मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों को रूहानी बाप बैठ समझाते हैं, इनको कहा जाता है रूहानी ज्ञान।
बाप आकर भारतवासी बच्चों को समझाते हैं, अपने को आत्मा समझो और बाप को याद करो, यह बाप ने खास फ़रमान किया है तो वह मानना चाहिए ना।
ऊंच ते ऊंच बाप की श्रीमत मशहूर है।
यह भी तुम बच्चों को ज्ञान है कि सिर्फ शिवबाबा को ही श्री श्री कह सकते हैं।
वही श्री श्री बनाते हैं, श्री माना श्रेष्ठ।
तुम बच्चों को अभी पता पड़ा है कि इन्हों को बाप ने ऐसा बनाया।
हम अभी नई दुनिया के लिए पढ़ रहे हैं।
नई दुनिया का नाम ही है स्वर्ग, अमरपुरी।
महिमा के लिए नाम बहुत हैं।
कहते भी हैं स्वर्ग और नर्क।
फलाना स्वर्गवासी हुआ तो गोया नर्कवासी थे ना।
परन्तु मनुष्यों में इतनी समझ नहीं, स्वर्ग-नर्क, नई दुनिया, पुरानी दुनिया किसको कहा जाता है, कुछ भी जानते नहीं।
बाहर का भभका कितना है।
तुम बच्चों में भी थोड़े हैं जो समझते हैं बरोबर हमको बाप पढ़ाते हैं।
हम यह लक्ष्मी-नारायण बनने के लिए आये हैं।
हम बेगर टू प्रिन्स बनेंगे।
पहले-पहले हम जाकर राजकुमार बनेंगे।
यह पढ़ाई है, जैसे इन्जीनियरी, बैरिस्टरी आदि पढ़ते हैं तो बुद्धि में रहता है कि हम घर बनायेंगे फिर यह करेंगे.... हर एक को अपना कर्तव्य स्मृति में आता है।
तुम बच्चों को जाकर बड़े ऊंच घर में जन्म लेना है इस पढ़ाई से।
जो जितना जास्ती पढ़ेगा उतना बहुत ऊंच घर में जन्म लेगा।
राजा के घर में जन्म ले फिर राजाई चलानी है।
गाया भी जाता है गोल्डन स्पून इन माउथ।
एक तो ज्ञान द्वारा यह गोल्डन स्पून इन माउथ मिल सकता है।
दूसरा, अगर दान-पुण्य अच्छी रीति करें तो भी राजा के पास जन्म मिलेगा।
वह हो गया हद का।
यह है बेहद का।
हर एक बात अच्छी रीति समझो।
कुछ भी समझ में न आये तो पूछ सकते हो।
नोट करो यह-यह बातें बाबा से पूछना है।
मुख्य है ही बाप के याद की बात।
बाकी कोई संशय आदि है तो उनको ठीक कर देंगे।
यह भी बच्चे जानते हैं जितना भक्ति मार्ग में दान-पुण्य करते हैं तो साहूकार के पास जन्म लेते हैं।
जो कोई बुरा कर्म करते हैं तो फिर ऐसा जन्म मिलता है, बाबा के पास आते हैं।
कोई-कोई को तो ऐसे कर्मबन्धन हैं जो बात मत पूछो।
यह सब है पास्ट का कर्मबन्धन।
राजायें भी कोई-कोई ऐसे होते हैं, बड़ा कर्मबन्धन कड़ा होता है।
इन लक्ष्मी-नारायण को तो कोई बंधन नहीं।
वहाँ है ही योगबल की रचना।
जबकि योगबल से हम विश्व की राजाई ले सकते हैं तो क्या बच्चा पैदा नहीं हो सकता!
