक्तियां हैं।

डायरेक्ट पालना की शक्तियां कम नहीं हैं।

वही पालना अभी औरों की पालना में प्रत्यक्ष करते चलो।

वैसे विशेष तो हो ही। अनेक बातों में विशेष हो।

आदि से बाप के साथ पार्ट बजाना, यह कोई कम विशेषता नहीं है।

विशेषतायें तो बहुत हैं लेकिन अभी आप विशेष आत्माओं को दान भी विशेष करना है।

ज्ञान दान तो सब करते हैं लेकिन आपको अपनी विशेषताओं का दान करना है।

बाप की विशेषतायें सो आपकी विशेषतायें।

तो उन विशेषताओं का दान करो।

जो विशेषताओं के महादानी हैं, वह सदा के लिए महान रहते हैं।

चाहे पूज्य पन में, चाहे पुजारी पन में, सारा कल्प महान रहते हैं।

जैसे ब्रह्मा बाप को देखा अन्त में भी कलियुगी दुनिया के हिसाब में भी महान रहा ना।

तो आदि से अन्त तक ऐसा महादानी महान रहता है।

अच्छा - आपको देखकर सब खुश हुए, तो खुशी बांटी ना।

बहुत अच्छा मनाया, सबको खुश किया और खुश हुए।

बापदादा विशेष आत्माओं के विशेष कार्य पर हर्षित होते हैं।

स्नेह की माला तो तैयार है ना।

पुरूषार्थ की माला, सम्पूर्ण होने की माला वह तो समय प्रति समय प्रत्यक्ष हो रही है।

जितना जो फरिश्ता सम्पूर्ण अनुभव होता है वह समझो मणका माला में पिरोता जाता है।

तो वह समय प्रति समय प्रत्यक्ष होते रहते हैं।

लेकिन स्नेह की माला तो पक्की है ना।

स्नेह की माला के मोती सदा ही अमर हैं, अविनाशी है।

स्नेह में तो सभी पास मार्क्स लेने वाले हैं।

बाकी समाधान स्वरूप की माला तैयार होनी है।

सम्पूर्ण अर्थात् समाधान स्वरूप।

जैसे ब्रह्मा बाप को देखा समस्या ले जाने वाला भी समस्या भूल जाता था।

क्या लेकर आया और क्या ले करके गया!

यह अनुभव किया ना!

समस्या की बातें बोलने की हिम्मत नहीं रही क्योंकि सम्पूर्ण स्थिति के आगे समस्या जैसे कि बचपन का खेल अनुभव करते थे इसलिए समाप्त हो जाती थी।

इसको कहते हैं समाधान स्वरूप। एक-एक समाधान स्वरूप हो जाए तो समस्यायें कहां जायेंगी।

आधा कल्प के लिए विदाई समारोह हो जायेगा।

अभी तो विश्व की समस्याओं का समाधान ही परिवर्तन है।

तो क्या गोल्डन जुबली मनाई।

मोल्ड होने की जुबली मनाई।

जो मोल्ड होता है वह जिस भी रूप में लाने चाहो, उस रूप में आ सकता है।

मोल्ड होना अर्थात् सर्व का प्यारा होना।

सबकी नज़र फिर भी निमित्त बनने वालों पर रहती है। अच्छा!

वरदान:-

श्रेष्ठता के आधार पर समीपता द्वारा कल्प की श्रेष्ठ प्रालब्ध बनाने वाले विशेष पार्टधारी भव

इस मरजीवा जीवन में श्रेष्ठता का आधार दो बातें हैं:

1-सदा परोपकारी रहना।

2-बाल ब्रह्मचारी रहना।

जो बच्चे इन दोनों बातों में आदि से अन्त तक अखण्ड रहे हैं,

किसी भी प्रकार की पवित्रता अर्थात् स्वच्छता बार-बार खण्डित नहीं हुई है

तथा विश्व के प्रति और ब्राह्मण परिवार के प्रति जो सदा उपकारी हैं

ऐसे विशेष पार्टधारी बापदादा के सदा समीप रहते हैं

और उनकी प्रालब्ध सारे कल्प के लिए श्रेष्ठ बन जाती है।

स्लोगन:-

संकल्प व्यर्थ हैं तो दूसरे सब खजाने भी व्यर्थ हो जाते हैं।