पहले से ही साक्षात्कार हो जाता है।
वहाँ तो यह कॉमन बात है।
खुशी में बाजे बजते रहते हैं।
बूढ़े से बच्चा बन जाते।
महात्मा से भी बच्चे को जास्ती मान दिया जाता है क्योंकि वह महात्मा तो फिर भी सारी लाइफ पास कर बड़ा हुआ है।
विकारों को जानते हैं।
छोटे बच्चे नहीं जानते इसलिए महात्मा से भी ऊंच कहा जाता है।
वहाँ तो सब महात्मायें हैं।
कृष्ण को भी महात्मा कहते हैं।
वह है सच्चा महात्मा।
सतयुग में ही महान् आत्मायें होते हैं।
उन जैसे यहाँ कोई हो न सके।
तुम बच्चों को अन्दर में बहुत खुशी होनी चाहिए।
अभी हम नई दुनिया में जन्म लेंगे।
यह पुरानी दुनिया खत्म होनी है।
घर पुराना होता है तो नये घर की खुशी होती है ना।
कितने अच्छे-अच्छे मार्बल आदि के घर बनाते हैं।
जैनी लोगों के पास पैसे बहुत होते हैं, वह अपने को ऊंच कुल के समझते हैं।
वास्तव में यहाँ कोई ऊंच कुल तो है नहीं।
ऊंच कुल में शादी के लिए घर ढूंढते हैं।
वहाँ कुल आदि की बात नहीं होती।
वहाँ तो एक ही देवताओं का कुल होता है, दूसरा न कोई।
इसके लिए तुम संगम पर अभ्यास करते हो कि हम एक बाप के बच्चे सब आत्मा हैं।
आत्मा है फर्स्ट, पीछे है शरीर।
दुनिया में सब देह-अभिमानी रहते हैं।
तुमको अभी देही-अभिमानी बनना है।
गृहस्थ व्यवहार में रहते अपनी अवस्था को जमाना है।
बाबा को कितने बच्चे हैं, कितना बड़ा गृहस्थ है, कितने ख्यालात रहते होंगे।
इनको भी मेहनत करनी पड़ती है।
मैं कोई संन्यासी नहीं हूँ।
बाप ने इनमें प्रवेश किया है।
ब्रह्मा-विष्णु-शंकर का चित्र भी है ना।
ब्रह्मा है सबसे ऊंच।
तो उनको छोड़ बाप किसमें आयेंगे।
ब्रह्मा कोई नया पैदा नहीं होता।
देखते हो ना-इनको कैसे एडाप्ट करता हूँ।
तुम कैसे ब्राह्मण बनते हो।
इन बातों को तुम ही जानो और क्या जानें।
कहते हैं यह तो जवाहरी था, इनको तुम ब्रह्मा कहते हो!
उनको क्या पता इतने ब्राह्मण-ब्राह्मणियाँ कैसे पैदा होंगे।
एक-एक बात में कितना समझाना पड़ता है।
यह बहुत गुह्य बातें हैं ना।
यह ब्रह्मा व्यक्त, वह अव्यक्त।
यह पवित्र बन फिर अव्यक्त हो जाते।
यह कहते हैं - मैं इस समय पवित्र नहीं हूँ।
ऐसा पवित्र बन रहा हूँ।
प्रजापिता तो यहाँ होना चाहिए ना।
नहीं तो कहाँ से आये।
बाप खुद समझाते हैं मैं पतित शरीर में आता हूँ, जरूर इनको ही प्रजापिता कहेंगे।
सूक्ष्मवतन में नहीं कहेंगे।
वहाँ प्रजा क्या करेगी।
यह इन्डिपेन्डेन्ट पवित्र बन जाते हैं।
जैसे यह भी पुरूषार्थ करते हैं वैसे तुम पुरूषार्थ कर इन्डिपेन्डेन्ट पवित्र बन जाते हो।
विश्व के मालिक बनते हो ना।
स्वर्ग अलग, नर्क अलग है।
अभी तो कितना टुकड़ा-टुकड़ा हो गया है।
5 हज़ार वर्ष पहले की बात है जबकि इनका राज्य था।
वो लोग फिर लाखों वर्ष कह देते हैं।
ये बातें समझेंगे भी वही जिन्होंने कल्प पहले समझा होगा।
तुम देखते हो यहाँ मुसलमान, पारसी आदि सब आते हैं।
खुद मुसलमान फिर हिन्दुओं को नॉलेज दे रहे हैं।
वन्डर है ना।
समझो कोई सिक्ख धर्म के हैं, वह भी बैठ राजयोग सिखलाते हैं।
जो कनवर्ट हुए हैं वह फिर ट्रांसफर हो देवता कुल में आ जायेंगे।
सैपलिंग लगता है।
तुम्हारे पास क्रिश्चियन, पारसी भी आते हैं, बौद्धी भी आयेंगे।
तुम बच्चे जानते हो जब समय नजदीक आयेगा तब चारों ओर से हमारा नाम निकलेगा।
एक ही भाषण तुम करेंगे तो ढेर तुम्हारे पास आ जायेंगे।
सबको स्मृति आ जायेगी हमारा सच्चा धर्म यह है।
जो हमारे धर्म के होंगे वह सब आयेंगे तो सही ना।
लाखों वर्ष की बात नहीं है।
बाप बैठ समझाते हैं तुम कल देवता थे, अभी फिर देवता बनने के लिए बाप से वर्सा ले रहे हो।
तुम सच्चे-सच्चे पाण्डव हो, पाण्डव अर्थात् पण्डे।
वो हैं जिस्मानी पण्डे।
तुम ब्राह्मण हो रूहानी पण्डे।
तुम अभी बेहद के बाप से पढ़ रहे हो।
यह नशा तुमको बहुत होना चाहिए।
हम बाप के पास जाते हैं, जिनसे बेहद का वर्सा मिलता है।
वह हमारा बाप टीचर भी है, इसमें पढ़ने के लिए कोई टेबुल कुर्सी आदि की दरकार नहीं।
यह तुम लिखते हो सो भी अपने पुरूषार्थ के लिए।
वास्तव में यह समझने की बात है।
शिवबाबा तुमको पत्र लिखने के लिए यह पेन्सिल आदि उठाते हैं, बच्चे समझेंगे शिवबाबा के लाल अक्षर आये हैं।
बाप लिखते हैं रूहानी बच्चे।
बच्चे भी समझते हैं रूहानी बाबा।
वह बहुत ऊंच ते ऊंच है, उनकी मत पर चलना है।
बाप कहते हैं काम महाशत्रु है।
यह आदि-मध्य-अन्त दु:ख देने वाला है।
उस भूत के वश मत हो। पवित्र बनो।
बुलाते भी हैं हे पतित-पावन।
तुम बच्चों को अभी बड़ी ताकत मिलती है, राज्य करने की।
जो कोई जीत पा न सके।
तुम कितने सुखी बनते हो।
तो इस पढ़ाई पर कितना अटेन्शन देना चाहिए।
हमको बादशाही मिलती है।
तुम जानते हो हम क्या से क्या बन रहे हैं।
भगवानुवाच है ना।
मैं तुमको राजयोग सिखलाता हूँ, राजाओं का राजा बनाता हूँ।
भगवान किसको कहा जाता है, यह भी किसको पता नहीं है।
आत्मा पुकारती है-ओ बाबा!
तो मालूम होना चाहिए ना - वह कब और कैसे आयेंगे?
मनुष्य ही तो ड्रामा के आदि-मध्य-अन्त, ड्युरेशन आदि को जानेंगे ना।
जानने से तुम देवता बन जाते हो।
ज्ञान है ही सद्गति के लिए।
इस समय है कलियुग का अन्त। सब दुर्गति में हैं।
सतयुग में होती है सद्गति।
अभी तुम जानते हो बाबा आया हुआ है-सर्व की सद्गति करने।
सबको जगाने आये हैं।
कोई कब्र थोड़ेही है।
परन्तु घोर अन्धियारे में पड़े हैं, उनको जगाने आते हैं।
जो बच्चे घोर नींद से जग जाते हैं उनके अन्दर खुशी बहुत होती है, हम शिवबाबा के बच्चे हैं, कोई किस्म का फिक्र नहीं है।
बाप हमको विश्व का मालिक बनाते हैं।
रोने का नाम नहीं। यह है रोने की दुनिया।
वह है हर्षित रहने की दुनिया।
उन्हों के चित्र देखो कैसे शोभनिक हंसमुख बनाते हैं।
वह फीचर्स तो यहाँ निकाल न सकें।
बुद्धि से समझते हैं इन जैसे फीचर्स देखने में आते हैं।
तुम मीठे-मीठे बच्चों को अभी स्मृति आई है कि भविष्य में अमरपुरी के हम प्रिन्स बनेंगे।
इस मृत्युलोक को, इस भंभोर को आग लगनी है।
सिविलवार में भी एक-दो को मारते कैसे हैं, किसको हम मारते हैं वह भी पता नहीं पड़ता है।
हाहाकार के बाद जयजयकार होनी है।
तुम्हारी विजय, बाकी सब विनाश हो जायेंगे।
रूद्र की माला में पिरोकर फिर विष्णु की माला में पिरोये जायेंगे।
अभी तुम पुरूषार्थ करते हो अपने घर जाने के लिए।
भक्ति का कितना फैलाव है।
जैसे झाड़ के अनेक पत्ते होते हैं वैसे भक्ति का फैलाव है।
बीज है ज्ञान।
बीज कितना छोटा है।
बीज है बाबा, इस झाड़ की स्थापना, पालना और विनाश कैसे होता है, यह तुम जानते हो।
यह वैरायटी धर्मों का उल्टा झाड़ है।
दुनिया में एक भी नहीं जानते।
अब बच्चों को बहुत मेहनत करनी है बाप को याद करने की, तो विकर्म विनाश हो।
वह गीता सुनाने वाले भी कहते हैं मनमनाभव।
सब देह के धर्म छोड़ अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो।
मनुष्य इसका अर्थ थोड़ेही समझते हैं।
वह है ही भक्ति मार्ग।
यह है ज्ञान मार्ग। यह राजधानी स्थापन हो रही है।
फिक्र की कोई बात नहीं।
जिसने थोड़ा भी ज्ञान सुना तो प्रजा में आ जायेंगे।
ज्ञान का विनाश नहीं होता है।
बाकी जो यथार्थ जान पुरूषार्थ करते हैं वही ऊंच पद पाते हैं।
यह बुद्धि में समझ है ना।
हम प्रिन्स बनने वाले हैं, नई दुनिया में।
स्टूडेन्ट इम्तहान पास करते हैं तो उनको कितनी खुशी होती है।
तुमको तो हजार बार जास्ती अतीन्द्रिय सुख होना चाहिए।
हम सारे विश्व के मालिक बनते हैं। कोई भी बात में कभी रूठना नहीं है।
ब्राह्मणी से नहीं बनती है, बाप से रूठते हैं, अरे तुम बाप से बुद्धि का योग लगाओ ना।
उनको तो प्यार से याद करो।
बाबा बस आपको ही याद करते-करते हम घर आ जायेंगे।
अच्छा।
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।